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________________ ( ४३ ) १०-अंग्रेजी-संस्कृत शिक्षा प्राप्ति के लिये स्वर्णपदक भेट किये गए। १५-विधवा-सहायक कोष की स्थापना । १२-श्रारा में जैन सिद्धान्त भवन । १३-बनारस में स्यादाद महाविद्यालय ।' १६०३ १४-अनाथालय मेरठ से हिसार अा गया । १५-श्वेताम्बर कान्फरेन्स ने सहयोग वचन दिया । १६-विवाहादि सामाजिक, तथा धार्मिक उत्सवों पर सादगी और मितव्ययता से काम किया जावे। १७-जैन गजेट, अंग्रेजी भाषा में, श्री जे० एल० जैनी के सम्पादकत्व में स्वतन्त्र रूप से निकलने लगा। १--समाचार पत्र, ऐतिहासिक स्कूली पुस्तक. अन्य पुस्तक श्रादि द्वारा, जो प्रहार जैन धर्म पर होते रहते हैं, उनसे जैन धर्म की रक्षा, और उन प्रहारों का उत्तर देने के लिये श्री जगत प्रसाद एम० सी. के सभापतित्व में एक कमेटी कायम हुई। १९०४ १६-दिगम्बर श्वेताम्बर समाज में पारस्परिक सामाजिक व्यवहार, और राजनैतिक कार्यों में सहयोग होना आवश्यक है। अहिंसा अपरिग्रह, स्याद्वाद, कर्म सिद्धान्त श्रादि निर्विवाद विषयों पर सार्वमान्य सिद्धान्त का प्रकाशन होना बांछनीय है। १६०५ २०-गय साहेब फूलचंद राय लखन निवासी ने दो बरस तक १००) मासिक छात्र-वृत्ति जैन युवक को जो जापान बाकर औद्योगिक शिक्षा प्राप्त करे, देने की घोषणा की। २१-जैनियों के लिये विदेश में समुद्र पार करके जाने का मार्ग खुल गया।
SR No.032645
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Prasad
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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