Book Title: Nagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Author(s): Muktisagar
Publisher: Muktisagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/034563/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागोर के वर्तमान और खर-तरों का अन्याय मारवाड़ में नागोर एक प्राचीन शहर है। पूर्व जमाने में यहां जैनियों के हजारों घर अच्छे आबाद थे पर वर्तमान ओसवालों के केवल ४०० घर रहे हैं जिसमें करीब २०० घर मूर्तिपूजक और २०० घर स्थानकवासियों के हैं मूर्ति पूजकों में करीब ६० घर खरतरगच्छ और शेष तप गच्छ के हैं। जन कल्याण के लिये यहाँ धर्म स्थान भी बहुत से हैं जैसे कि:जैन मन्दिर १ - श्री आदीश्वरजी का मन्दिर जो बढ़े मन्दिर के नाम से मशहूर है वहाँ श्री संघ की पेढ़ी भी हैं तथा मन्दिर के हाता में एक कवलागच्छ का उपासरा हैं जिसमें सच्चायिदेवी की मूर्त्ति भी हैं। २- श्री आदीश्वरजी का मन्दिर जो हीरावाड़ी के अन्दर हैं उनको श्रीमान् हीराजी श्रोसवाल नागपुरी (तपादच्छाय ) ने बनाया था । * तपागच्छ एवं उपकेश (कवला) गच्छ की क्रिया प्रायः मिलती जुलती होने से वे एक ही हैं पायचंद गच्छ एक नागपुणे पागच्छ की शाखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) ३-४ दफ्तारियों के मुहल्ले में आदीश्वरजी के दो मन्दिर सुरांणागच्छ के सुरांणों के बनाये हुये हैं। ५- घोड़ावतों की पोल में शान्तिनाथजी का मन्दिर तपागच्छीय घोड़ावतों का बनाया कहा जाता है । ६ -- बख्तसागर पर श्री सुमतिनाथ का मन्दिर खरतरगच्छीय यति रूपचन्दजी का बनाया हुआ है। जहां खरतर दादाजी के पादुका भी हैं । ७ - स्टेशन पर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का मन्दिर उपकेशगच्छीय श्रीमान् समदड़िजी का बनाया हुआ है । ८ - श्रसवालों की बगीची में प्रभु आदिनाथ के पादुका हैं। शहर के मन्दिरों की देख रेख के लिये श्री संघ की ओर से एक कमेटी बनी हुई है । मन्दिरों का सब काम कमेटी के जरिये चलता है । कमेटी के अंडर में एक मुनीम भी रहता है तव मन्दिरों की व्यवस्था अच्छी है । I दादावाड़ियों १ - कवलागच्छ की दादावाड़ी जो बख्तसागर पर पुराने जमाने की हैं। २ - खरतरगच्छ की दादावाड़ी में खरतराचायों के पादुका हैं। ३ – पायचन्द गच्छ की दादावाड़ी में पार्श्वचन्द सूरि के पगलिया हैं । ४ - सुराणों की बगीची में धर्मघोष सूरि के पगलिया हैं। ५ - समदड़ियों की बगीची में आचार्य रत्नप्रभ सूरि के पादुका हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) इनके अलावा उपाश्रय पाठशाला न्याति नाईस स्थानक चगैरह बहुत से स्थान हैं तथा दिगम्बर जैनों के मन्दिर और दो नासियाँ भी है। यहाँ पर श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकमार्गी वगैरह में अच्छा मेलमिलाप चिरकाल से ही चला आ रहा है। ताजा ही उदाहरण है कि गत वर्ष में स्टेशन पर श्रीमान समदड़ियाजी के बनाये जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय तीनों समुदाय ने सप्रेम एकत्र हो जैन धर्म की उन्नति का डंका बजा कर जनता को यह बतला दिया था कि हमारे आपस में क्रिया भेद होते हुए भी हम सब एक ही हैं। पर दुःख इस बात का है कि कलिकाल की कुटल गति से इस प्रकार सम्प देखा नहीं गया और उसने मूर्तिपूजक समुदाय में एक जबर्दस्त तखेड़ा पैदा कर दिया जिसका ही यहाँ दिग्दर्शन करवाया जाता है । होरावाड़ी में भगवान् आदीश्वरजी का एक मन्दिर है 'जिसके मूल गम्भारा में मूर्तियाँ अधिक होने के कारण पुजारियों * श्रीमान् हीराजी ओसवाल ने वि० सं० १४३१ में इस मुहल्ला की पोल वगैरह बनवाई उससे इसका नाम 'हीरावाड़ी' प्रसिद्ध हुआ | आपने और भी बहुत से जनोपयोगी कार्यों में बहुत सा द्रव्य व्यय किया जिसके कारण वहाँ के बादशाह तथा श्री संघ ने प्रसन्न हो आपको 'चौधरी' की पदवी प्रदान की । वि० सं० १४३४ में श्रीमान् हीराजी ने हीरावाड़ी में भगवान् भादीश्वरजी की मन्दिर तथा पौषधशाल का जीर्णनुधार कराया जो सात कोठरी का उपासरे के नाम ले प्रसिद्ध है । यह बात मन्दिरजी के शिला लेखादि से पाई जाती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) को पूजा करने में तकलीफ एवं आशातना हुआ करती थी । इस पर श्री संघ ने करीबन ३४ वर्ष पूर्व यह निर्णय किया था कि मन्दिरजी में तीनकोठरियां और बना दी जायं । कि मूल गंम्भारे की अधिक मूर्तियाँ वहाँ विराजमान करदी जायं कि पूजा की सुविधा रहे और आशातना भी मिट जाय । इन विचारों को कार्यरूप में परणित कर कोठरियां तैयार करवा । जब सब काम तैयार हो गया तो खरतरों ने जयपुर से दादाजी का पगलिया मंगवा कर एक कोठरी में दादाजी का पगलिया ' यह बात उठाई कि स्थापित किया. जायगा । श्रीसंघ ने कहा कि दादावाड़ी में दादाजी के पगलिये हैं, यति रूपचन्दजी के बनाये हुए मन्दिर में दादाजी के पगलिये हैं, फिर यहाँ पगलिया क्यों रक्खा जाता है ? जैसे संघ में खरतर गच्छ है वैसे ही तपागच्छ, कमलागच्छ, पायचन्द्रगच्छ आदि भी हैं और इस प्रकार भी अपने अपने श्राचायों के पगलिये मन्दिर में रख देंगे तब तो मन्दिर पगलियों से ही भर जायगा ? अतएव मन्दिर में किसी. भी गच्छ के आचार्य का पगलिया स्थापित न होगा । यदि आपको पगलिया स्थापित ही करना है तो दादावाड़ी में स्थापित कर दीजिये और इस कार्य में सकल संघ शामिल रहेगा । इस समय काफी वाद विवाद हुआ परन्तु दोनों तरफ के लोग अच्छे समझदार थे । खरतरगच्छ वालों ने भी संघ में फूट डाल पगलिया स्थापित करना ठीक नहीं समझा, कारण आखिर पगलियों की सेवा पूजा करने वाला तो श्री संघ ही है, खैर । अन्त में दोनों पार्टी इस निर्णय पर आई कि जहाँ तक सकल श्री संघ सम्मत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न हो जाय वहाँ तक इन अप्रतिष्ठित पगलियों को हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में बन्द कर दिया जाय । इस पर कई लोग कहने लगे कि इन पगलियों को खरतरों के उपाश्रय या दादावाड़ी में तथा रूपचन्दजी के मन्दिर में रख दिया जाय कारण हीरावाड़ी के मन्दिर में रखने से कभी न कभी केश हुये बिना न रहेगा ? पर खरतर वालों का आग्रह हीरावाड़ी के मन्दिर में रखने का रहा । इस पर तपागच्छ वालों ने अपनी उदारता के कारण खरतरों का कहना स्वीकार कर लिया। बस 'पगलिया हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में रख श्री संघ की ओर से उस कोठरी के ताला लगा उस पर मिट्टी का थेबा लगा चाबी बडे मन्दिरजी में श्री संघ की कमेटी में सुपर्द करदी कि जब तक सकल श्री संघ इस पगलिया के विषय में एक मत न हो जाय कोई भी व्यक्ति कोठरी को नहीं खोल सकेगा । और श्री संघ की प्राण भी दीरादो ऐसा करने से संघ में शान्ति हो गई। __हीरावाड़ी के मन्दिर के पास धाड़ीवालों की खुली जमीन पड़ी थी। उन्होंने वह जमीन खरतर गच्छ वालों को इस गरज से