Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) Volume : 01, Issue: 01 Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/ Editor : Kanubhai Lallubhai Shah सम्राट संप्रति संग्रहालयना नूतन भवननी पवित्र भूमि पर वासनिक्षेप करता पूज्य गुरुदेवश्री । आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्राट् संप्रति संग्रहालयना नूतन भवननी खननविधि प्रसंगे उपस्थित महानुभाव अने आ शुभ अवसरनी केटलीक अविस्मरणीय तस्वीरो For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र श्रुतसागर SHRUTSAGAR (Monthly) શ્રુતસાગર वर्ष-१, अंक-१, कुल अंक १, जून-२०१४ * Year-1, Issue-1. Total Issue-1, June-2014 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रू. १५०/-* Yearly Subscription - Rs. 150/ अंक शुल्क - रू. १५/- Issue Per copy Rs. 15/ * आशीर्वाद * राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. *संपादक * * सह संपादक * कनुभाई लल्लुभाई शाह हिरेन के. दोशी ज्ञानमंदिर परिवार १७ जून, २०१४, वि. सं. २०७०, जेठ वद-३ प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२ फेक्स : (०७९) २३२७६२४९ website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १. संपादकीय २. गुरुवाणी ३. वर्ण व्यवस्था में निहित ४. एक ऐतिहासिक जैनप्रशस्ति ५. दर्भावती तीर्थ एक परिचय ६. एक भावपूर्ण उद्बोधन ७. पुस्तक समीक्षा ८. समाचार सार www.kobatirth.org आध्यात्मिक विकास के प्रतिमान प्राप्तिस्थान अनुक्रम हिरेन के. दोशी आ. पद्मसागरसूरिजी म. सा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डॉ. दीपा जैन मुनि पुण्यविजय कनुभाई एल. शाह पद्मश्री डॉ. कुमारपाळभाई डॉ. हेमन्त कुमार हिरेन के. दोशी आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर परिवार डाईनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only ३ ५ a 20 20 १४ २४ २८ ३० ३१ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय श्रुतसागरनो ४१मो अंक आपश्रीना हाथमां छे. छतां सरकारी रजिस्ट्रेशननी प्रक्रियाने लीधे मुख पृष्ठ पर अंक-१ छाप्युं छे. सूर्य प्रकाशथी, पाणी तरसथी, फुल सुगंधथी, नाव हलेसाथी, अने माणस मनथी पोतानी महत्ता आंकी शके छे. सूर्य प्रकाश वगर, पाणी तरस वगर, फुल सुगंध वगर, नाव हलेसा वगर अने मन शुभ विचार वगर पोतानी आगवी छाप क्यारेय छापी शकतु नथी. परार्थभावथी परिप्लावित मनमां शुभ विचार बीजनी जेम फळीभूत बनता होय छे. ___ सारा कार्याने सारा विचारोनुं पीठबळ हमेशा मळतुं ज होय छे. विचारोनी ताकात हवे वैज्ञानिको पण स्वीकारता थया छे. निर्माणनो विचार पण निर्माणमा कारणभूत छे. दुनियाना केटलांय देशोमां सारवारना सचोट माध्यम तरीके विचारनो उपयोग थई रह्यो छे. अने एनाथी परिवर्तन पण जोवा मळे छे. विचारनी आवी शक्ति आपणने प्राप्त थई छे. उन्नत विचारोथी जीवनने तरबतर अने समृद्ध बनावीए... आ अंकनी वात :- पूज्य गुरुभगवंतश्रीए पोतानी मार्मिक वाणीमां आपेला प्रवचनोने आ अंकमां गुरुवाणी हेठळ प्रकाशित कर्या छे. आ वखते प्रकाशित प्रवचननो गया अंकथी आगळनो भाग प्रकाशित कर्यो छे. क्षमा धर्मनी आराधना करवा माटे आवा चोंटदार शब्दो गुरुआशीष स्वरूपे अत्रे प्रकाशित थया छे. अप्रकाशित साहित्यिक कृति आ अंके न प्रकाशित करता विशेष लेखो ज प्रकाशित करेला छे. ___ ज्ञानमंदिरना वाचक अने परिचित डॉ. दिपा जैन द्वारा लिखित 'वर्णव्यवस्था में निहित आध्यात्मिक विकास के प्रतिमान' लेख द्वारा गुणस्थान अने जैनेतर दर्शननी आश्रम व्यवस्था अंगेनो समन्वय आपतो अभ्यास पूर्ण लेख अत्रे प्रकाशित कर्यो छे. लेखमां तुलनानी साथे साथे ब्रह्मचर्य, गृहस्थादि आश्रमोनो संक्षिप्त परिचय अने अवस्था विशेषनी नोंध लेखनी उपादेयतामां वधारो करे छे. जूना मेगेझिनमाथी प्रकाशित कराता लेखनी श्रेणिमा आ वखते पुरातत्त्व मेगेझिनमांथी आगम प्रभाकर पू. मुनिश्री पुण्यविजयजी म. सा. द्वारा लखायेल "एक ऐतिहासिक प्रशस्ति' नामनो लेख आ अंकमां प्रकाशित कर्यो छे. मूळ लेखमां प्रशस्ति अने एनो अनुवाद अलग अलग पृष्ठ पर होवाथी वाचकोनी उपादेयता माटे प्रशस्तिनी गाथाओ बाद ज एनो अनुवाद अत्रे प्रकाशित करेल छे. For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR JUNE - 2014 तीर्थपरिचयनी कोलम हेठळ आ वखते श्री कनुभाई शाह तरफथी लखायेल 'दर्भावती तीर्थ एक परिचय' लेख आ अंकमां प्रकाशित कर्यो छे. दर्भावती जेवा केटलांय प्राचीन तीर्थो प्रत्ये आपणी उदासीनता आ प्रकारना लेखोथी दूर थई शके छे. तीर्थ यात्रा- महात्म्य अने एनी विशेषताओ संक्षिप्त भावे आ प्रकारना लेखोथी जाणी शकाय छे. सम्राट संप्रति संग्रहालयना नूतन भवननी खननविधि प्रसंगे पद्मश्री कुमारपाळभाई द्वारा अपायेल भावपूर्ण शब्दोने अत्रे प्रकाशित कर्या छे. संग्रहालयना नूतन भवननी खननविधिना अहेवालने समाचार सार द्वारा सहु गुरुभक्तोना वाचनार्थे प्रकाशित कर्या छे. श्रुतसागर अं. नं. ३८-३९मां प्रकाशित ब्राह्मी लिपि एक अध्ययन विशे घणा वाचकोना सुंदर प्रतिभावो अमने प्राप्त थया अने ए प्रतिभावोना आधारे दर त्रीजा अंके एक लिपिनो विशिष्ट परिचय प्रकाशित करवानी धारणा राखी छे. सुंदर प्रतिभावो आपवा बदल ज्ञानमंदिर परिवार तरफथी वाचकोनो खूब खूब आभार.... ब्राह्मी लिपि एक अध्ययन विशेनो एक अभिप्राय श्रुतसागरपत्रिकायां ब्राह्मीलिपिविषयक: लेखः पठितः। स च लेखः लिपिजिज्ञासनां कृते मूलग्रन्थ इव राराजते, तत्र परिचयः, वर्णज्ञानं, मूलाक्षरज्ञानमित्येतत्सर्वं सर्वजनसुलभं, सुबोधञ्च वर्तत इति मे मतिः। (डॉ. सुरेशकुमार टी. व्यास) (गांधीनगर - गुजरात) सुविचार * मोटा माणसना अभिमान करतां नाना माणसनी श्रद्धा घणीवार धार्यु काम करी जाय छे. * जे दस्तावेज पर सही करवानी होय ते ध्यानथी यांचवो. मोटा अक्षरे लखेला लाभो नाना अक्षरो छीनवी लेता होय छे. * संबंधो जोवा माटे अजवाळु जोईए नहितर अंधकारमा जे वस्तु खावोई जाय छे तेमांथी एक संबंध होय छे. For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी आचार्यश्री पद्मसागरसूरिजी (गतांक से आगे) आप दृष्टि देखिए। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' दृष्टि तुरन्त बाहर जूते की तरफ.घूमेगी कि जूता है या गायब हो गया। फिर जूते की तरफ नजर करते हुये बोलेगा। 'त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव' फिर वापस मुड़ कर भगवान् के सामने देखकर बोलेगा। "त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव' फिर बाहर जूते की तरफ देखकर बोलेगा। 'त्वमेव सर्वम् मम देव देव' जूते से भी गई-बीती हमारी प्रार्थना | जूते का मूल्य समझ लिया। प्रार्थना का मूल्य आज तक समझ में नहीं आया । यह जूता बडा मूल्यवान है। दो सौ-चार सौ में लाया हूँ। परन्तु नहीं मालूम कि प्रार्थना अमूल्य है। मैंने कहा कि दिमाग से आप जूता निकाल देना । परन्तु हमारी हालत बड़ी खराब है, जाता नहीं, पुरातन संस्कार है। प्रयत्न करेंगे तो जरूर सुधार आएगा। ___ महात्मा को आकर के अपशब्द बोल गया | साधना में उनका प्रवेश हो चुका था। वे तो साधना के नशे में थे, सब भूल गए थे, दुनियां कहाँ है? चित्त की ऐसी एकाग्रता आ जाती है, कुछ पता नहीं पड़ता, क्या हो रहा है? जहाँ तक यह स्थिति नहीं आएगी, संसार से शून्य नहीं बनेंगे और कभी अन्दर में सर्जन नहीं होगा। आत्मा की वह खोज कभी पूरी होने वाली नहीं है। सम्राट अकबर जंगल में शिकार खेलने के लिए गए थे। शाम का समय था, खुदा की बन्दगी के लिए नमाज पढ़ रहे थे। बड़ा सुन्दर कालीन बिछा दिया गया। उनके साथ और भी कई अमीर थे। अचानक शाम के समय एक छोटा-सा निर्दोष बालक दौड़ता हुआ आया और गलीचे के ऊपर से निकल गया। बड़ा सुन्दर गलीचा था। सम्राट एकदम नाराज हुए। अपने आदमियों को कहा कि इस बालक को पकड़ करके ले आओ। For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 6 JUNE 2014 नमाज पूरी हो गई। जैसे ही बादशाह अपने कैम्प में गए। सिपाहियों ने उस बच्चे को बादशाह के सामने पेश किया। बच्चे को बादशाह ने कहा- तुझे शर्म नहीं आई। कैसी बदतमीजी की तुमने मैं खुदा की नमाज पढ़ रहा था और तू मेरे सामने से निकल कर चला गया। मेरा गलीचा गन्दा कर गया। बच्चा कुछ भी नहीं बोला। वह बड़ा समझदार बच्चा था। हाथ जोड़ कर के कहा गुस्ताखी माफ करें। मुझे क्षमा करें। मैं एक बात कहना चाहता हूँ। मैं अपनी माँ के साथ आया था । माँ जंगल में लकड़ियां काट रही थी, शाम का समय था । मैं जंगल में खेलने चला गया, माँ चली गई। माँ ने देखा बालक आ जाएगा। मैंने जब देखा तो माँ नजर नहीं आई। किसी साथी ने कहा-तेरी माँ इस रास्ते से गई है। मैंने अपनी माँ खोजने