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________________ ६९ दीघा, नगरना लोक नीहाल कीधा ॥ सहुको आपणा पादरमां आवे, चोगुणुं रूप चढियो चं दरावे ॥ ६३ ॥ घर गढ कोट सबला करावे, घ णा गराशिया मिलवाने आवे || जालम जोरावर वाणियो वाधे, चाकर राखेने देशपण साधे ॥ ॥ ६४ ॥ मेताने मुजरे महीपति वे, साह सि रपाव सखरा पेहेरावे || घोडा हाथीने गढगाम दीधा, राजवी सघला रलियात कीधा ॥ ६५ ॥ विमल मन मांहें वात विचारे, सबल बत्रपति चाकर महारे || करूं सजाइ कटक सारे, एकवा र बांधु बादशाह बारे ॥ ६६ ॥ तंबू ताणीने तै यार कीधा, शूर वीर ते संघातें लीधा ॥ केतल कटीने चाकर बगतरिया, वांका वेढाला पूरा पा खरीया ॥ ६७ ॥ नाल नेजाने नीशाण वाजे, हाथीने हलके हाले महाराजे || घोडानी गिरदें प्रकाश बायो, वाणीया रूपें वसुदेव आयो । ॥ ६८ ॥ दरीयो थर हरीयो धरती धुजावे, जा ऐ बोटोशो चक्रवर्ति प्रावे ॥ पोतें पालखी बा दशाह दावे, कटकोनां काम चाकर चलावे ॥ ॥ ६९ ॥ एम करतां सिंधु देशमां यायो, पेहेलो
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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