भेंट दे दी कि इस जमीन में खरतर गच्छ वाले एक छत्री बना कर दादाजी का पगलिया स्थापित कर दें। जब जमीन खरतर गच्छ वालों के अधिकार में आगई तब उन्होंने श्री संघ से कहा कि दादाजी के पगलियों के लिये छत्री तो हम पास की जमीन में बना लेंगे पर मन्दिरजी की भीत फोड़ कर एक दरवाजा इस जमीन की भोर निकलवा दीजिये । श्री संघ ने कहा कि दादाजी के पगलिया स्थापन में हम सब शामिल रहेंगे पर मन्दिरंजी की भीत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोड़ना सध्या नहीं है कारण पगलिया मन्दिरजी के पास ही है मन्दिर की पूजा कर दादाजी की पूजा कर सकते हैं फिर नाहक में मंदिरजी की भीत क्यों तुड़ाई जाय ? कई समझदार खरतरों ने तो इसबात को ठीक समझलीपर कई विघ्न संतोषी भी तो थे उन्होंने कदाग्रह के साथ हट पकड़ लिया कि हम मंदिरजी की भीत तोड़ कर दरवाजा निकाल देंगे। श्री संघ ने कहा कि बिना सकल संघ की आज्ञा दरवाजा कभी नहीं निकालाजायगा । बस इस हाँ-ना में बारह वर्ष व्यतीत होगये । भगवान् की मूर्तियों की आशातना होती ही रही और इस आशातना का फल श्री संघ और विशेष कर इस कार्य में बाधा डालने वालों को मिलता ही गया जो आज प्रत्यक्ष में सब की नजर में आ रहा है। गत वर्ष श्रीमान् समदड़ियाजी के बनाये हुये स्टेशन पर के जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा होने वाली थी। इस मोके पर चन्द व्यक्तियों ने बिना श्री संघ की सम्मति, बिना कमेटी से चाबी लाये कोठरी के दरवाजे पर श्री संघ के लगाया हुआ तालाको तोड़ पगलिया निकाल लिया और बिना किसी को खबर दिए जहां स्टेशन के मन्दिर की मूर्तियाँ, पादुका, दंड, कलस का अभिषेक हो रहा था वहाँ लाकर वह झगड़ा वाला पगलिया रख दिया। पर वहाँ पहले से तीन पगलियों का अभिषेक होने के कारण किमी ने लक्ष नहीं दिया। जब प्रतिष्ठा के शुभ मुहूर्त पर मूर्तियाँ, पादुकाएं, दंड, कलश वगैरह सब यथास्थान स्थापित हो गये केवल खरतरों का ही पगलिया रह गया फिर भी उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। पर नन्दीश्वरद्वीप के लिये बड़े मन्दिरजी से लाये हुए बिंबों को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७) मय गाजा बाजा से वापिस नगर में ले जाने लगे उस वक्त खरसरों ने अपना पगलिया उठाया तब जाकर लोगों को मालुम हुआ और पूछा कि यह पगलिया किस का है और कहाँरक्खाजायगा ? उत्तर मिला कि यह पगलिया हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में बन्द था वह है और हीरावाड़ी के मन्दिर में रखा जायगा । बस इस बात की गरमागरम चर्चा होने लगी कि श्री संघ की सम्मति से रक्खे हुए पगलिया बिना श्री संघ की इजाजत बिना कमेटी से चाबी लाये खरतरों ने पगलिया क्यों निकाल लिया ? और बिना श्री संघ की सम्मति के हीरावाड़ी के मन्दिर में पगलिया क्यों रखा जाता है ? जब तक श्री संघ एक मत न हो जाय तब तक पगलिया हीरावाड़ी में किसी हालत में नहीं रखने देंगे। इस बात को खरतरा अच्छी तरह से समझलें। कई शान्ति प्रिय खरतरे कहने लगे कि हम लोगों को तो इस बात की खबर ही महों है कि पगलिया कब और किसने निकाला ? पर विघ्न संतो. षियों को तो किसी न किसी प्रकार से संघ में कुसम्प पैदा करना ही था। इस बात पर बहुत कुछ वाद विवाद हुआ। आखिर श्रीमान इन्द्रचन्दजी खजानची ने खरतर० साध्वीजी कनकधीजी को समझा बुझा कर वह पगलिया खरतर गच्छ के कालीपोल के उपासरा में रखवा देना मंजूर किया और उस दिन दोनों ओर शान्ति हो गई । यहाँ तक तो दादाजी की सेवा पूजा भक्ति जयन्ति रात्रि जागरण और इन कार्यों में टीप चन्दा देने में क्या तपा क्या खरतरा सब मूर्तिपूजक समाज शामिल था। इतना ही क्यों पर इसमें विशेष खर्चा तपा गच्छ वालों की ओर से ही होता था। मुनि श्री ज्ञानसुन्दरी महाराज की शान्ति और कार्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८) कुशलता के कारण स्टेशन के मन्दिर की प्रतिष्ठा में श्वेताम्बर दिगम्बर, स्थानकवासी, राज कर्मचारी और नागरिक जनता का सहयोग होने से जैनधर्म की अच्छी उन्नति हुई । होली चातुर्मास की अठाई का व्याख्यान हमेशा पाठशाला के विशाल हौल में होता था। जैन जैनेत्तर लोग गहरी संख्या में लाभ ले रहे थे। शहर में जहाँ देखो वहाँ जैन धर्म की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही थी। पर विघ्न संतोषियों से यह न तो देखा गया और न सुना गया। वे लोग फागण शुद्ध ८ के दिन खरतर साध्वी शान्ति श्री जी को ऐसे पाठ पढ़ा कर व्याख्यान में लाये कि उसने बीच व्याख्यान के खड़ी होकर कहा कि दादासाहब के पगलिये या तो श्री संघ हीराबाड़ी के मन्दिर में रख दे वरना मैं पगलिया उठाकर हीरावाड़ी के मन्दिर में रख दूंगी ? यह शब्द सुनकर उपस्थित लोगों को आश्चर्य के साथ बड़ा भारी दुःख हुआ कि एक साध्वी श्री संघ की शान्ति भंग करने वाले शब्द क्यों कह रही है ? पगलिया रखने न रखने में साध्वी का इतना आग्रह क्यों है और सावी को पगलिया उठाकर मन्दिर में रख देने का क्या अधिकार है ? यदि ऐसा ही है तो फिर यह साध्वी का वेश क्यों रक्खा जाता है ? इत्यादि ! साध्वो के अनुचित शब्दों ने शहर में काफी हलचल मचा दी। बाद में तो यह भी पता मिल गया कि इस झगड़े की बुनियाद का मुख्य कारण ही यह साध्वी है। फागण शुद्ध १४ चौमासी चौदस होने से तपागच्छ के मुख्य २ आगेवान लोग उस दिन पौषध व्रत किये हुए थे। बस -फिर तो था ही क्या ? खरतर लोग ऐसा सुअवसर हाथ से कब जाने देने वाले थे। वे लोग खूब सज धज करव्याख्यान में उपस्थित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९ ) हुए, इधर तपागच्छ वाले भी व्याख्यान में थे ही इन दोनों का रंग ढंग देख मुनि श्री ने यह हुकम फरमा दिया कि मैं जानता हूँ कि आज आप लोग किसी और ही इरादे से एकत्र हुए हैं, पर, याद रहे कि मेरे व्याख्यान में बिना मेरी इज़ाजत कोई व्यक्ति को एक शब्द भी बोलने का अधिकार नहीं है । यदि आप लोगों को कुछ करना है तो दूसरे मकान में चले जावें इस हालत में सब लोगों की उम्मीद मन की मन में ही रह गई और दोनों तरफ के अप्रेसर लोग उठकर पास के उपासरे में चले गये और वहाँ पगलियों के विषय में बहुत कुछ वादविवाद होता रहा, पर वे एक निश्चय पर नहीं आ सके । इधर व्याख्यान बचता ही रहा । जब व्याख्यान उठा तो श्रीमान सुखलालजी समदड़िया जो दोनों ओर की शान्ति को चहाने वाले एक मशहूर व्यक्ति हैं उपासरे में गये और दोनों की बातों को ध्यान पूर्वक सुन लिया । श्रीमान समदड़ियाजी ने खरतर गच्छ वालों को यों समझाया कि मन्दिर, मूर्त्ति और पगलिया इसलिये स्थापित किये जाते हैं कि उससे जनता के हृदय में धर्म और भावना बढ़े धर्म भावना तब ही बढ़ सकती है जब कि सकल श्री संघ में शान्ति बनी रहे । ias सम्मति से काम किया जाय । अतएव आप दोनों पार्टी वाले अपने २ हट को दूर करदें और किसी