Book Title: Aagam 24 V CHATU SHARAN Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (२४-वृ)
“चतु:शरण” - प्रकीर्णकसूत्र-१ (मूलं+अवचूर्णि:)
------------ मूलं ||२३-२९|| -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[२४/वृ], प्रकीर्णकसूत्र-[१] “चतु:शरण” मूलं एवं विजयविमलगणि कृता अवचूर्णि:
प्रत
सूत्रांक
||२३-२९||
कम्मट्ठक्खयसिद्धा साहाविअनाणदंसणसमिद्धा । सबट्ठलद्धि सिद्धा ते सिद्धा हुंतु मे सरणं ॥ २४ ॥ तिअलोयमत्थयत्था परमपयत्था अचिंतसामस्था। मंगलसिद्धपयस्था सिद्धा सरणं सुहपसत्था ॥ २५॥ मूलुक्खयपडिवक्खा अमूढलक्खा सजोगिपचक्खा । साहाविअत्तमुक्खा सिद्धा सरणं परममुक्खा ॥ २६॥ पडिपिल्लिअपडिणीआ समग्गझाणग्गिदहभवबीआ। जोईसरसरणीया सिद्धा सरणं समरणीआ॥ २७ ॥ पाविअपरमाणंदा गुणनिस्संदा विदिन्नभवकंदा। लहुईकयरविचंदा सिद्धा सरणं खविअदंदा ॥ २८ ॥ उवलद्धपरमबंभा दुल्लहलंभा विमुक्कसंरंभा।
भुवणघरधरणखंभा सिद्धा सरणं निरारंभा ॥ २९ ॥ 'अरिहंत'त्ति अर्हन्तां शरणमर्हच्छरणं तेन पूर्वोक्तेन या मलस्य-कर्मरजसः शुद्धिस्तया लब्धः शुद्धो-निर्मलः सिद्धान् प्रति बहुमानो-भक्तिर्येन स तथा, 'सुबिसुद्ध'त्ति पाठे तु सुष्टु-अतिशयेन विशुद्धो-निर्मल इत्यर्थः, पुनः किं
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दीप अनुक्रम [२३-२९]
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'सिद्ध' शब्दस्य विविध-व्याख्या: एवं तस्य शरणं
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