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________________ तो पल्ले घालीनें ॥ दुआ मांगीने देउल कीजें, ए गढ अहींाज अजरामर कीजें ॥९१ ॥ वि मल वेढालो सबल हुओ, दाण देइ मांगे देह रानो दुओ ॥ शाहे आगल वात विचारी, देह रानी नीरु सीरोही सारी ॥ ९२॥ पांचसो घो डाने पुणसो हाथी, बे सांढो नरी सोनानी सा थी। नेट लेइने नाणेजो प्रायो, रूमे सुठामे पायो रोपायो॥९॥श्राप असवार होइ जोवाने जाय, जिमणे काने जिनावर गायाइण्ठामे आज रंग रोपाय, कामने नामे अजरामर थाय । ॥ ९४ ॥ रेवत राखे जालीने वागें, हाथ जोमी ने हुकम मांगे॥समी धरतीने सालनहीं आगे, देलवाडे देवुल करवाने मांगे ॥ ९५॥ गवरी पु त्रनो आदेश लीधो, नवमण नैवेद्यने खवराव्यो सीधो ॥ शाहें हाथy कुंकुम दीधो, रंग रोपीने मोहरत कीधो ॥९६ ॥ देव नमीयोने देवुल था य, लाखो गमे तिहां लोक कमाय ॥ विमल वि शेषे जोवाने जाय, गज रथ देखीने गर नरा य॥९७॥शाहे सीलालाट वधारया जोरे, मांख पानी परे पाषाण कोरे ॥ सोना रुपाना सिरपा
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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