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संपादकीय
श्रुतसागरनो ४१मो अंक आपश्रीना हाथमां छे. छतां सरकारी रजिस्ट्रेशननी प्रक्रियाने लीधे मुख पृष्ठ पर अंक-१ छाप्युं छे.
सूर्य प्रकाशथी, पाणी तरसथी, फुल सुगंधथी, नाव हलेसाथी, अने माणस मनथी पोतानी महत्ता आंकी शके छे. सूर्य प्रकाश वगर, पाणी तरस वगर, फुल सुगंध वगर, नाव हलेसा वगर अने मन शुभ विचार वगर पोतानी आगवी छाप क्यारेय छापी शकतु नथी. परार्थभावथी परिप्लावित मनमां शुभ विचार बीजनी जेम फळीभूत बनता होय छे. ___ सारा कार्याने सारा विचारोनुं पीठबळ हमेशा मळतुं ज होय छे. विचारोनी ताकात हवे वैज्ञानिको पण स्वीकारता थया छे. निर्माणनो विचार पण निर्माणमा कारणभूत छे. दुनियाना केटलांय देशोमां सारवारना सचोट माध्यम तरीके विचारनो उपयोग थई रह्यो छे. अने एनाथी परिवर्तन पण जोवा मळे छे. विचारनी आवी शक्ति आपणने प्राप्त थई छे. उन्नत विचारोथी जीवनने तरबतर अने समृद्ध बनावीए... आ अंकनी वात :- पूज्य गुरुभगवंतश्रीए पोतानी मार्मिक वाणीमां आपेला प्रवचनोने आ अंकमां गुरुवाणी हेठळ प्रकाशित कर्या छे. आ वखते प्रकाशित प्रवचननो गया अंकथी आगळनो भाग प्रकाशित कर्यो छे. क्षमा धर्मनी आराधना करवा माटे आवा चोंटदार शब्दो गुरुआशीष स्वरूपे अत्रे प्रकाशित थया छे. अप्रकाशित साहित्यिक कृति आ अंके न प्रकाशित करता विशेष लेखो ज प्रकाशित करेला छे. ___ ज्ञानमंदिरना वाचक अने परिचित डॉ. दिपा जैन द्वारा लिखित 'वर्णव्यवस्था में निहित आध्यात्मिक विकास के प्रतिमान' लेख द्वारा गुणस्थान अने जैनेतर दर्शननी आश्रम व्यवस्था अंगेनो समन्वय आपतो अभ्यास पूर्ण लेख अत्रे प्रकाशित कर्यो छे. लेखमां तुलनानी साथे साथे ब्रह्मचर्य, गृहस्थादि आश्रमोनो संक्षिप्त परिचय अने अवस्था विशेषनी नोंध लेखनी उपादेयतामां वधारो करे छे.
जूना मेगेझिनमाथी प्रकाशित कराता लेखनी श्रेणिमा आ वखते पुरातत्त्व मेगेझिनमांथी आगम प्रभाकर पू. मुनिश्री पुण्यविजयजी म. सा. द्वारा लखायेल "एक ऐतिहासिक प्रशस्ति' नामनो लेख आ अंकमां प्रकाशित कर्यो छे. मूळ लेखमां प्रशस्ति अने एनो अनुवाद अलग अलग पृष्ठ पर होवाथी वाचकोनी उपादेयता माटे प्रशस्तिनी गाथाओ बाद ज एनो अनुवाद अत्रे प्रकाशित करेल छे.
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