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श्री हरिसागरजी के विषय में मैंने ऊपर के लेख में जो कुछ लिखा है वह सभ्यता पूर्वक ही लिखा है क्योंकि मैं किसी का पाप प्रकाशित करना नहीं चाहता हूँ पर आपके गुण (1) आपके ही समुदाय के मुनि मुक्तिसागरजी ने, जिनको हरिसागरजी अपना शिष्य होना बतलाते हैं, जनता पर साफ-साफ प्रकट कर दिये हैं। मुनि मुक्तिसागरजी का चातुर्मास हाल देहली में है पर आप पहले साथ में रहकर हरिसागरजी की सब प्रवृत्ति का अनुभव करके ही अलग हुए और जनता को सावधान करने को कई पत्रिकाएं निकाली, जिनके अन्दर की 'हरिसागर के पापों का भंडाफोड़' नामक पत्रिका केवल नमूने के तौर पर यहां मुद्रित करवादी जाती है। यदि आपके पढ़ने की अभिरुचि होगी, तो क्रमशः प्रकाशित करवादी जायगी ।
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