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दिन वाधे चंद्र वदितो, केडने लंके केशरी जीत्यो ॥१४॥ त्रिवली देखीने त्रिनुवन मोहे, गंगा जमुनाने सरसति सोहे ॥ नासा निरूपम दीपशि खाशी, नयण पंकज पत्र प्रकाशी॥१५॥ मुखसुं बोले अमीरस वाणी, मन माहे हरखे शेवादेवी राणी ॥ बॉल लीलामां बुद्धि भंडार, देखीने मोहे सुर नर नार ॥१६॥ एक दिन नेमजी बाजार मांहे, नगरीना ख्याल जूवे उग है ॥ कृष्ण तणी जिहां आयुध शाला, तिहां के णे पोहोता दीन दयाला ॥१७॥ शंख चक्र ने धनुष्य उदार, कोदंड ताणीने कीधो टंकार ॥ लता सेवक इणीपरें बोले, गोविंद विना ए च क न डोले ॥१८॥ टंची प्रांगुलिये चक्र 3 पाडयु, चाक तणा पर नलुनमाड्य॥ अचक उना इणी परें नांखे, शंख न वाजे कृष्णाजी पां खे ॥ १९॥ हलवेशुं लेई शंख बजायो, सप्त पा ताले सरगें सुणायो॥शेष सलसलीयो धरा तिहां धमकी, जरूखें बेठी कामनी ऊबकी ॥२०॥ हबक लागीने हार तिहां त्रूटया, कंचक तणा बं द विबूटया ॥ समुद्र जल हलीया चढिया कल्लों