में स्वयं को ऐसा खो दिया, मुझे कुछ नहीं मालूम, बादशाह कहाँ खड़े हैं। नमाज कहाँ पढ़ा जा रहा है। गलीचा और कालीन कहाँ बिछा है । मैं दौड़ता गया। खोज में स्वयं को खो दिया। मेरी खोज पूरी हो गई। माँ मिल गयी । हुजूर ! आप खुदा की खोज में निकले थे। आपको सब मालूम है कौन किधर से गया, गलीचा किसने गन्दा किया। यह आपकी खोज कब पूरी होगी ? परमात्मा की प्रार्थना में जब तक हम स्वयं को खोएंगें नहीं, तब तक आपकी खोज पूरी होने वाली नहीं। स्वयं को खोना है, स्वयं को खोजना तो दूर गया । परमात्मा की खोज भी दूर गई। हम तो दुनियां को खोज रहे हैं। पैसे को खोज रहे हैं, कहाँ से मिलेगा ? परमात्मा के माध्यम से यदि आप पैसे को खोज रहे हैं, तो यह हमारी मूर्खता होगी । महात्मा ध्यान में मग्न थे। सब खो चुके थे । संसार को भूल कर आए थे। मात्र परमात्मा की स्मृतियों में जीवित थे। उनके लिए संसार मर चुका था । वासना खत्म हो गई । वह व्यक्ति गालियां देकर के गया, पता ही नहीं । दोतीन दिन तक उसने ये नाटक किया आखिर वह व्यक्ति थक गया । कैसा पत्थर जैसा आदमी है। रोज इतना बकता हूँ। इस पर कोई ध्यान ही नहीं देता। चौथे दिन आया। मन में ग्लानि पैदा हुई कि कोई महान सन्त हैं । अपशब्द बोलकर मैंने आग लगाने की बड़ी कोशिश की। परन्तु वह तो फायरप्रूफ हैं। बर्फ जैसे हैं । इतना उत्तेजित किया। शब्दों की चोट इनको दी। न जाने कैसे-कैसे शब्द इनके सामने मैने लाकर रखे । परन्तु इनके चेहरे पर क्रोध की जरा भी निशानी नहीं, तनाव नहीं । चरणों में गिर गया। उसके हृदय से परिवर्तन हुआ कि कोई महान सन्त हैं। For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 7 जून २०१४ कहा- भगवन्! मेरी अज्ञान दशा को देखकर आप क्षमा करें, मैंने जो भी भूल की है उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। भगवन्! मैंने आपके साथ कितना दुर्व्यवहार किया, कैसे-कैसे अपशब्द बोले ! भगवन्, क्षमा करें और आशीर्वाद दें । सन्त ने कैसा जवाब दिया। उसे छाती से लगाकर कहा- बेटा! तूने कुछ भी भूल नहीं की । तेरा कोई अपराध है ही नहीं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम से सारी दुनियां को जीता जा सकता है, प्रेम ही एकमात्र ऐसी साधना है जो बिना मन्त्र के सिद्ध हो जाती है । यदि व्यक्ति प्रेम की साधना में प्रवेश कर जाए. ऐसी मंगल भावना विकसित करे कि जगत में कोई भी पराया नहीं, सभी मेरे अपने हैं, अपनी दृष्टि को ही बदल दे, दूसरों को मित्रवत् समझने की दृष्टि आ जाए, तो संसार की समस्त वैमनस्यता समाप्त हो जाए। प्रभु वीर की दृष्टि से परिवर्तन की प्रक्रिया धीरे-धीरे आपको बतलाता रहूंगा। मेरा काम है सप्लाई करना | आप तक पहुँचा देना । डाकिए की तरह से संदेश दे देना । परमात्मा का प्रवचन तो सारे विश्व को प्रकाश देने वाला है । इतना सार्मथ्य है उस प्रवचन में कि सारे देश को, सारे विश्व को प्रकाशित कर दें। पावर हाउस देखिए । कितना वोल्टेज होता है उसके अन्दर, हाई वोल्टेज होता है। पूरे शहर को सप्लाई करता है, पर होम डिलीवरी के लिए कितना वोल्टेज चाहिए ? कम वाल्टेज चाहिए, दौ सौ वोल्टेज चाहिए घर तक पहुँचाने के लिए, अगर सीधी सप्लाई कर दी जाये पावर हाउस से तो आपके घर की क्या हालत होगी ? दीवाली हो जायेगी। पूरा शहर जल कर के राख बन जाएगा, शक्ति है, पर ग्रहण करने की ताकत नहीं है। परमात्मा का यह प्रवचन तत्त्वज्ञान से भरा हुआ है। समृद्ध है, सारे विश्व को प्रकाश देने वाला है। हमारे पास इतनी मानसिक क्षमता नहीं है । सप्लाई नहीं की जाती, ट्रांसफर होता है। हाई वोल्टेज को, लो वोल्टेज में लाकर डिलीवरी दी जाती है। सुधर्मा स्वामी का यह पाट (तखत) ट्रांसफार्मर है । ताकि आप समझ लें । परमात्मा के विचार के प्रकाश में से आपको भी रास्ता मिल जाए। आप स्वयं अपना प्रकाश प्राप्त कर लें। चलने का रास्ता आपको स्वयं दिखाई पड़े। मैं समझंगा मुझे अपनी मजदूरी का लाभांश मिल गया । उससे मुझे प्रसन्नता मिलेगी। इनमें रुचि पैदा हो गई, प्यास जग गई । जहां पर परमात्मा देशना देते हों, प्रवचन देते हों बड़ी विशेषता होती है कि बारह योजन तक (पूर्व काल के For Private and Personal Use Only उनके अतिशय में इतनी अन्दर यह एक प्रकार का Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR JUNE - 2014 माप था - इतने लम्बे-चौड़े विस्तार तक) कोई भी व्यक्ति उस परिधि में आ जाए तो उसके विचार में परिवर्तन आ जाएगा। विचार में एक आन्दोलन प्रगट हो जाएगा। उसके विचार सद्भावना से प्रतिष्ठित हो जाएंगे। 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः' पातंजल योगदर्शन में महान ऋषि ने लिखा कि जो व्यक्ति सदाचारी होगा, अहिंसक होगा, विचार में जिसके पवित्रता होगी, उसके पास आने वाला व्यक्ति, उसके वर्तुल के अन्दर, उसकी परिधि में यदि कोई आ गया तो वह विचार से आकर्षित बन जाएगा। उसके विचारों में परिवर्तन आ जाएगा। वह पूर्ण सात्विक बन जाएगा। अनेक आत्माओं के प्रति सहज ही एक भाव प्रगट हो जाएगा। यह विशेषता है। ब्रह्मचारी आत्माओं का आशीर्वाद इसीलिए लिया जाता है । सदाचारी आत्माओं का चरण स्पर्श इसीलिए किया जाता है। साधु पुरुषों के चरण-स्पर्श में यही तो रहस्य है। इसका वैज्ञानिक कारण है। शरीर में प्रतिक्षण 'इलेक्ट्रोन्स' निकलता है। एक प्रकार की आभा निकलती है। जो आप चमड़े की आंख से नहीं देख सकते। वह दृष्टिगोचर नहीं होती। अदृश्य किरण है। शरीर की ज्यादातर शारीरिक शक्ति जो है, सद्विचार की जो प्रचण्ड शक्ति है, उसको ये अर्थिव मिलता है। साधु उघाडे पांव चलते हैं, ताकि शक्ति और शरीर के अन्दर संतुलन बना रहे। इसीलिए साधु संन्यासियों को उघाडे पांव चलने का आदेश दिया गया । जीवों की जयना के लिए और शरीर के अन्दर सदाचार और ब्रह्मचर्य के द्वारा जो उसने शक्ति-संपादन किया है, शक्ति प्राप्त की है - उसके अन्दर संतुलन बना रहे। वह शारीरिक, मानसिक दृष्टि से भयंकर नुकसान कर जाएगा क्योंकि उस प्रचण्ड शक्ति को सहन करने की क्षमता वर्तमान शरीर के अन्दर में नहीं है। उसके संतुलन को बनाए रखने के लिए अर्थिव उसको मिलता रहे, उघाडे पांव चलने से शरीर के अन्दर जो अधिक शक्ति का संग्रह है, उसका विसर्जन हो जाएगा। यह इसके पीछे रहस्य है, उघाडे पांव चलने का और कोई कारण नहीं। अगर इसका वह उपयोग नहीं करता है और शक्ति की मात्रा बढ़ती चली जाती है, तो उसका परिणाम - क्रोध आएगा, चिड़चिड़ापन आएगा। भयंकर द्वेष पैदा होगा। दूसरे प्रकार से, वह शक्ति उसके लिए हानिकारक बन जाएगी। इसीलिए यहां इसका महत्त्व रखा गया। ऐसी ही पवित्रता आपके अन्दर में आनी चाहिए] For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्ण व्यवस्था में निहित आध्यात्मिक विकास के प्रतिमान डॉ. दीपा जैन भूमिका वर्ण व्यवस्था भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। यह समन्वित विकास की दिशा में मानव समुदाय की वह निधि है जिसके द्वारा मानव अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर समयसर अपनी सफलता के मंजिलों के पायदान चढ़ता चला जाता है। इसमें मानव जीवन के सम्पूर्ण आयुष्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आयोजनबद्ध विभाजन को दर्शाया गया है। आयु के किस हिस्से का मकसद क्या होना चाहिए और क्यों। अपनी व्यावहारिक जिम्मेदारियां निभाते हुए कैसे निश्चयनय के आधार को उत्तरोत्तर सुदृढ़ किया जा सकता है। यह मानव समुदाय को व्यक्तिगत रूप से गुणों से युक्त करने की व्यवस्था है जिसमें अग्रिम अवस्था में परिवर्तन के साथ गुणों के विकास की अवस्था में वृद्धि होती है। जैन दर्शन में आध्यात्मिक विकास की यही दशा गुणस्थान सिद्धान्त के रूप में जानी जाती है। गुणस्थान का सीधा सम्बन्ध यूं तो जैन दर्शन से माना जाता है किन्तु भारत के प्रायः सभी प्रमुख दर्शनों में आध्यात्मिक विकास की बात अपने अपने तरीके से की गई है। इसमें कितनी समानता देखने को मिलती है और कितनी विविधतायह जानना भी अभ्यास की दृष्टि से तर्कसंगत लगता है। इससे गुणस्थान की अवधारणा की लोक या सार्वभौमिक स्वीकार्यता की झलक मिलती है और वहीं दूसरी ओर इस धार्मिक अवयव को वैज्ञानिक आधार मिलता है। वैदिक संस्कृति में जीवन की चार अवस्थाओं के माध्यम से नैतिक व आत्मिक स्थितियों की बात कही गई है जिन्हें यहाँ वर्ण व्यवस्था को चार आश्रम कहा गया है - (१) ब्रह्मचर्य (२) गृहस्थ (३) वानप्रस्थ एवं (४) संन्यास। गुण धारण के लक्षणों के आधार पर इन चार वर्णाश्रम की व्यवस्था में जिन ध्येयों को प्रधानता दी जाती है वे निम्न लिखित हैं १. सीखना, जानना सम्यक ज्ञान व दर्शन की अनुभूति २. निष्काम पुरुषार्थ व सांसारिक दायित्वों का नैतिकता के साथ निर्वाह For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 SHRUTSAGAR JUNE - 2014 ३.