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DAANAADARAM
In
जैन शिलोका संग्रह पुस्तक
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श्रो पुस्तक जैन धर्मी श्रावक लोकांने जणवा वाचवाने अर्थे योग्यजाणीने
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नाना दादाजी गुंड इणने. " सौजन्यभित्र " छापायंत्रमांह छपायोछे
संवत १९४७ ओ पुस्तक पुना पेठ नानाकी आठे भाई भगवानदासजी केशर चंदजी नाहारका दुकान उपर मीलसी. किंमत पांच थाना.
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४(30
॥ अथ शिलोका संग्रह प्रारंनः॥
*** * -- ॥ अथ रिखब देवजीको शिलोको लिख्यते ॥
सरसति माता द्यो मुज वाणी, समरूं जिन शासन वरदानी वाणी ॥ नानिराया ने मरुदे वा राणी , कुंखें नपना केवल नाणी ॥१॥च वदे सुपनमां रात विहाणी, बीजे शास्त्रे तो सब ली वखाणी ॥मेंतो संपें कीयोडे जाणी, हिवे वरदीओ माता ब्रम्हाणी ॥२॥पूरे महिने बा लक जायो, बपन्न कुमारी मिलीने गायो ॥ चो शठ इंद्रादिक ओबवावे, मेरु जइने नीरें न्ह घरावे ॥३॥ वलतो मावित्रे अोबव कीधो, ना म ऋषन कुंअर दीधो॥ माता धवरावे नवराके गावे, मोटेरा हुआ मेवा खयरावे ॥४॥श्राप 0 इतलानां नाम न आवे, कोशं विचारी ते न ली नावे॥घेवर जिलेबी लाडु लाखीणा, पेंडाप तासां फल फलतां फेणा ॥ ५॥ रूडा दहिंथरां देवगरां थाली, माहे मरकीने सेव सुंघाली ॥सा करनो शीरो लापशी तरकारी, मरुदेवा माता पीरशे दशवारी॥ ६ ॥ मातायें बालकनं मन
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न लाधुं, बेटो रीशाणो थोडुंशुं खाधुं ॥ गंडी ए ठुने अलगो जइ बेठो, माता मन मांहे संदेह पेठो ॥७॥ मीठे वचनें करी माता मनावे, ए टले आकाशें इंद्राणी पावे ॥ ऋषन रीशाणो
आवो मनावो, अपणे नाचिने गुण गीत गावो ॥८॥ आदीश्वर पागल इंद्राणी आवे, नवर स नाटकनां बाजा बजावे ॥ अहो आडंबर ना इनाइ, धन धन सुकृत तेहनी कमाइ ॥९॥ नाटके नानडिअो खशाल कीधो, एके इंद्राणी ये जळगें लीधोबीजी मिलीने बोकलो दीधो, त्री जी कहे इम | कधिो ॥ १०॥ पुढे प्रनु केम रीशाणो कीधो, ऋषन मनावी माताने दीधो॥ मरुदेवा पूजे केम रीशाणा आइ, शाक सघलां मोमां केम लाइ ॥ ११॥ पिरस्या पापड नजी
आंने नाजी, शाक बनाव्या चतुराइ जाजी का कडी कंकोमा कारेलां केला, काची केरीने करवंदां नेलां॥१२॥ कोलां कालिंगा करपटा नेलां, बा फ्यां बत्रीशे शाक शमला ॥ शॉक पाक ते सघलां दीधां, आपें इंद्राणीयें हाथ शुं कीधां॥ ॥ १३ ॥ जुगलिया त्यारे कांइ न जाणे,सुर छ
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म पासेंथी मांगीनें आले ॥ खावे गावे नें कांइ न कमावे, जाजुं मीवेनें सदगतियें जावें ॥ १४ ॥
ठीने आदीश्वर पना जाणी, सौधर्म इंद्रे अ वधे तव जाणी ॥ नाभिराजानें अगले जइ, जु गतीयें जइ वातज कइ ॥ १५ ॥ ऋषनने जइ राज तुमें थापो, पाये लागीने पदवीज आपो॥ जुगलिया मिलिया महोत्सव करवा, ऋपन बे सारी गया नीर भरवा ॥ १६ ॥ अठीने इंवें मि ली कामन कीधुं, वत्र चामर ने सिंहासन दीधुं ॥ जगमग ज्योतबे पीला पीतांबर, माला मुरकी नें द्योतक खंबर ॥ १७ ॥ वनिता वासाने गढ कोट कीधो, पेहेलुं राज तो ऋषनने दीधो ॥वी स पूरव लख कुंअर रहिया, वलता ऋषभ रा जन कहिया ॥ १८ ॥ सुमंगला सार्थे विवाह की धो, सुनंदा दोलो आणीने दीधो ॥ परणी प नोती युगलियें जाइ, जरत ब्राह्मीने अठाएं जा इ ॥ १९ ॥ बीजी बाहुबल सुंदरी बेटी, जिन जु गलिये ते रीत मेटी ॥ त्रेशठ पूरव लख राजमें वह्या, पुत्रोने देश वेंचीने लह्या ॥ २० ॥ दान दे इने संजम लीधो, बहुली देश में विहार कीधो ॥
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नोला जुगलिया नेदन जाणे, सोनुं रुपूं लेइ देवाने आणे ॥ २१ ॥ जनुं अन्न पाणी कोइ न यापे, कष्टें अंतरादिक कर्मने कापे ॥ संजमि या साथै फल फूल खाये, पोतें गजपुरमां गोच री जाये ॥ २२ ॥ श्रेयांस जाती स्मरणज पायो, तिसमे नेट इ रस लायो || पहेलुं पा रां तो प्रभुने कराव्यं, पसली मांहे इकु रस वोहोराव्यं ॥ २३ ॥ प्रथम प्रभु श्रेयांसने तूठा || साठी बारे कोड सोनैया वूठा । त्यांथी पण चा ल्या आदेश नळी, देशमां केहवराव्यं श्रेयांसें तूठी ॥ २४ ॥ ति शिल्लाने उद्याने याया, सांजली बाहुबल त्याहांथी सिधाव्या || परनातें बेटो वांदवाने जाय, जूए घणुं पण दरशन न थाय ॥ २५ ॥ कानें अंगुलि देइ तेसे साद की धो, तुरके अद्यापि पंथज लीधो ॥ श्रदिश्वर पूं रम ताल में आया, कर्म खनावी केवल पाया ॥ ॥ २६ ॥ चोमुख बेठाने वाजित्र वाजे, तेल स मे जरत पाट वधाये ॥ चक्र उपनुं नवनिधि पा इ, बेटा हा ल्यो दीक्षा नाइ ॥ २७ ॥ बाहु 'बेल टुके तो टेक जणाइ, संजम लीधो तो तिप
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सिद्धि पाइ ॥ पुत्र वियोगें मरुदेवा माता. अांखें पाडलने वहे आशाता ॥ २८॥नरतने कहे वं दण हालो, एकवार देख तो ऋषन वाल्हो ॥ कटकनी कोडी ने नरतनी साथी, मरूदेवा माता बेठी नेहाथी॥२९॥पुरिम तालने पांखतीयें आया, वाजाना शब्द काने सुनाया ॥ मरुदेवा पुडे नरत राजाने, बेटा वाजां ते बाजे कीहां कने ॥३०॥तमे ऋषननी रिद्धि नजाणी, श्रेतो हुआ
केवल नाणी, सेवे सुरनर इंद्र इंद्राणी, बारे परखदानीमें रिद्धी जाणी ॥३१॥बेठक बावाने ती ण गढ थाय, रूपे सोनेने रत्नें जडाय ॥ कालीज रूखा पोल पताका, धर्म चक्कर फिरे खटका ॥ ॥ ३२ ॥ मणिमय तोरण अति घणुं दीपे, क ल्प दृद ते सुवर्णने जीपे ॥ आठ पुष्करिणी इ ति निवारे, पाये लागे परखदा बारे ॥ ३३॥ कांटा उद्याने कमल रचाय, वाणी सांजलतां वि खवाद जाय ॥इम सनिली मरुदेवा माता, प्रां ख पाडलने पामे ने शाता ॥ ३४ ॥ मोहनी मू कीने मन पागे लीधो, केवल पामीने सिद्धिवा स लीधो ॥ नरत आदेश्वर आगल जाय, रि
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दि देखीने रलियायत थाय ॥ ३५॥ प्रनने पूरे वनितानो वासी, ए रिद्धि इणपरे रहेशी के जा शी॥ वलता तीर्थकर तेवीश थाशे, चोवीशमा ते मरीची थाशे ॥ ३६॥ तुम सरखा चक्रवर्ति बारे, वासुदेव प्रतिवासुदेव अठारे ॥ नव बलन द्र ने वेशठ हुआ, बीजे शास्त्रे संबंध जूजुआ। ॥३७॥पदवि वेशठने सरीर साठ, माता वेपन ने जीव जगुणसाठ ॥ बाप एकावन सहु कोइ जाणे, मूरख मन मांहे संदेह आणे ॥ ३८॥म रीचि प्रमुखनो संबंध कह्यो, चक्री सांनली हे रान थयो॥ वाप बेटाने वंदण जाय, अहंकारें नीच गोत्र बंधाय ॥ ३९ ॥ वांदी पूजीने नरत जाय, संघ काव्यानो रंग थाय ॥ शेजा के रो संघ चलाजं, धर्म ऋपननो बहुलो हलाउं॥ ॥४०॥ ताणी तंबने तैय्यार कीधा, मुहूर्त जो इने मेलाणा दीधा ॥ बए खंममा फेरी सहराई, शत्रुजय यात्रा आवारे नाई ॥४१॥ देशी पर देशी अति घणा मिलिया, साहमी सघलाए सं घमां निलिया ॥ पुत्र पोतरा कोड सवाइ, पांच शेनी नित्य आवे वधाइ ॥४२॥ लाख चोरा
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शी घोडाने हाथी, राजा बत्तीस हजार सुं सा थी॥ प्राइअो आडंबर अधिक दीवाने, वाणि त्र नि?प सरणाइ वाजे ॥४३ ॥ आप ऐराव ण असवार गजें, मेघामंबर बत्र बिराजे ॥ला ख चोराशी रथ जोतरिया,पायक बन्नकोड पर वरिया ॥४४॥ पालीताणे ते संघपति श्रा वे, गिरि देखीने मन सुख पावे ॥ सोना रुपाने फूलडे वधावे, डुंगर देखीने नावना नावे ॥ ४५ ॥ संघ सघलोही चढीओ श-जे, पहलो रायण रूख तणा पगलाने पूजे ॥ चक्री जोइने हुकम दीधो, पगलां पागथी ए प्रासाद कीधो ॥४६॥ रूपानी रांगने सोनाना पाया, मणिमय देवल नवां निपायां ॥ धवलां रतन म य बिंब नरावे, प्रतिष्ठा पुंडरिकने हाथे करवो ॥४७॥ प्रतिमा पबासण प्रवेश कीधो, ख जीनो खरचीने बहु जश लीधो ॥ पुंडरीकने पू
नरत राजा, शेवंजा उपर तीरथ जीहांजां। ॥४८॥ नाम कहोने विधि बतावो, प्रददि णा देइने संघ साथे प्रावो ॥ सूरज कुंडमें स्ना नज कीजें, मुंगरि नीम कुंमें नरीजें ॥४९॥
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चेलणा तलाइए विसामो लीजें, श्रादश्विर पो लें उंचा चढीनें ॥ मरुदेवा टंक मां हे प्रावीजें, चोखा खाणथी बे चार लीजें ॥ ५० ॥ जंचा अदनतने पाये लागीजे, 'मोद बारीने पो लें पेशीजें ॥ केशर घशीने पूजा करीजें, सकृ त फलना अम जश लीजें ॥ ५१ ॥ सुर न र विद्याधर चक्रवर्ति राणी, प्रतिमाने पूजे जल ट आणी ॥ अर्चे चर्चे ने गुण गीत गाय, खेल खेलेने खुशियालथाय ॥५२॥ इणि विधि जात्रा करी घरायो, चक्री मनमां आंनदपायो॥ पा लीनी पाखती पोरवाड चावो, नाम नगोने गाम हिमावो ॥५३॥पंडित शांति विमलें चारित्र दी धो, पग श्री पज्ये पन्यास कीधो॥ धर्मनो ऊ द्यम बहुलो तिहां थाय, पाप कर्मते दूर पलाय ॥५४॥ तपगड नायक श्रीविजयप्रन सूरी, गिरू
ओ गड नायक पुण्याइ पूरी॥कहे विनीत विमल कर जोडी, ए नणतां आवे संपत्ति कोडी॥ ५५॥ ॥ अथ साळनद्र शाहको शिलोका लिख्यते ॥ __सरसति माता करीने पसाऊं, पासजीकराप्र णमुं हुं पाऊ ॥ शालिनद्र शाहनो कहुं शलोको,
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लान जाणाने सांनलजो लोको ॥ १॥ नगरी रा जगृही श्रेणीक राजा, मगध देशनो एक महारा जागरूड़ी तेहने के चेलणा राणी,जगमा जेहनी कीरति जाणी॥२॥तेह नगरीमा दामें वे ताजो, शेठ गाना माहोटो मलाजो ॥ नद्रा नाम नारिया तेहने, रतां शीलें को जीतें न जेहने॥३॥ देइ मुनिवरने खीरनु दान, संगम गोवालो नाग्य निधान ॥ प्रावी नद्रानी कुखें अवतरि यो, जाणे मुक्ताफल बी संचरियो ॥४॥ पूर्ण मासे प्रसव्यो ते पुत्र, सघठं शोनाव्युं घ रनुं सूत्र ॥ अनेक घरनां अख्याणां श्रावे, वा रु मोतीए सहु वधावे ॥५॥ थोकै थोके तिहां नाटक थाय, माता हियामां हरख नमाय ॥ पि ता आपे तिहां लाख पसाय, वाचक जनना दा रिद्र जाय ॥६॥ करी श्रोउच शालिकुमार, जनके नाम तिहां धरयुं जयकार ॥ दिन दिन चढते वेशे ते दी, रुपे जे रतीना नाथने जींपे ॥७॥ बा परणावी बत्तीस बाला, आ संज म लेइ नजमाला पोहोतो स्वर्गमा पुण्य पसा ये, अवधि प्रयुंजी जोतां नगवे ॥ ८ ॥ पेवी
