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________________ ( २४ ) विवेचन है, ३० वर्ष पीछे भी वह वैसा ही पठनीय और अध्ययन योग्य है, जैसा १६१६ में था। इस भाषण से कुछ वाक्य नमूने के तौर पर उद्धरण करना अनुचित न होगा "समाजोन्नति के लिये हमें पुनरुत्थान भी करना चाहिए और नवीन रचना भी, दूसरे शब्द में सुधार के राज्यमार्ग को ग्रहण करना चाहिए"पश्चिम की सामाजिक रीतियाँ अधिकांश हानिकारक है...समाज सुधार पूर्व पश्चिम के सिद्धान्तों की समुचित योजना से ही हो सकता है.... ..'भारत जैन महामंडल का उद्देश्य पहले से ही साम्प्रदायिक भेद को एक ओर रख, समग्र जैन जाति की उन्नति करना, सारे जैनियों में एकता तथा मैत्रीभाव का प्रचार करना, तथा जैन धर्म का प्रसार करना रहा है। तीनों सम्प्रदायों को सम्मिलित करके कार्य करने की नीति के कारण, यह मंडल सदा से श्रालोचकों के आक्षेपों का निशाना बना चला आ रहा है. कुछ तो धार्मिक तत्वों में एकता करने का मिथ्या आक्षेप लगाकर, हमको 'कण्डापन्थी' कहते हैं.."महामंडल का कोई भी ऐसा प्रस्ताव वा कार्य नहीं है जिससे ऐसा उद्देश्य उनके माथे मढ़ा जाय । कुछ यहकहते हैं कि हमारा ध्येय अशक्य अनुष्ठान है। क्या हिन्दू मुसलमानों में जो भेद है उससे अधिक अन्तर श्वेताम्बर दिगम्बर सम्प्रदाय में हैं. कांग्रेस में हिन्दू मुसलमान मिलकर काम करते है."तीर्थराज सम्मेद शिखरजी के सम्बन्ध में इस समय हम लड़कर लाखों रुपयों का नाश कर चुके हैं, व कर रहे हैं. यह हमारी भूल है कि अधिक या सामूहिक बल, या कूटनीति से एक समाज दूसरी समाज पर विजय प्राप्त कर सकता है."हम दोनों को प्रापस में मिलकर विवादस्थ बातों का निर्णय कर लेना चाहिए । ...सिद्धान्तों का अर्थ समय के अनुकूल करना होगा तभी हमारा धर्म सार्वभौम धर्म हो सकेगा। जिस समय धर्म समाज के लिये उपयोगी नहीं रहता, उसी समय उसका अन्त समझना चाहिये,..हमें मूढ़ विश्वास तथा कुरीतियों की चट्टानों को तोड़ना है।...हमें इस प्रश्न
SR No.032645
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Prasad
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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