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________________ ( १३ ) पर अंग्रेजों की बस्ती बसाने के सम्बन्ध में ढड्ढाजी ने विस्तीर्ण भाषण किया। परिणामतः श्वेताम्बर दिगम्बर समाज के बे मिलाकर परिश्रम करने से उस सम्बन्ध में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई । सभापति महोदय ने जैन समाज और जैनधर्म की ऐतिहासिक पुस्तक तैयार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया । खेद है कि ऐसी पुस्तक अब तक भी तैयार न हो पाई। इसका मूल कारण समाज में विद्या की न्यूनता और उपेक्षा है । जो श्रव भी वैसी ही चली जाती है । समाज में शिक्षा प्रचार, जैन बैङ्क की स्थापना धर्मकोष की व्यवस्था, सहकारी व्यापारिक कार्यालयों की स्थापना का मार्ग भी सभापति महोदय के भाषण में दिखलाया गया था । श्वेताम्बर जैन कांफ्रेंस के पिता रूप, सभापति महोदय के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद जैन गजट माच १६०८ में ८ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है । और प्रत्येक श्रावक के लिये पठन और मनन करने योग्य है । अधिवेशन के प्रारम्भ में श्री मूलचन्द कृष्णदास कापडिया ने गुजराती भाषा में लिखा हुआ अभिनन्दन पत्र पढ़कर मेट किया था, उपस्थिति करीब २०० थी । इस अधिवेशन में निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रस्ताव निश्चित हुए । न० ४ – बैन समाज का ध्यान कलकत्ता अधिवेशन के प्रस्ताव - नं० १ पर दिलाते हुए महिला नार्मल स्कूल और कन्या पाठशालाओं की स्थापना, स्वकीय सम्बन्धी स्त्रियों का शिक्षण, शिक्षित महिलाश्र को पारितोषिक, आदर्श पुस्तक प्रकाशन श्रादि कार्यों की श्रावश्यकता बतलाई गई; ममनबाईजी और लखनऊ निवासी पारवतीबाईजी को स्त्री शिक्षा प्रचार में अग्रसर होने के लिये धन्यवाददिया गया; इस प्रस्ताव को पडित अर्जुन लाल सेठी ने उपस्थित किया; उसका समर्थन श्रीयुत भग्गूभाई फतेहचन्द कारभारी सम्पादक “जैन" ने किया और विशेष समर्थन में श्री लललूभाई करमचन्द्र दलाल, और यति माहराज नेमी कुशलजी ने जोरदार भाषण दिये ।
SR No.032645
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Prasad
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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