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________________ ( २२ ) स्थापना कर एक ही साथ में उनकी पूजा नहीं की जाती। आप लोग कुछ समझते तो हो नहीं किसी ने आपको बहका दिया होगा ? श्रावकों - हम लोगों ने तो ऐसा सुना है कि सिद्धचक्रजी के गटा में आचार्योपाध्याय और साधु की तीर्थकरों और सिद्धों के साथ पूजा होती है। वह इस प्रकार राग द्वेष युक्त आचार्योपाध्याय और साधु की नहीं है पर कई आचार्य हो कर कई उपाध्याय हो कर और कई साधु हो कर मोक्ष गये हैं उनकी पूजा होती है । यदि सिद्धचक्र में छदमस्थ साधु पद की ही पूजा होती है तो आप भी मन्दिर में बैठ जाइये कि भगवान के साथ-साथ आपके भक्त की भी पूजा किया करेंगे ? सागरजी -इसका उत्तर तो सागरजी क्या दे सके आखिर में सागरजी ने कहा कि अब आप लोग क्या चाहते हो ? श्रावकों - हम श्रीसंघ में शान्ति बनाये रखना चाहते हैं । यदि आप इस झगड़े को मिटा दें तो हम तो आप पर ही छोड़े देते हैं कि आप कहो उसी प्रकार हम मन्जूर करने को तैयार हैं पर आप अपने श्रावकों को पहले पूछ लीजिये कि वे इस झगड़े को मिटाना चाहते हैं या नहीं । सागरजी को झगड़ा मिटाना कहां था उनको तो गृहस्थों के सिर फुटबाल बनाना था और झगड़ा मिटाने में सागरजी को लाभ भी क्या था कारण सागरजी की पूछ भी तो ऐसे झगड़ों में ही होती है । तपा खरतरों का झगड़ा मिटाना तो दूर रहा पर आपने तो खरतरों खरतरों को भी आपस में लड़ा दिया तथा ओसवाल जाति के रिवाज को तोड़ कर उनके भी प्रेम को टुकड़े २ कर डाला । लोग तो परमेश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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