Book Title: Aagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः On Line – आगममंजूषा [३८/१] जीयकप्पो * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर [M.Com., M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'कयपवयणपणामो वृच्छं पच्छित्तदाणसंखेवं जीयव्यवहारगयं जीवस्स विसोहणं परमं ॥ मूलं १ ॥ १ ॥ पवयण दुवालसंग सामाइयमाइ विं(सभाष्यं) श्रीजीतकल्पसूत्रम् - दुसारंतं । अव चडविहसंघो जत्थेव पट्टियं नाणं ॥२॥ अहवा पाय पसत्यं पहाण वयणं व पवयणं तेण अहव पवत्तयतीई नाणाई पवणं ते ॥ ३ ॥ जीवाइपयत्था वा उवदंसिजति जत्य संपुण्णा सो उवएसो पचयण तम्मि करेत्ता णमोकारं ॥४॥ वोच्छं वक्खामित्ती पच्छित्तं दसह एय उवरिं तु । वण्णेहामि सवित्थर किं भणियं होति पच्छन्तं ? ॥ ५ ॥ पावं छिंदति जम्हा पायच्छित्तंति भण्णते तेणं पायेण वावि चित्तं सोहयई तेण पच्छितं ॥६॥ पणगादी आवत्ती णिडिगइअमादि एत्थ दाणं तु। संखेव समासोनि व ओहोति व होंति एगट्ठा ॥ ७ ॥ किं अत्थी अण्णेऽवी ववहारा जेण जीतग्रहणं तु? । भण्णति चउरत्थऽण्णे आगममादी इमे सुणसु ॥८॥ पंचविहो ववहारो दुग्गइभवमूरएहि पन्नत्तो । आगम सुय आणा धारणा य जीए य पंचमए ॥ ९ ॥ आगमओ बवहारो सुणह जहा धीरपुरिसपण्णत्तो। पञ्चक्खो य परोक्खो सोविह दुविहो मुणेयवो ॥ १० ॥ पञ्चक्रवोऽवि य दुविहो इंदियजो चेव नोयइंदियजो इंदियपञ्चक्खोऽवि य पंचसु विसएसु णायवो ॥ १ ॥ जीवो अक्खो तं पति जं वहइ तं तु होति पञ्चक्खं । परओ पुण अक्खस्सा व (चं) तं होइ पारोक्खं ॥ २ ॥ ' असु बावणे' उ धाऊ अक्खो जीवो उ भण्णए नियमा जं वावयए भावे णाणेणं तेण अक्खोत्ति ॥ ३ ॥ ' अस भोयणम्मि' अहवा सवदवाणि भोगमेतस्स । आगच्छंती जम्हा पालेड य तेण अक्खोत्ति ॥ ४ ॥ केसिंचि इंदियाई अक्खाई तदुवलद्धि पच्चक्खं तं तु ण जुज्जति जम्हा अम्गाहगमिदियं विसाए ॥ ५ ॥ रूवादीविसयाणं जीवो खलु इंदिएहि उबलभगो । जम्हा म (ग)तम्मि जीवे ण इंदिया उवलभे विसयं ॥ ६ ॥ तम्हा विसयाणं खलु अग्गाहगमिंदियं भवइ सिद्धं । जं इंदिएहि नज्जइ तं नाणं लिंगियं होइ ॥ ७ ॥ लिंग चिंध नि. मित्तं कारणमेगट्टियाइँ एयाई जाणाइ इंदिएहिं जीवो धूमेण अरिंग व ॥ ८ ॥ एवं खु इंदिएहिं जं नजर लिंगियं तयं नाणं तम्हा सिद्धं अक्खो न इंदिया पंच सोयाई ॥ ९ ॥ एत पगाभिहितं जह कण्डुइ इंदियाई पच्चक्खं अहुणा उ इंदिएहिं गातृणं ववहरे इणमो ॥२०॥ सोइंदिएण सोउं तस्स व अण्णस्स बावि पडिसेवं चक्खिदिएण दठ्ठे पडिसेविनंतमणयारं ॥ १ ॥ धूवादि गंधवासे मूर्तिगलियादियं व उद्यवियं कंदाइ व खज्जंतं गंधोवि रसोवि तत्येव ॥ २ ॥ फासेणऽम्भङ्गियमादि फासतो अप्पगासि णाऊणं इंदियपञ्चक्रखेणं इय णाऊणं ववहति ॥ ३ ॥ णोइंदियपचक्खो ववहारो सो समासतो तिविहो। ओहि मणपज्जवे या केवलणाणे य पञ्चक्खो ॥ ४ ॥ अच्छउ ता ववहारो ओहीमादीण लक्खणं तिष्हं । संखेवओ उ एयं अस्मुन्नत्थं इमं वोच्छं ॥ ५ ॥ तत्थोहिणाण पढमं सामित्ताकमविसुद्धिओ होइ तो तं वोच्छ बहुविहं केत्तिय भेया भवे तस्स ? ॥ ६ ॥ संखादीआओ खलु ओहीनाणस्स सङ्घपयडीओ। काई भवपचडया खओवसमिया य कायोऽवि ॥ ७ ॥ किह संखातीयाओ पगडी ओहिस्स ? भण्णए जम्हा अंगुलअसंखभागा आरम्भ पएसवढीए ॥ ८ ॥ उक्कोसेणमसंखा जा लोगा होंति खेत्तमाणेणं। काले वाऽऽवलियाए असंखभागाउ आरम्भ ॥ ९ ॥ समउत्तरखढीए उकोसेणं असंख जाव भवे। ओसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयपमाणा भवे पगडी ॥ ३० ॥ इय होंति असंखाओ ओहिष्णाणस्स सक्षपगडीओ। संखातीतग्गहणा न केवलं होंतिऽसंखेज्जा ॥ १ ॥ ता होंति अणंताओ पोग्गलकायत्थिकायमहिकिच्च । संखातीतंति ततोऽसंख अनंता य गहिया हु ॥ २ ॥ सो पुण ओही दुविहो भवपञ्चद्दयो खओवसमिओ य देवाण णारयाण य नियमा भवपच्चयो ओही ॥ ३ ॥ उप्पजमाणओ खलु भवपञ्चइओहि जत्तियो विसओ। स तं ओभासति ण उ वढी शेव हाणी उ ॥ ४ ॥ गुणपञ्चइयो ओही गन्भजमणुतिरिय संखमाऊणं । कम्माण वयोवसमे तयवरणिजाण उपजे ॥ ५ ॥ अवही मज्जायत्थो परिमितदक्षं तु जाणते जे (नू) णं मुत्तिमदवे विसयो ण खलु अरूवीस दवेसु ॥ ६ ॥ अचंतमणुवलदा ओहीणाणस्स हाँति पञ्चक्खा। ओहीणाणपरिणया दशा असमत्थपजाया ॥ ७ ॥ तं पुण ओहीणाणं समासतो छविहं इमं होइ अणुगामि अणणुगामी वढतय हीयमाणं च ॥ ८ ॥ पडिवाति अपडिवाती छविहमेवं तु होति विज्ञेयं अणुगामिओ उ दुविहो अंतगतो चैव मज्झगतो ॥ ९॥ अंतगतोऽवि य तिविहो पुरतो तह मग्गतो य पासगओ पुरतो पुण अंतगतं इमं तु वोच्छ्रं समासेणं ॥ ४० ॥ जह कोई तु मणुस्सो उक्कं वृडुलिं व दीव मणि वाऽऽदी। काउं पुरओ गच्छइ पलयंतो व जह पुरिसो ॥ १ ॥ भग्गत अंतगतो ऊ तह चैव य णवरि मग्गतो काउं। अणुकड्ढमाणु गच्छति अंतगतो मग्गतो एस ॥ २ ॥ पासगततगतो ऊ चुडुलादि तहेव जाव तु मणि तु परिकइढमाण गच्छति अंतगतं एतमिह भूणितं ॥ ३ ॥ जो से किं मज्झगतो ? जह पुरिसो (पुरिसो जो ) कोड चुडुलिमादीणि । १०१० जीतकल्पभाष्य * जासूत्र मूल पर्यंत भाष्य पहा है, मात्र मूलसूत्र ना मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कातुं सिरम्मि गच्छति मज्झगतो एस ओही उ ॥ ४ ॥ मज्झगतऽंतगयस्स य ओहिण्णाणस्स को पइविसेसो ? पुरतो अंतगएणं जोयण संखेजऽसंखा वा ॥ ५ ॥ पुरतो जाणति पासति एस विसेसो उ मज्झअंतगओ। एवं तु मग्गतोही पासगतो चेव बोद्धशे ॥ ६ ॥ अणुगामिओ उ ओही एमेसो वण्णितो समासेणं । एत्तो उ अणणुगामी ओहिण्णाणं इमाऽऽहंसु ॥ ७ ॥ जह णाम कोइ पुरिसो एग महं अगणिठाण काउं जे तस्सेव व पेरंते परिघोलण हिंडमाणो तु ॥८॥ तं चैव अगणिठाणं तत्व गतो पासती ण अण्णत्थ एवं जत्युप्पजइ तत्य ठितो जाण पासइवि ॥ ९ ॥ णवि जाणइ अण्णत्या संखमसंखे उ जोयणे जो उ। ओही तु अणणुगामी समासतो एसमक्खातो ॥ ५० ॥ अज्झवसाणेहिं पसत्थाएहिं सुवद्धमाणचा रित्ते । उवरुवरिं सुज्झते समंततो वड्ढए ओही ॥ १ ॥ तत्व जहण्णादी तू जाव उ उक्कोस ओहिणाणं तु । वढते परिणामे गाहाहिं इमं तु वोच्छामि ॥ २ ॥ जाबतिया तिसमयाहारगस्त सुहुमस्स पणगजीवस्स ओगाहणा जहण्णा ओहीखेत्तं जहणं तु ॥ ३ ॥ सङ्घबहुअगणिजीवा निरंतरं जत्तियं भरेजंसु । खेत्तं सवदिसागं परमोही खेत्त विदिट्ठो ॥ ४ ॥ अंगुल - मावलियाणं भागमसंखेज दोस्रु संखेजा। अंगुलमाबलियतो आवलिया अंगुलपुहतं ॥ ५ ॥ इत्यम्मि मुद्दतो दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धवो जोयण दिवसपुडुतं पक्खतो पण्णवीसाए ॥ ६ ॥ भरहम्मि अदमासो जंबुद्दीवे य साहिओ मासो। वासं तु मणुयलोए बासपुहुत्तं च रूपगम्मि ॥ ७ ॥ संखेजम्मि उ काले दीवसमुद्दा उ होंति संखेजा। कालम्मि असंखेजे दीवसमुदावि भइया ॥ ८ ॥ काले चउण्ड वुड्ढी कालो भइयों खेत्तवुइटीए । वुड्ढीऍ दशपजब भजितश खेत्तकाला उ ॥ ९ ॥ सुडुमो य होति कालो तत्तो मुहमयस्यं हवति खेत्तं । अंगुलीमेने ओसप्पिणीओ असंखेजा ॥ ६० ॥ तिसमयहारादीणं गाहाणऽट्टण्ट वा सरूवं तु । वित्यरयो वण्णेज्जा जह हेट्ठाऽऽवस्सए भणियं ॥ १ ॥ एवं तु वइढमाणो ओही उ समासओ समक्खाओ। एत परिहार्यतं ओहीणाणं इमं होति ॥ २ ॥ अज्झवसाठाणेहिं अप्पसत्येहिं वट्टमाण चारिते। संकिस्समाण चित्ते समंततो हायते ओही ॥३॥ पडिवयमाणो ओही अंगुलभागं तु संखसंखं वा। अंगुलमेव पुडुत्तं हृत्य धणू जोअणे तह य ॥ ४ ॥ जोअणसयं सहस्सं संखमसंखा व जाब लोगं तु (तं)। पासित्ताण पडेज्जा ओहीणाणेद पडिवाती ॥ ५ ॥ से कि अप्पडिवाति ओहिणाणं तु ? जो अलोगस्स आगासपएसं तू एगमवी पासती जाव ॥ ६ ॥ अस्संखेजायऽलोए पमाणमेत्ताइँ लोगखंडाई। जाणइ पासति य तहा खेत्तोही एसमक्खातो ॥ ७ ॥ एसो अप्पडिवादी ओही तु समासओ समक्खातो। सयंऽपेतं चउहा दयादि समासतो वोच्छं ॥ ८ ॥ रूवी दधे विसतो दडोही खेत्तत्तो इमाऽऽहंसु । अंगुलअसंभागं उक्कोसेणं इमं वोच्छं ॥ ९ ॥ असंखेज्जाइँ अलोगे पमाणमेत्ताइँ लोगखंडाई जाणइ पासति य तहा खेत्तोही एसमक्खातो ॥ ७० ॥ कालतो ओहिण्णाणी असंखभागं तु आव लीए । सवजहणणं जाणति पासति या सो उ नियमेणं ॥ १ ॥ उस्सप्पिणिओसप्पिणिकालमतीतं अणागतं चेत्र । उक्कोसेण विजाणति पासह या एस कालोही ॥ २ ॥ भावतो ओहि णाणी अनंत भावे अनंतभागं च । जाणति पासति य तहा भावोही एसमखातो ॥ ३ ॥ ओही भवपच्चतियो वयोवसमियो य वण्णिओ दुविहो। तस्स उ बहू विगप्पा दधे खेत्ते य कालादी ॥ ४ ॥ तं मणपज्जवणाणं दुविहं तु समासतो समक्खातं उज्जुमती विम (उ)लमती दशादि चउविहेकैकं ॥ ५ ॥ दवाओं उज्जुमती तू अणतपएसे अनंतखंधा ऊ जाणइ पासति ते चिय वितिमिरमुद्धे तु विउलमती ॥ ६ ॥ खेत्ततों उज्जुमती तुहेलोगे जाव रयणपुढवीए। जाणइ पासति उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डपयरे तु ॥ ७ ॥ एते चिय अन्महिते विउलतराए उ मुणइ पासति । सुद्ध वितिमिरतराए विउलमती उज्जुमतिणो उ ॥ ८ ॥ उज्जुमती उड्ढे ऊ जोतिसियाणं तु जाव सबुवरिं जाणइ पासइ ते च्चिय वितिमिरसुद्धे तु विउलमती ॥ ९ ॥ तिरितं उज्जुमती तु उदहिदुए तह य दीव अदहिए। पंचिंदियजीवाणं सण्णीपजत्तयाणं तु ॥ ८० ॥ भावे मणोगहगए सवे जाणइ मणिनमाणे तु । ते चैव य विमलयरे नितिमिरसुद्धे तु विलमती ॥ १ ॥ णवर विसेसो तु इमो अड्ढाइयअंगुलेहिं खेत्तं तु । तिरिउड्ढमहे अहितं वितिमिरसुद्धे तु विउलमती ॥ २ ॥ कालतों उज्जुमती तू जहण उकोसएवि पलियस भागमसंखेज्जइमं अतीत एस्से व कालदुए ॥ ३ ॥ जाणइ पासइ ते तू मणिजमाणे उ सणिजीवाणं ते चैव य विउलमती वितिमिरसुद्धे तु जाणइ उ ॥ ४ ॥ भावतों उज्जुमती ऊ अनंतभावे उ मुणति पासति य सवेसिं भावाणं ते णवरमणंतभागे उ ॥ ५ ॥ ते सधे विउलमती विसुद्धतर वितिमिरे तु भावतया । जाणति पासति य तहा मणपज्जवणाण चभेयं ॥ ६ ॥ तं मणपजवणाणं जेण विजानाति सष्णिजीवाणं ददतुं मणिजमाणे मणदशे माणसं भावं ॥ ७॥ जाणति पिहुजणोऽवि हु फुडमागारेहिं माणसं भावं । एसुवमा तस्स भवे मणदपगासिए अत्थे ॥ ८ ॥ मणपजवणाणं पुण जणमणपरिचिंतितत्यपागडणं माणुसखेत्तणिबद्धं गुणपञ्चतितं चरितवतो ॥ ९ ॥ उज्जुमती विउलमती जे वहंती सुतंगवी धीरा। मणपजवणाणत्थे जाणसु ववहारसोहिकरे ॥ ९० ॥ पंकसलिले पसाओ जह होति कमेण तह इमो जीवो। आवरणे झिजते विसुज्झती केवलं जाव ॥ १ ॥ केवल संभिण्णं तू लोगमलोगं तु पासती नियमा । तं णत्थि जंण पासति भूतं भयं भविस्सं च ॥ २ ॥ सवेहि जियपदेसेहिं, जुगवं जाणति पासई दंसणेण य णाणेणं, पईवो अम्भमस्स वा ॥ ३॥ अंबरे व कतो संतो, १०११ जीतकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर TRAORALRATRUMPORDENOTENIAT*%**P** Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य रतं सवं तु पगासती। एवं उवणतो होति, तं संमिणं तु जं वयं ॥ ४॥जं च लोगमलोगं च, सबतो पुत्रमादिसु। सो सके तु जे भावा, दश्तो खेत्तकालतो ॥५॥ भावतो व जे भाषा, णत्यि जे तु ण पासती। अभावा णत्थिताए तु, जाणती पासतीवि य ॥६॥ अह सबदवपरिणामभावविण्णत्तिकारणमणतं। सासयमचाचाहं एगविहं केवलण्णाणं ॥७॥ सर्व णेयं चउहा एतस्स परूवणट्टयाए तु। गाहामुत्तं वुत्तं अहत्ति जं वण्णितं हेट्ठा ॥८॥ भिण्णग्गहणं खलु कालतो तु सो घेप्पती तु एतेसिं। दशादीण चउण्हं परिणामो फ्जया जाण ॥९॥ जीवाण अजीवाण य उप्पायवयधुवत्तपज्जाया। परपचएण तिण्हं धम्मादीयाण परिणामो ॥१००॥ गतिठितिअवगाहेहिं संजोगवियोगओ य सो होइ। ओदइयादीयाणं परिणामो होइ भावाणं ॥१॥ एतेसिं चिय दशादियाण कालो तु होति परिणामो । कालं पति पति सुहुमादिएमु वण्णादिपरिणामो॥२॥ दशादीपरिणाम सा जाणाति केवली अखिलं। किं भवती परिणामो? एयस्स उ कारणं इणमो॥३॥ वीससपयोगि अब्भातियाण खंधाण वीसमुप्पायो। पण्णरसहा पयोगो तिविहे कालम्मि परिणामो॥४॥ जो केवली मणूसो ण सो तु बाहं करेऽण्णसत्ताणं। णियमेण अणाबाई पावइ मोक्वं खविय सेसं ॥५॥ ज छउमत्थियणाणं केवलिणो ण खलु विजए तं तु । जम्हा खयोवसमिए बहुंते छाउमत्था उ॥६॥ भावे केवलणाणं वट्टति णियमेण खाइए णिचं। ण उ अक्खीणे मीसे खाइयभावस्स उप्पत्ती ॥७॥ तम्हा एगविहं खलु केवलणाणं तु होति उवषण्णं । जेणाऽऽह केवलम्मिवि छ(गु)पुणाऽणामोहता तेसि ॥८॥ आदिगरा धम्माणं चरित्तवरणाणदसणसमग्गा। सात्तगणाणेणं क्वहार ववहति जिणा ॥९॥ पवक्खाबहारी इंदियणोइंदिएम वक्खातो। आगमजोल बबहारो पारोक्खं त इमं वोच्छं ॥११०॥ पञ्चक्खागमसरिसो होति परोक्खोवि आगमो जस्स। चंदमुहीच तु सोविहु आगमववहारवं होति ॥१॥णातं आगमियंतिय एगहूँ जस्स सो परायत्तो। सो पारोक्खो वुचति तस्स पदेसा इमे होति ॥२॥ पारोक्खं वत्रहारं आगमतो सुतधरा ववति। चोइसदसपुत्रधरा णवपुधिय गंधहत्थी य॥३॥ किह आगमववहारी?. जम्हा जीवादयो णव पयत्था। उवलदा तेहिं तू सोहिं णयवियप्पेहिं ॥४॥जह केवली वियाणति दई खेत्तं च काल भाव च। तह चउलक्खणमेत्तं सुतणाणीवी बियाणाति ॥५॥ मासविवडिंढ मासिगहाणीय पणगहाणी या एगाहे पंचाई पंचाहे चेय एगाहं ॥६॥ रागहोसविवाढि हार्णि वा णातु देति पश्चरखी।चोहसपशादीवितहणाउंतिहीणसहियं ॥ ७॥ चोअगपुच्छा पञ्चक्रवणाणिणो घेवेऽवि कह पहुं देति?। भण्णति सुणसू एत्यं विटुंतं बाणिएण इमं ॥८॥ जं जहमोई रयणं तं जाणति रयणवाणियो णिउणो। योर्ष तुर महलस्सवि कासति अप्पस्सवि बहुं तु ॥९॥ अहवावि कायमणिणो सुमहछस्सावि कागिणी मोछ । वइरस्स तु अप्पस्सवि मोठं होती सतसहस्सं ॥१२० ॥ इय मासाण बहुणवि रागहोसऽप्पयाए थोवं तु । रागहोसोश्चया पणगेवि जिणा पहुं वेंति॥१॥ पञ्चक्खी पञ्चवं पासति पडिसेवगस्स सो भावं। किह जाणति पारोक्खी ? णातमिणं तत्य धमएणं ॥२॥ णालीधमएण जिणा उवसधारं करेंति पारोक्खे। जह सो कालं जाणति सुएण सोहिं तहा सो तु ॥३॥ जेणं जीवाऽजीवा उवलदा सबभावपरिणामा। तो पुराधरा सोहिं कुवंति सुओ वदेसेणं॥४॥तं पुण केण कतं तू सुतणाणं जेण जीवमादीया। णज्जति सबभावा ? केवलणाणीण तं तु कतं ॥५॥ संतेवि आगमम्मी जाहे आलोतियं तु तेण भवे । सम्मं णाऽऽलोएती पडिवजति सारियो जइया ॥६॥ तो तस्स उ पच्छित्तं जेण चिसुज्झति तग पयच्छति । आगमववहारी छविहोवि पलिउंचिए ण देति ॥ ७॥ आलोतियपडिकते होती आलोयणा तु णियमेणं । अणलोहयम्मि भयणा किह पुण भयणा भवति तस्स ॥८॥ आलोयणापरिणतो अंतर कालं करे अभि(वि)मुहो वा। अह्वाची आयरिओ एमेच य होति संपत्तो ॥९॥ आ-2 राहओ तु नहवी जं सम्मालोयणापरिणतो तु। णाराहेति अपरिणयो एवं भयणा भवति एसा ॥१३०॥ अवराहं वियाणति, तस्स सोहिं व जहवीतहाऽवाऽऽलोयणा पत्ता, आलोअंते बहु गुणा ॥१॥ दशेहिं पजवेहि य कमखेत्ते कालभावपरिसुद्धं । आलोयणं सुणित्ता तो ववहारं पउज्जति ॥२॥ दो सचित्तादी पज्जव दया बहू विगप्पेहिं । पूधाणुपुचिमादी कमओ एवं तु आलोए ॥३॥ अद्धाण जणवए वा खेते काले सुभिक्ख दुम्भिक्खे। भावे हद्दगिलाणे सेविय जह तं तहाऽऽलोए ॥४॥ अहवा सहसऽण्णाणा भीएण व पेप्लिएण व परेहिं । बसणेण पमाएण व मूढेण व रागदोसेहि ॥५॥ पुर्ण अपासिऊणं छूटे पायम्मि जं पुणो पासे । ण य तरति णियत्तेउं पायं सहसाकरणमेयं ॥ ६॥ अण्णतरपमाए असंफउत्तम्सऽणोवउत्तस्स । इरियासु भूतत्थे अवतो एतदण्णाणं ॥ ७॥ भीओ पलायमाणो अभियोगभएण वाबि जं कुज्जा। पडितो व अपडितो वा पेखिजा पेलिओ पाणे ॥८॥ गीतादि होति बसणं पंचविहो खल भवे पमादो उ। मिच्छत्तभावणा तू मोहो तह रागदोसा ऊ॥९॥ एतेसिं ठाणाणं अण्णयरे कारणे समुप्पण्णे । तो आगमवीमंसं करेंति अत्तातच भएणं ॥१४० ॥ जदि आगमो य आलोयणा य दोषिणवि समं तु निश्यति। एसा खलु वीमंसा जो असहू जेण वा मुझे ॥१॥नाणमाईणि अण्णा(त्ता)णि, जेण अत्थे(नो) उ सो भवे । रागहोसप्पहीणे वा, जे व इट्टा विसाहिए ॥२॥ सुतं अत्थे उभयं आलोयण आगमो इती उभयं। जंतं उभयंति वुत्तं तत्येसा होति परिभासा ॥३॥ पडिसेवणातियारे जदिनाउछ जहकर्म सवे। नहु देती पच्छित | आगमयवहारिणो तस्स ॥४॥ पडिसेवणातियारे जदि आउद्दइ जहरूमं सके। ति तओ पच्छितं आगमववहारिणो तस्स ॥५॥ कहेहि सा जो युनो, जाणमाणोवि गृहनि। ण तस्स (२५३) २०१२ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * | देति पच्छित्तं, वेन्ति अण्णत्थ सोहय ॥६॥ण संभरति जो दोसे, सम्भावा ण य मायया। पचक्खी साहए ते उ, माइणो उण साहई॥७॥ जति आगमो य आलोयणा य दोण्णिवि समं ण णिवद्दयाई। ण हु देति उ पच्छित्तं आगमववहारिणो तम्स ॥८॥ जति आगमो य आलोयणा य दोषिणवि समं णिवइताई। दिति ततो पच्छित्तं आगमववहारिणो तस्स ॥९॥ को पुण पायच्छिने दायचे अणरिहो व अरिहो वा ?। भण्णइ इणमो गुणसू अरिहो जो वा अणरिहो उ॥१५०॥अट्ठारसहि ठाणेहि. जो होतिऽपरिणिहिओ। नऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरिनए ॥१॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होति सुपरिट्टितो। अलमत्यो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥२॥ अट्ठारसहि ठाणेहि. जो होइ अपतिद्वितो। नऽलमत्यो नारिसो होति, ववहारं वबहरित्तए ॥३॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होति सुपतिहितो। अलमत्यो तारिसो होइ, ववहारं ववहरित्तए।४। वयछक्क कायछकं, अकप्पो गिहिभायणं । पलियंक(गोयर)णिसिज व्हाणे, भूसा अट्ठार ठाणेते ॥५॥ परिणिट्ठियों परिणाया पतिहितो जो ठिओ उ तेसु हवे । अविनू सोहि ण याणति अहितों पुण अण्णहा कुजा ॥६॥ बत्तीसाए तु ठाणेहि, जो होइऽपरिणिहितो। णऽलमत्थो तारिसो होइ, ववहारं ववहरित्तए ॥७॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं, जो होति परिणिट्टितो। अलमत्यो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥८॥ बन्नीसाए उ ठाणेहिं, जो होति अपइडितो। णऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥९॥ बत्तीसाए तु ठाणेहि, जो होति सुपतिहितो। अलमत्यो तारिसो होति, ववहारं वयह रित्तए ॥१६०॥ अट्ठविहा गणिसंपय एकेका चउबिहा उ बोद्धया। एसा खलु बत्तीसा ते खलु ठाणा इमे होति ॥१॥ आयार सुय सरीरे बयणे बायण मती पतोगमती। एतेसु संपया खलु अट्टमिया संगहपरिण्णा ॥२॥ एसा अट्ठविहा खलु एकेकाए चउविहो भेदो। इणमो उ समासेणं वोच्छामी आणुपुष्वीए ॥३॥ आयारसंपयाए संजमधुवजोगजुनया पढमा। वितिय असंपम्गहिया अणिययवित्ती भवे ततिया ॥४॥ तत्तो य वुड्ढसीले आयारे संपया चउखेसा। चरणमिह संजमो तू तहियं णिचं तु उवउत्तो ॥५॥ आयरिओ अ बहुस्सुयनवस्सिजचाइएहि व मदेहि । जो होति अणुस्सित्तो सो तु असंपग्गहीउत्ति ॥६॥ अणिययचारी अणियतवित्ती अगिहो य होति जो अणिसो। णिहुयसहावअचंचल णायचो बुइढसीलोनि ॥ ७॥ बहुसुत परिजितसुत्ते विचित्तसुत्ते य होति बोद्धब्बे। घोसविसुद्धिकरे या चउहा सुतसंपदा होति ॥८॥बहुसुत जुगप्पहाणे अभंतर बाहिरं च बहु जाणे। होनि चसहरगहणा चारिनपी मुबहुयं तु ॥९॥ सगणामं व परिजितं उक्कमकमयो बहुहिं व कमेहिं । ससमयपरसमएहिं उस्सग्गऽववातयोवि वितू(जित) ॥१७॥ घोसा उदात्तमादी तेहिं विसुद्ध न घोसपरिसुद्ध । एसा सुतोवसंपय सरीरसंपयमतो वोच्छं ॥१॥ आरोहपरीणाहो तह य अणोत्तप्पया सरीरस्स। परिपुर्णिणदियमाइय संघतणधिरे य बोदव्यो ॥२॥ आरोहो दिग्धत्तं विक्खंभो होति तित्निया(पिहुलया) चेव । आरोहपरिणाहो य संपया एस णादव्या ॥३॥ तपु लजाए धातू अलजणिज्जो अहीणसव्वंगो। होति अणोत्तप्पो खलु अवि. कलईदी तु परिपुण्णो॥४॥ पढमादीसंघयणो बलियसरीरो थिरो मुणेयब्वो। एसा सरीरसंपय एत्तो वयणम्मि वोच्छामि ॥५॥ आएज महुखयणे अणिसियवयणे नहा असंदिदे। आदिज गज्सवको अस्थवगादं भवे महुरं ॥६॥ अहवा अफरुसवयणो खीरासवलद्धिमादिजुत्तो वा। अहवा सूसरसूहगगंभीरजुओ महुरखको ॥ ७॥ णिस्सिओं कोहादीहिं रागहोसेहिं । वावि जं वयइ । होनि अणिम्सियवयणो जो वयती एयवइरिनं ॥८॥ अवत्तं अफुडतं अत्यबहुत्ता व होति संदिदं । विवरीयमसंदिदं वयणेसा संपदा चतुहा ॥९॥ वायणभेदा चतुरो विधिउदिसणा समुदिसणओ या परिणिवविया बाए णिजवणा चेव अत्थस्स ॥१८०॥ तेणेव गुणेणं तू वाएयव्वा परिक्खितुं सीसा। उहिसई विजिणे जं जस्स तु जोग्ग तं तस्स ॥१॥ अपरीणामगमादी बियाणितुमभायणे ण वाएति। जह आममट्टियघडे अंबे व ण छुम्भए खीरं ॥२॥ जदि छुम्भई विणस्सति णस्सति वा एवमपरिणामादी। णोहिस्से छेदमुतं समुहिसयाऽवि तं चेव ॥३॥ परिणिवविया वाए जत्तियमेतं तु तरति तु ग्धेनुं। जाइगदिट्टतेणं परिजिए ताहण्ण उदिसति ॥४॥ णिजवयो अत्यस्सा जो उवजाणेति अत्यों मुनस्स। अत्येणचि णिवहति अत्यपि कहेति जं भणितं ॥५॥ मइसंपय चउभेदा उम्गह ईहा अवाय धारणया। उग्गहमति छम्भेता तत्थ इमे होंनि छम्भेया ॥६॥ खिप्प पर बहुविहं वा धुष णिस्सित तह य होयऽसंदिदं । ओगिण्हति एवीहा अवायमिति धारणा चेव ॥ ७॥ परवाइण सिस्सेण व उबारितमेत्तमेव ओगिण्हे । तं खिप्पं बहुगं पुण पंचवछ व सत्त गंथसता ॥८॥ बहुविहऽणेगपयारं जह लिहति पहारए गणेइऽविय। अस्खाणगं कहेति इ सहसमूहं वऽणेगविहं ॥९॥णवि विस्सरइ धुर्व तं अनिस्सिर्य ज ण पोत्थए लिहिनं। अणुभासिया गेण्हनि IPA निसकित होअसंदिद्धं ॥१९०॥ उम्गहियस्स तु ईहा इंहिएं पच्छा अणंतर अवायो। अवगते पच्छाधारण ईय विसेसो इमो णवरं ॥१॥ बहु बहुविह पोराणं दुबरी पोराण पुरा व जितं दुखर णयभंगविलत्ता ॥२॥ एतो उ पओगमती चउरिहा होति आणुपुधीए। आय पुरिसं च खेत्तं वत्युपि पउंजए वातं ॥ ३॥ जाणति पयोग भिसजो वाही जे. णाऽऽउरस्स छिजति उ । इय वाओ व कहा वा णियसत्ती गाउ कातवा ॥४॥ पुरिसं उवासगाई अहवावी जाणगाइयं पुरिसं। पुष्वं तु गमेऊणं ताहे वाओ पउत्तव्यो ॥५॥ खेत १०१३ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवमाई अहवा वा साहुमावियं जंतु। णाऊण तहा विहिला वाओवहिं पउत्तव्यो॥६॥वत्यु पुष परवाई पहुआगमिओ न पाविनाऊणं। राया व रायमचो दारुणभहस्तभावो वा॥७॥ एसा उपओगमई एत्तो बोच्छामि संगहपरिणं । साविय बउब्विगप्पा तीय विभागो इमो होइ॥८॥बहुजणजोग पेहे खेतं तह पीढफलहमोगिण्हे। पासासु एते दोषिणवि काले य समाणए काले ॥९॥ पूए अहागुरुपिय बउत्थ एसा उ संगपरिष्णा। एत्तो एकेडीय य इमा विमासा मुणेयव्वा ॥२००॥ बासे बहुजणजोगं विस्थिण्णं जंतु गच्छपायोगं । पडिलेडवालबुम्बलगिलाणमादेसमावीणं ॥१॥ खेते असइ अगहिता ताहे गच्छति ते उ अण्णस्य। पीढष्फलगरगहणे ण उ मइलंती मिसिज्जादी॥२॥ वासासु बिसेसेणं अणं कालं तुगमयअण्णत्य। पाणा सीयलकुंयावित्रायतो गहण वासासु ॥३॥ जं जम्मि होति काले काय ते समाणए तम्मि । सझायपेहउवहीउप्पायणमिक्खमादी तु॥४॥ अहगुरु जेणं पहाविओ तु जस्स व अहीत पासम्मि । अहवा अहागुरू.खल हवंति रातिणियतरया उ॥५॥ तेर्सि अमुहाणं डण्डरगह सहय होति आयारे। उपहीवहणं विस्सामणं च संपूयणा एसा॥६॥ एसा खलबत्तीसा जाणति जो सो पतिहितो एत्यं । ववहारे अलमत्यो अहवावि भवे इमेहिंतु॥७॥ छत्तीसाए तु ठानेहिं, जो होगाऽपरिणिडिओ।गलमत्थो वारिसो लाहोति, यवहारं वयह रित्तए॥८॥छत्तीसाए उठाणेहिं, जो होति अपतिहितो।गलमत्यो तारिलो होति, पवहारं पहरित्तए ॥९॥छत्तीसाए उठाणेहिं.जो होइ परिणिहितो। अलम. स्थो वारिसो होति, पबहारं ववहरित्तए ॥२१०॥ छत्तीसाए उठाणेहि, जो होइ सुपहडिओ। अलमस्थो वारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए॥१॥ जा होती पत्तीसा तम्मी छोडण विणयपडिवती। चतुमेदं तो होती छत्तीसा एस ठाणाणं ॥२॥ पसीस वणिय बिय वोच्छं चउमेय विणतपडिवसिं। आयरियंतेवासी जह विणएत्ता भवे णिरिणो ॥३॥ आयारे सुत. विणए विक्खिवणे व होति मोरहो। दोसस्स य णिग्धाओ विणए बाउस पडिक्त्ती ॥४॥ आयारे विणको खलु चाउविहो होति आनुपुचीए। संजमसामायारी तवे य गणिविहरणा व ॥५॥ एगछविहारे या सामायारी य एस चउहा तु।एतेसिं तु विभागं वोच्छामि अहाणुपुषीए ॥६॥ संयममायरह सतं परं च गाहे संजमं णियमा। सीयंतथिरीकरणं उतचरणं च उववृहे ॥७॥ सो सत्तरसो पुढवातियाण घट्टपरियावणोदवर्ण । परिहरियचं णियमा संजमया एस बोदवा ॥८॥ पक्षे य पोसहेसुं कारेति तवं सतं करेतिऽषिय। भिक्खायरियाय तहा णियुजति परं सर्य वावि ॥९॥ सव्वम्मि पारसबिहे जिउंजति पर सतब उज्जमति।गणसामायारीए गणं विसीयंत चोएति ॥२२०॥ पडिलेडणपक्खोडणवालगिलाणाइयवसुं। सीदंतं ठावे(छाहे) ती सर्त पजुत्तोतु एएसु ॥१॥ एगडविहारावी पडिमा परिषजए सतं पडणं । परिवजाये एवं अप्पाण परं च विणएति ॥२॥ आयारषिणय एसो जहणमं वणिओ समासेणं। एतो उसुत्तविणयं जहाणुपुदि पवक्खामि ॥३॥ सुसं अत्यं च सहा हितकर णिस्सेलयं च वाएर। एसो पउब्धिहो खल सुतविणतो होति णायवो ॥४॥ सुर्त गाहेति जुलो अस्थं च सुणावए पयत्तेणं । जं जस्स होति जोग्गं परिणामगमावितं तु हियं ॥५॥ णिस्सेसमपरिसेसं जाव समतं तु ताव वाएति। एसो सुतविणयो खलु वोच्छं विक्रखेवणाषिणर्य ॥६॥ अट्टि विलु खलु विव साहम्मियत्तविणएण। धुतधम्म ठाव घम्मे तस्सेष हितह अम्मुढे ॥७॥ विष्णाणामावम्मिवि सिप पेरण' विक्सिवितु परसमया। ससमते णमभिष्मे अविद्वधम्मं तु दिटुंता ॥८॥ धम्म सहायो सम्मईसण जं जेण पुगिन उ ल। सो होयऽविपुछो त गाहे विठ्ठपुष्यमिक ॥९॥जह मायरं व पियरंक मिच्छादिडिपि गाह सम्मत्त। विट्ठ पुष्पं सावग साहम्मि फरेर पठ्यावे ॥२३०॥ चुतधम्मो णट्ठधम्मो चरितधम्माओं ईसणाओ वा। तं ठावेति तहि चिय पुणोवि धम्मे जहुविद्वे ॥१॥ तस्सत्ती तस्सेव ऊ चरितधम्मस्स बुढिहेतुं तु। वारेतऽणेसणादी ण य गिह सयं हितद्वाए॥२॥जंहपरोए या हितं सुई तं लम मुणेतब्ब। णिस्सेयस मोक्लो तू अणुगामऽणुगच्छए जंतु॥३॥ विक्खेवणविणएसो जहरूमं वण्णितो समासेणं। एत्तो तु पवक्खामी विणर्य दोसाण णिग्याते ॥४॥ दोसा कसायमाई बंघो अहवावि अट्ठ पयडीओ। णियर्य व णिच्छिय वा पाय विणासो य एगवा ॥५॥ रुद्रुस्स कोहविणयण बुहस्स य दोसविणवणं जं तु। कलियर्कखुच्छेए आयप्पणिहाण पडेसा ॥६॥ सीयपरम्मि वडाहं बंजुलालो पजह उरगविसं। रुद्धस्स तहा कोहं पविणेती उपसमेतित्ति ॥७॥हो कसायविसयाइएहि माषपय(ण)मावबुट्टो या तस्स पविणेह दोसं णासयए घंसए बत्ति ॥८॥ खाउ मत्तपाणे परसमए आहब कल एमाई। तस्स पविणेइ कसं संखडि अणं व देसेणं ॥९॥ चरगाइमाइएसुतु अहिंसमक्खोव्य अस्थि जाला। तं हेउकारणेहिं विणयउ जह होइ णिकंसो॥२४०॥ जो एएसुण बहह कोहे (कमिषि) दोसे तहेच खाए। सोहोति सुप्पणिहिजो सोमणपरिणामजुत्तो वा ॥१॥ छत्तीसेवाणि ठाणाणि, मणिताणऽपुखसो। जो कुसलो एतेहिं, सोपवहारी समक्खातो॥२॥ अहहि अवारसहि य दसहि य ठाणेहिं जे अपारोक्खा। आलोयणदोसेहिं छहि य अपारोक्स विष्णेया ॥३॥ आलोयणागुणेहिं छहिं य ठाणेहि जे अपारोक्सा। पंचहिय णियंठेहि पंचहिय चरितर्मतहिं॥४॥ अगायारवमादी क्यछकादी हवंति यज्हरस । बसविझपायच्छिते बालोषणमाविए च ॥५॥ आलोयणबोसेहिं आकंपनमाविरहि १०१४ जीतकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर 44811947 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसहिं तु। छहिं काएहिं वएहि य वसहि चाऽऽलोयण गुणेहिं॥६॥ आयार विषयगुण कप्पदीवना अत्तसोहि उजुभावो। अजव मच लापप तुट्ठी पल्हापकरणं च ॥७॥ मिच्छत्त. तवायारे पढमं आलोयणा तहिं पढम। विणयो विणासणंति य मायाए विषयगुणेसो ॥८॥ चारित्त कप्पों णियमा जिरतियारित विगडिये सो यादीविय पभासिउत्तिय पगासितो चेव एगट्ठा ॥९॥ अतियारकपकंकितो य आया विसोहिओ होति। आलोइए य आया उजुभावे ठाविजो होह ॥२५०॥ अजवभावे अजव सयं चियालोइए कओ होइ। महवभावेणं पुण अमाणि होऊण आलोए ॥१॥ अतियारगुरुभएणं अतालोतिए लहू होति। सुदोहंती य तुही अतियारहोय पल्हाणो ॥२॥ आलोयणागुणेसू जे ऊ एवं हवंतऽपारोक्ला। छट्ठाणयपडिएहिं छहिं चेव य जे अपारोक्खा ॥३॥ संखादीया ठाणा हि ठाणेहि पडियाण ठाणाणं । जे संजया सरागा एगे ठाणे विगयरागा॥४॥ एआगमयवहारी पण्णत्ता रागदोसणीहूया। आणाएँ जिणिंदाणं जे ववहारं ववहरंति ॥५॥ इय भणिए चोएती ते वोच्छिण्या हुसंपदं बहई। तेसु य वोच्छिन्णेसू णस्थि विसुद्धी चरित्तस्स ॥६॥ चोदसपुष्वधराणं वोच्छेदो केवलीण वोच्छेदो। केसिंचिय आदेसो पायच्छितपि वोच्छिणं ॥७॥जंजत्तिएण सुज्झति पार्य तस्स तह देति पच्छित। जिणचोदसपुष्यधरा तबियरीता जहिच्छाए ॥८॥ पारगमपारगं वा जाणंते जस्स जंच करणिज। देति तहा पचक्खी घुणक्खरसमोतु पारोक्खी॥९॥जाय ऊणाहिए वृत्ता, सुते मग्गविराहणा। ण सुझे ती देतो उ, असुरो कं च सोहए ॥२६०॥ देताविण दीसंती मासचउम्मासियाओं सोहीओ। कुणमाणाविय सोहिंण पासिमो जो व सिं देजा ॥१॥ सोहीए य अभावे देताण करेंतगाण य अभावे। वहति संपतिकाले तित्थं सम्मत्तणाणेहिं ॥२॥णिजवगा यण संती महपुरिसाणं तु तेसिं वोच्छेते। तम्हा संपयकाले णस्थि विसुखी सुविहियाणं ॥३॥ एवं तु चोतियम्मी आयरिओ भणति ण हु तुमे णातं । पच्छित्तं कहितं तू किं धरती किं च योच्छिष्ण ? ॥४॥ अत्थं पहुब सुसं अणागतं तं तु किंचि आमसति। अत्योषि कोवि सुतं अणागतं व आमसति॥५॥ सव्वं चिय पच्छित पचक्खाणस्स ततियवत्युंमि। तत्तो चिय णिज्जूढं कप्प पकप्पो यववहारो॥६॥ ताणि घरंती अजषि तेसुधरतेसुकह तुम भणसि। वोच्छिणं पच्छित्तं तस्थ इमा तू परूवणया ॥७॥ सपदपरूवण अणुसजणा य दस चोइसऽह दुष्पसहे। अस्थि ण वीसति पणिए ण विणा तित्यं वणिजवए ॥८॥ पण्णवगस्स तु सपदं पच्छितं चोयगस्स तमणिटुं। तं संपयंपि विजति जहा तहा मे णिसामेहि ॥९॥ जति पकी मोए पासाए सिप्पिरयणणिम्मविए।तं बढ़ रायीणं अण्णेसिच्छा समुप्पण्णा ॥२७०॥ अरे कारेवेमो पा. साए एरिसेत्ति इति तेहिं। चित्तकरा पेसविया णिउणं लिहिऊण आणेह ॥१॥ पासादस्स य णेमण हारितं तेहिं चित्तकारेहिं । लीलविणं णवार आगारो होति सो चेव ॥२॥ जह रूवादिविसेसा परिहीणा होति पागतजणस्स। ण य ते ण होति गेहा मुंजंति य तेसुते भोगे ॥३॥ एमेव य पारोक्ती तदाऽणुरुवं तु सोय ववहरति। किं पुण पवहरितवं? पायच्छित इमं वसहा ॥४॥ आलोयण पडिकमणे मीस विवेगे तहा वियोसमो। तव छेद मूल अणवठ्ठया य पारंचिए चेव ॥५॥ एतुवरि मणिहिती सविस्तरेणं तु आणुपुबीए। एवं पुण जह घरती जं जत्था त चिमाइंसु ॥६॥ बसहा अणुसज्जती जा चोहसपुब्धि पढमसंघतणे। तेणारेणऽहविह तित्यंतिम जाच दुप्पसहो ॥७॥ तम्मि कालगए तित्थं, परिसंप बोच्छिजिही| ति॥ दोसु तु बोच्छिण्णेसू चोदसपुष्वातिमे य संघयणे। तवपारंचऽणवट्ठा णववस पच्छित योच्छिण्णा ॥८॥ सेर्स अहहऽणुसज्जति जा तित्यं णव बसे य लिंगादी। चोवे सपि ण दीसवि | एष भणंतं गुरू भणति॥९॥ दोसु तु वोच्छिण्णेसू अट्ठविहं देतया करेंता याण य केयी दीसंती एव मणतस्स चतुगुरुगा ॥२८०॥ दोसुतुबोच्छिष्णेसू अहविहं तया करेंता या पथक्वं | बीसंती जहा तहा मे णिसामेहि ॥१॥ पंच णियंठा मणिया पुलाग पाउसा कुसील निम्मंठा। तह य सिणाजो तेसिं पच्छितं जहकम बोच्छ ॥२॥ आलोयण पडिकमणे मीस विवेगे तहा बिओसग्गे । तत्तो य तवे छेदे पछित्त पलागे छप्पेते॥३॥पउलपडिसेषगाणं पायच्छित्ता हवंति सोऽपि । राण भये कप्पे जिणकप्पे अहहा होति ॥४॥ आलोयणा विधेगो वा, णियंठस्स दुषे भवे। विवेगो य सिणायस्स, एमेया पडिवत्तीओ ॥५॥पंचेव संजया खलु णायसुएण कहिता जिणवरेणं । सामाइसंजयादी पच्छित तेसि कुच्छामि ॥६॥ सामाइसंजताणं पपिछत्ता छेयमूलरहियऽट्ठ। घेराण जिणाणं पुण तवर्गत छविहं होति ॥७॥छेदोवट्ठावणिए पायच्छित्ता हवंति सोऽवि। राण जिणाणं पुण मूलतं अट्ठहा होति ॥८॥ परिहारविसुडीए मूलंता अट्ट होति पच्छित्ता। राण जिणाणं पुण छबिहमेतं चिय तवंतं ॥९॥आलोयणा विवेगे य, ततियं तुण विजई। सुहमम्मि संपराए, अहक्लाए तहेब य ॥२९॥षउसपडिसेषया खल इत्तिरि छेदा य संजता दोणि । जा तित्य अणुसजति अस्थिरतेण तु पच्छितं॥१॥ जवि अत्यिण दीसंती केह करता उ१ मण्णती सुणसु। दीसंतु उवाएणं कुरता तस्थिमं जातं ॥२॥जह धणियो साक्लो हिरवेक्खो पेव होड दुविहो तु। पारनग संतविभयो असंतविमयो य सो दुविहो ॥३॥ संतविमवो तु जाहेष मम्गितो ताहे देति तं सर्छ। जो पुण असंतविभवो तस्स विसेसो इमो होति ॥४॥निरपेक्सो तिमि यती अत्ताच घच तहय धारलयं । सापेक्लो पुष स्खति अप्पाण धपधारण ॥५॥ १०१५जीतकरूपभाय - मुनि दीपरत्नसागर Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो तू असंतविमलो बन्म घेतूल पकड़ पाडेग। सो अप्पाण धणंपिय धारणगं चेव मासेति ॥ ६॥ जो पुण सहती कालं सो अत्यं लहति स्क्वति य तं च। ण किलिम्सइ य सतंपी एवं उपाओ तु सधस्थ ॥आ जो तु घरेज अवइदं, असंतविमवो सतं । कुणमाको य कम्मं तु, णिधिसे करिसावणं ॥८॥ अणमप्पेण कालेणं, सो तगं तु विमोयए। दिद्वैतेसो भणितो, अत्यो। पणयो इमो तस्स ॥९॥ संतविभवेहि तला घितिसंघयणेहि जे उ संपण्णा। ते आवच्या सर्व वहति णिरणुमाहं घीरा ॥३००॥ संघयणधितीहीणा असंतविभवेहि होति तुला तु। हिरवेक्लो जदि नेसि देति तयो ते ण सुमंति॥१॥ते तेण परिचत्ता लिंगविवेगं तु काउ वचंति। तिस्थुच्छेदो एवं अप्पाविय चत्त इणमो उ ॥२॥ ते उद्वेत्तु पलाणा पच्छा एगाणियो तयो होति। ताहे किंतु करेतू? एवं अप्पा परिषत्तो ॥३॥ साविक्खों पवयणम्मी अणवत्वपलंगवारणाकुसलो। चारित्तरक्खणट्ठा अघोच्छित्तीय तु विमुझे ॥४॥ कल्याणगमावण्णे | अतरते जहकमेण काउंजे। इस कारेति चतुत्ये तबिउणायंबिलतवे य॥५॥ एकासण पुरिमड्ढा णिधिगती व विगुणविगुणाओ। पत्तेयासहुदाणं कारेंति व सपिणगासंति ॥ ६॥ चउनिगद्गयाताणा एर्ग कल्लाणगं च कारिंति। जं जो उ तरति तं तस्स देति असहुस्स झोसेति ॥७॥ एवं सदयं दिजति जेणं सो संजमे थिरो होति। ण य सबहा ण बिजइ अण - बत्यपसंगदोसाओ ॥८॥ तिलहारगदितो पर्सगदोसेण जह वह पत्तो। जणणी य यणच्छेयं पत्ता अणिवारयन्ती तु॥९॥णिभत्थणाइ बितियाएँ वारिओ जीविआदिआभागी। णेव य पणछेदादी पत्ता जणणी य अवराई ॥३१०॥ इय अणिवारियदोसा संसारं दुक्खसागरमुर्वेति। विणियत्तपसंगा पुण करेंति संसारवोच्छेदं ॥१॥ एवं करेंति सोही देन्त करंताबि एव दीसति। जंपिय देसणणाणेहि जाति तित्यति त सणस ॥२॥ एवं त भणतेणं सेणियमादीवि बाविय वाससहस्साई होहिती तित्यं । तं मिच्छा सिद्धी वा सव्वगतीसुपि होजाहि ॥४॥ अण्णं च इमो दोसो पच्छिन्नाभावतो तु पावड हु। जह नवि चिट्ठति चरणं तत्थ इमं गाहमाहेसु ॥५॥ पायथिने असंतम्मि, चरित्नपि ण चिट्ठति। चरित्तम्मि असंतंमि, तित्ये णो सचरितया ॥६॥ अचरित्तयाए तित्थे, णेवाणंपिण गच्छती। णेशाणम्मि असंतम्मि, समा दिक्खा णिर. स्थिया ॥७॥ण विणा तित्थं णियंठेहिं. णियंठा व अतित्यगा। छकायसंजमो जाव, ताव दुष्हाणुसजणा ॥८॥ सबहिं परूविय छक्काय महत्वया य समितीओ। सच्चेव य पण्णवणा संपयकालम्मि साहूणं ॥९॥ तं णो वचइ तित्यं दसणणाणेहिं एव सिद्ध तु। णिजवगा वोच्छिण्णा जंपिय मणियं तुनैण तहा ॥३२०॥ सुण जह णिजवगत्थी दीसंति जहा य णिजविजंता। इह दुविहा णिज्जवगा अत्ताण परे य बोदवा ॥१॥ पाओवगमे इंगिणि दुविहा खलु होति आयणिज्जवगा। णिजवणा य परेण व भत्तपरिणाएं बोदवा ॥२॥ पाओवगम इंगिणि दोषिणवि चिदंतु ताव मरणाई । भत्तपरिणाएं विहिं वोच्छामि अहाणपुरीए ॥३॥ पञ्चजादी काउं णेयचं नाव जावऽवोच्छित्ती। पंच तुलेतृण य सो भन्तपरिणं परिणयो य ॥ ४॥ सपरकमे य अपरकमे य वाघाय आणुपुतीय । मुत्तत्यजाणएणं समाहिमरणं तु कातचं ॥ ५॥ भिक्खुबियारसमथी जो अण्णगणं तु गंतु चाएति । एस सपरकमो खलु तश्विचरीओ भवे इयरो ॥६॥ एकेक तं दुविहं णिशापायं तहेव वाघायं। वाघातोविय दुविहो कालाइधरोप इयरो व ॥७॥ सपरकम तु तहियं णिवाघायं तहेव वाघातं । वोच्छामि समासेणं उप्प(उप्पि) अपरकम दुविहं ॥८॥ तं पुण अणुगंतव्वं दारेहिं इमेहि आणुपुधीए। गणणिसिरणाइएहिं तेसि विभागं तु वोच्छामि ॥९॥ गणणिसिरणा परगणा सिनि संलेहा अगीय संविम्गे। एगा भोगण अण्णे अणपुच्छ परिच्छ आलोए ॥३३० ॥ ठाण वसही पसत्ये णिजवगा दबदायणा चरिमे। हाणि परितंत णिजर संथारुबत्तणादीणि ॥१॥ सारेऊण य कवयं णिवाघाएण चिंधकरणं च। वाघाए जयणा या भत्तपरिण्णाय कायचा ॥२॥ गणणिसिरणम्मि उ विही जो कप्पे वणितो उ सत्तविहो। सो चेव गिरवसेसो भत्तपरिणाएं हपि ॥३॥ अभिणवगणिमि इत्तरियपि णिसिरित्तु गणं तु सो ताहे (णिसिरितु गणं वीरो गंतृण य परगणं तु सो ताहे)। कुणति दढावसायो भत्तपरिण्णं परिणयो य ॥४॥ किं कारण अबकमणं राण हंसबोकिलताणं? अम्भूजयम्मि मरणे कालाणिया ना(कालनिउत्ता)णवाघातो॥५॥ सगणे आणाहाणी बालाणेया झा(कालनिउत्ता)णवाघातो॥५॥ सगणे आणाहाणी अप्पत्तिय होति एवमादीहिं। परगणे गरुकलवासो अप्पत्तियवजितो होति - ॥६॥ उवगरणगणणिमित्तं तुयुग्गहो दिस्स वावि गणभेदो।बालादी थेराण व उचियाकरणम्मि बाघातो॥आसिणेहो पेलवे होती, णिग्गए उभयस्सवि। आहच वावि वाघाए, णो से होह विउम्भभो ॥८॥ दबसिती भावसिती दष्यसिती होइ दारुणिस्सेणी। भावसिति संजमो जातीय विभंगा इमे होति ॥९॥ संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठितीविससाणं। उवरिष्ठापरकमणं भावसिती केवलं जाव ॥३४०॥ भावसितीअहिगारो विसुद्धभावेण तत्य ठातव्यं । ण हु उड्ढगमणकजे हेविल्लुपदं पसंसति ॥१॥ सलेहणा उ तिविहा जहण्ण मझा तहेव उकोसा। छम्मासा बरिस वा बारस परिसा जहाकमसो ॥२॥ चिट्ठतु जहण्ण मज्मा उकोसं तत्य ताव वोच्छामि । जं संलिहिऊण मुणी साहंती अप्पणो अ१॥३॥ चत्तारि विचित्ताई विगतीणिजहियाई चत्तारि। दोसु चउत्थायाम अविगिट्ठ विगिट्ठ कोडेकं ॥४॥ संवच्छराई चउरो तवं विचित्तं चउत्थमादीयं । कालण सव्वगुणितं पारेती उम्गमविसुदं ॥५॥ पुणरवि चउरण्णा तु विचित्त काऊण विगतिवर्ज तु। पारेति सो महप्पा णिद्धं पणियं च बजेइ ॥६॥ अण्णा दोषिण समाओ चउत्य काऊण पारे आयाम। जीएणं तु तयो अण्णे - (२५४) १०१६ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कसम दुहा काउं ॥७॥ तत्येकं छम्मासं चतुत्य छटुं च काउं पारेति। आयामेणं पियमा वितिए छम्मासिएँ विगिटुं ॥८॥ अट्ठम दसम दुवालस काउं पारे तमेव आयामं । अणेकहायणं तू कोडीसहितं तु काऊणं ॥९॥ आयामचउत्यादी काऊण अपारिए पुणो अण्णं । जं कुणयायामादी तं भण्णति कोडिसहितं तु ॥३५०॥ आयंबिल उसिणोएण पारें हार्व| तो आणुपवीए। जह दीवतेत्तवत्तीखओ समं तह सरीरायुं ॥१॥ वारसमम्मि य वरिसे जे मासा उवरिमा उ चत्तारि। पारणए तेसिं तृ एकंतरत इमं धारे॥२॥ तेतस्स उ गंडसं णीसहूं जाव खेलसंवुत्तो। तो णिसिरे खेलमत्ते(ले)किं कारण ? गहलधरणं तु ॥३॥ लुक्खत्ता मुहर्त मा हुखुहेजत्ति तेण धारेइ । मा हणमोकारस्सा अपचलो सोरहोवाहि ॥४॥ उकोसिया तु एसा संलेहा मजिसमा जहण्णा य। संवच्छर छम्मासा एमेव य मासपक्खेहिं ॥५॥ एतो एगतरेणं संलेहेणं खवेत्तु अप्पाणं । कुजा भत्तपरिणं इंगिणि पाओवगमणं च ॥६॥ अग्गीयसगासम्मी भत्तपरिण्णं तु जो करेजाहि। चउगुरुगा तस्स मवे किं कारण? जेणिमे दोसा ॥७॥णासेई अगीयत्यो चाउरंग सबलोगसारंग। णटुम्मि य चउरंगे ण सुलभं होति चउरंग ॥८॥ किं पुण तं चउरंग जं णटुं दुलहं पुणो होति । माणुस्सं धम्मसुती सदा तह संजमे विरियं ॥९॥ किह णासेति अगीतो पढमबितिएहि अदिओ सो उ। ओभासे कालियाए तो निम्मोत्ति छड्डेजा ॥३६०॥ अंतो वा बाहिं वा दिया व रातो व सो विचित्तोतु। अदुइट्टवसट्टो पडिगमणादीणि कुजाहि ॥१॥ मरिऊण अशाणा गच्छेखर तिरिय वणसुरेसं वा। संभरिऊण य वेरं पडिणीयनं करेजाहि ॥२॥ अहवावि सबरीए मोयं देजाहि जायमाणस्स। सो डंडियादि होज्जा रुट्ठो साहे णिवाईणं ॥३॥ कुजा कुलाविपत्यार सो या रुट्ठो तु गच्छ मिच्छत्तं। तप्पचयं तु दीहं भमेज संसारकतारं ॥४॥सो विट्ठो र विगिंचिंतो संविग्गेहिं तु अण्णसाहूहिं। आसासियमणुसवो मरणजद पुणोषि पडिवण्णो ॥५॥ एए अण्णे य बहू तहियं दोसा सपचवाया य। एएहिं कारणेहि अम्गीय ण कप्पति परिण्णा ॥६॥ तम्हा पंच व छस्सत्त वावि जोयणसते समहिए वा। गीयस्थपायमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो ॥७॥ एक व दो व तिथि व उकोसं पारसेव वासाई। गीयत्थपायमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो ॥८॥ गीतत्यदुत्लभ खलु पहुच कालं तु मग्गणा एसा। ते खलु गवेसमाणे खेले काले य परिमाणं ॥९॥ तेण य गीयत्येणं पवयणगहियत्थसासारेणं । णिज्जवएण समाही कायबा उत्तिमट्ठम्मि ॥३७०॥ एवमसंविम्गेऽची पहिवजंतस्स होति पाउगुरुगा। किं कारणं तु? तहियं जम्हा दोसा हवंति इमे ॥१॥णासेति असंविग्गो चउरंग सच्चलोयसारंग। णझुम्मि य चउरंगे ण हु सुलह होति चाउरंग ॥२॥ आहाकम्मिय पाणय पुष्फा सीया य बहुजणे णायं । सेजा संथारोऽविय उवहीविय होति अविसुदो ॥३॥ एते अण्णे य तहिं बहवे दोसा सपञ्चवाया य। एतेण कारणेणं असंविग्ग ण फापति परिण्णा ॥४॥ तम्हा पंच ष छस्सत्त वावि जोयणसते समहिए वा। संविग्गपादमूलं परिमम्गेजा अपरितंतो ॥५॥ एक व दो व तिण्णि व उकोसं बारसेव वासाई । संविगपादमूल परिमग्गेजा अपरितंतो॥६॥ संविग्गदुहहह खलु कालं तु पहुच मग्गणा एसा। ने खलु गयेसमाणे खेत्ते काले य परिमाणं ॥७॥ तेण य संविरोणं पक्षणगहियत्यसपसारेणं। णिज्जवगेण समाही कातका उत्तिमट्ठम्मि ॥८॥ एगम्मि उ णिज्जवए विराहणा होति कजहाणी या सो सहाविय चत्ता पावयणं चेव उड्डाहो ॥९॥ तस्सट्ठगतोभासण सेहादिअदाणे सो य परिचनो। दातुं व अदाउँ वा हवंति सेहावि णिहम्मा ॥३८॥ कूवह अदिज्जमाणे मारेति बलत्ति पवयणं चत्तं । सेहा य ज पडिगया जणे अवण्णं पयासंति ॥१॥ सयमेवाभोएतुं अतिसेसि णिमित्तियो व आयरिओ। देवयणिवे(देण्याइब)यणेण य जहणगरे कंधणपुरम्मि ॥२॥ कंधणपुर गुरुसण्णा देवयरुयणा य पुच्छ कहणा य। पारणग खीर बहिरं आमंतण संघणासणया ॥३॥ अहवापि सो व्य परतो पारग मिच्छत्त पारए गुरुगा। असती खेमसुभिक्खे णिव्याघाते ण पडिवत्ती ॥४॥ सतं चैव चिरावासो, वासावासे तवस्सिणं । तेणं तस्स विसेसेणं, वासासु पडिवजणं ॥५॥ असियोमादी एसुनु पडिबजते इमे भवे दोसा। संजमआयविराहण आणाईया य दोसा उ ॥६॥ असिवादीहिं वहता तं उवगरणं व संजता पत्ता। उवहिं विणा य छड्रडणे चनो सो पश्यण देव | ॥७॥ एगो संथारगतो बितियो सलेहें ततिय पडिसेहो। अपहुवंत समाही तस्स व तेसि व असमाही ॥८॥ हविज जदि वाघातो. वितियं तत्थ ठायए । चिलिमिलि अन्तरे काउं, बहिं बंदावए जणं ॥९॥ अणपुच्छाएं गणस्सा पडिच्छए तं जती गुरू गुरुगा। चत्तारितु विष्णेया गच्छमणिच्छतें जं पाये ॥३९०॥ पाणगादीणि जोग्गाणि, जाणि तम्स समाहिए। अलंभे तस्स जा हाणी, परिकेसो य जायणे ॥१॥ असंघरं अजोग्गो वा, जोग्गोही न जड़ भवे। एसणादिपरिकेसो, जाय तस्स विराहणा ॥२॥ अपरिच्छणम्मि गुरुगा दोहवि अण्णोष्णगं जहाकमसो। होति विराहण बिहा एको एको वजं पावे ॥३॥ तम्हा परिच्छणा खलु दो भाव यहोति दोहपि ॥४॥ मादणपयकढियादी दो आणेह मेत्ति तो उदिते। यदि उवहसंति ते तू अहो इमो विगयगेहित्ति ॥५॥ किह मोच्छिात्ति भत्तं ? तेसेयं वायो परिच्छा उ। मावे कसाइजंती तेसि सगासे ण पडिवजे ॥६॥ अह पुण विरुवरूवे आणीएं दुगुंछए भणंतऽणं । आणेमोत्ति ववसिए पडिक्जति तेसिं सो पासे ॥आ एवंमासी ते (ता सीते) तू परिच्छए कामाक्यो २०१७ जीतकल्पभाय - मुनि दीपरत्नसागर Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहिणा। तेवि य तं तु परिच्छे दुविहपरिच्छाएं इणमो तु ॥८॥ कलमोयणो य पयसा अज्णं व सभावअणुमतं तस्स। उवणीयं जो कुछइ दब्बपरिच्छाएं सो सुदो ॥९॥ भावे पुण, पुच्छिजइ किं सलेहो कतोत्ति ण कयोति । इति उदिए सो ताहे इंतृणं अंगुलिं दाए॥४००॥ पेच्छह ता एवं किं कतो ग कतोत्ति एवमुदितम्मि । भणति गुरू ताण तयो एवं चिय ते ण सलीढं ॥१॥ण हु ते दव्यसंलेहं. पुच्छे पासामि ते किस ! कीस ते अंगुली भग्गा?, मावं संलिहमाउर ! ॥२॥ भावो चिय एत्यं तृ संलिहियग्बो सदा पयत्तेणं । तेणाय? साहे दिटुंतोऽमचकोंकणए ॥३॥रण्णा कोंकणगामच्चा, दोऽवि णिविसया कता। दोदिए कजियं छोदूं, कोंकणो तक्खणा गतो ॥४॥ भणिजोबइलाए काए, अमचो जा भरेइ तु। ताब पुण्णं तु पंचाहं, जेलिए णिहणं गतो ॥५॥ एवं जेहिं तु संलीढो, मावो जेते तू सागा । असलीदे ण साहेन्ति, अमबो इव ते खलु ॥६॥ईदियाणि कसाए य, गारखे य किसे कुण। ण चेयं ते पसंसामो, किसं साह ! सरीरगं ॥ ७॥ एवं परिच्छिऊणं जदि सुद्धो ताहे तं पडिच्छति। ताहेय अत्तसोहि करेति विहिणा इमेणं तु ॥८॥ आयरियपादमूलं गंतृर्ण सति परकमे ताहे। सवेण अत्तसोही परसक्खीयं तु कायथा ॥९॥जह सुकुसलोवि केजो अण्णस्स कहेति अप्पणो वाही। वेजस्स व सो सोतुं तो परिकम्म समारमा ॥ ४१०॥ जाणतेणवि एवं पायच्छिन्नविहिमप्पणा णिउण। तहवि य पागडतरयं आलोएतवयं होति ॥१॥ छत्तीसगुणसमण्णागएण तेणवि अवस्स काया। आलोयण निंदण गरहणा यण पुणो य चितियंति ॥२॥ किं कारणमालोयण एव पयत्तेण होति दायमा । भण्णइ सुणसू इणमो आलोयंतस्स जे उ गुणा ॥३॥ आयार विणयगुण कप दीपणा अत्तसोहि उजुभावो। अजव महब लाघव तुट्ठी पल्हायजणणं च ॥४॥ पावजादी आलोयणा तु तिहं चतुक्रिय विसोही। जह अप्पण्णो तह परे कायका उत्तिमहम्मि ॥५॥ तिण्हंतीणाणावी शादि चउकर्ग मुणेयम्। जो अतियारो तेमू कयों आलोएति तं साधं ॥ ६॥णाणे वितहपरूवण जं वा आसेवितं तदवाए। चेयणमषेयर्ण वा दवे खेत्तादिसु इमं तु ॥ ७॥ णाणणिमितं अखाणमेति ओमेव अच्छति नदट्ठा। णाणं च आगमेस्सा कुणती परिकम्मर्ण देहे ॥८॥ पडिसेवति विगईओ मेहाव व एसती पियति। वायंतस्स व किरिया कया तु पणगाविहाणीए ॥९॥ एमेष दसणम्मिवि सरहणा णवरि तत्य णाणतं । एसणइत्थीदोसे पयंति परणे सिया सेवा ॥ ४२०॥ अहवा तिग साबण दामादी चउकमाहब(क)। आसेवियं णिरालंबजओ आलोयए तेतु ॥१॥ पडिसेवणातियारा जदि वीसरिया फहिचि होजाहि । तेसु कह वहियाचं सादरणम्मि समणेणं ? ॥२॥ जे मे जाणंति जिणा अपराहे जेसु जेसु ठाणेसु। तेज आलोएउ उव. हितो सत्रभावेणं ॥३॥ एवं आलोएंतो विसुदभावपरिणामसंजुत्तो। आराहओ तहवि सो गारवपलिउंचणारहितो॥४॥ ठाणं पुण केरिसयं होति पसत्यं तु तस्स जं जोग ? । भण्णति जस्थ ण होजा माणस्स उ तस्स वाघाओ ॥५॥ गंधानहजड्डऽस्सचकजंतऽम्गिकम्मपुरुसे याणान्तकरयगदवडडाम्बिल पाडाहय रायपह॥६॥ चोरगकाहगकातालकरकए पुष्फ वियडे णागघरे पामणिए य ॥७॥पदमबितिएस कप्पे उद्देसेस उवस्सया जेतु। विहिसुलेय णिसिद्धा तधिवरीए भवे सिजा ॥८॥ उज्जाणे तरुणरूबरख). मूले सुण्णघर अणिसह हरिय मग्गे य। एवंविहे ण ठाया होज समाहीय वाघाओ॥९॥ इंदियपडिसंचारो मणसंखोभकरणं जहि णस्थि। पाउस्सालाई दुखे अणुण्णवेऊण ठायंति ॥४३०॥ पाणगजोम्गाहारे ठवेंति से तत्व जत्थ ण उवेन्ति। अप्परिणया व सो वा अप्पञ्चय गहिरक्खट्ठा ॥१॥ मुत्तभोगी पुरा जो तु, गीयत्योविय भावितो । संसाऽहारधम्मे, सोवि सिप तु सम्भती ॥२॥ पडिलोम अणुलोमा पा, चिसया जत्य दूरतो। ठावित्ता तत्व से णिचं, कहणा जाणगस्सवि ॥३॥ पासत्योसण्णकुसीलठाणपरिणजिया उणिजवगा। पियधम्मऽवजमीरू गुणसंपण्णा अपरितंता ॥४॥ जो जारिसतो कालो भरहेरवएसु होति वासेसु । ते वारिसया ताया अहयालीसा तु णिजयगा ॥५॥ उगल दार संचार का वादी य अम्गदारम्मि। भत्ते पाण वियारे कहग दिसा जे समत्या य॥६॥मालससु एतेसु. एकेके चउरो मवे। दिसि पाउसु पुष्य एकेके, अत्यालीसं मति तु ॥७॥एवं खलु उक्कोसा परिहार्यती हर्वति दो बेय । दो गीय किं णिमित्तं ? असुण्णकरणं जहण्यणं ॥८॥ तस्स य चरिमाहारो बडो दायों तथळेबद्वारा सबस्स परिमकाले अनीय तह समुजला ॥९॥गर विगइ सत्त ओदण अट्ठारस पंजणुषपाच । अणुपुष्विविहारीणं समाहिकामाण उपहर ॥४४०॥ कालसभाषाणुमतो पुनमुसिओ सुबओवाहो पा। मोसिमति सोविवहा जयणाय चउबिहाहारे॥१॥ तन्हाळेदम्मि कतेण तस्स तहितं पपत्तए भावो। अब कहिचुप्पजति तइति वियत्तेइ एवं तु ॥२॥किपतंगोषमुत्तं मे, परिणामामुथि सुपि । विद्वसारो सुई झाइ, बोयणेसेव सीययो॥३॥ परिमं च एस मुंजति सद्धाजणणं च होति उमएवि । संजयगिहिया वा तो देति इमीयतु बिहीय ॥४॥ ति(विमोसिरिही सो वा उद्योसगाई दवाई। मम्गेत्ता जयणाए परिमाहारं पदसेति ॥५॥ पासित्तु ताणि कोयी तीरप्पत्तस्स किं ममेतेहि ।। रामपुप्पत्तो संवेगपरायनो होति ॥६॥सई मोचा कोई चिशीकारं इमेण कि मे?त्ति । वेरम्ममणुप्पत्तो संवेगपरायणो होति ॥ ७॥ सर्व मोचा कोई मनुन्नस्सपरिणतो हवेजाहि। तपऽनुपंचतो देसं सवं परोहीया ॥ ८॥ विगयीकयानुषधे आहार:१०१८ जीनकम्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tणुघणाएँ वोच्छेदो। परिहायमाणदये गुणवड्ढि समाहि अणुकंपा ॥९॥ दवियपरीणामं ता हावेति दिने विणे तु जा तिणि । बिन्ति ण लभति उ दुलभे सुलभम्मिवि होतिमा जयणा | ॥४५०॥ आहारे ताव छिंदाहि गेहिं तो गं वइस्ससि। मुर्तणहु पुर्व ते तीरपत्तो तमिच्छसि ॥१॥ बटुंति अपरितंता दिया परायो सबपरिकम्मं । पडियरगा मुणिवरमा कम्मरय णिजरेमाणा ॥२॥ जो जत्थ होति कुसलो सो तु ण हावेहत सह बलम्मि । उज्जुत्ता सति जोगे तस्सवि दीवेति तं सड्ढे ॥३॥ देहविजओगो खिप्पं यहोज आहवावि कालकरणेणं । दोण्हपि णिजरा बहमाणो गच्छो उ एयट्ठा ॥४॥ कम्ममसंखेजमव खवेड अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्मिवि जोगे सज्झायम्मी विसेसेणं ॥५॥ कम्मकाउस्सग्गे विसेसेच ॥६॥ कम्मवेयावये विसेसेणं ॥७॥ कम्म० विसेसतो उत्तिमहम्मि ॥८॥ संथारो उत्तिमढे भूमिसिलाफलगमादिणाया। संचारपट्टमादी दुगचीरा ऊपर वापि ॥९॥ सहषि असंथरमाणे कुसमावी तिष्णि अमुसिरतणाति। तेसऽसति असंथरणे व होज सुसिरावि तो पच्छा ॥४६०॥ तहवि असंपर कोतव पावारग मवय तूलि भूमीए । एमेव अणहियासे संथारगमादि पाके ॥१॥ पडिलेहण संथारं पाणग उव्वत्तणादि णिग्गमणं । सयमेव करेति सह असहस्स करेंति अण्णे उ॥२॥ कायोपचितो बलवं णिक्रमण पवेसणं च सो कुणति। तहषिय अविसहमाण संथारगतं तु संधारे ॥३॥ संथारो तस्स मउतो समाहिहेउं तु होति कायो। तहविय अविसहमाणे समाविहे उदाहरणं ॥४॥ धीरपुरिसपण्णते सप्पुरिसणिसे . विए परमरम्मे । धण्णा सिलातलतले णिरावयक्ता णिवजति ॥५॥ जदि ताव सावयाकुलगिरिकंदरविसमकडगबुग्गेसु । साहेति उत्तिमह चितिपणियसहायगा धीरा ॥६॥ किं पुण अणगारसहायगेण अण्णोष्णसंगहबलेणं । परलोतिएण सका साहेउं अप्पणो अहूं?॥७॥ जिणवयणमप्पमेयं णिउणं कण्णाहुई सुर्णेतेणं । सकासाहुमो संसारमहोदस्तिरितुं ॥८॥ सो सबवाए साण्णू सव्यकम्मभूमीसु । सम्यगुरु सबमाहिया सब्बे मेम्मि अहिसित्ता ॥९॥ सबाहिवि लखीहिं सब्वेवि परीसहे पराहत्ता । सोविय तित्वगरा पायोवगमेण सिदि गया ॥४७०॥ अक्सेसा अणगारा तीयपहुप्पण्णऽणागया सव्ये। कई पायोवगया पथक्वाचिंगिणी केयी॥१॥ सबाओ अजाओ सबेपि य पढमसंघयणवजा। सवे य देसविरया पचक्खाणेण तु मरति ॥२॥सवमुहप्पभवाओ जीवियसाराओ सबजणयायो। आहाराओ रवणं ण विजए उत्तिम अण्णं ॥३॥ सेलेसि सिख विगह केवलिजोपायए पमोत्तर्ण। सखे सव्यावस्थं आहारे होति आयत्ता ॥४॥ तं तारिसर्य स्वर्ण सारं जं सबलोगरयणाणं। सब्वं परिचइत्ता पाओगया पविहरंति ॥५॥ एवं पाओवगर्म णिपटिकम्मं जिणेहि पणतं। आयपरिकम कुणति ॥ ६॥ कोई परीसहेहि वाउलिओ अयणहिजो बावि। ओमासेज कयाई पढमं वितियं च आसज ॥७॥ गीयत्थमगीयत्यं सारे सोहे) तह Mविबोहणं काउं। तो पडिवोहय (ख)टे पढमेऽपगए सिया वितिए॥८॥इन्दिर परीसहवम् जोहेबामणेण कारण। तो मरणदेसयाले कवयम्भोत आहारो॥९॥णायं संग महसिलरहमुसलवण्णणा तेसिं। असुरसुरिन्दावरणं घेडग एगो गह सरस्स ॥४८०॥ महसिलकंटे तहियं वटुंते कृणिजो तु रहिएण। हाखमावलमोणं पहतो पट्टम्मि कणएणं॥१॥ उफिडितुसो कणओ कवयावरणम्मि तो ततो पडितो। तो तस्स कोणिएणं जिपणं सीसं खुरप्पेणं ॥२॥ दिद्रुतस्सोषणओ कायस्थाणी बहतहाऽधारो। सत्तू परीसहा खलु आराहण रजयाणीया ॥३॥जहवाऽऽउंटियपाए पार्य काऊण हस्विणो परिसो। आवहति तह परिणी आहारेणं तुमाणवरं ॥४॥ उवगरणेहि विणो जहवा परिसो ण साए कर्जा एवा. हार परिण्णी दिटुंता तस्थिमे होति ॥५॥ लवए पषए जोहे, संगामे पस्थिए इय। आतुरे सिक्खए पेच, दिद्वैत समाहिकामे तो॥ ६॥दसेणं णावाए आज पहोवाहणोसहेहि। उप. गरणेचि विणा जाहसंखमसाहगा सके॥७॥ एवाऽजारेण विणा समाहिकामो ण साहएं समाहिं। तमहा समाहिडेउं वायो तस्स आहारो॥८॥चितिसंघयणपिजतो असमत्यो परीसहेहियासेउं। फिहति चंदगविज्झा तेण विणा कषयभूएणं ॥९॥ सरीरमुज्झियं जेल, को संगो तस्स मोयणे । समाहिसंघणाहेउं, विजए सो सि अंतिए ॥४९॥ सुदं एसित्तु ठाति, हाणिओ या दिणे दिणे। पृथुत्साए उ जयणाए, तं तु गोवेन्ति अण्णहिं ॥१॥ णिवाघाएणेवं कालगविगिंचना विहीपुर्ण । काता चिंधकरणं अचिंधकरणे मवे गुरुगा ॥२॥ उवगरण सरीरम्मि य अचिंधकरणम्मि डंडिओ तहियं । मम्गणगवेसणाए गामार्ण घायणं कुणति ॥३॥ण पगासेज लहुसं परीसहउदएण होज वाघाओ। उप्पणे पापाए जोगीय. स्थाण त उवाओ॥४॥को गीयाण उवाओ? संलगो ठविजए अन्यो। उच्छहए जो बन्यो इयरे उ गिलाणपरिकम्मं ॥५॥ बसमो वा ठाविजाति अण्णस्सऽसतीम सम्मि संधारे। कालगतोत्तिय कार्ड संझाकालम्मि णीति ॥६॥ एवं तण्णायम्मी डंडियमादीहिं होति जयचेसा। सतगमण पेस या लिंसण पाउरो अणुग्याता ॥७॥ सपरकमे य मणिय लियापार्य तहेब वाघायं। णिवाघाइम इयरं एत्तो अपरकम वोच्छं ॥८॥ अपरकमों बलहीणो अच्चगणम जाति कुवा गच्छम्मि। सपरकमोबसेस मिबापाती गतो एसो ॥९॥ वाघाति आणुपुषी रोगाऽऽयंकेहि गवरि अभिभूओ। बालमरणंपिय सिया मरेज उ इमेहि अहिं॥५०० ॥ बालासमझक्सिगयक्सियिगाऽऽयंकसग्निकोसलए। ऊसासगबरजूडोमाऽसिपाहि१०१९ जीतकरूपभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पायसंबवे ॥१॥ वालेण गोणसाइन लामो होजाहि सहिउमारखो। कणोडणासिगादी विभंगिया अच्छभलेण ॥२॥ ल(य)यो व विसेणं तू विमूपिया वा सि उद्विता होजा। आयको वा कोयी खयमावी उहिओ होजा॥३॥ तिणि तु वारा किरिया तस्स कया णविय उक्समो जातो। जह ओमे कोसलेणं सण्णीणं पंच उ सयाई ॥४॥ सण्णीणं रुदाई अयं भत्तं तु तुम्म बाहामि । लामंतरं च गाउं लुदेणं विकिय घणं ॥५॥ तो गाउ वित्तिछेदं उसासणिरोहमादिणि कताणि। अणहीयासन्तेहिं सुहवेदण ओमि साहुहिं ॥६॥ एवं ता कोसलए अण्णम्मिवि ओमों होज एमेष । सहसा छिण्णदाणे असिवगहिया व कुजाहि ।। आ अभिघाओ या विजू गिरिभित्ती कोणगादिसुं होजा। संबद्धहत्यपादादयो व वादेण होजाहि ॥८॥ एतेहि कारणेहि वाघाइम मरण होति णायचं। परिकम्ममकाऊणं पचवाई ततो भत्तं ॥९॥ अह पुण जदि होजाही पंडियमरणं तु काउ असमत्थो। ऊसास गदपढें रजुग्गहर्ण व कुजाहि ॥५१०॥ अणुपुधिविहारेणं उस्सपाणिवाइयाण जा सोही। विहरंतएण सोही मणिता आयारलोवा या ॥१॥ एसो पश्चरखाणे आय परे भणिय णिज्जवाण विहीं । इंगिणिपायोवगमे वोच्छामी आयणिज्जवणं ॥२॥ पडजादी काउंणेत जाव होयऽबोच्छित्ती। पंच तुलेतूण य सो इंगिणिमरणं ववसिओ उ ॥३॥ आयपरपरिकम्म भत्तपरिणाएँ दो अगुण्णाता। परिवजिया य ईगिणि चउबिहाहारविरती य॥४॥ठाण णिसीय तुयट्टण इसरियाई जहासमाहीए । सयमेव य सो कुणती उक्सग्गपरीसहहियासे ॥५॥ संघयणधितीजुत्तो व दस पा सुतेण अंगा वा इंगिणिमरणं णियमा पडिबजा एरिसो साहु॥६॥ पहजादी काउं यई जाव होयऽवोच्छिनी। पंच तुलेतूण य सो पायोवगम परिणतोय॥७॥तं स दुविहं णाया णीहारि व तह अणीहारिं। बहिता गामावीणं गिरिकंदरमादि णीहारिं ॥८॥ वइयादिसु जं अंतो उडेउमणा य ठाय अणीहारिं। कम्हा पादक्गमणं? जं उपमा पादये। त्यं ॥९॥ सम विसमम्मि व पडिओ अच्छति जह पादवो व णिकंपो। णिचलणिप्पडिकम्मो णिक्खिवती जं जहि अंग ॥५२०॥ तं ठित होति तह थिय णवरं चलणं परप्पयोगातो। वायादीहितकरस व पडिणीयादीहि तह तस्स ॥१॥ तसपाणबीयरहिते विच्छिष्णवियार पंडिल विसुदे। णिहोसे निहोसा उवैति अम्भुजयं मरणं ॥२॥ पुषभवियबेरेणं देवो साहराइ कोति पाताले। मा सो परिमसरीरो ण वेदणं किंचि पाविहिती ॥३॥ उप्पण्णे उवसम्गे दिल्वे माणुस्सए तिरिक्खे य। सवे पराजिणित्ता पायोवगया पविहरंति ॥ ४॥ देवणरतुगतिग ऽस्से केयी पक्खेवगं सिया कुजा। वोसट्टचत्तदेहो अहाउयं कोइ पालिजा ॥५॥ अणुलोमा पडिलोमा दुगंतु उभयसहिया तिगं होति। अहवा चित्तमचित्तं दुर्ग तिगी मीसगसमग्गं S ६॥ पुढविदगअगणिमारुयवणस्सतितसेसु कोइ साहरइ । बोसट्ठचत्तदेहो अहाउयं कोइ पालेज्जा ॥ ७॥ चितिबलजुत्तेहि तहि उवसम्गा जह सदा उ धीरेहिं । णिदरिसणा केइ तहिं वोच्छामि इमे समासेणं ॥८॥ मुणिसुव्वयंतेवासी खंदगमणगार कुंभकारकडं। देवी पुरंदरजसा डंडगि पालक मनो य॥९॥ पंचसया जंतेणं रुटेण पुरोहिएण मलिया उ। रागहो। सतुलम् समकरणं चिंतयंतेहिं ॥५३० ॥ जंतेहि करकएहि व सत्येहि व सावएहि विविहेहिं । देहे विदंसन्ते ण य ते माणातो फिटुंति ॥१॥ पडिणीययाएं कोई अम्गि सि पदेज असुभपरिणामो। पादोदगते संते जह चाणकस्स वा करिसे ॥२॥ पडिणीययाएँ कोई चम्मं से खीलएहि विहणित्ता । महुघयमक्खियदेहं पिचीलियाणं तु दिजाहि ॥३॥ जह सो चिलायपुत्तो वोसट्टणिसट्ठचत्तदेहो उ। सोणियगंधेण पिवीलियाहि जह चालणि कतो॥४॥ मोगलसेलसिहरे जह सो कालासवेसिओ भगवं खइओ विउधिऊणं देवेण सियालरूवेणं S५॥जह सो वंसिपदेसी वोसट्टणिसट्ठचत्तदेहो उ । वंसीपत्तेहि विणिग्गएहिं आगासमुज्झित्तो॥६॥ जहऽवंतीसुकुमालो बोसट्टणिसट्ठचत्तदेहागो। धीरो सपेलियाए सिवाएं खाओ तिरतेणं ॥७॥जह ते गोहाणे वोसट्ठणिसद्चत्तवेहागा। उदगेऽणुवुम्भमाणा बियरम्मी सकरे लग्गा ॥८॥ जह सा बत्तीसघडा वोसट्ठणिसढचत्तदेहागा। धीरा पाएण उ दीविएण डिलयम्मि ओलाया ॥९॥ बावीस आणुपुष्वी तिरिक्ष मणुयाय भसणत्याए। विसयाणुकंपरक्खण करेज देवा व मणुया वा ॥५४०॥ जहणाम असी कोसा अण्णो कोसा असीवि खल अण्णो। इय मे अण्णो देहो अण्णो जीचोति मण्णंति ॥१॥ एगंतणिजरा से दुविहा आराहणा धुवा तस्स। अंतकिरियं च साह करेज देवोववत्ती वा ॥२॥ एवं चितिषलजुत्तो अहियासेति । एत्तो पुण अणुलाम जह सहतात तहा वच्छि॥३॥ सक्कार सम्माण व्हाणादीयाणि तत्थ कुजाहि। वोसट्ठचत्तदेहो अहाउयं कोड पालेजा ॥४॥ पत्रभवियपेमेणं देवो देवकुरुउत्तरकुरासु। कोई हु साहरेजा सचमुहा जत्थ अणुभावा ।। ५॥ पुत्रमवियपेमेणं देवो साहरति णागभवणम्मि। जहियं इट्ठा कंता सबसुहा होति अणुभावा ॥६॥ बत्तीसलक्खणधरो पायोवगयो य पागडसरीरो। पुरिसवेसिणि कण्णा रायविंदिण्णा तु-गिण्हेजा ॥ ७॥ मजण गंध पुष्फोक्यार परियारणं च कुजाहि । सा पवर रायकण्णा इमेहि जुत्ता गुणगणेहि ॥८॥णवयंगसोययोहियअद्वारसरतिविसेसकसला तु। चोयट्ठीमहिलगुणा णिउणा य विसत्तरिकलाहिं ॥९॥ दो सोय णेत्तमादिग णवंगसोया हवन्ति एतेस। देसीभासट्टारस स्तीविसेसा उ उगुवीसं॥५५०॥ कोसल्लगे व वीसइविहं तु एवमादिएहि तु गुणेहिं । जुत्ताए रूवजोधणविलासलायण्णकलियाए॥१॥ चउकण्णम्मि रहरसे राएणं रायदिण्णपसरा(पासा)ए। तिमिमगरेहि व उदही ण खोभितो जो मणो मुणिणो ॥२॥ जाहे पराइया सा ण समत्या सीलखंडणं काउं। णेऊण सेलसिहरं तो सिलमुवरि मुयति तस्स ॥३॥ एगंतणिजरा (२५५) १०२० जीतकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से दुविहा आराहणा धुवा तस्स। अंतकिरिया व साह करेज देवोववत्तिं वा ॥४॥एमादीहिं बहुविहं दुविहं तिबिहेहि ते महाभागा। घोरेहिं उवसम्गेहिं चालिजंतावि णिश्यया ॥५॥ पुवावरदाहिणउत्तरेहि बाएहि आवर्यतेहिं । जह णवि कंपड़ मेरू तह ते माणाओं न चलिंति ॥६॥ पढमम्मिय संघयणे बईता सेलकुदरसामाणा। तेसिपिय वोच्छेदो चाउदसपुत्रीण वोच्छेदे ॥७॥ एयं पाओवगमं णिप्पडिकम्मं जिणेहिं पण्णत्तं। तित्ययरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुदारं ॥८॥ एवं जहाणुरूवा संपतिकालम्मि अत्थि जह सोही। विजंति य सो. हिकरा तं सवेयं समक्खायं ॥९॥ एसाऽऽगमववहारो जहोवएसं जहकम कहिओ। एत्तो सुतववहारं सुण वच्छ ! जहाणुपुछीए ॥५६०॥ णिजूढं चोइसधिएण जं भरबाहुणा सुत्त। पंचविहो ववहारो दुवालसंगस्स णवणीयं ॥१॥ जो सुतमहिजति बहुं सुत्तत्थं च णि उणं ण याणाति। कप्पे ववहारम्मि यण सो पमाणं सुयधराणं ॥२॥ जो सुतमहिजति बहुं सुत्तत्थं च णि उणं वियाणाति। कप्पे ववहारम्मि यसो उ पमाणं सुतघराणं ॥३॥ कप्पस्स य णिजुतिं ववहारस्सेव परमणिउणस्स। जो अत्यओ न जाणति सो ववहारी णऽणुण्णातो॥४॥ कप्पम्स य णिजुनि ववहारस्सेव परमणि उणस्स। जो अत्यतो विजाणति ववहारी सो अणुण्णातो ॥५॥ एसो सुतववहारो जहोवएसं जहकर्म कहितो। आणाए ववहारं सुण बच्छ! जहकर्म वोच्छ॥६॥ समणस्स उत्तिमढे सातुबरणकरणे अभिमुहस्स। दूरत्था जत्थ भवे छत्तीसगुणा उ आयरिया ॥७॥ अपरकमो मि जातो गंतुं जं कारणं तु उप्पण्णं । अट्ठारसमण्णयरे वसणगते इच्छिमो आणं ॥ ८॥ अपरकमो तवस्सी गंतुं ण चतेइ सोहिकरमूलं। सीसं पेसेति तहि जहिच्छ सोहिं तुमसमीवे ॥९॥ सोवि अपरक्कमगती सीस पेसेनि धारणा. कुसलं । णातु नहिं जो जोम्गो इमेण विहिणा परिच्छित्ता ॥५७०॥ अपरक्कमो यसीसं आणापरिणामगं परिच्छेजा। रुक्खे व बीयकाए सुने वाऽमोहऽऽणा(णाऽऽ)धारि॥१॥ वदतु महत महीरुह भणितो कक्खे विलग्गिनु डेवे। अपरिणतो वेति तयो णो वट्टति रुक्ख आरोढुं ॥२॥ किंवा मारेतवो अहतं? तो येह डेव रुक्खातो। अतिपरिणामो भणती इय होतृ अम्हऽवे. सिच्छा ॥३॥ वेनि गुरू अह तं तू अपरिगय अत्थे अ भाससे एवं। कि व मए तं मणितो आम्ह रुक्खें तु सञ्चित्ते? ॥४॥ तवणियमणाणरुक्खं आरुहिउं भवमहण्णवावत्तं । संसारागडमूलं देवेहि मए तुम भणितो ॥५॥ जो पुण परिणामो खलु आरुह भणितो तु सो विचिंतेति। णिच्छंति पावमेते जीवाणं थावराणंपि ॥६॥ किं पुण पंचिंदी] ? न भवियोऽत्य का. रणेण तु । आरुहणववसियं तू वारेति गुरूऽहवा थंभे ॥७॥ एवाऽऽणध वीयाई भणिते पडिसेह अपरिणामो तु। अतिपरिणामो पोट्टल बंधूणं आगतो तत्थ ॥८॥ पञ्चाह गुरु तं तू जाहोदियाऽणेह अंबिलीबीये। ण विरोहसमत्थाई सचित्ताई विभणियाई॥९॥ परिणामगो हु तत्यवि भणती आणेमि केरिसाई तु?। किनियमित्नाई वा ? विरोहमविरोहजोग्गाई? ॥५८०॥ सोचि गुरूहि भणिो ण ताव कर्ज पुणो भणीहामी। हसिओ व मए वाऽसी वीमसत्यं व भणितो सि ॥१॥ पदमक्खरमुरेसं संधी सुत्तऽत्य तदुभयं पुट्ठो। अक्खर वंजणमुद्धं कहेति सच जहाभणितं ॥२॥ एवं परिच्छिऊणं जोग्गं णाऊण पेसवे तं तु। वच्चाहि तस्सगासं सोहि सोऊण आगच्छ ॥३॥ अह सो गता उ तहियं नम्स सगासम्मि सो करे सोहि । गनिगच - ऊबिसुद्धं तिबिहे काले विगडभायो॥४॥ दुविहं तु दप्पकप्पे तिविहं णाणाइणं तु अट्ठाए। दब्बे खेत्ते काले भावे य चउब्विहं एयं ॥५॥ तिविह अतीयकाले पचुप्पण्णे व सेवियं जंतु। सेविसं वा एस्से पागडभावो विगडभावो ॥६॥ किं पुण आलोएती? अतियार, सो इमो य अतियारो। वतछकादीओ खलु णातव्यो आणुपुवीए ॥७॥ वयाडकं कायठकं, अकप्पो श गिहिभायणं । पलियंक णिसेजा य, सिणाणं सोहवजणं ॥८॥ तं पुण होजाऽऽसेविय दप्पेणं अहव होज कप्पण। दप्पेण दसविहन णमो पोष्ठं समासेणं ॥५॥प अकप्पणिरा. बालंब चियत्ते अप्पसत्य वीसत्थे।अपरिच्छ अकडजोगी अणाणुतावी य णीसंको ॥५९०॥ बायामवग्गणादी णिकारण धावणं तु दप्पो उ। कायापरिणतगहणं अकप्पो जंवा अगीनेणं ॥१॥ संसारखड्डपडितो णाणादवलंचितुं समुत्तरह। मोक्खतडं जह पुरिसो बडिबियाणेण विसमाओ॥२॥णाणादीपरिवहढी ण भविस्सनि मे असेवयो बिनियं। नेसि पसंधणद्वय साबणिसेवणा होति ॥३॥ जा पुण णिकारणयो अपसत्थालंबणा य सेवा उ। अमुएणवि आयरियं को दोसो वा णिरालंबं ॥४॥ जं सेविनं नु वितियं गेलण्णादी असंवरनेणं । हट्ठोवि पुणो न चिय थियत्तकिच्चो णिसेवंतो॥५॥ बलवण्णरूवहेतुं फासुयभोईवि होति अपसत्यो। किं पुण जो अविसुद्ध णिसेवए वण्णमादट्ठा? ॥ ६॥ सेवंतो तु अकि लोए लोउनरम्मि य विरुदं। परपक्ख सपक्से वा वीसत्थासेवणमलजे ॥७॥ अपरिच्छितुमायवए णिसेवमाणो उ होइ अपरिच्छो। तिगुणं जोगमकाउं बितियासेवो अकडजोगी ॥८॥ बिनियपदे जोन परं तावेत्ता णाणुतप्पती पच्छा । सो होति अणणुतावी किं पुण दप्पेण सेवित्ता ? ॥९॥करणभएसु तु संका करणे कुछ ण संकर कयाई। इहलोयस्स ण भायइ परलोए बाऽभया एसा ॥६००॥ एसा दप्पियसेवा दसभेय समासतो समक्खाया। एत्तो कप्पियसेवं चउवीसविहा इमाऽऽहंसु ॥१॥दसणणाणचरित्ते तवपवयणसमितिगुनिहेउं वा। साहम्मियवच्छहलेण वावि कुलयो गणस्सेव १०॥२॥ संघस्साऽऽयरियस्स य असहुस्स गिलाणवालवुड्ढस्स। उदयऽग्गिचोरसावयभयकंताराऽऽवतीवसणे २४॥३॥ दसणपभाचगाणं सत्थाणऽद्वाए सेवए जनु। -१०२१ जीतकल्पभायं - मुनि दीपरत्नसागर Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाणे सुत्तत्याणं असंथरासेपने सुबो॥४॥करने एसपदोसा इत्पीडोसा य जत्य खेत्तम्मि । तत्तो विनिक्समंतो जे सेवेऽसंथरे सुद्धो ॥५॥ महावि सर्व काहं कए विगिढेऽविलागतरजाती। अभिवायणा पश्यने विष्णुस्स विडवणा व॥६॥ इयिंग सोहहस्सं सुनिमित्त किरिया उरीयाए। लित्तादि बीय ताया अहवावि इमं तु तइयाए ॥७॥ अज्ञाणक. प्पडणेसी अणे पसिनारिकारणेहितासकियमाई गिर जयणाए पत्य सुखो तु आयाणे बलत्यो पमजमानेहि अण्णाहिं जाइ। पापि तस्स अड्डा ओसह किंची करेजाहि ॥९॥ पंचमिएँ काइमूमादिधमाणे उबारमे किंचि। विगादि मणबगुस्से महकाए लित्तवित्ताबी॥६१०॥ बाछो असिहमुंडो पित्यारिजों जह तु अजवारेहिं। कुलगणसंचे अमिचारुगादि राया कुना ॥१॥ वायरिब असहुजवरा बाले बुढे यजेच तु समाही। जाबितृण देन्ती पणगादीहिंतु जयणाए॥२॥णिपदिक्खियादि असहू बालो वइरोध दिक्खितो को। बुड्ढोषी कजम्मी जह दिक्खितो रक्सियजेहिं ॥३॥ उदयमिगचोरसाक्यमएस यमणि पाण रुक्खे वा । कतारे पलंगादी दशादी जावई चउहा ॥४॥ कोई तु वियरवसणी गोजमादी वावि होज मिक्खंतो। जयणाएँ वियङगहणं गाएजब गीतवसणी उ ॥५॥ एयअन्णयरागाढे सदसणे णाणचरण सालंयो। पडिसेविड कयादी होति पसत्यो पसत्येसु ॥६॥ एसा कप्पियसेवा पउवीसविहा समासतो कहिता। बहुणा उचारणा तू इनमो वोच्छ समासेणं ॥७॥ ठावेत्तु वप्पकप्पे हेवा वपस्स बस पवे ठाये। कप्पाहो बाउबीसाइ तेसिमह अट्ठारस पवा उ ॥८॥ पढमस्स य कजस्सा पढमेण पवेण सेवितं होजा। पढमे सके अम्मितरं तु पढम भये ठाणं ॥९॥ पढमस्स य कजस्सा परमेण पदेण सेवितं होगा। पढमे रुके अमितर तुइय जाब णिसिमत्तं ॥ ६२०॥ पढमस्स यकजस्सा परमेण पवेज सेवियं होजा। वितिए छके अस्मितरं तु पदम भवे ठाणं ॥१॥ पढमस्स यकजस्सा पढमेण पदेन सेवितं होजा। वितिए छके अम्मितरं तु इय जाय तसकार्य ॥२॥ पढमस्स यकजस्सा पदमेण पएल सेवियं होजा । तार छके अभितर तु पदम भये ठाणं ॥३॥ पदमस्सय कमस्सा पढमेण पदेण सेविय होजा। ततिए छके अभितरं तु इय जाव तु विभूसा ॥४॥ पढमममुचते वितियादीए तु जाप बसमं तु । पढमयकाईसु उ पुषो पुणो चारणिजाई ॥५॥ बप्पियसेवाए तू वप्पेण चारियाणि जगुरस। बस अट्ठारसगुणिता आसीयसतं तु माहाणं ॥६॥ एवं बीतिजस्तविकजस्सा गाह हाँति छका सबाजो गाहाको पत्तारि सता तु पत्तीसा ॥७॥पितियस्स यकजस्सा पढमेण पवेण सेवियं होजा। पढमे छके अम्मितरं तु पाम मवे ठाणे ॥८॥ एवं वितियस्साविकजस्सा एयष गाहाओ। वितिनगममिलावेर्ण समाजो माणियबाजो॥९॥ पढमं ठाणं दप्पो वप चिय तस्स वा भवे पटम। पढम छक्क वयाई पाणविवाजो तहिं पढौ ।। ६३०॥ एवं तु मुसाबायो अक्स मेहुण परिग्गहे चेव। पितिछके पुटवादी ततिछक्के होयऽकल्पावी॥१॥ एवं पपयम्मी बप्पेणं चारिया उ अगुस्स। एवमकप्पादीसुवि एक्केक्के होंतिमद्हरस ॥२॥ वितिय कर्ज कम्पो पढमपर्व तस्थ बसणणिमित्त। पढर्म छक्क क्याई तस्यवि पढमं तु पाणवहो ॥३॥ सण अणुम्मुयन्ते पुषकमेणं तु चारणीयाई । अट्ठारस ठाणाई एवं णाणादि एक्फेक्के ॥४॥पउविस अहारसगा एवं एते हवंति कप्पम्मि। दस हॉति अकप्पम्मी सबसमासेण मुण संखं ॥५॥ वप्पणासीयसतं गाहाणं कप्पे हॉति पत्तारि। पत्तीसायातेते छस्सय होती तु वारस य॥६॥ सोतृण तस्स पडिसेवणं तु आलोयणं कमविहिं नु । आगम पुरिसजायं परियाग बलंच खेतं च ॥७॥ अह सो गतो सदेस संतस्सालोइयायं सछ। आयरियाण काडेती परियाग बलं च खेत्तं च ॥८॥ सो ववहारविहिष्णू अणुस(म)जित्ता सुतोवदेसेणं । सीसस्स देह आणं तस्स इमं देह पच्छित्तं ॥९॥ पढमस्स य कजस्सा बसविहमालोयणं णिसामित्ता। णक्खते पीला मे सुक्के पणगं तवं कुणह॥६४०॥ पढमा सुक्के दसमं तवं कुणह॥१॥ पढम० सुकं पक्वं तर्व कुणह॥२॥ पढम० सुर्कवीसं तवं कुणह॥३॥ पढम० पणुषीसत कुणह सुकं ॥४॥ एवं ता उवधाए अणुपाए एत चेव गाहाओ। णवर तू अमिलावो किहे पणगावि वत्तमो ॥५॥० षउमासतवं कुणह सुक्के ॥६॥ पढम० चाउम्मासं कुणह किणे॥७॥ पदम छम्मासतर्व कुणह सुके ॥८॥ पढम छम्मासतवं कुणह किहे ॥९॥ छिंवंतु व तं माणं गच्छंतु व तस्स साहुणो मूलं। अबावारा गच्छे अम्बिविया पा परिबरंतु ॥६५०॥ पणगादि भाणछेदं साइमूल मवे पुणकरणं । पुषमवहाय सर्व पंचाऽऽभवणाउ उवरिं तु ॥१॥लिंगादी जो गच्छे जहण्ण उकोसओ व बोद्धयो। उकोस जहण्णो वा विहरउ सो अम्बिती. ओ उ॥२॥ वितियस्सय कजस्सा ताहिय पाउवीसगं वियाणित्ता। णवकारेणाउत्ता इवन्तु एवं मजासि ॥३॥ एवं गंतूण तहिं जहोवएसेण देहि पच्छित्तं। आणावएज्यहारो मणिए सो धीरपुरिसेहिं॥४॥ एसाऽऽणाववहारो जाहोवएस जहम भणितो। धारणक्वहारं पुण सुण वच्छ ! जहरूमं वोच्छ ॥५॥ उदारणा विहारण संघारण संपहारणा वा धारणक्यहारस्स उणामा एगद्विता एते ॥६॥ पावलेण उवेष व उदियपयधारणा उ उद्धारो। विविहेहि पगारेहिं पारेयऽवं विधारा तु॥७॥ सं एगीभावम्मी 'पी घरणे' ताणि एष भावेणं। पारेयऽस्वपयाणि तु सम्हा संघारणा होति ॥८॥जम्हा उ संपहारेउँ, ववहारं पजूंजती। तम्हा उ कारणे वेण, गावचा संपहारणा ॥९॥ धारणववहारेसो पउंजियचो तु केरिसे पुरिसे। | १०२२ जीतकरूपभाध्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्णइ गुणसंपण्णे जारिसए त सुणेहत्ति ॥६६०॥ पवयणजससि पुरिसे अणुग्गह(हिय)विसारए तवस्सिम्मि । सुस्मृस बहुस्सुयम्मि य विवकपरियागबुद्धिम्मि ॥१॥ एतेसु धीरपुरिसा पुरिसजाएमु किंचि खलिएसु। रहिए विहारहत्ता जहारिहं देन्ति पच्छित्तं ॥२॥ रहिए णाम असन्ते आतिलम्मि ववहारतियगम्मि । ताहे विहारइत्ता वीमसेतूण जे भणियं ॥३॥ पुरिसस्स उ अवराहं विधारइत्ताण जस्स जं मणितं। तं देन्ती पच्छित केणं देन्ती उसे सुणसु ॥४॥ जो धारिओ सुतत्यो अणुओगविही य धीरपुरिसेहिं । अल्लीणपलीणेहिं जतणाजुत्तेहिं दंतेहिं ॥५॥ आलीणा णाणाविसु पइ पइ लीणा उ होन्ति तु पलीणा। कोहादी वा पलयं जेसि गया ते पलीणा तु ॥६॥ जतणाजुत्तो पयत्तव दैतो जो उवरतो तु पावेहिं। अहवादन्तो इंदियदमेण नोइंविएणं च ॥७॥ एरिसया जे पुरिसा अत्यधरा ते भवंति जोग्गा उ। धारणववहारण ववहरि धारणाकुसला ॥८॥आहवा जेणं इया विद्वा, सोही परस्स कीरती। तारिसय व पुणो, उप्पणं कारणं तस्स ॥९॥ सो तम्मि चेव दवे खिसेकाले यकारणे परिसे। वारिसयं जकरेन्तो महु सो आराहओ होति ॥६७०॥ सो तम्मि चेव दजे खित्ते काले य कारणे पुरिसे। तारिसयं चिय भूतो कुतोऽऽराहओ होति ॥१॥ अहवावि इमे अन्णे धारणक्वहारजोग्गयमुर्वेति। घारणववहारेणं जे ववहारं ववहरंति॥२॥ वेयावश्वकरो वा सीसो वा देसहिंडओ वावि। दुम्मेहत्ता ण तर अवधारेउँ बहुं जो तु ॥३॥ जस्स उ उद्धरिऊणं अत्यपयाई तु देति आयरिया। जेहिं करेहि कर्ज ओहारे(आराहिं)न्तो तु सो देसं ॥४॥ धारणवबहारो खलु जहरूमं वणितो समासेणं। जीतेणं ववहारं सुण वच्छ! जहरूमं वोच्छं॥५॥ वत्तणुक्त्तपत्तो बहुसो जासेवितो महाणेणं । एसो उ जीतकप्पो पंचमयो होति ववहारो॥६॥ वत्तो णाम एकसि अणुवत्तो जो पुणो वितियवारे। ततियव्वारपवत्तो परिग्गिहीओ महाणेणं ॥७॥ महुसो बहुस्सुएहिं जो वत्तो ण य णिवास्तिो होति। वत्तणुपवत्तमाणं जीएण कतं हवति एयं ॥८॥जो आगमे य सुत्ते य सुण्णतो आण घारणाए या सो पबहारजीएणं कुणती बताणुवत्तेणं ॥९॥ असुतो असुयत्वकतो जह असुयस्स असुएण ववहारो। असुअत्यविय तह कओ असुतो असुरण ववहारो॥६८०॥ तं वऽणुकनंतो ववहारविहिं पर्युजति जहुतं । जीतेण एस मणितो ववहारो धीरपुरिसेहिं ॥१॥ धीरपुरिसपण्णसो पंचमयो आगमो पसत्थो। पियधम्मऽबजमीरूपरिसज्जाताणचिण्णो य ॥२॥ सो जाह कालावीणं अपडिकंतस्स णिविगायं तु। महणंतफिडियपाणगअसंबरेएवमादीसु ॥३॥ एगिन्दि णन्तबजे घट्टण तावेऽणगाढ गाढे या णिविगतियमादीयं जा आयामन्तमुहवणे ॥४॥ विगलिवर्णतघहणपरियावणगाडगाउदवणे। पुरिमड्डाविकमेण उणेत जाव खमणं तु ॥५॥ पंचिंदिघट्टताषणऽणगाढगाढे तहेव उडवणे। एगासणमायाम खमणं वह पंचकहाणं ॥६॥ एमादीओ एसो णायचो होति जीयववहारो। अणवजविसोहिकरो संविमाऽणगारचिण्णोति ॥७॥ जंजीतं सावजण तेण जीएण होति ववहारो। जे जीयमसाज तेण उ जीएण वबहारो॥८॥केरिस सावजंतू? केरिसर्य वा मवे असावज? केरिसयस्सव दिजति सावज वावि इयरं वा ? ॥९॥ खार पबि(डी) हरमाला पोडेण रिंगणं तु सावज । बसविह पायच्छितं होड असावजजीयं तु ॥६९०॥ ओसणे बहुवोसे णिसंघस पवयणे य णिरवेक्खे। एयारिसमि परिसे बिजति सावज जीयं ॥ संविम्गे पियधम्मे य अप्पमते य यजमीसम्मि। कम्ही पमायखलिए देयमसावज जीयं तु ॥२॥ जं जीयमसोहिकरण तेण जीएण होति ववहारो। जंजीचं सोहिकर तेण उजीएम पवहारो॥३॥ जंजीयमसोहिक पासत्वपमत्तसंजयाचिय। जइवि महाणाचिणं ण तेण जीएण ववहारो॥४॥ जंजीयं सोहिकरं संवि. मापरायणेण बंतेण। एवेणवि आइज्यं तेण उजीएम ववहारो॥५॥ एवं जहोवाहस्स धीरबिदेसितप्पलत्यस्स। णिस्संदो ववहारस्स एस कहितो समासेणं ॥६॥को वित्यरेण वो. सूण समस्यो जिरवसेसए जस्थे। क्वहारो जस्स ठितं जीहाच मुहे सतसहस्सं १ ॥७॥ किंपुष गुणोक्वेसो ववहारस्स तु विदुष्पसस्थस्स। एतं मे परिकहियं दुवालसंगस्स णवणीयं ॥८॥ ववहारे पंचसुवी विजते केण तू वबहरेजा ?। आगमयपहारेणं तस्स अमावा सुतेचं तु॥९॥ सुतववहारअमावे यवहारं ववहरेज आणाए। जेणं सो उ सुतस्सा अणुसरिसो एगवेसेणं ॥७००॥ आणाएँ अभावाओ ववहारं ययहरेज धरणाए। जेणेसापि सुपस्सा बहा तू एगवेसम्मि ॥१॥धारण गंतर जीयं एत्यं पुण जीयकप्पे पगर्य तु। जेणेसो सावेक्खो अणुसजा जाय तित्थंति ॥२॥ अणं च दा खेतं कालं भावं पुरिस पडिसेवणाओयापिति बल संघयणं वा आवेक्सति जीयकप्पो उ॥३॥ एस पसंगाभिहितो चोयगवयणाओं अहुण जीवस्त। वोच्छामि सोहण तू परमं सुसमाहितो एपिं ॥४॥'जीवति पाणधारण' पाणा पुण आउमादि णिहिता । अहवा जीवन जीविस्सई य जीवंति हो जिओ ॥५॥ होड विसोहण सोहणी जहत वत्थस्स तोयमादीहि तह कम्ममलक्खउरतियस्स जीवस्स पछित्तं ॥६॥ एवं पुण पच्छित्तं परम पहाणंति होति एगहुँ। कस्सेयं परमरती जीपस्स उहोड पच्छितं ॥७॥ संवरविणिजराओ मोक्खस्स पहो तयो पहो वासि। तयसो य पहाणंग पच्छितं जपणाणस्स ॥ मू०२॥८॥ संवर घहण पिहणं एगढं सो य संक्रो दुविहो। वेसे सोय तहा एमेव य णिजरा दुविहा ॥९॥ संवरियासपदारो भक्कम्मोषजणं ण कुत्रा उ। पुषणितस्स खवर्ण विणिजरा सा उ णायचा ॥७१०॥ सेलेसि पडिवण्णे दुचरिमसमयम्मि वट्टमाणे या तहि १०२३ जीतकरूपभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 सङ्घसंवरो णिज्जरा य अवसेस देसम्मि ॥ १ ॥ संवरविणिजराओ उभयमवी मोक्खकारणं होति मोक्खपहो हेतू कारणंति एते उ एगट्ठा ॥ २ ॥ एतेसिं दोन्हवि तू तवो पहो हेउ कारण होति । एतस्सवि पच्छित्तं पहाणमंगं मुणेतनं ॥ ३ ॥ जेण तवो बारसहा पच्छित्ते णिवतती तु दसभेदे। तेण पहाणं अंगं तवस्स तू होति पच्छित्तं ॥ ४ ॥ गाहापच्छदेणं तस्सवि जं भणिय जं च णाणस्स । र्णतरततिगाहाए सारे तू तं चिमं आह ॥५॥ सारो चरणं तस्सा निशणं चरणसाहणत्यं च पच्छित्तं तेण तयं मेयं मोक्खत्पिणाऽवस्सं ॥ मू० ३ ॥ ६ ॥ सामाइयमादीयं सुतणाणं बिंदुसारपज्जन्तं । तस्सवि सारो चरणं चरणस्सवि होति नेाणं ॥ ७ ॥ णेशणस्स अनंतर चरणं चरणा अनंतरं गाणं गाणविसुदीए पुण चारित्तविभुदया होति ॥ ८ ॥ चारितविसुद्धीए णेवाणफलं तु पावती अचिरा। सा पुण चरितसुद्धी पच्छित्ताहीण गाता ॥ ९ ॥ जन्हा एतेऽत्य गुणा पच्छिले वष्णिया तु सुत्तम्मि । तम्हा खलु गाय दसा मो क्खत्यिणा जहिमं ॥ ७२० ॥ तं दसविहमालोयणपडिकमणोमयविवेगबोसम्मा। तबच्छेदमूलअणवद्वया य पारंचियं चैव ॥ मृ० ४ ॥ १ ॥ आलोयन अरिहंती जा मजाज लोयणा गुरुसगासे।जं पाव विगडिएणं सुज्झति पच्छित्त पढमेयं ॥ २ ॥ मिच्छादुकडमेतेन चैव जं सुज्झती तु पावं तु । ण य विगडिजति गुरुवो परिक्रमणरिहं इवति एवं ॥ ३ ॥ जद्द तु अणाभोगेणं खेलादी णिसिरितं तु होजाहि हिंसाइए य दोसे न य आवण्यो तु किंचिदवि ॥ ४ ॥ जं पाव सेवितृणं गुरुबो विगडिजती उ सम्मं तु गुरुसंदि पडिकम तदुभयमेतं मुणेतां ॥ ५ ॥ जंकिंचि दक्ष गहितं अहिकं अप्पं व अहब ऊणं तु विहिणा तु विचिन्ते पच्छित विवेगअरिहेदं ॥ ६ ॥ जंकायचेमेसेज निरोहेनं तु सुज्झती पावं जह दुस्सिमिष्णादीयं पच्छिले वियोसग्गं ॥ ७॥ णिडीतियमादीओ उम्मासंतो उ जत्य दिजइ तु। एय तयारिह भणितं इदानि छेदारिहं बोच् ॥ ८ ॥ जेन पडिसेषिएवं सिाइ जस्स पुत्रपरियाओ । तसियमेतं छिज्जइ सेसगपरियायरक्खट्ठा ॥ ९ ॥ जम्मि पडिसेवियम्भी सहं छेतून पुत्रपरियायं । पुणरषि महायाई आरोविजंति मूलरिहे ॥ ७३० ॥ जम्मि पडिसेवियम्मी जणपट्टो कंचि काल कीर तु । मूलवाए पंचसु चिण्णतवो पच्छ होतॄणं ॥ १ ॥ तदोसोवस्यस्स उ महश्यारुवण कीरती तस्स अनबटुप्पो एसो एसो पारंचियं वोच्छं ॥ २ ॥ अंचु गतीपूजनयो पारंचह गच्छती तु पारं तु । तवमादीण कमसो सो लिंगादीहिं चतुधा तु ॥३॥ आलोयणमादीनं वसन्ह वा एस होति पिंडत्यो सहाणे सहाणे विभागतो इनमो वोच्छामि ॥४॥ करणिजा जे जोगा तेषयुक्तस्स णिरतियारस्स छउमत्यस्स विसोही जइयो आलोयणा अभिया॥ ०५ ॥ ५॥ के पुन करनिज्जा ? जे तित्यंकरगणहोवइद्वा उ सुतानुसारओ तू संजम दुक्खक्खया हेऊ ॥ ६ ॥ जेतिय जे गिरिट्ठा जुजि जोगे कातमादिजा तिष्णि । जं जीवे जुंजयती पेरमती वा ततो जोगा ॥ ७ ॥ संस्लेक्यो उ एते मुहपुत्तियमादि जाय उस्सग्गो दियरायो (इ)समायारी जा जहियं वृत्त सुत्तम्मि ॥ ८ ॥ ते तु जया उवउत्तो असक्त करे निरतियारो य तदजालोयणमेरोण चेव सुद्धी तु छद्मस्स ॥ ९ ॥ छउ कम्मं मग गाणावरणं च दसगावरणं । मोहणिय अंतरायं चउहिं होति जायहं ॥ ७४०॥ ते तु जया करणिजे उपयुक्तों करेति णिरतियारो य जणु तत्य का व सुदी १ का व असुदी १ चोएति ॥ १ ॥ गुरुराह तत्य चेट्ठा जा किरिया सुडुमे आसवेसुं वा। अब पमाया सुहुमा अतियार न जाणती छतुमो ॥ २ ॥ ते अइयारा सुदुमा आलोइयमेत्तया विसुज्झति । सा आलोयण चोयग करणिजा तीसु जोगेसु ॥ ३ ॥ को कारयो ? जती तू जइ साहु मयत्तियो विनिदियो। पंचम गाइ समता गाई छई इमं वोच्छं ॥ ४॥ आहाराईगहने तह बहियाणिग्गमेसु नेगेसु उच्चारविहारावणिचेइयजइवंदणादीसुं ॥ मू० ६ ॥ ५॥ आहारो जेसि आदी सो चउद्दा होइमो उ आहारो भसं पाणं लाइम सादिम होती चउत्यं तु ॥ ६ ॥ आदिग्गहणेणं पुण सेजासंचारंवत्थपायट्टा । पाउंछणअट्ठा वा ओहोष उम्गड्डा वा ॥ ७॥ अहब गिलाणस्सट्टा आयरिए बाल बुद्ध समाए था। दुम्बल सेहे व महोदरे व आदेसअट्टा वा ॥ ८ ॥ एतेसिं पाउ आहारो अहव होज सेज्जादी । ओसहमेसजाणि य एमादी होज अट्ठो उ ॥ ९ ॥ एतेसिं अट्ठाए गुरु पुच्छिता गुरूनगुनाओ। सुत्तानुसारओ तू उपयुक्त विद्वीय चेत्तृणं ॥ ७५०॥ आलोएती गुरुणी जं जह गहियं तु भत्तमादीयं । सुत्ताणुसारतो तू आलोयणमेत्तयो मुदो ॥ १ ॥ सीसाह जई एवं विहिगहनं होति एवऽसुद्धं तु। तो गहणमेव सवं आहारादीण मा कुणउ ॥ २ ॥ योग ! जदि एवं तु संजमजोगा उ होति संपुष्णा आहारमाइयाणं को नाम परिम्गई कुजा १ ॥ ३ ॥ अन्नं च इमो दोसो अग्गहणा पावती महंतो उ आयरियादी चत्ता जाणादीगं च वोच्छेदो ॥ ४ ॥ तम्हा अवस्सगग्रहणं आहारादीण होत विहिणा उ आहाराईगहने एगो पादो समतेसो ॥ ५ ॥ णिग्गम गुरुमुलाओ सेजाओ वा हवेज णिग्गमणं से य अगाणिग्गम कुलादिया इणमु षोच्छामि ॥ ६ ॥ कुलगणसंधे चेइय तहबविणासने दुविमेदे। एतेसि निवारणया गुरुमूल करेज निम्गमणं ॥ ७ ॥ संचारादीण अहवा अप्पिनणत्या उ पाडिहारीणं । निग्गमो गुरुमूलाओ वसहीओ वा करेजाहि ॥ ८ ॥ गाह्रापच्छदेणं जं मणितुकार अवचिसो तु। अवणी भूमी भण्णति तेण उ उच्चारभूमीउ ॥ ९ ॥ सज्झायविहारो तु अवणीसहिओ विहारभूमी उ। चेइयर्वदणहे गच्छे आसन्न दूरं वा ॥ ७६० ॥ आयरिया तु अपुषा अहवा साडू अतीव संधिम्या बंदणसंसयहेतुं गच्छे खासच दूरं वा ॥ १॥ आदीगहणेणं पुण सड्ढा सण्णाय अङ्गुव ओसण्णा। दंसणगाहण निक्खम्मणं च ओसण्णउच्छणा ॥२॥ एतेहिं व कजेहिं गुरुमूला णिग्गमो उ साहूणं । गाहा छद्ध समत्ता अरुणा पुण (२५६) १०२४ जीतकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर 1 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं वोच्छं ॥३॥ ज चण्ण करणिज जतिणो हत्यसयबाहिरायरियं । अवियडियम्मि असुद्धो आलोएंतो तयं सुद्धो मू०७॥४॥ चण्णं वुत्तंती करणिज त इमं तु खेत्तादी। हत्यसया आरेणं परयो व इम पवक्वामि ॥५॥ खित्तपडिलेह पंडिल जिक्समर्ण अहव होज सेहस्स। सलेहर्ण व कोई आयरियादी व कुज्जा तु ॥६॥ हत्थसयाओं परेणं जं आयरियं तु होज खेत्तादी। समितिविसुदिणिमित्तं अवस्स आलोयणं कुका ॥७॥जं पुष हत्यसयाओ अंतो आसेवियं हजाहि। तं विगडिजा किंची अहवन विगडिजई किंचि ॥८॥ जह पासवणखेलसिंघाणगाविउपयुत्ते गस्थि आलोया। आलोएह पमत्तोऽचालोहएं होतऽसुद्धो तु ॥९॥ सत्तम गाह समत्ता एतो पुच्छामि अहमं गाह। कारणनिग्गमें जत्थ उ सपरगणाओ व आगमणं ॥७७०॥ कारणविणिमयस्स य सगणाओ परगणागबस्सविय। उक्संपया विहारे बालोयनमणइयारस्स ॥मू०८॥१॥ दुविहो उ णिग्गमो खलु कारण नि. कारणो व गच्छाओ। अतिवादी कारणिलो निकारण कयूमादी ॥२॥ असिवे ओमोयरिए रायडुढे मए व गेलन्थे । अहवापि उत्तमढे समाहिकामोतु गच्छेजा ॥३॥ आयरिय - पेसणावी विणिग्गमो गच्छयो व होजाहि। कारणणिन्गमो एसो सिकारणयो इमं घोच्छ॥४॥ चके थमे पडिमा जम्मण णिक्रसमण णाण णिशाणे। महिम समोसरणे वा सण्णायगवड्यमादिसु ॥५॥ असमत्तऽकप्पियाणं णिकारण णिम्गमा भवे एते। एते चिय कारणयो जयणाजुत्तस्स गीतस्स ॥६॥ कारणविणिग्गएणं णिरतीयाराणवी अवस्सं तु। आलोयण दातमा समितिबिसीणिमित तु॥७॥ सा आलोयण विहा ओहेण विभागतो य गाया। ओहो संखेवो ऊ विमागों" पुण वित्परो भणिओ ॥८॥ओहो तत्य इमो खल अम्भतरअदमासआयस्स। पडिकतस्स य इरियं साहुसमुदिसणवेला तु॥९॥णिरयारो य जती भत्तट्ठीविय हवेज जदि सोतु। ओहेण तस्य आलोइतण तो मंडलि पविसे ॥ ७८०॥ अप्पा मूलगुणेसुं विराहणा अप्प उत्तरगुणेसु । अप्पं पासत्याइसु वाणग्गहर्ण तु आहेसा ॥१॥ अण्णाय उ बेलाए विभागआलोयणा तु वाया। समितिविसुदिणिमित्तं एमेव य पक्सपरयोऽवि ॥२॥ एवं ता कारणिए असिवादीणिग्गयस्स सगणाओ। अतियारविरहियस्सवि आलोयणमेत्तयो सुदी ॥३॥ जे बहियाऽगतसाहू ते दुषिहा होन्ति तू मुणेता। समणुष्णऽमणुण्णा वा समणुण्ण सगच्छतो व ॥४॥ परगणे जे अमणुण्णा ते दुविहा होति तु मुणेया । संविग्गमसंविग्गा पासत्यादी असंविग्गा ॥५॥ परगणसंविग्गाओ जो साह आगतो उ अण्णगण । तेण अवस्साऽऽलोयण विमागतो होति दायका॥६॥ उक्संपद पंचविहा सुत सुहदुक्खे य खेत मग्गे या विणयोवसंपयाविय पंचमिया होति नायचा ॥७॥ पंचविहाए नियमा एगविहाए व जस्य उवसंपे। निरतीयारेणऽविया विमागतोऽक्स्स दाता ॥८॥ विहरेन्ति एगसंमोइया उ फड्डावती उ गीतत्या। तत्थऽण्णत्य व खेते समणुण्णा एस गच्छमिम ॥९॥एगाह पणग पक्खे चाउम्मासेऽवि जत्यवि मिलति । तस्य विभागालोयण अवरोप्पर तेहिं दायका ।।७९०॥ आलोयणारिहंति पढमं वारं इयं समक्खातं । पडिकमणारिहमेत्तो वितियं वार म वोच्छं ॥१॥ गुत्तीसमितिपमत्तो(माए) गुरुणो आसायणाविणयमंगे।इच्छाईणमकरणे लहुसमुसादिष्णमुच्छासुम० ९॥२॥ निरि(पुररक्खणम्मिगुत्ता ताणि मणादीणि होन्ति तिण्णेय । तेहि कहिचि पमायं साहुकरेजा इमंतं च॥३॥ दुधितिय दुम्मासिय दुबेट्ठिय एसऽगुत्तिया होति। मणमादीणं कमसो एस पमाओ उसाहुस्स ॥४॥ गुत्ता होइ कहण्ण मणमादीहिं तु साहुणो निषं। तस्योदाहरणे तू जिणवासादी इमे वोच्छं ॥५॥ मणगुत्तीए तहियं जिणदासो सावओ उ सेट्ठिसुतो। सो सम्पराइपढिम पडिवण्णो जाणसालाए॥६॥ मजुम्मामिगपालक घेत्तु खीलजयमागया तस्य । तस्सेव पायगुवरि मंचगपावं ठवेऊणं ॥७॥ अणयारमायरंती पादो विडो य मंचसीलेणं । तो तं महतिषियर्ण अहियासेती तहिं सम्मं ॥८॥ मणबुडमुप्पणं ण तस्स झाणम्मि णिचलमइस्स। वठूण तीय विलियं इय मणगुत्ती कोतव्या ॥९॥वगुत्तीए साहसण्णायगपति गाए बर्छ। चोरग्गह सेणावा विमोइतो मणिउ मा साह ॥ ८००॥ चलिया य जण्णजत्ता सण्णायग मिलिय अंतरा चेव। माइपितिमातिमादी सोवि णियत्तो सम तेहिं ॥१॥ तेणेहि गहित मुसिया विट्ठो तो बिन्त सो इमो समणो। अम्हेहिं गहियमुको तो बेती अम्मया तस्स ॥२॥ तुम्हेहि गहिय मुछो? आम आणेह वेति तच्छुरियं । जा छिंदामि थर्णति इकिती सेणावती भण॥३॥ दुजायजम्म एसो दिटुं अम्हंतहावि वि सिहूं। कह पुत्तोपत्ती आमं कह णवि सिट्ठति धम्मकहा ॥४॥ आउट्टो उवसंतो मुका मजमंपि तंसि मायत्ति। साई समप्पयंती गावगुती एव कातवा ॥५॥काइगगुत्ताहरणं अदाणपषष्णगो जहा साई। आवासियम्मि सत्येण लमति तहि यंडिलं किंचि ॥६॥ली चणेण किहवी एगो पाओ जहिं पाटाइ। तहियं ठिएगपादो सवं राई तहा पदो॥७॥ण य ठवितो वेणायंडिलम्मि होतबमेव गुत्तेणं । सुमहन्मएवि अहवा साहू ण मिंदे गई एगो ॥८॥ सकपर्ससा अस्सहहाण देवागमो वि. उय्यणया। मंडुकलि सुहुम बहू जतणा सो संकमे सणियं ॥९॥हत्थी विगुधिओ या आगच्छति मम्गतो गुलगुलेंतो। ण य कुणति गतीमेवं गएण हत्येण उच्छूढो ॥८१०॥ यह पडतो मिच्छामिण्डं जिय विराहिया मेति। णवि अप्पाणे चिंता देवो को जमसति य ॥१॥ गुत्तीदार मणियं अगुत्तगुत्तोविए पसंगेन। समिईदारंवोच्छं समिती समतिवि(मितित्ति)माताओ १०२५ जीतकरूपभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२॥गमणकिरिया हु समिती सामण्णे परिणयस्स वा गमण। सम्ममयतित्ति समिती सा पंचह इरियमादीया॥३॥ कह समितीसु पमादं साहु करेजा तु ? भण्णए सुणसु । उड्ढमुहो कहरत्तो वचइ साहू पमाएसो॥४॥ सावजभास भासति गारस्थिय ढड्ढरं व भासेजा। एमादी तु पमाओ भासाए होति णातधो ॥५॥ हिडंतो गोयरम्मि संकितमादीसु जो तु नाऽयुत्तो। भिक्खाएं गहणकाले एसण एसो पमाओ तु ॥६॥ आदाणभंडणिक्वेवणम्मि जो होइ एत्थऽणाउत्तो। एसो होति पमायो एत्थ पमायम्मि उम्भंगा ॥७॥ गहणं आदाणंती होति णिसहो तहाऽहियत्यम्मि। खिव पेरणे व भणितो अहिउक्लेवो तु णिक्खेवो ॥८॥णवि पेहे ण पमजे णवि पेहे पमजती तु वितिभंगो। पेहे ण पमज ततिओ पेह पमजे चउत्थो तु ॥९॥ जो सो चउत्य भंगो पेहेति पमजती य तस्स पुणो। मंगा भवंति चउरो दुपेहदुपमजणे पढमो॥८२०॥ वितियो दुपेहसुपमजणम्मि तइओ सुपेहदुषमजे। सुप्पडिलेहियसुपमज्जियम्मि भंगो चउत्थेसो॥१॥ आदिमभंगा तिण्णि इ अपेहअपमज्जणे य पढमादी। तिण्णि दुपेहादीविय उम्भंगा होति एते ऊ॥२॥ उबारे पासवणे खेले सिंघाणमादियाणं च। परिठवणे एत्यपि हुपमाइणो होति छम्भंगा ॥३॥ परिठवणुचारादी उच्चरती तेण होति उच्चारो। पस्सवइत्ति य तेणं पासवणं भण्णए काई ॥४॥ अहवुवाई काइय पायं सबई य पासवणसष्णा। खेललणाओ खेलो णासिगललणाओ सिंघाणो ॥५॥ एस पमाओ भणितो पंचमु समिईमु इरियमादीसु।अहुण पसंगणं चिय वोच्छामिड अप्पमायं तु ॥६॥ जुगमेसंतरदिट्ठी पद पद नसति चक्खुपूर्व च। अधक्वित्तायुत्तोऽरहण्णगो एत्युदाहरणं ॥७॥ अह अरहणगसाहू समितीअसमीय गड्ड डेवन्तो। छलिओ पादो छिष्णो अण्णाए संघिओ याचि ॥ भासासमितो साहु भिक्खट्ठा णगररोहए कोयी। णिगं बाहिकडए हिंडतो केणयी पुट्ठो॥९॥ केवइय आस हत्यी? धणणिचयो दारुधण्णमादीणि। णिविण्णमणिविणं णगर? तो बेइमं समितो ॥८३०॥ बेइण याणामोत्ती सज्झायज्माणजोगवक्खित्ता। हिंडता णवि पिच्छह नवि सुणह किह हु? तो बेति ॥१॥ बहूं सुणेति कण्णेहि. बहुं अच्छीहि पेच्छति। ण य दि? सुयं सर्व, भिक्खू अक्खाउमरहति ॥२॥ अहव य मासति कजे हिरवजमकारणे ण भासति य। विकहविसोत्तियपरिवजितो जती भास लमेसणाओ भोयणदोसे य जो विसोहेति । सो एसणाए समिओ दिटुंतो इत्य वसुदेवो ॥४॥ वसुदेव अण्णजम्मे आहरणं एसणाएँ समिएणं । मगहा णंदिग्गामे गोयम घिजाइ वकयरो॥५॥ तस्स य वारुणिभजा गम्भो तीए कयाइ संभूओ। धिज्जाइ मतो छम्मासि गम्भ घेजाअणी जाए ॥६॥ मातुलसंवड्ढण कम्मकरण बेयारणा अलोएणं । त्यि तुह एत्य किंचिड तो बेती माउलो तं च ॥ ७॥ मा सुण लोयस्स तुमं घूयाओ तिण्णि तासि जेट्ठयरी। दाहामि करे कम्मं पकयो पत्ते य वीवाहे ॥८॥ सा णेच्छा विसण्णो माउलओ मणति अण्ण दाहामि । सावि तहेव य णेच्छइ तइयंती णेच्छद य सावि ॥९॥ णिविण्ण नंदिवडणआयरियाणं सगासि णिक्वंतो। जाओ छटुक्खमओ गिण्हा य अभिग्गहमिमं तु ॥८४०॥ वालगिलाणादीणं वेयावचं मए तु काय । तं कुणइ तिवसद्धो खायजसो समगुणकित्ती ॥१॥ अस्सहहाण देवस्स आगमो कुणड दो समणरुवे। अतिसारगहियमेगो अडान वीय ठियो गओ बितिओ॥२॥ति य गिलाणों पडितो वेयावचं तु सहहे जो उ। सो सिग्धं उद्धेतू सुतं च तं नंदिसेणेणं ॥३॥छट्टोववासपारणगमाणितो कबल घेनुकामेण । तं सुत ति॥४॥ पाणगदर्श च तहि ज णत्थी तेण बेति कजति । णिग्गय आहिडत असणं कुणति ण य पते ॥५॥ इति एकवार वितियं च हिडिओ लद्ध तइयवाराए। अणुकंपा तूरंतो गयो य तो तस्सगासं तु ॥६॥ खरफल्सणिठुरेहिं अकोसाइ सो गिलाणतो रुट्ठो। दे मंदभग्ग! घु(फु)किय तृससि तं णाममेनेणं ॥७॥ साहवयारित्ति तुम णामड्ढ अह तु उरिसिउ आयो। एयाएं अवत्थाए नै अच्छसि भत्तलोहिलो ॥८॥ अमयमिव मण्णमाणो तै फस्सगिरं तु सो ससंभंतो। चलणगनो खामेनी धुवनि य न समरलिनं तु ॥९॥ उटेह वयामोत्ती नह काहामो जहा उ अचिरेणं। होहिह णिरुया तुम्मे बेती ण तरामि गंतुं जे ॥ ८५०॥ आरुभहा पट्ठीए आरूदो ताहे तो पयारं तु । परमासुइ दुग्गंध मुंचति सो तस्स पट्टीए ॥१॥ फरसं ति दुमुण्डिय ! वेगविधाओ कतोत्ति दुक्खविओ। इय बहुविहमकोसति पदे पदे सोचि भगवं तु ॥२॥ण गणेनी फरसगिर नदि अहुचिसहमसुइगंधं च । चंदणमिव मण्णतो मिच्छामी दुकडं भणति ॥३॥ चिंतेइ किं करेमी कह णु समाही हवेज साहुस्स ?। इय बहुविहप्पगारं गवि निष्णो जाहे खामे(स्वोभे) ॥४॥नाहे अभिन्युणित्ता गतो तयो आगयो य इयरोवि। आलोएड गुरुहि य धण्णोत्ति तयो समणुसहो ॥५॥ जह तेणं णवि पेलिय एसण इय एवं साहुणा णिचं। जइ एमेसा एसणसमिती समक्खाया ॥६॥ पुचि चक्खु परिक्खिय पमजिउं जो ठवेति गिव्हइ वा। आयाणभंडनिक्खेवणाएं सो होइ इह समितो ॥७॥ एत्यवि ते बिय भंगा कायचा जाब होनि अंतिमतो। सुप्पडिलेहियसुपमजियं च भंगो चउत्थो उ ॥८॥ एसो गेझो एत्यं तम्मुक्युत्तो स होति खलु समितो। आहरण गुरुण भणितो साहू वचामों गार्मनि ॥९॥ओगाहिए पडिग्गह ताहे ठिया कारणेण केणावि। तत्थेगो पेहेउ णिरिसवती बिहओं पुण आह ॥८६॥ पेहियमेतं किं पेहणा पुणो ? होज एत्य किं सप्पो ?। सणिहितदेक्याए विउवितो नत्य १००६ जीतकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो सप्पो ॥१॥ उग्याडिए य दिवो आउट्टो बेति मिच्छकारं च। समिताऽसमिता एते उक्कोस जहण्णया होन्ति ॥२॥ उच्चारं पासवर्ण खेलादि व अण्णपाणमहियं वा। सुविवेइए पदेसे गिसिरंतो होड इह समिओ ॥३॥ इत्यवि ते बिय भंगा तहेव समियो तु अंतिमे होति। आहरणं धम्मस्ती परिठावणसमितिमुजुत्तो ॥४॥ काइयऽसमाहि परिठावणे य गहितो अमिगहो तेणं । सकपसंसा अस्सरहाण देवागम विउजे ॥५॥ सुबहू पिपीलियाओ बाहाडा यावि काइयऽसमाही। अण्णो य काइयाए उवहितो बेयऽहं असहू ॥६॥ अहयं तु काइयाडो बेइ परिट्ठव समाहिमा अच्छ। णिग्गय णिसिरे जहि जहि पिवीलिया ऊ सरे तत्य ॥७॥ अह साहु किलामिजइ ताहे पीतो य धरितो देवेणं। मा मा य णिसिद्धोत्ती मा पिय देवो य आउदो ॥८॥ वित्तु गतो देखो समितीसू एच होति जतितकं । एत पसंगाभिहितं आसातण इणमु वोच्छामि ॥९॥ गुरुखो आयरिया तृणाणादीओ उ होड आयारो। आयरण परू. वणया वहइ सो तेसिमाऽऽसाणा ॥८७०॥तीय विमासा इणमो आसातण दुपदवयणमेयन्ति। आयो य सातणा य आयस्स उसाडणा जा उ॥१॥सा होती आसातण आओ लाभोत्ति आगमो यावि। जाणावीणं साया सायण धंसो विणासोत्ति ॥२॥ आतस्स साडणंती यकारलोवम्मि होइ आसयणा। आयरियाणं इणमा आसयणा होइमेहिं तु ॥३॥ डहरो अकुलीणोति य दुम्मेहो वमग मंदबुदित्ति। अवि अप्पलाभलद्धी सीसो परिभवइ आयरियं ॥४॥ अहावि वदे एवं उवदेस परस्स देन्ति एवं तु। वसयिह वेयावचं काय सर्य ण कुर्वति ॥५॥हव तिहा आसायण मणवाकारण मणपदोसादी। वायाए आसायण अंतरभासादि कविजा ॥६॥ काएक संघट्टण जमलित पुरतोब पचती पंथे। अहवा आसायणमो तसि-12 भीमादी मुणेया ॥ ७॥ आलते पाहिले पापारिय पुच्छिए णिसट्टे या। गुरुवयणा पंचेते सीसस्स तु छा इमेकेके ॥८॥ तुसिणीए हुंकारे किंति व किं घडगरं करेसि?त्ति। कि णिषुई ग देसी? केवायं वापि रडसिति ॥९॥ एवं छा आलते तुसिणीमादी उ हॉति णातया । वाहित्तादि य छच्चिय एकेकपयम्मि बोदशा ॥८८०॥ गुरुआसायण भणिया एत्तो वोच्छा. मि विणय गं तुणेगविह अभुठाणे अमिम्गहे आसणे व ॥१॥ आसणदाणं सकारणा य सम्माणणा य कितिकम्मे। अंजलिपम्गहणं अणुगती य ठितपजुवासणता ॥२॥ जंते पडिसंसाहण आसणमादीहि होति सकारो। सम्माणो उवहीए जोग्गं जं जस्स त कुजा ॥३॥ कप्पो संथारो वा जहिं बेटो अच्छई तु आयरिओ। णायागमस्स काले पडिलेहिय घेनु त अच्छे ॥४॥कितिकम्मं बंदणय हत्युस्सेहो पिडालदेसम्मि। अंजलिपग्गहमेत सेसा उ पया हु कंठोत्ता ॥५॥ एमादी विणयं दूजोणवि कुणती उमरियमादीणं । विणयभंगो एसो सत्तविहो अहवणाणादी॥६॥णाणे देसण परणे मण वइ कायोवयार सत्तविहो। एतेसु अवईते समासओ एस भंगो तु॥७॥ विणयम्भंगो एसो ओहेण समासओ समक्खायो। इच्छादी वसहा तू अकरणेणमो तू (णमेते तु)वोच्छामि ॥८॥ इच्छा मिच्छा तहकारो, आवसिया य णिसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, इंदणा य निमंतणा ॥९॥ उवर्स - पया य काले इच्छाविअकरणया उ बसहेसा। लहुसमुसाबादादी एत्तो उ समासतो वोच्छं॥८९०॥ पयलाउले मलए पञ्चक्खाणे य गमण परियाए। समुदेस संखडीओ खड्डय परिहा. रिय मुहीओ(स्समुही)॥१॥अयस गमणं दिसास एगकुले चेव एगदो या एमादी तु पदेहि मुसं तु लहुसं वए साहू॥२॥पयलासि किंदिवा ? ण पयलामि लहु वितिय णिहवे गुरुतो। अण्ण. दाविय णिहरि बहुगा गुरुगा बहुतराणं ॥३॥ णिण्हवणे णिव्हवणे पच्छित्तं वड्ढई ऊ जा सपर्य । लहुगुरुमासो सुहुमो लहुमादी पायरी होति ॥४॥ किं वचसि वासते ?ण गच्छि गणु वासदियो एते। मुंजती णिह मरुया कहं पति गणु सागेहेसु ॥५॥ मुंजसु पञ्चक्खाणं महति तक्रवण प जियो पृट्ठो। किवण मे पंचविहा पचखाता अविरतीओ ॥६॥ पचासि ? णाई बच्चे तक्रमण बच्चंत पुच्छिओ भणति। सिद्धतं णवि जाणहणणु गम्मति गम्ममाणं तु?॥७॥ दस एयस्स य मजा य पुच्छितों परियाग मेहतु छलेण । मम णवत्ति यदिएँ भणाइये पंचगा बस उ ॥८॥ वहा तु समुहेसो किं अच्छह ? कत्थ? एस गयणमि । वट्टन्ति संखडीओ घरेसु णणु याउखंडणया ॥९॥ सुडगजणणी उ मुया परुण्णों ठियत्ति एव भणियमि। मात्ता साजिया भविंसु ते णे समायाते ॥९००॥ ओसण्णे दठूर्ण दट्ठा परिहारियत्ति लहुकहणे । कत्युजाणे गुरुओ अदिट्ट दितु य लहगुरुगा ॥१॥छातभगा उ नियत्ते आलोएतम्मि उम्गुरू होन्ति। परिहरमाणा विकहं अप्परिहारी भवे छेदो ॥२॥ खाणुगमाई मूलं सब्बे तुम्भेगांऽहंति अणवट्ठो । सब्जे उ बाहिरा पक्यणस्स तुम्भेत्ति पारंची ॥३॥ भण पय विद्वणियह आलोयामंति घोडगमुहीउ । किमणुस्सी सम्वेगो सो बाहिं पवयणस्स ॥४॥ मासो लहुओ गुरुओ चउरो मासा हवंति लहगुरुगा। उम्मासा लहुगुरुगा छेदो मूल तहगं च ॥५॥ गच्छसि ण ताव गच्च तक्खण वचंत पुच्छितो भणइ। वेला ताव ग जाया परलोग वावि मोक्खं वा ॥६॥ कतरि दिसि गमिस्ससि ? पुर्व अवरं गतो मनति पुट्ठो। किवा न होति पुश इमा दिसा अवरगामस्स? ॥७॥ अहमेगकुलं गच्छं वयह बहुकूलपवेसणे पुट्ठो। मणति कह दोणि कुले एगसरीरेण परिसिस्सं ॥८॥ वह Is एगे व पेच्छ गगद पुच्छिओ भणति। गहनं तु लक्षणं पोग्गलाण गडब्लेसि तेणेगं ॥९॥ पयलादी तु पदा खलु एमेते पष्णिया समासेणी लागल्या जाव मुसं लहसगमेयं मुणे१०२७-जीतकस्पभाय - मुनि दीपरत्नसागर Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवं ॥९१०॥ तणडगलछारमल्लगउग्गहमणणुण्णवेत्तु जो गिण्हे । लहुसग अदत्तमेयं अहवा रुक्खादिसू लहुसं ॥१॥ मुहणंत पायकेसरि पत्तट्टवणं च गोच्छओ व । लहुसपरिम्गहमेसो मुच्छ करंतस्स साहुस्स ॥२॥ अहवावि इमो अण्णो सेज्जातरगोणसाणकामादी। धारण कप्पट्ठस्स व रुक्खममत्तादि कुज्जा तु॥३॥ चितियवयततियपंचमलहुस्सगा एतेहाति जातव्या । गाडेसात समत्ता णवमी दसमि अतो वोच्छ॥४॥ अविहीय कासजंमियख्यवायाऽसंकिलिट्टकंमेस। कंदप्पहासविकहाकसायक्सियाणसंगेसु ॥म०१०॥५॥ अविहीर हत्यमवात अहवा महर्णतयं अदातृणं। जमाइएवि एवं सुइएवी एवं वत्त ॥