Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Author(s): Ajit Prasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत जैन महामंडल का १८६६ से १६४७ तक का संक्षिप्त इतिहास रचयिता तथा संग्रह-कर्त्ता अजित प्रसाद, एम० ए०, एल-एल बी० अजित आश्रम, लखनऊ भारत जैन महामंडल, वर्धा सन् १६४७ मूल्य १) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत जैन महामण्डल का संक्षिप्त इतिहास १८६६-१६४६ लेखक तथा संग्रह कर्ता अजितप्रसाद, एम. ए., एल. एल. बी. ऐडवोकेट हाई कोर्ट पूर्व जज हाई कोर्ट वीकानेर सम्पादक जैन गजेंट (अंग्रेजी ) संयोजक सेंट्रल जैन पबलिशिंग हाउस अजिता भारत जैन महाम वीर सम् चतुर्थ संस्करण १००० | सन् १६४७ [ मूल्य १) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्रक बी० एल० वारश्नी, वारश्नी प्रेस, कटरा - इलाहाबाद Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANEONENERAPESE श्री० जैन धर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद कलकत्ता अधिवेशन १६१७ के सभाध्यक्ष VEDEO MMEOS म Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म भूषण, जैन धर्म दिवाकर अद्वितीय धर्म प्रचारक, समाजोद्धारक अन्यकर्ता, उपदेशक, पत्र-सम्पादक सप्तम प्रतिमाघारी, अथक परिश्रमी शान्त परिणामी, परीसह-जयी । कलकत्ता अधिवेशन १९१७ के सभाध्यक्ष स्वर्गीय ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद चरण कमल सविनय समर्पित Page #7 --------------------------------------------------------------------------  Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत जैन महामण्डल सन् १८८५ में इडियन नैशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। उसी समय से भारत में राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना की जागति का प्रारम्भ हुआ। उसी जमाने में सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कालिज की नींव डाली । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज संयोजित किया । ___ दस बरस पीछे १८६५ में मुरादाबाद निवासी पं० चुन्नीलाल और मुन्शी मुकुन्दलाल ने, बाबू सूरजभान वकील देववन्द, श्री बनारसीदास, एम० ए० हेड मास्ट रलश्कर कालिज ग्वालियर, और कुछ अन्य विद्वानों के सहयोग से, स्वर्गीय सेठ लक्ष्मणदास जी सी० आई० ई० के संरक्षण में दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना मथुरा में की। महासभा का वार्षिक अधिवेशन बरसों तक मथुरा में सेठ लक्ष्मणदासजी के सभापतित्व में होता रहा; और उसका दफ्तर भी वहाँ ही रहा । चार पांच बरस बाद, कुछ संकुचित विचार के लोग, स्वार्थ से प्रेरित होकर, श्रावश्यकीय जाति सुधार और धर्मप्रचार के प्रस्तावों में विघ्नबाधा डालने लगे । महासभा के नाम के साथ दिगम्बर शब्द जुड़ा होने से साम्प्रदायिकता तो स्पष्टतः थी ही । अतः महासभा के पाँचवें अधिवेशन में, जो १८६६ में हुआ, कुछ उदार-चित्त तथा दूर-दर्शी युवकों ने Jain Youngmen's Association of India नामक संस्था का निर्माण किया । श्वेताम्बर कोफरेन्स की स्थापना उसके पीछे Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) उसके उद्देश्य निम्नलिखित थे( क ) जैन मात्र में पारस्परिक एकता और सहयोग की वृद्धि करना। ( ख ) जैन जाति में सामाजिक सुधार का प्रचार, जैन सिद्धान्त का शान तथा धर्माचरण की प्रवृत्ति जागृत करना । (ग) अंग्रेजी शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक अन्यों के अध्ययन व मनन की उत्तेजना। [प प्रभावशाली सज्जनों की सहायता से जैन युवकों को व्यापार में लगाना। प्रथम अधिवेशन रायबहादुर सुलतानसिंह, रईस दिल्ली, ऐसोसिएशन के प्रथम अध्यक्ष थे श्रीयुत बाबुलाल वकील मुरादाबाद, सुलतानसिंह वकील मेरठ प्रथम मंत्री थे । श्वेताम्बर और दिगम्बर अाम्नाय के जैन, सदस्य श्रेणी में थे । प्रकाशित वक्तव्य में स्पष्टतः यह घोषित कर दिया गया था कि जाति या आम्नाय का मेदभाव गौण करके जैन मात्र में पारस्परिक सम्बन्ध का प्रचार करना ऐसोसिएशन का उद्देश्य है। सदस्य संख्या शीघ्र ही एक सौ के करीब हो गई थी। दूसरा अधिवेशन ऐसोसियेशन का दूसरा अधिवेशन ३ दिसम्बर १८६६ को मेरठ में रायसाहब फूलचन्दराय एक्जेक्युटिव इंजीनियर के सभापतित्व में हुआ । जैन अनाथालय की स्थापना का प्रस्ताव स्थिर किया गया । अनाथालय मेरठ में जल्दी ही खोल दिया गया। इसका श्रेय अधिकतर श्रीयुत सुलतानसिंहजी वकील को था। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ පිහිටය CO ********@ | 5+ විම මගි මමම राय साहब फूल चन्द राय, बो० ए०, सी० ई० मेरठ अधिवेशन १८६६ के सभाध्यक्ष ෆිෆිල ******************** ඔබට ******** ඉමමGCCCCCC, TCCE@ Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसरा अधिवेशन अक्टूबर १६०० में तीसरा अधिवेशन मथुरा में सेठ द्वारिकादासजी के सभापतित्व में हुश्रा । नीचे लिखे कार्य करने का निश्चय किया गया । (१) प्रत्येक जैन को सदस्यता का अधिकार है। चाहे वह अंग्रेजी भाषा जानता हो या नहीं। (२) ऐसोसियेशन के मुखपत्र रूप, हिन्दी जैनगज़ट का क्रोडपत्र अंग्रेजी में प्रकाशित हो। (३) काम करने की इच्छा रखनेवाले शिक्षित जैनियों की सूची बनाई जावे। (४) जैनधर्म के मुख्य सिद्धान्त और मान्यता स्पष्ट सरल भाषा में पुस्तकाकार प्रकाशित किये जावें। (५) समस्त जीव दयाप्रचारक और मद्य-निषेधक संस्थाओं से सहयोग और पत्र-व्यवहार किया जावे । (६) भारतीय सरकार को लिखा बाय कि समस्त गणना-प्रधान संग्रह-पुस्तकों में जैनियों के लिये अलग स्तंभ बनाया जाय । । ऊपर लिखे प्रस्तावों पर काम होने लगा । सदस्य संख्या २५० हो गई । कुछ परिजन-देहावसान के कारण श्रीयुत सुलतानसिंहजी को और वकालत का काम बढ़ जाने से बाबूलाल जी को, अवकाश लेना पड़ा । मास्टर चेतनदासजी ने मंत्रित्व का भार स्वीकार किया। जैन इतिहास सोसाइटी का स्थापना हो गई। उसके मन्त्री श्रीयुत बनारसी दास M. A. हेडमास्टर लश्कर कॉलेज ग्वालियर ने जैन धर्म की प्राचीनता के प्रमाण देकर एक निबन्ध पुस्तकाकार प्रकाशित किया। चौथा अधिवेशन अक्टूबर १९०२ में चौथा अधिवेशन फिर मथुरा में सेठ द्वारिकादासजी, सुपुत्र राजा लक्ष्मणदास जी, के सभापतित्व में सम्पन्न Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुा । कलकत्ता निवासी पं० बलदेवदासजी ने मंगलाचरण किया। इस अधिवेशन में पारा से सच्चे दानवीर, समाजसेवक, धर्मप्रचारक बाबू देवकुमारजी, कानपुर से बाबू नवलकिशोर वकील, ग्वालियर से श्रीयुत बनारसीदास नी, लखनऊ से श्री सीतलप्रसादबी (ब्रह्मचारी), गोकुलचन्दराय वकील तथा बाबू देवीप्रसाद (मेरे पिताजी) पधारे थे। निम्न प्रान्तीय शाखाओं की स्थापना हुई और उनके मन्त्री नियुक्त हुए। पंजाब-हरिश्चन्द्र जी टैक्स सुपरिन्टेन्डेन्ट, लाहौर बंगाल- जैनेन्द्र किशोर जी, पारा यू. पी.-चन्दूलाल वकील, सहारनपुर मदरास-ए. दुरइस्वामी राजपूताना-मांगीलालजी, नसीराबाद सी. पी-हुकुमचन्दजी, छपारा बम्बई-श्रीयुत अनपा यावप्पा चौगुले, वकील बेलगाँव बाब देवीप्रसाद जी ने प्रतिवर्ष ऐसे जैन विद्यार्थी को स्वर्णपदक "मनभावती देवी" ( मेरी मातेश्वरी ) के नाम से प्रदान करने को कहा जो संस्कृत भाषा के साथ मैट्रीकुलेशन परीक्षा में सर्वोच्च नम्बरों से उत्तीर्ण हो । यह स्वर्णपदक कई वर्ष तक दिया गया। फिर पदक देने की प्रवृत्ति ही बन्द हो गई। इसी अधिवेशन में जैननयुवक स्वर्गीय श्रीयुत बच्चूलालजी इलाहाबाद निवासी के स्मारक रूप ऐसा ही स्वर्णपदक, ऐसी ही शर्त से दिये जाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ, और उसके लिये २५० का चिट्ठा हो गया । यह पदक भी कुछ वर्ष तक ही दिया गया । "विधवा सहायक कोष" की स्थापना भी इसी अवसर पर हुई। श्रीयुत बाबू देवकुमार, किरोडीचन्द, जैनेन्द्र किशोरजी के प्रयत्न से श्रारा में जैन सिद्धान्त भवन और बनारस में स्याद्वाद महाविद्यालय कायम हुए। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (*) पाँचवाँ अधिवेशन पाँचवाँ अधिवेशन दिल्ली निवासी सुलतानसिंहजी के सभापतित्व में दिसम्बर १९०३ में बड़े समारोह के साथ हिसार में सम्पन्न हुआ । इसकी आयोजना स्वर्गीय बाबू नियामतसिंह ने की थी । प्रवेशद्वार पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था 1 नक्कारा धर्म का बजता है, श्रए जिसका भी चाहे । सदाकत जैनमत की श्राजमाए जिसका जी चाहे ॥ आर्य समाजी भाइयों से खुले दिल से सम्मान - पूर्वक प्रश्नोत्तर होते रहे । चिरंजीलालजी ने अनाथालय की आर्थिक सहायतार्थ हृदय-स्पर्शी अपील की। जिसका समुचित प्रभाव सभा पर पड़ा और अनाथालय जो ऐसोसियेशन ने मेरठ में कायम किया था हिसार में श्रा गया। अब वही अनाथालय दिल्ली में सफलतापूर्वक अपने निजी भवन में काम कर रहा है । श्वेताम्बर कान्फरेन्स ने सहयोग का बचन दिया ! विवाह आदि सामाजिक तथा धार्मिक उत्सवों पर सादगी और मितव्ययता से काम लेने के प्रस्ताव किए गए । सन १९०४ से “जैनगनट" अंग्रेजी में जगमन्दर लाल जैनी के सम्पादकत्व में स्वतन्त्र रूप से निकलने लगा । अगस्त १९०८ से जनवरी १६०६ तक श्री० ए० बी० लट्ठे ने मदरास से सम्पादन किया । फरवरी सन् १९०६ से १६१० तक श्री सुलतानसिंह वकील मेरठ उसके सम्पादक रहे । जनवरी १६११ से मार्च १६१२ तक फिर श्री जे० एल० जैनी सम्पादन करने लगे । उनके लंदन चले जाने पर १६१२ से १६१८ तक मैं सम्पादक रहा । १६१६ में वकालत का व्यवसाय छोड़ कर मैं लखनऊ से बनारस चला गया। जैनगजेट को श्रीयुत मल्लिनाथ मदरास निवासी को सौंप दिया । मैं १६३४ में फिर लखनऊ वापस हुआ; और जैनगजेट को श्री मल्लिनाथ से वापस ले लिया । १६३४ से बराबर अब तक अनिताश्रम लखनऊ से प्रकाशित हो रहा है । . Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठा अधिवेशन छठा अधिवेशन दिगम्बर महासभा अधिवेशन के साथ-साथ अम्बाला सदर में हुआ । ऐसा महत्वपूर्ण और शानदार जल्सा पिछले कई वर्षों में नहीं हुआ था। कितनी ही भजन मंडली आई थी। उनमें सर्वोत्तम पार्टी हिसार के बाबू नियामतसिंह की थी। दर्शकों का समूह दिन दिन बढ़ते-बढ़ते २००० हो गया था। २६ दिसम्बर १९०४ से ऐसोसियेशन का काम प्रारम्भ हुा । सभा का कार्य चलाने की सेवा मेरे सुपुर्द की गई । मैंने मौखिक भाषण में यह दिखलाने का प्रयत्न किया, कि ऐसोसियेशन और महासभा के उद्देश्य में विशेष अन्तर नहीं है। किन्तु ऐसोसियेशन का कार्य-क्षेत्र व्यापक है, महासभा का संकुचित । महासभा साम्प्रदायिक गिने चुने लोगों की मंडली है। ऐसोसियेशन का द्वार जैनमात्र के लिये खुला है । उसका अभीष्ट है कि जैन धर्म का प्रचार भारतवर्ष भर में, बल्कि समस्त संसार में किया पावे । समय की आवश्यकता है कि संस्कृत के साथ-साथ अँग्रेजी विद्या का भी अभ्यास किया जाय । केवल संस्कृतज्ञ पंडितों में धामिक उदारता, सहिष्णुता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती, और न यह योग्यता होती है कि जैन सिद्धान्त का मर्म स्पष्ट शब्दों में जनता को समझा सके। प्रोफेसर जियाराम गवर्नमेंट कालिज लाहौर ने प्रभावशाली व्याख्यान में साम्प्रदायिकता की गौणता दर्शाते हुए कहा कि श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी आदि जैनमात्र को वीर भगवान कथित सिद्धान्तों का दिगन्त प्रचार करना चाहिये, और अजैनों के प्रहारों से जिन धर्म की रक्षा करनी चाहिये, जो आये दिन समाचार पत्रों, ऐतिहासिक पुस्तकों, साहित्यिक लेखों द्वारा होते रहते हैं । ऐसे आघातों का मुख्य कारण प्रशानोत्पन्न द्वेष और पक्षपात है । इस प्रस्ताव का समर्थन अम्बाला निवासी श्रीयुत गोपीचंदजी प्रतिनिधि स्वेताम्बरीय सम्प्रदाय ने किया। इस सम्बन्ध में विविध व्याख्यानों से ऊपापोह किया पाकर पुस्तकाकार Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्य प्रकाशनार्थ कमेटो की स्थापना कर दी गई। श्री जगतप्रसाद एम० ए०, सी० श्राई० ई० ने मन्त्री पद स्वीकार किया। "मनभावती" पदक ऊदेरामजी को दिया गया, जो पंजाब युनिवर्सिटी की एन्ट्रेस परीक्षा में संस्कृत भाषा के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे। "बच्चूलाल" पदक अजमेर के मोतीलाल सरावगी को प्रदान हुआ। वह अलाहाबाद युनिवर्सिटी की एन्ट्रेस परीक्षा में संस्कृत भाषा के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए ये। १०) मथुरा विद्यालय के छात्र मक्खनलाल को पुरस्कार रूप दिये गये। श्री मक्खनलाल जी अब मुरेना सिद्धांत विद्यालय के अध्यक्ष हैं। नन्दकिशोरजी को बी० ए० परीक्षा में संस्कृत में ऊँचे नम्बरों से उत्तीर्ण होने के उपलक्ष्य में एक विशेष पदक दिये जाने की घोषणा की गई। श्रीयुत् नन्दकिशोर जी डिप्टी कलेक्टरी की उच्च श्रेणी से पेंशन लेकर अब नहटौर जिला विजनौर में रहते हैं। उल्लेखनीय प्रस्ताओं में न० ५. इस प्रकार थादिगम्बर श्वेताम्बर समाज में पारस्परिक सामाजिक व्यवहार, राजनैतिक कार्यों में सहयोग होना आवश्यक है। और अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, स्याद्वाद, कर्म सिद्धान्त आदि निर्विवाद सर्वमान्य विषयों पर सिद्धान्त काप्रकाशन होना वांछनीय है। सातवाँ अधिवेशन सातवाँ जल्सा भी महासभा के जल्से के साथ-साथ सहारनपुर में दिसम्बर १९०५ में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे दानवीर सेठ माणिकचंद जे० पी० सूरत-बम्बई वाले। अपनी शान और महत्व में यह अधिवेशन अम्बाले वाले गत वर्ष के जल्से से बहुत बढ़ा-चढ़ा था। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) लाला खूबचन्द रईस सहारनपुर ने महासभा और ऐसोलियेशन को इस अवसर पर निमन्त्रित किया था । और मेहमानों के श्रादरसत्कार, सुविधा, भोजन का समुचित प्रबन्ध किया था। हिसार से जैन अनाथालय, मथुरा से महाविद्यालय भी श्राया था । इसतकवाल शानदार था, रेलवे प्लेटफार्म पर ही अभिनन्दन पत्र पढ़े गये, और रेशम पर छुपे हुए उनको भेट किये गये । प्लैटफार्म पर लाल फर्श बिछा था, हाथियों पर सभापति का जुलूस शहर में से निकला, घोड़े, रथ, फिटन, गाड़ियाँ, और अँग्रेजी बैंड बाजा श्रेणीबद्ध साथ में था । सभापति के निवास के लिये जैन बाग में प्रबन्ध किया गया था । इस अवसर पर जैनभूषण रायसाहेब फूलचंद राय इंजिनियर ने दो बरस तक १००) मासिक छात्रवृत्ति जैन युवक को देने की घोषणा की, जो जापान जाकर औद्योगिक शिक्षा ग्रहण करे । खेद के साथ लिखना पड़ता है कि किसी भी जैन युवक ने इस घोषणा से लाभ नहीं लिया । राय साहेब फूलचंदजी की छात्रवृत्ति घोषणा की सराहना करके जैन समाज ने समुद्र यात्रा का मार्ग खोल दिया । स्त्री शिक्षा प्रचारार्थं महिला समाज ने उदारतया दान दिया । पुरुषों ने स्त्री सभा में, और महिलाओं ने पुरुष समाज में व्याख्यान दिये । नेमीदासजी वकील सहारनपुर ने १०००) पाँच कन्याओं के विवाहार्थ प्रदान किये । ४० महाशयों ने छात्रवृत्ति देने की घोषणा की । गरीब जैन - पदक और करने की घोषणा की स्याद्वाद् महाविद्यालय बाबू देवकुमारजी ने एक छात्रवृत्ति प्रदान थी जो ऐसे जैन युवक को दी जायगी जो बनारस में रहकर कालिज में अध्ययन करे । उस समय एक भी ऐसा विद्यार्थी न मिला । अब कितने ही विद्यार्थी स्याद्वाद विद्यालय में रहकर कालिन और हिन्दू युनिवर्सिटी में अध्ययन करना चाहते हैं, किन्तु विद्यालय के प्रबन्धकर्ता उनको विद्यालय में नहीं रखना चाहते । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ हीराचन्द नेमचन्द शोलापुर ने बतलाया था कि अन्य धर्मनुयाइयों की अपेक्षा जेल में जैनियों की संख्या सब से कम है प्रतिशत ईसाई ·२५ मुसलमान •१६, हिन्दू .१ पारसी •०५, जैन •०१४१ संयुक्त प्रान्त के प्रतिष्ठित अग्रगण्य महाशयों से अतिरिक्त, ए. बी. लहे मन्त्री जैन महाराष्ट्र सभा कोल्हापुर से, सेठ हीराचन्द नेमचन्द आनरेरी मजिस्टेट शोलापुर से, चिरंजीलाल की अलवर से, श्रीयुत जैन वैद्य, मालीलाल कालसीलाल और गुलेलाजी जयपुर से, श्रीयुत कीर्तिचन्द, सोहनलाल और कई श्वेताम्बर जैन रावलपिंडी से, श्रीयुत जिनेश्वर दास मायल, सोहनलाल जी देहली से, प्रो० जियाराम लाहौर से, श्री मानिकचन्द ऐडवोकेट खंडवा से, सिंघई नारायणदास जबलपुर से, श्री शिन्बामल अंबाला से, श्री किशोरीमल जी गया से, लाला मुन्शीराम और उनके श्वेताम्बर मित्र' होशियारपुर से, इस अधिवेशन में सम्मिलित हुए थे। सभा में प्रतिदिन तीन चार हमार की उपस्थित होती थी। एक विशेष गौरव की बात जैन महिला समाज के लिये यह थी कि श्रीमती मगनबाई ( जैन महिला रन) ने भरी सभा में ५-६ हजार की उपस्थिति में स्त्री-शिक्षा पर भाषण दिया। मुरादाबाद निवासी श्रीमती गंगादेवी ने उनके वक्तव्य का समर्थन किया था। जैन महिला रत्न श्रीमतो मगनबाई को महासभा की तरफस से ५०) का स्वर्ण पदक दिये जाने की घोषणा की गई। ___ इस अधिवेशन के उल्लेखनीय प्रस्ताव दो थे न०४ भारतीय युनीवसिटियों से आग्रह करके संस्कृत शिक्षा विभाग में जैन साहित्य और जैन दर्शन को उचित स्थान प्राप्त कराया जाय। नं०५ भारतीय जेल विभाग की रिपोर्ट में जैन जाति के अपराधियों को भिन्न स्तम्भ में दिखाया जाय । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( १० ) आठवाँ अधिवेशन आठवाँ अधिवेशन दिसम्बर १६.६ में श्रीयुत् रूपचन्द जी रईस सहारनपुर के सभापतित्व में भारत राजधानी कलकत्ता नगर में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में सखीचन्दजी डिप्टी सुपरिटेन्डेन्ट पुलीस भागलपुर जीवदया प्रचार मन्त्री निर्वाचित किये गए । तब से बराबर यह जीव दया विभाग के कार्य की निगरानी कर रहे हैं । रायबहादुर को पदवी और कैसर हिन्द पदक प्राप्त करके डिप्टी इस्पेक्टर जेनरल के ओहदे से पेंशल ली। गत अगस्त में इनका स्वर्गवास हुआ। खंडवा निवासी माणिकचन्द वकील ऐसोसियेशन के प्रधान मन्त्री निर्वाचित हुए । इस अधिवेशन में करीब ४०० प्रतिष्ठित सज्जन बम्बई, शोलापुर , कानपुर, लखनऊ, मुरादाबाद, नजीबाबाद, मेरठ, अम्बाला, बिजनौर, दिल्ली, अमृतसर, सोनीपत, खंडवा, मुशिदाबाद, देवबंद, हिसार, अजमेर, अलाहाबाद, जयपुर, सहारनपुर, श्रारा, भागलपुर, श्रादि से पधारे थे। उल्लेखनीय प्रस्ताव यह थे- . . १. जैन जाति में स्त्री शिक्षा प्रचार के वास्ते निम्न उपाय किये नावें (१) स्थानीय कन्या शालाओं की स्थापना, (२) अध्यापिकाओं की तैयारी, (३) परीक्षा कमेटी (४) प्रत्येक सदस्य अपनी पत्नी, बहन, बेटी को पढ़ावे, (५) पारितोषक और छात्रवृत्ति, (६) पठनीय पुस्तक निर्माण, (७) प्रौढ़ महिलाओं को उनके घर पर शिक्षा प्रदान, (८) महिला शास्त्र-सभा, (६) महिला कारीगरी को प्रदर्शिनी, Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 0 066 000000 ०००० ००० 00 Bol100 00 . . . . 00 00 0 . +0000000०० K०००००००० . 00 . 0000 ००० 0000 0060700 ०००००/ODi००० 000110०० 69 0 ०० 00 006 001060000 ०० o0 00 *०००००/-60०० *००००००० ()००००० 100000* ०० ०० . *००००००००००००० *०००००PH00000000 &000 ★★ ०००००००० २००00GLjood श्रीयुत लाला रूपचन्द जी, रईस जमींदार, सहारनपुर कलकत्ता अधिवेशन १६०६ के सभाध्यक्ष Dollool 1000000 ००० ० 00 ०० .. ७० ०० ००००००० ००० . 90 . ०००००००००० ०००००० ©©©o aoe a b c + c o gooo 00000 PASHA00060 Page #21 --------------------------------------------------------------------------  Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ (१०) श्रसमर्थ जैन विधवाओं की सहायता, (११) उपरोल्लिखित कार्यों के लिये कोष, इस प्रस्ताव पर श्री माणिकचंद वकील खंडवा ने एक मार्मिक भाषण किया था । २. प्रत्येक जैन को अपने श्रद्धानुसार देव-दर्शन, पूजन, शास्त्र - स्वाध्याय, सामायिक श्रादि श्रावश्यक धार्मिक कार्य अवश्य करने चाहियें । नवाँ अधिवेशन नवां अधिवेशन १९०७ में गुर्जर प्रान्त के प्रख्यात ऐतिहासिक स्थान सूरत में जयपूर राज्य राज्य के ख्यातिप्राप्त श्वेताम्बर कान्फरेंस के मन्त्री श्रीयुत गुलाबचन्द ढढ्ढा एम. ए. के सभापतित्व में किया गया । स्वागत समिति के सदस्य करीब १५० प्रतिष्ठित जैन थे । स्वागत सभापति सेठ माणिकचद जे० पी० थे । १० उपसभापति और ५ मन्त्री थे । मानोनीत सभापति का स्वागत रेलवे स्टेशन पर सूरत की अखिल जैन जनता ने किया । सेठ माणिकचन्द जी जे० पी० ने फूल माला पहनाई । जय-ध्वनि से स्टेशन गूँज उठा । स्वागत समिति के अगुना सदस्यों से उनका परिचय कराया गया । यह शानदार जुलूस बैंड बाजे के साथ सूरत नगर के मुख्य बाजारों में होकर सेठ लखमीचंद जीवा भाई के निवास स्थान पर पहुँचा । वहाँ पर पुष्पहार से सम्मानित हो सब भाई विदा हुए । बाजारों में दोनों तरफ दूकान और मकान सुसज्जितथे । और स्त्री पुरुष बालक जुलूस को देखने के लिये एकत्रित थे । श्रीयुत ढढ्ढाजी ने अपने एक भाषण में कहा था कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ने आपस में लड़ झगड़ कर द्रव्य, धर्म, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) आत्मगौरव में हानि उठाई और जगहंसाई कराई । अतः हमको आपस में मिल कर अपने झगड़े निमटा लेने चाहिये। ऐसा करने से बाह्य आक्रमणों से अपनी रक्षा कर सकेंगे। मकशी जी और शिखरजी के झगड़े हमारी मूर्खतावश स्वार्थी लोगों के बहकाए से चल रहे हैं। ___ अधिवेशन का बलसा नगीनचंद्र इन्सटीट्युट हाल में हुआ। सेठ मानिकचन्द हीराचन्द जे० पी० अध्यक्ष स्वागत समिति के भाषण के बाद श्रीयुत ढवाची पूरे घंटे भर बोले । उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आज का दिन सौभाग्यपूर्ण है। भिन्न जैन श्राम्नाय के नेता छोटे छोटे मेदभाव का त्याग करके जैन धर्म प्रभावनार्थ एकत्रित और समाज . संगठनार्थ प्रस्तुत हुए हैं। प्रत्येक जैन सम्प्रदाय की यद्यपि पृथक पृथक सभा है, और उससे यथेष्ट काम भी हो रहा है, तदपि सामान्य सामाजिक सुधार और सिद्धान्त प्रचार में मिल कर, संगठित होकर, एक साथ बल लगा कर काम करने से सफलता शीघ्र और अधिक मात्रा में प्राप्त होगी । दुष्काल के प्रभाव से वीतराग कथित धर्म में विविध भेद उत्पन्न हो गए; और एक आम्नाय दुसरे को गैर, पर, या विरोधी समझने लगी। एकान्त कदाग्रह बढ़ता गया और अनेकान्त की सामनजस्य भावना घटती गई । महावीर स्वामी की दिव्य ध्वनि से जो धर्म का स्वरूप प्रदर्शित हुश्रा था, वह एक ही था । गौतम गणधर और भ्रत केवलीयों के प्रवचन में भी भिन्नता न थी। पंच परमेष्ठी के गुण लक्षण सर्व सम्प्रदाय एक से ही मानती है । रहन सहन, वस्त्र भोजन, सामाजिक सदाचार, सद्व्यवहार में भी ऐसे भेद नहीं हैं, जो हम सबको मिल कर रहने में बाधित हों। हमारा धर्म हम को पशु-पक्षियों से भी प्रेम सिखलाता है, फिर मनुष्य जाति से, भारतवासी से, सहधर्मी से तो सद्भाव रहना प्राकृतिक ही है। हमें आशा है कि श्राज का सम्मेलन जैन समाज के जीवन में चिरस्मरणीय रहेगा। सम्मेदशिखरजी Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ஐயா um illnim ummHIHANாபர் - பம்) ® 999 இயறியப்ப உll HD ம் INாயாயாயாயாயாயா, பப் श्री गुलाबचन्द ढढ्ढा, एम० ए० सूरत अधिवेशन १६०७ के सभाध्यक्ष DIII IIIME Page #25 --------------------------------------------------------------------------  Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) पर अंग्रेजों की बस्ती बसाने के सम्बन्ध में ढड्ढाजी ने विस्तीर्ण भाषण किया। परिणामतः श्वेताम्बर दिगम्बर समाज के बे मिलाकर परिश्रम करने से उस सम्बन्ध में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई । सभापति महोदय ने जैन समाज और जैनधर्म की ऐतिहासिक पुस्तक तैयार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया । खेद है कि ऐसी पुस्तक अब तक भी तैयार न हो पाई। इसका मूल कारण समाज में विद्या की न्यूनता और उपेक्षा है । जो श्रव भी वैसी ही चली जाती है । समाज में शिक्षा प्रचार, जैन बैङ्क की स्थापना धर्मकोष की व्यवस्था, सहकारी व्यापारिक कार्यालयों की स्थापना का मार्ग भी सभापति महोदय के भाषण में दिखलाया गया था । श्वेताम्बर जैन कांफ्रेंस के पिता रूप, सभापति महोदय के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद जैन गजट माच १६०८ में ८ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है । और प्रत्येक श्रावक के लिये पठन और मनन करने योग्य है । अधिवेशन के प्रारम्भ में श्री मूलचन्द कृष्णदास कापडिया ने गुजराती भाषा में लिखा हुआ अभिनन्दन पत्र पढ़कर मेट किया था, उपस्थिति करीब २०० थी । इस अधिवेशन में निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रस्ताव निश्चित हुए । न० ४ – बैन समाज का ध्यान कलकत्ता अधिवेशन के प्रस्ताव - नं० १ पर दिलाते हुए महिला नार्मल स्कूल और कन्या पाठशालाओं की स्थापना, स्वकीय सम्बन्धी स्त्रियों का शिक्षण, शिक्षित महिलाश्र को पारितोषिक, आदर्श पुस्तक प्रकाशन श्रादि कार्यों की श्रावश्यकता बतलाई गई; ममनबाईजी और लखनऊ निवासी पारवतीबाईजी को स्त्री शिक्षा प्रचार में अग्रसर होने के लिये धन्यवाददिया गया; इस प्रस्ताव को पडित अर्जुन लाल सेठी ने उपस्थित किया; उसका समर्थन श्रीयुत भग्गूभाई फतेहचन्द कारभारी सम्पादक “जैन" ने किया और विशेष समर्थन में श्री लललूभाई करमचन्द्र दलाल, और यति माहराज नेमी कुशलजी ने जोरदार भाषण दिये । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) नं ० ६ - जाति सुधार के आशय से निश्चित हुआ कि(i) १३ बरस से कम कन्या और १८ वर्ष से कम पुत्र का विवाह न हो । (ii) विवाह और मरणं समय व्यर्थ व्यय रोका जाय और वेश्या नृत्य बन्द किया जाय । (iii) वृद्ध पुरुष का बालिकाओं से विवाह बन्द हो । (iv) पर्दा प्रथा हटा ली जाय । इस प्रस्ताव को श्री श्रमरचन्द परमार बम्बई निवासी ने उपस्थित किया और श्री० त्रिभुवनदास उघवजी शाह B. A. LL.B. श्रहमदाबाद निवासी, श्री० रतनचन्द ऊर्भीचन्द सूरत निवासी, श्री घीसाराम 'निर्भयराम पुरावीयर भावनगर निवासी ने इसका समर्थन किया । न ० ७ - सेठ मानिकचन्द हीराचन्द जे० पी० ने इस अधिवेशन का - सब से अधिक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया – समाज में अनैक्य फैलाने-वाले तीर्थक्षेत्र सम्बन्धित कचहरी में मुकदमेबाजी का अन्त करने के लिये स्वेताम्बर कांफ़रेन्स और दिगम्बर महासभा के ६-६ सदस्यों की कमेटी बनाई जाये । इसका समर्थन सभापति महोदय ने स्वतः किया । उन्होंने कहा की कचहरी के झगड़े व्यक्तिगत हैं, मूनीम और मैनेजरों ने चलाये हैं, खेद है कि समाज इन स्वार्थी लोगों के बहकाये में श्रा गया है । दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि प्रस्तावानुसार कमेटी श्राज तक न बनी और कचहरियों के झगड़ों में समाज का लाखों रुपया बुरी तरह बरबाद हुआ और अब भी हो रहा है। न० ८ – साम्प्रदायिक पक्षपात से प्रेरित होकर धर्म की आड़ में जो पारस्परिक श्राघात प्रघात किये जाते हैं वह बन्द होने चाहियें - इस प्रस्ताव पर कारभारी जी और प्रोफ़ेसर लटूठे के भाषण हुए । नं० १० – यह देखकर कि समान का लाखों रुपया तीर्थक्षेत्रों के - नाम पर विविध प्रकार के खातों में, भिन्न व्यक्तिसों के पास पड़ न Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) है, उस द्रव्य की सुरक्षा और सदुपयोग के विचार से उचित प्रतीत होता है कि समस्त देवद्रव्य एक सेन्ट्रल जैन बैंक में रक्खा जाये और उस . बैंक की स्थानीय शाखा मुख्य स्थानों में स्थापित हो। यह प्रस्ताव सेठ गुलाबचन्द देवचन्द बम्बई निवासी ने उपस्थित किया और श्रीयुत् मानिकचन्द वकील खंडवा, सुलतानसिंह वकील मेरठ, और श्री० नगीनदास जमनादास ने उसका समर्थन किया। खेद है कि ऐसे जैन बैंक की स्थापना अब तक नहीं हुई। न०१२-जैन समाज के प्रतिनिधि समाज की तरफ से निर्वाचित होकर सेंट्रल और प्राविंशल काउन्सिल में लिये जाये। सभापति महोदय को धन्यवाद का प्रस्ताव अहमदाबाद निवासी सेठ कुंवर बी आनन्दजो, बाड़ीलाल सब जज अहमदाबाद और श्रीयुत् ए० वी० लट्टे कोल्हापुरी के भाषण से उपस्थित हुआ। सेठ छोटालाल नवलचन्द नगरसेठ संदेर ने दूसरे दिन सभापति महोदय और सब मेहमानों को प्रीतिभोज दिया। दसवाँ अधिवेशन दसवाँ अधिवेशन दिसम्बर १९०८ में हिसार निवासी श्री बांकेराय वकील की अध्यक्षता में मेरठ नगर में सम्पन्न हुआ। तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादस्थ विषयों के निर्णयार्थ पंचायत बनाने का प्रस्ताव हुश्रा । इस विषय में समाचार पत्रों में, और भिन्न श्रानाय के . अधिवेशनों में खूब आन्दोलन होता रहा, किन्तु सफलता न मिली; और जैन समाज का लाखों रुपया आपसी मुकदमों में बरबाद हुश्रा। मेरठ में जैन छात्रालय स्थापन करने का भी निश्चय हुआ। यह छात्रालय १९१२ में खुल गया और अब यथेष्ठ उन्नति पर अपने निजी विशाल भवन में चल रहा है । अध्यापिका तैयार करने के लिये विधवा बहनों को छात्रवृत्ति प्रदान की गई। । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्यारहवाँ अधिवेशन ग्यारहवाँ अधिवेशन जयपुर राज्य में जनवरी १९१० में किया गया। इस जल्से के काम चलाने का भार मुझे सौंपा गया था ।। श्वेताम्बर दिगम्बर स्वागत कार्यकर्ता और प्रतिनिधि सब खुले दिल से मिलकर काम कर रहे थे। राज्य के अधिकारी वर्ग भी सभा में पधारे थे। ऐसोसियेशन का नाम परिवर्तन होकर भारत जैन महामंडल हो गया । जैन शिक्षा प्रचारक समिति जयपुर में शिक्षा प्रचार का काम अच्छी सफलता से कर रही थी। मगर धर्म, समाज और देश के लिये दत्तचित्त होकर काम करनेवाले युवक तैयार करने के अभिप्राय से एक गुरुकुल जैसी संस्था की स्थापना का निश्चय किया गया। परिणामतः ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम पहली मई १९११, अक्षय तृतीया के दिन, हस्तिनापुर जिला मेरठ में जारी कर दिया गया। ब्रह्मचर्य आश्रम को जारी करने के अभिप्राय से श्रीयुत भगवाना दीन जी, अर्जुन लालजी और मैं गुरुकुल कांगड़ी और अन्य शिक्षा मन्दिरों का निरीक्षण करने, गये । भगवानदी जी ने रेलवे के असिस्टेंट स्टेशन मास्टर की नौकरी छोड़ दी। यावज्जीव ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। अपनी गृहणी को शिक्षार्थ श्राविकाश्रम बम्बई में भेज दिया और . अपने चार-पाँच वर्ष के बालक को श्राश्रम में भर्ती कर लिया । स्वतः श्राश्रम के उत्तरदायित्व अधिष्ठाता पद का भार स्वीकार किया। तभी से भगवानदीन जी को हम लोग महात्मा भगवानदीन कहने लगे । लाला मुन्शीराम भी इसी प्रकार गुरुकुल कांगड़ी के अधिष्ठाता होने के पीछे महात्मा श्रद्धानन्द कहलाने लगे थे। लेकिन भगवानदीन जी ने अपना नाम परिवर्तन करना उचित नहीं समझा। हस्तिनापुर ब्रह्मचर्य आश्रम ने दिन प्रतिदिन सन्तोषजनक उन्नति की। पारस्परिक सामाजिक मतभेद और सरकार अंग्रेजी की कड़ी निगाह के कारण चार-पाँच वर्ष के उत्कष के बाद वह नीचे गिरता Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O10. allIDHI | MAITERTAINMITIMILINOMITION|||||| || 11041111111 A u TIMDAlillmO श्रो० अजितप्रसाद, एम० ए०, एल-एल० बी० अम्बाला अधिवेशन १६०४, जयपुर अधिवेशन १६१० के सभाध्यक्ष SUHHINARTHARU ||||||||||||| M O illllllls. All |||| |||||||||||||| ||||NO Page #31 --------------------------------------------------------------------------  Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गया । चार वर्ष तक मन्त्री रह कर सेवा करने के पश्चात मैं भी त्यागपत्र देने पर मजबूर हो गया। महात्मा भगवानदीन बी को भी प्रथक होना पड़ा। पंडित अर्जुनलाल सेठी तो सात वर्ष के लिये नजरबन्द कर ही दिये गये थे। ... भाई मोतीलाल जी भी अलग हो गये थे। बाबू सूरजमान और जुगलकिशोर को भी आश्रम से लगावट नहीं रही । उसी नाम से अब से वह आश्रम मथुरा में अपने नोजी भवन में स्थापित है किन्तु इस ३५-३६ वर्ष में विद्यार्थियों की संख्या साठ से ऊपर से नहीं बढ़ी। सन् १९१५ में ब्रह्मचारियों की संख्या ६० से ऊपर थी। ब्रह्मचारी जीवन का श्रादर्श तो अब नाम और निशान को भी नहीं है। आश्रम का उन चार पाँच वर्षों का सुनहरी इतिहास महात्मा भगवानदीन जी ने दिल्ली के "हितैषी" और "वीर" नामी समाचार पत्रों में वृहदरूप से प्रकाशित कर दिया है। - बारहवाँ अधिवेशन अप्रैल १९११ में बारहवाँ अधिवेशन मुजफ़्फ़र नगर में श्री जुगमन्धरलाल जैनी बौरस्टर के सभापतित्व में हुआ। इस हो समय से महासभा में अराजकता, नियम-विरुद्ध दलबन्दी करके धींगा. धींगी से हठाग्रह और स्वेच्छाचार का प्रारम्भ हुआ और महासभा एक संकीर्ण स्वार्थी दल का गुट बन गई। सभापति का शानदार स्वागत रेलवे स्टेशन पर हुश्रा, वहाँ जैन अनाथालय के विद्यार्थियों ने ब्रह्मचारी चिरंजीलाल जी की अध्यक्षता में झडे लिये जंगी फौजी सलाम दिया । बैंड बाजे के साथ जलूस हायो और सवारीयों पर शहर के बाजारों में होकर निवास स्थान पर गया । अधिवेशन के प्रारम्भ में पडित अर्जुनलाल सेठी की अध्यक्षता में सर्व उपस्थित मण्डली ने प्रार्थना पढ़ी, सभापति महोदय ने अपने Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) भाषण में शिक्षा की आवश्यकता, अजैनों को जैन धर्म में दीक्षित करने का औचित्य दिखलाया । भारतेतर देशीय जैनों की सम्मिलित सभा की स्थापना का उल्लेख किया । इसी अवसर पर दिगम्बर जैन महासभा का वार्षिक अधिवेशन भी इस ही नगर में हुअा। इसके सभापति थे साधुवृत्ति राय साहेब द्वारिकाप्रसाद इंजिनियर कलकता। उनका भाषण सराहनीय था। विषय निर्धारणी सभा में महासभा की अनियमित धांधलीबाजी का भंडाफोड़ हुअा। दूसरे दिन खुली सभा में कुछ अनधिकृत लोगों ने दस्सा पूजाधिकार का झगड़ा खड़ा करके शोर मचा, गाली गलोज, करके महासभा के मंच पर कब्जा कर लिया । सभापति महोदय उठ कर अपने डेरे में चले आए। तेरहवाँ अधिवेशन तेरहवाँ अधिवेशन ता० २५, २६, २७, २८ और २६ दिसम्बर १९१२ को बनारस में हुअा, जो स्याद्वाद महोत्सव के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस महोत्सव में मंडल की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं हुए, किन्तु महत्वपूर्ण कार्य हुए । ता० २५ को बनारस टाऊन हाल में श्री जुगमन्दिर लाल जी जैनी सभापति स्वागत-समिति ने अपने भाषण में महामण्डल के विविध रचनात्मक कार्यों का उल्लेख किया और मिसेज़ ऐनी बेसेन्ट के अध्यक्ष निर्वाचित किए जाने का प्रस्ताव किया । मिसेज बेसेन्ट ने अपने भाषण में कहा कि महाबीर स्वामी जैन धर्म के २४ तीर्थंकरों में अन्तिम तीर्थंकर थे। यूरोप शेष १३ तार्थकरों को ऐतिहासिक वास्तविकता नहीं समझ सकता क्योंकि वह स्वतः कम उमर है, और इतनी गहरी प्राचीनता का विचार उसकी शक्ति के बाहर है, और इस कमजोरी के कारण जैन धर्म की प्राचीनता उसके विचार के बाहर है । जैन धर्म इतिहास और मौखिक तथा पौराणिक कथाओं Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) से प्राचीनतर है। प्राचीनता के विचार से बाहर है। जैन धर्म के सिद्धान्त का प्रचुर प्रचार होना चाहिये। ऐसोसियेशन ( भारत जैन महामण्डल ) की ओर से श्रीमती मगनबाईजी को “जैन महिलारत्न" के पद से विभूषित किया गया। ता० २६ का पहला अधिवेशन स्यादाद-वारिधि वाद-गजकेसरी, न्यायवाचस्पति पं० गोपालदासपी. बरैया के सभापतित्व में हुश्रा । महात्मा भगवानदीन जी ने ब्रह्मचर्य श्राश्रम पर, और पंडित अर्जुनलाल सेठी ने कम सिद्धान्त पर व्याख्यान किये। दूसरा जल्सा श्री सूरजभानुजी वकील देवबन्द के सभापतित्व में हुआ। इस जलसे में रावलपिन्डी निवासी प्रभुराम जी ने "अहिंसा धर्म" और पंडित गोपालदास बी ने "ईश्वर कर्तृत्व"" की व्याख्या की । ता० २७ का अधिवेशन डा. सतीशचन्द विद्याभूषण एम्० ए०, पी० एच०डी०, एम० श्रार० ए० एस०, एफ० ए० एस० बी०, एफ० आई० आर० एस० के सभापतित्व में हुश्रा । सभापति महोदय ने अपने भाषण में कहा कि भारत जैन महामण्डल. ने समस्त जैन जाति के समस्त उत्कर्षकारी कार्यों में जीवन और शक्ति प्रदान की। महामण्डल साम्प्रदायिक संकीर्णता से रहित है। भारत जैन महामण्डल की ओर से "जैन दर्शन दिवाकर' को उपाधि पार्चमेंट पर छपी हुई डाक्टर हरमन याकोबी (जर्मनी) को भेंट की गई। ता. २८ को डा. जेकोबी ने स्याद्वाद महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों को संस्कृत भाषा में सन्देश दिया। संध्या को डा० जेकोबी के सभापतित्व में "सिद्धान्त महोदधि" की उपाधि सा० सतीशचन्द्र को भेंट का गई। और भारत जैन महामण्डल ने "जैन धर्म भूषण" के पद से . शीतलप्रसाद बी का सन्मान पं० गोपालदास जी द्वारा किया । "दानवीर" उपाधि राय बहादुर कल्याणमल इन्दौर को २ लाख रुपये से त्रिलोकचन्द हाई स्कूल खोलने के उपलक्ष में भेंट की गई । ता० २६ को "जैन सिद्धान्त भवन" पारा की प्रदशिनी और संक्टर स्ट्राउस के सभापतित्व में ब्र० शीतलप्रसादषी का व्याख्यान हुा । इस महोत्सव Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) में सम्मिलित होने वालों के कुछ नामों का उल्लेख कर देना अनुचित न होगा। जैसे, प्रो० जेम्सप्रैट विलियमस-टाऊन संयुक्त राष्ट्रीयसंघ अमेरिका, लार्ड बिशप बनारस, प्रो० उनवाला, डाक्टर भगगनदास, कुमार सत्यानन्द प्रसाद सिंह, डा० फिसकोन (लीपजिग जर्मनी), माणिकलालजी कोचर नरसिंगपुर, सेठ हुकुमचन्द खुशालचन्द काठियावाड़, रायबहादुर मोतीचन्द्रजी, रानी औसानगंज, श्री सुकतंकर साहित्याश्रम इन्दौर, सर सीतारामजी, ब० भागीरथजी, ब्र० ठाकुरदास जी, ब्र० भगवानदीन जी, ब्र० गुम्मनजी मूडबिदरी, महाराज कपूर. विजयजी, मनिराज श्री क्षमामुनिजी, विनयमुनिजी, प्रताप मुनिषी इत्यादि । इस महोत्सव का पूर्ण विवरण अंग्रेजी जैन गजेट अनवरी १९१४ में प्रकाशित है। ___ ऐसे महत्व का महोत्सव आज तक जैन समाज में नहीं हुआ और इस सबकी आयोजना के श्रेय का बहुभाग श्री कुमार देवेन्द्र प्रसादजी पारा निवासी को है । इस महोत्सव के आयोजन से स्वर्गीय कुमारजी की कीर्ति अजर अमर रहेगी। चौदहवाँ अधिवेशन चौदहवाँ अधिवेशन बम्बई ता ३०, ३१ दिसम्बर १९१५ को स्थानकवासी समाज के प्रतिनिधि, उगते सूर्य, अर्थशास्त्र के ख्यातिप्राप्त श्राचार्य खुशाल भाई टी. शाह वैसिस्टर-ऐटला के सभापतित्व में हुआ। इस अधिवेशन में भी अपूर्व उत्साह और शान थी। उन्हीं दिनों बम्बई में नैशनल कांग्रेस की बैठक बगाल केसरो सर सत्येंद्रप्रसन्न सिंह के सभापत्वि में हो रही थी और नगर सारा सुसजित था। महामंडल के इस अधिवेशन में अनेक प्रान्त, अनेक जाति और अनेक सम्प्रदाय के अग्रगण्य जैन सम्मिलित हुए थे । श्रा मकनजी जूठाभाई मेहता बैरिस्टर ऐटला स्वागत-समिति के अध्यक्ष थे। श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१ ) अभ्यागतों के सत्कार सुशा में संलग्न थे और श्री मनीलाल हाकिमचन्द उदानी जलसों के प्रोग्राम बनाते थे। हीराबाग की विशाल धर्मशाला में बाहर से आये हुए प्रतिनिधि पाराम से ठहरे हुए थे। अधिवेशन की कार्यवाही एम्पायर थियेटर में प्रारम्भ हुई । मंगरौल जैन सभा की बालिकाओं ने मिलकर एक स्वर से मंगलाचरण किया। मैंने भी कुछ मंगलात्मक श्लोक पढ़े । सोलिसिटर मोतीचन्द जी कापडिया के प्रस्ताव, सेठ ताराचन्द नवलचन्द जवेरी के समर्थन पूर्वक प्रोफेसर खुशालभाई शाह सभापति निर्वाचित हुये। सभापति का मुद्रित व्याख्यान वितरण कर दिया गया था; किन्तु श्रीयुत शाह ने अपना व्याख्यान बिना पढ़े मौखिक रूप से ही कहा । श्रीयुत शाह ने छपा हुश्रा नहीं पढ़ा बल्कि इटैलियन संस्कृत का अच्छा अभ्यास प्राप्त किया था। ये अब सिडेनहम कॉलेज बाम्बे में अर्थ तथा व्यापारशास्त्र के प्राचार्य हैं। उन्होंने बृहत् ऐतिहासिक ग्रन्थ भारतवर्ष का अतीत गौरव ( The Glory that was Ind) सम्पादन किया है। व्याख्यान की ध्वनि गहरी स्पष्ट गू जती हुई थी। और खचाखच भरे हुए थियेटर हाल के दूरस्थ कोने तक पहुँचती थी । इनका व्याख्यान दो घन्टे तक चलता रहा। उपस्थित समूह ने उसे जो लगाकर ध्यान से सुना । बीच बीच में करतलध्वनि अवश्य होती थी। सभापति महोदय के ये वाक्य अत्यन्त हृदयस्पर्शी थे "इस समय में जब कि प्रत्येक व्यक्ति इस बात को भूल कर कि वह हिन्दू मुसलमान या पारसी है सिर्फ यह ध्यान रखता है कि वह भारतीय है, हम लोग यह भूल गये कि हम जैन हैं, मगर यह समझते रहते हैं कि हम दिगम्बर है, श्वेताम्बर है, स्थानकवासी हैं, डेरावासी हैं।" उन्होंने जोरदार प्रभावक वाक्यों में दिखलाया कि जैन धनवान है, प्रचुर द्रव्य का दान निरन्तर कहते रहते हैं किन्तु उस दान को सुव्यवस्था और सदुपयोग होने में कुछ भी प्रयत्न नहीं करते। उन्होंने प्राथमिक और उच्च लौकिक, धार्मिक, व्यापारिक शिक्षा प्रचार के लिये बहुत कुछ कहा । इस जोशीले, गौरव-शाली प्रवचन को भी ३२ बरस गुजर Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ) चुके, मगर साम्प्रदायिक भेद-प्रमेद घटने की जगह बढ़ते ही जाते हैं। कचहरियों में लाखों रुपया बरबाद हो चुका, पारस्परिक प्रेम और गो-वत्स वात्सल्य भाव का अभाव होकर ईर्षा-द्वष की वृद्धि हो रही है, धर्म की तात्विक वास्तविक क्रियाओं को गौण करके दिखावे के लिये, नामवरी के वास्ते, व्यापार वृद्धि के श्राशय से धर्म का दिखावा करके आपस में मारकाट और मुकदमेबाजी जैनी लोग कर रहे हैं, अहिंसा धर्म का झंडा फहराने वाले, हिंसा का व्यवहार कर रहे हैं । इस अधिवेशन में महात्मा गांधी भी पधारे थे। पन्द्रहवाँ अधिवेशन पन्द्रहवाँ अधिवेशन अजिताश्रम लखनऊ में श्री माणिकचन्दजी वकील खंडवा के सभापतित्व में २९, ३०, ३१ दिसम्बर १६१६ को हुा । इस अधिवेशन में रायबहादुर सखीचन्दजी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस पूर्णिया से पधारे थे । २५ दिसम्बर को महामण्डल के प्रारम्भिक अधिवेशन की योजना श्रीयुत दयाचन्दजी गोयलीय मन्त्री जीवदया विभाग ने बम्बई बीवहितकारी सभा के सहयोग में की। यह सम्मिलित सभा अजिताश्रम के विशाल उद्यान में ह्य एटे रोड पर हुई। उन्हीं दिनों में नैशनल कांग्रेस, नैशनल कान्फरेंस आदि सार्वजनिक सभा लखनऊ में हो रही थी। हमारी सभा का शामियाना अनोखी शान का था । मखमल पर जरदोज़ी बना हुआ "अहिंसा परमोधर्मः यतो धर्मस्ततो पयः" का निशान चमक रहा था। इसी प्रकार मखमल पर सलमे के काम के मेजपोश