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पुत्रने प्रे जरायो, स्नेह पूर्वनो वध्यो न समा यो॥ मोहनो बांध्यो ने मानने मेटी, पिता प ठावी तेतीस पेटी ॥९॥ जोइये जेह जेह जो ग सजाइ. लेतो मोकले सुरते सदाइ ॥ मेवा मीठाइ माणिक मोती, एक एकथी अधिक उ द्योती ॥ १० ॥ नित्य नित्य नवला नेहें ते पूरे, हेते करीने रहे हजूरे ॥ भोपे मंदिर कुंनी पर वालें, चिखलमां कस्तुरी बहे जिहां खालें॥११॥ नूपण निर्माल्ये नरायो कवो. युगति वैनवनी नवली ए जूयो।। नोगी शालनद्र सरिखो नूपाटे, नर जोतांशं नाव को दृष्टें ॥१२ ताजी ठ कुराइ जाणीने तेहवे, रत्ने कंबलना वेपारी एहवे ॥श्रेणीक राजाने दरबार श्राव्या, फेरो पड्यो ने कांइ नफाव्या ॥ १३ ॥ सघले शहरे ते घर घर फिरिया, कंबल कोणे ते हा न धरिया ॥र त्ल कंबल शोले ते लीये, नद्रा वहुशेने वेंचीने दीए ॥ १४॥ वीश लाख सोनैया वारु, दीधी गिणने तेहने दीदारु ॥ लेइ सोनैया वेपारी व लिया, मनना मनोरथ तेहना फलिया ॥ १५॥ चेनगा राणीनी चिंता जाणीने, तेडी व्यापारी
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कहे ताणीने॥करी संपाडा कंबल काजें, श्रेणिक राजा नरी समाजै ॥ १६॥ नृपने व्यापारी कहे शिरनामी, शाने संपाडा करोगे स्वामी ॥ कंबल सोले नद्रायें लीधी, वेगें वीश लाख दी नार दीधी ॥ १७॥ मनमां विचारवं श्रेणिक महाराजे, वाणीये लीधा व्यापार काजें ॥ एम चिंतिने एक मंगावे, खाले नाख्योते खबरज पा वे ॥ १८॥ वात मेहेलमां तेह बंचाणी, कहे राजाने चेलणा राणी॥ इहां तेडी ते वणिक अन्न प, जाइये कहवा तहन रूप॥१९॥ तरत म हाराजा तेहने तेडावे, नेट लेइने नद्रा तिहां आवे ॥ नद्रा आवीने नूपने नाखे, स्वामी सां नलो राणीनी साखे ॥ २० ॥ घणु सुहाला शा लिकुमार, हयं थायें एकाश हजार ॥ न लहे रात ने दिवस नर, किहां जग किहां प्राथमें सू र ॥२१॥ निपट नाजुक तेह नानडीओ, क्यारे केहनी नजरें न पडीयो ॥ ते माटे तुमे लाज वधारो. प्रनुजी हमारे मंदिर पधारो।। ॥ २२॥ पूरे मावित्र गेरुनां लाड, स्वामी ते मां शो पाड सपाम ॥ इम सुणिने श्रेणिकरया,
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प्रधान साहामुं जोयुं ते ठाय ॥ २३ ॥ अजय कुमार तव कहे एम, प्रभु तम घरे आवशे प्रेम ॥ नद्रा नूपने पाय लागीने, सात दिवसनी अ वध मांगीने ॥ २४ ॥ शीख लेइने नद्रा सिधा वी, रूमी मेहेलनी रचना रचावी ॥ परिकर ले इने नृप मंनसार, पहोता शालिनद्र शेठने वा र || २५ || वेगें आगलथी चाल्या वधान, ख री नांखे जइ खबर गान || जोपें जिमाडी ह रख उपाइ, वारू तेहने दीधी वधाइ ॥ २६ ॥ मेहेलनी रचना जोतां महाराव, इचरज पां मीने मनशुं कुलाय ॥ अहो हो हंशुं अ मरापुर यायो, खांतियें जल्योने नेदन पायो ॥ ॥ २७ ॥ जिम तिम करीने बीजी जूइ जाय, त्रिजे माले तो दिग मूड थाय ॥ जोये नचुंते नगणने जोडी, जाणे के नग्या सूरज कोडी ॥ ॥ २८ ॥ सहु साथने बेसाडी तिहां, नद्रा जइ नाखे पुत्र बे जहां ॥ श्रेणिक आव्या वे मेहे ल मकारी, वेगें तिद्वां यावो तजीने नारी ॥ ॥ २९ ॥ गेलें गुमानी कहे ते गाजी, मुजने तु मे शुं पुगे वो माजी ॥ अधिक लेइने वखारें
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नरो, लाने लोने वली दीयो ने वरो ॥ ३० ॥ तेवार माता कहे न लहे तुं टाणु, सुतजी श्रे णिक नहीं किरियाएं॥मगध देशनो मोहोटो डे राय, श्राण एहनी लोपी न जाय॥ ३१ ॥ एह चं सुणीने कुमर अालोचे, सांसें पड्यो ने मन मां हे शोच ॥ माहरे माथे पण जो महाराजा, तजशुं तो सही नोग ए ताजा ॥ ३२॥ एम चिं तिने मुजरे ते प्रायो, नृपने नमीने मेहेल सि धायो । नोजन करीने श्रेणिक नूप, क्रोमो घ हेणानो जोइने कूप ॥ ३३॥ मान गालीने मं दिर गयो, शेठ संजमनो रागीते थयो ॥ नित्य एकेकी परिहरी नारी, प्रेमदा सासुने जइ पुका री ॥ ३४॥ मानि महिलाना सुणी विलाप, जो रे तेणे तिहां दीधा जबाब ॥ रागें रमणीने रेख न खलीयो, जो जो धन्नो हिवे केइ परें मिलीयो ॥ ३५॥ नामें सुनद्रा धन्ना घरे जाणु, शालि नद्रनी बेन वखाणं ॥ वेणी स्वामीनी समारे सा ही, तेणे अवसरे सांगरयो नाइ ॥ ३६॥ आ खें आंसुडां अाव्यां ते सांसे, पड्यां विबूटी पी जने वांमे ॥ धन्नो देखीने पूरे ते धीर. नयणे
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विछूटा कहो केम नीर ॥ ३७॥दीसे आज तुं घणी दिलगीर, शालिनद्र सरखो ताहारे ने वीर ॥ वनिता अाठमां मुजने तुं वहाली, चोफेर प्रां सुनी धारो किम चाली ॥ ३८॥ वलती बोली ते मेली नीसासो, तुमे सांनलो एक तमासो॥ श्राव्यो श्रेणिक तिहांथी निरधारी, बंधव तजे बे एकेकी नारी ॥ ३९॥ बत्रीस दहामे वत्रीशे तजशी, परी साधना पंथने नजशी लोप करशे ते सांनरी वेण, आंख्यो नराणी अांसुयें तेण॥ ॥४०॥ धन्नो बोले तक साहसधीर, ताहरे शा लिनद्र एकज वीर ॥ तेणे खर खरो ए नहीं खो टो. पण तुज बंधव कायर महोटो॥ ४१॥ नै रख जांपतो खसती शी नरवी, लेवी दीदा तो ढील न करवी ॥ एम सीने अबला ते जपे, स्वामी कायर ते वाणीये कंपे ॥ ४२ ॥ पण तु मे तो सूरापूरा गे, पग रखे हिवे मांमोजी पागे ॥कामिनी तजवानो कहोगे जो ठाठ, एक वार तो तज़ोने पाठ॥४३॥ स्वामी संजम नी वात ने सोहेली, दुकर आदरतां खरी ने दोहेली ॥ शीख देवाने सहु सऊ थाय, तुमने
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चंटुं जो त्रीया तजाय ॥४४॥ मारे नाइनु ताणी तें पासुं, हलयो पाडवा कीधुं जो हांग ॥ तोमे अाठे ने मेली उलाली, वचन म कहेमो कामिनी वाहाली ॥४५॥ पीनजी हसता में एहवं ए ना ख्यं,तुमे हियामां गांठीने राख्यं ॥दिल खेंचीने व्ह न दीजें, अबला जातिनो अंत न लीजें ॥ ॥४६॥ तरुणी हसतां शुं तुमे तो का, पण अमे तो साचं सहा ॥ साची बेहेन तुं शालि भद्र केरी, फोकट वचन म कहेसो हिवे फेरी ॥ ॥४७॥ संजम लेवाने ते सज थइ, धन्नो शा लिनद्र बोलाव्यो जइ ॥ उठ बालसुं हुं थयो श्रागें, महावीर पासें जइ महाव्रत मांगें ॥ ॥४८॥ धन्नो शालिनद्र संजम धारी, थया वि पयनी वासना वारी॥नद्रा पुत्रने वोहोरावी रली या, वहुयर लेइने मंदिर वलियां ॥४९॥ वीर साथे ते देश विदेशे, विचरे वैरागी साधु सुवे ॥ तप करीने दुर्बल तने, बारे वरपने अंते ते बन्ने ॥ ५० ॥आव्या राजगृही नयरी ऊद्याने, मास उपवासी वधते वाने ॥आहारने काजें वी र आदेसें, पहोता नद्राने तेह निवेशे ॥५१॥
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प्रांगण श्राव्या पण लख्या नाही, ततदाता पाग वलीने उगहीं ॥ बीजी वारना पहोता ते बारें, तो पण केणे न लख्या नारें ॥ ५२ ॥ पाग वलीने वहे वाटें, मिली महीयारी माथे लेइ ते माटें । दहीं वोहोरीने तेहने हाथे, मुनिक र विमासे ते मन साथें ॥५३॥वचन वीरनुं अ लिक नथाय, जोत्रा जगती फेरी मंडाया|महारी माताने वाऊ पी जाणो, आज मिले ने एह उखाणो ॥जिननी पासें जइ पूजे ते जेहवे, वीरें आगलथी बोलाव्या तेहवे ॥ मुणो शालिनद्र साधु तुमारी, मात पूरवनी एह महीयारी॥५५॥एवं सांजलतां श्राव्यो वैराग,अणसालेवानो थयो तिहां राग।। गिरि वैनारे गुरूने आदेशे, लेइ अगसरा पाले विशेषे॥५६॥श्रावी नद्रा तिहां अांसूडांकरती, विध विध नांतिना विलाप करती ॥ साथे ली धीरे वहुयर सघली, दुःखें टली तेहनी डगली ॥ ५७ ॥ शिल्ला ऊपरें देखी संथारो, नयणे वि बूटी नीरनी धारो॥नद्रा नाखेडे पुत्र हुं नंडी हिये शूनीने दुःखनी हुंडी ॥ ५८॥ सुत पेटर्नु पापणीयें सही, प्रांगण आव्यो पण लेख्यो
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ܚܕ
नहीं ॥ हा हा मुजने ए पड्यो वरांसो, सारो अवतार रहेशे ए सांसो ॥ ५९ ॥ हाहा हाथे में आहार न दीधो, आव्यो अवसर अफलज कीधो ॥ नद्रा पुत्रने एवं त्यां नाखें, काई वीसा या अवगुण पाखें ॥ ६० ॥ तुज विना तो सुना यावास, अमने थायवे घडी बमास ॥ हंसी बो ले जो वचन विचार, मने सही तो थाये करा र ॥ ६१ ॥ माता जाणीने जो जो साहमुं, पुत्र तेवारे हूं संतोष पामुं ॥ शालिनद्रने धन्नो वारे बे, तो आपने पापें नरेवे ॥ ६२ ॥ साहमुं जोशो तो अवतार करशो, पडशो फेदमां पाग जो फिरशो || दिलशुं माताने दिलगीर देखी, साधु धन्नानी शिख नवेखी ॥ ६३ ॥ जोयुं शा लिन आख उघाडी, त्यारें रलीयायत थईने मां डी ॥ अंशुक वडे ते सुडां लोहोती, बंदी वहु परशुं मंदिर पहोती ॥ ६४ ॥ धन्नो पाधरो मुग तें गयो, एक अवतारी शालिनद्र थयो । पहो तो सर्वार्थ सिद्ध विमाने, सेवक स्वामी प नही जे थाने ॥ ६५ ॥ संवत सतराशें सितरे वरशें, मिंगसर शुदी तेरशें हरपें । उदयरत्न कहे
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भाद्रजमाहे,एहशिलोको गायो ऊबाहे॥६६॥ अथ श्रीनेमिनाथ जीको शिलोको लिख्यते
॥सिद्धि बुद्धि दाता ब्रह्मानी बेटी, बाल कुंभारी विद्यानी पेटी॥ हंसवाहनी जगमां वि ख्याता, अदर आपोने सरसती माता ॥१॥ नेमनी केरो केशुं शिलोको, एक मनथी सोनल जो लोको ॥ जंबुद्वीपना नरतमां जाएं, नगर सौरीपुर सरग समाj॥२॥ चवुटा चोराशी बारे दरवाजा, राज्य करे तिहां यदुवंशी राजा॥ समुद्र विजयघर शेवादेवी राणी, शीयले सीताने रूपें इंद्राणी ॥३॥ तेह तणी जे कुखें अवतरी था, सहस अठोत्तर लदाणेनरिया ॥ खारो खा टोने मीठो जे आहार, गर्नने हेते कीधो परिहा र ॥४॥ घोर घटाए जलधर गाजे, सजल लीलांबर पुहवी बिराजे ॥ वादल दलमांहे वीज जबूके, दणदण अंतरमेह टवूके ॥५॥ पूरण नदीये आव्याने पूर, पूरण पुहवी पसरयो अंकूर ॥ ऋतु मनोहर दादुर टहके, नरयां सरोवर लेहेरे ते लहके ॥६॥ ब्बी हरियांनी
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अजब बीली, नीले आनरणे धरती रंगी ली ॥ राग मल्हारनी ऋतु नलेरी, अजुश्रा ली पांचम श्रावणकेरी ॥७॥ पूरण पसरयो व पकाल, पूरण पुहवी पसरयो सुगाल ॥ मध्य रातने पूरण मासे, नेमजी जनम्या राज श्रावा सें ॥८॥ चोशठ इंद्रने उपन्न कुमारी, श्रोचव करीने गया निज ठारी ॥थयो परनात रात वि हाई, दासीयें जईने दीधी वधाई ॥९॥ दूर ते कीधुं दासी आचरण, अनेक प्राप्यां वस्त्र श्रा नरण ॥ सोवन थालनी माहे रूपैया, सवालाख ते प्राप्या सोनैया ॥१०॥अति आनंद पाम्यो नरेश, राजसनामां कीधो प्रवेश ॥ पुत्र जन्म्या नी नोवत वाजी, नादें ते रां अंबर गाजी ॥ ॥११॥ बत्तीश बद्दा तिहां नाटिक थाय, घर घर कुंकुम हाता देवाय ॥ दान याचकने दीधां अह, जाणे के वुठा उत्तर मेह ॥ १२॥ तोरण बांध्यां घर घरबार, घर घर थाये मंगला चार॥ बारे दिवस लगे ओबव कीधो, लखमी तणो त्यां लाहोज लीधो ॥ १३ ॥ अरथ गरथना ख रच्या नंडार, नाम ते राख्यु नेम कुमार ॥ दिन
