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________________ णाशा आणे, ते तो अक्ष्य पद मेहेलमां माणे ॥ ३६॥ जेहना नाइन्नी आबरू आ खी, सासरव। सामां राखे नहीं बाकी ॥ सरवे रीजीने एहज अापे, जन्म मरणनं संकट का पे॥३७॥ कुंवरी अणाशा पीयर पनोती, पतिव्रता धर्म पाले निज सती ॥ तेहना पीय रना कहुं नाम, श्रोता सांजलजो थइ साव धान ॥ ३८॥ विवेक राजाने सुमति ने राणी, जेहनी वार्ता शास्त्रे वखाणी ॥ पांच दीकरा प्र सव्या सारा, मुखथी बोले ते अमृत धारा ।। ॥३९॥ पहेलो ज्ञानने परकाश बीजो, सचि त्त कुंवर जन्म्यो बीजो ॥ नाव नीति ए पां च प्रमाणो, श्रद्धा कुंवरी उठी ए जाणो ॥४०॥ बीजो कुंवर विचार कहीयें, सुबुद्धि राणी पार न लहीयें ॥ जेहनी कुखे ते पांच जण थया, अक ल अकाम उदास कह्या ॥४१॥ शुचि सुकृत पांच ए नाइ, जुगती नामें तो कुंवरी जाइ ॥ बीजो कुंवर शील ने डाह्यो, दमा राणीने पा ले बंधायो ॥४२॥ विनय सहन दयाने मुनि, गंभीर गरज राखे नहीं कोनी ॥ दीनता नामें
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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