और झंडे इतने लगे हुए थे कि सारा स्थान सुनहरी मालूम हो रहा था । श्रीयुत बी. जी. हौरनिमन बम्बई के प्रसिद्ध पत्र बाम्बे क्रांनिकल के सम्पादक और भारतीय पत्रकार सभा के अध्यक्ष इस जलसे के सभापति निर्वाचित हुए। उपस्थित जैन अजैन जनता को समूह इतना था कि विशाल मण्डप में खड़े होने तक का स्थान नहीं Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * श्री० माणिक चन्द जी, बी० ए०, एल-एल० बी० लखनऊ अधिवेशन १६१६ के सभाध्यक्ष - Page #39 --------------------------------------------------------------------------  Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था। प्रान्तीय धारा सभा के सदस्य, जुडीशल कमिश्नर पंडित कन्हैयालाल, प्रमुख न्यायाधीश, वकील, बैरिस्टर, सेठ, साहूकार, डाक्टर, इन्जीनियर, सभी प्रतिष्ठित लोग पधारे थे । सड़क और रास्ता बन्द हो गया था। मकानों की छत और दरख्तों पर लोग चढ़कर इस दृश्य को देख रहे थे । उपस्थित जनता महात्मा गांजी का प्रवचन सुनने के लिये एकत्रित थी। महात्मा जी ने अहिंसा के व्यापक महत्व पर जोर के साथ उपदेश दिया और जैनियों को आदेश दिया कि वह अपने अहिंसा धर्म को पशु पक्षियों को दया प्रदर्शन तक ही सीमित न रक्खें, बल्कि अपने परिजन, मित्र, पड़ौसी, या किसी व्यक्ति को किसी प्रकार शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, कष्ट या खेद न पहुँचावें । अहिंसा वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन को बल पहुँचानेवाला वीरों का धर्म है। अहिंसावादी के पास कभी कायरता नहीं फटक सकती । बैरिस्टर विभाकर और सभापति हौरनिमन ने अपने भाषणों में कहा कि यह अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि निरामिष आहार, दया प्रचार और अहिंसा व्यवहार का उपदेश भारतीय जनता को पाश्चात्य शिक्षा प्रास यूरोपियन द्वारा दिया जाये, जो लोग मांसाहारी होने के कारण अछूत और भ्रष्ट समझे जाते थे। सभा विसर्जित होने के बाद महात्मागांधी जी ने अजिताश्रम में पधार कर महिला मण्डल को उपदेश दिया। ___ मनोनीत सभापति श्रीयुत मानिकचन्दजी २५ ता. की रात को पधारे । २६ की रात को अजिताश्रम मण्डप में कुंवर दिग्विजय सिंह का पब्लिक व्याख्यान जैन धर्म पर हुश्रा । २७ की कार्यवाही सिद्धभक्ति, प्रार्थना, शान्तिपाठ,मंगल पढ़कर की गई । रायसाहब फूलचन्द एकजेकेटिव इन्जीनियर लाहौर ने उपस्थित जनों का स्वागत किया। मानिकचन्दजी का छपा हुअा हिन्दीभाषण वितरण हुआ। छोटे टाईप में ४० पृष्ठ पर छपा हुआ व्याख्यान जैन समाज का दिग्दर्शन है, समाज की अवनत दशा का चित्रण, उसके कारण, और समाजोन्नति के उपायों का विशद Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) विवेचन है, ३० वर्ष पीछे भी वह वैसा ही पठनीय और अध्ययन योग्य है, जैसा १६१६ में था। इस भाषण से कुछ वाक्य नमूने के तौर पर उद्धरण करना अनुचित न होगा "समाजोन्नति के लिये हमें पुनरुत्थान भी करना चाहिए और नवीन रचना भी, दूसरे शब्द में सुधार के राज्यमार्ग को ग्रहण करना चाहिए"पश्चिम की सामाजिक रीतियाँ अधिकांश हानिकारक है...समाज सुधार पूर्व पश्चिम के सिद्धान्तों की समुचित योजना से ही हो सकता है.... ..'भारत जैन महामंडल का उद्देश्य पहले से ही साम्प्रदायिक भेद को एक ओर रख, समग्र जैन जाति की उन्नति करना, सारे जैनियों में एकता तथा मैत्रीभाव का प्रचार करना, तथा जैन धर्म का प्रसार करना रहा है। तीनों सम्प्रदायों को सम्मिलित करके कार्य करने की नीति के कारण, यह मंडल सदा से श्रालोचकों के आक्षेपों का निशाना बना चला आ रहा है. कुछ तो धार्मिक तत्वों में एकता करने का मिथ्या आक्षेप लगाकर, हमको 'कण्डापन्थी' कहते हैं.."महामंडल का कोई भी ऐसा प्रस्ताव वा कार्य नहीं है जिससे ऐसा उद्देश्य उनके माथे मढ़ा जाय । कुछ यहकहते हैं कि हमारा ध्येय अशक्य अनुष्ठान है। क्या हिन्दू मुसलमानों में जो भेद है उससे अधिक अन्तर श्वेताम्बर दिगम्बर सम्प्रदाय में हैं. कांग्रेस में हिन्दू मुसलमान मिलकर काम करते है."तीर्थराज सम्मेद शिखरजी के सम्बन्ध में इस समय हम लड़कर लाखों रुपयों का नाश कर चुके हैं, व कर रहे हैं. यह हमारी भूल है कि अधिक या सामूहिक बल, या कूटनीति से एक समाज दूसरी समाज पर विजय प्राप्त कर सकता है."हम दोनों को प्रापस में मिलकर विवादस्थ बातों का निर्णय कर लेना चाहिए । ...सिद्धान्तों का अर्थ समय के अनुकूल करना होगा तभी हमारा धर्म सार्वभौम धर्म हो सकेगा। जिस समय धर्म समाज के लिये उपयोगी नहीं रहता, उसी समय उसका अन्त समझना चाहिये,..हमें मूढ़ विश्वास तथा कुरीतियों की चट्टानों को तोड़ना है।...हमें इस प्रश्न Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का जबाब देना होगा की भारत में जैन धर्म ने जैन समाज का क्या उपकार किया है ।...यदि हम औरों को जैनी बनाना चाहते है तो क्या यह आवश्यक नहीं है कि हम उन्हें भी अपने ही समान धार्मिक तथा सामाजिक अधिकार प्रदान करें...हमें संसार की प्रायः खासखास भाषाओं में हमारे शास्त्र तथा जैन सिद्धान्त की पुस्तकें प्रकाशित करनी होंगी...पारा के जैन सिद्धान्त भवन को हमें एक वास्तविक सेंट्रल जैन लाइब्रेरी या म्युज़ियम बनाना होगा... हमें कौसिलों में प्रवेश, जैन त्यौहारों पर श्राम छुट्टी कराने का प्रयत्न, उपदेशकों द्वारा समाज सुधार के विचारों का प्रचार, युवकों को अन्य देशों में भेजकर उच्च श्रौद्योगिक तथा साधारण व व्यवसाय शिक्षा दिलाने की योजना, मन्दिरों के कोष में एकत्रित धनराशि का धामिक तथा समाजोद्धारक शिक्षा तथा कलाकौशल प्रचारार्थ सदुपयोग, सार्वजनिक संस्थाओं का सुप्रबन्ध, हिन्दा साहित्य का प्रचार करना चाहिये।" अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्ध की उपयोगिता हढ़ युक्तियों से दिखाई गई थी । शिक्षा तथा शिक्षा पद्धति पर गहरा विवेचन किया गया था। सभापति के व्याख्यान समाप्ति पर सारी उपस्थित सभा (सम्जेक्ट कमेटी ) विषय निर्धारिणी समिति मान ली गई । २६, २७, २८, २९ की शाम को पबलिक व्याख्यान श्री दिगविजयसिंहजी, प्रभुलालजी, भगवानदीनजी के होते थे और प्रात: धार्मिक सम्मेलन। ३० को महामडल का खुला अधिवेशन हुआ। ३१ को धार्मिक चर्चा २४ से ३१ तक अजिताश्रम में दोनों समय भोजन का प्रबन्ध किया जाता था। इस अधिवेशन का सारा खर्च उठाने का पुण्य मुझे प्राप्त हा था। जे. एल. जैनी अस्वस्थता के कारण पधार न सके थे; किन्तु इन्दौर से उन्होंने एक विस्तीर्ण संदेश भेजा था, जो जैन गज़ट १९१७ के १२ पृष्ठों पर प्रकाशित किया गया है। सभापति महोदय के व्याख्यान 'का अनुवाद ४० पृष्ठों में छपा हुआ है। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ प्रतिनिधि विविध प्रान्तों से पधारे थे जिनकी सूची जैन गजेट में प्रकाशित है । १५ प्रस्ताव निश्चित हुए थे, जिनमें से निम्न उल्लेखनीय है: प्र० न०६-समय आ पहुँचा है जब जैन समाज में प्रचलित कुरीतियों का नाश या सुधार जोर के साथ किया बाय; नीचे लिखी दिशाओं में विशेष ध्यान दिया जाय (१) २० बरस से कम की उमर में लड़कों का, और १४ से कम लड़कियों का विवाह न होने पाये। (२) ५५ से ऊपर पुरुष का, और जिसके पुत्र हो उसका ४५ बरस के ऊपर की उमर में पुनर्विवाह न होने पाये। (३) जैन जातियों में पारस्परिक विवाह तथा भोजन का प्रचार किया जाये। (४) विवाह और देहान्त सम्बन्धित रिवाजों में यथा सम्भव सादगी बरती जावे और अनावश्यक रीतियाँ बन्द की बायें। (५) लड़का या लड़की वाले को किसी प्रकार भी बहुमूल्य नकद या द्रव्य का प्रदेशन करने से रोका जाये। (६) विवाह या मौत के अवसरों पर अपनी शक्ति से अधिक खर्च का रिवाज, और मरने पर बिरादरी का भोजन, रोका जाय । (७) विवाह के अवसर पर रंडी का नाच बन्द कर दिया जाय । मंडल का प्रत्येक सदस्य ऊपर लिखे सुधारों का यथाशक्ति पालन करेगा। (८) जैन तीर्थो', मन्दिरों और संस्थाओं का हिसाब जाँच किया बाकर जैन समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाय । ___इसी अवसर पर श्रीयुत उग्रसैन वकील हिसार ने १०,०००) का दान सेन्ट्रल जैन कालिज स्थापित करने के लिये घोषित किया। खेद है कि ऐसा कालिज अब तक नहीं बन सका, यद्यपि आरे में श्री हरप्रसाद Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ). दास के नाम से एक डिगरी कालिज बडौत, पानीपत, अम्बाला आदि स्थानों में इन्टरमीजियेट कालेज स्थापित हो गये हैं। सोलहवाँ अधिवेशन सोलवा अधिवेशन दिसम्बर १९१७ में, जैनधर्म-भूषण ब्रह्मचारी शोतलप्रसादजी के सभापतित्व में, कलकत्ता नगर में हुआ। लोकमान्य तिलक और माननीय जी. एस. खापर्डे ने पंडित अर्जुनलाल सेठी, B. A. की नज़र-बंदी कैद तनहाई से मुक्त किये जाने के लिये प्रस्ताव उपस्थित किया। ___ सभापति के व्याख्यान में व्यापक रूप से सामाजिक, राष्ट्रीय, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक साहित्यिक उत्कर्ष के उपायों पर विवेचन किया गया था। सेन्ट्रल जैन कालिज, जैन कोआपरेटिव बैंक, विधवाश्रम, श्राविका. श्रम की स्थापना पर जोर दिया गया था। इस अवसर पर एक जोरदार प्रस्ताव तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादस्थ विषयों का पंचायत द्वारा पारस्परिक निबटारा करने के लिये स्थिर हुआ। महात्मा भगवानदीनजी के साथ मैंने राय बहादुर सेठ बदरीदासजी के द्वार के बहुत फेरे किये । महात्मा गांधी को राजी कर लिया कि वह हमारे आपसी झगड़ों का निर्णय कर दें, किन्तु सफलता न हुई। ११ प्रस्तावों में एक उल्लेखनीय प्रस्ताव यह था कि प्रत्येक जैन गो पालन करे, और चाम लगे हुए बेल्ट, पेटी, टोपी, बिस्तरबंद, आदि का प्रयोग न करे। इस अवसर पर भी श्री० जे. एल. जैनी न पधार सके, किन्तु उनका लिखित संदेश जैन गजेट १६१८ में प्रकाशित है। सत्रहवाँ अधिवेशन सतरहवाँ अधिवेशन वर्धा में दिसम्बर १९१८ में श्री सूरजमलजी हरदा निवासी के सभापतित्व में हुआ। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) अठारहवाँ अधिवेशन अठारहवाँ अधिवेशन श्री जे. एल. जैनी के सभापतित्व में टाउन हाल नागपुर में दिसम्बर २८, २६, १९२० को हुश्रा । सन् १९५१ के बारहवें अधिवेशन के सभापति भी श्री जे. एल. जैनी ही थे । इन दस बरसों में दुनिया के, और जैन जाति के वातावरण में बड़ा परिवर्तन हो गया था। किन्तु दृष्टिकोण ऋजुकोण नहीं हो पाया था। इनका भाषण इस दृष्टि को लिये हुए निराला हो पथ प्रदशक था। और उसने अधिवेशन को विशेष महत्त्व प्रदान किया था। जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों से लेकर समाजोद्धारक तत्वों का विशद और स्पष्ट विवेचन प्रारम्भ में किया गया था। फिर सम्मिलित कुटुम्ब विधान, कर्ता का पूज्यस्थान, परिजन सहयोग, शिशु, बालक, युवक, गृहस्थ, ग्रादि अवस्थाओं में शिक्षा की प्रायोजना, सामाजिक जीवन में मन वचन काय से सत्य व्यवहार, अर्थ, यश, वैभव, सुख, सम्पत्ति, धम, अध्यात्मोन्नति की प्राप्ति में पूण अथक परिश्रम, समाजोन्नति के उपाय, श्रादि सब ही श्रावश्यक विषयों पर गहन और लाभदायक प्रकाश डाला गया था। वह व्याख्यान जैन गजेट १९२१ के पृष्ठ २ से १४ तक प्रकाशित है। इस अधिवेशन में पंडित अर्जुनलाल सेठी बी. ए. भी ७ बरस के एकान्त कारागार से विमुक्त होकर सम्मिलित हुए थे! उन्नीसवाँ अधिवेशन उन्नीसवां अधिवेशन बीकानेर में ८ अक्टूबर १९२७ को श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह के सभापतित्व में हुआ। स्वागत समिति ने सुन्दर छपे हुए निमंत्रण कार्ड द्वारा जैन तथा अजैन सज्जनों को आमंत्रित किया था। विशाल मंडप स्त्री पुरुषों से खचाखच भरा था। यह अधिवेशन श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांनफ्रेंस के वार्षिक अधिवेशन के साथ उनके ही मंडप में हुआ था। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NYAUNY TYALA NTIAAADATA श्री० जे० एल० जैनी० एम० ए० मुज़फ़्फ़रनगर १६१६, नागपुर अधिवेशन १६२० के सभाध्यक्ष Page #47 --------------------------------------------------------------------------  Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ பபபமமமமபயபபாகாயம்பயபபயர் பாம்பாட் , linin |OHMONDAIN TI PIRAINDHINAINADAININPININPANI श्री० वाडीलाल मोतीलाल शाह बीकानेर अधिवेशन १६२७ के सभाध्यक्ष uெmuhillinmilluminminimummiming miniulimmiult u r Amuthamittumilitia ப யமாயமாயமாயமாயம் Page #49 --------------------------------------------------------------------------  Page #50 --------------------------------------------------------------------------  Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ++++++++++++ श्री० सेठ अचल सिंह, एम० एल० ए० लखनऊ अधिवेशन १६३६ के सभाध्यक्ष *+++++++++++++++++++++++ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करीब ४०० श्वेताम्बर जैन एकत्रित थे। श्री अजितप्रसाद ने श्राम्नायः और जातिमेद को मिटाकर पारस्परिक जैन मात्र में सह-भोज और विवाह सम्बन्ध होने के औचित्य और सामाजिक दृढ़ता पर प्रभावक व्याख्यान किया। उन्होंने कहा था कि श्रोसवाल, अग्रवाल, खंडेलवाल, पल्लीवाल, आदि Walls ( दिवारों) को तोड़कर एक Vast Hall विशाल भवन बनाना अत्यन्त श्रावश्यक है । यह जैन समाज के जीवनमरण का प्रश्न है। श्रीयुत शाह ने श्वेताम्बर-दिगम्बर मुकदमे का पारस्परिक मनोनीत पंचायत द्वारा निर्णय कराने में तन, मन, धन से भागीरथ प्रयत्न किया था । उभय पक्ष के नेताओं के हस्ताक्षर पंचायती निर्णय के इकरारनामे पर करा लिये थे । किन्तु “पूजाकेस" का फैसला कचहरी से हो गया; और सब प्रयत्न निष्फल हुआ। बीसवाँ अधिवेशन वीसवां अधिवेशन लखनऊ में आगरा निवासी सेठ अचल सिंहजी के सभापतित्व में ११ अप्रैल १६३६ को हुआ। उल्लेखनीय प्रस्ताव थे (२) महामंडल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्तितः प्रयत्न करेगा कि तीर्थ क्षेत्र सम्बन्धी विवाद पारस्परिक समझौते से पंचों द्वारा निर्णय कर दिये जाएँ । कचहरी में न जाएँ। शौरीपुरी आगरा केस के निर्णय के लिये श्रीयुत गुलावचंद श्रीमाल डिस्टिक्ट जज, और अजित प्रसाद नियत किये गये। दोनों ने काफी कोशिश की। और फैसला भी लिख लिया; मगर वह फैसला उभय पक्ष को मजूर न था, इस कारण रद्दी कर दिया गया । आखिर हाईकोर्ट अलाहाबाद से वही फैसला हुश्रा जो यह पंच कर रहे थे। उभय समाज का रुपया व्यर्थ बरबाद हुआ । (३) प्रत्येक सदस्य पूर्ण प्रयत्न करेगा कि भिन्न-भिन्न जैन जातियों सम्प्रदायों में विवाहादिक सामाजिक सम्बन्ध किये जायें। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... (४) प्रत्येक सदस्य अन्य सम्प्रदायों के धार्मिक पर्व में सम्मिलित हुश्रा करेगा। .. इक्कीसवाँ अधिवेशन इक्कीसवां अधिवेशन वर्धा में १९-२० मार्च १९३८ को सेठ राजमलजी ललवानी एम. एल. ए. के सभापतित्व में हुश्रा । अनेक जैन सम्प्रदाय, जाति, उपजाति के सज्जन उपस्थित थे। महिला सभा भी हुई थी। यह अधिवेशन १९ मार्च को श्री हीरासावजी डोमे के यहाँ विवाह-मंडप में सम्पन्न हुआ । महामडल का उद्देश्य जैन धर्म प्रचार, तथा जैन जाति उद्धार है। बहुधा जैन संस्थाओं का अधिवेशन किसी धार्मिक उत्सव के साथ साथ होता है। यह प्रथम अवसर था कि एक विवाहोत्सव पर महा मडल का अधिवेशन कराया गया। श्री हीरासावजी डोमे विशेष बधाई के पात्र हैं। मंगलाचरण प्र. शीतलप्रसादजी ने किया था। स्वागत सभापति श्री पुखराजजी कोचर एम. एल. ए., सी. पी. काउन्सिल हिंगनघाट निवासी ने लिखित भाषण पढ़कर सुनाया । जिसमें मडल के उद्देश्य पर सुन्दर विवेचन किया गया था। यह बैठक ८ से ११ तक रही। दिन में नागपुर बैंक वर्धा के विशाल आफिस में सब्जेक्ट कमेटी की मीटिंग हुइ । और रात्रि को फिर विवाह मंडप में प्रस्ताओं पर भाषण हुए । २० मार्च को सुबह से ११ तक भी गणपतरावजी मेलांडे के यहाँ विवाह मण्डप में प्रस्तवों पर भाषण हुए । सभापति का अन्तिम भाषण मार्मिक था। तीनों फिरकों ने सम्मेलन में भाग लिया, तथा भ्रातृ भोज में सम्मिलित हुए । श्री गणपतरावजी का समाजप्रेम और उत्साह सराहनीय है। तीसरे पहर जैन छात्रालय में सौभाग्यवती वसुन्धरादेवी धुमाले की अध्यक्षता में जैन महिला सम्मेलन हुा । इन दोनों विवाहों में वर-कन्या भिन्न जाति, और भिन्न सम्प्रदाय के थे । रात्रि को दिगम्बर Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री० सेठ राजमल लालवनी वर्धा अधिवेशन १६३८ के सभाध्यक्ष Page #55 --------------------------------------------------------------------------  Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) जैन मन्दिर में डा० चुननकर पी. एच. डी. का व्याख्यान हुआ । श्र्० शीतलाप्रसाद, प्रोफेसर हीरालाल, डा० जुननकर, श्री जुननकर सबजज, श्री एम. वी. महाजन ऐडवोकेट, टी. पी. महाजन वकील, सुगनचन्द लुनावत एम. एल. ए., दीपचन्द गोठी एम. एल. ए., फूलचन्दजी सेठी, कन्हैयालालजी पाटनी, पानकुंवर बाई धर्मपत्नी सेठ राजमलजी ललवानी, बहन शांताबाई रानीवाला, सो० वसुन्धरादेवी घुमाले, अब्दुल रजाक खाँ एम. एल. ए. बाहर से पधारे थे । श्री अब्दुल रजाक खाँ का भाषण श्रहिंसापर हुआ । श्रद्धय श्रीकृष्णदास बाजू, सत्यभक्त दरबारी लालजी के व्याख्यान भी हुए। वर्धा म्युनिसिपैलिटी के अध्ययक्ष श्री गंगाविशन बजाज, तालुका काँग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री शिवराज चूड़ीवाले भी पधारे थे। इस अवसर पर किसी प्रकार भी चन्दा नहीं लिया गया । प्रबन्ध का सब खर्च चिरंजीलालजी बडजाते ने किया । यों तो इस अधिवेशन में १३ प्रस्ताव हुए । उल्लेखनीय प्रस्ताव निम्नलिखित थे । ( नं. १ ) - धार्मिक भंडारों में जो रुपया जमा है, उसका उपयोग जैन साहित्य प्रचार, धर्म प्रचार, प्राचीन ग्रन्थोद्धार, जैन धर्म-सम्बन्धी विद्या प्रचार में किया जाए । ( नं. ५ ) - जब तक जैन समाज के छात्र परस्पर मिलकर विद्याध्ययन नहीं करेंगे, तब तक एकता, प्रेम-वर्धन नहीं हो सकता । श्रतएव मण्डल की राय में जैन यूनिवर्सिटी, कालेज, हाईस्कूल श्रादि सम्मिलित संस्थाएँ होनी चाहिए जिसमें जैनधर्म के मूल सिद्धान्त पढ़ाए जायँ बिन सिद्धान्तों में दिगम्बर श्वेताम्बर साम्प्रदायिक भेद नहीं है । तथा व्यवहार धर्म की रीतियों में जो मतभेद हैं, उनपर समदृष्टि रखना सिखलाया जाए । यह मण्डल वर्तमान जैन समाज के संचालकों से निवेदन करता है कि वह इस उद्देश्य की पूर्ति संस्थानों में करें । (नं. ६.) समाज में विधवाओं की दशा बहुत शोचनीय है । उनके • उद्धार के लिये उचित है कि विधवा श्राश्रम खोलकर उनका 3 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन सुधार करें; बिससे उन्हें कभी विधर्मी होने का अवसर प्राप्त न हो। बाईसवाँ अधिवेशन । बाईसवाँ अधिवेशन मई १९३८ को वरुड तहसील मोरसी ( अमरावती में ) भैय्यालालषो मांडवगडे के सभापतित्व में हुआ, प्रास-पास के स्थानों के करीब ३०० जैन आ गये थे । अजैनों की संख्या भी इतनी ही थी । कारंवा भाविकाश्रम की अयवती बाईजी ने प्रभावशाली व्याख्यान दिया। तेईसवाँ अधिवेशन . तेईसवाँ अधिवेशन यवतमाल टाउन हाल में साल १६४० में भी ऋषभसावषी काले के सभापतित्व में हुआ । सेठ ताराचन्द सुराना प्रेसीडेन्ट म्युनिसिपल कमेटी स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। इस अधिवेशन में महामाखन में अपने प्रस्तावों में निम्न घोषणा की १. प्रत्येक व्यक्ति शुद्ध शरीर, शुद्ध वस्त्र, शुद्ध द्रव्य से, विनयपूर्वक, विधानानुसार, जैन मन्दिर में प्रक्षाल पूजा का अधिकारी है । उसके इस धार्मिक अधिकार में विघ्न बाधा लाने से दर्शनावरणीय, ज्ञानावरणीय मोहनीय अन्तराय कर्म का बन्धन होता है। २. वर्तमान परिस्थिति में जहाँ जैन मन्दिर मौजूद है, वहाँ नयी मन्दिर, या नई वेदी बनवाना बिल्कुल अनावश्यक है। ३. नाति सुधार के लिये निम्न प्रयत्न महामण्डल करेगा। (१) साम्प्रदायिक विचार गौण करके शाखा मंडलों की स्थापना । (२) समस्त जैन समाज में बेरोकटोक रोटी-बटी व्यवहार ।। (३) जैन धर्म, जैन साहित्य, प्राचीन शास्त्र और सामान्य शिक्षा प्रचागर्यदेव द्रव्य का जो मंदिरों में जमा है सदुपयोम हो । (४) जैन तीर्थ क्षेत्र-सम्बन्धी झगड़ों का पारस्परिक समझौता। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DESCRIPTIONERIODRENSIDDDDDDDIOS श्री० भैय्यालाल बरुड (अमरावती) अधिवेशन १६३८ के सभाध्यक्ष Page #59 --------------------------------------------------------------------------  Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) (५) स्त्रीशिक्षा का समुचित प्रबन्ध और विधवा और अनार्थों की रक्षा तथा सहायता। (६) परदा प्रथा का हटाना । (७) बेरोजगार जैनियों को रोजगार से लगाना । () जन्म-मरण भोज प्रथा को दूर करना । (8) जन्म, विवाह आदि घरेलू उत्सवों में व्यर्थ व्यय रोकना। . (१०) बाल विवाह, वृद्ध विवाह तथा अनमेल विवाह की प्रथा को बन्द करना। (११) माति बहिष्कार के दस्तूर को हटाना । (१२) भारतीय सामाजिक प्रबन्ध में, अर्थात् केन्द्रीय, प्रान्तीय धारा सभा, डिस्ट्रिक्ट बोड, ग्राम पंचायत आदि में भाग : लेना। ___चौबीसवाँ अधिवेशन चौबीसवाँ अधिवेशन ५ मई १९४४ को देशभक्त सेठ खुशालचद बी खांची एम. एल. ए. ( M. L.A.) के सभापतित्व में वर्षा में हुश्रा । सवजेक्ट कमिटी की मीटिंग बजाज-वाडी में हुई और महामण्डल का खुला बलसा तिलक भवन (टाउन हाल ) में! उल्लेखनीय प्रस्ताव यह थे। ५) दिगम्बर श्वेताम्बर धार्मिक पर्व पर मिलकर साप्ताहिक या मासिक सामूहिक प्रार्थना की जाय । (६) महामण्डल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्ति से प्रयत्न करे कि तीर्थक्षेत्र-सम्बन्धी सब मुकदमें पंचायती न्यायालय द्वारा निर्णीत किये जाय, वह निर्णय प्रत्येक जैन को मान्य हो। कोई मुकदमा सरकारी कचहरी में न जाने पावे । (७) जिस किसी जैन मंदिर या अन्य संस्था का हिसाब साफ नहीं रखा गया हो, या उसमें सन्देह हो, या अधिकारीवर्ग के सामने Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेश न किया गया हो, उस हिसाब को ठीक कराकर प्रकाशित कराया माय । जैन मंदिरों में जो रुपया जमा है उसका जैन साहित्य तथा जैन संस्कृति की रक्षा और प्रचार में सदुपयोग किया जाय ! . (८) गम्भीरमल पांड्या ने जो विवाह नाबालिग कन्या से जबरन उसकी अनुमति विरुद्ध किया है उसको महामण्डल घृणित घोषित करता है। यद्यपि सरकारी अदालत से वह विवाह ठीक माना गया है तथापि मण्डल उसको नीति विरुद्ध, समाजोन्नति में हानिकारक, अनुचित, और धर्म विरुद्ध मानता है । जैन समाज और केन्द्रीय धारा सभा से मण्डल अनुरोध करता है कि प्रचलित कानून में इस प्रकार सुधार किया जाए और ऐसी योजना प्रति शीघ्र की जाय कि पाइन्दा ऐसे अत्याचार न होने पावें ! (६) जैन समाज का असंख्य रुपया धर्म प्रभावना के नाम पर पंच कल्याणक, बिम्ब प्रतिष्ठा, रथयात्रा, गजरथ आदि उत्सवों में खर्च होता है । कितने ही स्थानों में मन्दिरों और मूर्तियों की रक्षा और पूजा का उचित प्रबन्ध नहीं है। मण्डल प्रस्ताव करता है कि जैन समाज की विचार धारा में इस प्रकार परिवर्तन किया जाय कि धर्मनिष्ठ लोग अपना धन मौजूदा प्राचीन मूर्तियों और मन्दिरों की खोज, जीर्णोद्धार, रक्षा और सुप्रबन्ध में लगावें । (१०) धार्मिक वात्सल्य, सामाजिक प्रेम और सहयोग की वृद्धि के लिये अन्तर्जातीय, और अंतरसाम्प्रदायिक विवाह और सहभोज की श्रावश्यकता है। __ पच्चीसवाँ अधिवेशन पच्चीसवाँ अधिवेशन ता० २५, ५६ अप्रैल १९४५ को डाक्टर हीरा लालजी जैन एम० ए०, एल० एल० बी०, डी. लिट् प्रोफेसर मारिस कालिज नागपुर के सभापतित्व में गाडरवाड़ा में महाबीर जयंती के समारोह पर बहुत ही शान और ठाठबाट से हुश्रा । प्रातः प्रभात फेरीप्त Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री० डाक्टर हीरालाल, एम० ए०, एल-एल० बी०, डी० लिट गाडरवाडा अधिवेशन १६४५ के सभाध्यक्ष 10 ॐॐ Page #63 --------------------------------------------------------------------------  Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्पाश्चात भगवान की सवारी पालकी में, उपदेशीय भजन मंडली सहित बाजारों में निकली। पालकी के पीछे महिला-मडली भी भजन कहती हुई चलती थी। शाम को मंडल के अध्यक्ष प्रोफेसर हीरालाल तथा मानिकलालजी कोचर वकील नरसिंहपुर अध्यक्ष, स्वागत समिति की सवारी नव निर्मित, सुसज्जित छतरीदार रथ में निकली, जिसको एक बैल आगे और बारह जोड़ी बैल पीछे, कुल पच्चीस बैल मिलकर खींच रहे थे। सारथी का माननीय पद भीयुत सेठ लालजी भाई ने ग्रहण किया था। रथ के साथ-साथ जैन तथा अजैन जनता हजारों की संख्या में और जैन महिला मंडली रथ के पीछे थी। बाजारों, दूकानों और मकानों पर दर्शकों की भीड़ थी। साथ-साथ बैंड बाजा, भजन तथा जयकार शब्द तो होते ही थे। गल्लामंडी के विशाल मैदान में सभा मडप बनाया गया था। मडी के सब तरफ मकानों पर दीपावली जगमगाहट कर रही थी। शब्द प्रसारक यंत्र । Microphone) भी लगाया गया था। मङ्गलाचरणपूर्वक बारह कन्याओं ने मिलकर स्वागत गान गाया था ? स्वागताध्यक्ष के भाषण हो जाने पर, हीरालालजी ने डेढ घंटे तक धारा प्रवाह मौलिक प्रवचन किया ! अहिंसा, स्याद्वाद, कर्म सिद्धान्त, अपरिग्रह, वात्सल्य, विश्वप्रेम, सामाजिक एकता आदि विषयों पर सरल शब्दों में, स्पष्ट स्वर से, हृदयग्राही, असाधारण ऐसा मौखिक व्याख्यान किया कि बाल-वृद्ध, स्त्री पुरुष सब ही जी लगा कर सुनते रहे । रात को करीब ग्यारह बजे श्रीयुत अजितप्रसाद द्वारा भगवान महावीर जीवन और कुछ सामाजिक विषयों पर भाषण होकर सभा समाप्त हुई। दूसरे दिन २६ ता० को राय साहेब सेठ श्रीकृष्णदासजी के दीवानखाने पर विषय-निर्धारिणी समिति की बैठक करीब १२ बजे तक हुई। रात्रि को मण्डल का खुला अधिवेशन हुश्रा। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्थानीय भाइयों का उत्साह, प्रेम और पारस्परिक भ्रातृ-भाव उल्लेखनीय था। दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तारण पंथी, जैन, अजैन सब इस महोत्सव में सम्मिलित होकर काम कर रहे थे। छब्बीसवाँ अधिवेशन - चैत सुदी १२ व १३, ता० १३, १४ अप्रैल १९४६ को इटारसी में भारत के सुप्रसिद्ध व्यापारी साहू श्रेयॉसप्रसादजी के सभापतित्व में २६वाँ अधिवेशन सम्पन्न हुआ । सभापति महोदय का स्वागत इटारसी की समस्त जैन समाज व बाहर से आये हुए प्रतिनिधिवर्ग ने रेलवे प्लेटफार्म पर किया। स्वागताध्यक्ष श्री० दीपचंदजी गोठी ने फूलमाला पहनाई। सभापतिजी को श्री• दीपचंदजी गोठी के सुसज्जित निवास स्थान पर ठहराया गया । दोपहर को २ बजे से ६ बजे तक कार्यकर्ताओं की सभा हई. जिसमें बाहर से आये हुए सज्जनों का परिचय कराया गया। इस सभा में अनेक विषयों पर खुले मन से परामर्श हुआ। रात को ८ बजे अधिवेशन का कार्य शुरू हुआ। स्वागत गान के पश्चात् स्वगताध्यक्ष का भाषण हुा । सभापति महोदय ने अपने छपे हुए व्याख्यान में जैन समाज के संगठन और भलाई के लिर अनेक मार्ग सुझायें । प्रधान मन्त्री सेठ चिरंजीलालची बरबाते ने गत वर्ष का विवरण पढ़ा। १४ को सुबह ८ बजे सभापतिजी का जुलूस मोटर में निकाला गया। जगह-जगह पर उत्साहपूर्वक विशेष स्वागत हुश्रा। ६ बजे से प्रस्तावों पर विचार विनिमय हुश्रा । ३ बजे अधिवेशन का कार्य शुरू इश्रा। रात को ८ बजे से महावीर जयंती का उत्सव हुा । स्थानीय और बाहर से आये हुए विद्वानों के भाषण, कविता और गान हुए । हीरालालजी ने अपनी पुत्री की सगाई उत्साही युवक स्वागत मंत्री शिखरचंद से की। सम्मेलन के सुअवसर पर यह सुप्रथा अनुकरणीय है। पंडित जितप्रसादजीस ने कन्या को आशीर्वाद दिया। प्रधान मंत्री Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANSIONEDROICE CONOCOCANCY OTO 555555555 श्री० साहु श्रेयांस प्रसाद इटारसी अधिवेशन १६४६ के सभाध्यक्ष Page #67 --------------------------------------------------------------------------  Page #68 --------------------------------------------------------------------------  Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99900 ०००००००००००००००००००००० ०००००००० ००० 00000 00001 10000 DD ००० ooo ० GA ००० ००००००००० .