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________________ गीने नारेल दीg, रूपियो पापीने तिलक ज कीर्छ । सगां जिमाडी बहु जशलीधो, पा टण सुधी पण पहोंचाइयो सीधो ॥ २२ ॥ माताने कहे विमलनो मामा, पाटणना शेठ आयाथा साहामा ॥ तें तो माहरा घरमां न समावो, माने बेटो बे जूदां कमावो ॥ २३ ॥ लगो पासरो अांख नराये, विमल वापरडांचा रवा जाये ॥ अंबाइ माता परगट थाय, विमल ने वर शरनो देवाय ॥ २४॥ बिहुं घमी पुढे निधान पायो, घरे माता ने पूरण आयो ॥ ल हेर गंनीर वडान मारे, तेनो बेटो किम वाउमा चारे ॥ २५॥ ताहरें मातायें एक दृष्टांत दीधं, लीले लिखे सरी कुण काम कीधुं॥लिखमी पाखें नर शोना न पामे, आपणने अलगा कीधा हो मामे ॥ २६ ॥ विमलें माताने रुपैया दीधा, वे हलने बलद वेचाता लीधा ॥ मामाशुं मोहो टा जूहार कीधा, पाटणना घर समरावे सीधां ॥२७॥ विमल कणहटडी बेठो कमावे, राहव पो तिहां रमवाने आवे ॥ नेजो मांडेने चोट न थाय, राजा रजपूता उपर रीसाय ॥२८॥गाम
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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