आसक्ति रहित जीवन व्यवहार का अभ्यासः राग द्वेष आदि विकारी भावों को हटाना, ममत्व व तृष्णा में कमी तथा पंचेन्द्रिय संयम।। ४. आत्म साधना हेतु सांसारिकता का त्याग एवं कठोर तपस्चर्या का आचरण आध्यात्मिक किस अवस्था तक पहुँचने के लिए किन गुणों का होना जरूरी है। जो गुण सहित है वही गुणी है। गुण सहित होने की प्रतीति दो रूपों में होती है- द्रव्याचरण और भावाचरण। द्रव्याचरण से हमारा आशय लौकिक व्यवहार या क्रियाओं से है तथा भावाचरण का आन्तरिक विशुद्धता से है जिसकी आत्मिक विकास में अहम् भूमिका होती है। देश, कर्मकाण्डीय प्रथाएं आदि लौकिक नैतिकता का प्रतिनिधित्व करती हैं इससे ऊपर की अवस्थाओं में आरोहण हेतु दृढ़ भाव की विशुद्धि की अनिवार्यता बढ़ जाती है। आत्म विशुद्धि की यात्रा में विकारी परिणामों पर जय पाने हेतु उपशम व क्षय दो महत्त्वपूर्ण विधियाँ हैं | उपशम विधि के तहत विकारी भावों का बढ़ना तो रूकता है किन्तु उसका प्रभाव अल्पकालिक रहता है। क्योंकि इस विधि को अपनाने में इन भावों को रोकने की दृढ़ता व आत्मविश्वास का स्तर व्यक्ति में निम्न पाया जाता है। समय के साथ इसकी पकड़ ढीली पड़ते ही विकारी भावों का प्रभुत्व पुनः बढ़ जाता है तथा इसी के चलते वर्तमान अवस्था से पतनोन्मुख हो जाता है। इसके विपरीत आध्यात्मिक उत्थान की अन्य विधि क्षय है जिसमें व्यक्ति का अपने संकल्पों के प्रति आत्मविश्वास व दृढ़ता का स्तर प्रबल पाया जाता है और वह अपनी अर्जित गुण ग्रहण स्थिति से पतित नहीं होता विकास पथ में उसके कदम डगमगाते नहीं हैं। वर्ण व्यवस्था में मानव जीवन की उत्कृष्ट आयु सौ वर्ष मानते हुए प्रत्येक आश्रम का काल पच्चीस वर्ष माना गया है। यहाँ क्रमानुसार व्यक्ति अगले आश्रम में प्रवेश करता चला जाता है। यही नैतिक विकास यात्रा के आधार स्तंभ हैं। वर्ण व्यवस्था के चार आश्रम और गुणस्थान की स्थितयों का विश्लेषण इस प्रकार समजा जा सकता है For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जून • २०१४ (१) ब्रह्मचर्य आश्रम आरम्भिक पच्चीस वर्ष संयम व स्व-अनुशासन के साथ ज्ञानार्जन में व्यतीत करना, सच्चे ज्ञान को ग्रहण करना तथा वास्तविक जीवन का अभ्यासी बनना ही ब्रह्मचर्य आश्रम है। निज पर शासन फिर अनुशासन ! चतुर्थ गुणस्थान तक ऊपर की और बढ़ने हेतु सम्यकत्व के ज्ञान की बात पर बल दिया गया है और इस आश्रम व्यवस्था के प्रथम चरण में इसी साधना की बात कही गई है जो इसकी साम्यता प्रकट करती है। ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति को न सिर्फ सम्यकत्व का बोध होता है अपितु चतुर्थ गुणस्थान से ऊपर की स्थितियों के समरूप अनुशासनबद्ध व्यवहार का प्रयोगात्मक अनुभव शिक्षण के तहत कराया जाता है जो उसके गृहस्थाश्रम में प्रवेश एवं नीतिमत्तापूर्ण जीवन यापन के दायित्व निर्वाह में सहायक सिद्ध होता है। इस प्रकार से यह पाँचवे देशविरत गुणस्थान की आरम्भिक स्थिति की पूर्व तैयारी से सरोकार रखता है। (१) गृहस्थ आश्रम यह आश्रम एक सद्-गृहस्थ के रूप में अपने नियत दायित्वों से जुड़ा है। गृहस्थी का उपयोग करते हुए भगवद भक्ति को न विसराना, उचित-अनुचित के भेद को सदैव अपने व्यवहार में अमली बनाना तथा इस प्रकार से कार्य करना जिससे दूसरों का नुकशान न हो यही गृहस्थाश्रम की विशिष्टताएं हैं। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए आत्म चिन्तन को न भूलना और भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति ममत्व इतना न बढ़ा लेना कि जिससे उसके न होने पर दुख व होने पर अतिरेक खुशी का अहसास हो। गुणस्थान की स्थितियों के संदर्भ में गृहस्थाश्रम पाँचवे गुणस्थान तक ही श्रावक को ले जाता है। (३) वानप्रस्थ आश्रम___ यह आध्यात्मिक विकास यात्रा का पूर्व मुकाम है। गृहस्थाश्रम के पश्चात व्यक्ति को इच्छा या इन्द्रिय निरोध करना होता है। जिस प्रकार ब्रह्मचर्य आश्रम सद गृहस्थ का जीवन जीने हेतु शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य करता है ठीक उसी प्रकार वानप्रस्थ आश्रम वैराग्य की परिणति की ओर पहला कदम है जिसमें For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 SHRUTSAGAR JUNE - 2014 गृहस्थ उत्कृष्ट श्रावक बनकर शुभाचरण के स्थान पर अब शुद्धाचरण का अभ्यास करने लगता है। अपना ममत्व संसारी वस्तुओं से हटाने लगता है। गृहस्थी में रहते हुए भी गृहस्थ न होने का अहसास ही वानप्रस्थ आश्रम की दशा है। जिस प्रकार छः खण्ड के चक्रवर्ती महाराज भरत को घर में ही वैरागी कहा जाता था। वे संसार में रहते हुए ब्रह्मज्ञान के साधक थे। (४) संन्यास आश्रम संन्यास का सामान्य शब्दार्थ है प्रकट और अप्रकट वस्तुओ में मोह या ममत्व रहित न्यास (Trusteeship) भाव। लाभ-हानि, राग-द्वेष जैसे विकारों से परे होकर अपनी आत्मा के चिन्तन में मगन होता है। वह मानव जीवन का अंतिम एवं सर्वोत्कृष्ट आश्रम है संन्यास । सांसारिक वृत्तियों के पूर्ण निरोध की साधना इस आश्रम में रहकर की जाती है। मोह-माया व राग-द्वेषादि से दूर वह परमात्म प्राप्ति का पुरुषार्थ एकाग्र होकर करता है तथा परम सिद्धि को प्राप्त करता है। मनु ने मानव जीवन को नीतिमय व धर्माचरण के अनुरूप बनाने हेतु निम्न लिखित दस गुणों को आवश्यक माना है - धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रिय-निग्रहः। धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।। धृति का अर्थ है धैर्य, सन्तोष, दृढ़ता, आत्मनिर्भरता स्वावलम्बन । क्षमा का अर्थ है समर्थ होकर भी दूसरों के अपकार को सहन करना । दम-मन का नियमन या नियन्त्रण करना दम कहलाता है। मनो संयम के अभाव में मनुष्य काम-क्रोध आदि के वश होकर पथ भ्रष्ट हो सकता है। अस्तेय-अस्तेय का अर्थ है अन्याय से, छल-कपट या चोरी से दूसरों की वस्तु का अपहरण करना। शौच का अर्थ पवित्रता से लिया जाता है। यह दो प्रकार से होती है-मृतिका और जल आदि से शुचि जो बाह्य शौच है जबकि दया, परोपकार, तितिक्षा आदि गुणों से आभ्यन्तर शौच माना जाता है। इन्द्रिय-निग्रह-शब्दादि विषयों की ओर जाने वाली चक्षुरादि इन्द्रियों को अपने वश में रखना इन्द्रिय निग्रह है। तत्त्वज्ञान को ही धी कहते हैं। विद्या का For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 श्रुतसागर जून - २०१४ अर्थ है आत्मज्ञान । यथार्थ बात को कहना ही सत्य है। क्रोध का कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध का उत्पन्न न होना अक्रोध है। उपसंहार जैन दर्शन में आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से यदि इन आश्रमों की सोपान स्थितियों का विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि जैन दर्शन में मूलतः दो स्थितियाँ ही हैं-गृहस्थ और संन्यास | हालाँकि गृहस्थ स्थिति के उपभेद हो जाने से गृहस्थ व वानप्रस्थ आश्रम का संयुक्त रूप जैन दर्शन युत इस अवस्था में देखा जा सकता है यथा चतुर्थ व पंचम गुणस्थानधारी सम्यक्त्वी गृहस्थ इस आश्रम का अधिकारी है किन्तु उसकी क्रियाएं पंचम गुणस्थान में अति उत्कृष्ट श्रावक की हो जाती है जो वानप्रस्थ आश्रम की अवस्था से कमोवेश मेल खाती प्रतीत होती है। वैदिक परम्परा में संन्यास की एक अवस्था को ही देखा जाता है जबकि गुणस्थानक परम्परा में आन्तरिक एवं बाह्य आचरण के आधार पर कई भेद-प्रभेद किये हैं। इसमें उत्थान पतन दोनों के ही विधान हैं जबकि आश्रम व्यवस्था में इस तरह की व्यवस्थाओं का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। गुणस्थान पथ में हार तो है ही नहीं, है तो सिर्फ जीत का परिमाण | यहाँ कोई किसी का मार्ग अवरोधक नहीं बनता अपितु जीत के मार्ग पर अग्रेसर होने के समय सहधर्मी साधक वात्सल्यता का भाव लिए अभिप्रेरक बनता है। इसमें न राग होता है और न ही द्वेष, सिर्फ होता है सहपथानुगामी के प्रति निश्कांछित प्रेम। इस प्रकार का अनोखा प्रगति पथ गुणस्थान ही है जो अपने सहअभ्यासी साधक जीवों को प्रेम व सहकार की भावना के साथ प्रेरणात्मक संवेग प्रदान करता है इस लौकिक दुनिया के मान्य प्रतिमानों के विपरीत समर्पित श्रद्धानुगामी साधक गुणस्थानक अवस्थाओं की जरूरतों के अनुरूप स्वयं को ढालते हुए परम-सिद्ध पद में लीन होकर चिर आनन्द की अनुभूति करता है। अंत में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गुणस्थान अवधारणा के तार एक सुखमय मानव जीवन व मानवीय मूल्यों से जुड़े हुए हैं। इसमें निहित हैं जियो और जीने