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८) कुशलता के कारण स्टेशन के मन्दिर की प्रतिष्ठा में श्वेताम्बर दिगम्बर, स्थानकवासी, राज कर्मचारी और नागरिक जनता का सहयोग होने से जैनधर्म की अच्छी उन्नति हुई । होली चातुर्मास की अठाई का व्याख्यान हमेशा पाठशाला के विशाल हौल में होता था। जैन जैनेत्तर लोग गहरी संख्या में लाभ ले रहे थे। शहर में जहाँ देखो वहाँ जैन धर्म की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही थी। पर विघ्न संतोषियों से यह न तो देखा गया और न सुना गया। वे लोग फागण शुद्ध ८ के दिन खरतर साध्वी शान्ति श्री जी को ऐसे पाठ पढ़ा कर व्याख्यान में लाये कि उसने बीच व्याख्यान के खड़ी होकर कहा कि दादासाहब के पगलिये या तो श्री संघ हीराबाड़ी के मन्दिर में रख दे वरना मैं पगलिया उठाकर हीरावाड़ी के मन्दिर में रख दूंगी ? यह शब्द सुनकर उपस्थित लोगों को आश्चर्य के साथ बड़ा भारी दुःख हुआ कि एक साध्वी श्री संघ की शान्ति भंग करने वाले शब्द क्यों कह रही है ? पगलिया रखने न रखने में साध्वी का इतना आग्रह क्यों है और सावी को पगलिया उठाकर मन्दिर में रख देने का क्या अधिकार है ? यदि ऐसा ही है तो फिर यह साध्वी का वेश क्यों रक्खा जाता है ? इत्यादि ! साध्वो के अनुचित शब्दों ने शहर में काफी हलचल मचा दी। बाद में तो यह भी पता मिल गया कि इस झगड़े की बुनियाद का मुख्य कारण ही यह साध्वी है।
फागण शुद्ध १४ चौमासी चौदस होने से तपागच्छ के मुख्य २ आगेवान लोग उस दिन पौषध व्रत किये हुए थे। बस -फिर तो था ही क्या ? खरतर लोग ऐसा सुअवसर हाथ से कब जाने देने वाले थे। वे लोग खूब सज धज करव्याख्यान में उपस्थित
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