Book Title: Jainology Parichaya 03
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune
Catalog link: https://jainqq.org/explore/009954/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनॉलॉजी - परिचय (३) संपादन डॉ. नलिनी जोशी सन्मति - तीर्थ प्रकाशन, पुणे ४ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनॉलॉजी - परिचय (३) उत्तराध्ययन-सार प्रश्नसंच प्राकृत व्याकरण सहसंपादन डॉ. कौमुदी बलदोटा डॉ अनीता बोथरा संपादन डॉ. नलिनी जोशी सन्मति - तीर्थ प्रकाशन, पुणे ४ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * जैनॉलॉजी-परिचय (३) * लेखन और संपादन डॉ. नलिनी जोशी निदेशक, सन्मति-तीर्थ * सहसंपादन डॉ.अनीता बोथरा डॉ. कौमुदी बलदोटा * प्रकाशक सन्मति-तीर्थ (जैनविद्या अध्यापन एवं संशोधन संस्था) ८४४, शिवाजीनगर, बी.एम्.सी.सी.रोड फिरोदिया होस्टेल, पुणे - ४११००४ फोन नं. - (०२०) २५६७१०८८ * सर्वाधिकार सुरक्षित * प्रथम आवृत्ति – ३०० प्रतियाँ * प्रकाशन - जून २०११ * मूल्य - ५० रू * अक्षर संयोजन - श्री. अजय जोशी * मुद्रक : कल्याणी कॉर्पोरेशन १४६४, सदाशिव पेठ पुणे - ४११०३० फोन नं. - (०२०) २४४७१४०५ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय बच्चों के लिए ‘जैनॉलॉजी प्रवेश' के पाँच साल के श्रेणीबद्ध पाठ्यक्रमों के बाद 'जैनॉलॉजी परिचय' के पाठ्यक्रमों का सन्मति-तीर्थ ने पूरे उत्साह से और लगन से निर्माण किया । 'जैनॉलॉजी परिचय' को टीनएजर्स का और नयी बहूओं का अच्छा रिस्पॉन्स मिला । बदलते माहौल के अनुसार परीक्षा का ढाँचा बदला । देखते ही देखते 'जैनॉलॉजी परिचय (३)', अध्यापन की धारा में प्रवेश कर रहा है । इस किताब में प्रार्थना के अनन्तर जैनधर्म की मूलभूत जानकारी दी है । आशा है कि, जैनधर्म की ये सुदृढ व युवा-वर्ग को पूरी जिंदगीभर साथ देगी । प्राकृत भाषा का परिचय, व्याकरण और छोटे छोटे वाक्य देनेका प्रयास पिछले सात सालों से हम धारावाहिक स्वरूप में कर रहे हैं । इस पुस्तिका में भी भरपूर प्राकृत वाक्यों के साथ व्याक्णपाठ दिया है । जैन आगमों का साक्षात् ज्ञान कराने में ये पाठ जरूर मददगार साबित होंगे । हिंदुओं में भगवद्गीता का, बौद्धों में धम्मपद का और ईसाईयों में बायबल का जो स्थान है, वही जैन धर्म म ‘उत्तराध्ययन' का है । हम चाहते हैं कि युवा वर्ग को 'उत्तराध्ययनसूत्र' का अच्छी तरह से प्राथमिक परिचय हो । प्रश्नसंच बनाते समय सुलभता और सुविधा का खयाल रखा है । शिक्षिका और विद्यार्थियों को शुभकामनाएँ !! श्रीमान् अभयजी फिरोदिया के प्रति तहेदिल से धन्यवाद प्रदर्शित करते हैं । हम जानते हैं कि “पंखों से नहीं, हौसलों से उड़ान होती है ।" आपकी विनीत, डॉ. नलिनी जोशी सन्मति - तीर्थ मानद सचिव, Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * शिक्षक एवं विद्यार्थियों को सूचनाएँ * १) सन्मति - तीर्थ द्वारा प्रकाशित “उत्तराध्ययन-सार” एवं संबंधित प्रश्नसंच सामने रखकर ही तैयारी करें । २) उत्तराध्ययन-सार में बहुत कुछ जानकारी दी है । वह पढने का जरूर प्रयास करें लेकिन परीक्षा के लिए नये प्रश्नसंच का ही उपयोग करें । ३) लेखी परीक्षा ४० गुणों की होगी । गुण-विभाजन सामान्यतः इस प्रकार का है । अ) उत्तराध्ययन- एक-दो वाक्यों में जवाब : ब) उत्तराध्ययन-गाथा-पाठांतर एवं लेखन (सिर्फ १) : क) उत्तराध्ययन में लिखित छोटी कथा (सिर्फ १) : ड) जैन धर्म की मूलभूत जानकारी इ) टिप्पण लिखिए (सिर्फ १ ) फ) व्याकरणपाठ ४) पाठ्यक्रम १५ जून से प्रारंभ करें । परीक्षा प्राय: फरवरी में होगी । ५) हर एक विद्यार्थी ने उत्तराध्ययन-सार एवं प्रश्नसंच खरीदना आवश्यक है । : : ********** १२ गुण १० गुण ०२ गुण ०८ गुण ०४ गुण ०४ गुण Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमणिका विषय पृ.क्र. प्रार्थना जैनधर्म की मूलभूत जानकारी उत्तराध्ययन-सार-प्रश्नसंच प्राकृत भाषा का व्याकरण (अ) नाम-विभक्ति - वीर, गंगा, वण (ब) क्रियापद के प्रत्यय - वर्तमानकाळ, भूतकाळ, भविष्यकाळ, आज्ञार्थ, विध्यर्थ (क) व्याकरणपाठ - अभ्यासविषयक सूचनाएँ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.प्रार्थना संकल्प हो हमारा , इन्सान हम बनेंगे । इन्सान बन गये तो , भगवान भी बनेंगे ।।धृ.।। हो जैन-बौद्ध-मुस्लिम , हिन्दु हो या इसाई । आपस में लगते भाई , सबको गले मिलेंगे ।।१।। हम एक ही गगन के , चमके हुए सितारे । लगते हैं कितने प्यारे , हँसते रहे हसेंगे ।।२।। हम एक ही चमन के , खिलते हुए सुमन है । लगते हैं कितने प्यारे , खिलते रहे खिलेंगे ।।३।। मंदिर तो एक ही है , दीपक हैं न्यारे न्यारे । लगते हैं कितने प्यारे, जलते रहे जलेंगे ।।४।। मंजिल तो एक ही है , रस्तें हैं न्यारे न्यारे । लगते हैं कितने प्यारे , चलते रहे चलेंगे ।।५।। हम एक ही जमीं के , मानव है सारे प्यारे । सब दिल से दिल मिला के , मिलते रहे मिलेंगे ।।६।। हो राम श्याम महावीर , सबमें है तू समाया । तेरा ही नाम लेके , जीवन सफल करेंगे ।।७।। छोटा बडा न कोई , ना भेद डालो भाई । भाई से भाई मिल के , बढते रहे बढेंगे ।।८।। हो गीता कुराण आगम , गुरुग्रंथ हो त्रिपिटक । इन्सानियत की गाथा , हम प्रेम से पढ़ेंगे ।।९।। ********** Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. जैन धर्म की मूलभूत जानकारी प्रस्तावना : “जैनॉलॉजी अर्थात् जैनविद्या” अभ्यास की एक स्वतंत्र शाखा है । जैनविद्या के सभी आयाम हरेक अभ्यासक के हमेशा सामने होने चाहिए । पिछले सात सालों से हमने बहुत जानकारी तो हासिल की है, लेकिन इस पष्ठ की यह विशेषता है कि उस जानकारी का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है । जैन इतिहास-पुराण के कुछ व्यक्तिमत्व आरंभ में दिये हैं । षड्द्द्रव्य विश्व की ‘Realities' हैं । नवतत्त्वों में नैतिक (Ethical) और आध्यात्मिक (Spiritual) विचार निहित हैं । 'कर्मसिद्धान्त' जैनधर्म का अग्रिम सिद्धान्त है । रागद्वेष, लेश्या, कषाय आदि की जानकारी 'कर्मबन्ध के कारण ' में प्रस्तुत की है । अपेक्षा है कि इस मानवीय दोषों से हम दूर रहने का प्रयास करें । 