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दिन वाधे चंद्र वदितो, केडने लंके केशरी जीत्यो ॥१४॥ त्रिवली देखीने त्रिनुवन मोहे, गंगा जमुनाने सरसति सोहे ॥ नासा निरूपम दीपशि खाशी, नयण पंकज पत्र प्रकाशी॥१५॥ मुखसुं बोले अमीरस वाणी, मन माहे हरखे शेवादेवी राणी ॥ बॉल लीलामां बुद्धि भंडार, देखीने मोहे सुर नर नार ॥१६॥ एक दिन नेमजी बाजार मांहे, नगरीना ख्याल जूवे उग है ॥ कृष्ण तणी जिहां आयुध शाला, तिहां के णे पोहोता दीन दयाला ॥१७॥ शंख चक्र ने धनुष्य उदार, कोदंड ताणीने कीधो टंकार ॥ लता सेवक इणीपरें बोले, गोविंद विना ए च क न डोले ॥१८॥ टंची प्रांगुलिये चक्र 3 पाडयु, चाक तणा पर नलुनमाड्य॥ अचक उना इणी परें नांखे, शंख न वाजे कृष्णाजी पां खे ॥ १९॥ हलवेशुं लेई शंख बजायो, सप्त पा ताले सरगें सुणायो॥शेष सलसलीयो धरा तिहां धमकी, जरूखें बेठी कामनी ऊबकी ॥२०॥ हबक लागीने हार तिहां त्रूटया, कंचक तणा बं द विबूटया ॥ समुद्र जल हलीया चढिया कल्लों
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लें, कायर कंपेने डुंगरा डोले ॥ २३ ॥ हाथी ह बक्या ने जबक्या ऊंजार, तेजी वाठाने डरघा दिगपाल || पवन थंच्यो ने धरती घेराई, कृष्ण जी कहे सुणो बलभद्र नाई ॥ २२ ॥ कोईक न घो ते वेरी वतयो, महोटो बलवंत मचरं रियो ॥ नादें अनहद अंबर गाजे, एहवो शख ते केणे न वाजे ॥ २३ ॥ त्रिभुवन मांहे तो कोई न सूजे, चक्री बारे ने इंद्र अलूजे ॥ जदुनाथ नेथई ते जाण, वात सुणी ने थया हैराए ॥ २४ ॥ धूजे नूधर चिंते मनमांय, राज काज ते मेल्या कवाय ॥ सगुण सोनागी साहासिक शूरो, ए के वातें ए नहीं अधूरो || २५ || मुकधी बलियो ए महाबलधारी, मोटे सांसे ते पड्यो मुरारी ॥ बली वली मनमां चिंते वनमाली, राज्य मा रूं लेशे उलाली ॥ २६ ॥ इणे वसरें नेम कु मार, मलपता आव्या सना मकार ॥ आघा आ
वोजी आदर दीधो, सना सह कोई परणाम कीधो ॥२७॥पाणी पसारी शारंग पाणी, मुहथी बोल्यो ते एहवी वाणी ॥ याज परखीयें बल तुमारो, नेम न मावो हाथ अमारो ॥ २८ ॥ काचीकांब जि
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म कणयर केरी, कमल तणी परें वाल्यो कर के री ॥ नेमजी रह्या बांह पसारी, जाणे हीडोले हीचे गिरधारी ॥२९॥ कृष्णाजी मनमांजए दि चारी, एह कुंवारो बाल ब्रह्मचारी ॥ इम चिंति ने नारी हकारी, गंटे नेमने बांहे पसारी॥३०॥ नरी खंडो खली केशर कुंकुमे, गोपी दीयरशुं रामत रमे ॥ सत्यनामाने रुक्मिणी राणी, कहे नेमने एहवी ते वाणी ॥ ३१ ॥ परणो राजुल रूपें रढीपाली, नारी विना ते नर कहिये हाली ॥ नारीनो रसते मोटो संसार, नारी ते अडे नरनो अाधार ॥ ३२ ॥ पुरुषनी पासें जो न हो य नारी, वस्तु न धीरे कोइ व्यापारी॥ नारी ते अ रतननी खाण, घरणी वडेते घरनुं मंडा ण ॥ ३३॥ मुसकीशुं बोले गोविंद राणी, बत्ती स सहस्समां बडीजे ठाणी ॥ पायें पम् ते दोहे हुँ जाणी, ते माटे तुमे न्हानी देराणी ॥ ३४॥ जेहशुं अपूरव प्रीत बंधाणी, अाजते हिवे केम रहिये ताणी॥फिरी उत्तर नेमे न दीधो, मान्योमा न्योजी सह कोणे कीधो ॥ ३५॥ बोल बोल्या ने कीधी सगाइ, लीधां लगन ने करी सजाइ॥
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उपन्न कुल कोडी जादव मिलिया, तूरने नादें स मुद्र जल हलीयां ॥ ३६ ॥ चढी जानने वाजिंत्र बाजे, जाणे यापाढो जलधर गाजे ॥ जुगतें क रीने जादव चढीया, प्रथम घावतो नगारें पडी या ॥ ३७ ॥ मयगल माताने परवतकाला, ला ख बेतालीस सबल सुंढाला ॥ बाकेँ बक्याने मढ़ें जरंता, मुके सारसी चाले मलपंता ॥ ३८ ॥ ला ख बेतालीस तेजी पाखरीया, उपर सवार सोहे केसरीया ॥ अबी कवी ने पंच कल्याणा, पूठें पोढाने पुरुष समाणा ॥ ३९ ॥ समगतें चा ने चक्र रहंता, चंचल चपलने चरणे नाचं ता ॥ साज सोनेरी सोहे केकाणा, लाख वेता लीस वाजे निशाणा ॥ ४० ॥ लाख बेतालीस र थ जोतरीया, कोडी अडतालीस पाला परवरि या ॥ नेजा पंचरंगी पंच क्रोड जाएं, अढीलाख ते दवीधर वखाणुं ॥ ४१ ॥ सोहे राजेंद्र शो ले हजार, एकशो ऐशी वली सांधे सूहार ॥ सा थें सेजवालां पंचलाख वारु, मांहे सुंदरी बेठी दीदारु ॥ ४२ ॥ शेठ सेनापति साथै परधान, जली नांतसुं चाली हिवे जान ॥ बंदुकनी धू
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रे सूर रियायो, रज डंबरें अंबर गयो ॥४३॥ धवल मंगल गाये जानरणी, जाणे सरसतीनी वीणा रणजणी ॥वागे केशरीये वरघोडे चढिया, काने कुंडल हीरे ते जडीया ॥४४॥ त्र चामर मुकुट बिराजे,रूप देखीने रतिपति लाजे ॥ जान लेईने जादव सिधाव्या,नग्रसेनने तोरणे अाव्या॥ देखी राजुल मनमां जल्लसे, चंदर देखी जेम समुद्र उधसे ॥ घणा दीवसनी राजुल तरसी, सजी शिणगार जूए पारसी ॥४६॥ अंजन अं जीत अांखे अपीपाली, वेणी सरली ने सांपण काली ॥ शीस फूलने सेथें सिंदूर, मयण राजा नुं पसरयुं ने पूर ॥४७॥ गाले गोरीने माल जबूके, मदनर माती ने नजर न चूके ॥ नासा निर्मल अधर परवाली, केडे थोडीने घणी सुकु माली ॥४८॥ नूपण नूपीत सुंदर रूप, मुख पूनम चंद अनुपारूडा रूपाला कुच उत्तंग, क सणे कसीने कीधा के तंग ॥४९॥हिये लाखी पो नवसर हार, चरणे मांजर रणझणकार ॥समी शिणगार उनी जरूखे, निरखी नेम ने मनमाहे हरखे॥५०॥मोटा मंडपनी रचना अति रूडी,
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गाजे वाजिंत्र उबले गुडी ॥ मुंगल नेरीने वाजे नफेरी, जुटे राजुल नेमने हेरी ॥५१॥ गोखें चढीने राजु न नांखे, दोवस दोहोला गया तुम पाखे ॥ कंत तें कांई कामण कीg, मन माहरूं न लाली लीधुं॥५२॥ श्राज फरके ने जिमरे अंग, सहीए थाशे रंगमां जंग ॥ कहे राजुल सुलो साहली, रखे जादव जाए मुज मेली ॥ ॥ ५३॥ पशु पेखीने पायो वैराग, मुगति रमणी शुं कीधोठे राग॥नेमजी पुरवनी प्रीत पालीजें, इभ ग्टकीने व्ह नदीजें ॥२४॥ मुगति मंदिरमा
आवजो मिलरों,सदा सरवदा रामत रमशुं॥ दान संवडरी जिनवर दीधं, नेम राजुलें संजम लीधं ॥५५॥ परवनी प्रीत अविहड पाली, पोहोता मुगतिमां करम प्रजाली॥वेगेविरहनी वेदनाटाली, शिव मंदिरमा जाजो संजाली ॥५६॥ शीलपाले जे चतुर सुजाण, नामे तेहने कोड कल्याण ॥ उद यरत्न कावे इणीपरें बोले, कोई न आवे श्री नेमने तोलें॥६७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री पार्श्वनाथजीको शिलोको लिख्यते । मात नुवनेश्वरी नुवनमा साची, जेहनी ज
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गतमां कीरति जाची ॥ देवी पदमावती धरणें द्र राणी, आपो शुन मति सेवक जाली ॥ १ ॥ पार्श्व शंखेश्वर केरो शिलोको, मन धरीने सांभल जो लोको | देश वढीयारमांहे जे कहो, कलि कालमांहे जालम प्रगट्यो ॥ २ ॥ जरासंधने जादव वढीया, बांधी मोरचा दल बेहु लडिया || पडे सुनटने फाजु मुरडाय, कायर केतां तिहां नाशीने जाय ॥ ३ ॥ राग सिंधुयें सरपाइ वा जे, सुणी सुनटने शूरातन जागे ॥ थाये जुने कोई न थाके, त्यारें जरासंध बल एक ताके ॥ ॥ ४ ॥ बपन्न कुल कोडी जादव कहियें, एक एकथी चढीयाता लहीयें ॥ प्राण या पण पावा न जागे, एक मारे तो एकवीश जागे ॥ ५ ॥ लढतां एहनो अंत न आवे, करूं कपट तो रामतफावे ॥ इम चिंतिने मेली तिहां जरा, ढलियुं जादवनुं सैन्य तिहां धरा, ॥ ६ ॥ जरा लागीने जादव तिहां ढलिया, नेम कृष्णने बलभद्र बलिया ॥ त्रण पुरु पने जरा न लागी, कहे नेमने कृष्ण पाय लागी ॥ १॥ एहवो कोईक करो उपाय, जेणे जराते नाशी ने जाय ॥ कहे कृष्णने नेम कुमार, करो आाठम
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तप चोविहार ॥ ७ ॥ पहेलां धरणेंद्र तुमे उपा सो, तेहने देरासरें देव ने पासो | तेह प्रारा धो पशे बिंब, सरसे आप काम अविलंब ॥ ९ ॥ मुखथी मोटो बोल न नाखुं त्रण दिव स लगे सैन्य हुं राखुं ॥ जिनवर जक्तिनो प्रना व जारी, थाशे सघलिविध मंगलकारी ॥ १० ॥ इंद्रे सारथि मातुलि नामें मेल्यो जिनवरनी न तिने कामे ॥ आसन मांडीने देव मुरारी, प्रा
करीने बेठा तिठारी ॥ ११ ॥ तूठो धरणें पे श्री पास, हरख्या श्रीपतिप्रति उल्हा स ॥ नम करीने बांटे तिलवार, जठ्युं सैन्य ने थयो जयकार || १२ || देखी जादवनो जाल म जोरो, जरासंधनो त्रूट्यो तिहां तोरो ॥ व्यारें लेईने चक्र ते मेल्युं, वंदे कृष्णने आवी ते पेहे लुं ॥ १३ ॥ पबी कृष्णना हाथमां बेठं, जरासंधने शाल तो पेहुं ॥ कृष्णें चक्र ते मेल्युं तिहां फेरी, जरासंधने नाख्यो ते घेरी ॥ १४ ॥ शीश बेधुं ने धरणी ते ढली, जयजय शब्द ते सघले न बलियो || देव दुंदुनि आकाशे वाजे, उपर फू लनी दृष्टि बिराजे ॥ १५ ॥ तुमे वासुदेव त्रण
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खंड नोक्ता, कीधा धर्मना मारग मुगता ॥ नय र शंखेश्वर वास्यं नमंगें, थापी पार्श्वनी प्रतिमा श्रीरंगें ॥१६॥ शत्र जितीने सोरठ देश, द्वारि का नगरीमां कृष्ण नरेश ॥ पाले राज्यने टाले अन्याय, हायक समकित धारी कहेवाय ॥१७॥ पार्श्व शंखेश्वर प्रगट मल्ल, अवनिमांहे तुं एक अ वल्ल ॥ नाम ताहरूं जे मनमाहे धारे, तेहना सं कट दूर निवारे ॥ १८॥ देशी परदेशी संघ जे श्रावे, पूजा करीने भावना नावे॥ सोना रूपा नी अंगी रचावे, नृत्य करीने केसर चढावे॥ ॥१९॥ एक मने जे तुमने बाराधे, मनना म नोरथ सघला ते साधे ॥ तोरा जगतमा अब दात मोटा, खरो तुंहींज बीजा सह खोटा ॥ ॥२०॥प्रतिमा सुंदर शोहे पुराणी, चंद्र प्रनूने बार नराणी ॥घणे सुरनरे पूज्या तुज पाय॥ तेहने मुगलिना दीधा पसाय ॥ २१ ॥ोगण शाठने पर शत वरसें, वइशाख वाद उठने दिवसें॥एह शिलोको हरखे में गायो,मुख पायो ने दुरगति पलायो ॥ २२ ॥ नित्य नित्य नवली मंगल माला, दिन दिन दीजे दोलत रसाला
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॥ उदय रत्न कहे पास पसायें, कोडे कल्या ण सन्मख थायें॥२३॥ इति ॥ अथ श्री सजा तीर्थको शिलोको लिख्यते
॥ सरसति माता हुं तुज पाय लागुं, कहेवा शिनोको वरदान मागुं ॥ जहवा शास्त्रमा सुणी या परिमाण, तेवा सिद्धगिरिना करूं वखाण ॥ ॥१॥ प्रथम जिनवर पुंडरीक आगें, निसुणी नविजन श्रुतपट जागे नहीं कोई इस युग श
