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४. व्याकरण-पाठ (प्राथमिक परिचय)
'जैनॉलॉजी प्रवेश' पाठ्यक्रम के प्रथमा से पंचमी तक के किताबों में हमने कुछ प्राकृत वाक्य सीखें और उके अर्थ भी ध्यान में रखने का प्रयत्न किया । जैनॉलॉजी परिचय' पाठ्यक्रम में हम प्राकृत के व्याकरणसंबंधी अधिक जानकारी लेंगे ताकि भविष्य में जब कभी आगमग्रंथ पढने का मौका मिलें तब उनका अर्थ समझने में आसानी होगी
'प्राकृत' शब्द का अर्थ है सहज, स्वाभाविक बोलचाल की भाषा । भ. महावीर ने अपने उपदेश संस्कृत भाषा में नहीं दिये । सब समाज को समझने के लिए उन्होंने बोलीभाषा अपनायी । भ. महावीर के उपदेश 'अर्धमागधी' नाम की भाषा में थे । उस समय वह भाषा समझने में सुलभ थी । उसका व्याकरण भी संस्कृत भाषा जैसा जटिल नहं था । जैन आचार्यों ने कई सदियोंतक प्राकृत भाषा में ग्रंथ लिखे । प्राकृत भाषा एक नहीं थी । प्रदेश के असार वे अनेक थी । आज भी हम हिंदी, मराठी, मारवाडी, गुजराती, राजस्थानी, बांगला आदि भाषाएँ बोलते हैं, वे आधुनिक प्राकृत भाषाएँ ही हैं ।
(अ) नाम - विभक्ति (Case-declension) प्राकृत वाक्यों में मुख्यत: दो घटक होते हैं - नाम (noun) और क्रियापद (धातु)(verb) । नामों का वाक्य में उपयोग करने के लिए उसे कुछ प्रत्यय लगाने पड़ते हैं । उसे 'विभक्ति' (Case-declension) कहते हैं । प्राकृत में सामान्यत: सात विभक्तियाँ हैं - प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, संबोधन । प्राकृत में सामान्यत: चतर्थी विभक्ति के प्रत्यय नहीं पाये जाते । चतुर्थी के बदले षष्ठी विभक्ति के रूप उपयोग में लाते हैं । हर एक विभक्ति का अर्थ दूसरी विभक्ति से अलग होता है । इसलिए कि हमारे मन के यथार्थ भाव हम दूसरे व्यक्तितक पहुँचा सकते हैं।
हर एक नाम के दो वचन होते हैं - एकवचन (singular) और अनेकवचन (बहुवचन) (plural) प्राकृत भाषा में संस्कृत या मराठी की तरह तीन लिंग (gender) होते हैं - पुंलिंग (masculine), स्त्रीलिंग (feminine), नपुंसकलिंग (neutor) । हिंदी में दो लिंग होते हैं - पंलिंग और स्त्रीलिंग ।