मध्यस्थ मार्ग को स्वीकार करें कि संघ में शान्ति बनी रहे । इस पर खरतरों ने कहा कि आप ही बतलाइये कि वह मध्यस्थ रास्ता कौनसा है । समदड़ियाजी ने कहा कि १२ वर्ष पूर्व आप हीराबाड़ी के मन्दिर में दरवाजा निकाल कर पास की जमीन में छत्री बना कर दादासाब का पगलिया स्थापित करना चाहते थे पर दपागच्छ वाले ने मन्दिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) की भींत फोड़ दरवाजा निकालना नहीं चाहते थे, पर मैं आज तपागच्छ वालों को ज्यों त्यों कर समझा दूंगा आप इस बात को मंजूर कर लिरा। मन्दिर से दरवाजा निकालने का तथा धाड़ीवालों की जमीन में दादासाब की छत्री बनाने का तमाम खर्चा मैं दे दूंगा । गरज, कि संघ में शान्ति बनी रहे। समदड़ीयाजी स्वयं तो कवलागच्छ के हैं पर संघ की शान्ति के लिये तपागच्छ वालों को समझाने की तथा दरवाजा और छत्री बनाने के खर्चे की जिम्मेवी अपने सिर पर उठाने के लिये तैयार हो गये। धन्य है ऐसे शान्ति के इच्छुकों को ! बहुत से शान्ति प्रिय खरतरों के दिल में यह बात जच गई कि समदड़ियाजी का कहना ठीक है पर जिन लोगोंने संघ में फूट कुसम्प डालने में ही अपना गुजारा या पूछ समझ रखी थी उन्हें शान्ति में क्या लाभ था । वे गुस्से में आकर बोल उठे कि यह बात हम लोगों को मंजूर नहीं है पगलिया तो हीरावाड़ी के मन्दिर में ही रक्खा जायगा। बस समदड़ियाजी निराश हो वहाँ से उठकर चले गये। बाद फिर दोनों पार्टी में वाद विवाद होना शुरु हुआ। कई खरतरे वहाँ से जाकर लाभचन्दजी खजानची, जो दिल के भोले हैं, को उल्टी सुल्टीपट्टी पढ़ाकर लाये और लाभचन्दजी ने भलाबुरा कह कर उपस्थित ग्वरतरों को लेकर सीधे ही कालीपालों के उपापरे, 'जहाँ स्वरतरों की साध्वियां ठहरी हुई थीं तथा पगलिया रखा था' गये और जवहरीमल डाग के शिर पर प लिया दें कर गुप चुप हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में रख दिया। पर उस रोज कई ऐसे शुभ योगथे और रक्ता तिथि और होलका भी थी कि जिसमें शुभ कार्य करना शास्त्रकारों ने मना की है पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवितव्यता टारी नहीं टरती है । खरतरों ने पगलिया हो क्यों पर साथ में फूट कुसम्प के खासा बीज की भी स्थापना करदी जो आज पर्यन्त जीवित है और भविष्य में कहाँ तक फले फूले इसके लिये तो कोई भविष्यवेत्ता ही जान सकता है। ___ इस बात की खबर तपागच्छ वालों को हुई । पर वे तो थे पौषध व्रत में। जिन लोगों ने पौषध नहीं लिया था उनका खून उबल उठा और वे बोल उठे कि हम जाकर पगलिया उठा कर मन्दिर के बाहर रख देंगे पर अग्रेसरों ने उनको रोका पर उन लोगों को शान्ति नहीं आई और वे लोग कहने लगे कि आप इस प्रकार हम लोगों को हर वक्त रोक कर खरतरों को अन्याय करने में हौसला बढ़ा रहे हैं इत्यादि। फिर भी अग्रेसरों ने कहा तुम शान्ति रक्खो शान्ति के फल हमेशा मधुर ही होते हैं । इस पर भी उन लोगों से रहा नहीं गया जब वह जाने के लिये तैयार हुए तो मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महागज ने सोचा कि दोनों पार्टी गुस्सा में हैं न जाने वहाँ जाने पर क्या अनर्थ हो जायगा ? श्रतएव आप श्री ने उनको जोर दे कर समझाया और वहाँ जाने से रोक दिया । यदि मुनि श्री का इतना जोरदार कहना नहीं होता तो न जाने कहाँ तक खून खराबी होती । स्त्रैर, चौमासी चौदस का दिन और रात्रि तो धर्म कार्य आराधन करने में व्यतीत हुआ। ____ * मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज ने इस झगड़े को देख विहार करने का इरादा कर लिया, पर होली चातुर्मास की विनति मंजूर कर ली थी। जब फागण शुद्ध १५ को विहार की सब तैयारी करली पर चेत बद १ का स्वामिवात्सल्य होने के कारण श्री संघ के आग्रह के कारण उस दिन और ठहरना पड़ा और चेत वद २ को आप विहार कर गये। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) " : इस बात की शहर में काफी चर्चा होने लगी कोई कहता है कि खरतर लोग बहादुर हैं कि श्री संघ की कुछ परवाह न कर 'पगलिया मन्दिर में रख ही दिया। इतना ही क्यों पर इन्होंने तो अपने परमेश्वर की मूर्तियों के लिये आशातना की भी दरकार नहीं रखी । तब कई लोग कहने लगे कि इसमें खरतरों की क्या बहादुरी है कि तपागच्छ वाले अग्रेसर पौषध व्रत में थे इस हालत में तस्करों की भांति गुपचूप पगलिया रख आये। ऐसा काम तो एक विधवा औरत भी कर सकती है। पर नामवरी तो तपागच्छ वालों की ही कही जा सकती है कि उन्होंने खरतरों से तीन गुना होते हुए भी इतनी शान्ति रखी। शहर की इन बातों को कुछ समझदार खरतरों ने सुनी तब उनकी अकल ने सोचाया कि अपन लोगों ने विघ्न संतोषियों के धोखे में आकर यह कार्य अच्छा नहीं किया क्योंकि जब सब गच्छ वाले दादाजी की सेवा पूजा भक्ति करते हैं तो सब को नाराज एवं दूर कर दादाजी के पग लयों को मन्दिर में स्थापन करने में क्या लाभ है अतएव सब की सम्मति पूर्वक ही कार्य करना अच्छा है। जो लोग झगड़ा करवाने में है उनके देने लेने में तो कुछ है नहीं। जितने काम पड़ते हैं ज्यादा खर्चा तपागच्छ वाले ही देते हैं इत्यादि विचार कर फागुण सु. १५ के दिन खरतर गच्छ वाले सब काली पोल के उपासरे जहाँ साध्वियाँ ठहरी हुई थीं एकत्र हुए, और वे इस निर्णय पर आने का प्रयत्न करने लगे कि जो समदड़ियाजी ने पहिले से बतलाया था। जब यह काम तय होने में आया इतने में तो मुनीचन्दजी वछावत शरीर को मरोड़ कर बोल उठा कि .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) - "कौन है मुझे उठाने वाला मैं तो यहीं रहूँगा यदि कोई मेरा पगलिया उठाने का नाम तक भी लेगा तो मैं उनसे समझ लूंगा इत्यादि ". बस ! फिर तो था ही क्या लोगों ने हा-हो मचा दिया और कहने. लगे कि बस, दादासाहब खुद परचा दे दिया अब तो पगलिया हीरावाड़ी के मन्दिर में ही रहेगा। इतना कह कर सब लोमउठ कर चले गये और बाहर जा कर इस बात को चारों ओर फैला दी कि दादाजी ने मुनीचन्दजी के शरीर में आकर परचा दे दिया है कि मैं तो मन्दिर में ही रहूँगा कोई मुझे उठाने का नाम तक भी नहीं ले इत्यादि । इस बात की शहर में खूब चर्चा. होने लगी और कई कई लोग यह भी कहने लगे कि: १-यह बात बिलकुल कल्पित बनावटी है, क्योंकि दादाजी. जैसे महान पुरुष श्री संघ में फूट कुसम्प डलवा कर एक क्षणमात्र भी मन्दिर में नहीं ठहरे।। २-अरे दादाजी जीवित थे उस समय भी रात्रि दिन मन्दिर में ठहरने में महान आशातना समझते थे तो अब वे कैसे ठहर सकते हैं ? यह तो एक खरतरों की कारस्तानी है। ___ ३-भाई ! दादाजी के लिये श्री संघ में इतना बड़ी दादाबाड़ी बना रखी है तो दादाजी मन्दिर में बैठ कर श्री संघ में केश पैदा क्यों करवाते हैं। ४-अरे सुनो तो सही दादासाब को सब गच्छ वाले मानते पूजते हैं तो दादाजी एक खरतर गच्छ वालों को अपने भक्त मान कर दूसरे गच्छ वालों को कभी दूर नहीं हटावेंगे। यह तो दादाजी के नाम पर खरतरों का जाल है। - .