जा तोले, अनंत जिनवर इणपरें बोले ॥२॥ ग्रहगण माहे वडोजिम चंद, पर्वत मांहे तिम एह गिरिंद ॥ सुर नर दानव मिल्या के कोड, सेवा करेले बे कर जोड ॥३॥ जरत सगरें उद्दार कीधा. साध अनंता इणे गिरि सीधा ।। देस देसना संघ बहु आचे, माणक मोती लेइने चधावे ॥४॥ आरज देसमां श्रावक सार, दर्श न करीने सफल अवतार । काग कूकनो नावे अवतार, केतो इण मुखें करूं विस्तार ॥५॥ सदा ए गिरि शाश्वतो सार, एना गुणनो कोई न लाने पार ॥ इणीपरें निसुणो श्रीगुरु वाणी, श्रावक हरख्या के उलट आणी ॥६॥ देशमा
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सोहे श्री कबदेश, सदा परिघल लक्ष्मी निवेश। दक्षिण दिशियें समुद्र तीर, नदीया बहुलीने खलंके के नीर ॥७॥तेह देशमा कोमाय गाम, जापीयें अनिनव स्वर्गनं धाम ॥ देहरा उपास रा दीसे चंग, करे श्रावक नित्य बहुरंग ॥८॥ न्याति मांहे शोहे सवाल, मानसमां जेमन पे मराल ॥ शाह रायमल कुल अधिक मंडाण ॥ उपनो करमसी शाह पचाण ॥९॥माणक पूंजो बे दीसे वमवीर, देशल पेयोठे साहस धीर ।। मालसापाचा ते दीसे गएखाण, खंतसाकरमसी कीधा परित्राण ॥१०॥एहवा श्रावक दीपता दद, पदमाहे जेम शुकलपद । मेली कुंकोतरी मोरत लीधो, तिलक संघपतिनो पंचागने कधिो ॥११॥संघ चाल्यो ने कारज सीधो, प्रथम मेलाण मुंदरे जइ दीधो ॥ अदनुत अनोपम मिलयो ने साथ. साद्यहा 'श्री शीतलनाथ ॥ ॥१२॥बेसी जिहाजे नवीनपुर श्राया, देहरा देखीने आनंद पाया ॥ देवनुवन ते रमणीकस्था न. जापीयें अनिनव नलिन विमान ॥ १३ ॥ रायसी वईमान कीधा प्रासाद. उंचा करेने ग
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गनयी वाद ॥ बावन्न जिनालय देहरा शोहे. देव दानव किन्नर मोहे ॥१४॥ पेसता वामां गें चौमुख दीपे, तेजे करीने दियर दीपे॥ सहस फणाने श्री शांतिनाथ, मूल गंनारे त्रि नुवन नाथ ॥१५॥ चाल्यो संघ हिवे सोरठ दे श, पंच रतन जिहां कीधो निवेश ॥ तीरथ त टिनी तोय सुदारा, तांबुल रिदिने अतिहि वि स्तारा ॥१६॥ माड बीडना गुबज गहके, जा ई जूइने परिमल महके ॥ दाडिम कदलीने र ६ सहकार, वनस्पति शोने नार अठार ॥ ॥१७॥ रेवत गिरिने सहु शिर नामी, जिहां बेठा बे नेमनाथ स्वामी॥ कर्म खपावी केवलपद पाया, राजुल नेमजी मुक्त सिधाया ॥१८॥ति हाथी संघ हिवे आनंद पामी, श्राव्या जिहां ने श्री शत्रुजा स्वामी ॥ गिरि देखीने हरख बहुपा या, सोना रूपाने फूलडे वधाया ॥१९॥ धन धन दाहाडोते आजनो दीशे, सहु हरख्या ने विश्वाज वीशे॥ प्रावी उतरीया पादलिप्त स्थान, ठाकर उनमजी दीये बहु मान ॥ २० ॥ पाली ताणुं नगर ते अत्यंत दीपे, तेजें करीने
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अलकाने जी ॥ चहुटा चोवटा दीसे अपार, द्रव्यतणो कोइ लाने नही पार ॥ २१ ॥वर अठार वसे सदाइ, दुःख दोहग नही कदाइ ॥ किहांकणे व्यापारी रुपैया पटाये, किहांतो जवे हरी जवेर वटावे ॥ २२ ॥ दोसी शेठने कंदोइ सार, एहवी सोने के रुडी बजार ॥गढमढ मंदि र पोहोल प्रकार, लांबो पोहोलो जोयण विप्तता र ॥ २३ ॥ यात्रा करवाने श्री संघ चडीया, पे हेलो सेलर वाव्ये जइ मिलीया ॥पाणीमां दी से ने अति तरंग, निर्मल नीरवहे घणु गंग ॥ ॥ २४॥ देव नमिका अाश्रम कीधो, संघे ति हां कणे विसामो लीधो ॥ गीत गानने करता विनोद, पगला देखीने उपनो मोद॥ २५ ॥ शालिकंडनं निर्मल नीर. जेह दीठाथी नपनी धी र ॥ जल पीधाथी विकओं ने नाण, अज्ञान ना शिने आवे ने ज्ञान ॥ २५॥ हमो हिंगलाज कु मारकुंड, नवजल तारण दीसे तरंग॥ जेना ज लसंगे कर्म खपावे, मोद पुरीयें वहेलो पोहो चावे ॥ २७॥ नूपणकुंम शाह नूषणे कीचो, धन खरचीने लाहोज लीधो॥ पासे रमपीक
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रुडो आराम, देव दानवने रमवानो ठाम ॥ ॥ २८॥आगे चालंतां रामपोल आवी. वाघन पोल ते सघलाने नावी ॥ स्वर्ग द्वारनो बांधव दीसे, जोतां संघनो हियडो हीसे॥२९॥ पासें बेठा गौमुख यद, सेवा करे जेहनी दद ॥ संघ सान्निध्य चक्रेसरी देवी, सदा तीरथ रखवाल करवी ॥३०॥ मल नायक श्री षन जिणंद. तेजें जलहल कोमी दिणंद ॥ वंश इख्वांग म रूदेवा नंद, नानिराया कुल पूनमचंद ॥३१॥ पद्मासन बेठा प्रनु योग ध्यान, धनुष्य पांचौं सोवन वान ॥ सत्तर नेदी तिहां पूजा नणावी, नावना श्री संघे नलीपरें नावी ॥ ३२॥ स्नात्र महोत्सव अति बहु रंग, नेरि मुंगल वाजे मृदंग ॥ नोबत निशान जांफर साद, रणजण रणके घंटना नाद ॥ ३३ ॥ अगर केद्रुना महकेजे धूप, गजे ठकुराइ त्रिनुवन रूप ॥ पुठे नामंडल अति ते ज गजें, देवाधिदेव ते एहवा विराजे ॥३४॥ नाटक नृत्य सदा उबरंगे, नावना नावी मनने अनंगे ॥ इणीपरें प्रनजीना दरिशण कीधा. व्य खरचीने बहु जश लीधा ॥ ३५॥ सूर्यकुं
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म ते लग्यो सूर, तिणमांहे विची ते उठे नर पर ॥ कीधे स्नान वाधे घणु नूर, कर्म थाय के सवि चक चूर ॥ ३६॥ सहस्रकूट ते नयणे निर खी, थै थै कार करे देव हरखी ॥ सारे प्रनुनी श्रहनिश सेव, पूजा नक्ति करे नित्य मेव ॥३७॥ प्रथम गणधर श्री पुंमरीक, पत्रिम श्री गौतम नही अलीक॥पगला तहना दीठे धन्य धन्य, गाधर नेटया चवदेश बावन्न ॥३८॥प्रनाते उठी जो नाम जलीजे, वंबित कारज तो सवि सीजे॥तिन देवें जिहाँ कीधा निवास, एहवा गौतमजी पूरजो श्रा स ॥३९॥रायण तरुतलें अादि जिणंद, पग ला पूजो देखी नवि रुंद ॥ जेहना पूजनथी स वि सिद्धि थाय, कर्म खपावीने मोद सिधाय । ॥४०॥ पासे रमणिक अष्टापद देहरो, बावन जिनालय शोने शिर सेहरो॥रावण समकित ति हां को पाम्यो. गंठी नेदीने मिथ्यात्व वाम्यो। ॥४१॥प्राची वायव्यदिशि पश्चिम उत्तर, दोय चार पाठ दश तीरथंकर ॥ प्रनुने पूरीने देह रा कराव्या, नरत चक्रीसरे बिंब नराव्या ॥ ॥ ४२ ॥ अदनुत देखीने अचरज आवे, दरि
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शन करीने सह सुख पावे॥धन्य धन्य प्रनुनोमो टोडे गात्र, एहवा जिननी करीयें जात्र॥४३॥ ॥ कुंड खोडीयार सदा जलनरीयो, लहेरां दीएडे अलिवन दरीप्रो ॥ मीन कब जलचर वंश, जेहने सेवेने सर्वदा हंस ॥४४॥ द्रव्य खरच्यां ले जेहमां लद, प्रासाद रचीयां दीठा प्रत्यद॥ एहमां नही कांइ खलखंच, तेहमां थाप्यां पा डव पंच ॥४५॥ चन्मुख शिवा सोमजीयें क राव्यो, जेने यगायुग नाम रखायो॥ नठी प्रना ते दरिशण कीजें, मक्ति रमणीने वेगें वरीजें॥ ॥४६॥ ढूंके बेठा मरुदेवी माता, जेना दरि शपथी होय सखशाता ॥कतोडीने सिद्धिसो पान, चडी पाम्या मुक्ति निदान ॥४७॥ फि रती चोफेर देहरा केडे, देतां प्रदक्षिणा कर्मने फेडे ॥देई प्रदक्षिणा बाहेर अाया. सर्वे संघ ना कारज सारया ॥४८॥ वाणी सुणीने चक्रीयें नराव्या, मणिमय पांचशे धनुष्यनी काया ॥ग फा पश्चिम दिशियें जिहां, बिंब मणिमय नं रया तिहां ॥ ५९॥ देवता तेहनी सेवायें आवे, पूजा करीने नावना नावे ॥ देव कराबे प्रनुनें
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अंगोल, नमण आवे ते अोलखा जोल॥५०॥ चंदन तलावडी शीतलगया, जिणमां लोटे थाय सुकोमल काया ॥ अशुन नामना कर्म खपावे, तिहाथी सहु संघ सिद्ध वम पावे ॥५१॥ नदी सत्रुजी न्हावाने जाय, स्नान करीने पावन थाय॥ तीर्थ नूमिका स्वबज जाणी, प्राची वाहनी न दीय वखाणी ॥५२॥ तीर्थ यात्रादि धर्मनी कर णी, नवजल पयोधि पार उतरणी ॥ अनुक्रमे पामे ते गुणतणी श्रेणी, मुक्तिमंदिरनी जे जे नि सरणी ॥५३॥ संघपतियें धर्मना कारज कीधां, नाट नाजकन बहु दानदाधा॥धन्य श्रावक द या प्रतिपाल, संघपति कंठे ठवी वरमाल॥५४॥ देहरा देहरान पार न जाणु, जिन पमिमा त्यां केती वखाj ॥ इणीपरें सुजस नीशान बजाइ,
आव्या गिरनारे हर्ष वधाइ ॥ ५५ ॥ जादववं श शेवादेवी नंद, बाल ब्रह्मचारी नेम जिणंद ॥ तेहनी यात्रा कीधी बहु नाव, जईने प्रणम्या माता अंबाय ॥५६॥ मृगराज देखी गज द्वर पलाय, शंखध्वनी सुणी पन्नग जाय ॥ तेम गि रि सेवनथी पातक बूटे, अष्टकर्मना बंधन तूटे
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॥ ५७ ॥ बहरी पालीनें यात्रा जे करशे, मुक्ति रम पीनी लीला ते वरशे ॥ नाण दरिसण चारित्रने पावे, मोह सप्तक वहेलो खपावे ॥ ५८ ॥ संवत ठारे चोत्रीशे वरपें, यात्रा कीधीवे मनने हर पें ॥ शुदि पूनम चैत्रज मास, सदा गोडीचो पूरजो आस ॥ ५९ ॥ संघ सर्वे तिहां हरष धर
वे, सारा लापसी करीने जिमावे ॥ साधु सा ध्वीने दीयेवे दान, गोरडी गाये बहुगीत गान ॥ ६० ॥ कवि संघपतिने देइ आशीष, अविचल तुमतणी होजो जगीश ॥ नहीं कोइ जैनमां इ गिरि तोले, माने देवचंद्र इणीपरें बोले ॥ ६१ ॥ ॥ अथ श्री भरत बाहुबलको शिलोको लिख्यते ॥
C
प्रथम प्रमुं माता ब्रम्हाणी, तूठी पे जे अविरल वाणी ॥ भरत बाहुबल नाइ संजोडे, कहेशुं शिलोको मनने कोडें ॥ १ ॥ नानीरा जानें कुठें नगीनो, प्रथम तीर्थंकर ऋषन उ पनो | सो पुत्र तेहना समरथ जाएं, भरत बा हुबल जला वखाणुं ॥ २ ॥ आयुध शालायें च क्र उपनुं, मनते हरखीन भरत नूपनुं ॥ चक्र पूजीने करी चढाइ, दीधा मेराते जंगलमां
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जाइ ॥ ३ ॥ सैन्य लेइने सबल दीयाने, विवि ध जात तिहां रणतूर वाजें ॥ चक्र अतुल बल अाकाशे हाले. नरत सैन्यशुं पुंठे ते चा ले ॥४॥ परव आदिने उत्तर अंते, प्रा ण मनावी चक्री बलवंतें ॥ साध्या पट खंड क मल अपार, वरश ते बोल्यां साठहजार ॥५॥ गंगा सिंधने साधी सरिता, पनी मलेबना देश ते जीत्या ॥ सेना लेइने नरत सिधाव्या, साधी पटखंड अयोध्यायें श्राव्या ॥६॥ नगरीनां लो क सामांते प्रावे, मोतीये थाल नरीने वधावे ।। वाजे वाजिंत्र नंगल नेरी, शेरीयें फूलमां नाखें वेरी ॥७॥ याचकजन तो कीरति बोले, कोइ न श्रावे श्री नरतने तोले ॥ दिन दिन दोलत वाधे सवाई, बीजानी नहिं तेवी अधिकाइं ॥८॥ अनक्रमें कीधो नगर प्रवेश, चक्रनो श्रोचव मां ड्यो नरेश ॥ चक ते रा आकाशे नमे, श्रा युध शालायें श्रावे नहीं किमे ॥ ९॥ सहु मि लीने मनमां विमासे. शा माटे रह्यं चक्र आका शें ॥ सुणो साहिब कहे सेनानी. नाइ तुमारो एक गुमानी ॥ १० ॥ वाहुबल नामें महा बल
