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________________ हिन्दी पाक्षिक जैनहितेच्छ के, कुछ समय तक "जैनप्रकाश" के सम्पादक रहे। पहले तीनों पत्र उनके निजी थे, इन तीनों पत्रों में निर्मीक और गम्भीर विचार प्रकट किये जाते थे। ___ करीब १०० पुस्तकें अग्रेजी, हिन्दी, गुजराती, मराठी भाषा में लिखी और सम्पादित की। गुजराती लेखकों के लिये नियत "गलीबारा प्राइज' गुवात साहित्य सभा ने उन्हें मेट किया था। __ गहन विद्वान । जैन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे । थियासोंफ्री, न्यु थाट, नित्शे सिद्धान्त, वेदान्त का गहरा अध्ययन था। स्वतन्त्र व्यापार करते थे। उग्र से उग्र विचार स्पष्ट शब्दों में प्रकाशित करते थे। अनुभव ज्ञान गहरा था। जेल में भी रहे, और राजमहल में भी । श्रीमानों से गरीबों से निःसंकोच मिले। भारत के अनेक प्रान्तों और यूरप के अनेक देशों में फिरे । भारत जैन महामंडल, अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन कान्फरेंस, दि० जैन तारणपन्ध सभा आदि के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया । . १६३६ लखनऊ अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत् सेठ अचल सिंह जा, आगरा देश-सेवा १९१६ की लखनऊ कांग्रेस में दर्शक रूप सम्मिलित हुए। १९१६ से कांग्रेस के उत्साही सदस्य । १९२१ में तिलक स्वराज्य फंड के लिये श्रागरा से २०,००० जमा किया। १६३० के अान्दोलन में सितम्बर में ६ मास का कड़ा कारागार ओर ५०० रुपया जुरमाना; और १६३२ में १८ मास की कड़ी कैद और ५०० रुपया जुरमाना सहा ।
SR No.032645
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Prasad
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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