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शन करीने सह सुख पावे॥धन्य धन्य प्रनुनोमो टोडे गात्र, एहवा जिननी करीयें जात्र॥४३॥ ॥ कुंड खोडीयार सदा जलनरीयो, लहेरां दीएडे अलिवन दरीप्रो ॥ मीन कब जलचर वंश, जेहने सेवेने सर्वदा हंस ॥४४॥ द्रव्य खरच्यां ले जेहमां लद, प्रासाद रचीयां दीठा प्रत्यद॥ एहमां नही कांइ खलखंच, तेहमां थाप्यां पा डव पंच ॥४५॥ चन्मुख शिवा सोमजीयें क राव्यो, जेने यगायुग नाम रखायो॥ नठी प्रना ते दरिशण कीजें, मक्ति रमणीने वेगें वरीजें॥ ॥४६॥ ढूंके बेठा मरुदेवी माता, जेना दरि शपथी होय सखशाता ॥कतोडीने सिद्धिसो पान, चडी पाम्या मुक्ति निदान ॥४७॥ फि रती चोफेर देहरा केडे, देतां प्रदक्षिणा कर्मने फेडे ॥देई प्रदक्षिणा बाहेर अाया. सर्वे संघ ना कारज सारया ॥४८॥ वाणी सुणीने चक्रीयें नराव्या, मणिमय पांचशे धनुष्यनी काया ॥ग फा पश्चिम दिशियें जिहां, बिंब मणिमय नं रया तिहां ॥ ५९॥ देवता तेहनी सेवायें आवे, पूजा करीने नावना नावे ॥ देव कराबे प्रनुनें