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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR JUNE - 2014 माप था - इतने लम्बे-चौड़े विस्तार तक) कोई भी व्यक्ति उस परिधि में आ जाए तो उसके विचार में परिवर्तन आ जाएगा। विचार में एक आन्दोलन प्रगट हो जाएगा। उसके विचार सद्भावना से प्रतिष्ठित हो जाएंगे। 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः' पातंजल योगदर्शन में महान ऋषि ने लिखा कि जो व्यक्ति सदाचारी होगा, अहिंसक होगा, विचार में जिसके पवित्रता होगी, उसके पास आने वाला व्यक्ति, उसके वर्तुल के अन्दर, उसकी परिधि में यदि कोई आ गया तो वह विचार से आकर्षित बन जाएगा। उसके विचारों में परिवर्तन आ जाएगा। वह पूर्ण सात्विक बन जाएगा। अनेक आत्माओं के प्रति सहज ही एक भाव प्रगट हो जाएगा। यह विशेषता है। ब्रह्मचारी आत्माओं का आशीर्वाद इसीलिए लिया जाता है । सदाचारी आत्माओं का चरण स्पर्श इसीलिए किया जाता है। साधु पुरुषों के चरण-स्पर्श में यही तो रहस्य है। इसका वैज्ञानिक कारण है। शरीर में प्रतिक्षण 'इलेक्ट्रोन्स' निकलता है। एक प्रकार की आभा निकलती है। जो आप चमड़े की आंख से नहीं देख सकते। वह दृष्टिगोचर नहीं होती। अदृश्य किरण है। शरीर की ज्यादातर शारीरिक शक्ति जो है, सद्विचार की जो प्रचण्ड शक्ति है, उसको ये अर्थिव मिलता है। साधु उघाडे पांव चलते हैं, ताकि शक्ति और शरीर के अन्दर संतुलन बना रहे। इसीलिए साधु संन्यासियों को उघाडे पांव चलने का आदेश दिया गया । जीवों की जयना के लिए और शरीर के अन्दर सदाचार और ब्रह्मचर्य के द्वारा जो उसने शक्ति-संपादन किया है, शक्ति प्राप्त की है - उसके अन्दर संतुलन बना रहे। वह शारीरिक, मानसिक दृष्टि से भयंकर नुकसान कर जाएगा क्योंकि उस प्रचण्ड शक्ति को सहन करने की क्षमता वर्तमान शरीर के अन्दर में नहीं है। उसके संतुलन को बनाए रखने के लिए अर्थिव उसको मिलता रहे, उघाडे पांव चलने से शरीर के अन्दर जो अधिक शक्ति का संग्रह है, उसका विसर्जन हो जाएगा। यह इसके पीछे रहस्य है, उघाडे पांव चलने का और कोई कारण नहीं। अगर इसका वह उपयोग नहीं करता है और शक्ति की मात्रा बढ़ती चली जाती है, तो उसका परिणाम - क्रोध आएगा, चिड़चिड़ापन आएगा। भयंकर द्वेष पैदा होगा। दूसरे प्रकार से, वह शक्ति उसके लिए हानिकारक बन जाएगी। इसीलिए यहां इसका महत्त्व रखा गया। ऐसी ही पवित्रता आपके अन्दर में आनी चाहिए] For Private and Personal Use Only
SR No.525290
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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