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ए चक्री || नरत रह्या हिवे हाथ खंबेरी, एहनी मूठीनी गत अनेरी ॥ ६१ ॥ दीन हीणो नरत नैं जाणी, बाहुबल बोले ते एहवी वाणी ॥ नर तन मारूं नाई सलूणी, मानव माथु ते कोइ मधूणो ॥ ६२ ॥ मूठिनो मनमां याणी आलो च, मस्तकें लेइ कीधो ते लोच ॥ बाहुबल थ यो ते साध वैरागी, सुर नर पूजे पाय ते लागी ॥ ५३ ॥ देव दुंदुभि वाजी आकारों, फूलनी दृष्टी थइ चिहुं पाशे ॥ मनथी मेली विषय वि कार, धन धन जंपे सुर नर नार ॥ ६४ ॥ क र्म खपावी केवल पायुं, लघु नाईने शिसन ना म्युं ॥ कानसग्ग करी कर्म निकंदु, पबी जइने जिनवर वंदु ॥ ६५ ॥ इम धारी मनमां कान सग्ग रहे, वर्षा कालें ते कर्मने दहे || कुंजर च ढी केवल किम लहियें, बेनने वचने बुकयो ते हिये ॥ ६६ ॥ पगजपाडयो केवल पाम्युं, जई ने जिनवर मस्तक नाम्युं || नाइ नवाणुं एक ठा मिलिया, मन मनोरथ सघला ते फलिया ॥ ॥ ६७ ॥ एक वर्ष लगे काजसग्ग रह्या, वाचा पालीने मुगते ते गया | उदय रतन कहे वचन