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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 7 जून २०१४ कहा- भगवन्! मेरी अज्ञान दशा को देखकर आप क्षमा करें, मैंने जो भी भूल की है उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। भगवन्! मैंने आपके साथ कितना दुर्व्यवहार किया, कैसे-कैसे अपशब्द बोले ! भगवन्, क्षमा करें और आशीर्वाद दें । सन्त ने कैसा जवाब दिया। उसे छाती से लगाकर कहा- बेटा! तूने कुछ भी भूल नहीं की । तेरा कोई अपराध है ही नहीं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम से सारी दुनियां को जीता जा सकता है, प्रेम ही एकमात्र ऐसी साधना है जो बिना मन्त्र के सिद्ध हो जाती है । यदि व्यक्ति प्रेम की साधना में प्रवेश कर जाए. ऐसी मंगल भावना विकसित करे कि जगत में कोई भी पराया नहीं, सभी मेरे अपने हैं, अपनी दृष्टि को ही बदल दे, दूसरों को मित्रवत् समझने की दृष्टि आ जाए, तो संसार की समस्त वैमनस्यता समाप्त हो जाए। प्रभु वीर की दृष्टि से परिवर्तन की प्रक्रिया धीरे-धीरे आपको बतलाता रहूंगा। मेरा काम है सप्लाई करना | आप तक पहुँचा देना । डाकिए की तरह से संदेश दे देना । परमात्मा का प्रवचन तो सारे विश्व को प्रकाश देने वाला है । इतना सार्मथ्य है उस प्रवचन में कि सारे देश को, सारे विश्व को प्रकाशित कर दें। पावर हाउस देखिए । कितना वोल्टेज होता है उसके अन्दर, हाई वोल्टेज होता है। पूरे शहर को सप्लाई करता है, पर होम डिलीवरी के लिए कितना वोल्टेज चाहिए ? कम वाल्टेज चाहिए, दौ सौ वोल्टेज चाहिए घर तक पहुँचाने के लिए, अगर सीधी सप्लाई कर दी जाये पावर हाउस से तो आपके घर की क्या हालत होगी ? दीवाली हो जायेगी। पूरा शहर जल कर के राख बन जाएगा, शक्ति है, पर ग्रहण करने की ताकत नहीं है। परमात्मा का यह प्रवचन तत्त्वज्ञान से भरा हुआ है। समृद्ध है, सारे विश्व को प्रकाश देने वाला है। हमारे पास इतनी मानसिक क्षमता नहीं है । सप्लाई नहीं की जाती, ट्रांसफर होता है। हाई वोल्टेज को, लो वोल्टेज में लाकर डिलीवरी दी जाती है। सुधर्मा स्वामी का यह पाट (तखत) ट्रांसफार्मर है । ताकि आप समझ लें । परमात्मा के विचार के प्रकाश में से आपको भी रास्ता मिल जाए। आप स्वयं अपना प्रकाश प्राप्त कर लें। चलने का रास्ता आपको स्वयं दिखाई पड़े। मैं समझंगा मुझे अपनी मजदूरी का लाभांश मिल गया । उससे मुझे प्रसन्नता मिलेगी। इनमें रुचि पैदा हो गई, प्यास जग गई । जहां पर परमात्मा देशना देते हों, प्रवचन देते हों बड़ी विशेषता होती है कि बारह योजन तक (पूर्व काल के For Private and Personal Use Only उनके अतिशय में इतनी अन्दर यह एक प्रकार का
SR No.525290
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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