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) ५-कई कहने लगे कि दादाजी जीवित थे तब देव द्रव्य मक्षण के कारण चैत्यवासियों की निन्दा करते थे तो क्या वही दादाजी देव द्रव्य के मकान में रह कर देव द्रव्य की केसर चन्दन से अपनी पूजा करवा कर देव द्रव्य भक्षी बनेंगे ? नहीं नहीं कदापि नहीं । हाँ, खरतरा दादाजी को जबरन् देव द्रव्य भक्षी बनादें तो बात दूसरी है। ६-भाई साहिब ! दादाजी आज कोई नया क्लेश नहीं फैला रहे हैं आप तो अपने जीवन में क्या स्वगच्छीय + क्या परगच्छीय सब के अन्दर फूट कुसम्प की भट्टियें धधकादी थीं जिसके कटुफल जैन समाज आजपर्यन्त चाख ही रहा है। पर शेष कुछ रह गया था जिस विष वमन को दादाजी ने नागोर ही पसंद किया है। . __ -क्यों भाई दादाजी जब कभी परचा देते हैं तो खरतरोंखरतरों को ही देते हैं यदि एकाध चमत्कार तपागच्छ वालों को बतलादें तो वे सब तपा ही स्वरतरे बन जायँ कि यह सब मगड़ा निर्मूल हो जाय । ८-कई ने कहा कि जिस समय मुसलमान लोग दादाजी दादाजी का ही प्रताप है कि आपके गुरु भाई जिन शेखरसूरि दादाजी से अलग हो रुद्रपाली नामक एक अलग गच्छ निकाला और इसी कारण खरतर गच्छ में क्लेस कदाग्रह एवं फूट पड़ गई। + भगवान् महाबीर के पांच कल्याण के बदले छ; कल्याण की प्ररूपण करके तथा पाटण में दादाजी स्त्री पूजा का निधषे कर श्री संघ में बडा भारी क्लेश कुसम्प फैलाया और वह आज पर्यन्त भी विद्यमान है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की मूर्ति पादुका तोड़-तोड़ कर टुकड़े कर डाले थे उस समय दादाजी किस तीर्थ की यात्रा पधारे थे। ... पाठकों! न तो दादाजी आये हैं और न कहीं गये तथा न दादाजी ने परचा ही दिया है मुनीचन्दजी के शरीर में तो ऐसी एक बीमारी है कि वह हरवक्त इसी प्रकार बोल उठते हैं खरतरों ने भद्रिकों को भ्रम में डालने के लिये एक जाल रचा है पर अब वह जमाना नहीं है कि इस प्रकार से कोई समझदार धोखे में फँस जाय । इत्यादि जितने मुँह उतनी बातें । संसार में किस-किस का मुँह बन्द किया जाय। खैर, फागुण सुद १५ का दिन इस प्रकार की चर्चा में व्यतीत हुआ। चैत बद १ को. तपागच्छ वालों के स्वामीवात्सल्यता था वे लोग जल्दी ही अपने काम में लग गये । ___ तपागच्छवालों की कहां तक उदारता है कि खरतरों ने श्रीसंघ की आज्ञा का भंग कर बिना चाबी ताला तोड़ पगलिया निकाल लिया बिना श्री संघ की सम्मति होगवाड़ी के मन्दिर में दादाजी का पगलिया रख दिया । इस प्रकार जुलम करने पर भी स्वामिवात्सल्य के लिये खरतरों को भी आमंत्रण दिया कि वे लोग अलग न रहें । खैर जितने लोग आये वे जीम गये पर कई लोग नहीं भी आये थे उन लोगों का इरादा किसी न किसी बहाने से अपना अपराध तपों के शिर डाल उनको बदनाम करने का था और उन्होंने किया भी ऐसा ही।। चैत वद १ को एक ऐसी दुर्घटना हुई जिसके दुःखद् समाचार सुनते ही सब संघ में सनसनी छागई। वह दुर्घटना थी बड़े मन्दिरजी में गोडीजी की देहरी से पगलिया चला जाना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) भला यह सुनकर किसको दुःख नहीं होता है ? सब लोग बड़े मन्दिर में एकत्र हुए और पुजारी को पूछा। पुजारी ने कहा कि कल शाम तक तो पगलिया था सुबह देखा तो पगलिया नहीं मिला, इत्यादि । इस विषय की भी शहर में अनेक प्रकार से बातें होने लगी जैसे कि १-कई कहने लगे कि पगलिया दादाजी का था। २-कइयों ने कहा कि पगलिया पार्श्वनाथजी का था। ३- कइयों ने कहा कि पगलियों पर नाम नहीं था पर पार्श्वनाथ के पगलिया कहे जाते थे। ४-कइयों ने कहा कि पगलिया तपागच्छवालों ने गुम. कर दिया। ५-कई बोले कि यह कारस्तानी खरतरों की है क्योंकि पगलिया पार्श्वनाथ का था पर उस पर नाम नहीं होने ६ खरतरे दादाजी का नाम खुदवाने की नीति से पगलिया ले गये हैं। मैंने सुना है कि रातोंरात नाम खोदकर तड़के तड़के पगलिया वापस मन्दिर में रख दिया जायगा पर पाप का घड़ा फूट गया नाम, रात्रि में खुदा नहीं और सुबह सबको खबर हो ही गई । ६-किसी ने कहा यार दादा साहब को सवा रुपया का प्रसाद बोलो अभी पगलिया आ जायगा 'दादो हाथरो हजूर है' __ ७-कइ कहने लगेभाई क्यों फिक्र करते हो चलो मुनीचन्दजी वछावत के पास जैसे हीरावाड़ी के पगलियों के लिये दादासाहब ने वछावतजी के शरीर में आकर परचा दिया था वैसे ही इस पगलिया के लिये भी दादाजी कह देगा कि अमुक व्यक्ति पगलिया ले जाकर अमुक स्थान में रक्खा है फिर तो क्या देरी है पुलिस लाकर गिरफ्तार करवा लेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) ८-किसी ने कहा यदि पगलिया दादाजी का न होगा तो दादाजी क्यों बतावेगा ? कारण खरतरों को. पार्श्वनाथजी के पगलियों की इतनी परवाह नहीं है। __९-कई कह रहे थे कि यदि मुनीचन्दजी बड़े मन्दिर के पगलिया का पता नहीं लगावेंगे तो होरावाड़ी के पगलियों के लिये शरीर मरो कर परचा दिया कहते हैं यह सब धोखेबाजी और कपट क्रिया ही है। १०-कई कहने लगे कि आधुनिक एक तपागच्छ के श्रावक ने दादाजी के पगलियों पर वासक्षेप डाल कर प्रतिष्ठा को उसके लिये तो दादाजी उसी वक्त मुनीचन्दजी के शरीर में आकर परचा दे दिया अब पार्श्वनाथ के प्राचीन पादुकों के लिये चुपचाप बैठ गये । इसमें क्या रहस्य होगा ? __इत्यादि जहाँ देखो शहर में इसी बात को चर्चाएं हो रही थीं। पर दिन भर में पगलियों का पता नहीं लगा। आज स्वामिवात्सल्य होने पर भी जैनों के चहरे पर खासी उदासीनता छाई हुई दीख पड़ती थी। शाम के समय तीन चार खरतरों ने मन्दिर में जाकर मुनीम से एक नोटिस निकलवाया जिसमें लिखा था कि 'बड़े मन्दिरजी से दादाजी का पगलिया चला गया है जिससे कमेटी की जाती है। ठीक समय पर मेम्बरान पधारें। जब यह परचा तपागच्छ वालों के पास पहुँचा तो उन्होंने पढ़ कर उस नोटिस के नीचे नोट लिखा कि:___ "नोटिस में दादाजी का पगलिया लिखा वह गलत है, पगलिया पार्श्वनाथजी महाराज का था अतएव मुनीम को हिदायत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) की जाती है कि इस पर्चे को दफ्तर दास्त्रिल करे और दूसरा नोटिस निकाले कि बड़े मन्दिरजी से पार्श्वनाथजी का पगलिया चला गया तथा हीरावाड़ी के मन्दिर में खरतर गच्छ वालों ने बिना श्री संघ की आज्ञा पगलिया रख दिया इसलिए कमेटी बुलाई जा रही है इत्यादि" . ___आदमी नोटिस लेकर वापस आया। खरतरे वहाँ बैठे ही थे। मुनीम ने उस नोटिस को दफ्तर दाखिल कर दिया और दूसरा नोटिस निकालने लगा तो खरतरों ने पार्श्वनाथजी का पगलिया लिखने की मनाई कर दी और कहा कि किसी का नाम मत लिखो सिर्फ इतना ही लिख दो कि बड़े मन्दिर से पगलिया गया । बस मुनीम ने उसी तरह नोटिस लिख कर दुबारा भेजा परन्तु उस समय रात्रि बहुत चली गई थी वास्ते कमेटी दूसरे दिन करना निर्णय कर लिया। दूसरे दिन चैत वदर को कमेटी के मेम्बरान बड़े मन्दिर के