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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 29 श्रुतसागर जून - २०१४ आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजे श्रुतज्ञाननी भव्य आराधना करी छे अने कोबाने एक दृष्टिए जैनधर्मनी एंचतीर्थी बनावी छे, जेमां जिनालय, ज्ञानमंदिर, उपाश्रय, धर्मशाळा अने साधना-कुटीरनो समावेश थाय छे. आचार्यश्रीए पोतानी एक लाख किलोमिटरनी दीर्घ, कठोर विहारयात्रा समये अथाग परिश्रम उठावीने शिल्प-स्थापत्य, श्रुतज्ञान अने कला संबंधी पुरावस्तुओनो संग्रह करी, राष्ट्र अने धर्मनी अनोखी सेवा करी छे. आजे आ म्युझियमनी खननविधि द्वारा आ तीर्थ एक नवु विशाळ अने व्यापक रूप धारण करे छे. आजे सामर्थ्यनुं प्रागट्य ए माटे के आ संग्रहालयने 'सम्राट संप्रति संग्रहालय' एवं नामाभिधान करवामां आव्युं छे. आ संकुलनी विशेषता ए छे के अहीं जैनधर्मना इतिहासमां अमर स्थान धरावता सम्राट संप्रति, वस्तुपाल-तेजपाल, परमार्हत कुमारपाल, जगतशेठ, धरणाशाह, पेथडशाह जेवी गौरव समी व्यक्तिओनुं नामाभिधान आपवामां आव्युं छे. एना द्वारा श्रद्धाळुने पोताना भव्य भूतकाळनु स्मरण थाय छे. जे प्रजा पोतानो भूतकाळ भूले छे, तेनुं भविष्य अंधकारमय होय छे. महाराजा संप्रतिनुं स्मरण थतां ज कुंभलगढनां त्रणसो देरासरोनुं स्मरण थाय छे. भारतनो आ पहेलो राजवी के जेणे भारतनी बहारना देशो जीतीने अहिंसान साम्राज्य फेलाव्युं हतुं. एणे तिबेट अने भूतान पर विजय मेळव्यो हतो अने एना आक्रमणना भयने कारणे ज चीनी सम्राट सी. यु. वांगे ई. स. पूर्वे २१४मां जगतनी अजायबी समी चीननी ऊँची दिवाल बनावी हती. आजे पाँचमो प्रसंग छे सद्भावनानो. परम आदरणीय पू. शारदाबहेन यु. महेता अने परम स्नेही प्रेमलभाई कापडिया जेवी उमदा व्यक्तित्व धरावनारी व्यक्तिओना हाथे आ प्रसंग संपन्न थयो छे. उत्तम श्राविकाना दृष्टांतरूप शारदाबहेनना सेवाकार्यनी सर्वत्र सुवास फेलायेली छे, तो प्रेमलभाईए 'श्री देवचंद्र चोवीसी' अने 'श्रीपाल राजाना रास' जेवा भव्य अने अविस्मरणीय ग्रंथो आप्यां छे. आ रीते आ पाँच उत्कृष्ट भावनाओना सुदृढ पाया पर ५५,००० चो. फूटनुं त्रण मजलानुं आ नवं भवन निर्माण पामशे, त्यारे ए मात्र जैनधर्म के जैन संस्कृतिनुं ओळख आपनारुं ज नहीं रहे, परंतु समग्र विश्वने भारतीय कलासंस्कृति, दर्शन, तत्त्वज्ञान, भूगोळ, खगोळ, चित्रशैली, शिल्पकला, मूर्तिकला, साहित्य, लिपि, प्राचीन हस्तप्रत ए बधानी ओळख आपनाकै बेनमून संग्रहालय बनशे. For Private and Personal Use Only
SR No.525290
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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