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धारी, तेह न माने आण तुमारी ॥ हट्ठ मांडीने रह्यो हठीलो, पत्रपति गेगालोबेल बीलो । ॥११॥अवलोने ए महा अनिमानी, सेवा कीधी बे साधु समानी ॥ अजित अतल बल तेणेते व लियो, जालम जोहोने संग्रामें कलीयो ॥ १२॥ अनमी ते केहनी आण न माने, पराक्रमे पूरो ते प्रजाने पाले ॥ एहवी ते सुणी वात अदनू त, लेख लिखीने मोकल्यो दूत ॥ १३ ॥ दूत ते हवे भरत आदेश, वेगें ते पोहोतो बाहुबल दे श॥ कागल श्रापान कह करजोडी, वग तड्या बे चालो तमे दोडी ॥ १४ ॥ कागल वांचीने चढ्यो ते क्रोध, दूत प्रत्ये कहे वचन विरोध ॥ कोण भरत जे तेडे वे हमने, नही लखतो पू तुमने ॥ १५॥ दूत कहे जे नाइ तुमारो, नरत चक्रवर्ति साहेब हमारो ॥ आयुध शाला ये चक्र न आवे, तेणे करीने तुमने बोलावे ॥ ॥ १६॥ करी असवारी वेगें सिधावो, तिहां श्रा वीने शीस नमावो ॥ नावो तो करो युद्ध सजाइ, मांहो माहे मिली समजो बे नाइ ॥ १७॥ नर त चक्रवर्ति षट खंड नोगी, अनिमान सहनां
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रह्यो आरोगी ॥ ते आगलशुं गजं नुमरुं, ते माटे कहु मानो हमारुं ॥ १८ ॥ इमनिसुणी ने बाहुबल जपे, मुक यागे तो त्रिभुवन कंपें ॥ चढ्यो क्रोधने दंत करडे, होठ करके ने मूत्र ज मरडे ॥ १९ ॥ एहवो ते कोण नूलो ब मारी, जेह तडो वडी करे हमारी ॥ कहे बाहुबल चढ़ा वी रीस, करुं युद्ध पण न नामुं शीस ॥ २० ॥ वे गो खीजीने दूत ते वलियो, अनुक्रमें जरतने यावी ते मिलियो | नरतने जइ दूतते नाखें, आण न माने कटकाइ पांखें ॥ २१ ॥ सुणी वा तने मानी ते साची, चडाइ करवाने मेरी ते वा जी || हाथी घोडाने रथ नीशाण, लाख चोरा शी तेहनुं परिमाण ॥ २२ ॥ रथ लेइने शस्त्रे ते नरियां, धवला धोरीडा धिंग जोतरिया ॥ साथै बन्तुं कोड पाला परवरिया, नेजा पंचरं गी दशकोड घरिया ॥ २३ ॥ पूरा पांच लाख दवीधर नार, महीपति मुगटाला बत्तीस हजा र ॥ शेष तुरंगम कोड ठार, साथै व्यापारी सं ख नपार ॥ २४ ॥ सवाकोन ते साथे परधान, मोटी नालनुं तेरे लाख मान ॥ सायें रसोइ
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श्रा सहस्र बत्रीश, लशकर लेईने नरत चक्री श॥ २५॥ लशकर लेइने चक्रवर्ति चढीन, साहमो अावीने बाहुबल अडिन ॥ तेना कटक नो पारन जाणं. यम रूपी ते योद्धा वखाणं॥ ॥ २६ ॥ निशाणे घाव देई परवरीयो, सैन्य लेइने साहामो जतरियो ॥ कहे बाहुबल नरत ने जइ. ताहरी तो शुद्ध शा माटे गई ॥२७॥ सगा नाइ शुं एम न कीजें, रिद्धि पामीने नेह न दीजे ॥ जाते दाहाडे जोने विमासी, पर पो तानो न होवे सहवासी ॥२८॥ अंग विना ते माग न वाजे, नाडुतें राखी नीड न नांजे॥ घर नवशे पुत्र पीयारे, सुख न लहियें नूत हि यारे ॥ २९ ॥ तें तो अवगण्या नाइ अठाणूं, यति थया के तजी ते प्राणु ॥ तांते लोनीयो तुजने विचारी, तेणे तें ली, संजम नारी॥३०॥ ताहरे पापें ते नाशीने बूटा, घणुं अघटतुं की धुं तें जूठा ॥ करतुक ताहरां केहेतां हुं लाजु, मुझ वडे तुं पट खंड गाजु ॥ ३१ ॥ तुमने जो न नजरे जो फेरी, वार न लागे नाखतां वेरी॥ फूल दमो लेई कोमल हाथे, वढवं सोहेलं चूडा
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ली साथें ॥ ३२ ॥ ए नहीं एहवा गकम गे ला, चाहे चित्तथी नूल मनोला ॥ हाक मारूं तो पर्वत फाटे,लाज राखुं बुं बंधव माटे॥३३॥ टंची अांगलीयें मेरुने तोलुं, ताहरो कटक लेइ समुद्रमा बोलुं ॥ पण राखं बुंलाज पितानी, वा त वली कहुं बालपणानी ॥ ३४ ॥ गगने जग ल्यो गिंदुक रीते, पागे पडतो तुं धरयो में प्री तें॥ चरणे झालीने फेरव्यो तुजने, पवने जिम फेरे देउलध्वजने ॥ ३५ ॥ वली फेरव्यो पाव क वनमें, जिम नलराजाने जूवट जग ॥ बा लपणांने रूड़ां संजारी, गर्व ते करजो पी वि चारी ॥ ३६॥ नरत सांनलजे साचुं हुं नांखं, हिवे केहनी लाज न राखुं ॥ बालपणानी रमत नाठी, हिवे बांधी ने बकरी काठी ॥ ३७॥एम कहीने रणवट रसीयो, धनुष्य लेइने साहमो ते धसीयो ॥ उमटयो धूमाडो प्रगटी जाल, बाहु बलें तिहां काली करवाल ॥ ३८ ॥ बांधी हथी यार साहमो ते आव्यो, प्रथम तुंकारें नरत बो लाव्यो ॥ कांइ हणावे सुनटनी घाटा, आपणे कीजें युद्ध बे काटा ॥ ३९॥ कोइ, बीजानु इहां
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नहीं काम, फोकट बीजानां फोडो का ठाम ॥ च ढीये आपणे अवधज राखी, सुरनर कोडी क रया तिहां साखी ॥४०॥ बेहुने शरीरे रह्या बेहु पासा. तिहां सरनर जोवे तमासा॥नरत बाह बल अधिक दीवाजे, बेहुने शिर बत्र मुकुट बि राजे॥४१॥नरत बाहुबल साहामांबे नाइ, शशि रवि सरिखा रहे थिर थाइ ॥ निरखी सुर नर रहे सहु अलगा, दृष्टि युद्धमा प्रथमज वलगा ॥४२॥ नयणाशं नयणा मलाने जूए, नरतनी श्रांखें अांसं ते चऐ ॥ जिम नादरवे जलधर धारा, जाणे के बेटा मोतीना हारा ॥४३॥ हा रयो नरतने बाहुबल जीत्यो, त्रिनुवन मांहे थ यो वदितो ॥ बोले बाहुबल बंधव प्रीतें, बीजं युद्ध कीजें शास्त्रनी रीतें ॥४४॥ नर हरि नाद जरतें तिहां कीधो, शब्दते सघले थयो प्रसि हो ॥ रणनी नूमि लगें रह्यो ते गाजी, गयवर गह गया हण हण्या वाजी ॥४५॥ गड यड गाजे बाहबल वेगें, हरिनाद कीधो तिहां तेगें। दशो दिशा पूरी नादने बंदें, त्रिनुवन कंपे तेह ने बंदें ॥४५॥ समुद्र जल हलकल्लोले चडिया.
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जाणे त्रिनुवन एकठा मिलियां ॥ हाथी हलहलि या हयवर हणहणिया, नाद सुनीने सुरनर रण ऊपीया ॥४७॥ नीम नुवन थयुं ते जिहारें, नरत विमासे मनमांहे तिहारें ॥ एह अतुली बल महाबल पूरो, एह समो वम बीजो नहीं शूरो ॥४८॥ जाते दाहाडे देशवटो देशे, रिद्धि अ मारी जलाली लेशे॥नरतने मुंडे ढली तिहाशा इ, बोले बाहुवल सांनलो नाइ ॥४९॥ नुजा युद्ध कीजें हिवे नारी, अमे नमा बांह तुमारी॥ इम सुणीने नरत नूनाथ, वेगें पसारयो पोतानो हाथ ॥५०॥ बाहु बलवंतो नुजबल बांह, पट खंम पथवी जाले नचाह ।। कमल तणी परें बा हुवल वाले, तस नुज न चल्यो नरत नूपाले ॥ ॥५१॥ वारू हिया माहे मत राखो बाकी, चो थं मुष्टि युद्ध कीजे हिवे ताकी ॥ महोकम मू ठी तव नरतें उपामी, बाहुवल माथें दीधी पग डी ॥ ५२ ॥ मूठीने मारें शिथिल थयुं अंग, जरतना मनमां वाध्यो उबरंग ॥ बाहुबले मन साथै विचारी, मुठी उपाडी हियामां मारी॥५३॥ मूठीने मारें नरत लडथमीन, नमरी खाई ने
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नूये ते पडिन॥ चढी रीशने मूठ चम चमे, जेम दुहाणो विषधर धम धमे ॥ ५४॥ ठामें थई भरतें हाथ नपाडयो, मारी मठने नये ते पा ड्यो ॥ ढीचण लगे घाल्यो धरति मांहिं, जाणे अारोप्यो खीलो जगमांहिं ॥ ५६ ॥ सुरतें उ ठ्यो ते आप संनाली, नरतने रीशे मारयो दं ड उलाली ॥ घाल्यो धरतीमां कंठ प्रमाण, का यर कंपे ने पड्यु नंगाण ॥ ५६ ॥ चक्रीवें सै न्य थयुं ते जांखं, नरत विमासे नागळे वांकुं ॥ बाहुबल कटकें वाजिंत्र वाजे, वीतशोका थई सुनट विराजे ॥ ५७॥ उठ्यो नरत ते धरा धं धोली, क्रोधे ते रह्यो चक्रने तोली ॥ नरत च क्रने आगन्या आपी, बाहुबल माथं तुं लावजे कापी ॥ ५८ ॥ बाहुबल मनमा एम विमासे, ध्रीग बोलीने पग विमासे।कुखें कां अाव्यो नरत ए पापी. न्यायनी रीततो नाखी जथापी ॥ ५७॥ मूठी तोलीने रह्यो ते जेहवे, जल हल चक पण श्राव्यं ते तेहवें ॥ वेगें वलियो ते वंदीने पाय.गोत्र में चक्र न चाले क्यांय॥६०॥ चढ्यु कलंक चिंते ईम चक्री, मुझथी न्हानो पण मोटो
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ए चक्री || नरत रह्या हिवे हाथ खंबेरी, एहनी मूठीनी गत अनेरी ॥ ६१ ॥ दीन हीणो नरत नैं जाणी, बाहुबल बोले ते एहवी वाणी ॥ नर तन मारूं नाई सलूणी, मानव माथु ते कोइ मधूणो ॥ ६२ ॥ मूठिनो मनमां याणी आलो च, मस्तकें लेइ कीधो ते लोच ॥ बाहुबल थ यो ते साध वैरागी, सुर नर पूजे पाय ते लागी ॥ ५३ ॥ देव दुंदुभि वाजी आकारों, फूलनी दृष्टी थइ चिहुं पाशे ॥ मनथी मेली विषय वि कार, धन धन जंपे सुर नर नार ॥ ६४ ॥ क र्म खपावी केवल पायुं, लघु नाईने शिसन ना म्युं ॥ कानसग्ग करी कर्म निकंदु, पबी जइने जिनवर वंदु ॥ ६५ ॥ इम धारी मनमां कान सग्ग रहे, वर्षा कालें ते कर्मने दहे || कुंजर च ढी केवल किम लहियें, बेनने वचने बुकयो ते हिये ॥ ६६ ॥ पगजपाडयो केवल पाम्युं, जई ने जिनवर मस्तक नाम्युं || नाइ नवाणुं एक ठा मिलिया, मन मनोरथ सघला ते फलिया ॥ ॥ ६७ ॥ एक वर्ष लगे काजसग्ग रह्या, वाचा पालीने मुगते ते गया | उदय रतन कहे वचन
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विलास, बाहुबल नामें लील विलास ॥६॥इति॥ ॥अथ विवेक विलासनो शिलोको लिख्यते ॥
सरसती माता तुज पाये लागु,दे व गुरू त णी आगन्या मागु ॥ काया नग्रीनो कहु सिलो को, एक चीत्तथी सोनलजो लोको ॥१॥ नग री अनोपम अती घणी सारी, मांही वसे ने मोटा वेपारी ॥ दस दीवान चतुर सुजाण तेनां नामनां करूं वखाण ॥२॥ पान प्रापान नदा न कहीए, समानव्यान पांचमो लडीए ॥ नाग धनंजय देवदत्त कह्या, कुरकल कुरमदश ए थयां ॥३॥ पांच इंद्रीयो खासा परधान, मन बळ वचनबळ कायाबळ जाण, सासोसास ने श्रावु लहिए, ए दशे प्राण कायामां कहीए ॥४॥ पांच पटोधर बुद्धिना नारी, नगरीनी शोना वधारेसारी, कायामांहीवे तत्वने प्राण, अोळखी लेजो चतुर सुजाण ॥५॥ जळ पृथ्वी ने वायु आकाश, पांचमो कहीए तेज प्रानाश॥ नीश दीन नली चाकरी करे, खावंदनी आणा शीरपर धरे ॥६॥ एकेका साथे जमादार पांच, खाए नहीं ते कोइनी लांच, लोही कफ पीत्त विर
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ज कहीए, परशेवो पांचे जळनां लहीए ॥७॥ हिवे पृथवीना कहु ते धारो, श्रोता सांनळी दी लमां उतारो, चाम हाम ने मांस रुंबाटा, नसो ए पांचे जुजुवा सांटा ॥८॥ उंघ आळस तर पाने नुख, कांती ए पांच माणे ने सुख, ए पांच श्राणां तेनीज धरे, नीशदीन चाकरी बरावर क रे॥९॥ बळ प्रसन्न धाय निश्चळ कहे , सं कोचण वायु हुकममां रेहे , साच जुठ मोह लो न अहंकार, ए पांचे कह्या आकासर सार॥१०॥ नगरीनो धणी सोहमजी साखी, मन राजाने ज्यारे आपी॥मनबुद्धि चीत्त अहंकार चारे, नेळा बेशीने मनसुबो धारे ॥११॥ पचरंगी बंगलो दश दरवाजा, राज्य करे ने त्यां मन राजा, बहु बलीयो जेनुं जोर ने नारी, तेथी रह्या इंद्रादिक हारी ॥ १२॥ देव दानवरों कांइ नवि चाले, मोटा मुगला हाम न घाले; एवो जोरावर जा लम कहीए, जेना प्राक्रमनो पार न लहीए । ॥१३॥ बेटा बेटीया विस्तार नारी, मन राजा ने घर दो नारी; पाट ठकुराली परवरती कहीए, जेनं चरित्र तो ऋण लोके लहीए ॥ १४॥ जे
