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SHRUTSAGAR
26
JUNE 2014
थयां छे. भूगोळनी दृष्टिए विचारता दर्भवती के दर्भावती के दर्भिका नाम आ प्रदेशमा दर्भ विशेष प्रमाणमां थतुं हशे तेवो निर्देश करे छे.
आ प्रदेशमां दर्भ वधु ऊगतु हशे अने ए परथी नगरने आवुं नाम अपायुं हशे . दर्भवती के दर्भावती परथी डभोई नाम अपायुं होय एवं पण बने संस्कृतमा मूळ शब्द दर्भवतिका परथी दब्भभूइ के दम्भडइआ थाय जे परथी दब्भभइ बने अने तेमांथी डाभोई थई छेवटे डभोई शब्द बन्यो होई एवी शक्यता छे.
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डभोईमां घणा पुरातत्त्वीय अवशेषो रहेला होई तेनी ऐतिहासिक महत्ता पण घणी छे. दर्भावती ए ईसवीसन्नी छठ्ठी सदीथी अस्तित्त्वमां आवेलुं हतुं पण मध्यकालीन समयमा तेमां जे स्थापत्यकळा दर्शावतां बांधकामो थयां तेमा एनी ख्यातिमां विशेष वधारो थयेलो जोवा मळे छे. सिद्धाराज जयसिंहना समयमां आ गाम वस्यु हतुं तेणे बंधावेलो प्रसिद्ध हीराभागोळना दरवाजावाळो किल्लो गुजरातनी शिल्पकलानो उत्कृष्ट नमूनो गणाय छे. श्रीवादीदेवसूरिना गुरु श्री मुनिचंद्रसूरिना जन्मथी अने तार्किक शिरोमणि उपाध्याय श्री यशोविजयजीना सं. १७४३मां थला स्वर्गवासी आ भूमि पवित्रताने पामी छे.
गामी दक्षिणे चार फर्लांग दूर श्री उपाध्यायजी महाराजनुं समाधिस्थान आवेलुं छे दक्षिण बाजुए उपाध्यायजीना समाधिस्तूप साथे बीजा सात स्तूपो (कुल ८) छे श्री उपाध्यायजी महाराजनी पादुकास्तूप सं. १७४५ मा बनेल छे.
दर्भावतीमां ज्ञाननो प्रकाश पाथनारां दे ज्ञानमंदिरो छे. (१) श्री विजयसंभा ज्ञानमंदिर अने (२) आर्य जंबुस्वामी मुक्ताबाई जैन आगममंदिर. आमांनु प्रथम ज्ञानमंदिर श्री विजय देवसूरि संघ संचालित छे. ज्यारे बीजु ज्ञानमंदिर श्री सागरगच्छ जैन संघ संचालित छे. प्रथम ज्ञानमंदिरनी स्थापना वि.सं. १९८०मां थई छे. आ ज्ञानमंदिरमां मंत्र-तंत्र विद्याओ, हस्तलिखित प्रतो, मुद्रित प्रतोपुस्तकोनो संग्रह जळवायो छे. आ ज्ञानमंदिरनी समृद्धिमां प. पू. मुनि प्रवर चतुरविजयजी म. सा. नुं सुंदर योगदान सांपडेलुं. बीजा ज्ञानमंदिरमां मंत्र-तंत्र, हस्तप्रतो, पुस्तको आदि १०,०००नो संग्रह छे आत्मानंद जैन पाठशाळा ए डभोईनुं गौरव छे.
'समरो मन्त्र भलो नवकार जेवा अमर काव्यनी रचना करनार प्रकांड विद्वान पंडितवर्य श्री चंदुलाल नानचंद शिनोरवाळा जेवा दिग्गज अध्यापके पाठशाळाना बाळकोमा धार्मिक संस्कारोनुं सुंदर सिंचन करेलुं छे जेना परिणामे आ दिव्य दर्भावती नगरना ३०० जेटला जैन परिवारोमांथी एकसो करतां वधु साधु-साध्वी
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