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( २७ ). दास के नाम से एक डिगरी कालिज बडौत, पानीपत, अम्बाला आदि स्थानों में इन्टरमीजियेट कालेज स्थापित हो गये हैं।
सोलहवाँ अधिवेशन सोलवा अधिवेशन दिसम्बर १९१७ में, जैनधर्म-भूषण ब्रह्मचारी शोतलप्रसादजी के सभापतित्व में, कलकत्ता नगर में हुआ। लोकमान्य तिलक और माननीय जी. एस. खापर्डे ने पंडित अर्जुनलाल सेठी, B. A. की नज़र-बंदी कैद तनहाई से मुक्त किये जाने के लिये प्रस्ताव उपस्थित किया। ___ सभापति के व्याख्यान में व्यापक रूप से सामाजिक, राष्ट्रीय, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक साहित्यिक उत्कर्ष के उपायों पर विवेचन किया गया था। सेन्ट्रल जैन कालिज, जैन कोआपरेटिव बैंक, विधवाश्रम, श्राविका. श्रम की स्थापना पर जोर दिया गया था।
इस अवसर पर एक जोरदार प्रस्ताव तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादस्थ विषयों का पंचायत द्वारा पारस्परिक निबटारा करने के लिये स्थिर हुआ। महात्मा भगवानदीनजी के साथ मैंने राय बहादुर सेठ बदरीदासजी के द्वार के बहुत फेरे किये । महात्मा गांधी को राजी कर लिया कि वह हमारे आपसी झगड़ों का निर्णय कर दें, किन्तु सफलता न हुई। ११ प्रस्तावों में एक उल्लेखनीय प्रस्ताव यह था कि प्रत्येक जैन गो पालन करे, और चाम लगे हुए बेल्ट, पेटी, टोपी, बिस्तरबंद, आदि का प्रयोग न करे। इस अवसर पर भी श्री० जे. एल. जैनी न पधार सके, किन्तु उनका लिखित संदेश जैन गजेट १६१८ में प्रकाशित है।
सत्रहवाँ अधिवेशन सतरहवाँ अधिवेशन वर्धा में दिसम्बर १९१८ में श्री सूरजमलजी हरदा निवासी के सभापतित्व में हुआ।