मकान में एकत्र हुए परन्तु खरतर गच्छ वालों में से कोई एक बच्चा भी नहीं आया । तब उन को बुलाने के लिए भेजा परन्तु किसी ने कोई बहाना, किसी ने कोई बहाना, बतला दिया। फिर भी कार्य करना खास जरूरी था। जितने मेम्बर आये हुए थे उन्होंने कार्य प्रारंभ किया । पुजारी को बुला कर उसका बयान लिया और पगलिया की तलाश करने के लिए बहुत कुछ का तथा जहाँ तक पगलियों का पता न मिले वहाँ तक बड़े मन्दिर के पुजारी की तनख्वाह बन्द कर दी जाय तथा हीरावाड़ी के मन्दिर के पुजारी को भी बुलाया पर वह उस समय मिला नहीं तथापि उसने बिना श्री संघ को इत्तला दिये पगलिया मन्दिर में रखने दिया तथा बिना टाइम मन्दिर को खुला रखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९ ) इस कारण उसकी भी तनख्वाह बन्द कर दी गई और भी उस कमेटी में जितनी कार्रवाई हुई वह कमेटी के रजिस्टर में दर्ज कर हाजर मेम्बरों के हस्ताक्षर लेकर कमेटी विर्सजन की। ___ नागौर के सब वर्तमान क्रमशः जयपुर हरीसागरजी के कानों तक पहुँच ही जाते थे और उन की ओर से इस विष वृक्ष को ठीक तौर पर जल सिंचन मिलता ही जाता था अर्थात् केवल नागौर के खरतरों की इतनी हैसियत नहीं कि वे समाज में इस प्रकार क्लेश कदाग्रह को जन्म देकर बढ़ा सकें । इनके पीछे हरीसागरजी का ही हाथ था । हरिसागरजी ने तो यहाँ तक कहला दिया कि तुम घबराओ मत पगलिया जहां हैं वहां रहने दो। मैं आता हूँ और आते ही दादाजी की प्रतिष्ठा करवा दूंगा। यदि मुक़द्दमा बाजी का काम भी पड़ जाय तो तुम एक क़दम भी पीछे न हटना यदि रकम का काम पड़ेगा तो मैं हजारों रुपये भेज दूंगा । परन्तु तुम तपियों से कभीडरना नहीं, इत्यादि । बस, फिर तो कहना ही क्या था ? उन विघ्न सन्तोषियों को हरिसागर जैसा क्लेश प्रिय पीठ ठपकारने वाला मिल गया। हरिसागर केवल नागौर में ही क्यों पर और भी कई स्थानों पर तपा खरतरों के शिर फुड़वा चुका था। ऐसा शायद ही कोई स्थान बच सका हो कि जहाँ हरिसागर का उपदेश मानने वाला हो वहाँ राग द्वेष का इसने बीज नहीं बोया हो ? खैर, नागौर का क्लेश दिन व दिन बढ़ता ही गया फिर भी तपागच्छ वाले तो शान्ति से बैठ गये कि खरतरों को करने दो वे क्या क्या करते हैं ? नागौर के खरतरों ने हरिसागर जी को आमन्त्रण भेजा और यह भी समाचार आ गया कि हरिसागरजी जयपुर से बिहार कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) नागौर आ रहे हैं। तपागच्छ वालों ने तो यहाँ तक इरादा कर लिया कि इस झगड़े को हरिसागरजी पर ही रख दिया जाय कि वे निपटारा करवादें। पर वे जब पार्श्वनाथ फलौदी आये नागौर के खरतरे बहां गये तो उनके मुँह से ऐसे उदंड वाक्य निकल पड़े कि एक हरिवाड़ी के मन्दिर में ही क्या पर मैं तो सब मन्दिरों और उपाश्रयों में दादाजी के पगलिये स्थापित करवा दूंगा। मुझे कोई रोकने वाला है ही नहीं, इत्यादि-- जब यह सुना कि हरिसागरजी कल यहां आने वाले हैं तब तपागच्छ वालों ने रात्रि में एकत्र हो यह निर्णय किया कि यदि हरिसागरजी को अपने उपाश्रय में उतारा जाय और वे यहां अपने उपाश्रय में कभी दादाजी का पगलिया रख दिया तो उल्टा क्लेश बढ़ेगा और वह तपागच्छाचार्यों की भर पेट निंदा भी करते हैं। अतएव सबसे अच्छा है कि न तो अपने उपाश्रय में हरिसागर जी को उतारा जाय और न कोई तपागच्छ वाला उसके साथ किसी प्रकार का व्यवहार ही रखे क्योंकि जहां जाने पर राग-द्वेष बढ़ता हो वहाँ नहीं जाना ही अच्छा है। बस, यह ठहराव कर लिया कि जहाँ तक हीरावाड़ी के मन्दिर में पगलिया रक्खा है उसका समाधान न हो जाय वहाँ तक खरतरों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखा जाय ।। दूसरे दिन हरिसागरजी का नागोर में आगमन हुआ । तपागच्छ वाले अपने प्रस्ताव के मुवाफिक न तो हरिसागरजी के सामने गये और न अपने उपासरा में ठहराया । सागरजी कालीपोल का उपासरा, जहाँ साध्वियाँ ठहरी हुई थी, खाली करवा कर ठहर गये । सागरजी की आँखें खल गई कि सकल श्रीसंध का संगठन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) होता तो कुछ और ही ठाठ रहता । पर क्या करें अपना ही बोया बीज है । सागरजी ने न जाने किस मुहूर्त एवं कैसे शुकनों से नगर में प्रवेश किया कि दूसरे ही दिन कई साधु दादावाड़ी की ओर जा रहे थे उन्होंने न जाने मुसलमान से छेड़-छाड़ की थी या कोई गुप्त अपराध था उस मुसलमान ने सागरों की खूब पूजा की । कुछ दिनों के बाद हरिसागरजी ने तपागच्छ के श्रावकों को बुलवा कर पूछा कि तुम कोई लोग हमारे पास या व्याख्यान में नहीं आते हो इसका क्या कारण है ? तपागच्छ वालों ने उत्तर 'दिया कि आपके गच्छ के श्रावकों ने बिना श्री संघ की आज्ञा दादाजी का पगलिया हीराबाड़ी के मन्दिर में रख दिया। हम लोगों की इच्छा है कि दादाजी का पगलिया मन्दिर में नहीं पर दादावाड़ी में ही रखा जाय । सागरजी - क्यों दादाजी का पगलिया मन्दिर में रखा जाय तो क्या हर्जा है। सिद्धचक्रजी के गटा में आचार्य भगवान के पास में बैठे हैं या नहीं ? श्रावक - सिद्धचक्रजी के गटा में तो उपाध्याय और साधु श्री भगवान के पास ही बैठे हैं फिर आप भी वहाँ जाकर क्यों नहीं बैठ जाते हो ? सागरजी -हमतो साधु हैं इसलिए नहीं बैठ सकते A श्रावक -- तो फिर दादाजी कौन हैं ? वे भी तो साधु ही हैं । सागरजी - वे तो महा प्रभावशाली हैं अतएव उनका पगलिया मन्दिर में स्थापन करने में कोई दोष नहीं है। यदि दोष होता तो सिद्धचक्र के गटा में तीर्थङ्करों और सिद्धों के बराबर उनकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) स्थापना कर एक ही साथ में उनकी पूजा नहीं की जाती। आप लोग कुछ समझते तो हो नहीं किसी ने आपको बहका दिया होगा ? श्रावकों - हम लोगों ने तो ऐसा सुना है कि सिद्धचक्रजी के गटा में आचार्योपाध्याय और साधु की तीर्थकरों और सिद्धों के साथ पूजा होती है। वह इस प्रकार राग द्वेष युक्त आचार्योपाध्याय और साधु की नहीं है पर कई आचार्य हो कर कई उपाध्याय हो कर और कई साधु हो कर मोक्ष गये हैं उनकी पूजा होती है । यदि सिद्धचक्र में छदमस्थ साधु पद की ही पूजा होती है तो आप भी मन्दिर में बैठ जाइये कि भगवान के साथ-साथ आपके भक्त की भी पूजा किया करेंगे ? सागरजी -इसका उत्तर तो सागरजी क्या दे सके आखिर में सागरजी ने कहा कि अब आप लोग क्या चाहते हो ? श्रावकों - हम श्रीसंघ में शान्ति बनाये रखना चाहते हैं । यदि आप इस झगड़े को मिटा दें तो हम तो आप पर ही छोड़े देते हैं कि आप कहो उसी प्रकार हम मन्जूर करने को तैयार हैं पर आप अपने श्रावकों को पहले पूछ लीजिये कि वे इस झगड़े को मिटाना चाहते हैं या नहीं । सागरजी को झगड़ा मिटाना कहां था उनको तो गृहस्थों के सिर फुटबाल बनाना था और झगड़ा मिटाने में सागरजी को लाभ भी क्या था कारण सागरजी की पूछ भी तो ऐसे झगड़ों में ही होती है । तपा खरतरों का झगड़ा मिटाना तो दूर