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सागरजी और कोई नया झगड़ा पैदा नहीं करें तो अच्छा है। चौमास के साथ ही साथ यह शक्रान्त भी उतर जाय तो लाख कमाया । ___ जब इस आपसी झगड़े से जहाँ तहाँ जैन धर्म को निन्दा होने लगी तब श्रीमान गणेशमलजी सुरांणा तथा दूसरे गणेशमलजी सुरांणा (लांबियाँ वाले ) आप स्थानकवासी होते हुएभी मूर्तिपूजक समाज के साथ अच्छा सम्बन्ध रखते हैं, और जनता पर एवं समाज पर श्रापका अच्छो प्रभाव भी पड़ता है। आप दोनों सरदारों ने इस झगड़े को मिटा देने के लिए कमर कसी और प्रारको उम्मेद थी कि इस कार्य में हम अवश्य सफलता प्राप्त करेंगे। आप दोनों सर. दार पहले तपागच्छ वालोंके पास गये और झगड़ा मिटाने को कहा। इस पर तपागच्छ वालों ने निखालस हृदय से कह दिया कि हमारी ओर से आपको फुल पावर है कि जो आप करें उसको हम स्वीकार कर लेंगे। आप ही क्यों पर खास हरिसागरजी या उनकी साध्वी कनक श्री जी जो कर दें वही हम लोगों को मंजूर है फिर आप हमारी
ओर से क्या चाहते हो ? बस तपागच्छ वालों के उदार वचन सुन कर सुरांणाजी वहाँ से हरिसागरजी के पास गये । वहाँ झगड़ा की शान्ति के लिये बात करी नो हरिसागरजी ने सीधा ही उत्तर दिया कि हीरावाड़ी के पगलियों की बात तो आप पीछे करें पहले (१) तो बड़े मन्दिरजी का पगलिया गया वह तपागच्छ वाले लावें (२) दूसरा मैं आया था उस समय तपागच्छ वालों ने अपने उपासरे के ताला लगा दिया था जिसका प्रायश्चित लें (३) तीसरा तपागच्छ वाले मेरे व्याख्यान में नहीं आये इसका दण्ड लें । पहले यह तीनों बाते तपागच्छ वाले मन्जूर करें तब बाद में झगड़ा मिटाने की बात करना।
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