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________________ ( १९ ) इस कारण उसकी भी तनख्वाह बन्द कर दी गई और भी उस कमेटी में जितनी कार्रवाई हुई वह कमेटी के रजिस्टर में दर्ज कर हाजर मेम्बरों के हस्ताक्षर लेकर कमेटी विर्सजन की। ___ नागौर के सब वर्तमान क्रमशः जयपुर हरीसागरजी के कानों तक पहुँच ही जाते थे और उन की ओर से इस विष वृक्ष को ठीक तौर पर जल सिंचन मिलता ही जाता था अर्थात् केवल नागौर के खरतरों की इतनी हैसियत नहीं कि वे समाज में इस प्रकार क्लेश कदाग्रह को जन्म देकर बढ़ा सकें । इनके पीछे हरीसागरजी का ही हाथ था । हरिसागरजी ने तो यहाँ तक कहला दिया कि तुम घबराओ मत पगलिया जहां हैं वहां रहने दो। मैं आता हूँ और आते ही दादाजी की प्रतिष्ठा करवा दूंगा। यदि मुक़द्दमा बाजी का काम भी पड़ जाय तो तुम एक क़दम भी पीछे न हटना यदि रकम का काम पड़ेगा तो मैं हजारों रुपये भेज दूंगा । परन्तु तुम तपियों से कभीडरना नहीं, इत्यादि । बस, फिर तो कहना ही क्या था ? उन विघ्न सन्तोषियों को हरिसागर जैसा क्लेश प्रिय पीठ ठपकारने वाला मिल गया। हरिसागर केवल नागौर में ही क्यों पर और भी कई स्थानों पर तपा खरतरों के शिर फुड़वा चुका था। ऐसा शायद ही कोई स्थान बच सका हो कि जहाँ हरिसागर का उपदेश मानने वाला हो वहाँ राग द्वेष का इसने बीज नहीं बोया हो ? खैर, नागौर का क्लेश दिन व दिन बढ़ता ही गया फिर भी तपागच्छ वाले तो शान्ति से बैठ गये कि खरतरों को करने दो वे क्या क्या करते हैं ? नागौर के खरतरों ने हरिसागर जी को आमन्त्रण भेजा और यह भी समाचार आ गया कि हरिसागरजी जयपुर से बिहार कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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