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________________ 199 सामैयो कीधो ॥ रंग रलीयाने तोरण तरीया, माताने तो मन सुधे मिलीयां ॥ ७७ ॥ हरख तो हेजें हियमे न मावे, उठीने उग्यो साहेब चं दरावे || राज्य पालेने दुशमन टाले, बालपणे दीधा बोल संनाले ॥ ७८ ॥ गुरें कह्यं तो प्रासा द करावे, उप रातें कही अंबावावे ॥ बेटो दीयुं के देवल करावी, महारे तो जोइयें प्रतिमा नरावी ॥ ७९ ॥ खाटला हेठे त्रणेही खाण, सो नुरुपूंने आरस पाए ॥ धुंधुच्या मांडी धातु करा वे, आरस आबु उपर चढावे ॥ ८० ॥ एतोग गाढ गाडी न चढाय, रूपा बरोबर पाषाण थाय ॥ सांजलीने शाह जोवाने जाय, साथै आ वुं कहे राणी रीसाय ॥ ८१ ॥ जाणेज कहे मना वी हालो, हिवडां कांइ देखामो डुंगर ठालो || दे वुल थाय तेडुं बहु सासु, आज कांइ फोकट फे यो फास ॥ ८२ ॥ नणदलो यावी मामीने पाले, हमणां कांइ नटको नाखर ठाले || ठम के कहेशे विमल वहालो, देउल थायेने गुरू ले इ हालो ॥ ८३ ॥ मामी तो मांडे ऊगडो इम जाजो, साथै हुं वुं तारे तुं लाजो ॥ समज्या
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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