रहा पर आपने तो खरतरों खरतरों को भी आपस में लड़ा दिया तथा ओसवाल जाति के रिवाज को तोड़ कर उनके भी प्रेम को टुकड़े २ कर डाला । लोग तो परमेश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) सागरजी और कोई नया झगड़ा पैदा नहीं करें तो अच्छा है। चौमास के साथ ही साथ यह शक्रान्त भी उतर जाय तो लाख कमाया । ___ जब इस आपसी झगड़े से जहाँ तहाँ जैन धर्म को निन्दा होने लगी तब श्रीमान गणेशमलजी सुरांणा तथा दूसरे गणेशमलजी सुरांणा (लांबियाँ वाले ) आप स्थानकवासी होते हुएभी मूर्तिपूजक समाज के साथ अच्छा सम्बन्ध रखते हैं, और जनता पर एवं समाज पर श्रापका अच्छो प्रभाव भी पड़ता है। आप दोनों सरदारों ने इस झगड़े को मिटा देने के लिए कमर कसी और प्रारको उम्मेद थी कि इस कार्य में हम अवश्य सफलता प्राप्त करेंगे। आप दोनों सर. दार पहले तपागच्छ वालोंके पास गये और झगड़ा मिटाने को कहा। इस पर तपागच्छ वालों ने निखालस हृदय से कह दिया कि हमारी ओर से आपको फुल पावर है कि जो आप करें उसको हम स्वीकार कर लेंगे। आप ही क्यों पर खास हरिसागरजी या उनकी साध्वी कनक श्री जी जो कर दें वही हम लोगों को मंजूर है फिर आप हमारी ओर से क्या चाहते हो ? बस तपागच्छ वालों के उदार वचन सुन कर सुरांणाजी वहाँ से हरिसागरजी के पास गये । वहाँ झगड़ा की शान्ति के लिये बात करी नो हरिसागरजी ने सीधा ही उत्तर दिया कि हीरावाड़ी के पगलियों की बात तो आप पीछे करें पहले (१) तो बड़े मन्दिरजी का पगलिया गया वह तपागच्छ वाले लावें (२) दूसरा मैं आया था उस समय तपागच्छ वालों ने अपने उपासरे के ताला लगा दिया था जिसका प्रायश्चित लें (३) तीसरा तपागच्छ वाले मेरे व्याख्यान में नहीं आये इसका दण्ड लें । पहले यह तीनों बाते तपागच्छ वाले मन्जूर करें तब बाद में झगड़ा मिटाने की बात करना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) इतने दिन सुरांणाजी कानों सेहीसुनते थे पर आज तो आपने ठीक अनुभव भी कर लिया और जैन साधुओं की साधुता का भी आपको परिचय हो गया तथा आप यह भी जान गये कि इन लोगोंका इरादा झगड़ा मिटाने का नहीं पर बढ़ाने का ही है। थोड़ी देर बात कर आप ने हताश हो वहाँ से उठकर अपना रास्ता पकड़ा। इस पर सभ्य समाज समझ सकता है कि खरतरों का कितना अन्याय है। कुदरत ने सोच समझ कर ही चन्द प्रामों में मुट्ठी भर खरतरों को झगड़ा करने को हो रखा है। यदि अधिक होते तो न जाने क्या कर डालते। पगलिया लेगये खरतरे और आक्षेप करना तपागच्छ वालों पर । तपागच्छादि पूर्व आचार्यों को पेट भर निंदा करना और उसे तपागच्छ वाले नहीं सुनें जिसका सागरजी दंड बतलाते हैं । यह कितनी नादरशाही है पर यह सब तपागच्छ वालों की अनुचित उदारता का ही कटुक फल है । ज्यों ज्यों तपागच्छ वाले हरेक काम में शान्ति रखते गये त्यों त्यों खरतरों का हौसला बढ़ता गया । आज खरतरों से तीन गुनी समुदाय तपागच्छ की है जिसमें भी खरतरे तपों को मातहत बनाना चाहते हैं। पर इसका नतीजा क्या हुआ है यह खास खरतरों से भी छिपा हुआ नहीं है। खैर, इन दोनों सुरांणाजी के अलावा भी कई शान्ति इच्छुक सज्जनों ने इस झगड़े को शान्त करने के लिये कई बार प्रयत्न किया पर इसमें वे सबके सब निष्फल ही निकले। इससे पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि खरतरे कितने दुराग्रही होते हैं। ___ यदि खरतरों का इरादा यह हो कि तपों की कमजोरी देख हम सब मन्दिरों में दादाजी के पगलिये रख दें । पर यह तो जब ही बन सकेगा कि कुछ घर का गोपी चन्दन लगा कर एकाधा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) मन्दिर बनावें । फिर आपको तस्करों की भांति गुपचुप काम करने की जरूरत न रहेगी। याद रहे कि तपागच्छ वाले अपनी मातबरी से ही शान्ति कर बैठे हैं पर जब वे धारेंगे तो अपने मन्दिरों से ऐसे पगलियों को उठा कर दूर रखने में मिनट भी नहीं लगावेंगे । खरतरों में जाटड़ों या गंवारों से अधिक अकल नहीं है क्योंकि दादाजी के पगलिये रखने का तो यह लोग मिथ्या हट करते हैं और साथ ही दादाजी के पुजारी जो अन्य गच्छीय हजारों लोग हैं उनको दादाजी के दर्शन करने से वंचित रखने की भी कोशिश करते हैं । यह सद्ज्ञान का विकाश है या विध्वंश जरा आंख मिलाकर सोचें समझें और विचार करे । खैर ! सागरजी ने केवल तपा खरतरों में ही वैमनस्य फैला कर संतोष नहीं माना है पर आपने तो खरतरे खरतरों में भी डलवादी । प्रभावना (लेए) जैसी एक साधारण वस्तु है जो हर एक को दी जाती है पर खरतरों ने खास केवलचन्दजी खजानची और नेमीचन्दजी खजानची जो खरतर हैं लेण में उन दोनों के घर को टाल दिया। इतनाही क्यों पर नागोर की ओसवाल याति में ऐसा प्राचीन समय से रिवाज चला आ रहा था कि - किसी भी समुदाय के साधुओं के दर्शनार्थ बाहर से कोई भी -सज्जन आत्रे और वह मिश्री या नारियलादि बेंचना चाहे तो सब समुदायवालों को एकत्र कर रजात्रन्दी से ही सब घरों में देते थे परन्तु कई लोग दर्शनार्थी नागौर में भाकर चाहे वे पीतल के थालकिया हो या चाहे चांदी की कटोरियां बेची हों पर चले ते रिवाज को तोड़ चन्द घरों में बेंचना यह लेण नहीं पर एक ओसवाल जाति के प्रेम का टुकड़ा २ 25 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करना ही है । इस पर भी सागरजी फूले नहीं समाते हों तो यह उस के जातित्व के संस्कार की ही बात है। ___ सागरजी या आपके भक्तों ने पयूषणों की क्षमापना पत्रिका छपवाई है जिसमें नाम तो दिया है नागौर श्रीसंघ का और प्रभावना में खास रूरतरगच्छ वालों के घर भी टाल दिये । जिस पत्रिका में कई तपस्या करने वालों के नाम भी छपवाये हैं पर उसमें कई कवलागच्छ, तपागच्छ, पायचन्दवालों के नाम भी लिख डाले हैं। कई एकों ने तो सागरजी का मुंह तक भी नहीं देखा है । पर्युषणों के पहले कई बाहर की परिचित औरतों ने आकर किसी ने एक पाटिया बना कर चांदी वगैरह का स्वस्तिक बनाया होगा किसी ने चांदी की कटोरियां दी होंगी । उसको भी पयूषणों की पत्रिका में छपवा कर अपना महत्व बढ़ाने की कोशिश की है । पर वह द्रव्य था किस खाते का यह नहीं लिखा है। लेने वालों के लिए किसी भी खाते का क्यों न हो उनका क्या गया ? कुछ न कुछ पाया है। अरे खरतरो ! जब जैनसंघ में सोने के थाल और मोतियों की कण्डीएं अपने स्वधर्मी भाइयों को अर्पण की गई हैं तो तुम्हारी यह तुच्छ चीजें किस गिनती में हैं । आज तुम क्या लंका को मूंदड़ी बतलाने की कोशिश कर रहे हो । यदि तुम्हारा इष्ट सब बातें छापे में छपवाने का ही है तो नागौर में श्रीसंघ की मालकी का एक उपासरा खरतरों ने बेच कर टका कर लिया उसको भी पत्रिका में छपवा देना था कि समाज में किसी भाग्यशाली ने तो धर्मस्थान करवाया था और कई ऐसे भी जन्म गये हैं कि उस धर्मस्थान को बेच कर उस मुहल्ले से जैन धर्म का नाम ही उठा दिया और मुसलमान द्वारा कई सागरों की पूजा का