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________________ ( १६ ) से प्राचीनतर है। प्राचीनता के विचार से बाहर है। जैन धर्म के सिद्धान्त का प्रचुर प्रचार होना चाहिये। ऐसोसियेशन ( भारत जैन महामण्डल ) की ओर से श्रीमती मगनबाईजी को “जैन महिलारत्न" के पद से विभूषित किया गया। ता० २६ का पहला अधिवेशन स्यादाद-वारिधि वाद-गजकेसरी, न्यायवाचस्पति पं० गोपालदासपी. बरैया के सभापतित्व में हुश्रा । महात्मा भगवानदीन जी ने ब्रह्मचर्य श्राश्रम पर, और पंडित अर्जुनलाल सेठी ने कम सिद्धान्त पर व्याख्यान किये। दूसरा जल्सा श्री सूरजभानुजी वकील देवबन्द के सभापतित्व में हुआ। इस जलसे में रावलपिन्डी निवासी प्रभुराम जी ने "अहिंसा धर्म" और पंडित गोपालदास बी ने "ईश्वर कर्तृत्व"" की व्याख्या की । ता० २७ का अधिवेशन डा. सतीशचन्द विद्याभूषण एम्० ए०, पी० एच०डी०, एम० श्रार० ए० एस०, एफ० ए० एस० बी०, एफ० आई० आर० एस० के सभापतित्व में हुश्रा । सभापति महोदय ने अपने भाषण में कहा कि भारत जैन महामण्डल. ने समस्त जैन जाति के समस्त उत्कर्षकारी कार्यों में जीवन और शक्ति प्रदान की। महामण्डल साम्प्रदायिक संकीर्णता से रहित है। भारत जैन महामण्डल की ओर से "जैन दर्शन दिवाकर' को उपाधि पार्चमेंट पर छपी हुई डाक्टर हरमन याकोबी (जर्मनी) को भेंट की गई। ता. २८ को डा. जेकोबी ने स्याद्वाद महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों को संस्कृत भाषा में सन्देश दिया। संध्या को डा० जेकोबी के सभापतित्व में "सिद्धान्त महोदधि" की उपाधि सा० सतीशचन्द्र को भेंट का गई। और भारत जैन महामण्डल ने "जैन धर्म भूषण" के पद से . शीतलप्रसाद बी का सन्मान पं० गोपालदास जी द्वारा किया । "दानवीर" उपाधि राय बहादुर कल्याणमल इन्दौर को २ लाख रुपये से त्रिलोकचन्द हाई स्कूल खोलने के उपलक्ष में भेंट की गई । ता० २६ को "जैन सिद्धान्त भवन" पारा की प्रदशिनी और संक्टर स्ट्राउस के सभापतित्व में ब्र० शीतलप्रसादषी का व्याख्यान हुा । इस महोत्सव
SR No.032645
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Prasad
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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