दो, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय जैसे मूल्य जो न सिर्फ मानव जाति की अपितु समग्र जीव सृष्टि का उद्धार करने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एक ऐतिहासिक जैनप्रशस्ति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि पुण्यविजय जैनोए अने जैनाचार्योए जेम पोताना प्राचीन साहित्यनी रक्षा करी छे ते प्रमाणे गौरवभर्या जैनेतर साहित्यनुं पण रक्षण तेमज पोषण ते ते ग्रंथोना उतारा' करावी, ते ते ग्रंथो उपर टीका-टिप्पण आदि रची, अनेक प्रकारे कर्तुं छे. आ प्रकारनं रक्षण तेमज पोषण खंडनात्मक दृष्टिथी ज करातुं हतुं तेम नहीं, किंतु गुणग्राहिपणाथी अने साहित्यविलासिताथी पण. आना उदाहरणरूपे श्रीमान् हरिभद्रसूरि, हेमचंद्राचार्य तथा श्रीमान् यशोविजयोपाध्याय आदिना ग्रंथोमां आवतां अवतरणो ज' बस थशे. गुजरातना जैनेतर कविओना गौरवभर्या श्रीवत्सराज विरचित 'रूपकषटक्,' कायस्थकवि सोठ्ठल विरचित 'उदयसुन्दरीकथा' आदि ग्रंथोनुं रक्षण पण पाटणना जैन भंडारोमां ज थयुं छे. जेम जैनोए साहित्यसेवा अनेक प्रकारे करी छे तेम गुजरातना महापुरुषोनाराजा महाराजाओ, तेमना महामात्यो, ते ते समये विद्यमान साहित्यविलासी धनाढ्यो अने धर्मात्माओना, अने ते समयनां पाटनगरादिनी जाहोजलाली इत्यादिना अवदातोनी रक्षा पण अनेक प्रकारे करी छे. आ प्रकारोना आपणे चार विभाग करीशु १. तेमना चरित्र गर्भित ग्रंथो, २ तेमना नामादिगर्भित १. महाकवि राजशेखरकृत 'काव्यमीमांसा' ग्रंथ जे बरोडा ओरिएन्टल सिरिझ तरफथी छपाइने बहार पड्यो छे तेनी ऋण कॉपीओ जैनभंडारमांथी ज मळी हती. बौद्धग्रंथ 'कमलशील सटीक' नी कोपी पण जैनभंडारमांथी मळी छे. शुंभलीमत के जे प्राचीन छे ते मतनो पण एक ग्रंथ पाटणना ताडपत्रना जैनभंडारमां विद्यमान छे. आ प्रमाणे न्याय, काव्य-नाटक, अलंकार, ज्योतिष नीति आदिना अनेक ग्रंथो विद्यमान छे के जेनी कॉपी अन्यत्र न पण मळे. २. दिङ्नागना न्यायप्रवेश पर हरिभद्रनी टीका. धर्मोत्तर उपर मल्लवादिनुं टिप्पण, रुद्रटना काव्यालंकार उपर नमिसाधुनी टीका, मम्मटना काव्यप्रकाशनी माणिक्यचंद्रकृत काव्यप्रकाशसंकेतटीका पंचकाव्य उपर अन्यान्य जैनाचार्योंनी टीकाओ, कादंबरी उपर मानुचंद्र - सिद्धिचंद्रनी विस्तृत टीका अने मम्मटना काव्यप्रकाश उपर न्यायाचार्य श्रीमद् यशोविजयोपाध्यायनी विस्तृत टीका आ प्रमाणे अनेक ग्रंथो पर टीकाओ रचाई छे. ३. 'एवं क्रमेण 'एषा' सदृष्टिः सतां मुनीनां भगवत्पञ्जलिभदन्तभास्करबन्धुभगवदत्तवादीनां योगिनामित्यर्थः' योगदृष्टिटीका, पत्र १५ तथा 'वृद्धिरादैच्' इत्यत्र भगवता भाष्यकारेणावस्थापितम्" हैम काव्यानुशासनविवेक पत्र १७३ इत्यादि. ४. द्वयाश्रयमहाकाव्य, कुमारपालप्रतिबोध कुमारपालचरित्र, मोहपराजय नाटक, विमळप्रबंध, वस्तुपाळचरित्र, सुकृतसागर इत्यादि. For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 15 जून २०१४ शिलालेखो,' ३. ग्रंथकारोए पोताना ग्रंथोना प्रारंभमां के अंतमां उल्लिखित ते ते वर्णनयुक्त प्रशस्तिओ अने ४ ग्रंथोना लखावनारे तेना अंतमां लखावेल प्रशस्तिओ, ज्यां सुधी उपर्युक्त प्रकारना अंगोमांनुं एक पण अंग अपूर्ण होय त्यां सुधी गुजरातनी विभूतिओनुं संपूर्ण अवदात आपणे जाणी शकीए नहीं आ ज कारणथी आवा प्रकारना साहित्यना संग्रहनी आवश्यकता जोवायेली छे. प्रस्तुत प्रशस्तिने आपणे चतुर्थ विभागमां दाखल करीशुं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ प्रशस्तिमां जणावेल 'पेथडशाहे चार ज्ञानभंडारो स्थाप्या, मंडिलके पण केटलुक ग्रंथोद्धारनुं कार्य कर्यु. अने पर्वते पण पुस्तकभंडार स्थाप्यो' इत्यादि उल्लेखथी तेमज महाराजा कुमारपाळे, मंत्री वस्तुपाळ-तेजपाळे, पेथडशाह आदिए अनेक भंडार स्थाप्याना अन्य ठेकाणे मळता उल्लेखोथी ज गुजरातना इतिहासना जैनोए करेला कार्यनी सहेजे झांखी थाय छे. 'जिणदासमहत्तर' इति तेन रचिता चूर्णिरियम् ।। सम्यक तथाऽऽम्नाय.. भावोदत्रोक्तं यदुत्सूत्रम् । मतिमान्द्याद्वा किञ्चित्तच्छोध्यं श्रुतधरैः कृपाकलितैः ||१|| श्री शीलभद्रसूरीणां शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विंशकोद्देशके व्याख्या दृब्धा स्वपरहेतवे ॥ २ ॥ वेदाश्वरुद्रयुक्ते (११७४) विक्रमसंवत्सरे तु मृगशीर्षे । माघसितद्वादश्यां समापितोऽयं रवौ वारे ||३|| इति श्री निशीथचूर्णिविंशकोद्देशकव्याख्या समाप्ता || ग्रंथाग्रं. संख्या २८००० ।। [पुस्तकनी प्रशस्ति ] स्वस्ति श्रीप्रभुवर्द्धमानभगवत्प्रासादविभ्राजिते श्रीसण्डेरपुरे सुरालयसमे प्राग्वाटवंशोत्तमः । आभूर्भूरियशा अभूत् सुमतिभूर्भूमिप्रभुप्रार्चितस्तज्जातोऽन्वयपद्मभासुररविः श्रेष्ठी महानासडः ||१|| गाथार्थ :- श्री वर्धमान स्वामीना मंदिरथी अलंकृत संडेरपुर (सांडेरा) मां प्राग्वाटवंशीय ( पोरवाड) ज्ञातीय, सुमतिशाहनो यशस्वी अने राजमान्य आभू नामनो पुत्र हतो. तेनो पुत्र श्रेष्ठी आसड हतो. १. गिरनार, शत्रुंजय, आबु, तारंगा आदि महातीर्थोना लेखो For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 16 SHRUTSAGAR सन्मुख्यो मोषनामा नयविनयनिधिः सूनुरासीत्तदीयस्तद्भ्रांता वर्द्धमानः समजनि जनतासु स्वसौजन्यमान्यः । अन्यूनाऽन्यायमार्गाऽपनयनरसिकस्तत्सुतश्चण्डसिंहः सप्ताऽऽसंस्तत्तनूजाः प्रथितगुणगणाः पेथडस्तेषु पूर्वः ||२|| नरसिंहरत्नसिंहौ चतुर्थमल्लस्ततस्तु मुञ्जालः । विक्रमसिंहो धर्मण इत्येतेऽस्यानुजाः क्रमतः ॥ ३ ॥ गाथार्थ :- आसडनो न्यायवान्, विनयी अने सज्जनमान्य मोष (मोक्ष) नामनो पुत्र हतो, अने मोषनो भाइ वर्धमान हतो. तेने चंडसिंह नामे सदाचारी पुत्र हतो. चंडसिंहने सात पुत्रो हता. तेमां सहुथी मोटो पेथड हतो. सण्डेरकेऽहिलपाटकपत्तनस्याsseन्ने य एव निरमापयदुच्चचैत्यम् । स्वस्वैः स्वकीयकुलदैवतवीरसेव्यश- ( ? ) क्षेत्राधिराजसतताश्रितसन्निधानम् ||४|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथार्थ :- पेथडने क्रमथी छ नाना भाइ हता - नरसिंह, रत्नसिंह, चतुर्थमल्ल ( चोथमल), मुंजाल, विक्रमसिंह अने धर्मण. JUNE 2014 वासाऽवनी तेन समं च जाते कलौ कुतौ स्थापय देवहेतोः । वीजापुरं क्षत्रियमुख्यबीजसौहार्दतो लोककरार्द्धकारी (?) 11५ ।। गाथार्थ :- आ श्लोकनो आशय समजातो नथी. गाथार्थ :- पेथडे अणहिलपाटक पत्तननी पासे आवेल संडेरकमां पोताना धन वडे पोतानी कुलदेवता अने वीरसेश (?) नामना क्षेत्रपाळथी सेवाएल अथवा रक्षित मोटुं चैत्यमंदिर कराव्यं. अत्र रीरीमयज्ञातनन्दन प्रतिमान्वितम् । यश्चैत्यं कारयामास लसत्तोरणराजितम् ||६ ॥ For Private and Personal Use Only गाथार्थ :- पेथडे वीजापुरमां. स्वर्णमय * प्रतिमालंकृत तेमज तोरणथी युक्त एक मंदिर कराव्यं. *आ प्रतिमाओ पंचधातुमय होय छे. पण तेमां स्वर्णनो भाग वधारे होवाथी स्वर्णमय कहेवाय छे. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 17 योऽकारयत्सचिवपुङ्गववस्तुपालनिर्माषितेऽर्बुदगिरिस्थितनेमिचैत्ये । उद्धारमात्मन इव बुडतो ह्यऽपारसंसारदुस्तरणवारिधिमध्य इद्धः ।।७।। गाथार्थ :- अने आबुगिरिमा महामात्य श्रीवस्तुपाळकारित नेमिनाथना मंदिरनोअपार संसारसमुद्रमां डुबता पोताना आत्माना उद्धारनी जेम - उद्धार कराव्यो. गोत्रात्रे (गोत्रेऽत्रै) वाऽऽद्याप्तबिम्बं भीमसाधुविधित्सितम् । यः पित्तलमयं हैमदृढसन्धिमकारयत् ।।८।। चरमजिनवरेन्द्र स्फारमूर्ति विधाय गृहजिनवसतौ प्रातिष्ठिपच्छुद्धलग्ने । पुरऊरुतरदेवौकः स्थितायां च तस्यां समहमतिलघोः श्रीकर्णदेवस्य राज्ये ॥१९ ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथार्थ :- तेमज पोताना गोत्रमां ( ? ) थइ गएल भीमाशाहनी करावतां अपूर्ण रहेल पित्तलमय आद्याप्त आदीश्वरनी प्रतिमाने स्वर्णथी दृढ संधिवाळी' करी(?). खरससमयसोमे (१३६० ) बन्धुभि: षड्भिरेव सममिह सुविधीनां साधने सावधानः । विमलगिरिशिरः स्थादीश्वरं चोज्जयन्ते यदुकुलतिलकाभं नेमिमानम्य मोदात् ||१०|| निजमनुजभवं यः सार्थकं श्राक् चकार विहितगुरुसपर्यः पालयन् साङ्घपत्यम् । कलसकलकलासत्कौशली निष्कलङ्कः जून २०१४ पुनरपि षडकार्षीद् यो हि यात्रास्तथैव ||११|| || त्रिभिः कुलकम् ।। गाथार्थ :- तथा चरम जिनवरनी- महावीरनी मनोहर मूर्तिने तैयार करावी घरमंदिरेमा [परोणारूपे] स्थापन करी अने ते मूर्तिने संवत् १३६० मां के ज्यारे लघुवयस्क महाराजा कर्णदेव (करणघेलो) राज्य चलावता हता ते वखते, शुभविधिना साधनमां सावधान पेथडे छ भाइओनी साथे महोत्सवपूर्वक नगरना मोटा मंदिरमां शुभ मुहूर्ते For Private and Personal Use Only १. आ प्रतिमानो उद्धार आबुजीमां कराव्यो होय. २. धनाढ्य गृहस्थोए पोताना घरमा पूजाने माटे राखेल जिनप्रतिमादि सामग्री ज्यां रहे तेनुं नाम घरमंदिर गृहप्रासाद छे. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 18 JUNE 2014 स्थापन' कर्या बाद सिद्धाचळमां आदीश्वरने अने गिरनारमां नेमिनाथने भेटी पोताना मनुष्यजन्मने पवित्र कर्यो. तदनंतर बीजी वखत संघपतिपणुं स्वीकारी संघनी साथे छ यात्राओ करी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिमुनियक्ष (१३७७) मितेऽब्दे दुर्भिक्षविलक्षदीनजनलक्षान् । वीक्ष्याऽनूनान्नानां दानात्स्वस्थांश्च यः कृतवान् ||१२|| गाथार्थ :- संवत् १३७७ना दुष्काळ वखते पीडाता अनेकजनोने अन्नादिकना दानथी सुखी कर्या. समय श्रुतिफलमतुलं स्वगुरोर्योऽथैकदाऽवबुध्य सुधीः । सकलं विमलं सततं सदागमं श्रावय मम त्वम् ||१३|| इत्यर्थितवांस्तस्मै गुरौ प्रवृत्तेऽकरोत्तथा कर्तुम् । तद्गतवीरगौतमनामाच रैरजतटकैः ||१४|| तेनाऽर्हणाधनेनालेखयदाप्तोक्तिकोशसचतुष्कम् । सत्यादिसूरिवचनात् क्षेत्रनवक उप्तवान् वित्तम् ||१५|| || त्रिभिःकुलकम् ।। गाथार्थ :- एक वखते धर्मात्मा पेथडे गुरु पासे जिनागमश्रवणनो घणो लाभ जाणी पोताने ते संभळाववा माटे गुरुने प्रार्थना करी. गुरु तेने संभळाववा माटे प्रवृत्त थया त्यारे तेणे तेमां आवता वीर - गौतमना नामनी क्रमशः स्वर्ण-रूप्य नाणकथी पूजा क. ते पूजाथी एकठा थएल द्रव्य वडे श्रीसत्यसूरिना वचनथी तेणे चार ज्ञानभंडार लखाव्या. तेमज नवक्षेत्रमां पण अन्य धननो व्यय कर्यो. तत्तनयः पद्माह्वस्तदुद्भवो लाडणस्तदङ्गभवः । अस्ति स्माऽऽह्णणसिंहस्तदङ्गजो मण्डलिकनामा ||१६|| गाथार्थ :- पेथडनो पुत्र पद्म तेनो लाडण, लाडणनो आल्हणसिंह, अने तेनो मंडलिक नामनो पुत्र हतो. श्रीरैवतार्बुदसुतीर्थमुखेषु चैत्योद्धारानकारयदनेकपुरेष्वनल्पैः । न्यायार्जितैर्घनभरैर्वरधर्मशालाः यः सत्कृतो निखिलमण्डलमण्डलीकैः ।।१७।। गाथार्थ :- मंडलिके गिरनार आबु आदि तीर्थोमां चैत्योनो उद्धार कराव्यो तथा पोताना न्यायोपार्जीत धनथी अनेक गामोमां धर्मशाळाओ करावी. तेमज ते अनेक राजाओनो मानीतो हतो. १. आ प्रतिमास्थापनविधि सांडेरामां संभवे छे, For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 19 वसुरसभुवनप्रमिते (१४६८) वर्षे विक्रमनृपाद् विनिर्जितवान् । दुष्कालं समकालं बह्वन्नानां वितरणाद् यः ।।१८।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्षेषु सप्तसप्तत्यऽधिकचतुर्दशशतेषु (१४७७) यो यात्राम् । देवालयकलितां किल चक्रे शत्रुञ्जयाद्येषु ||१९|| गाथार्थ :- विक्रम संवत् १४६८ना दुकाळ' वखते लोकोने अन्नादि आपी दुकाळने एकी साथे जीती लीधो. व्यवहर इत्याख्योऽभूद्दक्षस्तत्तनूज एव विजिताख्यः । वरमणकाईनाम्नी सत्त्ववती जन्यजनि तस्य ।। २१ ।। जून २०१४ गाथार्थ :- तथा संवत् १४७७ मां शत्रुंजय आदि महातीर्थोनी यात्रा करी. श्रुतलेखनसङ्घार्चाप्रभृतीनि बहूनि पुण्यकार्याणि । योऽकार्षीद् विविधानि च पूज्यजयानन्दसूरिगिरा ||२०|| गाथार्थ :- तेमज जयानंदसूरिना उपदेशथी पुस्तकलेखन, संघपूजा आदि विविध धर्मकृत्य तेणे कर्या. तत्कुक्ष्यऽनुपममानसकासारसितच्छदास्त्रयः पुत्राः । अभवन् श्रेष्ठाः पर्वत-डूंगर - नरबदसुनामानः ||२२|| + गाथार्थ :- मंडलिकनो व्यवहर विजित नामनो पुत्र हतो. तेने वरमणकाइ नामे स्त्री हती. तेष्वऽस्ति पर्वताख्यो लक्ष्मीकान्तः सहस्रवीरेण । पोईआप्रमुखकुटम्बैः परी (रि) वृतो वंशशोभाकृत् ||२३|| गाथार्थ :- तेनी कुक्षीरूप मानसमां हंससमान पर्वत, डुंगर अने नर्मद नामना ऋण पुत्रो हता. For Private and Personal Use Only गाथार्थ :- तेमां पर्वत सहस्रवीर (पुत्र) तथा पोईआ (भार्या) आदि कुटुंबनी साथे वंशनी शोभा वधारनार हतो. १. आ दुष्काळ तेमज ते पछीने बे वर्षना दुष्काळनी सूचना अन्य प्रशस्तिमां यण विद्यमान छे. 'अष्टाषष्टादिवर्षत्रितयमनुमहाभाषणे संप्रवृत्ते दुर्भिक्षे लोकलक्षक्षयकृति नितरां कल्पकालोपमाने ।' इत्यादि जुओ. जैन कोन्फरन्स हेरल्ड, पु. ९, अंक ८- ९मां श्रीमान् जिनविजयजी संपादित ज्ञातासूत्रना अंतमां उल्लिखित प्रशस्ति. २. गांधी, मोदी आदिनी जेम धंधाथी रूढ थएल शब्द होवो जोइए. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 SHRUTSAGAR JUNE - 2014 डुंगरनामा द्वितीयः स्वचारुचातुर्यवर्यमेधावान् । पत्नी मङ्गादेवी रमणः कान्हाख्यसुतपक्षः ।।२४।। गाथार्थ :- अने बीजो डुंगर-जेने मंगादेवी भार्या अने कान्हा नामनो पुत्र हतोवंशनी शोभा वधारनार हतो. स्वकारिताऽर्हत्प्रतिमाप्रतिष्ठां विधाप्य तौ पर्वतडुंगराभिधौ। वर्षे हि नन्देऽतिथौ (१५५९) च चक्रतुः श्रीवाचका?) स्थापनसन्मोहत्सवम् ।।२५।। गाथार्थ :- पर्वत-डुंगरे (बे भाइओए) पोते तैयार करावेल मूर्तिने प्रतिष्ठा (अंजनशलाका') करावीने संवत् १५५९ मां स्थापन महोत्सव कर्यो. खर्तुतिथिमित (१५६०) समायां यात्रां तौ चक्रतुः सुतीर्थेषु । जीरापल्लीपार्थाऽर्बुदाचलायेषु सोल्लासम् ।।२६।। गाथार्थ :- सं. १५६० मा तेमणे जीरापल्ली (जीरावला), पार्श्वनाथ, अर्बुद आदि तीर्थोनी यात्रा करी. गन्धारबन्दिरे तो झलमलयुगलादिसमुदयोपेताः। श्रीकल्पपुस्तिका अपि दत्ताः किल सर्वशालासु ।।२७।। कृतसङ्घसत्कृती वाचाचयतां चादापयतां तौ च रूप्यनाणकयुग। ददतुश्च सितापुजं समस्ततन्नागरिकवणिजाम् ||२८।। गाथार्थ :- तदनंतर गंधार बंदरमा तेमणे दरेक शाळामां-उपाश्रयमां झेलमल(?) १. प्रतिमामां देवत्वारोपण निमित्ते कराता विधानविशेषने 'अंजनशलाका' कहे छे. २. आ गंधार गाम, भरूच जिल्लाना जंबूसर तालुकामां आवेतुं छे. एनी आसपासना प्रदेशमा एपण एक तीर्थस्थान जेवू गणाय छे. उपर वर्णववामां आवेलुं कावीतीर्थ अने आ तीर्थ, 'कावीगंधार आम साथे जोडका रूपे ज कहेवाय छे. आ गंधार गाम ते सत्तरमां सैकानुं प्रसिद्ध गंधार बंदर ज छे जेनो उल्लेख हीरसौभाग्य, विजयप्रशस्ति, विजयदेवमाहात्म्य अने हीरविजयसूरिरास विगेरे ग्रंथोमां वारंवार आवे छे. अकबर बादशाह तरफथी ज्यारे संवत १६३८ नी सालमां हीरविजय सूरिने आग्रा तरफ आववानुं आमंत्रण आव्यु हतुं ते वखते ते आचार्यवर्य आ ज गाममां चातुर्मास रहेला हता. हीरविजयसूरि अने विजयदेवसूरि वगेरे ए सैकाना तपागच्छना समर्थ आचार्यो-यतिओ घणी वखते आ गाममां आवेला अने सेंकडो यतिओनी साथे चातुर्मास रहेलाना उल्लेखो वारंवार उक्त ग्रंथोमांथी मळी आवे छे. ए उपरथी जणाय छे के ते वखते ए स्थळ घणुंज प्रसिद्ध अने समृद्ध श्रावकोथी भरेलुं हशे. आजे तो त्यां फक्त ५-२५ झुपडाओ ज दृष्टिगोचर थाय छे. जूनां मंदिरनां खंडेरो गाम बहार उमा देखाय छे. वर्तमानमा जे मंदिर छे ते भरूचनिवासी गृहस्थोए हालमा ज नबुं बंधाव्युं छे. ए स्थळे फक्त ए मंदिरना खंडेर सिवाय For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जून - २०१४ युगलादिनी साथे कल्पसूत्रनी प्रतिओ अर्पण करी. तेमज संघनो सत्कार करी नगरनिवासी वणिग्जनोने रूपानाणानी साथे साकरना पडीकां अपाव्यां. कृतवन्तौ तावित्यादि विहितचतुर्थव्रतादरौ सुकृतम्। आगमगच्छेशश्रीविवेकरत्नाख्यगुरुवचनात् ।।२९।। गाथार्थ :- इत्यादि सुकृतो कर्या पछी आगमगच्छीय श्रीविवेकरत्नना उपदेशथी चतुर्थ व्रत (ब्रह्मचर्य) प्रत्ये आदर कर्यो. अथोत्तमौ पर्वतकान्हनामको सार्थोद्यर्मो सूरिपदप्रदापने। आकारितानां च समानधर्मिणाम् नानाविधस्थानसमागतानाम् ।।३०।। पुंसां दुकूलादिकदानपूर्वकं समस्तसद्दर्शनसाधुपूजनात्। महामहं तेनतुरुत्तरं तौ पवित्रचित्तौ जिनधर्मवासितौ ।।३१।। युग्मम् । गाथार्थ :- जिनधर्ममां दृढ श्रद्धावाळा, पवित्रचेतस्क अने विवेकरत्नने आचार्यपद अपाववा माटे उद्यमवाळा पर्वत अने कान्हे (काका भतीजा) महोत्सवमा भिन्न भिन्न स्थळोएथी आवेला साधर्मिकोने रेशमी वस्त्रादिना दानपूर्वक तेमज समस्त साधुसमुदायना सन्मानपूर्वक महान महोत्सव कर्यो. आगमगच्छे विभूनां सूरिजयानन्दसद्गुरोः क्रमतः। श्रीमद्विवेकरत्नप्रभसूरीणां सदुपदेशात् ।।३२।। शशिमुनितिथि १५७१ मितवर्षे समग्रसिद्धान्तलेखनपराभ्याम् । ताभ्यां व्यवहर-परवतकान्हाभ्यां सुकृतरसिकाभ्याम् ।।३३।। षड्ऋतुषडेकमितेऽब्दे १६६६ वृद्धतपगुरूणाम्। श्री हीरविजयसूरीश्वरप्रभूणां प्रवरशिष्यैः।। श्रीकनकविजयगणि-रामविजय श्रेयोत्र || संवत् १७३५ वर्षे आषाढमासे कृष्णपक्षे ९ तिथौ सोमवारे श्रीस्तंभतीर्थे माणिकचोकमध्ये खारूवाडामध्ये लिपीकृतम् ।। ।। यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयताम् ।। ।। श्रीः ।। ।। शुभं भवतु || छ ।।। बीजुं कांइ पण जूनुं मकान विगेरे पण जणातुं नथी. अढीसो त्रणसो वर्ष पहेला जे स्थळ आटलुं बधुं भरभराटीवाळु हतुं तेनुं आजे सर्वथा नाम निशान पण देखातुं नी तेनुं कांइ कारण समजातुं नथी. त्यांना लोकोने पूछतां अमने कहेवामां आव्यू के-एक वखते ए गाम उपर दरियो फरी वळ्यो हतो अने तेना लीधे आखू शहेर समुद्रमा तणाइ गयुं हतुं. परंतु आ लेखोवाळी जिनप्रतिमाओ अने मंदिर केम बचवा पाम्युं अने बाकी- शहेर केम संपूर्ण नष्ट थइ गयुं तेनुं समाधान कांई अमने अद्यापि थई शक्युं नथी. शोधकोए आ बाबतमा विशेष शोध करवानी जरूरत छे. - सं. प्राचीनजैनलेखसंग्रह). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 22 JUNE - 2014 गाथार्थ :- आगमगच्छनायक श्री जयानंदसूरिना क्रमथी थएल श्रीविवेकरत्नप्रभसूरिना उपदेशथी संवत् १५७१ मां-समस्त आगम लखावता-सुकृतैषी व्यवहारू पर्वतकान्हाए [निशीथचूर्णि पुस्तक लखाव्युं छे! संवत् १६६६ मां हीरविजय सूरीश्वरना शिष्योए [लखाव्यु. कनकविजय, रामविजय. संवत् १७३५ ना अषाड वदि ९ सोमवारे खंभातमा माणेक चोकमां खारवाडामा [आ पुस्तक लख्युं छे. प्रशस्तिमांधी वरती मुख्य बाबतो आ प्रशस्तिना नायको सांडेराना रहेवाशी तेमज प्राग्वाटज्ञातीय हता. आमां कुल तेर पेढीओनां नामो आव्यां छे. पण तेमांथी मुख्यता पुण्य कृत्यो छठ्ठी पेढीए थएल पेथडे, दशमीए थएल मंडलिके अने बारमीए थएल पर्वते ज कर्या छे. पेथडनां सुकृतो-सांडेरामां मंदिर कराव्युं, वीजापुरमा एक चैत्य स्वर्णमय (पंचधातुमय) प्रतिमायुक्त मंदिर कराव्यु. आबुजीमां वस्तुपाळकृत नेमिनाथना चैत्यनो उद्धार कराव्यो, भीमाशाहनी अपूर्ण प्रतिमाने पूर्ण करावी. सांडेरामां महावीरप्रभुनी प्रतिमा संवत् १३६० मा स्थापन करी. ते समये लघुवयस्क कर्णदेव राज्य करता हता. छ वखत सिद्धाचल आदिना संघ काढी यात्रा करी. १३७७ ना दुकाळमां लोकोने अन्नादिक आपी सहाय करी. सत्यसूरिना कथनथी चार ज्ञानकोश लखावी स्थापन कर्या. मंडलिकनां पुण्य कृत्यो-गिरनार, आबु आदिमां चैत्यनो उद्धार कराव्यो. केटलांक गामोमां धर्मशाळाओ करावी. १४६८मां दुकाळ वखते लोकोने अन्नवस्त्रादि आपी मदद करी. १४७७ शत्रुजयादिनी यात्रा करी. जयानंदसूरिना उपदेशथी ग्रंथलेखन, संघभक्ति आदि धर्मकृत्यो कर्या. पर्वतनां सुकृत कृत्यो-संवत् १५५९ मां प्रतिमा स्थापन करी. १५६० मां आबु आदि दीर्थोनी यात्रा करी. गंधार बंदरमा दरेक उपाश्रयमां कल्पसूत्रनी प्रतो आपी अने त्यांना रहेवासी वणिक लोकोने रूपानाणा साथे साकरना पडीका आप्या. विवेकरत्नना आचार्यपद प्रदाननो महोत्सव कॉ. विवेकरत्नना उपदेशथी ग्रंथभांडागार स्थापन करवा माटे पुस्तको लखावतां संवत् १५७१ मां प्रस्तुत निशीथचूर्णि पुस्तक लखाव्यु. आ प्रशस्तिथी बे दुकाळनी माहिती मळे छे एक संवत् १३७७ नो अने बीजो संवत् १४६८ नो. विवेकरत्ननी आचार्यपदवी संवत् १५६० अने ७० ना वचमां थइ छे. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 23 जून - २०१४ प्रशस्ति उपरथी उपजतुं वंशवृक्ष सुमति आभू आसड मोष' (मोक्ष) वर्धमान - चंडसिंह पेथड नरसिंह रत्नसिंह चतुर्थमल्ल (चोथमल) मुंजाल विक्रमसिंह धर्मण पद्म 1 लाडण आलणसिंह मंडलिक विजित (पत्नी वरमणकाइ) पर्वत (प. पोइआ) डुंगल (प. मंगादेवी) नर्मद सहस्रवीर काहना अंतिम वक्तव्य प्रस्तुत प्रशस्ति 'निशीथचूर्णि' तथा 'विंशोद्देशकव्याख्याना अंतमा उल्लिखित छे. (चूर्णिकार जिनदास महत्तर छे. अने व्याख्याकार शीलभद्रसूरिशिष्य श्रीचंद्रसूरि छे. व्याख्या संवत् ११७४ मां बनी छे.) आ प्रशस्ति जे आदर्श उपरथी उतारी छे ते पुस्तकना लखावनारनी नथी पण जेना उपरथी आ पुस्तक लखायुं छे ते पुस्तकनी प्रतिकृति जेना उपरथी थइ छे ते पुस्तकना लखावनारनी आ प्रशस्ति छे, कारण के ते पुस्तकनो उतारो संवत् १५७१मां थयो छे. तेना उपरथी हीरविजयसूरिना शिष्योए संवत् १६६६ मा प्रतिकृति करावी. अने तेना उपरथी १७३५मां खंभातमां उतारो थयो के जेना उपरथी आ प्रशस्ति उतारी छे. ___ आ प्रशस्तिमां अशुद्धिओ घणी हती तेने सुधारीने आपी छे. फक्त ज्यां खास अन्य कल्पना करवानो अवकाश होय तेवा स्थळे मूळ पाठ राखी शुद्धपाठ कोष्टकमां आप्यो छे. आ पुस्तक पाटणना रहेवासी सद्गत शेठ अंबालाल चुनीलालना भंडारनुं छे. ते भंडार हाल पालीताणामां आणंदजी कल्याणजीनी देखरेखमा छे. हाल तेनो वहीवट पालीताणा रहेवासी मास्तर कुंवरजी दामजीना हाथमां छे, जेमनी उदारताथी आ प्रशस्ति वाचकोना नेत्र आगळ प्राप्त थइ छे. आ स्थळे आत्रणेनां नामने आपणे भूलीशुं नहीं. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दर्भावती तीर्थ एक परिचय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनुभाई एल. शाह गुजरात राज्यमा वडोदराथी ३२ कि.मी. ना अंतरे आवेलुं डभोई (दर्भावती) शहेर पुरातन काळथी जैन तेमज जैनेतरोमां तेनी धार्मिक, ऐतिहासिक तेमज साहित्यिक दृष्टिए प्रसिद्धि पामेलुं एक नगर छे. अर्धपद्मासने बिराजित बे प्रतिमाओ श्री लोढण पार्श्वनाथ तथा श्री प्रगट पार्श्वनाथ डभोईना जिनालयोमां बिराजमान छे अर्धपद्मासन मुद्रानी प्रतिमाओ बहु ज जूज जोवा मळे छे, तेमानी आ बे जिन प्रतिमाओ छे. दर्भावती नीचेनां कारणोथी विशेष ध्यान खेंचे छे: डभोईमां एक हजार वर्ष पूर्वे जन्म पामी सौवीरपायी (मात्र कांजी वापरीने रहेता माटे सौवीरपायी) आचार्य प्रवर मुनिचन्द्रसूरीश्वरजी म. साहेब तथा त्रणसो वर्ष पूर्वे स्वर्गवास पामेल न्यायविशारद महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म. साहेबनी अंतिम भूमि पण डभोई छे. हीराभागोळनो किल्लो जे शिल्पनी दृष्टिए विख्यात छे. ते डभोईमां छे. वैष्णव संप्रदायना प्रख्यात भक्त कवि श्री दयारामभाईनी जन्मभूमि पण डभोई छे. लोढण पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा श्याम वर्णनी छे प्रभुजी ४१ ईंच ऊँचा छे अने ३३ ईंच पहोळा छे. सप्तफणाथी अलंकृत आ प्रतिमा अर्धपद्मासनस्थ छे. भक्त हृदयना दिलने रोमांचित करे तेवो तेनो रसिक इतिहास छे. एक श्रेष्ठीना संकल्प बनुं दृष्टांत आ लोढण पार्श्वनाथ प्रभुजीनी प्रतिमा छे. सागरदत्त नामनो एक वेपारी पोठोमां वस्तुओ भरीने फरतो फस्तो डभोई नगरमां आव्यो. आ व्रतधारी श्रावक चातुर्मासना दिवसोने लीधे दर्भावतीमां रोकायो. परमात्मानी पूजा कर्या बाद ज भोजन ग्रहणनी प्रतिज्ञा हती. पोतानी साथै प्रतिमा लाववानुं सागरदत्त भूली गयो हतो. प्रतिमा-पूजन कर्या सिवाय भोजन केवी रीते लई शकाय ? आ व्रत पालन माटे तेणे माताना कहेवाथी वेळुनी नयनरम्य प्रतिमाजीनुं सर्जन कर्तुं अने पोताना घरमा पधरावी. श्रेष्ठी सागरदत्त खूब ज भावथी आनंदोल्लासपूर्वक प्रतिमाजीनी सेवा-पूजा करतो. चातुर्मास पूर्ण थतां ते पोताना वतन तरफ जवा तैयार थयो जता पहेला तेणे आ प्रतिमाजीने नगरनी मध्यमां आवेला एक कूवामां पधरावी ते पोताना गाम चाल्यो गयो. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 जून २०१४ सागरदत्तने फरीथी दर्भावतीमां आववानुं थयुं. ते समये मध्यरात्रिए अधिष्ठायक देवे कुवामाथी ते प्रतिमाजीने बहार काढवा माटे स्वप्न द्वारा आदेश आप्यो. बीजा दिवसे सागरदत्ते स्थानिक जैन संघना आगेवानाने पोताने आवेला स्वप्ननी वात करीने कूवामाथी प्रतिमाजी बहार काढवाना कार्यमा सहयोग आपवानी विनंती करी. सागरदत्तना आ स्वप्ननी वात गाममां वायुवेगे प्रसरी जतां अन्य धर्मीजनोए पण आ प्रतिमा माटे पोतानो दावो रजू कर्यो. छेवटे एवो निर्णय लेवायो के कूवामांथी जे संप्रदाय प्रतिमा बहार काढे ते संप्रदायनी आ प्रतिमा गणाशे. बधा संप्रदायना लोकोए कूवामांथी मूर्ति काढवाना प्रयत्नो करी जोया, परंतु कोइने सफळता मळी नहि. जैनोए कुंवारी कन्या पासे काचा सूतरना तांतणे चाळणी बांधी कूवामां उतरावी, चमत्कारिक रीते चाळणीमां प्रतिमाजी बिराजमान थतां ते चाळणी कूवामांथी बहार काढवामां आवी. आ समये जैन शासननो जयजयकार गूंजी उठ्यो, कूवामांथी बहार आवेली प्रतिमाजीने सारथि विनाना बळदगाडामा पधराव्यां. गाडुं ज्यां ऊभुं रह्युं त्यां जिनालयने बंधावी परमात्माने स्थापित करवामां आव्या. कूवाना पाणीमां घणो काळ रहेवा छतां वेळुनी आ प्रतिमाजीनो एक कण पण खर्यो नहि अने वेळु पिंड लोढानी माफक दृढ अने वज्रसमान मजबूत होवाथी प्रतिमाजी लोढण पार्श्वनाथजीना नामथी ओळखायां. आ घटना ६०० वर्ष पूर्वे बनी होवानुं कहेवाय छे. वि.सं. १९९०मा आ जिनालयनो जिर्णोद्धार थयो. आ मंदिर बे माळनुं छे. उपरना माळे शीतलनाथ प्रभु मूळ नायक तरीके बिराजित छे ज्यारे लोढण पार्श्वनाथ प्रभु भोंयरामां बिराजमान छे. आ परमात्मा श्री वेळु पार्श्वनाथ तरीके पण ओळखाय छे. लोढण पार्श्वनाथनी जमणी बाजु श्री शांतिनाथ प्रभु अने डाबी बाजुए श्री आदिनाथ प्रभुजी छे. आ सिवाय डभोईमां बीजां सात मंदिरो छे आ मंदिरमां कुल ६७ मूर्तिओ छे. प्राचीन तीर्थमाळामा पण आ प्रमाणे उल्लेख मळे छे. 