००० ००००० ००००० ०००/ana . B4A सेठ चिरंजीलाल बडजाते प्रधान मंत्री (GORN Food RRRR ००००००००००००० ०० 00 90 ०० 09 . 0 . . . 00 08 कि००० CoU 00 90 00 000000 1091900 ०००००००००० 0000000 : ०००००००००० 06 ०० ००० ०००००००००० 0000 200००( ०००० ०००० Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ चिरंजीलालची बडजाते को मानपत्र ५००१७ की यैलोके साथ अर्पण किया गया । उन्होंने मानपत्र का आभार माना, अपनी कमजोरियों का जिक्र करते हुए । अर्पित थैली में १०.० अपनी ओर से मिलाकर इस तरह ६.०१) मंडल के सभापति सार श्री. श्रेयाँसप्रसादजी को मंडल के कार्य के लिए सौंप दिये सेठ चिरंजीलालजी का यह त्याग और पूर्ण लगन के साथ मंडल की सेवाएं सराहनीय है । लाउडस्पीकर का इन्तजाम था, चाँदनी रात थी। ___ इस वर्ष से मंडल के प्रधान मन्त्री का भार श्री सुगनचंद लुणावत को सौंपा गया है। कुछ प्रस्ताव उल्लिखित किये जाते हैं। नं.१-यह अधिवेशन गत १९४२ अगस्त के राष्ट्रीय महाअान्दोलन में पांडला निवासी उदयचंद जी, गढ़ाकोटा निवासी सोहनलालबी तथा अनजान जैन वीरों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजिल अपित करता है। ' न.२-जैन समान के श्रादर्श तपस्वी विद्वान आचार्य श्री १०८ कुथुसागरजी, श्राचार्य भी शान्तिसागरजी छानी, सूरजभानजी वकील, विश्वम्भरदासजी गार्गीय झांसी के असामयिक निधन पर महामडल को अत्यन्त शोक हुआ है । इन विभूतियों के अवसान से समाज शक्ति की बहुत क्षति हुई है। ___ नं.३-भारत जैन महामडल की यह सभा केन्द्रिीय, प्रान्तीय सरकार से और देशी रजवाड़ों से प्रार्थना करती है, कि श्री. भगवान महावीर जयन्ती, चैत्र शुक्ल १३, को सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी जाए । ____ न. ४-अखंड जैन समाज की महत्वाकांक्षा की प्रतीक ध्वजा स्थिर की जाय । न. ५-सामाजिक जीवन की नई आवश्यकताओं, धारणाओं और मान्यताओं के मुताबिक सामूहिक विवाह-प्रथा का प्रचार किया जाये। योग्य युवक युवतियों का सामूहिक विवाह, एक मण्डप में एक साथ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) कराने की व्यवस्था की जावे । जहाँ तक हो सके मण्डल के अधिवेशन के साथ ही वह कार्य सम्पन्न किया जाय । न.६-समस्त जैन समाज में स्नेह, एकता, संगठन तथा अभ्युदय का विशेष ध्यान रखते हुए यह महामण्डल नीचे लिखे बोर्ड, केन्द्रीय, प्रान्तीय, तथा विविध रजवाड़ों में स्थापित करने का प्रस्ताव करता है । १. बैन प्रोवर सीज़ बोर्ड, २. एजुकेशन बोर्ड, ३. एकोनोमिक रिलीफ बोर्ड ४. पोलिटिकल बोर्ड, ५. वालन्टियर बोर्ड, ६. मेडिकल बोर्ड । महामण्डल के अनुशासन में इनको स्थापित करने तथा उनका कार्य सुचारु रूप से चलाने का अधिकार श्री० एम० बी० महाजन वकील श्राकोला को दिया जाता है। अखिल भारत जैन समाज की सर्व संस्थाओं से आशा है कि, वे इस कार्य में पूर्ण सहयोग देंगी। नं.७-मण्डल अनभव करता है कि, समय और परिस्थितियों को देखते हुए हमें अपने बहुत से धार्मिक कर्मकांडों में काफी मितव्ययता की जरूरत है। इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि, जहाँ तक बने, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, गजरथ, आदि बन्द किये जाएँ, और जहाँ कहीं भी नये मन्दिर बनाये जायें वहाँ पूर्वप्रतिष्ठित मूर्ति किसी अन्य मन्दिर से लेकर विराजमान कर दी जाय । पूर्व स्थापित मन्दिर के पंचों को नये मन्दिर के लिये मूति देने में गर्व का अनुभव करना चाहिए । - नं.८-अप्रेल महीने में भोपाल रियासत के गुंडों द्वारा जैन व अन्य समाज और उनके मन्दिरों पर घोर अत्याचार को सुनकर महामण्डल को बड़ा दुःख हुआ है। वह उम्मीद करता है कि रियासत के अधिकारी इस अत्याचार पर विशेष खयाल रखते हुए जल्द से जल्द प्रभावशाली प्रबन्ध करेंगे । जिससे यह अविवेकशाली परिस्थिति जल्दी दूर हो । नं.-देश में भयानक अन्न की कमी को यह अधिवेशन चिन्ता की दृष्टिसे देखता हुआ जनता से अनुरोध करता है, कि खेती, व गोपालन के उद्योग को अपनाकर शुद्ध खाद्य और अन्य उपयोगी वस्तुएँ अधिकाधिक उपजावें। Page #72 --------------------------------------------------------------------------  Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुन्दनमल, शोभाचन्द फीरोदिया, स्पीकर बाम्बे लेजिस्लेटिव ऐसेम्बली हैदराबाद दक्षिण अधिवेशन १६४६ के सभाध्यक्ष Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) नं. १० - मण्डल की राय में अब वह समय श्रा चुका है जब जैन समाज के सब फिरकों के लोग अपने अपने सामाजिक और धार्मिक उत्सव एकत्रित होकर, एक ही जगह मिलकर एक विशाल जैन संघ के रूप में आयोजित करें । मण्डल सब जगह की पंचायतों को ऐसे कार्यो में यथा शक्ति सहयोग देता रहेगा । नं. ११ - यह अधिवेशन कांग्रेस को देश की एक मात्र प्रतिनिधि संस्था मानता हुआ जैन जनता से अनुरोध करता है कि, कांग्रेस कार्य में यथाशक्ति पूर्ण सहयोग दे । नं. १२ -- यह मण्डल माननीय सभापति को अधिकार देता है कि, वे २१ आदमियों की एक प्रबन्धकारिणी कमिटी स्थापित करें । सत्ताईसवाँ अधिवेशन महामण्डल का सत्ताईसवाँ अधिवेशन २, ३, ४ अपरैल १९४७ - को श्री कुन्दनमल शोभाचन्द फीरोदिया, स्त्रीकार बम्बई लेजिस्लेटिव ऐसेम्बली के सभापतित्व में हैदराबाद ( दक्षिण ) नगर में होने को है । स्वागत समिति के अध्यक्ष श्रीयुत सेठ रघुनाथ मल बैकर हैं । और श्री विरवी चन्द चौधरी स्वागत मन्त्री हैं । उपसंहार १६२१ से १६२६ तक मैं कौटुम्बिक संकटों में और श्री सम्मेद शिखर केस में श्री बैरिस्टर चम्बत राय के साथ लगा रहा, श्रीयुत् युगमन्धरलाल जैनी को इन्दौर हाईकोर्ट की जजी से अवकाश न मिला अन्य कार्यकर्ता भी विविध प्रकार व्यस्त रहे, और ६ बरस तक मण्डल का अधिवेशन न हो सका । १९२७ में मुझे कुछ अवकाश मिलने पर बीकानेर में अधिवेशन का आयोजन श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह के सभापतित्व में हो सकी । श्री युगमन्धरलाल जैनी का शरीरान्त १९२७ में हो गया था । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ४० ) १९२८ से १९३५ तक, ८ बरस, मुझे श्री सम्मेदाचल, पावापुरी, रावगृही तीर्थक्षेत्र-सम्बन्धित मुकदमों, बीकानेर हाईकोर्ट की बजी, लाहौर हाईकोर्ट में डाक्टर सर मोतीसागर के दफ्तर के काम, हैदराबाद में मुनि जय सागर के बिहार प्रतिबन्ध के मुकदमें, आदि से अवकाश न पिलने के कारण अधिवेशन न हो सका । १९४१. १९४२, १९४३ में भी अधिवेशन न हो सका । १७ बरस अधिवेशन न होना अवश्य खेदजनक है। इसका मुख्य कारण यह था कि तीर्थक्षेत्र-सम्बन्धी मुकदमों के कारण श्वेताम्बरीय भाइयों से जो सहयोग मिलता था, वह कम हो गया था। विशेष हर्ष का अवसर है कि महामण्डल का २७वाँ अधिवेशन हैदराबाद ( दक्षिण ) में श्री कुन्दनमल शोत्राचन्द फीरोदिया के सभापतित्व में मार्च २, ३, ४, अपरैल १९४७ को हो रहा है । महामण्डल के अधिवेशन सूरत, और बम्बई में तो हो चुके हैं। यह पहला अवसर है कि मण्डल अपने जन्म स्थान से हजारों कोस दूरस्थ दक्षिण देश की एक महान देशीय रियासत में आमन्त्रित किया गया है। यह इस बात का शुभ प्रतीक है कि महामण्डल की प्रियता जैन समाज में फैल रही है। । वास्तविक बात यह है कि जैन समाज में जितनी भी प्रगति और उन्नति हुई है, उसका श्रेय मण्डल के कार्यकर्ताओं को है, मण्डल के कार्यकर्ताओं ने दिगम्बर जैन महासभा को चलाया, जब महासभा पर एक स्वार्थी संकुचित विचार वाले दल ने अधिकार जमा लिया, तो मण्डल के कार्यकताओं ने ही दि०जैन परिषद की स्थापना की। पारा का जैन सिद्धान्त भवन, हरप्रसाद, जैन डिगरी कालिज, वीर वाला विश्राम, और बम्बई में श्राविकाश्रम, इलाहाबाद, लाहौर, आगरा में बैन छात्रालय श्रादि के स्थापन करने वाले मण्डल के कार्यकर्ता ही थे। महामंडल के उद्देश्य संक्षिप्त तथा व्यापक शन्दों में । [१] जैन समाज में एकता और उन्नति, Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०० CONS ०० ०००० ००००००००० ००००००० o R ७० REEDA 00 2-25 AWAR ' 1000 S-522 TD.०० 255 0000 000 ०००००००० DOONAM ०००००००००००००० ०००००००० 1000000 श्री० चेतनदास, बी ए०, सी० टी० प्रधान मंत्री apto 000hane DoSj0 लोर a क 9 ER.10 94 POOR०००० DODO ००१C1000 ०० .0 COS Page #77 --------------------------------------------------------------------------  Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] जैन धर्म की रक्षा और प्रचार है । इन दो उद्देश्यों की पूर्ति में महामंडल पिछले ४७ वर्ष से विभिन्न प्रकार प्रयत्न करता आ रहा है जैसा इसके उन प्रस्तावों से विदित होगा जो उल्लिखित किये गए हैं। प्रस्तावों का युग गया। काय करने का समय आ गया । साहसी युवकों का धर्म है कि जो मार्मिक प्रस्ताव मंडल ने स्वीकृत या घोषित किये हैं, उनको कार्यरूप में परिणनमन करके दिखा दें। रूढ़ियों का युग भी बीत चुका ! युवक-संघ, द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव पर दृष्टि रखते हुए समय की गति, विधि, माँग के अनुसार बढ़ता चले। मंडल की नीति उदार है। उसका कार्यक्षेत्र व्यापक है। उसका मार्ग सीधा, स्पष्ट, उज्ज्वल है। उसका वक्तव्य स्पष्ट है। छोटी निमूल बातों में मेद बुद्धि को त्यागो । मूल सिद्धान्तों में एकता पर जोर दो। मिलकर, एकदिल होकर, एक साथ काम में लग जाओ, विजय तुम्हारे हाथ में हैं। जैन जयतु शासनम् लखनऊ अजितप्रसाद फाल्गुण पूर्णिमा । । अजिताभम Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट (१) प्रस्ताव तथा कार्यसूची, समय क्रमानुसार १८६६ १-जाति व सम्प्रदाय मेद-भाव गौण करके, बैनमात्र में पारस्परिक सम्बन्ध प्रचार । २-जैन अनाथालय की स्थापना । १६०० ३-प्रत्येक जैन, चाहे वह अंग्रेजी भाषा जानता हो या नहीं, इस संस्था का सदस्य होने का अधिकारी है। ४-हिन्दी जैन गजेट का एक क्रोड़ पर अंग्रेजी भाषा में संस्था के मुखपत्र रूप, प्रकाशित किया जाय । ५-काम करने के इच्छुक बेरोजगार शिक्षित जैनियों की सूची बनाई जावे। ६-जैन धर्म के मुख्य सिद्धान्त और मान्यता स्पष्ट सरल भाषा में पुस्तकाकार प्रकाशित हों। ७-समस्त जीव दया प्रचारक और मद्य-निषेधक संस्थाओं से सहयोग और पत्र व्यवहार किया जाय । १६०१ ८-भारतीय सरकार को लिखा जाय कि समस्त गणना प्रधान संग्रह. पुस्तकों में जैनियों के लिये अलग स्तम्भ बनाया जाय। १९०२ ६-पंजाब, बंगाल, संयुक्त, मदरास, राजपूताना, मध्य प्रान्त, बम्बई में सात प्रान्तीय शाखा की स्थापना । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) १०-अंग्रेजी-संस्कृत शिक्षा प्राप्ति के लिये स्वर्णपदक भेट किये गए। १५-विधवा-सहायक कोष की स्थापना । १२-श्रारा में जैन सिद्धान्त भवन । १३-बनारस में स्यादाद महाविद्यालय ।' १६०३ १४-अनाथालय मेरठ से हिसार अा गया । १५-श्वेताम्बर कान्फरेन्स ने सहयोग वचन दिया । १६-विवाहादि सामाजिक, तथा धार्मिक उत्सवों पर सादगी और मितव्ययता से काम किया जावे। १७-जैन गजेट, अंग्रेजी भाषा में, श्री जे० एल० जैनी के सम्पादकत्व में स्वतन्त्र रूप से निकलने लगा। १--समाचार पत्र, ऐतिहासिक स्कूली पुस्तक. अन्य पुस्तक श्रादि द्वारा, जो प्रहार जैन धर्म पर होते रहते हैं, उनसे जैन धर्म की रक्षा, और उन प्रहारों का उत्तर देने के लिये श्री जगत प्रसाद एम० सी. के सभापतित्व में एक कमेटी कायम हुई। १९०४ १६-दिगम्बर श्वेताम्बर समाज में पारस्परिक सामाजिक व्यवहार, और राजनैतिक कार्यों में सहयोग होना आवश्यक है। अहिंसा अपरिग्रह, स्याद्वाद, कर्म सिद्धान्त श्रादि निर्विवाद विषयों पर सार्वमान्य सिद्धान्त का प्रकाशन होना बांछनीय है। १६०५ २०-गय साहेब फूलचंद राय लखन निवासी ने दो बरस तक १००) मासिक छात्र-वृत्ति जैन युवक को जो जापान बाकर औद्योगिक शिक्षा प्राप्त करे, देने की घोषणा की। २१-जैनियों के लिये विदेश में समुद्र पार करके जाने का मार्ग खुल गया। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ), २२-शिक्षा प्रचारार्थ उदारतया दान दिया गया । २३-पुरुषों ने महिला सभा में, और महिलाओं ने पुरुष सभा में व्याख्यान दिये। २४-चालीस पदक की घोषणा । २५-स्याद्वाद विद्यालय में रह कर हिन्दु कालिज में शिक्षा प्राप्त करने के लिये पारा निवासी बाबू देवकुमारची ने छात्रवृत्ति की घोषणा की। २६-जैन महिलारन श्रीमती मगन बाई जी को महासभा की तरफ से ५०) का स्वर्णपदक। २७-स्त्री शिक्षा प्रचार के लिये निम्न उपायों की योजना की जाय । (क) स्थानीय कन्याशाला स्थापित की जावें । (ख) अध्यापिका नय्यार की बायें । (ग) परीक्षा कमेटी। (घ) प्रत्येक सदस्य अपनी पत्नी, बहन, बेटी को पढ़ावे । (च) पारितोषक और छात्रवृत्ति । (छ) पठनीय पुस्तक निर्माण । (ब) प्रौढ़ महिलाओं को उनके घरों पर शिक्षा दान । . (झ) महिला-शास्त्र सभा । () महिला कारीगरी की प्रदर्शिनी। (3) असमर्थ विधवाओं की सहायता । (ड) उपरोल्लिखित कार्यों के लिये कोष । २८-प्रत्येक जैन को अपनी श्रद्धानुसार देव-दर्शन, पूजन, शास्त्र-स्व ध्याय . सामायिक श्रादि अावश्यक धार्मिक कार्य अवश्य करने चाहिये। १९०६ २६--श्रीयुत् सखीचन्दजी (दि. इन्सपेक्टर जेनरल पुलिस विहार ) । जीवदया प्रचारिणी सभा आगरा के सभापति, जीवदया विभाग के मत्री नियत किये गये। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य 000 ॐॐॐॐॐॐॐABAR श्रीमती विद्यावती देवरिया श्री तख्तमल जी बी० ए०, एल-एल० बी० 5405 ५ श्री विजयसिंह नाहर एम० एल० ए० Page #83 --------------------------------------------------------------------------  Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५ ) १९०७ ३० - श्वेताम्बर कांफ़रेन्स के जन्मदाता, श्रीयुत् गुलाबचन्द ढढ्ढा सभापति का व्याक्यान, सामाजिक, व्यवहारिक एकता । ३१ - १३ बरस से कम कन्या का, १८ बरस से कम कुमार का विवाह न हो । ३२ - विवाह और मरण समय व्यर्थ व्यय रोका जाय । २३ - वेश्या नृत्य बन्द किया जाय । ३४ - वृद्ध पुरुष का बालिका से विवाह बन्द हो । ३५ - परदा प्रथा हटा दी जाय । ३६ – समाज में अनैक्य फैलानेवाले तीर्थक्षेत्र सम्बन्धित, कचहरी में मुकदमेबाजी का अन्त करने के लिये श्वेताम्बर कांफरेन्स और दिगम्बर महासभा के ६ - ६ सदस्यों की कमेटी बनाई जाय । ३७ - साम्प्रदायिक पक्ष-रात से प्रेरित होकर, धर्म की आड़ में जो पारस्परिक श्राघात प्रतिघात किये जाते हैं वह बंद होने चाहिये । ३८ – यह देखकर कि समाज का लाखों रुपया तीर्थक्षेत्रों के नाम पर विविध प्रकार के खातों में व्यक्तियों के पास पड़ा हुआ है, उस द्रव्य की सुरक्षा और सदुपयोग के विचार से उचित प्रतीत होता है कि समस्त देव द्रव्य एक सेंट्रल जैन बैंक में रखा जाय । और उस बैंक की स्थानीय शाखा मुख्य स्थानों में स्थापित हों । ३६ - जैन समाज के प्रतिनिधि, समाज की तरफ़ से निर्वाचित होकर सेंट्रल और प्राविंशियल काउन्सिलों में लिये जायें । १६०८ ४० — तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादस्थ विषयों के निर्णयार्थ पंचायत की स्थापना । ४१ - मेरठ में जैन छात्रालय की स्थापना । ४२ – अध्यापिका तय्यार करने के लिये विधवा महिलाओं को छात्रवृति प्रदान | Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६१० ४३-संस्था का नाम यगमेन्स ऐसोसियेशन की जगह भारत जैन महा मंडल- रखा गया। अंग्रेजी भाषा में All-India Jain ___ Association कहा जायगा।। ४४-हस्तिनापुर ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम की स्थापना का निश्चय । - १९११ ४५-दस्सा-प्रचाल-पूजा-अधिकार का श्रान्दोलन । १९१३ ४६-श्रीमती मगनबाईजी को "जैन महिला रत्न" की पदवी भेंट की .... गई। .४७-झस्टर हरमन जैकोवी को "जैन दर्शन दिवाकर" पद से विभूषित किया गया । ४८-डाक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण को "सिद्धान्त महोदधि" उपाधि से सम्मानित किया गया। .४९-राय बहादुर सेठ कल्याण मलजी इन्दौर को "दानवीर" पद अर्पित किया गया। . ५०- ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी का सम्मान उनको “जैन धर्म भूषण" की उपाधि से बाद जग-केसरी पंडित गोपालदास बरैया द्वारा किया गया। ५१-सिद्धान्त भवन श्रारा के जैन पुरातख सूचक वस्तुओं की प्रदशिनी। १६१५ . ५२-श्वेताम्बर-दिगम्बर-स्थानक-वासी सभी सम्प्रदाय के जैनों ने बम्बई नगर में ख्याति प्राप्त डाक्टर खुशालभाई। शाह के सभापतित्व में, साम्प्रदायिक भेदभाव को गौण करके, मिलजुल कर काम किया। ... ५३-महात्मा गांधी बम्बई अधिवेशन में पधारे । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७ ) ५४-बीस बरस से कम उमर के लड़के का, और १४ से कम की लड़की का विवाह न किया जाय । १६१६ १५-पचपन बरस से ऊपर पुरुष का, और जिसके पुत्र हो उसका ...४५ बरस से ऊपर की उमर में पुनर्विवाह न हो । ५६-जैन जातियों में पारस्परिक विवाह तथा भोजन प्रचार किया ... जाय। ५७-विवाह और देहान्त सम्बन्धित रिवाजों में यथा सम्भव सादगी बरती बाय; और अनावश्यक रीतियाँ बन्द की जाय। ५८-लड़का या लड़की वाले को, किसी प्रकार भी बहुमूल्य नकद या द्रव्य का प्रदर्शन करने से रोका जाय । ५१-विवाह या मौत के अवसरों पर अपनी शक्ति से अधिक खर्च का रिवाज, और मरने पर बिरादरी का भोजन रोका जाय । ६०-जैन तीर्थों, मन्दिरों, और संस्थाओं का हिसाब जाँच किया जाकर जैन समाचार-पत्रों में प्रकाशित किया जाय । ६१-हिसार निवासी श्री० उग्रसेन वकील ने सेट्रल जैन कालिज स्थापन करने के लिये १००००) दान की घोषणा की। १९१७ .६२-लोकमान्य तिलक महाराज और माननीय खापर्डे कलकत्ता अधिवेशन में पधारे, और भाषण दिये। - १६१८ ६३-महामंडल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्तितः प्रयत्न करेगा कि तीर्थक्षेत्र-सम्बन्धी विवादों का पारस्परिक समझौते से पंचों द्वारा निर्णय कर दिया जाय। ६३-अ-प्रत्येक सदस्य पूर्ण प्रयत्न करेगा कि मिन्न जैन जातियों और सम्प्रदायों में विवाहादि सामाजिक सम्बन्ध किये जावें। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) ६४ – प्रत्येक सदस्य अन्य सम्प्रदायों के धार्मिक पर्व में सम्मिलित हुआ - करेगा । १९३८ ६५ - विवाहोत्सव में महामंडल अधिबेशन किया गया । ६६ - धार्मिक भंडारों में जो रुपया जमा है, उसका उपयोग जैन साहित्य प्रचार, प्राचीन ग्रन्थोद्धार, जैन धर्म-सम्बन्धी विद्या प्रचार में किया जाए । ६७ -- वर्तमान परिस्थिति में जहाँ जैन मन्दिर मौजूद हैं, वहाँ नया मन्दिर या नई बेदी बनवाना बिल्कुल अनावश्यक है । ६८ - जाति वहिष्कार के दस्तूर को दूर करना । १६४४ ६९ - दिगम्बर श्वेताम्बर धार्मिक पर्व पर मिलकर, साप्ताहिक या मासिक सामूहिक प्रार्थना की जाय । ७० – महाम डल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्ति से प्रयत्न करे कि तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी सब मुकदमे पंचायती न्यायालय द्वारा निर्णय किये बाये । वह निर्णय प्रत्येक जैन को मान्य हो । कोई मुकदमा सरकारी कचहरी में न जाने पावे | ७१ - जिस किसी जैन मन्दिर या अन्य संस्था का हिसाब साफ नहीं रखा गया हो, या उसमें सन्देह हो, या अधिकारीवर्ग के सामने पेश न किया गया हो, उस हिसाब को ठीक कराकर प्रकाशित कराया जाय । ७२ - जैन समाज का श्रसंख्या रुपया धर्म प्रभावना के नाम पर, पंच कल्याण, विम्ब प्रतिष्ठा, रथयात्रा, गजरथ श्रादि उत्सवों में खर्च होता है । कितने ही स्थानों में मन्दिरों, मूर्तियों की रक्षा श्रौर पूजा का उचित प्रबन्ध नहीं है। मंडल प्रस्ताव करता है कि जैन समाज की विचारधारा में इस प्रकार परिवर्तन किया जाय कि Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) धर्मनिष्ठ लोग अपना धन मौजूदा प्राचीन मूर्तियों और मन्दिरों की खोज, जीर्णोद्धार, रक्षा और सुप्रबन्ध में लगावें । ७२ – धार्मिक वात्सल्य, सामाजिक प्रेम और सहयोग की बुद्धि के लिये श्रन्तर्जातीय, अन्तर साम्प्रदायिक विवाह और सहयोग की श्रावश्यकता है । १९४६ ७४ – अगस्त १६४२ के राष्ट्रीय श्रान्दोलन में मंडला निवासी उदय चन्दजी, गढ़ाकोटा निवासी सोहनलालजी, तथा अनजान जैन वीरों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि | ७५ – महावीर जयन्ती की सार्वजनिक छुट्टी के लिये केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा देशीय रजवाड़ों से अनुरोध । ७६ - अखण्ड जैन समाज की महत्वाकांक्षा की प्रतीक एक जैन ध्वजा का निश्चित रूप स्थिर किया जाय । ७७ - सामूहिक विवाह का प्रचार मण्डल अधिवेशन पर ऐसे विवाहों का आयोजन | ७८ - महामण्डल के अनुशासन में, श्री एम० बी० महाजन वकील अकोला द्वारा जैन श्रोवरसीज बोर्ड, एजुकेशन बोर्ड, ईकोनोमिक पोलिटिकल, वालंटियर बोर्ड की स्थापना । -- ७६ - जहाँ तक बने, पच कल्याणक विम्ब प्रतिष्ठा, गजरथ श्रादिः बन्द किये जायें, जहाँ कहीं नया मन्दिर बनाया जाय, वहाँ पूर्व प्रतिष्ठित मूर्ति किसी अन्य मन्दिर से लेकर विराजमान की नाय, पूर्व स्थापित मन्दिर के पंचों को नये मन्दिर के लिये मूर्ति देने में गर्व का अनुभव करना चाहिये । ८० • खेती, गोपालन के उद्योग को अपनाकर शुद्ध खाद्य और अन्य उपयोगी वस्तु श्रधिकाधिक उपजाई जावं । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( ५९. ) ८१-सब फिरके अपने सामाजिक, और धार्मिक उत्सव पर एकत्रित होकर, एक ही जगह, मिलकर; एक विशाल जैन संघ के रूप में आयोजित करें। मण्डल सब जगह की पञ्चायतों को ऐसे कार्यों में यथाशक्ति सहयोग देता रहेगा। ५२-कांग्रेस को देश को एक मात्र प्रतिनिधि संस्था मानता हुआ, जैन जनता से यह मण्डल अनुरोध करता है कि कांग्रेस कार्य में यथाशक्ति पूर्ण सहयोग दे। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्या २ १ १८६३ ३ ४ ५ परिशिष्ट (२) समय-क्रमानुसार अधिवेशनाध्यक्ष तथा स्थान -सूची सन् ८ मथुरा १८६६ मेरठ स्थान १९०० मथुरा १६०२ | मथुरा. १६०३ हिसार ६ १६०४ अम्बाला १६०५ | सहारनपुर १६०६ . कलकत्ता १६०७ |सूरत अध्यक्ष रायबहादुर श्री सुलतान सिंह श्रानरेरी मैजिस्ट्रेट, दिल्ली रायसाहेब फूलचन्द राय एक्जेक्यूटिव इन्जीनियर, लखनऊ सेठ द्वारिकादास रईस, मथुरा सेठ द्वारिकादास रायबहादुर सुलतानसिंहची दिल्ली अजितप्रसाद लखनऊ सेठ माणिकचंद जे. पी. बम्बई लाला रूपचद, सहारनपुर श्री गुलाबचंद ढड्डा जयपुर Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) संख्या सन् स्थान अध्यक्ष मेरठ भी बांकेलाल वकील, हिसार १६१० | बयपुर अजितप्रसाद, लखनऊ १९११ । मुजफ्फरनगर जे. एल. जैनी बैरिस्टर सहारनपुर १९१३ बनारस १९५५ । बम्बई १६१९ / लखनऊ प्रो० डाक्टर खुशाल भाई शाह भी माणिकचंद वकील, बैन धर्म भूषण खंडवा बा० शीतलप्रसादनी १९१७ कलकचा १३१८ | वर्धा श्री सूरजमलबी, हरदा नागपुर जे. एल. बेनी बीकानेर वाडीलाल • मोतीलाल शाह लखनऊ सेठ अचलसिहनी, आगरा ११३८ वर्धा सेठ राजमल ललवानी, एम. एल. ए. जामनेर १६३८ । वरुड, अमरावती श्री भैयालालजी मांडवगड़े, .. वैतुल १९४० यवतमाल श्री ऋषभ साव काले,एम.एल.ए. १९४४ वर्धा खुशालचद खजांची Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्या सन स्थान अध्यक्ष प्रोफेसर हीरालाल एम. ए. डी. लिट. नागपुर श्रेयांसप्रसाद बम्बई साहु २५ १६४५ गाडरवारा २६ १६४६ |इटारसी २७ १६४७ | हैदराबाद दक्षिण | श्री कुन्दनलाल शोभाचन्द फीरोदिया स्पीकर बम्बई लेजिस्लेटिव काउन्सिल Page #93 --------------------------------------------------------------------------  Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रों का परिचय १८६६ के मेरठ अधिवेशन के अध्यक्ष स्वर्गीय राय साहब फूलचन्द राय, B. A., C. E. सुपरिंटेन्डिंग इ' बिनियरी के पद से सरकारी पेन्शन प्राप्त की । हरीचन्द हाई स्कूल का भवन अपने पूज्य पिताजी के नाम से बनवाया । स्कूल का सब खरचा देते रहे । अब भी इनकी जायदाद से इनके सुपुत्र श्री तिलोकचन्द जैन हरीचन्द हाई स्कूल का खरचा देते हैं । १६०६ कलकत्ता अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत लाला रूपचंद, रईस व जमींदार सहारनपुर जन्म १८५५ - शरीरान्त १६०६ सरल स्वभावी, उदार हृदय, तीर्थसेवक, दयासागर | १६०७ सूरत अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत् गुलाबचद ढढ्ढा, M. A. जन्म १८६७, एम. ए. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी १८६० जयपुर राज्य में - मुन्सिफ़, नाज़िम, सिविल जज, चीफ मिनिस्टर सुपरिन्टेंडेंट, इन्टेलीजेन्स, पोस्ट आफिस ( खेत्तरी ) विभाग । नेम्बर, बोर्ड, दरबार वकील, आबूशैल । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -बीकानेर राज्य में-ऐकाउन्टेंट-जेनरल । गवालियर राज्य में मेम्बर कोर्ट-अाफ-वाडूस । बांसवाडा राज्य में स्पेशल आफिसर । झाबुमा राज्य में-दीवान। बाम्बे मरचेंट्स बैंक-एजेंट रंगून ब्रांच पूना बैंक मैनेजर बाम्बे ब्रांच समाज-सेवा संस्थापक-श्राल इंडिया जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स । उसके प्रधान मंत्री २५ साल तक । -सभाध्यक्ष-प्रान्ताय जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स पेठापुर अधिवेशन, १९०५ । -वाषिक अधिवेशन (All India Jain Youngmens' Association) आल इंडिया जैन यंगमेन्स ऐसोसियेशन सूरत, १६०७॥ -महाराष्ट्र प्रान्तीय जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स अहमदनगर, १६३३। -वार्षिक अधिवेशन श्री श्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंचाव, गुजरांवाला, १९३५ । -अखिल भारतीय श्रोसवाल सम्मेलन कलकचा १९३७ । -मानद अधिष्ठाता श्री पार्श्वनाथ उमेद जैन बालाभम उम्मेद पुर मारवाड़। १९०४ अम्बाला तथा १६१० जयपुर अधिवेशन के सभाध्यक्ष अजितप्रसाद, M. A. जन्म १८७४. एम. ए., एल.एल. बी. उपाधि १८६५. वकील हाई कोर्ट इलाहाबाद, १८६५. मुन्सिफ रायबरेली १९०१. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरकारी वकील लखनऊ १६०१ से १९१६ तक जन हाईकोर्ट बीकानेर १९२६-१९३० । एडवोकेट चीफ कोर्ट लखनऊ, हाई कोर्ट पटना, हाई कोर्ट लाहौर । मंत्री ऋषम ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर १९११ से १९१५ । सम्मेदाचल क्षेत्र के पूजा केस में कलकत्ते गये, १९१४ । पावापुरी केस में पटना गये १९१७ । शिखरजी इंजेक्शन केस में, बैरिस्टर चम्पत राय जैन के साथ हजारीबाग, रांची, पटना हाईकोर्ट में वकालत को १६२३, १९२४, १९२८ । राबगिरी केस में वकालत पटना में की १६२६ से १९२८ । पावापुरी केस में पटना, कलकत्ता में वकालत, तथा कमीशन में काम किया लखनऊ, बम्बई, दिल्ली आदि शहरों में । १९२६-१९२९ । एडीटर चैन गजेट १९१२ से अब तक. डाइरेक्टर सेंट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, अजिताभम लखनऊ, १९२६ से अब तक। मंत्री अखिल भारतवर्षीय जैन पोलिटिकल कान्फरेन्स १६१७ से १९२१ तक। रचयिता अंगरेजी भाषा में पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, गोम्मट सार कर्मकांड भाग २, Pure Thoughts. श्री अमितगति प्राचार्य कृत सामायिक पाठ का अंग्रेजी अनुवाद । १६११ तथा १६२० के अधिवेशन के सभाध्यक्ष युगमन्धर लाल जैनी (J. L. Jaini) M. A. (Oxon). .. बै रस्टर-एट-ला जन्म १८-१. शरीरान्त १६२७.. सर्वोच्च प्रथम श्रेणी में एम. ए. इलाहाबाद युनिवर्सिटी १६०३. रेजिडेन्ट सुपरिन्टेन्डेन्ट बोर्डिंग हाउस म्योर सेन्टल कालिब. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (घ) सम्पादक जैन गज़ेट अग्रेजी १९०३ - १६०६. बैरिस्टरी के वास्ते लंदन प्रस्थान १६०६ । जैन साहित्य परिषद् की स्थापना लंदन में 1 १६१० में वस १९११ से सम्पादन जैन गजेट १६१३ में फिर लंदन को प्रस्थान । अंग्रेजी भाषा के जैन जाति में श्रद्वितीय कलाकार पण्डित | तस्वार्थाधिगम सूत्र, गोम्मटसार जीवकांड, कर्मकांड, पंचास्तिकाय, श्रात्मख्याति समयसार, श्रात्मानुशासन का अनुवाद, टीका, भाष्य, प्राक्-कथनसहित अंग्रेजी भाषा में अपने खर्च से छपवा कर प्रकाशित कराया । Fragments from a Students' Diary उनके रुपये से लंदन में छपकर प्रकाशित हुई । क जैन दिव्यलोक (Bright ones in Jainism), जैन : त्रिलोकरचना (Jain Universe), स्वतन्त्र पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की । जैन नीति (Jain Law), रोमन ला ( Roman Law), सर हरीसिंह गौड़ के "हिन्दू धर्मशास्त्र " ( Hindu Law ), तथा मिसेज़ स्टीवनसन के " जैन धर्म का हृदय" "Heart of Jainism" पर कड़ी युक्तियुक्त समालोचना उनकी अनुपम साहित्यिक कृत्ति हैं । इन्दौर हाईकोर्ट के जज, चीफ़ जस्टिस, और शरीरान्त समय तक इन्दौर राज्य की विधान निर्मात्री समिति Legislative Council के अध्यक्ष President रहे । अपनी सारी सम्पत्ति जैन धर्म प्रचारार्थ रजिस्टरी वसीयतनामा लिखकर दान कर दो । जैन धर्म प्रचार, और जैन जाति उद्धार इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लखनऊ अधिवेशन १६१६ के सभापति श्री माणिक्यचंद जैन १८८२ में खंडवा में जन्म लेकर, १९१८ में ३६ बरस की भरी जवानी में, कलकत्ता नगर में स्वर्ग पधारे । श्रीमद् रायचंद्र जैन, स्वामी रामतीर्थ, बाबू देवकुमार स्वामी विवेकानन्द कुमार देवेन्द्र प्रसाद जैन सिकन्दर महान, बाइरन. श्री शंकराचार्य, जीसस क्राइस्ट, कोट्स, शेली, चैटरटन, की तरह, ३०-३५ बरस में वह काम कर गये, जो लोग १००-१२५ बरस में नहीं कर सके । स्कूल कालिज में ऊँचे नम्बरों से उत्तीर्ण होकर, छात्रवृत्ति पाते रहे । 'सुखानन्द मनोरमा' नाटक, 'जीव दया, 'हितोपदेशक', 'हिन्दी व्याकरण', 'भारत भूषणावली', पुस्तकें बनाकर प्रकाशित कीं । वकालत में ख्याति प्राप्त की । श्री० चेतनदास, युगमन्धरलाल के सम्पर्क से इलाहाबाद में विद्याध्ययन करते समय ही अंग्रेजी जैन गजेट के सहायक सम्पादक रहे । महामंडल के कलकत्ता और सूरत नगर के अधिवेशनों की श्रायोजना की । इलाहाबाद के " श्रभ्युदय" पत्र का सम्पादन किया । मालवा प्रान्तिक सभा के सिद्धवरकूट अधिवेशन की स्वागत समिति के सभापति के स्थान से ४२ पृष्ठ का छपा हुआ व्याख्यान दिया । म्युनिसिपल कमेटी के मेम्बर, कांग्रेस कमेटी के मन्त्री रहे । .. १६२७ बीकानेर अधिवेशन के अध्यक्ष श्रीयुत वाडोलाल मोतीलाल शाह जन्म १८७८, देहान्त १६३१ महान साहित्यिक । २३ बरस तक गुजराती मासिक "जैनहितेच्छु" के, ७ बरस तक गुजराती साप्ताहिक "जैन समाचार" के, ४ बरस तक Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिन्दी पाक्षिक जैनहितेच्छ के, कुछ समय तक "जैनप्रकाश" के सम्पादक रहे। पहले तीनों पत्र उनके निजी थे, इन तीनों पत्रों में निर्मीक और गम्भीर विचार प्रकट किये जाते थे। ___ करीब १०० पुस्तकें अग्रेजी, हिन्दी, गुजराती, मराठी भाषा में लिखी और सम्पादित की। गुजराती लेखकों के लिये नियत "गलीबारा प्राइज' गुवात साहित्य सभा ने उन्हें मेट किया था। __ गहन विद्वान । जैन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे । थियासोंफ्री, न्यु थाट, नित्शे सिद्धान्त, वेदान्त का गहरा अध्ययन था। स्वतन्त्र व्यापार करते थे। उग्र से उग्र विचार स्पष्ट शब्दों में प्रकाशित करते थे। अनुभव ज्ञान गहरा था। जेल में भी रहे, और राजमहल में भी । श्रीमानों से गरीबों से निःसंकोच मिले। भारत के अनेक प्रान्तों और यूरप के अनेक देशों में फिरे । भारत जैन महामंडल, अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन कान्फरेंस, दि० जैन तारणपन्ध सभा आदि के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया । . १६३६ लखनऊ अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत् सेठ अचल सिंह जा, आगरा देश-सेवा १९१६ की लखनऊ कांग्रेस में दर्शक रूप सम्मिलित हुए। १९१६ से कांग्रेस के उत्साही सदस्य । १९२१ में तिलक स्वराज्य फंड के लिये श्रागरा से २०,००० जमा किया। १६३० के अान्दोलन में सितम्बर में ६ मास का कड़ा कारागार ओर ५०० रुपया जुरमाना; और १६३२ में १८ मास की कड़ी कैद और ५०० रुपया जुरमाना सहा । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( छ ) वैयक्तिक सत्याग्रह में १५-१२-४० को एक साल की जेल भुगती।' १.८.४२ को फिर गिरफ्तार हो गये और अस्टूबर १९४४ में छुटे। समाज-सेवा १९२१ में आगरा म्युनिसिपल बोर्ड के सीनियर वाइस चैरमैन निर्वाचित हुए। .१९२३ में स्वराज्य पार्टी की तरफ से यू. पा. लेजिस्लेटिक काउन्सिल के सदस्य रहे. १९३५ में कांग्रेस की तरफ से आगरा म्युनिसिपैलिटी के सदस्य, १९३६ में लेजिस्लेटिव एसेम्बली के निर्वाचित सदस्य । १९३९ में आगरा कन्ट्रन्मेंट बोर्ड के सदस्य निर्वाचित हुए। १९२० से. १९३८ तक सिटी कांग्रेस कमेटी श्रागरा के प्रेसीडेन्ट । १९३१ से अब तक यू० पी० कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं। १६३६ में श्रालहन्डिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य निर्वाचित हुए। १९२४ की बाढ़ के कष्ट निवारण, १९२६ के बिहार भूकम्प पीड़ितों के लिये कोष जमा किया और तन-मन-धन से सहायता की । १९२८ में "अचल ट्रस्ट" की नींव डाली; और १९२५ में १००१००), का ग्रामीण सेवा उद्देश्य से ट्रस्ट रजिस्टरो हो गया। धार्मिक उत्साह ११२१ के पहले से सेठजी ने चाम की बनी वस्तु का व्यवहार त्याग दिया है। १९२१ में अखिल भारतीय जीव दया प्रचारिणी सभा के सभापति निर्वाचित हुए। १९४५ में अखिल भारतीय पशु संरक्षिणी सभा की स्थापना की। जिसका प्रथम अधिवेशन महाराजा साहिब भरतपुर की अध्यक्षता में हुआ। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३८ के वर्धा अधिवेशन के सभाध्यक्ष ... श्री० सेठ राजमल ललवानी Ex. M. L. A. (Central) जन्म १८००/१८०६ में जामनेर के सेठ लखमीचन्दजी की गोद आये । तेजस्वी वक्ता । केन्द्रीय एसेम्बली दिल्ली में हिन्दी भाषा में भाषण करने का प्रारम्भ किया। लोकप्रिय कांग्रेसी। तालुका कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष । श्रापकी पाषाण मूर्ति जलगाँव के टाउन हाल में स्थापित है। हजारों का वाषिक गुप्तदान करते हैं। साल में , मास दौरे पर रहते हैं। खेती की उन्नति, नई बस्ती बसाने का उत्साह है । सादा जीवन, विनम्र स्वभाव है। १९२८ वरुड अमरावती अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत् भैय्यालाल जैन, वैतुल निवासी जन्म १८६६, जिला वैतूल | मैट्रीकुलेशन परीक्षा १६१७ । म्युनिसिपल सेक्रेटरी वर्धा, १६५५ । स्थानीय जैन बोडिंग के अवैतनिक सुपरिन्टेंडेंट तथा मन्त्री। १९४० यवतमाल अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत् ऋषभ साव काले ( R. P. Kale ) मध्यप्रान्त में सर्वप्रथम अपना विवाह अन्तरजातीय महिला से किया। १९४६ के इटारसी अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत् साहु श्रेयांस प्रसाद जी बम्बई .: प्रसिद्ध कार्यकर्ता, । अनेक मिलों के, हवाई जहाज कम्पनी के बड़े हिस्सेदार, तथा प्रबन्धकर्ता। उदार दानी। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( झ ) प्रबन्ध कारिणी समिति के सदस्य श्री० चेतनदास जी B. A. L. T. सरकारी पेन्शनर मल्हीपुर, सहारनपुर बरसों तक महामण्डल के प्रधान मंत्री रहे । महामण्डल के परम भक्त, अथक कार्यकर्ता, सतत हितेच्छु, कर्मठ वीर । प्रबन्धकारिणी के सदस्य सेठ चिरंजीलाल बडजाते, वर्षां प्रारम्भिक जीवन से देशसेवा, सभा संगठन, तथा धार्मिक कार्यों में विशेष योग देते रहे हैं । दिगम्बर जैन बोर्डिंग वर्धा के संस्थापक तथा अध्यक्ष है । १६५८ में जैन पोलिटिकल कान्फरेन्स का अधिवेशन श्री बाडीलाल मोतीलाल शाह की अध्यक्षता में कराया । १६२३ के झण्डा सत्याग्रह में जेल में रहे । १६३० के आन्दोलन में कठिन कारावास सहा । ४६१५ से १६२७ तक म्युनिसिपल कमेटी के सदस्य रहे । १५ बरस तक मारवाड़ी शिक्षा मण्डल के मंत्री रहे ! नागपुर कांग्रेस के अवसर पर १६२० में आपने जैन पोलिटिकल' कान्फरेन्स तथा मारत जैन महामण्डल के जल्से कराये । १६१७ से श्राप भारत जैन महामण्डल के मंत्री, और श्राजकल सह-मंत्री का कार्य कर रहे हैं । " २१००) दि० जैन ब'डिंग को १०००/ महामण्डल को, इटारसी अधिवेशन के समय प्रदान किया । प्रबन्ध कारिणी समिति की सदस्या श्रीमती सौभाग्यवती विद्यावता बाई देवरिया धर्मपत्नी श्री० पन्नालाल जी देवरिया, जो १४२० से नागपुर राष्ट्रीया क्षेत्र के ग्रगण्य कार्यकर्ता है। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप खुद नागपुर वार्ड कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा है, सुयोग्य कवि और प्रख्यात कार्यकर्ता हैं। प्रबन्धकारिणी समितिके सदस्य। श्रीयुत् तस्तमल जैन ऐडवोकेट भेलसा (ग्वालियर ) जन्म १८९४ पूर्व मिनिस्टर फ्रार रूरल वेलफेयर एण्ड लोकल सेल्फ गवर्नमेंट, मध्य प्रान्त । लोकप्रिय राष्ट्रीय कार्यकर्ता, खादी व्रतधारी, रूढ़ि विरोधी । म्युनिसिपल मेम्बर, और ८ बरस तक वाइस प्रेसिडेंट म्युनिसिपिल कमेटी। १९४० में भिंड जिला राजनैतिक कान्फरेन्स के सभाध्यक्ष । ... १९४० में ग्वालियर राज्य में मिनिस्टर । १९४१ में मिनिस्टरी से त्याग पत्र । . समाज-सेवा .. मेलसा जैन मन्दिर के निर्माण और मूर्ति स्थापना में सफल प्रयत्न । श्री सिताब राय लखमीचंद जैन हाई स्कूल मेल्सा की स्थापना और सुप्रबन्ध का श्रेय श्राप को है। मध्य भारत हरिजन सेवक संघ की कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं। पछार में जैन विमान निकलवाने में सहायक हुए । जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य श्री विजयसिंह नाहर M. L. C. प्रख्यात विद्वान् स्वर्गीय श्री० पूर्णचन्द्र नाहर, M. A. B. 4. के सुपुत्र । देशसेवा में दत्तचित्त । १९४४ से बराबर कलकत्ता कारपोरेशन के सदस्य । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ट ) स्वर्गीय पिता महोदय का अपूर्व चित्र, पाषाण मूर्ति, सिक्के तथा अन्य प्रदर्शनीय वस्तु संग्रह इन्होंने कलकत्ता युनिवर्सिटी के शिल्प सम्बन्धी प्राशुतोष प्रदर्शनालय की भेंट कर दिया । जैन सिद्धान्त और चित्रकारी आदि कला में आविष्कारार्थ "पूर्णचन्द्र नाहर छात्रवृत्ति" स्थापित की है। १९३७ से १९३६ तक भारतवर्षीय श्रोसवाल कान्फरेन्स के सेक्रेटरी। तरुण जैन के सम्पादक । श्री जैन सभा कलकत्ता के अध्यक्ष । बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य । २-१०-४२ को अगस्त आन्दोलन के सम्बन्ध में जेल में रखे गये। कलकत्ता हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच के हुक्म से रिहा किये गये. परन्त तुरन्त ही रेग्युलेशन ३, सन् १८१८ में गिरफ्तार कर लिये गये; और मार्च १६४५ तक सरकारी कैदी रहे । अस्वस्थ होने के कारण छोड़ दिये गये। फरवरी १९४६ बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल के सदस्य सर्वसम्मति से निर्वाचित हुए। बंगाल काउन्सिल कांग्रेस पार्टी के सेक्रेटरी है। हैदराबाद ( दक्षिण ) अधिवेशन १९४७ के सभाध्यक्ष प्रानरेबिल कुन्दनमल शोभाचन्द फिरोदिया स्पीकर बम्बई लेजिस्लेटिव ऐसम्बली संक्षिप्त परिचय आपका चन्म अहमदनगर में १८८५ में हुश्रा । फरगुसन कालिका पूना से १९०७ में डिगरी प्राप्त करके, १९१० में ऐडवोकेट हुए । १९४२ तक वकालत का काम किया । ६ अगस्त १९४२ को नजरबन्द Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 6 ) कैद हो गए। मई १६४४ में नजरबन्दी से मुक्त हुए, वकालत का व्यवसाय त्याग दिया और सार्वजनिक कार्य में संलग्न हो गए। कालिन के दिनों से ही आप लोकमान्य तिलक के अनुयायी रहे है। १६१६ नागपुर की बम्बई प्रान्तीय बाफरेन्स के सेक्रेटरी थे, और उन पाँच व्यक्तियों में थे जिन्होंने कान्फरेन्स का सम्पूर्ण घाटे का भार अपने उपर लिया था। अहमदनगर पिंजरा पोल के मन्त्री २० बरस तक रहे। १९१४, १६२० में हुक्काल-निवारक-समिति के मन्त्री रहे। अहमदनगर अयुर्वेद महाविद्यालय के संस्थापक है, और १९४२ तक उसके अध्यक्ष रहे हैं। . .. अहमदनगर शिक्षण समिति की प्रबन्धकारिणी के २० बरस से ऊपर सदस्य, और कई बरस तक समिति के अध्यक्ष रहे हैं। तिलक स्वराज्य फंड के जुटाने में अग्रगामी रहे हैं। १९२७ में जब महात्मा गांधी ने अहमदनगर जिले में स्वादी प्रचार के लिये रुपये एकत्रित करने के वास्ते दौरा किया था, तो उसकी आयोजना आप ने की थी। १९३०, १६३२ के असहयोग आन्दोलन में भरपूर द्रव्य खुद दिया, 'और चन्दा जमा किया। अहमदाबाद म्युनिसिपैलिटी के सदस्य १६१६ से रहे हैं, १६४०४१ में उसके प्रेसीडेण्ट निर्वाचित हुए । डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रेसीडेण्ट १६३५ से १९३८ तक रहे। स्थानीय साप्ताहिक "देशबन्धु" के सम्पादक ५ बरस तक रहे । कांग्रेस के मुख-पत्र "संघ-शक्ति" के सम्पादकीय मण्डल के सदस्य रह चुके हैं। . १९३० से १९४२ तक जिला शहरी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन रहे, और उसको आर्थिक संकटों से उभार कर प्रान्त के सफल बैंकों में पहुँचा दिया। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९१६-१९१७ में डिस्ट्रिक्ट होम रूल लीग के सेक्रेटरी रहे, और कांग्रेस कमिटी की आयोजना में मुख्य भाग लिया । उसी समय से जिला और स्थानीय कांग्र ेस कमेटी के कार्यकर्ता रहे हैं । १९३७ से प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के महाराष्ट्रीय एलेस्थान - ट्राइब्यूनल के सदस्य रहे हैं। बम्बई लेजिस्लेटिव ऐसेम्बली के सदस्य १६३७ में निर्वाचित हुए । १९४० में वैयक्तिक सत्याग्रह किया और ६ मास का कारागार -सहा । श्राप श्रोस वाल जैन हैं; और जैन समाज और धर्म सम्बन्धित सर्व प्रगतिशील श्रान्दोलनों और कार्यों में मुख्य भाग लेते रहे हैं, करीब २५ बरस से भारत जैन महामण्डल की प्रबन्ध कारिणी कमेटी के सदस्य रहे हैं। हमको आपसे गहरी और महान आशाएँ हैं : आप चिरायु हों; दिन प्रतिदिन वृद्धिगत यश तथा वैभव प्राप्त करें । Page #107 --------------------------------------------------------------------------  Page #108 -------------------------------------------------------------------------- _