उल्लेख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) करना था और भी कई ऐसी बातें हैं कि जिनका पक्लिक में प्रकाशित करना हम उचित नहीं समझते हैं। ___ सागरजी और आपके खुशामदिये भक्त भले ही छापों में लम्बी चौड़ी हांक दें पर नागौर और आस पास के लोग सागरजी की काली करतूतों से अब इतने अज्ञात नहीं हैं कि सागरजी ने नागौर में आकर जैनजगत में राग द्वेष बढ़ाने के अलावा कुछ भी किया हो ? और नागौर के खरतरों की उदारता को भी लोग अच्छी तरह से जान गये हैं। बाहर से आये हुओं की प्रभावना तो लेले कर खरतरे घर में रखदी पर उनकी मार संभार भी किसी ने की है। एक नाम मात्र का चौका खोल कर नाम कर दिया पर उसमें चन्द व्यक्ति बाहर के और नागौर के खरतरों के अलावा जीमने वाले कितने थे। कई लोग लोड़ा जी के यहां तो कई बोथरा बोत्थराजी के वहां फिर भी शर्म की बात है कि अखबारों और पत्रिका में लम्बी चौड़ी हांकना। ___भले कई अज्ञानी लोग अखबार या पत्रिका पढ़कर भ्रम में पड़ ही जावेंगे पर यह हवाई किले की स्थिति कहां तक। जब वे लोग सत्य हकीकत जान जायगे तब झूठ की कीमत वे स्वयं ही कर सकेंगे। __आम नागोर की जनता उस बात को स्मरण कर रही है कि एक वही जैन साधु था कि स्टेशन के जैन मन्दिर की प्रतिष्टा के समय क्या श्वेताम्बर क्या दिगम्बर क्या स्थानकवासी और क्या जैनेत्तर लोगों को अर्थात् नागोर भर को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था और एक यह भी जैन साधु कहलाते हैं कि मूर्ति पूजक तो क्या पर खास खरतर खरतर में केश पैदा करने में नहीं चूके हैं । हम लोग तो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि चौमासा को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) जल्दी समाप्त करे और यह साधु जाता हुआ अपना बैर जहर को भी साथ ही संभाल कर ले जावे। ___यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण न होगा कि खरतर गच्छ में मुनि श्री तिलोकसागरजी और साधी पुन्य श्री जी की विद्यमानता में तपा एवं खरतरों में सर्वत्र प्रेम ऐक्यता बनी रही थी। इसका खास कारण यह था कि वे दोनों महापुरुष खरतरानुयायी होने पर भी अन्य गच्छियों के साथ अधिक प्रेम का वर्ताव रखते थे। वे अपने मन में समझते थे कि खरतरे तो हमारे हैं ही पर तपा गच्छादि अन्य गच्छीयों के साथ अच्छा वर्ताव रखा जाय तो एक तो वात्सल्यता भाव बढ़ता रहे दूसरे हमारी, हमारे गच्छ की, और हमारे प्राचार्यों की मान प्रतिष्ठा और गौरव भी बढ़ता जाय इत्यादि । उनके बाद अलवत वीरपुत्र आनन्द सागरजी और उन्हीं की आज्ञा वृति साध्वियों के लिए भी यह नहीं सुना गया कि उन्होंने किसी स्थान पर तपा खरतरों का झगड़ा फलाया हो पर हरिसागर और इनकी परिचित साध्वियां तो जहाँ गये वहाँ गच्छों का झगड़ा तो तैयार रहता ही है। इसमें कुछ जाति का भी असर अवश्य है। वीरपुत्रजी जाति के ओसवाल हैं तब हरिसागर जाट हैं। अतएव जैनधर्म का गौरव जितना ओसवालों को है उतना जाटों को नहीं है। यही कारण है कि पूर्वाचार्यों ने मर्यादा बाँध दी थी कि आचार्य पद ओसवाल ज्ञाति वालों को ही दिया जाय । विचारा जाट बुट प्राचार्यपद की महत्वता को क्या जान सके ? देखिये मुनि श्री तिलोक्य सागरजी, साध्वीजी पुन्य श्री और वीरपुत्र आनन्दसागरजी ने खरतरों के अलावा हजारों अन्य गच्छीयों को दादाजी के चरणों में मुका दिया तब हरिसागरजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो उसकी कगन्छ र कई विन से ( २९ ) ने हजारों दादाजी की सेवा भक्ति और पूजा करने वालों को उल्टे खिलाफ बना दिया। यदि हरिसागरजी अपना पतित आचार छिपाने के लिए ही यह गच्छ कदाग्रह रूपी षड्यंत्र रचना अच्छा समझता हो तो उसकी यह बड़ी भारी भूल है क्योंकि अब खरतरे भी इतने अज्ञानी नहीं हैं कि गन्छ कदाग्रह की ओट में हरिसागरजी इस प्रकार शिकार खेल सके ? भले कई विघ्न संतोषी खरतर अपने स्वार्थ के लिए लड़ाई मगड़े में हरिसागरजी जैसे जाटों को अपना हथियार बनालें पर आखिर तो वे हैं ओसवाल परीक्षा कर ही लेगा। प्रसंगोपात इतना कह कर अब हम मूल. विषय पर आते हैं। ____ इस वर्ष खरतरों ने सावत्सरी भादवा शु० ४ बुधवार को की ? तत्र तपागच्छ वालों ने भा० शु० चौथ दूजी गुरुवार को सावत्सरी की। तपागच्छ की पाठशाला में पर्दूषणों के व्याख्यान यतिवर्य मुकनचन्दजी ने बांचे जब यतिजी, पौषाध वाले, और अन्य लोग मिलकर मन्दिरों के दर्शन को गये वे क्रमशहीरावाड़ी के मंदिर पहुंचे तो जिस कोटरी में दादाजीका पगलिया रहा था उस कोठरी के ताला लगा देखा । शायद खरतरों का इरादा किसी को दर्शन नहीं करने देने का हो। श्री संघ मन्दिरजी के दर्शन करके वापस उपासरे चले गये बाद सावत्सरिक प्रतिकमण बैठने की तैयारी थी कि समाचार सुना कि खरतरों ने हीरा बाड़ी के मन्दिर में जिस कोठरी में दादाजी का पगलिया ररूा है वहाँ दुबारा किवाड़ लगा रहे हैं। खरतरों को ऐसे पर्व दिन सिवाय तथा तपागच्छ वालों के पौषध सिवाय कोई दिन ही नहीं मिलता है। क्योंकि अपने या दूसरों के धर्मान्तराय व कर्म बन्द से तो यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) तनक भी नहीं डरते हैं । उनको तो ऐसा हो मोका देखना था । जब इस बात का हुल्लड़ मचा तो तपागच्छ वाले कई लोग भी वहाँ पहुँच गये और कहा कि आज हमारे सांवत्सरिक पर्व का दिन है। आप ऐसा अन्याय क्यों करते हो । मन्दिरों के काम के लिये श्री संघ की कमेटी मौजूद है फिर आप इस झगड़े में नया नया बखेड़ा क्यों डालते हो । जो कुछ काम करना है तो सबकी सम्मति से करावें । पर खरतरे कब मानने के थे क्यों कि उनके पीछे हरिसागरजी का हाथ था और हरिसागरजी को नागोरियों के शिर फुड़ा कर मुकदमाबाजी करवानी थी जिसका निश्चय आपने जयपुर से ही कर रखा था। उस समय दोनों पक्ष में बाद विवाद और थोड़ी बहुत थापा मुक्की भी हुई। जैनेतर लोग भी गहरी तादाद में वहाँ आ गये और खतरों को अन्याय के लिये खूब हो कहने लगे । किन्तु जिनको लोकोपवाद की भी परवाह नहीं उनके लिए कुछ भी क्यों न हो ? खैर, आखिर पुलिस आ जाने से मामला शान्त होगया। पुलिस ने कोठरी बन्द करव कर सबको चले जाने का ओर्डर दे दिया । सुना जाता है कि खरतरे फौजदारी दावा करने वाले हैं। यदि खरतरे दावा करेंगे तो इच्छा के न होते हुए लाचार हो तपागच्छ वालों को भी दावा तो करना ही पड़ेगा । यदि दोनों ओर से मुक़द्दमा बाजी होगी तो कलह प्रिय हरिसागरजी की मनोकामना पूर्ण हो जायगी इसकी खुशहाली में दादाजी को सवा रुपये का प्रसाद बोला हुआ है जिससे दादाजी भी तृप्त हो जायँगे । यह लेख लिखने के बाद का यह समाचार है कि इधर तपागच्छ वाले श्रश्वन कृष्णा १० को श्री पार्श्वनाथ फलोदी के मेला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर गये हुए थे। बस! खरतरों को ठीक मौका मिल गया। उन्होंने श्री संघ की आण दिराई जिसकी भी परवाह