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ना प्राक्रमथी राजा लोनाय, अणुमानीतीने में हेले नवि जाय; मानीतीनुं नारे वे काम, नीरवरती राणी जेनं बे नाम ॥ १५ ॥ परवर ती साथै राजा रमे बे, नीशदीन राणी मनमां गमे बे: राणी ने नजी राजाथी माया, एम कर ता पांच दीकरा जाया ॥ १६ ॥ ते उपर एक बेटी त्यां जाणी, व फरजन जण्या परवरती राणी ॥ पांच पुत्रने राजा परणावे, एकेकी कन्या मन गमती ला वे ॥ १७॥ पांच बेटाना कहुबुं नाम, बहु बळी या जेनुं जोरावर काम; वमेरो बेटो मोहज क हीयें, कामने क्रोध तिसरो लहीयें ॥ १८ ॥ लो न मान ए पांचेरे भाइ, आशा बेहेनी ए बनी स गाइ || मोह राजाने कुमतिनारी, पांच बेटाने बे टी एक सारी ॥ १९ ॥ अचेत अज्ञान शोकने धोख, परद्रोही पांचे नाइनो थोक ॥ मिथ्या ना में ते कुंअरी जाणी, बरनी माता कुमति राणी ॥ २० ॥ काम नानेरो मोहनो नाइ, रति स्त्री थी कीधी सगाई || पांच बेटा पण रतिने थया, मद् महर ने उन्माद कह्या ॥ २१ ॥ चोथो दी करो अंकलहीयें, हिंसा पांचमो नाइ ते कही
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यें ॥ विषया बेटी पांचेनी बेहेनी, लाज न राखे जगतमा केनी ॥ २२ ॥ त्रीजो नानेरो लामक वा यो, क्रोध प्रवृत्ति कुथी जायो || हिंसा नारी तो तेने परणावे, पांच बेटाने बेटी एक थावे ॥ ॥ २३ ॥ कुवचन अहंकार ममताने इरखा, री शालो नाइ पांचे ए सरखा, प्रदया नामें बे पांचेनी बेहेनी, दया न आणे जगतमां केनी ॥ ॥ २४ ॥ चोथो लोनते जगत विख्यातो, तृष्णा नारीथी फिरे नित मातो ॥ पांच बेटा ते तृष्णा ने धाय, लालच चाहने प्राह कहेवाय || २५ ॥
चेन स्वारथ माडीना जाया, ममता बेहेनीथी सरवेनें माया ॥ मान पांचमो नानेरो नाइ, न मावती साधें कीधी सगाइ ॥ २६ ॥ पाखंड परपंच अशुद्ध धूत, कुबुद्धि पांचे नाइनो ए जूद, बठी दीकरी नर्मणा माही, नर्मावती रा पी कुखेथी जाइ ॥ २७ ॥ बेटाने घर बेटा त्यां कीधा, सरवाले तीस एकठा लीधा, पट दी करी वहुवारू पांच, जीती न शके आपी कोइ लांच ॥ २८ ॥ एकताळीस जानुं हेतज एहवं, सरवे जगतने वखाण्या जेहबुं ॥ राणी परवरती स
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रवेने जोती, कुंवरी आशाबे पीयर पनोती ॥ ॥ २९ ॥ कुंवरी विचारे धन्य मुज अवतार, पां चनाइने घर विस्तार ॥ त्र जगतमां म हारी वडाइ, महा बलिया योद्धा महारा बे ना इ ॥ ३० ॥ पचीश नतीजा जगतमां माहारे, ते आागल कोइनुं जोर न चाले || नानीन पांच परिवल जाऊं, पांच नतीजी काम बे काजु ॥ ॥ ३१ ॥ एतो परिवार को नलेरो, हिवे सा नलो निवृत्ति केरो | एक दिन राजा तत्पर थ या, अपमानीतिना मेहेलें त्यां गया ॥ ३२ ॥ देखी सुंदरी पाम्या विश्राम, तो ठरवानुं दी सेबे ठाम || एवं जाणीने तिहाज रह्या, निट तिने पण दीकरा या ॥ ३३ ॥ पांच दीकरा उपर बेटी, जेवी रतननी नरेली पेटी || दान पु एयने धरमना ताजा, प्रथम हुवा विवेक राजा ॥ ३४ ॥ शुन शीलने संतोष कहीयें, पांचमो नाइ वैराग्य लहीयें ॥ अशा नामें बेटी सवाइ, जेहना महाबलिया समरथ जाइ ॥ ३५ ॥ जे कोइ आशा कुंवरीने वरिया, ते तो न वसागर क्षणमांहे तरीया || आशा बांडीने
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णाशा आणे, ते तो अक्ष्य पद मेहेलमां माणे ॥ ३६॥ जेहना नाइन्नी आबरू आ खी, सासरव। सामां राखे नहीं बाकी ॥ सरवे रीजीने एहज अापे, जन्म मरणनं संकट का पे॥३७॥ कुंवरी अणाशा पीयर पनोती, पतिव्रता धर्म पाले निज सती ॥ तेहना पीय रना कहुं नाम, श्रोता सांजलजो थइ साव धान ॥ ३८॥ विवेक राजाने सुमति ने राणी, जेहनी वार्ता शास्त्रे वखाणी ॥ पांच दीकरा प्र सव्या सारा, मुखथी बोले ते अमृत धारा ।। ॥३९॥ पहेलो ज्ञानने परकाश बीजो, सचि त्त कुंवर जन्म्यो बीजो ॥ नाव नीति ए पां च प्रमाणो, श्रद्धा कुंवरी उठी ए जाणो ॥४०॥ बीजो कुंवर विचार कहीयें, सुबुद्धि राणी पार न लहीयें ॥ जेहनी कुखे ते पांच जण थया, अक ल अकाम उदास कह्या ॥४१॥ शुचि सुकृत पांच ए नाइ, जुगती नामें तो कुंवरी जाइ ॥ बीजो कुंवर शील ने डाह्यो, दमा राणीने पा ले बंधायो ॥४२॥ विनय सहन दयाने मुनि, गंभीर गरज राखे नहीं कोनी ॥ दीनता नामें
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कुंवरी डाही, जेहना बहुगुणी पांचे डे नाइ ॥ ॥४३॥ चोथो कुंवर संतोष जेहने, शांति ना में तो राणी बे तेहने ॥ पांच कंवर रापीयें जा या, त्रण जगतमां न जाये वाह्या ॥४४॥स त्य धीरज ने विश्वास कहीयें, चोथो निःसंदेह कुंवर लहीयें ॥ पांचमो कुंवर करूणावंत जाणुं, सुखी नामें तो कुंवरी वखाणुं ॥ ४५ ॥ वैराग्य न्हानो पांचमो नाइ, शोना शीकहुं वरणी न जाइ॥ जेनी कीरति त्रिलोके जाणी, विद्या स रखीतो जेने घर राणी॥४६॥ शम दम संज मसु रामत जेहनी, विरक्त उदास वात ते हनी ॥ सरसती कुंवरी गुण बहु कह्या, जेनी कृ पाथी पूर्वघर थया ॥४७ ॥ ए सह परिवार निवृत्ति केरो, स्त्री पुरूपनो रंग जलेरो ॥ एहवं कटंब कहावे जेहने, पारंगत थावे वारशी तेहने ॥४८॥ निवृत्ति केरो सरवालो कीधो, एक ता लीस जणनो लेखोज लीधो॥ तिश पुरुषने इ गीपार नारी, सांनली वातने राखो विचारी ॥ ॥४९॥ बेहु शोक्योनो विस्तार जाणुं, कुंवर कुंवरीन.सरखी वखाणुं ॥ एकतालीस दूनो ब्या
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सी कहेवाय, बेहुनो परिवार एटलो थाय ॥५०॥ बन्ने शोक्योने तीसरो राजा, सुख भोगवे रहे नित्य ताजा ॥ पंचाशी जण जगतमां कहेडे, काया नगरीमा एकठा रहे ॥ ५१ ॥ एक दि न बेहु शोके कीधी लडाइ. मेहेलो बंधाइ सा म सामी नाइ ॥ प्रत्ति कुटुंब एक पासें थy, निटत्ति कटंब मकामें रा॥५२॥ बांध्या मो रचा लडवाने सारू, कीधी सामग्री गोलाने दा रू ॥ सहुना दादाजी मनज कह्या, प्रत्ति पुत्र नी संघाते गया ॥ ५३॥ सहुनो इष्ट प्रात माराम, सादी रहीने जुवेने काम ॥ तमारा में दीलमां इम धारयुं, घरडे बुढापण कीधुंडे खारूं ॥ ५४॥ मानेतिकरे वशज थयो, मा टे कुंवरनी संघातें गयो ॥ एवं ना घटे घरडाने करवं, अणमानीतिना कुंवरथी वडवू ॥ ५५॥ माटे आपणे तिहां नहीं जावं ॥ अणमानीति ना कुंवर तरफ था, ॥ विवेक सैन्यने धीरज श्रापी, लडाइ करवी मुक्कर थापी ॥ ५६ ॥ तु मारी तरफ हमे रहीशुं, मन राजाथी युद्ध क रीशुं ॥ निवृत्ति सुत तत्पर थया, हथीयार लेइ
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मोरचे गया ॥ ५७ ॥ रण संग्राम रोप्यो ना इ, केवी थाय ने जुवो लमाइ ॥ मानीतीकेरी तरफ मनज चमीया, ततक्षण प्रावी मोरचे अ डीया ॥५८॥विवेक विचार जना नाइ, श्रा तमारामें कीधी चडाइ॥चमी मोरचा आगल श्रावे. तोफो नाला ने बंदुका लावे ॥ ५९ ॥ म न महा बलीयो जोधो कहेवाय, जेहनो ताप तो नवि सहेवाय ॥ मन राजायें तोफ हलावी, आ तमाराम नपर चलावी ॥५०॥ बटे गोलाने न डका थाय, कायर केरा तो ठरे नहीं पाय ॥ ना लां बरगने कबाण तीर, जालवी ले ने श्रातमा वीर ॥६१ ॥खड खंजरना घाव करे , आत माराम पटे रमे ॥ घोब खपुवाने कटारा घाव, श्रातमाराम जालवे दाव ॥ ६२॥ पालेरो जइ प्रागेरो आवे, अातमा नपर घाव चलावे ॥न वागे तीर न वागे गोली, फिरीथी श्राव्यो बर बीज तोली ॥६३॥ नहीं मूकं हिवे एम वदेठे, प्रातमाराम खडखड हसे॥ थाक्यो मनराजा घावज करी, पागे गयो तिहां मोरचे फरी॥ ॥६४ ॥ करे विचार हिवे केम थासे, आत्तमा
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राम केम जीताशे ॥ महारा जोरथी कोइ नवि रह्या, मोहे टा मूगला नडीने गया ॥६५॥ दे व दाणव सरखाने हणु, इंद्रादिक केरो नार न गणं ॥ कही कने कीधा धूलज नेला, आज शुं थयुं प्रावीके मवेला ॥ ६६ ॥ मन जाणे जे पा गे केमनागं, महारा जोरने खांपण लाग्यं ॥ त ताण तिहाथी घोडो चलाव्यो, भातमाराम न जीक श्राव्यो ॥६७॥ नपरा उपर करे घाव, कांइ नवि चाले मननो दाव ॥ प्रातमाराम धी रज लावी, ज्ञाननी गुपतीतिहां चलावी ॥६८॥ दमा खंजिरनो घाव तिवां कीधो, थयो घायल पकमीने लधिो ॥ अवले मुसके बांधे जेम चोर, मन- तिहां चाले नही जोर ॥ ६९॥ बह जो रावर जोधो वश कीधो, जीतनो डंको नगारे दीधो॥ एवं जोइने थर थरी गती, प्रवृत्ति सु तनी अांख तिहां फाटी ॥॥ ७० ॥ महाबलि यो मोह चडियो ने त्यांहि, जापट कण जीले त्रिलोकमांहि ॥ आणी कोरथी विवेक चडिया, बन्ने प्रावीने मोरचे अडीया ॥ ७१ ॥ घj घ मशान चाली लडाइ, सामासामी त्याहां अाफले
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नाइ ॥ स्त्रीयें स्त्रीने बेटीयें बेटी, पहेरयां बखत र जुलम पेटी ॥ ७२ ॥ सामा सामी तिहां क डाका थाय, जुनो वरणन कह्यो नविजाय ॥ श्र न्यो अन्यथी बलिया बहु शूर, जेवुं सायरनुं च तो पूर ||७३ || साहमा सामी त्याहां प्रगट्युं बे वेर, जैम पवनने सागरनी लहेर ॥ मिथ्या सा चने थाय लमाइ, शोकना सामो नाव वमाइ ॥ ७४ ॥ ज्ञानना सामो अज्ञान आवे, सुमति कुमतिने पानी हठावे ॥ अचेत चेतना सामो
डे बे, धोख प्रकाश सामो निडेबे ॥ ७५ ॥ स मऊ द्रोहने हठावे जीहां, काम विचार आफले तिहां ॥ जुक्तिना सामी विषया कहेवाय, सुकृ त सामो मद चमी आय ॥ ७६ ॥ मबर सामो लाज तिहां कहिये, हिंसाना सामो संजम लहि ये ॥ अंधक करतां अकलजी बलिया, अकाम जाइयें उन्माद बलिया ॥ ७७ ॥ मा हिंसा ने पाबो हठावे, शीयल क्रोधने बांधीने लावे ॥ दया निर्दयने हठावे जटमां, मुनि कुवचन उता रे घटमां ॥ ७८ ॥ अहंकार माफी विनयथी मां गे, रीश सहनने पाय त्याहां लागे ॥ द्रोही सुमता
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યુટ
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गल नविचाले, गंभीर इर्ष्याने केदमां घाले ॥ ७९ ॥ संतोष आगल नहीं उपाय, लो न बापडो नाशीने जाय || अभिमाननुं चाले नहीं किशुं, उदास च्यागल जाणवो पशु ॥ ८० ॥ विरक्त गल रक्तना वांक, वैराग याग ल दंनकजी रांक ॥ वाणी सारतां नर्मणा क हेनो, शमदम आागल परपंच शानो ॥ ८१ ॥ न्याय प्रागल नहीं पाखंम जारे, शुद्ध प्रागल अशुद्ध हारे ॥ साच झूठने सदाय वैर, झूठ हा रे तो मंगलिक घर ॥ ८२ ॥ कुंवरी अशा जोरावर नारी, ते गलशा रहीबे हारी ॥ केटलो कहूं पारनयावे, जुद्ध संग्राम नलो मचा वे ॥ ८३ ॥ श्रखर जीत तो निवृत्ति केरी, जे हनी परजाति जलेरी ॥ प्रवृत्ति सुतने जे पेंज जीप्या, जव सागरमाहें कदी नहीं बीप्या ॥ ८४ ॥ जे जन मानिती सुतने जइ मिलिया, ते तो दावानल दुःखमां जइ निलिया ॥ एवं जा पीने अभिमान खोवुं, प्रत्यक्ष वातें ए कायामां जोबुं ॥ ८५ ॥ देवता मांगे मनुष्य अवतार, ते नगरी आपण पाम्या निरधार ॥ माटे निवृत्ति
