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(१०) श्रसमर्थ जैन विधवाओं की सहायता, (११) उपरोल्लिखित कार्यों के लिये कोष,
इस प्रस्ताव पर श्री माणिकचंद वकील खंडवा ने एक मार्मिक भाषण किया था ।
२. प्रत्येक जैन को अपने श्रद्धानुसार देव-दर्शन, पूजन, शास्त्र - स्वाध्याय, सामायिक श्रादि श्रावश्यक धार्मिक कार्य अवश्य करने चाहियें ।
नवाँ अधिवेशन
नवां अधिवेशन १९०७ में गुर्जर प्रान्त के प्रख्यात ऐतिहासिक स्थान सूरत में जयपूर राज्य राज्य के ख्यातिप्राप्त श्वेताम्बर कान्फरेंस के मन्त्री श्रीयुत गुलाबचन्द ढढ्ढा एम. ए. के सभापतित्व में किया
गया ।
स्वागत समिति के सदस्य करीब १५० प्रतिष्ठित जैन थे । स्वागत सभापति सेठ माणिकचद जे० पी० थे । १० उपसभापति और ५ मन्त्री थे ।
मानोनीत सभापति का स्वागत रेलवे स्टेशन पर सूरत की अखिल जैन जनता ने किया । सेठ माणिकचन्द जी जे० पी० ने फूल माला पहनाई । जय-ध्वनि से स्टेशन गूँज उठा । स्वागत समिति के अगुना सदस्यों से उनका परिचय कराया गया । यह शानदार जुलूस बैंड बाजे के साथ सूरत नगर के मुख्य बाजारों में होकर सेठ लखमीचंद जीवा भाई के निवास स्थान पर पहुँचा । वहाँ पर पुष्पहार से सम्मानित हो सब भाई विदा हुए । बाजारों में दोनों तरफ दूकान और मकान सुसज्जितथे । और स्त्री पुरुष बालक जुलूस को देखने के लिये एकत्रित थे ।
श्रीयुत ढढ्ढाजी ने अपने एक भाषण में कहा था कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ने आपस में लड़ झगड़ कर द्रव्य, धर्म,