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SHRUTSAGAR
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JUNE 2014
नमाज पूरी हो गई। जैसे ही बादशाह अपने कैम्प में गए। सिपाहियों ने उस बच्चे को बादशाह के सामने पेश किया। बच्चे को बादशाह ने कहा- तुझे शर्म नहीं आई। कैसी बदतमीजी की तुमने मैं खुदा की नमाज पढ़ रहा था और तू मेरे सामने से निकल कर चला गया। मेरा गलीचा गन्दा कर गया।
बच्चा कुछ भी नहीं बोला। वह बड़ा समझदार बच्चा था। हाथ जोड़ कर के कहा गुस्ताखी माफ करें। मुझे क्षमा करें। मैं एक बात कहना चाहता हूँ। मैं अपनी माँ के साथ आया था । माँ जंगल में लकड़ियां काट रही थी, शाम का समय था । मैं जंगल में खेलने चला गया, माँ चली गई। माँ ने देखा बालक आ जाएगा। मैंने जब देखा तो माँ नजर नहीं आई। किसी साथी ने कहा-तेरी माँ इस रास्ते से गई है। मैंने अपनी माँ खोजने में स्वयं को ऐसा खो दिया, मुझे कुछ नहीं मालूम, बादशाह कहाँ खड़े हैं। नमाज कहाँ पढ़ा जा रहा है। गलीचा और कालीन कहाँ बिछा है । मैं दौड़ता गया। खोज में स्वयं को खो दिया। मेरी खोज पूरी हो गई। माँ मिल गयी । हुजूर ! आप खुदा की खोज में निकले थे। आपको सब मालूम है कौन किधर से गया, गलीचा किसने गन्दा किया। यह आपकी खोज कब पूरी होगी ?
परमात्मा की प्रार्थना में जब तक हम स्वयं को खोएंगें नहीं, तब तक आपकी खोज पूरी होने वाली नहीं। स्वयं को खोना है, स्वयं को खोजना तो दूर गया । परमात्मा की खोज भी दूर गई। हम तो दुनियां को खोज रहे हैं। पैसे को खोज रहे हैं, कहाँ से मिलेगा ? परमात्मा के माध्यम से यदि आप पैसे को खोज रहे हैं, तो यह हमारी मूर्खता होगी ।
महात्मा ध्यान में मग्न थे। सब खो चुके थे । संसार को भूल कर आए थे। मात्र परमात्मा की स्मृतियों में जीवित थे। उनके लिए संसार मर चुका था । वासना खत्म हो गई । वह व्यक्ति गालियां देकर के गया, पता ही नहीं । दोतीन दिन तक उसने ये नाटक किया आखिर वह व्यक्ति थक गया । कैसा पत्थर जैसा आदमी है।
रोज इतना बकता हूँ। इस पर कोई ध्यान ही नहीं देता। चौथे दिन आया। मन में ग्लानि पैदा हुई कि कोई महान सन्त हैं । अपशब्द बोलकर मैंने आग लगाने की बड़ी कोशिश की। परन्तु वह तो फायरप्रूफ हैं। बर्फ जैसे हैं ।
इतना उत्तेजित किया। शब्दों की चोट इनको दी। न जाने कैसे-कैसे शब्द इनके सामने मैने लाकर रखे । परन्तु इनके चेहरे पर क्रोध की जरा भी निशानी नहीं, तनाव नहीं । चरणों में गिर गया। उसके हृदय से परिवर्तन हुआ कि कोई महान सन्त हैं।
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