नहीं की और आश्वन बद १० के रोज दादाजी की कोठरी के किवाड़ चढ़ा दिया । तपागच्छ वाले शान्ति से देख रहे हैं कि आगे चलकर दिया । तपागा क्या करते हैं। आपके चमत्का ___ धन्य है गुरुदेव ( ! ) आपको, आपके चमत्कारों को और आपकी प्रकृति को। आपने अपने जीवन में तो जैन शासन में खूब ही क्लेश कदाग्रह फैला कर हजारों नहीं पर लाखों में जहर बैर बढ़ाया और मरने के बादभी आज पर्यन्त हम लोगों को शान्ति का श्वास नहीं लेने दिया और भविष्य में भी आप क्या-क्या करेंगे यह तो भविष्य के गर्भ में ही है । यदि ऐसा नहीं होता तो क्या आपके लिए कोई दूसरा स्थान ही नहीं था कि आप इस प्रकार एक कोठरी में बैठते और हमारे भाई भाइयों में इतना जहर बैर बढ़ाते ? गुरुदेव ! यदि आप स्वयं यहाँ से उठकर नहीं जा सकते हो तो आप मुनीचन्दजी को फिर परचा देकर कह दें कि अरे खरतरो तुम मुझको एक कोठरी में बैठा कर आपस में क्यों झगड़ते हो ? मैं मन्दिर की कोठरी में एक क्षणभर भी ठहरना नहीं चाहता हूँ। मुझे उठाकर दादाबाड़ी जो मेरा धाम है वहां बैठा दो और तुम तपाखरतरा सब आपस में मिल जुल कर मेरी पूजा किया करो क्योंकि मैं किसी एक गच्छ या समुदाय में बिका हुपा नहीं हूँ इत्यादि कह कर संघ में शान्ति बरताइये इसमें ही आपका यश और पजा है। __ अंत में मुझे इतना और कह देना है कि इस लेख में जो जो बातें मैंने लिखी है वे खूब शोध खोज कर पूर्ण सोच विचार कर संक्षिप्त में ही लिखी है क्योंकि इसका कलेवर मनसा से भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक बढ़ गया है और इस लेख में कई प्रसंगोपात बातें भी लिखी गई हैं पर वे लिखनी खास जरूरी भी थों और इसमें निमित कारण तो खास खरतर साधु हो है जो हाल नागोर में विराजमान हैं और वे इतने से ही शान्ति रखें वरना अभी मशाला बहुत संग्रह किया हुआ तैयार रख छोड़ा है । मेरा यह भी ख्याल है कि अन्य खरतरे इस. लेख को पढ़कर मेरे पर टूट पड़ेंगे पर उन महानुभावों का सबसे पहला यह कर्तव्य है कि इस लेख के. लिखने में कारण कौन है उसको ही उपालम्ब दें और भविष्य के लिये ऐसी शिक्षा दें कि यह मामला यहां ही शान्त हो जाय । इसमें ही कल्याण है । किमधिकम् । ता० ५.१०.३७ नागोर (मारवाड़) 'शांति का इच्छुक । बी० ए० के. जैन नागोरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हरिसागरजी के विषय में मैंने ऊपर के लेख में जो कुछ लिखा है वह सभ्यता पूर्वक ही लिखा है क्योंकि मैं किसी का पाप प्रकाशित करना नहीं चाहता हूँ पर आपके गुण (1) आपके ही समुदाय के मुनि मुक्तिसागरजी ने, जिनको हरिसागरजी अपना शिष्य होना बतलाते हैं, जनता पर साफ-साफ प्रकट कर दिये हैं। मुनि मुक्तिसागरजी का चातुर्मास हाल देहली में है पर आप पहले साथ में रहकर हरिसागरजी की सब प्रवृत्ति का अनुभव करके ही अलग हुए और जनता को सावधान करने को कई पत्रिकाएं निकाली, जिनके अन्दर की 'हरिसागर के पापों का भंडाफोड़' नामक पत्रिका केवल नमूने के तौर पर यहां मुद्रित करवादी जाती है। यदि आपके पढ़ने की अभिरुचि होगी, तो क्रमशः प्रकाशित करवादी जायगी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) हरिसागर के पापों का भंडा फोड़ . मेरे प्यारे बन्धुओ ! मुझे लिखते हुए शर्म श्राती है और जो लेख का प्रत्युत्तर नहीं देता हूँ तो हरिसागरजी की असत्यता सत्यता के रूप में परिणत होने का लोभ है; इसलिये मेरा यह कर्तव्य हो गया है कि उनकी सारी पाप लीलाओं का भंडा फोड़ कर दिया जाय और जैन समाज को कुम्भकरणी निंद्रा से जगा दिया जाय । अब सावधान होकर हरिसागरजी की पाप लीलाओं का अहवाल सुनियेगा। मेरे प्यारे मित्र हरिसागरजी, आखिर में तुमने अपनी पाप लीलाओं का भंडा मेरे हाथों से ही फुड़वाया । खैर ! तुम्हारी ही इजाजत ने मुझे प्रेरित किया है तो अब खूब मजा लुटियेगा | क्या हरिसागर तुम्हें इस लेख के प्रारम्भ में ही 'मुक्तिसागर मेरा शिष्य है।' ऐसा लिखते हुए तुमको दूसरे महात्रत का कुछ भी खयाल न रहा ? प्रारम्भ में ही मुरसादि का लिवास लगाके प्लेट फार्म पर पेश होगये । भले आदमी प्रारम्भ में तो सत्यता दिखलानी थी। लेकिन सत्यता का पार्ट भेजा ही नहीं होगा, इसलिये ही असत्यता को आगे ढकेल दिया है। खेद, हरिसागरजी के ख्याल में है या नहीं, मैं मेरे प्राथमिक लेख में लिख चुका था कि हरिसागर तुमने मुझे कब दीक्षा दी थी और किस शहर में किस संघ के आगे दी थी ? सो जाहिर करना । लेकिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) उस बात को छोड़ दी क्योंकि उसमें तो फैल हो जाने का खौफ काफी था, इसलिये ऐसा ही लिख डाला कि मुक्तिसागर मेरा शिष्य है, ऐसे तो अंट संट लिखने में एक मूर्ख आदमी भी नहीं मान सकता है तो फिर हमारे बीसवीं सदी के लोग कैसे इक़रार कर सकते हैं। अब भी मैं तुमको चैलेंज करता हूँ तुम जाहिर प्रूफ करके दिखादो वरना हम प्रूफ करके दिखाने के लिए तैयार हैं । दूसरी बात तुम लिखते हो कि उनका दोष अखबारों में लिखना उचित नहीं समझा । इसलिये आपने अपनी सम्मति जाहिर करली | यह कौन से ज्ञान से, खरतरगच्छ की सलाह ली है या नहीं ? इसका भी आपको कैसे ज्ञान हुआ ? समुदाय बाहर करने में संच की सलाह की कोई जरूरत नहीं है, गच्छ बाहर करना हो तो सलाह की जरूरत है । इसको समझिये, जिस परभी हमने तो स्थानीय संघ की सलाह ले भी ली है । इत्यादि । अब मैं हरिसागर से पूछता हूँ, तुमको क्या त्रिदोष तो नहीं हुआहै । मैं सैंकड़ों दफा कह चुका कि तुम पहले इस बात का प्रूफ करदो कि मुक्तिसागर मेरा शिष्य है और उसके बारे में जहाँ मैंने बड़ी दीक्षा ली है वहाँ के संघ का काग़ज़ मँगवा कर पेश करो । उसमें लिखा है कि हरिसागर के शिष्य मुक्तिसागर अमुक गाँव में थे, उनसे वहाँ के सकल संघ के नाम की चिट्ठी क्या तुम नहीं मँगवा सकते हो ? क्या हर्ज है यदि सत्य ही है तो हरिसागर तुमको शायद पता नहीं होगा कि - (१) हरिसागर की पहली कलम - २००) रु० मु० इसरी में मँगवा कर साध्वी जतनश्रीजी के मार्फत कपूरी बाई को दिये और अनाचार भी किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (२) दूसरी कलम-इसरी में रात को हवा खाने जाना फिर १ बजे श्राकर प्रतिक्रमण करना । . (३) कपूरी बाई के साथ शौरीपुर के रास्ते में विहार करना । (४) नदी में स्नान करना। (५) हस्तनापुर में साध्वी के साथ और बाइयों के साथ चौपुर खेलना चौपड़ वगैरह। (६) फैजाबाद में ४ बजे ( रात्रि में ) पानी बेरना। . (७) उपवास के दिन रात को नौकर को १२ बजे भोजन बनाने को कहना और खाना। (८) नौकर को पास में बैठा कर फल छोलाना करके खाना । (९) रात को विहार करना। (१०) रात को पडिलेहन करना। . (११) स्त्री के पास पडिलेहन करवानी । अभी तो बहुत बात बाकी हैं, केवल अभी मंगलाचरण ही किया है। द० मु० मुक्तिसागर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com