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चेलणा तलाइए विसामो लीजें, श्रादश्विर पो लें उंचा चढीनें ॥ मरुदेवा टंक मां हे प्रावीजें, चोखा खाणथी बे चार लीजें ॥ ५० ॥ जंचा अदनतने पाये लागीजे, 'मोद बारीने पो लें पेशीजें ॥ केशर घशीने पूजा करीजें, सकृ त फलना अम जश लीजें ॥ ५१ ॥ सुर न र विद्याधर चक्रवर्ति राणी, प्रतिमाने पूजे जल ट आणी ॥ अर्चे चर्चे ने गुण गीत गाय, खेल खेलेने खुशियालथाय ॥५२॥ इणि विधि जात्रा करी घरायो, चक्री मनमां आंनदपायो॥ पा लीनी पाखती पोरवाड चावो, नाम नगोने गाम हिमावो ॥५३॥पंडित शांति विमलें चारित्र दी धो, पग श्री पज्ये पन्यास कीधो॥ धर्मनो ऊ द्यम बहुलो तिहां थाय, पाप कर्मते दूर पलाय ॥५४॥ तपगड नायक श्रीविजयप्रन सूरी, गिरू
ओ गड नायक पुण्याइ पूरी॥कहे विनीत विमल कर जोडी, ए नणतां आवे संपत्ति कोडी॥ ५५॥ ॥ अथ साळनद्र शाहको शिलोका लिख्यते ॥ __सरसति माता करीने पसाऊं, पासजीकराप्र णमुं हुं पाऊ ॥ शालिनद्र शाहनो कहुं शलोको,