'लोढण त्रिपरी जीणीये उथामणे हो महिमा भंडार 'जगत वल्लभ, कलिकुंड चिंतामण लोढणा'' नगरने दर्भवती, दर्भावती, दर्भिकाग्राम, दर्भावतीपुर अने डभोई एवां नामाभिधान १. ( जैन तीर्थोनो ईतिहास पृ. २३४) (१८८२) For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 26 JUNE 2014 थयां छे. भूगोळनी दृष्टिए विचारता दर्भवती के दर्भावती के दर्भिका नाम आ प्रदेशमा दर्भ विशेष प्रमाणमां थतुं हशे तेवो निर्देश करे छे. आ प्रदेशमां दर्भ वधु ऊगतु हशे अने ए परथी नगरने आवुं नाम अपायुं हशे . दर्भवती के दर्भावती परथी डभोई नाम अपायुं होय एवं पण बने संस्कृतमा मूळ शब्द दर्भवतिका परथी दब्भभूइ के दम्भडइआ थाय जे परथी दब्भभइ बने अने तेमांथी डाभोई थई छेवटे डभोई शब्द बन्यो होई एवी शक्यता छे. · डभोईमां घणा पुरातत्त्वीय अवशेषो रहेला होई तेनी ऐतिहासिक महत्ता पण घणी छे. दर्भावती ए ईसवीसन्नी छठ्ठी सदीथी अस्तित्त्वमां आवेलुं हतुं पण मध्यकालीन समयमा तेमां जे स्थापत्यकळा दर्शावतां बांधकामो थयां तेमा एनी ख्यातिमां विशेष वधारो थयेलो जोवा मळे छे. सिद्धाराज जयसिंहना समयमां आ गाम वस्यु हतुं तेणे बंधावेलो प्रसिद्ध हीराभागोळना दरवाजावाळो किल्लो गुजरातनी शिल्पकलानो उत्कृष्ट नमूनो गणाय छे. श्रीवादीदेवसूरिना गुरु श्री मुनिचंद्रसूरिना जन्मथी अने तार्किक शिरोमणि उपाध्याय श्री यशोविजयजीना सं. १७४३मां थला स्वर्गवासी आ भूमि पवित्रताने पामी छे. गामी दक्षिणे चार फर्लांग दूर श्री उपाध्यायजी महाराजनुं समाधिस्थान आवेलुं छे दक्षिण बाजुए उपाध्यायजीना समाधिस्तूप साथे बीजा सात स्तूपो (कुल ८) छे श्री उपाध्यायजी महाराजनी पादुकास्तूप सं. १७४५ मा बनेल छे. दर्भावतीमां ज्ञाननो प्रकाश पाथनारां दे ज्ञानमंदिरो छे. (१) श्री विजयसंभा ज्ञानमंदिर अने (२) आर्य जंबुस्वामी मुक्ताबाई जैन आगममंदिर. आमांनु प्रथम ज्ञानमंदिर श्री विजय देवसूरि संघ संचालित छे. ज्यारे बीजु ज्ञानमंदिर श्री सागरगच्छ जैन संघ संचालित छे. प्रथम ज्ञानमंदिरनी स्थापना वि.सं. १९८०मां थई छे. आ ज्ञानमंदिरमां मंत्र-तंत्र विद्याओ, हस्तलिखित प्रतो, मुद्रित प्रतोपुस्तकोनो संग्रह जळवायो छे. आ ज्ञानमंदिरनी समृद्धिमां प. पू. मुनि प्रवर चतुरविजयजी म. सा. नुं सुंदर योगदान सांपडेलुं. बीजा ज्ञानमंदिरमां मंत्र-तंत्र, हस्तप्रतो, पुस्तको आदि १०,०००नो संग्रह छे आत्मानंद जैन पाठशाळा ए डभोईनुं गौरव छे. 'समरो मन्त्र भलो नवकार जेवा अमर काव्यनी रचना करनार प्रकांड विद्वान पंडितवर्य श्री चंदुलाल नानचंद शिनोरवाळा जेवा दिग्गज अध्यापके पाठशाळाना बाळकोमा धार्मिक संस्कारोनुं सुंदर सिंचन करेलुं छे जेना परिणामे आ दिव्य दर्भावती नगरना ३०० जेटला जैन परिवारोमांथी एकसो करतां वधु साधु-साध्वी For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 27 जून - २०१४ भगवंतोनी जिनशासनना चरणे भेट धरी छे. परमात्मा श्री लोढण पार्श्वनाथनी पवित्रभूमि, प.पू. मुनिचन्द्रसूरिजी जन्मभूमि. महात्मा वस्तुपाल-तेजपाल अने पेथडशाहनी धर्मभूमि, महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजीनी अंतिमभूमि अने शताधिक साधु-साध्वीजनोनी मातृभूमि एवी दर्भावती नगरी प्राचीन काळथी जैन प्रवृत्तिओ, केन्द्र छे. आजे पण अनेक जिनालयो, उपाश्रयो, धर्मशाळा, भोजनशाळा, आयंबिलशाळा, ज्ञानभंडारो आदिथी आ शहेर अलंकृत अने अविस्मरणीय छे. तेमज अहींनो हीराभागोळनो किल्लो ऐतिहासिक महत्त्व धरावे छे जे आ नगरना घरेणा समान छे. संपर्क शेठ देवचंद धरमचंदनी पेढी, शामळाजीनी शेरी, श्रीमाळी वगो, डभोई पीन ३९११०१ जि .वडोदरा, गुजरात संदर्भ साहित्य (१) पू.आ. राजरत्नविजयजी म.सा.दिव्यधाम दर्भावती, वडोदरा, श्री विजयदेवसूरि जैन संघ, पृ.३९. (२) दर्भावती श्री लोढण पार्श्वनाथ प्रभुजीनो ईतिहास डभोई, विजयसभा जैन ज्ञानमंदिर. (३) मुनि श्री न्यायविजयजी (त्रिपुटी) जैन तीर्थोनो ईतिहास, दर्भावति (डभोई) पृ. २३३-६ अमदावाद, श्री चारित्र स्मारक ग्रंथमाळा, पृ. ५७३ ई.स. १९४९. (४) शेठ आणंदजी कल्याणजी, जैन तीर्थ सर्वसंग्रह भा. १ लो (खंड पहेलो) डभोई पृ. २०-२१ अमदावाद प्रकाशक, पृ. ३०१, ई.स. १९५३. (५) श्री मुक्तिवल्लभ विजय म.सा. श्री लोढण पार्श्वनाथ पृ. ४५-४६ श्री १०८ पार्श्वनाथ तीर्थ दर्शन भा. १ नासिक, श्री १०८ पार्श्वनाथ तीर्थदर्शन प्रकाशन समिति, वि.सं. २०५९ (६) शिलालेखोमां दर्भावतीनो दुर्ग, परीख रमेशकांत, दर्भावती आर्टस कॉलेज, डभोईनु मुखपत्र अंक २. १९५९-६० पृ.११५. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक भावपूर्ण उद्बोधन परमाराध्यषाद, राष्ट्रसंत पू. गुरूदेवश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. नी पुनित निश्रामां सम्राट संप्रति संग्रहालयना नूतन भवननी खननविधि प्रसंगे पद्मश्री कुमारपाळभाई द्वारा अपायेल वक्तव्यने अहीं शब्दोमां आप सहुना वाचनार्थे उतार्यु छे. संपा. पद्मश्री डॉ. कुमारपाळ देसाई आजनो दिवस ए एवो विरल ऐतिहासिक दिवस छे के जेमां भूतकाळना इतिहास साथै भविष्यकाळनुं दर्शन थाय छे. वर्तमान समयमां म्युझियमनो एटलो बधो महिमा छे के विदेशमा घणीवार कोई शहेर के गामनी मुलाकात लेवा जनार ए म्युझियमने जोवा अचूक जाय छे अने केटलाक शहेरनी तो ओळख एनुं म्युझियम होय छे. आजे आ खननविधि प्रसंगे आ पवित्र भूमिमां साधना, सरळता, आराधना, सामर्थ्य अने सद्भाव ए पाँच भावनाओनो अनुपम संगम सधायो छे योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजीनुं आ शताब्दी वर्ष आजे आपणने एमनी साधनानुं स्मरण करावे छे. वीजापुरमा मात्र छ धोरणनो अभ्यास करनार योगनिष्ठ आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजीए अनेक विषयो आलेखतां एकसो त्रीस जेटलां यशस्वी पुस्तकोनुं सर्जन कर्तुं . एमना जीवनमां ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग अने योगमार्गनी पराकाष्ठा जोवा मळे छे. सरळता ए माटे के आजे श्री कोबा तीर्थमां गच्छाधिपति आचार्यश्री कैलाससागरसूरीश्वरजीनुं स्मरण थाय छे. आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजीए एमना परम विनयी शिष्य ज्ञानसागरजीने गळानुं केन्सर थतां गुरुए करेली शिष्यनी सेवानो एक अनुपम आलेख आप्यो हतो. तेओ नानां बाळकोने 'जी' कही आदरपूर्वक बोलावतां हता. पोतानी पासे इन्डिपेन, लेटरपेड के घडियाळ राखता नहीं अने कपडांनी एक ज जोडी राखता. मुनि स्थूलिभद्रनी याद आपे एवो एमनो नेत्रोनो संयम हतो अने आ संकुलनी विशेषता ए छे के अहीं सर्वत्र आचार्य कैलाससागरसूरीश्वरजीनुं नामाभिधान जोवा मळे छे अने ए दृष्टिए परम पूज्य राष्ट्रसंत पूज्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजनी अगाध गुरुभक्तिना पावन दर्शन थाय छे. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 29 श्रुतसागर जून - २०१४ आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजे श्रुतज्ञाननी भव्य आराधना करी छे अने कोबाने एक दृष्टिए जैनधर्मनी एंचतीर्थी बनावी छे, जेमां जिनालय, ज्ञानमंदिर, उपाश्रय, धर्मशाळा अने साधना-कुटीरनो समावेश थाय छे. आचार्यश्रीए पोतानी एक लाख किलोमिटरनी दीर्घ, कठोर विहारयात्रा समये अथाग परिश्रम उठावीने शिल्प-स्थापत्य, श्रुतज्ञान अने कला संबंधी पुरावस्तुओनो संग्रह करी, राष्ट्र अने धर्मनी अनोखी सेवा करी छे. आजे आ म्युझियमनी खननविधि द्वारा आ तीर्थ एक नवु विशाळ अने व्यापक रूप धारण करे छे. आजे सामर्थ्यनुं प्रागट्य ए माटे के आ संग्रहालयने 'सम्राट संप्रति संग्रहालय' एवं नामाभिधान करवामां आव्युं छे. आ संकुलनी विशेषता ए छे के अहीं जैनधर्मना इतिहासमां अमर स्थान धरावता सम्राट संप्रति, वस्तुपाल-तेजपाल, परमार्हत कुमारपाल, जगतशेठ, धरणाशाह, पेथडशाह जेवी गौरव समी व्यक्तिओनुं नामाभिधान आपवामां आव्युं छे. एना द्वारा श्रद्धाळुने पोताना भव्य भूतकाळनु स्मरण थाय छे. जे प्रजा पोतानो भूतकाळ भूले छे, तेनुं भविष्य अंधकारमय होय छे. महाराजा संप्रतिनुं स्मरण थतां ज कुंभलगढनां त्रणसो देरासरोनुं स्मरण थाय छे. भारतनो आ पहेलो राजवी के जेणे भारतनी बहारना देशो जीतीने अहिंसान साम्राज्य फेलाव्युं हतुं. एणे तिबेट अने भूतान पर विजय मेळव्यो हतो अने एना आक्रमणना भयने कारणे ज चीनी सम्राट सी. यु. वांगे ई. स. पूर्वे २१४मां जगतनी अजायबी समी चीननी ऊँची दिवाल बनावी हती. आजे पाँचमो प्रसंग छे सद्भावनानो. परम आदरणीय पू. शारदाबहेन यु. महेता अने परम स्नेही प्रेमलभाई कापडिया जेवी उमदा व्यक्तित्व धरावनारी व्यक्तिओना हाथे आ प्रसंग संपन्न थयो छे. उत्तम श्राविकाना दृष्टांतरूप शारदाबहेनना सेवाकार्यनी सर्वत्र सुवास फेलायेली छे, तो प्रेमलभाईए 'श्री देवचंद्र चोवीसी' अने 'श्रीपाल राजाना रास' जेवा भव्य अने अविस्मरणीय ग्रंथो आप्यां छे. आ रीते आ पाँच उत्कृष्ट भावनाओना सुदृढ पाया पर ५५,००० चो. फूटनुं त्रण मजलानुं आ नवं भवन निर्माण पामशे, त्यारे ए मात्र जैनधर्म के जैन संस्कृतिनुं ओळख आपनारुं ज नहीं रहे, परंतु समग्र विश्वने भारतीय कलासंस्कृति, दर्शन, तत्त्वज्ञान, भूगोळ, खगोळ, चित्रशैली, शिल्पकला, मूर्तिकला, साहित्य, लिपि, प्राचीन हस्तप्रत ए बधानी ओळख आपनाकै बेनमून संग्रहालय बनशे. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम : जैन पत्रकारत्व संपादक : श्री गुणवंत बरवालिया प्रकाशक : श्री वीर तत्त्व प्रकाशक मंडल, शिवपुरी तथा श्री रूप माणेक भंसाली चेरिटेबल ट्रस्ट, मुंबई प्रकाशन वर्ष : ईस्वी सन् २०१४ कुल पृष्ठ : २३० मूल्य : २००/- भाषा : गुजराती एवं हिन्दी श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई श्रुतज्ञान के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से प्रतिवर्ष जैन साहित्य समारोह का आयोजन कर रहा है. इस समारोह में एक निर्धारित विषय पर देश के जैन-जैनेतर विद्वानों द्वारा अपने-अपने शोध निबंध प्रस्तुत किए जाते हैं और उन निबंधों को प्रकाशित किया जाता है. - इसी शृंखला की एक कड़ी के रूप में मार्च २०१२ में २१वाँ जैन साहित्य समारोह का आयोजन पावापुरी तीर्थ (राजस्थान) में किया गया था. जिसमें अनेक स्वनामधन्य विद्वानों ने जैन पत्रकारत्व विषय पर शोधपूर्ण निबंध प्रस्तुत किये. प्रस्तुत प्रकाशन में उपरोक्त समारोह में विभिन्न विद्वानों द्वारा जैन पत्रकारत्व विषय पर प्रस्तुत शोध निबंधों को प्रकाशित किया गया है. विद्वानों ने अपने लेखों के माध्यम से यह बतलाने का भरपूर प्रयास किया है कि सामान्य पत्रकार एवं जैन पत्रकार में क्या अन्तर है? पत्रकार शब्द के साथ जैन शब्द जोड़ने की क्या आवश्यकता है? क्यों नहीं केवल पत्रकार शब्द से ही काम चल सकता है? इन सबके साथ जैन पत्रकारत्व का इतिहास, जैन पत्रकार, जैन पत्र-पत्रिकाएँ, जिन शासन के संरक्षण और उत्कर्ष में जैन पत्रकारों तथा जैन पत्र-पत्रिकाओं का योगदान आदि विषयों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है. प्रस्तुत प्रकाशन सर्वसामान्य के लिए तो उपयोगी है ही विशेषतः वैसे लोगों के लिए बहुत ही उपयोगी है, जो पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. एक पत्रकार को कैसा होना चाहिए? एक पत्रकार का दायित्व क्या है? एक पत्रकार समाज सर्जन में किस रूप से सहायक सिद्ध हो सकता है? आदि विषयों को जाननेसमझने में यह प्रकाशन सहायोगी होगा. अनेक विद्वानों/पत्रकारों द्वारा लिखित पत्रकार, पत्रकारिता, पत्र-पत्रिकाओं आदि विषयों से संबंधित लेखों का संकलन एवं संपादन श्री गुणवंत बरवालियाजी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है. समाज को उनसे इसी प्रकार के उत्कृष्ट साहित्य सेवा की अपेक्षा है. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समाचार सार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विक्रम संवत् २०७० वैशाख कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार दिनांक १५.०५.२०१४ के दिन परमाराध्यपाद पूज्य गुरुदेवश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. एवं चतुर्विध श्री संघ की गौरवपूर्ण उपस्थिति में श्रीमती शारदाबेन उत्तमभाई महेता परिवारअहमदाबाद व श्री प्रेमलभाई कापडिया परिवार - मुंबई के करकमलों द्वारा नूतन संग्रहालय के खनन का यह अवसर सानंद संपन्न हुआ. खननविधि के पश्चात् श्री संघ की नवकारशी का आयोजन किया गया था, पूज्य गुरुदेवश्री के मंगल आशीष प्राप्त करने हेतु सभी भक्तजन उपाश्रय में पधारे.. पूज्य गुरुदेवश्री के मंगलाचरण से इस कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ । पद्मश्री कुमारपालभाई देसाई, संस्था के प्रमुख श्री सुधीरभाई एवं श्री प्रेमलभाई कापडिया द्वारा श्रुताधिष्ठात्री भगवती माता सरस्वतीदेवी का पूजन एवं अर्चन किया गया. नूतन संग्रहालय के निर्माणकर्ता एस. जे. के. आर्कीटेक्ट ने पॉवर पॉइन्ट के माध्यम से नूतन संग्रहालय का अतीव सुंदर परिचयात्मक प्रस्तुतीकरण किया. उपस्थित सभी महानुभाव एवं गुरुभक्त संग्रहालय के विविध आयाम और स्वरूप को देखकर प्रमुदित हुए. इस अवसर के अतिथि विशेष पद्मश्री श्री कुमारपालभाईने इस अद्भूत प्रयास एवं पूज्य गुरुभगवंतश्री का राष्ट्र एवं जिनशासन के प्रति अनन्य प्रेम और श्रद्धाभाव का हार्दिक स्वागत एवं अनुमोदना की. विशेष में उन्होंने आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर व सम्राट संप्रति संग्रहालय की विविधता और विशेषताओं का सुंदर परिचय दिया. तत्पश्चात् पूज्य गुरुदेवश्री ने अपने मंगलमय प्रवचन द्वारा संस्था का ऐतिहासिक परिचय दिया. पूज्य गुरुभगवंतश्री ने प्रवचन के माध्यम से संस्था का विकास, संस्था के द्वारा प्राप्त जिनशासन की श्रुतसेवा एवं संस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण सहयोगी दाताश्री आदि उन सब का हार्दिक अनुरागपूर्वक स्मरण कर आशीष प्रदान किया. साथ ही विशेषरूप से संस्था एवं संस्था के समस्त कार्यकर्ता, वहीवटकर्ता एवं सहयोगी साथीयों को भी बड़ी प्रसन्नता के साथ उनको आशीष दिया. संस्था की ओर से खननविधि के लाभार्थी परिवार को स्मृति चिह्न के रूप में चाँदी की कुदाल एवं इस भूमि की पवित्र मिट्टी तथा संग्रहालय के स्मरण रूप मोमेन्टचित्र अर्पण किया गया. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR JUNE - 2014 __ संस्था के ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई शाह द्वारा पू. गुरुभगवंतश्री के कार्यों के बारे में अनुमोदनात्मक गुणाशंसन प्रस्तुत किया गया. इस मंगलमय अवसर पर पूज्य गुरुमगवंतश्री सहित उपस्थित सभी ने संस्था के भूतपूर्व प्रमुख शेठ श्री सोहनलालजी को श्रद्धांजलि अर्पित की. उनकी गौरवप्रद स्मृत्ति में संस्था ने श्रुतसागर अंक नं. ३८-३९ में उनके जीवन सुमनों को प्रकाशित कर उनके सुकृत कार्यों की अनुमोदना की एवं उस श्रुतसागर पत्रिका की एक-एक प्रति उनके सुपुत्र श्री गौतमजी एवं श्री महावीरजी को अर्पण की. संस्था के ट्रस्टीवर्य श्री श्रीपालभाई ने उपस्थित सभी गुरुभगवंतों का, सागरसमुदायवर्तिनी पूज्य साध्वीजी भगवंतों का व पधारे हुए सभी श्रेष्ठिवर्य साधर्मिक बन्धुओं का पावन प्रसंग में उपस्थिति हेतु आभार एवं अभिवादन किया. प्रसंगानुरूप श्री हार्दिकभाई द्वारा गुरुभक्तिसभर संगीत प्रस्तुत किया गया. गुरुदेवश्री के आग्रह से सुश्रावक श्री दिपकभाई बारडोली द्वारा श्री ऋषभदेव भगवान का भाववाही स्तवन प्रस्तुत किया गया. गुजरात समाचार के तंत्री श्री श्रेयांसभाई ने संस्था के उन्नत एवं व्यापक प्रचार प्रसार हेतु जब आवश्यकता होने पर वे अपना सक्रिय योगदान देंगे एवं शेठ श्री नवीनभाई ने एक धर्मशाला के निर्माण का शुभाशय एवं प्रस्ताव पू. गुरुभगवंतश्री एवं ट्रस्टीगण को बताया. ___ इस मंगलमय अवसर के समापन की सानंद खुशी में संघपूजन एवं साधर्मिकभक्ति का प्रीतिपूर्ण आयोजन किया गया था. इस प्रसंग में मुख्य अतिथि पद्मश्री श्री कुमारपालभाई, संस्था के प्रमुख श्री सुधीरभाई महेता, इनकी मातुश्री श्रीमती शारदाबेन उत्तमभाई महेता, गुजरात समाचार के तंत्री शेठ श्री श्रेयांसभाई शांतिलाल शाह, शेठ श्री प्रेमलभाई कापडीया, श्री प्रवीणभाई शाह, श्री नवीनभाई शाह, श्री अरविंदभाई ताराचंद शाह, श्री प्रकाशभाई (रत्नमणि), श्री कल्पेशभाई, श्री हेमंतभाई राणा, श्री मुकेशभाई शाह, श्री प्रकाशभाई वसा, श्री जयेशभाई भणशाली, श्री गिरीशभाई शाह, श्री मोहितभाई शाह, श्री प्रकाशभाई शाह व श्री मुकेशभाई शाह (सी.ए.) आदि गुरुभक्तोने पधारकर पुण्यार्जन किया. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra X ดี 5 www.kobatirth.org Perilit Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्राट् संप्रति संग्रहालयना नूतन भवननी खननविधि प्रसंगे उपस्थित महानुभाव अने आ शुभ अवसरनी केटलीक अविस्मरणीय तस्वीरो For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TITLE CODE: GUJ MUL 00578. SHRUTSAGAR (MONTHLY). POSTAL AT. GANDHINAGAR. ON 15TH OF EVERY MONTH. PRICE : RS. 15/-DATE OF PUBLICATION JUNE-2014 सम्राट् संप्रति संग्रहालयना नूतन भवननी खननविधि प्रसंगे उपस्थित महानुभाव अने आ शुभ अवसरनी केटलीक अविस्मरणीय तस्वीरो DONE प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252, फेक्स (079) 23276249 / Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org BOOK-POST / PRINTED MATTER PRINTED. PUBLISHED AND OWNED BY SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, PRINTED AT NAVPRABHAT PRINTING PRESS. 9-PUNAJI INDUSTRIAL ESTATE, DHOBHIGHAT, DUDHESHWAR, AHMEDABAD-380004 PUBLISHED FROM: SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, NEW KOBA, TA. & DIST. GANDHINAGAR, PIN : 382007, GUJARAT. EDITOR : KANUBHAI LALLUBHAI SHAH. For Private and Personal Use Only