'आचार' - विभाग साधु-आचार मूलतत्त्व और श्रावक - व्रतों के नाम दिये हैं । विशेष सूचना : इस पाठ में बहुत सारे पारिभाषिक शब्द समाविष्ट हैं । उनका शुद्ध रूप में लेखन करना विद्यार्थियों के लिए आसान नहीं है । इस पाठपर आधारित प्रश्न निम्न प्रकार के होंगे १) उचित जोड लगाइए । २) सही या गलत बताइए । ३) उचित पर्याय चुनिए । वर्णनात्मक प्रश्न पूछे नहीं जाएँगे । - Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (A) जैन इतिहास-पुराण History and Mythology (१) पंच परमेष्ठी - अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु (२) चौबीस तीर्थंकर - १) श्री ऋषभदेवजी २) श्री अजितनाथजी ३) श्री सम्भवनाथजी ४) श्री अभिनन्दनजी ५) श्री सुमतिनाथजी ६) श्री पद्मप्रभुजी ७) श्री सुपार्श्वनाथजी ८) श्री चन्द्रप्रभजी ९) श्री सुविधिनाथजी १०) श्री शीतलनाथजी ११) श्री श्रेयांसनाथजी १२) श्री वासुपूज्यजी १३) श्री विमलनाथजी १४) श्री अनन्तनाथजी १५) श्री धर्मनाथजी १६) श्री शान्तिनाथजी १७) श्री कुन्थुनाथजी १८) श्री अरहनाथजी १९) श्री मल्लिनाथजी २०) श्री मुनिसुव्रतजी २१) श्री नमिनाथजी २२) श्री नेमिनाथजी २३) श्री पार्श्वनाथजी २४) श्री महावीरस्वामीजी (३) ग्यारह गणधर - १) श्री इन्द्रभूतिजी २) श्री अग्निभूतिजी ३) श्री वायुभूतिजी ४) श्री व्यक्तस्वामीजी ५) श्री सुधर्मास्वामीजी ६) श्री मण्डितपुत्रजी ७) श्री मौर्यपुत्रजी ८) श्री अकम्पितजी ९) श्री मेतार्यस्वामीजी १०) श्री अचलभ्राताजी ११) श्री प्रभासस्वामीजी (४) तिरसठ शलाकापुरुष - २४ तीर्थंकर १२ चक्रवर्ती ९ बलदेव (बलभद्र, बलराम, हलधर) ९ वासुदेव (नारायण, केशव) ९ प्रतिवासुदेव (प्रतिनारायण, प्रतिशत्रु) ६३ दिगम्बर परम्परा में इनके अलावा ९ नारद, १२ रुद्र, २४ कामदेव और १६ कुलकरों की भी अवधारणा है । जैन परम्परा ने तेजस्वी और प्रसिद्ध पुरुषों को ‘शलाकापुरुष' कहा है । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) सोलह सतियाँ - १) ब्राह्मी २) चन्दनबाला ३) राजीमती ४) द्रौपदी ५) कौशल्या ६) मृगावती ७) सुलसा ८) सीता ९) सुभद्रा १०) शिवा ११) कुन्ती १२) दमयन्ती १३) चूला १४) प्रभावती १५) पद्मावती १६) सुन्दरी (B) तत्त्वज्ञान (Philosophy) (१) छह द्रव्य - १) धर्मास्तिकाय २) अधर्मास्तिकाय ३) आकाशास्तिकाय ४) काल ५) पुद्गलास्तिकाय ६) जीवास्तिकाय (२) नौ तत्त्व/पदार्थ - १) जीव (आत्मा) २) अजीव ३) पुण्य ४) पाप ५) आस्रव ६) संवर ७) निर्जरा ८) बन्ध ९) मोक्ष (३) जीव के मुख्य दो भेद - १) संसारी जीव २) मुक्त (सिद्ध) जीव (४) जीव की चार गतियाँ - १) नरकगति २) तिर्यंचगति ३) मनुष्यगति ४) देवगति (५) संसारी जीव के दो भेद - १) त्रसजीव २) स्थावरजीव (६) एकेन्द्रिय (स्थावर) जीव के पाँच भेद - १) पृथ्वीकायिक जीव २) अप्कायिक (जलकायिक) जीव ३) तेजस्कायिक (अग्निकायिक) जीव ४) वायुकायिक जीव ५) वनस्पतिकायिक जीव Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) त्रसजीव के चार भेद - १) द्वीन्द्रिय जीव, उदा. शंख, लट, जौंक आदि । २) त्रीन्द्रिय जीव, उदा. चींटी, मकोडा, खटमल आदि । ३) चतुरेन्द्रिय जीव, उदा. मक्खी, मच्छर, बिच्छू आदि । ४) पंचेन्द्रिय जीव, उदा. मनुष्य, पशु-पक्षी आदि । (८) पंचेन्द्रिय जीव के दो भेद - १) संज्ञी - मनसहित जीव, गर्भस्थ पंचेन्द्रिय २) असंज्ञी - मनरहित जीव, एकेन्द्रिय से चतुरेन्द्रिय (९) इन्द्रियों के पाँच भेद - १) स्पर्शनेन्द्रिय २) रसनेन्द्रिय ३) घ्राणेन्द्रिय ४) चक्षुरिन्द्रिय ५) श्रोत्रेन्द्रिय (१०) ज्ञान के पाँच भेद - १) मतिज्ञान (इन्द्रिय ज्ञान) २) श्रुतज्ञान ३) अवधिज्ञान ४) मन:पर्यायज्ञान ५) केवलज्ञान (११) अजीव के पाँच भेद - १) धर्म २) अधर्म ३) आकाश ४) काल ५) पुद्गल (परमाणु) (१२) आकाश के दो भेद - १) लोकाकाश २) अलोकाकाश (१३) कालचक्र के मुख्य दो भेद - १) अवसर्पिणी काल २) उत्सर्पिणी काल (१४) अवसर्पिणी – उत्सर्पिणी काल के छह आरे - १) सुषमा-सुषमा ४) दुषमा-सुषमा २) सुषमा ५) दुषमा ३) सुषमा-दुषमा ६) दुषमा-दुषमा (१५) पुद्गल (परमाणु) के चार गुण - १) स्पर्श (touch) ३) गन्ध (smell) २) रस (taste) ४) वर्ण (रंग color) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) स्पर्श के आठ भेद - १) कठिन (hard) २) मूदु (soft) ३) गुरु (heavy) ४) लघु (light) ५) शीत (cold) ६) उष्ण (hot) ७) स्निग्ध (viscous, sticky) ८) रूक्ष (dry, rough) (२) रस के पाँच भेद - १) कडुआ (bitter) २) चरपरा (hot) ३) कसैला (astringent) ४) खट्टा (sour) ५) मीठा (sweet) (३) गन्ध के दो भेद - १) सुगन्ध (pleasant smell) २) दुर्गन्ध (unpleasant smell) (४) वर्ण के पाँच भेद - १) काला (black) २) नीला (blue) ३) लाल (red) ४) पीला (yellow) ५) सफेद (white) (C) कर्मसिद्धान्त (Theory of Karman) (१) कर्म के आठ मुख्य भेद (मूलप्रकृति) - १) ज्ञानावरणीय कर्म २) दर्शनावरणीय कर्म ३) वेदनीय कर्म ४) मोहनीय कर्म ५) आयुष्य कर्म ६) नाम कर्म ७) गोत्र कर्म ८) अन्तराय कर्म (1) ज्ञानावरणीय कर्म के पाँच भेद (उत्तरप्रकृति) - १) मति-ज्ञानावरणीय-कर्म ४) मन:पर्याय-ज्ञानावरणीय-कर्म २) श्रुत-ज्ञानावरणीय-कर्म ५) केवल-ज्ञानावरणीय-कर्म ३) अवधि-ज्ञानावरणीय-कर्म (II) दर्शनावरणीय कर्म के नौ भेद (उत्तरप्रकृति) - १) चक्षु-दर्शनावरणीय-कर्म ६) निद्रानिद्रा २) अचक्षु-दर्शनावरणीय-कर्म ७) प्रचला ३) अवधि-दर्शनावरणीय-कर्म ८) प्रचलाप्रचला ४) केवल-दर्शनावरणीय-कर्म ९) स्त्यानगृद्धि ५) निद्रा Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (III) वेदनीय कर्म के दो भेद (उत्तरप्रकृति ) - १) सातावेदनीय-कर्म (IV) मोहनीय कर्म के दो मुख्य भेद (उत्तरप्रकृति ) - १ ) दर्शनमोहनीय कर्म (v) आयुष्य कर्म के चार भेद (उत्तरप्रकृति) - १) नरकायुष्य-कर्म २) तिर्यंचायुष्य-कर्म (VI) नाम कर्म के दो भेद (उत्तरप्रकृति) - १) शुभनाम-कर्म २) अशुभनाम-कर्म (VII) गोत्र कर्म के दो भेद (उत्तरप्रकृति) - (१) उच्चगोत्र - कर्म २) नीचगोत्र-कर्म (VIII) अंतराय कर्म के पाँच भेद (उत्तरप्रकृति) - १) दानान्तराय - कर्म २) लाभान्तराय - कर्म ३) भोगान्तराय - कर्म (२) घाति - अघाति - कर्म - चार घाति - कर्म - १) ज्ञानावरणीय (१) आत्मा के दो शत्रु - १) राग (२) लेश्या के छह भेद १) कृष्णलेश्या २) नीललेश्या ३) कापोतलेश्या (३) चार कषाय - १) क्रोध २) मान ४) अन्तराय २) दर्शनावरणीय चार अघाति-कर्म - १) वेदनीय ३) नाम २) आयुष्य ४) गोत्र (D) कर्मबन्ध के हेतु (Causes of Karmic bondage) २) द्वेष (४) तीन योग १) काययोग ४) उपभोगान्तराय-कर्म ५) वीर्यान्तराय-कर्म - ३) मनुष्यायुष्य-कर्म ४) देवायुष्य-कर्म पीतलेश्या ५) पद्मलेश्या ६) शुक्ललेश्या ३) माया ४) लोभ ३) मोहनीय २) वचनयोग ३) मनोयोग २) असातावेदनीय-कर्म २) चारित्रमोहनीय कर्म Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) सप्त व्यसन - १) मद्यपान २) मांसभक्षण ३) वेश्यागमन ४) परपुरुषगमन/परस्त्रीगमन ५) शिकार ६) जुआ ७) चोरी (E) आचार (Observance or Conduct) (१) रत्नत्रय - १) सम्यक्-दर्शन २) सम्यक्-ज्ञान ३) सम्यक्-चारित्र (२) पाँच महाव्रत - १) प्राणातिपात-विरमण (अहिंसा) २) मृषावाद-विरमण (सत्य) ३) अदत्तादान-विरमण (अस्तेय, अचौर्य) ४) मैथुन-विरमण (ब्रह्मचर्य) ५) परिग्रह-विरमण (अपरिग्रह) (३) पाँच समिति - १) ईर्या-समिति २) भाषा-समिति ३) एषणा-समिति ४) आदान-निक्षेप समिति ५) उत्सर्ग-समिति (४) तीन गुप्ति - १) मनोगुप्ति २) वचनगुप्ति ३) कायगुप्ति ६) संयम (५) दशविध धर्म - १) क्षमा २) मार्दव ३) आर्जव ४) शौच ५) सत्य ७) तप ८) त्याग ९) आकिंचन्य १०) ब्रह्मचर्य (६) बारह अनुप्रेक्षा (भावना) - १) अध्रुव भावना २) अशरण भावना ३) एकत्व भावना ४) अन्यत्व भावना ५) संसार भावना ६) लोक भावना ७) अशुचि भावना ८) आस्रव भावना ९) संवर भावना १०) निर्जरा भावना ११) धर्म भावना १२) बोधि भावना Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) छह आभ्यंतर तप - १) प्रायश्चित्त २) विनय ३) वैयावृत्य ४) स्वाध्याय ५) कायोत्सर्ग (व्युत्सर्ग) ६) ध्यान (८) छह बाह्य तप १) अनशन २) ऊनोदरी ३) भिक्षाचर्या ४) रसपरित्याग ५) विविक्तशय्यासन ६) कायक्लेश (९) श्रावकाचार (अ) श्रावक के बारह व्रत (श्वेताम्बर)(१) पाँच अणुव्रत - १) स्थूल-प्राणातिपात-विरमण-व्रत २) स्थूल-मृषावाद-विरमण-व्रत ३) स्थूल-अदत्तादान-विरमण-व्रत ४) स्थूल-मैथुन-विरमण-व्रत ५) परिग्रह-परिमाण-व्रत (२) तीन गुणव्रत - ६) दिग्वत ७) भोगोपभोग-परिमाण-व्रत ८) अनर्थदण्डविरति-व्रत (३) चार शिक्षाव्रत ९) सामायिक-व्रत १०) देशावकाशिक-व्रत ११) पौषध-व्रत १२) अतिथिसंविभाग-व्रत (ब) ग्यारह प्रतिमा (दिगम्बर) - १) दर्शन-प्रतिमा २) व्रत-प्रतिमा ३) सामायिक-प्रतिमा ४) प्रोषध-प्रतिमा ५) सचित्तत्याग-प्रतिमा ६) रात्रिभोजनत्याग-प्रतिमा ७) ब्रह्मचर्य-प्रतिमा ८) आरम्भत्याग-प्रतिमा ९) परिग्रहत्याग-प्रतिमा १०) अनुमतित्याग-प्रतिमा ११) उद्दिष्टत्याग-प्रतिमा ********** Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. उत्तराध्ययन- सार - प्रश्नसंच अ) : उत्तराध्ययनसूत्र की निम्नलिखित गाथाएँ कंठस्थ करके शुद्ध रूप में लिखिए । १) चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं ।। २) माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, नरग-तिरिक्खत्तणं धुवं ।। ३) जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई । दोमासक कज्जं, कोडीए वि न निट्ठियं ।। ४) जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽत्थि पलायणं । जो जान मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ।। ५) समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो । नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो । ********** ब) : एक-दो वाक्यों में वस्तुनिष्ठ जवाब लिखिए । ('उत्तराध्ययन-सार' किताब के प्रस्तावना पर आधारित प्रश्न) १) ‘उत्तराध्ययन' ग्रन्थ कौनसी भाषा में है ? २) उत्तराध्ययन के बारे में कौनसी मान्यता प्रचलित है ? ३) उत्तराध्ययन को 'मूलसूत्र' क्यों कहा है ? ४) उत्तराध्ययन में कितने अध्ययन हैं ? ५) उत्तराध्ययन पर संस्कृत टीका किसने लिखी ? ६) उत्तराध्ययन पर प्राकृत टीका किसने लिखी ? ७) श्वेताम्बर परम्परा में 'उत्तराध्ययन' कब पढा जाता है ? ८ ) उत्तराध्ययन की तुलना कौनसे बौद्ध और हिंदु ग्रन्थों से की जाती है ? 'उत्तराध्ययन-सार' किताब में अंतर्भूत अध्ययनों पर आधारित प्रश्न १) मंगलाचरण में किनको भावपूर्वक प्रणाम किया है ? (गा. १) २) 'चतुरंगीय' अध्ययन में कौनसे चार परम दुर्लभ अंगों का निर्देश है ? (गा. २) ३) अज्ञानी जीव की तुलना 'बकरे' से क्यों की है ? (पृ.२४, टिप्पण) ४) 'मूल धन' किसे कहा है ? मूल धन का नाश करनेवाले जीवों की क्या गति होती है ? (गा. १९) ५) 'कापिलीय' अध्ययन का उपदेश किसने दिया है ? किन्हें दिया है ? (पृ.२८) (२) (१२) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६) कपिलमुनि खुद के कौनसे सोच पर लज्जित हुए ? (पृ.३०) ७) भोगों में आसक्त मनुष्य को कौनसी उपमा दी है ? (गा.२५) ८) संसारसमुद्र पार करनेवाले साधु को किसकी उपमा दी है ? (गा.२६) ९) मनुष्य के जीवित को द्रुमपत्रक की उपमा क्यों दी है ? (गा.३०) १०) जीवन की क्षणभंगुरता स्पष्ट करने के लिए कौनसा दृष्टान्त दिया है ? (गा.३१) ११) 'निरुपक्रम आयु' किसे कहते हैं ? (पृ.३८, टिप्पण) १२) 'सोपक्रम आयु' किसे कहते हैं ? (पृ.३८, टिप्पण) १३) 'द्रुमपत्रक' अध्ययन में कौनसी पदावलि बार-बार आयी है ? उसका अर्थ लिखिए । १४) 'शारदिक कुमुद' के उदाहरण से भ. महावीर ने गौतम गणधर को क्या समझाया ? (गा.३५) १५) इषुकारीय' अध्ययन की कथा कौनसे छह व्यक्तियों से सम्बन्धित है ? (पृ.४२, परिच्छेद १) १६) पुरोहित अपने पुत्रों को किस प्रकार का जीवन बिताने को कहता है ? (गा.४२) १७) पुरोहितपुत्र अपने पिता को कौनसा जवाब देते हैं ? (गा.४३) १८) 'जस्सत्थि मच्चुणा सक्ख' इस गाथा का तात्पर्य लिखिए । (पृ.५०, टिप्पण) १९) पुरोहित पत्नी के मन में किस कारण विरक्ति के भाव उत्पन्न होते हैं ? (गा.५२) २०) रानी कमलावती, कौनसे घृणित शब्दों में इषुकार राजा की निंदा करती है ? (गा.५३) २१) कमलावती रानी, इषुकार राजा का लोभ किस शब्दों में व्यक्त करती है ? (गा.५४) २२) 'संजयीय' अध्ययन के दो भाग स्पष्ट कीजिए । (पृ.५६,५७) २३) प्रत्येकबुद्ध' किन्हें कहते हैं ? (पृ.५८, टिप्पण) २४) उत्तराध्ययन के तेईसवें अध्ययन का नाम केशि-गौतमीय' क्यों रखा गया है ? (पृ.६०, प्रस्तावना) २५) केशीकुमार और गौतम गणधर किनके प्रतिनिधि थे ? (पृ.६०, प्रस्तावना) २६) भ. पार्श्वनाथ प्रणीत चौथा बहिदादाण विरमण व्रत. भ. महावीर ने कौनसे दो महाव्रतों में स्पष्टत: विभक्त किया ? (पृ.६२, टिप्पण) २७) प्रथम तीर्थंकर भ. ऋषभदेव के साधु ऋजु-जड थे' - स्पष्ट कीजिए । (पृ.६३, टिप्पण) २८) 'अंतिम तीर्थंकर भ. महावीर के साधु वक्र-जड थे' - स्पष्ट कीजिए । (पृ.