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॥ ५७ ॥ बहरी पालीनें यात्रा जे करशे, मुक्ति रम पीनी लीला ते वरशे ॥ नाण दरिसण चारित्रने पावे, मोह सप्तक वहेलो खपावे ॥ ५८ ॥ संवत ठारे चोत्रीशे वरपें, यात्रा कीधीवे मनने हर पें ॥ शुदि पूनम चैत्रज मास, सदा गोडीचो पूरजो आस ॥ ५९ ॥ संघ सर्वे तिहां हरष धर
वे, सारा लापसी करीने जिमावे ॥ साधु सा ध्वीने दीयेवे दान, गोरडी गाये बहुगीत गान ॥ ६० ॥ कवि संघपतिने देइ आशीष, अविचल तुमतणी होजो जगीश ॥ नहीं कोइ जैनमां इ गिरि तोले, माने देवचंद्र इणीपरें बोले ॥ ६१ ॥ ॥ अथ श्री भरत बाहुबलको शिलोको लिख्यते ॥
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प्रथम प्रमुं माता ब्रम्हाणी, तूठी पे जे अविरल वाणी ॥ भरत बाहुबल नाइ संजोडे, कहेशुं शिलोको मनने कोडें ॥ १ ॥ नानीरा जानें कुठें नगीनो, प्रथम तीर्थंकर ऋषन उ पनो | सो पुत्र तेहना समरथ जाएं, भरत बा हुबल जला वखाणुं ॥ २ ॥ आयुध शालायें च क्र उपनुं, मनते हरखीन भरत नूपनुं ॥ चक्र पूजीने करी चढाइ, दीधा मेराते जंगलमां