________________
( १० ) की भींत फोड़ दरवाजा निकालना नहीं चाहते थे, पर मैं आज तपागच्छ वालों को ज्यों त्यों कर समझा दूंगा आप इस बात को मंजूर कर लिरा। मन्दिर से दरवाजा निकालने का तथा धाड़ीवालों की जमीन में दादासाब की छत्री बनाने का तमाम खर्चा मैं दे दूंगा । गरज, कि संघ में शान्ति बनी रहे। समदड़ीयाजी स्वयं तो कवलागच्छ के हैं पर संघ की शान्ति के लिये तपागच्छ वालों को समझाने की तथा दरवाजा और छत्री बनाने के खर्चे की जिम्मेवी अपने सिर पर उठाने के लिये तैयार हो गये। धन्य है ऐसे शान्ति के इच्छुकों को !
बहुत से शान्ति प्रिय खरतरों के दिल में यह बात जच गई कि समदड़ियाजी का कहना ठीक है पर जिन लोगोंने संघ में फूट कुसम्प डालने में ही अपना गुजारा या पूछ समझ रखी थी उन्हें शान्ति में क्या लाभ था । वे गुस्से में आकर बोल उठे कि यह बात हम लोगों को मंजूर नहीं है पगलिया तो हीरावाड़ी के मन्दिर में ही रक्खा जायगा। बस समदड़ियाजी निराश हो वहाँ से उठकर चले गये। बाद फिर दोनों पार्टी में वाद विवाद होना शुरु हुआ। कई खरतरे वहाँ से जाकर लाभचन्दजी खजानची, जो दिल के भोले हैं, को उल्टी सुल्टीपट्टी पढ़ाकर लाये और लाभचन्दजी ने भलाबुरा कह कर उपस्थित ग्वरतरों को लेकर सीधे ही कालीपालों के उपापरे, 'जहाँ स्वरतरों की साध्वियां ठहरी हुई थीं तथा पगलिया रखा था' गये और जवहरीमल डाग के शिर पर प लिया दें कर गुप चुप हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में रख दिया। पर उस रोज कई ऐसे शुभ योगथे और रक्ता तिथि और होलका भी थी कि जिसमें शुभ कार्य करना शास्त्रकारों ने मना की है पर
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com