६३, टिप्पण) २९) 'मध्य के बाईस तीर्थंकरों के साधु ऋजु-प्राज्ञ थे' - स्पष्ट कीजिए । (पृ.६३, टिप्पण) ३०) साधु के वस्त्र के बारे में वर्धमान और पार्श्वनाथ की कौनसी धारणाएँ थी ? (गा.६४ का अर्थ) ३१) 'केशि-गौतमीय' अध्ययन के अंतिम दो गाथाओं में कौनसा ऐतिहासिक तथ्य निर्दिष्ट किया है ? (पृ.६५,६६) ३२) मुनि जयघोष ने कौनकौनसे महत्त्वपूर्ण शब्दों का सच्चा अर्थ, ब्राह्मण विजयघोष को बताया ? (पृ.६७, परिच्छेद ४) ३३) यज्ञीय' अध्ययन की गाथाओं में कौनसी पदावलि बार-बार पुनरावृत्त हुई है ? ३४) जीवों का संक्षेप ज्ञान' कौनसा है ? (पृ.७०, टिप्पण, प्रथम परिच्छेद) ३५) जीवों का संग्रह ज्ञान' कौनसा है ? (पृ.७०, टिप्पण, परिच्छेद २) ३६) 'सचित्त' किसे कहते हैं ? कुछ उदाहरण दीजिए । (पृ.७१, टिप्पण) ३७) अचित्त' किसे कहते हैं ? कुछ उदाहरण दीजिए । (पृ.७१, टिप्पण) ३८) न वि मुंडिएण समणो' - इस गाथा का तात्पर्यार्थ समझाइए । (पृ.७१, गा.८१, टिप्पण) ३९) श्रमण', 'ब्राह्मण', 'मुनि' और 'तापस' इन चारों के मुख्य लक्षण लिखिए । (गा.८२, अर्थ) ४०) षट् (६) आवश्यकों के सिर्फ नाम लिखिए । (पृ.७६, प्रस्तावना) ४१) 'सामायिक' शब्द का मूलगामी अर्थ लिखिए । (पृ.७६, प्रस्तावना) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२) चतुर्विंशति-स्तव में किनकी स्तुति की जाती है ? (पृ.७६, प्रस्तावना) ४३) 'वन्दना' किसे कहते हैं ? (पृ.७६-७७, प्रस्तावना) ४४) प्रतिक्रमण करने के पीछे कौनसी भावना होती है ? (पृ.७७, प्रस्तावना) ४५) 'कायोत्सर्ग' का नामानुसारी अर्थ बताइए । (पृ.७७, प्रस्तावना) ४६) प्रत्याख्यान' शब्द का अर्थ संक्षेप में बताइए । (पृ.७७, प्रस्तावना) * टीप : 'सम्यक्त्वपराक्रम' अध्ययन में षडावश्यकों के फलों के बारे में जो विवेचन किया है, वह शिक्षक क्लास में स्पष्ट करें । उनपर आधारित प्रश्न नहीं पूछा जायेगा। * 'प्रमादस्थान' अध्ययन पर प्रश्न पूछे नहीं जाएँगे । लेकिन शिक्षक प्रमाद' शब्द का व्यावहारिक अर्थ समझाइए । 'द्रुमपत्रक' अध्ययन में भी प्रमाद और अप्रमाद का विशेष स्पष्टीकरण दिया है । ४७) 'कर्म' किसे कहते हैं ? कर्मों के आठ मुख्य प्रकार लिखिए । (पृ.८७, टिप्पण और अर्थ) ********** क) बडे प्रश्न : (1) निम्नलिखित कथाओं में से कोई भीएक कथा सात-आठ वाक्यों में लिखिए । १) गाय-बछडे का संवाद । (पृ.२१) २) भिखारी और कार्षापण । (पृ.२२) ३) राजा और अपथ्यकारक आम । (पृ.२२) ४) तीन व्यापारी पुत्र । (पृ.२२-२३) ५) कपिल मुनि और पाँच सौ चोर । (प.२८. परिच्छेद ३) ६) लेश्याओं के बारे में जामन का पेड और छह लकडहारों की कथा । (II) निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषयपर पाँच-छह वाक्यों में टिप्पण लिखिए। १) वैदिक या ब्राह्मण संस्कृति की पाँच प्रमुख विशेषताएँ । (पृ.४४-४५) २) श्रमण संस्कृति की पाँच प्रमुख विशेषताएँ । (पृ.४५) ३) 'करकण्डु की प्रत्येकबुद्धता । (पृ.५८) ४) 'द्विमुख' की प्रत्येकबुद्धता । (पृ.५८) ५) 'विदेहराज नमि' की प्रत्येकबुद्धता । (पृ.५८) ६) राजा 'नग्गई' की प्रत्येकबुद्धता । (पृ.५८) ७) ब्राह्मण ‘जयघोष' की जिनशासन में दीक्षा । (पृ.६७, परिच्छेद २) ८) यज्ञीय' अध्ययन में चारों वर्णों के बारे में धारणाएँ । (गा.८३, अर्थ और टिप्पण) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. व्याकरण-पाठ (प्राथमिक परिचय) 'जैनॉलॉजी प्रवेश' पाठ्यक्रम के प्रथमा से पंचमी तक के किताबों में हमने कुछ प्राकृत वाक्य सीखें और उके अर्थ भी ध्यान में रखने का प्रयत्न किया । जैनॉलॉजी परिचय' पाठ्यक्रम में हम प्राकृत के व्याकरणसंबंधी अधिक जानकारी लेंगे ताकि भविष्य में जब कभी आगमग्रंथ पढने का मौका मिलें तब उनका अर्थ समझने में आसानी होगी 'प्राकृत' शब्द का अर्थ है सहज, स्वाभाविक बोलचाल की भाषा । भ. महावीर ने अपने उपदेश संस्कृत भाषा में नहीं दिये । सब समाज को समझने के लिए उन्होंने बोलीभाषा अपनायी । भ. महावीर के उपदेश 'अर्धमागधी' नाम की भाषा में थे । उस समय वह भाषा समझने में सुलभ थी । उसका व्याकरण भी संस्कृत भाषा जैसा जटिल नहं था । जैन आचार्यों ने कई सदियोंतक प्राकृत भाषा में ग्रंथ लिखे । प्राकृत भाषा एक नहीं थी । प्रदेश के असार वे अनेक थी । आज भी हम हिंदी, मराठी, मारवाडी, गुजराती, राजस्थानी, बांगला आदि भाषाएँ बोलते हैं, वे आधुनिक प्राकृत भाषाएँ ही हैं । (अ) नाम - विभक्ति (Case-declension) प्राकृत वाक्यों में मुख्यत: दो घटक होते हैं - नाम (noun) और क्रियापद (धातु)(verb) । नामों का वाक्य में उपयोग करने के लिए उसे कुछ प्रत्यय लगाने पड़ते हैं । उसे 'विभक्ति' (Case-declension) कहते हैं । प्राकृत में सामान्यत: सात विभक्तियाँ हैं - प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, संबोधन । प्राकृत में सामान्यत: चतर्थी विभक्ति के प्रत्यय नहीं पाये जाते । चतुर्थी के बदले षष्ठी विभक्ति के रूप उपयोग में लाते हैं । हर एक विभक्ति का अर्थ दूसरी विभक्ति से अलग होता है । इसलिए कि हमारे मन के यथार्थ भाव हम दूसरे व्यक्तितक पहुँचा सकते हैं। हर एक नाम के दो वचन होते हैं - एकवचन (singular) और अनेकवचन (बहुवचन) (plural) प्राकृत भाषा में संस्कृत या मराठी की तरह तीन लिंग (gender) होते हैं - पुंलिंग (masculine), स्त्रीलिंग (feminine), नपुंसकलिंग (neutor) । हिंदी में दो लिंग होते हैं - पंलिंग और स्त्रीलिंग । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त पुं. 'वीर' शब्द विभक्ति एकवचन अनेकवचन प्रथमा (Nominative) वीरो, वीरे (एक देव) द्वितीया (Accusative) वीरं तृतीया (Instrumental) पंचमी (Ablative) वीरा (अनेक देव) वीरे, वीरा (वीरों को) वीरेहि, वीरेहि (वीरों ने) वीरेहितो (वीरों से) वीराण, वीराणं (वीरों का) वीरेसु, वीरेसुं (वीरों में,वीरों पर) वीरा (हे वीरों !) (वीर को) वीरेण, वीरेणं (वीर ने) वीरा, वीराओ (वीर से) वीरस्स (वीर का) वीरे, वीरंसि, वीरम्मि (वीर में, वीर पर) वीर (हे वीर !) षष्ठी (Genitive) सप्तमी (Locative) संबोधन (Vocative) देव, राम, जिण (जिनदेव), धम्म (धर्म), वाणर (बंदर, वानर), सीह (सिंह), सूरिय (सूर्य), चंद (चंद्र), गय (गज, हाथी), समण (श्रमण), वण्ण (वर्ण, रंग), हत्थ (हाथ), लोग (लोक), मेह (मेघ), आस (अश्व, घोडा), सरीर (शरीर), वग्घ (वाघ), ईसर (ईश्वर), कोव (कोप), आयरिय (आचार्य), कडय (कटक, सैन्य) ये सब अकारान्त (अंत में 'अ' स्वर आनेवाले) पंलिंगी शब्द उपरोक्त 'वीर' शब्द के अनुसार लिखिए । नाम-विभक्ति (Case-declension) (१) प्रथमा विभक्ति : (Nominative) कर्ताकारक (यहाँ वाक्य का 'कर्ता' प्रथमा विभक्ति में है ।) १) किंकरो अडं खणइ । नौकर कुआँ खनता है। २) वाणरा रुक्खेसु वसंति । बंदर वृक्ष पर रहते हैं। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) द्वितीया विभक्ति : (Accusative) कर्मकारक (यहाँ वाक्य का 'कर्म' द्वितीया विभक्ति में है ।) १) भत्तो रामं पूएइ । भक्त राम को पूजता है । २) सीहो मिगे भक्खइ । सिंह मृगों को खाता है । (३) तृतीया विभक्ति : (Instrumental) करणकारक (यहाँ क्रिया का ‘साधन' तृतीया विभक्ति में है ।) १) विज्जा विणएण सोहइ । विद्या विनयेन शोभते । २) सुलसा नेत्तेहिं पासइ । सुलसा नेत्रोंद्वारा देखती है । ४) पंचमी विभक्ति : (Ablative) अपादानकारक (चीज जिस स्थल से दूर जाती है, उस स्थल की विभक्ति पंचमी' है ।) १) जणा सीहाओ बीहंति । लोग सिंह से डरते हैं। २) तित्थयरेहिंतो लोगा धम्मं जाणिंसु । तीर्थंकरों से लोगों ने धर्म जाना । (५) षष्ठी विभक्ति : (Genitive) सम्बन्धकारक (दो व्यक्ति या चीजों का सम्बन्ध' षष्ठी विभक्ति से सूचित होता है ।) १) सिद्धत्थो खत्तिओ समणस्स महावीरस्स जणओ आसि । सिद्धार्थ क्षत्रिय श्रमण महावीर के जनक थे । २) सीलं नराणं भूसणं । शील मनुष्यों का भूषण है । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) सप्तमी विभक्ति : (Locative) अधिकरणकारक (जिस क्षेत्र या स्थल में रहना है, जो चीज आधारभूत है, उसकी ‘सप्तमी' विभक्ति उपयोजित की जाती है ।) १) साविगाए मणं धम्मे/धम्मंसि/धम्ममि रमइ । श्राविका का मन धर्म में रमता है । २) माया पुत्तेसु वीससइ । माता पुत्रों पर विश्वास रखती है । (७) संबोधन विभक्ति : (Vocative) निमंत्रण, संबोधन (किसी को बुलाने के लिए संबोधन' विभक्ति होती है ।) १) निव ! पसन्नो होसु । हे नृप ! प्रसन्न हो जाओ। २) मेहा ! कालेसु वरिसह । हे मेघों ! समयपर बरसो । विभक्ति प्रथमा (Nominative) द्वितीया (Accusative) आकारान्त स्त्री. 'गंगा' शब्द एकवचन गंगा (एक गंगा) गंग तृतीया (गंगा को) गंगाए (गंगा ने) गंगाए, गंगाओ (गंगा से) अनेकवचन गंगा, गंगाओ (अनेक गंगा) गंगा, गंगाओ (गंगाओं को) गंगाहि, गंगाहिं (गंगाओं ने) गंगाहिंतो (गंगाओं से) गंगाण, गंगाणं (गंगाओं का) गंगासु, गंगासुं (गंगाओं में) गंगा, गंगाओ (हे गंगाओं !) (Instrumental) पंचमी (Ablative) षष्ठी (Genitive) सप्तमी (Locative) संबोधन (Vocative) गंगाए (गंगा का) गंगाए (गंगा में) गंगा, गंगे (हे गंगा !) इसी तरह साला (शाला), बाला, पूया (पूजा), देवया (देवता), कन्ना (कन्या), लया (लता), साहा (शाखा), जउणा (जमुना), भज्जा (भार्या, पत्नी), सेणा (सेना), मज्जाया (मर्यादा), नावा, छाया, विज्जा (विद्या), नेहा (स्नेहा), महुरा (मधुरा, मथुरा), किवा (कृपा, दया), पया (प्रजा), भारिया (भार्या, पत्नी), सुसीला (सुशीला) इ. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकारान्त स्त्रीलिंगी शब्द उपरोक्त 'गंगा' शब्द के अनुसार लिखिए । (१) प्रथमा विभक्ति : (Nominative) कर्ताकारक १) गंगा हिमालयाओ निग्गच्छइ । गंगा हिमालय से निकलती है । २) कन्नाओ पाढसालं गच्छंति । कन्याएँ पाठशाला जाती हैं । (२) द्वितीया विभक्ति : (Accusative) कर्मकारक १) पहिया छायं इच्छंति । पथिक छाया की इच्छा करते हैं । २) मालायारो माला/मालाओ गुंफइ । मालाकार (माली) मालाओं को गूंथता है । (३) तृतीया विभक्ति : (Instrumental) करणकारक १) दरिदो जणाणं किवाए जीवइ । दरिद्री लोगों की कृपा से जीता है । २) रुक्खो साहाहिं सोहइ । वृक्ष शाखाओं से शोभता है। (४) पंचमी विभक्ति : (Ablative) अपादानकारक १) लयाए पुप्फाइं निवडंति । लता से फूल गिरते हैं। २) देवयाहिंतो लोगा वराई लहंति । देवताओं से लोग वरों को प्राप्त करते हैं । (५) षष्ठी विभक्ति : (Genitive) संबंधकारक १) जउणाए जलं महुरं । जमुना का पानी मधुर है । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २) नावाणं कडएणं राया जिणइ । नौकाओं के सैन्य से राजा जीता है । (६) सप्तमी विभक्ति : (Locative) अधिकरणकारक १) छत्तो मज्जायाए वट्टेज्जा । छात्र मर्यादा में रहें । २) खगाणं नीडा साहासु सोहंति । पक्षियों के घोंसले शाखाओं पर शोभते हैं । (७) संबोधन विभक्ति : (Vocative) निमंत्रण, संबोधन १) भज्जे ! तुरियं आगच्छसु । भार्ये ! जल्दी आओ। २) कन्ना/कन्नाओ ! अज्झयणं करेह । कन्याओ ! अध्ययन करो । विभक्ति प्रथमा (Nominative) द्वितीया (Accusative) अकारान्त नपुं. 'वण' शब्द एकवचन वणं (एक वन) वण तृतीया (Instrumental) पंचमी (Ablative) षष्ठी (Genitive) सप्तमी (Locative) संबोधन (Vocative) (वन को) वणेण, वणेणं (वन ने) वणा, वणाओ (वन से) वणस्स (वन का) वणे, वणंसि, वणम्मि (वन में, वन पर) वण (हे वन !) अनेकवचन वणाई, वणाणि (अनेक वन) वणाई, वणाणि (वनों को) वणेहि, वणेहिं (वनों ने) वणेहिंतो (वनों से) वणाण, वणाणं (वनों का) वणेसु, वणेसुं (वनों में, वनों पर) वणाई, वणाणि (हे वनों !) इसी तरह पुप्फ (पुष्प), पण्ण (पर्ण, पान), घर, उज्जाण (उद्यान), कम्म (कर्म), सील (शील), पुण्ण (पुण्य), फल, गुण, दाण (दान), बल, मंस (मांस), मज्ज (मद्य), रज्ज (राज्य), पोत्थग (पुस्तक), पाव (पाप), Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुवण्ण (सुवर्ण), नह (नभ, आकाश ), मण (मन), मंदिर इ. अकारान्त नपुंसकलिंगी शब्द उपरोक्त 'वण' शब्द के अनुसार लिखिए । (१) प्रथमा विभक्ति : (Nominative ) कर्ताकारक १) वणं रमणीयं । वन रमणीय है । २) उज्जाणाइं/ उज्जाणाणि नयरस्स हिययाई । उद्यान नगर का हृदय है । (२) द्वितीया विभक्ति : ( Accusative) कर्मकारक १) अग्गी वणं डहइ । अग्नि वन जलाती है । २) ते विविहाइं फलाई आणेंति । वे विविध फल लाते हैं । (३) तृतीया विभक्ति : ( Instrumental) करणकारक १) वणेण विणा किं कट्ठे लहइ ? वन के सिवा क्या काष्ठ मिलेगा ? २) अज्ज पुण्णेहिं मए गुरु दिट्ठो । आज पुण्य से मुझे गुरू दिखाई दिये । (४) पंचमी विभक्ति : ( Ablative ) अपादानकारक १) सो वणाओ आगच्छइ । वह वन से लौटता है । २) वणेहिंतो जाणं बहुलाहो होइ । वनों से लोगों को बहुत लाभ होता है । (५) षष्ठी विभक्ति : ( Genitive) संबंधकारक १) धणस्स चिंताए सो मओ । धन की चिंता से वह मर गया । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २) वणाणं सोहा पेक्खिउं सीया तत्थ गया । वनों की शोभा देखने के लिए सीता वहाँ गयी । (६) सप्तमी विभक्ति : (Locative ) अधिकरणकारक १) व सीहा गज्जति । वन में सिंह गर्जना करते हैं । २) मिगा वणेसु रमंति । मृग वनों में रमते हैं । (७) संबोधन विभक्ति : ( Vocative) निमंत्रण, संबोधन १) पुप्फ ! तुमं जणाणं आणंद देसि । हे पुष्प ! तुम लोगों को आनंद देते हो । २) पण्णाई ! सव्वाणं सीयलं छायं अप्पेह । हे पर्णों ! सबको शीतल छाया प्रदान करो । (ब) क्रियापद के प्रत्यय (Verb - declesion) भाषा में वाक्य बनने के लिए दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है 'क्रियापद' । १) वाक्य में क्रियापद प्रयुक्त करने के लिए प्रथमत: 'काल' देखना पडता है । प्राकृत में तीन मुख्य काल हैं वर्तमानकाल (present tense), भूतकाल (past tense) और भविष्यकाल (future tense) । इसके अतिरिक्त 'आज्ञार्थ' और ‘विध्यर्थ’ भी होते 1 २) क्रिया के रूप प्रयोग करते हुए एकवचन (singular) या अनेकवचन (plural) का उपयोग करना पडता है । ३) क्रिया के रूप हमेशा प्रथमपुरुष (first Person), द्वितीय पुरुष (second Person), या तृतीय पुरुष (third Person) में प्रयुक्त होते हैं । इस पाठ में हम वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यकाल, आज्ञार्थ और विद्यर्थ के प्रत्यय, क्रियापद त वाक्य दे रहे हैं । वाक्य पढते समय क्रिया, वचन तथा पुरुष का विशेष ध्यान रखें । वर्तमानकाल : (Present Tense) जो क्रिया हम अभी कर रहे हैं, उसके लिए वर्तमानकाल का प्रयोग होता है । जैसे कि - 'बालगा महावीरं वंदंति ।' इसका अर्थ हिंदी में हम इस प्रकार लिखेंगे - 'बालक महावीर को वंदन करते हैं ।' Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो क्रिया हम हमेशा करते हैं, उनके लिए भी वर्तमानकाल का प्रयोग होता है । जैसे कि - 'अहं पइदिण भुंजामि ।' इसका अर्थ हिंदी में हम इस प्रकार लिखेंगे - 'मैं प्रतिदिन भोजन करता हूँ।' कालिक सत्य विधानों के लिए भी हम वर्तमानकाल का उपयोग करते हैं । जैसे कि- 'मणुस्सा मरणसीला हवंति ।' (मनुष्य मरणशील होते हैं ।) 'सियालो धुत्तो होइ ।' (सियार धूर्त होता है ।) वर्तमानकाल के प्रत्यय पुरुष एकवचन अनेकवचन प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष अंति सर्वनामसहित वर्तमानकाल के क्रियारूप धातु (क्रियापद) : पुच्छ (पूछना) पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष एकवचन (अहं) पुच्छामि । (तुम) पुच्छसि । (सो) पुच्छइ । अनेकवचन (अम्हे, वयं) पुच्छामो । (तुम्हे) पुच्छह । (ते) पुच्छंति । निम्नलिखित क्रियापद ‘पृच्छ (पूछना)' क्रियापद के समान उपयोजित किये जाते हैं - पास (देखना), गच्छ (जाना), आगच्छ (आना), खण (खनना), खिव (फेंकना), गेण्ह (ग्रहण करना), चिट्ठ (खडे होना), जाण (जानना), धाव (दौडना), पढ (पढना), फुस (स्पर्श करना), भास (बोलना), भण (बोलना), वस (रहना), हण (मारना, हनन करना), वंद (वंदन करना) प्रश्न : निम्नलिखित प्राकृत वाक्यों के क्रियापद, पुरुष और वचन पहचानिए । १) समणो जिणदेवं वंदइ। श्रमण जिनदेव को वंदन करता है । उदा. क्रियापद वंद' - तृतीय पुरुष, एकवचन । २) तुम्हे कूवं खणह । तुम सब कुआँ खन रहे हो । ३) आसो वेगेण धावइ । अश्व वेग से दौडता है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४) लयाओ पुप्फाई पडंति । लताओं में से फूल गिरते हैं । ५) अहं गयाओ पडेमि । मैं हाथी से गिरता हूँ। ६) अम्हे जिणधम्मं जाणामो । हम जिनधर्म को जानते हैं । ७) ते मट्टियाए सुवण्णं गेण्हंति । वे मिट्टी में से सुवर्ण का ग्रहण करते हैं । ८) बालय ! तुमं ओयणं इओ तओ किंखिवसि ? बालक ! तुम ओदन (चावल) इधर उधर क्यों फेंक रहे हो ? ९) तुम्हे देवसमीवं चिट्ठह । तुम सब देव के समीप खडे रहो । १०) छत्ता पाइय भणति । छात्र प्राकृत बोलते हैं । ११) अहं मेहं पासामि । मैं मेघ को देखता हूँ। १२) अम्हे पाढसालं पभाए गच्छामो संझासमए आगच्छामो । हम सुबह पाठशाला जाते हैं संध्यासमय में आते हैं । १३) सो गणियं पढइ । वह गणित पढता है। १४) अंधो हत्थेण वत्थं फुसइ । अंधा हाथ से वस्त्र को स्पर्श करता है । १५) राया किंकराणं उच्चावयं भासइ । राजा नौकरों से अनापशनाप बोलता है । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६) भारहे बहुजणा गामंमि वसंति । भारत में बहुत लोग गाँव में बसते हैं । १७) रायपुरिसो चोरं हणइ । राजपुरुष (सिपाही) चोर को मारता है । प्राकृत में कुछ अकारान्त क्रियापद, 'ए' स्वर जोड के प्रयुक्त किये जाते हैं । जैसे - कर - करेमि । किन क्रियापदों को 'ए' जोडना है, इसके बारे में रूढी ही प्रमाण मानी जाती है । उदाहरण के तौरपर 'कर' के समान होनेवाले क्रियापद नीचे दिये हैं। क्रियापद : कर (करे) (करना) पुरुष एकवचन अनेकवचन प्रथम पुरुष (अहं) करेमि । (अम्हे, वयं) करेमो । द्वितीय पुरुष (तुमं) करेसि । (तुम्हे) करेह । तृतीय पुरुष (सो) करेइ । (ते) करेंति । निम्नलिखित क्रियापद कर (करे) क्रियापद के समान उपयोजित किये जाते हैं - कह (कहना), गण (गणना करना), वण्ण (वर्णन करना), साह (कहना), लज्ज (लज्जित होना), अच्च (अर्चना करना), उड्ड (उडना), चोर (चोरी करना), दंड (दण्डित करना), आहार (आहार करना), निमंत (निमंत्रण करना), पाड (पाडना), मार (मारना), चिंत (चिन्तन करना) प्रश्न : निम्नलिखित प्राकृत वाक्यों का क्रियापद, पुरुष और वचन पहचानिए । १) तुम सव्वया सच्चं कहेह । तुम सर्वदा सच कहते हो । उदा. क्रियापद कह' - द्वितीय पुरुष, एकवचन २) बालियाओ पुप्फाइं गणेति । बालिकाएँ फूलोंकी गिनती करती हैं । ३) समणो महावीरचरियं वण्णेइ । श्रमण महावीरचरित्र का वर्णन करता है। ४) जणणी हियं साहेइ । जननी हित का कथन करती है। ५) अहं दुच्चरियाओ लज्जेमि । मैं दुश्चरित्र से लज्जित होती हूँ । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६) वयं महावीरं अच्चेमो । हम महावीर की अर्चना करते हैं। ७) सुगा पंजराओ उड्डेति । शुक (तोते) पिंजरे से उडते हैं । ८) तक्करा धणं चोरेंति । तस्कर (चोर) धन को चुराते हैं । ९) अहं अकारणं न किमवि दंडेमि । मैं किसे भी विनाकारण दण्डित नहीं करता हूँ १०) तुम्हे हिय मियं च आहारेह । तुम हितकर और मित आहार करते हो । ११) घरिणी अतिहिं निमंतेइ । गहिणी अतिथि को निमंत्रित करती है । १२) मल्लो पडिमल्लं पाडेइ । मल्ल प्रतिमल्ल को पाडता है । १३) जुज्झे वीरा परुप्परं मारेंति । युद्ध में वीर परस्परों को मारते हैं । १४) सो पडिक्कमणे अप्पाणं अवराह चिंतेड । वह प्रतिक्रमण में खुद के अपराधों का चिंतन करता है । भूतकाल (Past-Tense) जो क्रिया घटी हुई है, उसके लिए हम भूतकालिक क्रियापदों का उपयोग करते हैं । इत्था' और 'इंसु' ये भूतकालवाचक प्रत्यय जादा तर अर्धमागधी भाषा में ही पाये जाते हैं । सामान्य प्राकृत में भूतकालिक क्रियापदों के स्थान पर भूतकालिक विशेषण प्रयुक्त करते हैं । अनेकवचन पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष भूतकाल के प्रत्यय एकवचन इत्था इत्था इत्था Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरुष प्रथम पुरुष सर्वनामसहित भूतकाल के क्रियापद क्रियापद : पास (देखना) एकवचन (अहं) पासित्था । (मैंने देखा ।) (तुम) पासित्था । (तूने/तुमने देखा ।) (सा) पासित्था । (उसने देखा ।) द्वितीय पुरुष अनेकवचन (अम्हे) पासिंसु । (हमने देखा ।) (तुम्हे) पासिंसु । (तुमने/सबने देखा ।) (ते) पासिंसु । (उन्होंने देखा ।) तृतीय पुरुष निम्नलिखित प्राकृत वाक्यों का क्रियापद, पुरुष और वचन पहचानिए । १) अहं मोरस्स चित्तं पासित्था । मैंने मोर का चित्र देखा। उदा. क्रियापद 'पास' - प्रथमपुरुष, एकवचन २) अम्हे दुद्धं पीविंसु । हमने दूध पीया । ३) तुम कत्थ उवविसित्था ? तू कहाँ बैठी थी ? ४) तुम्हे किं सिक्खिसु ? तुमने क्या सीखा ? ५) सो रुक्खाओ पडित्था । वह झाड से गिरा । ६) ते वणं गच्छिंसु । वे वन में गये । ७) रावणो तवं करित्था । रावणने तप किया । ८) अम्हे उवस्सए धम्मं सुणिंसु । हमने उपाश्रय में धर्म सुना । ९) रयणं समुद्दम्मि पडित्था । रत्न समुद्र में गिर गया । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविष्यकाल (Future-Tense) जो घटनाएँ आगामी काल में होनेवाली हैं, उसके लिए हम भविष्यकालिक क्रियापदों का उपयोग करते हैं । भविष्यकाल के प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं - एक प्रकार इस्स' प्रत्यय से और दूसरा प्रकार 'इह' प्रत्यय से होता है पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष (१) भविष्यकाल के प्रत्यय एकवचन इस्सामि, इस्सं इस्ससि इस्सइ अनेकवचन इस्सामो इस्सह इस्संति पुरुष प्रथम पुरुष सर्वनामसहित भविष्यकाल के क्रियारूप क्रियापद : भण (बोलना) एकवचन अनेकवचन (अहं) भणिस्सामि । (अहं) भणिस्सं। (अम्हे) भणिस्सामो । (मैं बोलूँगा ।) (हम बोलेंगे ।) (तुम) भणिस्ससि। (तुम्हे) भणिस्सह । (तू बोलेगा । तुम बोलोगे ।) (तुम सब बोलोगे ।) (सो) भणिस्सइ । (ते) भणिस्संति । (वह बोलेगा ।) (वे बोलेंगे ।) द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष पुरुष (२) भविष्यकाल के प्रत्यय एकवचन इहिमि, इहामि इहिसि इहिइ अनेकवचन इहिमो, इहामो प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष इहिह इहिंति पुरुष प्रथम पुरुष सर्वनामसहित भविष्यकाल के क्रियारूप क्रियापद : पाल (पालना) एकवचन अनेकवचन (अहं) पालिहिमि । (अहं) पालिहामि । (अम्हे) पालिहिमो । (अम्हे) पालिहामो । (मैं पालन करूँगा ।) (हम पालन करेंगे ।) (तुम) पालिहिसि । (तुम्हे) पालिहिह । (तू पालन करेगा । तुम पालन करोगे ।) (तुम सब पालन करेंगे ।) (सा) पालिहिइ । (ते) पालिहिंति । (वह पालन करेगी ।) (वे पालन करेंगी ।) द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविष्यकाल में प्रयुक्त करने के लिए कुछ क्रियापद और उनके अर्थ - जंप (बोलना), हस (हँसना ), नच्च ( नाचना ), भुंज (भोजन करना ), तर (तरना), मुंच (छोडना ), दे (देना), हो (होना), खा (खाना), गिल (गिलना), लह ( प्राप्त होना), वरिस (वर्षाव करना), पेक्ख (देखना), विहर (विहार करना), पविस ( प्रवेश करना), हर (हरना, ले जाना), सोह (शोभना), वट्ट (होना), विहूस (विभूषित करना), पयास (प्रकाशित करना), रोव (रोना), छिंद (तोडना ) प्रश्न : निम्नलिखित प्राकृत वाक्यों का क्रियापद, पुरुष और वचन पहचानिए । १) अहं सच्चं जंपिस्सामि । मैं सत्य बोलूँगा । उदा. क्रियापद 'जंप' - प्रथमपुरुष, एकवचन २) नट्टं पेक्खिऊण अम्हे हस्सिस्सामो । नाटक देखकर हम हसेंगे । ३) तुमं मज्झण्हे किं भुंजिस्ससि ? तुम दोपहर में क्या खाओगी ? ४) तुम्हे कल्लं समुदं तरिस्सह । तुम सब कल समुद्र को तरोगे / पार करोगे । ५) असोगो सोगं मुंचिस्सइ । अशोक शोक को छोडेगा । ६) अहं सव्व जीवाणं अभयं देइहिमि । मैं सब जीवों को अभय दूँगा । ७) थेरी भणइ, ‘हे रक्खस ! तुमं मं कल्लं खाइहिसि ।' बूढी बोली, 'हे राक्षस ! तुम मुझे कल खाओगे ।' ८) तुम्हे लहुं लहुं ओयणं गिलिहिह । तुम सब जल्दी जल्दी चावल गिलो । ९) समणो मोक्खं लहिहि । श्रमण मोक्ख प्राप्त करेगा । १०) जलहरा विउलं जलं वरिसिहिंति । मेघ विपुल जल बरसेंगे । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११) अहं कया तव मुहं पेक्खिस्सं ? मैं कब तुम्हारा मुख देखू ? १२) कया वयं बंधणमुक्का होइस्सामो ? कब हम बंधनमुक्त होंगे ? १३) पुण्णेण तुमं सग्गे विहरिस्ससि । पुण्य से तुम स्वर्ग में विहार करोगे । १४) तुम्हे सुहेणं मंदिरं पविसिस्सह । तुम सब सुखपूर्वक मंदिर में प्रवेश करोगे । १५) पवणो तव परिस्समं हरिस्सइ । पवन (हवा) तेरे परिश्रम दूर करेगा । १६) चंद ! तुम गयणे सोहिहिसि । हे चंद्र ! तुम गगन में शोभोगे । १७) तुम्हाणं कालो सुहपुव्वयं वट्टिहिइ । तुम्हारा काल सुखपूर्वक बीतेगा । १८) ऊसवे महिलाओ घरं विहूसिहिति । उत्सव में महिलाएं घर विभूषित करेंगी । १९) अग्गिम - पूण्णिमाए चंदो रत्ती पयासिहिइ । अग्रिम (आनेवाली) पूर्णिमा को चंद्र रात को प्रकाशित करेगा । २०) कट्टहारो कट्टु छिंदिस्सइ । लकडहारा लकडी तोडेगा । 31151Tef (Imperative Mood) आज्ञा देने अथवा हुकूम करने के लिए जिस कालार्थ का प्रयोग किया जाता है उसे आज्ञार्थ कहते हैं । अंग्रेजी में उसे 'Tense' न कहते हुए Mood' कहते हैं । आज्ञा प्राय: सामनेवाले को दी जाती है । इसलिए यहाँ 'द्वितीय पुरुष' का ही प्राधान्य है । सामान्यत: व्यक्ति खुद को आज्ञा नहीं देता । इसलिए प्रायः द्वितीय और तृतीय पुरुष के प्रयोग ही आज्ञार्थ में पाये जाते हैं । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज्ञार्थ के प्रत्यय पुरुष एकवचन अनेकवचन F प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष 4 | 64 -, सु, हि अत् पुरुष आज्ञार्थ धातु (क्रियापद) : गच्छ (जाना) एकवचन अनेकवचन गच्छामु गच्छामो गच्छ, गच्छसु, गच्छाहि गच्छह गच्छउ गच्छंतु प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष पुरुष प्रथम पुरुष सर्वनामसहित आज्ञार्थ के क्रियारूप क्रियापद : भक्ख (खाना) एकवचन अनेकवचन (अहं) भक्खामु । (अम्हे) भक्खामो । (मैं खाऊँ ।) (हम खायें ।) (तुम) भक्ख/भक्खसु/भक्खाहि । (तुम्हे) भक्खह। (तुम खाओ ।) (तुम सब खाओ ।) (सो) भक्खउ । (ते) भक्खंतु । (वह खाये ।) (वे खायें ।) द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष कुछ प्राकृत क्रियापदों के आज्ञार्थी वाक्य १) वय - बोलना । अहं सच्चं वयाम । मैं सच बोलूँ । २) वस - रहना । अम्हे सुहेण वसामो । हम सुखपूर्वक रहें। ३) जिण - जीतना । तुम लोहं जिण/जिणसु/जिणाहि । तुम लोभ को जीतो। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४) आगच्छ - आना । तुम्हे आगच्छ । तुम सब यहाँ आओ । ५) गच्छ - जाना । नेहा तत्थ गच्छउ | नेहा वहाँ जाएँ । ६) भक्ख- खाना । मिलिंदो अरविंदो य भोयणं भुंजंतु । मिलिंद और अरविंद भोजन करें । ७) बोल्ल - बोलना । तुम्हे महुराइं वयणाइं बोल्लह । तुम सब मधुर वचन बोलो । ८) सिक्ख - सीखना । तुमं पाइयं सिक्ख / सिक्खसु / सिक्खाहि । तुम प्राकृत सीखो । ९) उवविस - बैठना । तुमं हेट्ठा उवविस/उवविससु / उवविसाहि । तुम नीचे बैठो । १०) वंद - वंदन करना । तुम्हे महावीरं वंदह । तुम सब महावीर को वंदन करो । ११) कुण - करना । तुम कोहं माकुण/कुणसु / कुहि । तुम क्रोध मत करो । विध्यर्थ (Potential Mood) इच्छा, सूचन, विधि, निमंत्रण, आमंत्रण, प्रार्थना, आशा, संभावना, आशीर्वाद, उपदेश - आदि अर्थों को सूचित करने के लिए विध्यर्थक प्रत्ययों का प्रयोग होता है । आज्ञार्थक और विध्यर्थक दोनों के अर्थों में और प्रयोग में बहुत ही साम्य है । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष एकवचन एज्जा, एज्जामि एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि ए, एज्जा ४) कर - करना । विध्यर्थ के प्रत्यय विध्यर्थ धातु (क्रियापद) : गच्छ (जाना एकवचन गच्छेज्जा, गच्छेज्जामि गच्छेज्जा, गच्छेज्जासि, गच्छेज्जाहि गच्छे, गच्छेज्जा सर्वनामसहित विध्यर्थ के क्रियारूप क्रियापद : भक्ख (खाना) एकवचन (अहं) भक्खेज्जा, भक्खेज्जामि । (मैं खाऊँ ।) १) अहं सयंनिब्भरं होज्जामि / होज्जा । मैं स्वयंनिर्भर होऊँ । २) अम्हे धम्मस्स पहावणं करेज्जाम । हम धर्म की प्रभावना करें । अनेकवचन एज्जाम एज्जाह एज्जा ३) वट्ट - रहना । तुमं विणएण वट्टेजा/वट्टेज्जासि/वट्टेजाहि । तुम को विनय से रहना चाहिए । (तुमं) भक्खेज्जा/भक्खेज्जासि/भक्खेज्जाहि । (तुम खाओगे ।) (सो) भक्खे / भक्खेज्जा । ( वह खाये ।) कुछ प्राकृत क्रियापद (धातु) और उनके विध्यर्थक वाक्य तुम्हे अज्झयणं करेज्जाह । तुम सबको अध्ययन करना चाहिए । अनेकवचन गच्छेज्जाम गच्छेज्जाह गच्छेज्जा अनेकवचन (अम्हे) (हम खायें ।) (तुम्हे) भक्खेज्जाह । (तुम सब खाओगे ।) (ते) भक्खेज्जा । (वे खायें ।) भक्खेज्जाम । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५) वंद - वंदन करना । सीसो आयरियं वंदे । शिष्य आचार्य को वंदन करें । ६) उवविस - बैठना । गिलाणस्स समीवं उवविसे । ग्लान के समीप (नजदीक) बैठें । आय - आचरण करना । सुण्हा विणयपुव्वं आयरेज्जा । बहुओं को विनयपूर्वक आचरण करना चाहिए । ८) कील - क्रीडा करना, खेलना । छत्ता संझासमए कीलेज्जा । विद्यार्थियों को संध्यासमय में खेलना चाहिए । ९) खम क्षमा करना । मम अवराहं खमेज्जा । मेरे अपराधों की क्षमा करो । १०) वस - रहना । सीसो गुरुस सगास वसेज्जा । शिष्य को गुरु के पास रहना चाहिए । ११) आराह - आराधना करना । मुणी सुणाणं आहेज्जा । मुनि को श्रुतज्ञान की आराधना करनी चाहिए | १२) उट्ठ - उठना । सुघरिणी सुप्पहाए उट्ठेज्जा । सुगृहिणी को सुप्रभात में उठना चाहिए । - जीतना । नरो मोणेण कोहं जिणेज्जा । मनुष्य मौन से क्रोध जीतें । १३) जिण Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (क) व्याकरणपाठ : अभ्यासविषयक सूचनाएँ * परीक्षा में व्याकरणपाठ पर आधारित प्रश्न, लगभग 10-12 गुणों के होंगे। * नामविभक्ति पर आधारित प्रश्न, अकारान्त पुल्लिंगी, आकारान्त स्त्रीलिंगी और अकारान्त नपुंसकलिंगी शब्दों पर आधारित होंगे। * क्रियापद पर आधारित प्रश्न, वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यकाल, आज्ञार्थ एवं विध्यर्थ पर आधारित होंगे। * इस व्याकरणपाठ के अंतर्गत आये हुए प्राकृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद नहीं पूछा जायेगा / हिंदी वाक्यों क प्राकृत रूपांतर भी नहीं पूछा जायेगा / नमूने के तौरपर दो प्रकार के प्रश्न दिये हैं / प्रश्न के इस ढाँचे को सामने रखकर विद्यार्थी तैयारी करें। अ) निम्नलिखित शब्दों में निहित मूल शब्द, उसकी विभक्ति एवं वचन लिखिए / उदा. 1) वीरेण - मूल शब्द 'वीर', तृतीया विभक्ति, एकवचन 2) वीरे - मूल शब्द 'वीर', प्रथमा एकवचन, द्वितीया अनेकवचन, सप्तमी एकवचन 3) गंगाए - मूल शब्द 'गंगा', तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी एकवचन 4) गंगे - मूल शब्द 'गंगा', संबोधन एकवचन 5) वणाई - मूल शब्द ‘वण', प्रथमा, द्वितीया, संबोधन अनेकवचन 6) वणेहिंतो - मूल शब्द ‘वण', पंचमी अनेकवचन जिणो, वाणरं, भज्जाओ, फलेहिं, वण्णाओ, बलेहितो, देवयाए, पोत्थगे, नावासुं, सीहेण, सालं, सुवण्ण, समणेहिं, नेहा, दाणा, मंदिराई, सेणाणं, लोगस्स, गुणेण, पूर्य, वीराणं, सरीरेसु, पुप्फ, आसम्मि, कन्नाहिंसाहाहिंतो, रज्जेसु, मज्जायाए, मज्जस्स, हत्थेहिंतो, ईसर, पण्णाई, महुराओ, सीलेण, गंगा - इन शब्दों का विवरण उपरोक्त प्रकार से लिखिए / (ब) निम्नलिखित क्रियापदसमूह से वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यकाल, आज्ञार्थ और विध्यर्थ के क्रियापद अलग-अलग कीजिए / पुच्छामि, कुण, पासित्था, करेज्जाम, मुंचिस्सइ, जिणसु, गच्छिसु, उद्वेज्जा, जाणामो, वरिसिहिंति, वंदे, हणइ, तरिस्सह, होज्जा, भुजंतु, सिक्खिंसु, करेज्जाह, करेंति, पेक्खिस्सं, वंदइ, वसेज्जा, बोल्लह, उवविसे, भति, पालिहिमि, रोविसिहिह, वसामो, खमेज्जा, साहेइ, गच्छेज्जामि, गच्छामो, वट्टेज्जासि, आहारेह, आराहेज्जा, खणह, जंपिस्सामि, वट्टेजाहि / **********