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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एक ऐतिहासिक जैनप्रशस्ति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि पुण्यविजय जैनोए अने जैनाचार्योए जेम पोताना प्राचीन साहित्यनी रक्षा करी छे ते प्रमाणे गौरवभर्या जैनेतर साहित्यनुं पण रक्षण तेमज पोषण ते ते ग्रंथोना उतारा' करावी, ते ते ग्रंथो उपर टीका-टिप्पण आदि रची, अनेक प्रकारे कर्तुं छे. आ प्रकारनं रक्षण तेमज पोषण खंडनात्मक दृष्टिथी ज करातुं हतुं तेम नहीं, किंतु गुणग्राहिपणाथी अने साहित्यविलासिताथी पण. आना उदाहरणरूपे श्रीमान् हरिभद्रसूरि, हेमचंद्राचार्य तथा श्रीमान् यशोविजयोपाध्याय आदिना ग्रंथोमां आवतां अवतरणो ज' बस थशे. गुजरातना जैनेतर कविओना गौरवभर्या श्रीवत्सराज विरचित 'रूपकषटक्,' कायस्थकवि सोठ्ठल विरचित 'उदयसुन्दरीकथा' आदि ग्रंथोनुं रक्षण पण पाटणना जैन भंडारोमां ज थयुं छे. जेम जैनोए साहित्यसेवा अनेक प्रकारे करी छे तेम गुजरातना महापुरुषोनाराजा महाराजाओ, तेमना महामात्यो, ते ते समये विद्यमान साहित्यविलासी धनाढ्यो अने धर्मात्माओना, अने ते समयनां पाटनगरादिनी जाहोजलाली इत्यादिना अवदातोनी रक्षा पण अनेक प्रकारे करी छे. आ प्रकारोना आपणे चार विभाग करीशु १. तेमना चरित्र गर्भित ग्रंथो, २ तेमना नामादिगर्भित १. महाकवि राजशेखरकृत 'काव्यमीमांसा' ग्रंथ जे बरोडा ओरिएन्टल सिरिझ तरफथी छपाइने बहार पड्यो छे तेनी ऋण कॉपीओ जैनभंडारमांथी ज मळी हती. बौद्धग्रंथ 'कमलशील सटीक' नी कोपी पण जैनभंडारमांथी मळी छे. शुंभलीमत के जे प्राचीन छे ते मतनो पण एक ग्रंथ पाटणना ताडपत्रना जैनभंडारमां विद्यमान छे. आ प्रमाणे न्याय, काव्य-नाटक, अलंकार, ज्योतिष नीति आदिना अनेक ग्रंथो विद्यमान छे के जेनी कॉपी अन्यत्र न पण मळे. २. दिङ्नागना न्यायप्रवेश पर हरिभद्रनी टीका. धर्मोत्तर उपर मल्लवादिनुं टिप्पण, रुद्रटना काव्यालंकार उपर नमिसाधुनी टीका, मम्मटना काव्यप्रकाशनी माणिक्यचंद्रकृत काव्यप्रकाशसंकेतटीका पंचकाव्य उपर अन्यान्य जैनाचार्योंनी टीकाओ, कादंबरी उपर मानुचंद्र - सिद्धिचंद्रनी विस्तृत टीका अने मम्मटना काव्यप्रकाश उपर न्यायाचार्य श्रीमद् यशोविजयोपाध्यायनी विस्तृत टीका आ प्रमाणे अनेक ग्रंथो पर टीकाओ रचाई छे. ३. 'एवं क्रमेण 'एषा' सदृष्टिः सतां मुनीनां भगवत्पञ्जलिभदन्तभास्करबन्धुभगवदत्तवादीनां योगिनामित्यर्थः' योगदृष्टिटीका, पत्र १५ तथा 'वृद्धिरादैच्' इत्यत्र भगवता भाष्यकारेणावस्थापितम्" हैम काव्यानुशासनविवेक पत्र १७३ इत्यादि. ४. द्वयाश्रयमहाकाव्य, कुमारपालप्रतिबोध कुमारपालचरित्र, मोहपराजय नाटक, विमळप्रबंध, वस्तुपाळचरित्र, सुकृतसागर इत्यादि. For Private and Personal Use Only
SR No.525290
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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