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सुतने जइ मिलवु, प्रवृत्ति कुंवर संघातें लडवुं ॥ ॥ ८६ ॥ पूवें ए कुंवर संघातें लडिया, ते तो ग्रंथादिक पुस्तकें चडिया ॥ रखे देशो मन मां कोइ राखो, बr शासतर पूरे बे साखो | ॥ ८७ ॥ शेष सरस्वति पार न पावे, तो कवि नि बुद्धि केमकरी गावे ॥ पूरो शिलोको की धो ए ठाम, हिवे कहुं बुं कवीनुं नाम ॥ ८८ ॥ नुंगणी त्रानो मिंगसर मास, शुक्र पदनो दिवस खास ॥ तिथि तेरस मंगलवार, करयो शिलोको बुद्धि प्रकार ॥ ८९ ॥ शहेर गुजरात रेहेवाशी जाणो, वीशा शिरमाली जात परिमा णो ॥ वाघेश्वरीनी पोलमा रहेबे, जेहवं बे तेहसू र शशी कहे बे ॥ ९० ॥ नथी जाणतो गणने नेद, कोइ म करशो माहरा पर खेद || कविजन आगल माहारी शी मती, दोष टालशे माता स रसती ॥ ९१ ॥ सूत्र सिद्धांत नथी हुं नण्यो, जाडा रेशमनो दोरको विण्यो । वात साची बेका यामां खोजो, विवेकी पुरुषो विचारी जो जो ॥९२॥ ॥ अथ श्री विमल मेतानो शिलोको लिख्यते ॥ सरसति समरूं बे कर जोडी, बंदु वरकांणो
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गिरनार गोडी ॥ जइयें शेजे शंखेश्वर दोमी, कविताने कुशल कल्याण कोडी ॥१॥ मुरधर माहें तो तीरथ जाजां. श्राव नवाही कोटनोरा जा ॥ गाम गढने देउल दरवाजा, चोमुख चंपा ने उपर गजां ॥२॥ आचल आचारज धरम घोष सूरि, जात्राकीधी पण जाणे अधूरी ॥ दे जल विण डूंगर दीसे ननूरी, ध्याने बेठा तिहां प दमासन पूरी ॥ ३॥ सुपनमां कहे चक्केमरी मा ता, ढील म करजो तिहां कणे जातां ॥ पोरवा ल पाटण विमल विख्याता, होशे बत्रपति स बलोजी दाता ॥४ ॥ अपहिलपुर पाटणे श्रा चारज आवे, श्रावक सोनाने फूलें वधावे ॥ग हूंली करीने गुणगीत गावे, गुरुजी विमलने वे गें बुलावे ॥ ५ ॥ नानडीओ बालक बीहंतो श्रायो, श्रीपूज्य श्रावक आगे बोलायो॥ जाणे शार्दूल सिंहणीयें जायो, वलतो विमलने वातें लगायो॥६॥त्रीजु तीरथ अाबु सुणाये, नि नालय विना जात्री कुण जाये ॥ पोरवाड पांखे कहेने कहेवाय, बीजे इण ठामें देवुल न थाय ॥७॥ लखमी पामुंतो प्रासाद करावं, सोना रू
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पानां विंब जरावू॥कागल मातागल लिखीने ली धो, पलतो श्री पूज्ये विहार कीधो ॥ ८ ॥ वि मलने पूजे कर जोडी माता, आपणे गुरुजीने ने सुखसाता ॥ साधु मुऊकने लिखी इमलीधो, देवल करावा बोल में दीधो ॥९॥ मतो करीने माता विचारे, पृथ्वीनो पति परधान सारे ॥ रहियें तो राजा विमलने मारे, इम जाणीने गि पीया इग्यारे ॥ १० ॥ नरयुं घर मूकी नाइ घर जाय, मजूरी करंतां तो मनमे शंकाय ॥ पेहेरे नढेने पेट नराय, विमल मामा घर मो टो इम थाय ॥ ११॥ तेणे समे शेठ पाटपनो जाणे, बेटी परणावी जोईयें ईण ठाणे ॥ पूजे प रगाम ठाम ठेकाणो, एवो सुंदर वर किहांथी प्राणो ॥ १२॥ सबला शेहरना शेठनी जाइ, बत्तीश लक्षणी बुद्धिवंती बाइ ॥ सबलो वर जो ईयें करवा सगाइ, पंडितने पूरे पितानो नाइ ॥१३॥ हातनी रेखा देखी अनुसारे, एहनो वर बांधे बादशाहा बारे॥ एहवो वेढालो वाणी या मांही, कुण आणे हो बार बादसाहि ॥१४॥ विमल मामाने मिलवा गयो चाली, ए बांधे
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बादसाह पण आज खाली ॥ शेठनी बेटी सबली बे वाली, ए जोईयें कन्या विमलने आ ली ॥ १५॥ बाईनो नाइ काकाने मामा, साथे सगाइ करवाने साहमाविमलने पोहोता चारे ही नाया, मा जाणे माहारे लेहेणायत आया। ॥ १६ ॥ खत मतांगल माहारोजी होशे, विम ल देशेने दूधे पग धोशे ॥ बेकर जोडीने बो लियो जोशी, पाटणथी पाव्या पूरण दोशी ॥ ॥ १७॥ खत कागलनी बात न कांइ, विमल लावो जू वाटां वधाई॥काका मामाने कन्यानो नाइ, मेंतो श्राव्याने करवा सगाइ॥ १८ ॥ किमहीं केता किमहीं कहेवाय, महारे पाने तो चूनो न देवाय ॥ पुण्य अंकूरो आगल जणा य, अदर अबलो ते सबलो इम थाय ॥१९॥ खेतरवा वाडे विमलनी माता, पाहुणा ढील न करे तिहां जाता ॥ मामासु मिलिया पुढे सुख साता, विमलने हाते शुं घडियो विधाता॥२१॥ मामा साद करे नाणेजा नाइ, श्रावो इणे चव टे इंडं चढाइ ॥ साथें सालो ते सुकन विचारे, विमल बांधशे बादशाह बारे ॥ २१॥ पगे ला
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गीने नारेल दीg, रूपियो पापीने तिलक ज कीर्छ । सगां जिमाडी बहु जशलीधो, पा टण सुधी पण पहोंचाइयो सीधो ॥ २२ ॥ माताने कहे विमलनो मामा, पाटणना शेठ
आयाथा साहामा ॥ तें तो माहरा घरमां न समावो, माने बेटो बे जूदां कमावो ॥ २३ ॥ लगो पासरो अांख नराये, विमल वापरडांचा रवा जाये ॥ अंबाइ माता परगट थाय, विमल ने वर शरनो देवाय ॥ २४॥ बिहुं घमी पुढे निधान पायो, घरे माता ने पूरण आयो ॥ ल हेर गंनीर वडान मारे, तेनो बेटो किम वाउमा चारे ॥ २५॥ ताहरें मातायें एक दृष्टांत दीधं, लीले लिखे सरी कुण काम कीधुं॥लिखमी पाखें नर शोना न पामे, आपणने अलगा कीधा हो मामे ॥ २६ ॥ विमलें माताने रुपैया दीधा, वे हलने बलद वेचाता लीधा ॥ मामाशुं मोहो टा जूहार कीधा, पाटणना घर समरावे सीधां ॥२७॥ विमल कणहटडी बेठो कमावे, राहव पो तिहां रमवाने आवे ॥ नेजो मांडेने चोट न थाय, राजा रजपूता उपर रीसाय ॥२८॥गाम
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नगरामे न राखुं केणे, खीच खावोने बेशी रहो खणे | आप उठी दाखी बल धूणे, राजाही चुक्यो विमल शिर धूणे ॥ २९ ॥ शाहना गुण तो सबला जाणीया, बाण कवाण आगें प्रा पीया ॥ विमल कहे हमेगं वाणीया, घेंस बास ना बांध्या प्राणीया ॥ ३० ॥ उने आकारें व लोणं ताणे, मंथ घुमडे माथु डोलाणे ॥ तेह नी घी मांहें जेहना शर जाय, प्रधान पुरुष ते तेहनो कहेवाय ॥ ३१ ॥ चाकर तो तेणी घ डीयें गुजरी आणे, सामासामीते वलों ताऐ॥ विमल शरनाखे कबाण साही, वाण निकल्यो बेहु घडी मांही ॥ ३२ ॥ ठाकर पूबे कुरा कि हांथी आयो, राजारो सेवक लेहररो जायो ॥ नीमें जाइनी परें बोलाव्यो, रूडो रजपूतें वि मल वधायो ॥ ३३ ॥ राजायें लेखण सिरपाव दीघो, विमलने बडो परधान कीधो ॥ शेहेरमां सबलो सोनाग लीधो, अधिक आडंबरे विवा ह कीधो ॥ ३४ ॥ राजा रलियायत परजा सहु राजी, विमल वधंतां गलिया सहु पाजी ॥ ना ो किरिया वेहेलने वाजी, सातशें सांढो सो
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नाकी ताजी ॥ ३५॥ विमलने वखतें दुशमन जागे, जाइ राजाने काने ते लागें। नणिये टी पणीय वात विचारी, विमल होशेजी ऋण बत्र धारी ॥३६॥केणे उपाये येतो न मराय, एहना शर भागे आपण हराय ॥ तीरे तरवारे लोह नी धारे, इणे वातें न मरे बीजा विचारें ॥३७॥ दातण करीने दरबारें आवे, महाराजा व्याही वाघण गेडावे ॥ वाघण जाशेने तत्काल खाशे, आपणुं राज निष्कंटक थाशे ॥ ३८ ॥ दुशम ने कह्यो ते राजायें कीधो, जीमनडुक्यो ज्यु म द पीधो ॥ विमलने हुकम वाघणनो दीधो, शा हे सदगुरुनो नाम तिहां लीधो ॥ ३९॥ चनदे पूरवनो सार नवकार, विमले तिहां गणियो त्र ण वार ॥ जोर जनावर न करे लिगार, वाघणने जाली जाणे मंजार ॥४०॥ काने जालीने रज पूता मांही, उनो राजाने आगले जाइ ॥ राह वणो नाठो वाघण गेडी, दुशमनने खावा वाघ पदोमी ॥४१॥ नीम नाग्यो तिहां आप उ गारे, विमल विरमेतो सघलाने मारें ॥ तेणे घ डियें सासी धर्म संनारे, रूडा माणसने रोड़ें रे
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कारें ॥४२॥राजानी रीत परधान सारे, थो माहिज दिवस के हिवे तारे ॥ मिलीणे जोत्रा वो मुझने कोणमारे, पाधरवट श्रावो देखीये कु ण हारे ॥४३॥ चढा उतरी सबली थाय, वाघ ण विमलना वैरीने खाय ॥ मु मरोडे मेतो री शाय, तुकारो देइ घर सामो जाय ॥४४॥च हटा चोपटनो रमण हारे, कहे तोजो तंमने को इन मारे॥मुंडे मांग्यां पासा ढलीया पोबारे, सा ढा आठने अढी संनारे ॥४५॥ बत्तीसी बां धीशुकन लीधो, घरे मातासु मतो इम कीधो ॥ आपणने राजायें उत्तर दीधो, पाटणमां नघ टे पाणी हिवे पीधो॥४६॥ आज गयो हुंद रबार मां हैं, राजा कहे विमल वाघण साहे॥ नवकार समरी कानमे जाली, लेइ जइ राजा आगल मेली ॥४७॥राहवणामा हे तोरंग दो ल घाले, बीजो बाघडी वाघा कुपजाले॥हुँतो एमज मेलीने प्रायो, आपण उपर राजारी सायो॥४८॥ माता विमलने खोले बेशाडे, जवारणा लेइ लूण उतारे ॥ सदके जागं रेबे टा हुं तारे, तुं कुशले नले आयो घर महारे॥
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॥४९ ॥ विमल वेढालो लटकालो लांडो, के हर केशरीयो घाहरनो घांडो, चाकर तेमोने पा टण गंडो, देखें कुण आवे आपणने आडो॥ ॥ ५० ॥ तिण घडी गाडले नार घलावे, सा तशे सोनानी सांढो चलावे ॥ पांचशे चाकर ब गतरिया साथी, पोते पण बेठो ऐरावण हाथी ॥५१॥ चाल्यो उत्रपति बाजार मां हे, पा ये लागीने एम कह्यो शाहें ॥ एवो परधान पा टणथी जाय, नीमन नलु कदीय न थाय ॥ ॥५२॥ बेटानी कीर्ति सनिली माता, पाम्यां परम सुख संतोष शाता ॥ अप हिलीयुं मूक्यु टली अशाता, चोखां शुकुन थयां गेडीने जा तां ॥५३॥ गायो गांडुने घोमाने हाथी, कन्या कुंवारी सात आठ साथी॥ डाहवो रूपमियो बोले बांहे पूरी, मृग मालातो जगमते सूरि ॥ ॥५४॥ शकुन बांधीने आगे पगदीधो, नीम नी सीमे पाणी न पीधो ॥ त्रीजे दिने गढ ता रंगो लीधो, डहोल पोसीने पोतानो कीधो ॥ ॥५५॥ अदरियो आप श्रावीने मिलियो, व धाई दीधी दांतें पातलीयो ॥ वशुना गढवालो
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बलियो खलनलीयो, कीराम करडोने दाहामो पण बलियो ॥५६॥ बीजा नगरमां वात सं नलागी, पावा गढने पंथे रोकाणो पाणी ॥ वि मलनो वधतो परताप जाणी, प्राग उमराव मिलिया सौप्राणी ॥ ५७ ॥ आदर देई ने वि मल वेढालो, वारे विसलदे नूपत नीन मालो ॥ डाहो डुंगरशी काहानमदे वालो, एटलाशुं मिलियो अजमेरवालो ॥ ५८॥ सोरठ गुजरा थ दखणनी नूमि, मालव मरहट्ठ पूरविया रू मी ॥ एटला तो वाटें आविने निलिया, पनी बीजाही राजन मिलिया ॥ ५९ ॥ पाटण गेमी ने हुआ प्रसिद्धां. सातशे गाम गढीपारा ली धा ॥ मोहोटा महीपति चाकर कीधा, डेरा चं द्रावे प्रावीने दीधा ॥६०॥ पोल नांगीने प राक्रम कीधो, नला नूमि वनवास लीधो ॥ विमलें वसहीनो महूर्त कीधो, नेजा रोपीने नि शाण दीधो ॥६१ ॥ चोधरी चोवटीया प्रोहि त पटवारी, विमलने मिलिया सांठाले नारी॥ गाम गढने धरती तुमारी, साहेबने हाथे शरम अमरी ॥ ६२ ॥ सामा अाव्या तेने सिरपाव
