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________________ व दीधा, आबु उपरे तो ए काम कीधां ॥ ९८ ॥ थंना कुंभीने जरुखां जाली, तिन तोरणने उप र टाली || पोल पताका चोकी चोसाली, ना हनी पूतली नाटारंजवाली ॥ ९९ ॥ परिकर पं चास गंजारे मोरे, मुल मंपें जालमजोरे ॥ नरवर गजरथने कीचक कोरे, मनना मनोरथ इणीपरें पूरे ॥ १०० ॥ काम कोटी गमे केटल चखाएं, शिलोका मांहे संबंध किम आएं ॥ वि मलें विशेष खरच्युं जे नाएं, त्रीजुंही तीरथ थ युंबे ठेका ॥ १०१ ॥ देवुल निपाईने प्रतिमा जरावी, प्रतिष्ठा पूज्यने हाथें करावी ॥ इंडुं च ढावी जमणो कीधो, विमलें लिखमीनो लाहो इम लीधो ॥ १०२ ॥ नाजाने गढ आबु न लावे, आप चढीने चंदरावे आवे || तिहां पण देवल नवो निपावे, नेमनाथनुं बिंब जरावे ॥ ॥ १०३ ॥ अंबाजीनां तो प्रासाद कीधां, बीजा ने बली बाकुल दीधा ॥ मनना मनोरथ सघला इहां सीधा, बारे बादशाह बीरुद लीधा ॥ ॥ १०४ ॥ पाटण बोडीने चंदरावे आवे, खाण पामीने बत्र धरावे ॥ बादशाह बांधीने दंड नरा
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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