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दीघा, नगरना लोक नीहाल कीधा ॥ सहुको आपणा पादरमां आवे, चोगुणुं रूप चढियो चं दरावे ॥ ६३ ॥ घर गढ कोट सबला करावे, घ णा गराशिया मिलवाने आवे || जालम जोरावर वाणियो वाधे, चाकर राखेने देशपण साधे ॥ ॥ ६४ ॥ मेताने मुजरे महीपति वे, साह सि रपाव सखरा पेहेरावे || घोडा हाथीने गढगाम दीधा, राजवी सघला रलियात कीधा ॥ ६५ ॥ विमल मन मांहें वात विचारे, सबल बत्रपति चाकर महारे || करूं सजाइ कटक सारे, एकवा र बांधु बादशाह बारे ॥ ६६ ॥ तंबू ताणीने तै यार कीधा, शूर वीर ते संघातें लीधा ॥ केतल कटीने चाकर बगतरिया, वांका वेढाला पूरा पा खरीया ॥ ६७ ॥ नाल नेजाने नीशाण वाजे, हाथीने हलके हाले महाराजे || घोडानी गिरदें प्रकाश बायो, वाणीया रूपें वसुदेव आयो । ॥ ६८ ॥ दरीयो थर हरीयो धरती धुजावे, जा ऐ बोटोशो चक्रवर्ति प्रावे ॥ पोतें पालखी बा दशाह दावे, कटकोनां काम चाकर चलावे ॥ ॥ ६९ ॥ एम करतां सिंधु देशमां यायो, पेहेलो
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नगर ठठ्ठो दलाच्यो | पडीयो पिंडीच्या उपर जा इ, बापडो घाल्यो बंदीखाना मांही ॥ ७० ॥ उप दाहाडे अधिक आरंभ कीधो, जांजा जीवने जा पीदुःख दीधो ॥ पहेलो पिंडिन पिंजर घाले, पबी बीजाने बंधन चाले ॥ ७१ ॥ आण वरतावी पग दीधो, केटले एक दाहाने काबुल लीधो ॥ मेहतें मुलतान पहोतानो कीधो, क टके कानो जाइ जल पीधो ॥ ७२ ॥ लाहो र खुरसाण खंधार बंगालो, बलक बखारो पठा एा वालो | तारा तंबोलने ईशणपुरवालो, सूर चंद सुधी चढीयो वेढालो ॥ ७३ ॥ आगें तो साहामो समुद्र आयो, जेहने पासें तो जोर च लायो || देश सघला शरण कीधा, बारे बाद शा बांधीने लीधा ॥ ७४ ॥ गामने गढें था
बेसारे, बलीयो बादशाह बांधेते बारे, ॥ वा टे वेढालो नाज शालो, वडो वागीयो ईडर वालो || ७५ ॥ चारेही सरखा बत्र धरावे, प
शाहवडी विमल कहावे || देश जीतीने दान वजायो, बारे बादशाह बांधीने लायो ॥ ७६ ॥ नीमने वसवा पाटण दीधो, चंदरावे आवीने
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सामैयो कीधो ॥ रंग रलीयाने तोरण तरीया, माताने तो मन सुधे मिलीयां ॥ ७७ ॥ हरख तो हेजें हियमे न मावे, उठीने उग्यो साहेब चं दरावे || राज्य पालेने दुशमन टाले, बालपणे दीधा बोल संनाले ॥ ७८ ॥ गुरें कह्यं तो प्रासा द करावे, उप रातें कही अंबावावे ॥ बेटो दीयुं के देवल करावी, महारे तो जोइयें प्रतिमा नरावी ॥ ७९ ॥ खाटला हेठे त्रणेही खाण, सो नुरुपूंने आरस पाए ॥ धुंधुच्या मांडी धातु करा वे, आरस आबु उपर चढावे ॥ ८० ॥ एतोग गाढ गाडी न चढाय, रूपा बरोबर पाषाण थाय ॥ सांजलीने शाह जोवाने जाय, साथै आ वुं कहे राणी रीसाय ॥ ८१ ॥ जाणेज कहे मना वी हालो, हिवडां कांइ देखामो डुंगर ठालो || दे वुल थाय तेडुं बहु सासु, आज कांइ फोकट फे
यो फास ॥ ८२ ॥ नणदलो यावी मामीने पाले, हमणां कांइ नटको नाखर ठाले || ठम के कहेशे विमल वहालो, देउल थायेने गुरू ले इ हालो ॥ ८३ ॥ मामी तो मांडे ऊगडो इम जाजो, साथै हुं वुं तारे तुं लाजो ॥ समज्या
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समज्या हिवे बात सहु जाणी, बीजी परणीने थापो पट राणी ॥ ८४ ॥ श्राप अहंकारी उत्र धरावी, हठवाणीयानी बेटी घर अणावी ॥ मु डे न कह्यो पण मन मांहे जाणी, सात आठ बेटी सबलानी प्राणी ॥ ८५॥ नाणेजी कहे मामाने नाइ, जिमे नही राणी सबली रीशाइ॥ जवाहीर जडावनी पालखी दीधी, शाहे शेठा पी संघाते लीधी ॥८६॥ बंदीखाने जे बाद शाहनी बीबी, पगे बीडीने हाथमां बीडी ॥ वि मलने प्रावी अंचुडा देखामे, शाह एहवा अ जमेर पाडे ॥ ८७॥ हुकम हुन देव बंदीखाना गेडी, बादशाह पेरावे बह सारी साडी ॥गढ गाम गरास थोडासा दीधा, शाह बत्रपति चा कर कीधा ॥ ८८॥ इम करतां अाबु उपर जा य, खागें गढ देखी खुशीयाल थाय। डुंगर सा तपुडो सबलो देखे, ए पागल बीजा नाखरशे लेखे ॥ ८९॥ कहे कोटनोराजा देखामो, प्रा नमी आखे अणी सीरोहीवालो ॥ पूरो पाखरी श्रो पहाड कालो, चांपले लीनो बेल गेगालो ॥९० ॥ पान- बीडुं पाए मेलीजें, पूरो नाणो
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तो पल्ले घालीनें ॥ दुआ मांगीने देउल कीजें, ए गढ अहींाज अजरामर कीजें ॥९१ ॥ वि मल वेढालो सबल हुओ, दाण देइ मांगे देह रानो दुओ ॥ शाहे आगल वात विचारी, देह रानी नीरु सीरोही सारी ॥ ९२॥ पांचसो घो डाने पुणसो हाथी, बे सांढो नरी सोनानी सा थी। नेट लेइने नाणेजो प्रायो, रूमे सुठामे पायो रोपायो॥९॥श्राप असवार होइ जोवाने जाय, जिमणे काने जिनावर गायाइण्ठामे आज रंग रोपाय, कामने नामे अजरामर थाय । ॥ ९४ ॥ रेवत राखे जालीने वागें, हाथ जोमी ने हुकम मांगे॥समी धरतीने सालनहीं आगे, देलवाडे देवुल करवाने मांगे ॥ ९५॥ गवरी पु त्रनो आदेश लीधो, नवमण नैवेद्यने खवराव्यो सीधो ॥ शाहें हाथy कुंकुम दीधो, रंग रोपीने मोहरत कीधो ॥९६ ॥ देव नमीयोने देवुल था य, लाखो गमे तिहां लोक कमाय ॥ विमल वि शेषे जोवाने जाय, गज रथ देखीने गर नरा य॥९७॥शाहे सीलालाट वधारया जोरे, मांख पानी परे पाषाण कोरे ॥ सोना रुपाना सिरपा
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व दीधा, आबु उपरे तो ए काम कीधां ॥ ९८ ॥ थंना कुंभीने जरुखां जाली, तिन तोरणने उप र टाली || पोल पताका चोकी चोसाली, ना हनी पूतली नाटारंजवाली ॥ ९९ ॥ परिकर पं चास गंजारे मोरे, मुल मंपें जालमजोरे ॥ नरवर गजरथने कीचक कोरे, मनना मनोरथ इणीपरें पूरे ॥ १०० ॥ काम कोटी गमे केटल चखाएं, शिलोका मांहे संबंध किम आएं ॥ वि मलें विशेष खरच्युं जे नाएं, त्रीजुंही तीरथ थ युंबे ठेका ॥ १०१ ॥ देवुल निपाईने प्रतिमा जरावी, प्रतिष्ठा पूज्यने हाथें करावी ॥ इंडुं च ढावी जमणो कीधो, विमलें लिखमीनो लाहो इम लीधो ॥ १०२ ॥ नाजाने गढ आबु न लावे, आप चढीने चंदरावे आवे || तिहां पण देवल नवो निपावे, नेमनाथनुं बिंब जरावे ॥ ॥ १०३ ॥ अंबाजीनां तो प्रासाद कीधां, बीजा ने बली बाकुल दीधा ॥ मनना मनोरथ सघला इहां सीधा, बारे बादशाह बीरुद लीधा ॥ ॥ १०४ ॥ पाटण बोडीने चंदरावे आवे, खाण पामीने बत्र धरावे ॥ बादशाह बांधीने दंड नरा
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व्यो, आबु उपरे देवुल कराव्यो ॥ १०५ ॥पो रवाड पराक्रमी पंचमें आरे, नाणुं खरचे ने न्यात वधारे ॥ पंचायण सिंहें बांध्या बादशाह बारे, एक सपत आखो कुल तारे ॥ १०६॥ केहेशे घाणीयो काइ वखाणो, खाण पामीने खरचीयो नाणो ॥ एहवो कुण हो रावने राणो, तिजो तीरथ करे ठेकाणो ॥१०७ ॥ कोइ कहेशे क वितायें काचो, सूर वीरने सबल साचो ॥ विम ल वेढीयो तन कह्यो आगे, कटकीने कामे न जागे पागे ॥ १०८॥चढीयो टलीयो ने संग्रा म कधिो, बीजे शास्त्रे संबंध प्रसिद्धो॥जुधनी वा त जति न वखाणे, संबंध संपें थोमोसो आणे ॥१०९॥ एक सुपुत्र लेहेरनो जायो, विमल शास्त्रमा एक वखाण्योगमनना मनोरथ सघला ते सिद्धा, बारे बाबाइनां विरुदतो लीधां ॥ ॥११० ॥ बीजं वरदान बाण विद्यान, आप्यु अंबाये सत्तर धानुं ॥ पांच गान लगें वहेजो तुं मारे, वाघण मारीने परताप सारे ॥ १११॥ दश अव्याशी समय दीपायो, विमले आबुनो तीरथ जनायो ॥ कधी थापना धर्मघोष सूरें,
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आवे संघ तिहां बहुबल पूरे ॥ ११२ ॥ नपे वनराइ नार अढार, अांबा चापानो न लहुं पा र॥ आबु न दीठो तेहनो आवतार, निःफल जापजो ते निरधार ॥ ११३॥ गजपति घो माशुं विमलशाह घोडे, उपे अदनुत रूप संजो डे ॥ फूल केतकी श्राबुगढ मांहें, परिमल पूरेने सीरोही जायें॥११४॥नूत नंदने मुनिगण इंदु, (१७८७) ज्येष्ठ शुद्ध आठमवार दिणंदु॥रूमो शिलोको एह रचायो, खेडे हरियाले कलश च ढायो ॥ ११५॥ हीररत्न सूरि वंदी गणधार, उत्तम ए में कधिो गुणधार ॥ एकवार तो आबु गढ जोजो, हिम्मत राखी समकेति होजो ॥ ॥ ११६॥ नाव धरीने एह जे नशे, लिखशे गिणशे ने सनामां गुणशे॥वाचक उदयनी एह वीवाणी.सद्धि सर्दहजोशन फलजाणी॥११७॥
॥ इति शिलोका संग्रह समाप्त ॥ ( शिलोका संग्रह नाग २ जो उपेठे )
(किंमत ५ अाना )
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长老老半米米米米米米米米米关法法学本法米米米米米米米 * जैन धर्म संबंधी गपेला पुस्तकोनं सतीपत्र * १ जैन धर्म ग्यान प्रदीपक पुस्तक किंमत १.|| रुपया. * २ श्री जैन धर्म सिद्धांत सार पुस्तक किंमत १। रुपया. * ३ श्री जैन धर्म ज्ञान प्रकाश पुस्तक किंमत १२ आण.
४ श्री रामलक्ष्मण चरित्र कथा युक्त किंमत १ रुपया. * ५ चंदराजाको राम किंमत १ रूपया * ६ लक्ष्मण बोध नाटक किंमत १२ घाणं.
७ श्रीपाल राजाकोरास चार खंडको किंमा १० आणे. * ८ अंजनाको तथा राणी पदमावतीको रास किं. ८४६ आणे. * ९ मानतुंग मानवतीकोरास किंमत ८६ आण. यो । हंसराज बछरानको रास किंमत ५ आण. * ११ सतधारी राजा हरीचंदकी चोपाई किंमत ४ आण. * १२धन्ना साळजद्र शंठकी नोपाई किमत ४ आ.ग. 5 १३मंगळ कळसकी चोपाई किंमत ४ आ. * १८ देवकी राणीको राप्त (छ लाइनो रास) किं. ४ाण * १५लिलावती राणीकी चौपाई किंमत ४ आण. * १६ अमर सेन जयसेन राजाकी चौपाई किंमत ४ आणे. * १७चंदन मलीयागीरी की चोपाई किंमत ४ाणे. * १८परदेशी राजाको रास किंमत ४ आणे.
१९कयवन्ना शाहको रास किंमत ४ आणे. * २० महिपती राजा अने मतिसागर प्रधान की चौपाई किंमत ४ाणे * * २१कांनड कठीयाराकी चौपाई कर्म बंधन राम किंमत ८४ आएं * २२स्नात्र पूजा तथा वीस स्थानकनी पूजा किंमत ४याणे * २३ स्तवन सहाय संग्रह प्रत्येक नाग किंमत ८४ आणं. * २४मेणरहयानी चोपाई किंमत ३ आणे. *२५पांचपदारी मोठी वंदना किंमत ३ आणे. * २६पंडित देवचंद्रजीमहाराजकृत चोवीमी किंमत १॥ आणा * २७पंडित आनंदघनजी महाराजकृत चोवीसी किंमत १।। आणा.* *२८श्री जैन धर्म काव्यमाला ( आठ नाग ) किंमरः १ रुपया.* 兴丰张兴朱孝未来水米未老卡卡卡卡卡卡卡卡卡卡卡卡
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