६॥ खुत्ति कतं तं खुइत छीर्य वा होति ह उखातं तु। वायणिसम्मो कुविहो उड्डे य आहे यणायचो ॥७॥ उड्ढं उड्डोयादी वायणिसम्गो अहे मुणेतवो। मुहर्णतय हत्यं वा उड्डोए तत्थ जयणाए ॥८॥ पुयकड्ढणा उहेढे वायणिसगस्स होइ जयणेसा। इयवयिरित्तो जो खलु अविहीए सो णिसम्मोतु ॥९॥छेयणमेयणमादी असंकिलिडे य होड कमंतु। कंदप्पो वायाए काएण व होति णातव्यो।९२०॥ हासं तु हासमेव तु विकहा पुण इस्थिमाइया पउहा। कोहादी उकसाया विसया सदाइया णेया॥१॥ जा तेसिं तु पसजण सहसाऽणाभोगयो व साहूणं । सो होति विसयसंगो अविहीगाहा समत्ता उ॥२॥ स्खलितस्स य सबस्थवि हिंसमणावजओ जयन्तस्स । सहसाऽणाभोगेण व मिच्छकारो पटिकमणं ॥ मू०११॥३॥ खलगा दुविहा भणिया सहसाऽणाभोगतो व होजाहि। सा कस्य पुणो दुविहा? सत्य इम पवक्खामि ॥४॥ सत्रवएK गुत्तिसु समिती जाणादिएम व हवेजा । सव्वत्थवि एतेसुं खलणेसा होति णायव्वा ॥५॥ सहसाऽणाभोगेण व हिंसमणावज्जो जयन्तस्स । सहसाऽणा. भोगाणं को गु विसेसोति चोएइ ॥६॥ आउत्तोऽविय होतुं कारेन्तोऽविय ण याणतीयारं । जहङ्गं करेमि एवं कए य नायं अणाभोगो॥७॥ आउत्त पुष्पभासा पडिसेषण सहस एष जा तु भवे। ण य तरति णियत्तेउं सहसकारो भवे एसो ॥८॥ सहसाऽणाभोगा ऊ सव्यत्य उ पण्णिया समासेणं। एस विसोहिद्वाणं मिच्छक्कारो पडिकमणं ॥९॥ आभोगेणवि तणुएम णेहमयसोगबाउसादीसु । कंदप्पसोगविगहादिएसु णेयं पडिकमणं । मू०१२॥९३०॥ आभोगे जाणतो तणुओ थोवे तु होति णातको। तं पुण करेज फप्पडसेजतरसण्णिमाइसु डाकय कप्पदगादि आभोगा तस्सपायच्छित्तं मिष्ठकारो पडिकमणं ॥२॥तणुओहोमणितो भय सत्तविहइम तुवाच्छामिाइहपरलोगाऽऽयाण अकाल आजीवियऽसिलोए ॥३॥ मरणभयं सत्तमयं एतेसि समासतो विभागों इमो । मणुआ मणुयस्सेव तु देवा देवस्स तिरीउ तिरिए तु ॥४॥ बीभेड सजाईए इहलोगभए य होति बो । परलोगभयं विसरिस जह मणुओं बीमें तिरिदेवा ॥ ५॥धणमायाण मण्णति तम्भय चोरादियाण जं वीमे। तस्सेव य रक्खट्ठा बापागाराइ जं कुणति ॥ ६॥ अणिमित्त अक. म्हभयं णवि किंची पासती तहवि वीमे। अडवीए रातीय आजीवमयं जहा अहणो ॥७॥ दुकालो आयेसो कह जीवीहति? एस चिंतेति। मरणभयं सिद्ध चिय कभयं जहत॥८॥ असिलोगोत्तिह अयसो जा एवं करिस्स होहि अयसो। असिलोगभयं एवं वेयणभय होड सीयादी॥९॥ सत्तविहं भयमेयं एएसु उ बहियं तु जंतणए। तस्स विसोहिवाणं मिच्छकारो पडिकमणं ॥९४०॥ सोगं आभोएणवि चिन्तादि करति विपयोगम्मि। तस्स तु पायच्छितं मिच्छकारो पडिकमणं ॥१॥ आभोगमणाभोगे संवुडमस्संबुडे य अहसुहुमे। पंचविहो बाउसिओ सुहुमामोगेण पगयेत्थ ॥२॥ कंदप्पादी तु पदा पुछत्तकमा तु दसमगाहाए। एव जहुरिटेसू तणुए सोही पडिकमणं ॥३॥ वितियहार समर्स म पडिकमणारिहमहुण ततियं तु। तदुभयदार बोच्छतत्य इमा होइ गाहातु॥४॥ संभमभयातुरावतिसहसाणामोगऽणप्पवसओ वा। सबक्याती ॥५॥ संभमेऽणेगविहो खलु हत्थी अगणी व उदगमादीओ। भय दमुग मिलक्खू वा मालवतेणाइओ बहुहा ॥६॥ पढमवितीयातिएहिं परीसहेहाऽऽजुरो तु बहुदा तु। आवा पउहा इणमो समासतोऽहं पवक्खामि ॥७॥ दशावति खेत्तावा कालावद भावआवई वेव। दद्यावती तु दई जंबुलभ होति साहुस्स ॥८॥ वित्यिणमडम्बा(प्पा दी खेत्तावति एस होइ जानका। कालावती तु ओमे भावे तु गुरू गिलाणादी ॥९॥ सहसाऽणाभोगा तू पुवुत्ता बहुण वोच्छऽणप्पक्सो। गप्पक्सो उ परवसो सो होति इमेहि कोहिं॥९५०॥ वाइयपिनियसिमिय अहवाबी होज सण्णिवाएणं । एतेहि अणप्पवसो अहवा होजा इमेहिं तु ॥१॥ जक्खाइट्टसरीरो मोहणिए अहव होज कम्मुवए। एतेहिं अणप्पक्सो होजाही कारणेहिं तु ॥२॥ एष जहरिद्वेसं संभममादीसु कारणेसुं तु। सायायियारं णासं तु करेजऽणप्पक्सो ॥३॥ पुढविजलअगणिमारुयवणस्सती कुज रुक्सव्हणं वा। वियतियचाउरो पंचिंदिय व साह विरा. हेजा ॥४॥ एव मुसावादादी अणपनो आयरेज साहू तु। पिंडविसोहादीणि व सेवेज व उत्तरगुणाणि ॥५॥ एमादी आवणे अतियार विसोहि तदुमय होति। तभय गुरुमालोइय मिच्छामीवुकडं बेति ॥ ६॥ आसंकिए तनुभयं मूल्यणे उत्तरे य णात। परिच्छिदितु णवि सके कतमकयं एस आसंका ॥७॥ दुचिंतिय दुम्भासिय दुबेद्विय एवमादिय बहहा। उवउत्तोविण याणति ज देवसियातियाराति ॥ मू०१४॥८॥ 'दुत्ति दुगुंछा' धातू संजमउवरोहि कृच्छियं होति। तं मणसा जइ चिंतिय दुधितिय एव णात ॥९॥ एवं तू एण्मासिय ८ तुबेद्विय एवमेव माता । तुपडिलेहियमादी आदीसरेण बोबा ॥९६०॥ एमादिर्य तु बहुसो अणेगसो होइ मुतई। उवउत्तोविण जाणति गवि संभरती उ जमणियं ॥ १॥ (२५७) २०२८ जीतकल्पभाय - मुनि दीपरत्नसागर Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदिग्गहणेणं पुण राइय पक्खिय तहेव चउमासे। संवच्छरिए य तहा अतियारा हॉति बोद्धचा ॥२॥ सधेसु य वितियपए दंसणणाणचरणावराहेसु। आउत्तस्स तदुभयं सहसकाराइणा चेव ॥p०१५॥३॥ पढम उस्सग्गपदं अववादपयं तु बितिययं होति। सबग्गहणेणं पुण सबऽवराहा मुणेया॥४॥दसणणाणचरिते जे अवराहा तु होन्ति गीतत्थे। कारणजयणाजुत्ते एव जयंतस्स जे उमवे॥५॥जह तिक्खउदगवेगे विसमम्मि व विजम्मि वचंतो। कुणमाणोवि पयतं अवसो जह पावए पडणं ॥६॥ तह समणसुविहियाणं सापयत्तेणवी जयंताणं । कम्मोदयपश्चाइया विराहणा कस्सइ हवेजा ॥७॥ एरिसजतणाजुत्ते तस्स विसोहीय तदुभयं होति। सहसावि होइ तदुभयं आवणे दंसणाईसु ॥८॥ तदुभयदार समत्तं विवेगदारं अयो पवक्रवामि। कस्स पुण विवेगो ऊ? तत्थ इमा होति गाहातु ॥९॥ पिंडोबहिसेनादी गहियं कडजोगिणोक्युत्तेणं । पच्छा णायमसुदं सुद्धो विहिणा विगिंचंतो ॥मू०१६॥९७०॥ 'पिडि संघाए' धातू पिंडो संघाओं भष्णए तम्हा। सो इह सचित्ताई णवणवमेदो पुणेकेको ॥१॥ पुढवीआउकाएतेऊवाऊवणस्सती चेव । बेइंदियतेइंदियचउरो पंचिंदिया चेव ॥२॥ एकेको पुण तिविहो पुढवीमादी सचित्तमादीओ। सत्तावीसपमेदो पिंडेस समासतो होति ॥३॥ ओहिय ओवगहिओ उवही दुविहो समासतो होति। होइ विभागणं पुण जह मणिओ ओहजुत्तीए ॥४॥ भणति सिजा वसही आदीसरेण होति डगलादी। ओसहमेसज्जाणि य आदीसहेण गहियाणि ॥५॥ कडजोगी गीयत्थो जं वृत्तं होति जो उ गहिबत्यो। पिंडेसणपाणेसणवत्येसणसेजमावीणं ॥६॥ अहवा छेवसुयादीसुत्सत्याहिजितो तु मीयत्यो। गहितं तेणुवयुसेण णात पच्छा असुदं तु ॥७॥ केण असुदं? भग्णति उम्गमउपायणेसणादीहिं। अहवावि संकियादी सो सुज्झति विहि विगिंचंतो॥८॥कालवाणाऽतिच्छियमणुमायस्थमियगहियमसढो उसकारणगहिउबरिए भत्तादिविगिंचणे सुद्धो।मु०१७ ॥९॥ पढमाएँ पोरिसीए पडिगाहेत्ताण असणपाणादी। जो तायमइकामे कालातीतं इमं होति ॥९८०॥ अदोषणा परेणं आणिय णीयं व असणपाणादी। एयवाणातीतं सो सट असढो बइकामो ॥१॥ विगहाकिड्डादीहिं होति सदो एस होति असढो तु। मेलण्णवावडत्ता होजन सागारिया तत्थ ॥२॥ पंडिलअभाषा वा तेणाहि(वि)भयं व तत्थ होजाहि। कजहि असढो त होहणायची ॥३॥ एमावी असदोज विही विनितों होति सुद्धोउ। अणुवित अत्यमिओ वा गहियं असढेणिर्म वोच्छ ॥४॥ गिरिराहूमहमाहिया । उम्गयबदी साह एमेव यहोयऽणस्थमिए ॥५॥ पच्छा णायमणुग्गय अहव अत्यमिओं एस इणिहतु। एयण्णायंमिऽसढो सुरो त विही विगिंचंतो ॥६॥ आयरिए य गिलाणे पाहुणए खमग बाल बुड्ढे या एतेसऽट्ठा गहितं तं होती कारणम्माहिये ॥७॥ विहिपरिभुत्तुवरियं विही विगिचन्त होति सुदं तु। एवं विवेगवारं एनो योच्छामि बोसम्मं ॥८॥ गमणागमणविहारे सुयंमि सावजसुविणयाबिसु य। णावाणदिसतारे पायच्छित्तं वियोसम्गो ॥ मू०१८॥९॥ वसही गुरुमूला वा गमणं अण्णस्य पुणरवागमण। एयं गमणागमणं विहारसमायभूमी तु॥९९०॥ तो सज्मायणिमित्तं गमणं अन्नत्य होज साहुस्स । गमणागमणविहारं णात होति एतं तु॥१॥समितिविसुद्धिणिमित्त एवं पच्छित्त। होति उस्समगो। होति सुतं सुतणाणं उसगमादि णात ॥२॥ पट्ठवणुहिसणे या समुविसणे तहय होतऽणुण्णाए। कालपडिकमणम्मि य सुयस्स एथं तु उस्सम्गो ॥३॥ पाणतिवायादीया साक्जो सुमिणतो तुणातयो । आदिग्गहणेणं पुण अणवजऽपसत्यएसुंपि ॥४॥ चस्सहरगहणाओ दुस्सउणा दुषिणमित्त गहिया उ। पढमरयादीएमय सोसु विसोहि उस्सगो ॥५॥ णावा बउबिहा तू समुद्दणाविक तिण्णि उणदीए। उजाणी ओयाणी तिरिच्छगामी भवे तइया ॥६॥ जंघद्धा संघहोणाभी लेवोपरि तु लेखुवरि । बाहोड़पाइओ खलु णविसंतारेवमावीओ॥७॥णावादीहि पएहिं जाय तु उडुपादि संतरंतो तु। सबत्य तु पच्छितं जतणाजुत्तस्स उस्सग्गो ॥८॥ भत्ते पाणे सयणासणे य अरहतसमणसेजासु। उच्चारे पासवणे पणवीसं होन्ति उस्मासा ॥ मू०१९॥९॥ भत्तं पाणं कंठं सयणं सेना उ होति जावया। आस उवेसन' धातू उपविसणं आसणं होति । १०००॥ 'अरह पूयाए' धातू पृयामरिहति नेण अरिहंता। अरिहंति बंदण णमंसणं च तम्हा तु अरिहंता ॥१॥ कोहाई उ जरी ऊ अहब रप कम्म होइ अट्ठविहं। अरिणो परयं हता तम्हा उहवंति अरिहंता ॥२॥ सयणं सेजा पहिस्सय भत्तावी जाव होति सेजा ऊा हत्यसयाउ परेणं गमणागमणम्मि सवस्थ ॥३॥ समितिविसुविणिमित्तं जयणाजुसस्स होति उस्सग्गो। पणुवीर्स उस्सासा उच्चारमयो तु वोच्छामि ॥४॥ उचरती उच्चारं परसवती तेण होति परसवर्ण। सण्णाकाइय कमसा व इमोहाइ सदस्था॥५॥ उबरतिकाइयत जम्हा तणतुहाति उबारा। पाय सवती जम्हातम्हार होति पासवर्ण ॥६॥परिठविएसेएसं हत्यसया आरतोब परतो वा। सोही काउस्सम्गो पणवीसं हॉति ऊसासा ॥७॥ इत्यसतवाहिरातो गमणागमणाइएस पणुवीसं । पाणिवहादि सुमिणए सतमट्ठसतं चउत्थम्मि ।मु०२०॥८॥ गाहब पढम कंठं पाणवहे सुमिणसणे रातो। कतकारियाविएसुं विसोहि उसास सतमेगं ॥९॥ एव मुसावादाविसु उस्सग्गो जाय होति णिसिभत्तं । सतमुस्सासाण भवे अट्ठसतं पुण चउत्पम्मि ॥१०१०॥ देसिय राइय पक्लिय चाउम्मासे तहेब बरिसे या सतमद्धं तिणि सता पंच सतछत्तर सहर्स ।। मू०२१ १०२५ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ देसियमादिपदाणं कमसो ऊसासमाणमेयं तु । ने पुण कह विष्णेया उस्सासा ? तमिह वोच्छामि ॥२॥ लोयस्मुजोयगरा चउरो एगं सतं मुणपत्र । पंचासा दोहि भवे तिण्णि सया होनि वारसहि ॥३॥ पंच सया बीसाए असहस्सं च होति चत्ताए। देसियमाउस्सग्गे होइ एयं तु परिमाणं ॥४॥ अहवा-पणुवीस अबतेरस सिलोग पण्णतरि च बोदवा। सतमेगं पणवीसं दो बावण्णा य वरिसेणं ॥ ५॥ उद्देस समुहेसे सत्तावीसं तहेवऽणुण्णाए । अद्वैव य ऊसासा पट्ठवणापडिकमणमादी ॥ २२॥६॥ उद्देसय अज्झयणे मुतखंधे चेव होति अंगे य। उहिसणादिपयाणं सत्तावीसं तु उस्सासा ॥ ७॥ पट्ठवणपडिकमणे अठुस्सासा उ होति उस्सग्गो । आदिग्गहणेणं पुण पट्टवयंतेवि अणुओगं ॥८॥ कालपडिकमणेऽविय अवसउणे चेव होति सवत्थ । उम्सासा अट्ट भवे काउस्सग्गो मुणेतको ॥९॥ उद्देसय अज्झयणे सुतखंधगेसु कम पमादिस्स । कालाइकमणादिसु णाणायाराइयारेसु ।। मू०२३ ॥ १०२०॥ णाणायारो दुविहो ओहेण विभागयो य णातत्रो। उद्देसय अज्झयणे सुयखंधंगे विभागो तु ॥१॥ उद्देसादिचउण्हवि अतियारो अट्ठहा मुणेतब्बो । पत्नेयं पनेयं कालादि इह पबयणम्मि ॥२॥ काले विणए बहमाणे उबहाणे तहा अणिण्हवणे । वैजण अत्थ तभए अविहो णाणमायारो॥३॥ जो तु करेति अकाले सज्झार्य कणड वा असज्झाए। सन्माए वा ण कुणनि कालतियारो भवे एस ॥४॥ जच्चादिमदुम्मनो थरो विणयं ण कुव्वति गुरुणं । हीलय व जो तु गुरु विणयइयारो भवे एस ॥५॥ मुतणाणम्मि गुरुम्मि व भनी बहुमाण जो तु ण करेति । भत्ती होयुवयारो बहुमाणो गोरव सिणेहो ॥६॥ बहुमाणे अइयारो एमेसो वणिओ समासेणं। उवहाणं होति नवो आयंबिलमादिओ सोय ॥ ७॥ जो नं ण कुणति साहू अहवावि ण सहहेयमुवहाणं । सो उवहाणतियारो णेण्हवणेत्तो पवक्खामि ॥ ८॥ णिण्हवणं अवलवणं अमुगसगासे अहं णऽहिज्जामि । अण्णं जुगप्पहाणं आयरियं सो उ उहिसति ॥९॥णिण्हवणे अनियारो एमेसो वण्णितो समासेणं । वंजणमादिपदाणं अतियारमतो पवक्खामि ॥१०३०॥ भणितं वंजणमक्खर तण्णिफण्णं सुन मुणेतब्बं । पागणिबदमेयं समयमादी करेजाहि ॥ १॥ धम्मो मंगलमुक्कद्वं दया संवर णिजरा। तस्सेव य अत्थस्सा अण्णाणि य वंजणाणि करे ॥२॥ अहवा मत्ता बिंदू अण्णभिहाणेण बाधित अन्य । बंजिननि जेण अत्था वंजणमिति भण्णते सुत्नं ॥३॥ वंजणभदण इह अत्यविणासा हवेज तु कयाई । अत्यविणासा चरणं चरणविणासे अमोक्खो तु॥४॥ मोक्खाभाबानो पुण प्रयत्तदिक्खा णिरस्थिया होति। जम्हा एते दोसा तम्हा सुत्नं ण भिंदिजा ॥५॥ वंजणभेदो भणिओ अत्थे भेदं अतो पवक्वामि। अत्थं तु बियप्पती तेहि चिय वजणेहऽणं ॥६॥ आयारे मुन्नमिणं आवंती पंचमम्मि अज्झयणे। आवंती के आवंती लोगंसि विपरि(रा)मुसतित्तिा अह्राएं अणट्ठाए एतेसुं विप्परामसंतीतु।एयं सुत्नं आरिस अत्थ विकप्पेनिम अण्णं ॥८॥ आवती होनि देसो तत्थ तु अरहट्ट कूवजा केया। सा पडिया हेट्ठा तू तं लोगो विपरामुसइ ॥९॥ अत्यविसंवाएवं तदुभयदारं इमं पवक्खामि । जन्थ तु मुन्नत्था खलु दोवि नितं च इम ॥१०४०॥ धम्मो मंगलमुकत्यो, अहिंसा पबतमत्थए। देवावि तस्स णस्संति, जस्स धम्मे सया मती(सी)॥१॥ अहाकरसु रंधति, कट्ठसु रहकारीउ। रणो भनम्मिणो जन्थ, गहभो जत्वदीसति ॥२॥ एसो तदुभयभेदो दोण्णिविणासंति एत्थ सुत्तत्था। एवं तु ण कातवं दोसा ते चेव पवना॥३॥णाणायारो एसो अविगप्पो जिणेहि पण्णत्नो। उद्देसगमादीण पच्छिनुदित इम कमसो ॥४॥ णिविगनिय पुरिमड्ढेगमत्त आयंबिलं चाणागाढ़े। पुरिमादी खमणतं आगाढे एवमत्थेचि ॥ मू०२४॥५॥ उडेसे णिविगनिं पुरिमड्ढे सोहि होति अज्झयणे। सुतखंधे एगभलं अंगम्मि य होनि आयाम ॥६॥ एवं ताऽणागाढे गाढजोगम्मि होति पुरिमादी। अंतम्मि होति खम ॥७॥ सामाणं पण सुने मतमायामं च उत्थमथम्मि। अप्पत्तापत्नावत्तवायणदेसणादीसु ।। मू०२५॥ ८॥ ओहो सामण्णं न सवम्मी चेव होनि मुनम्मि। अविसेसिय सुनन्य आयाम चउत्थ कमसो तु ॥५॥ अप्पत्तो दुविहो तू मुतेण अत्येण चेव बोदव्यो । पुविड़ मुत्त अत्थे बितिय अपनो मुणेतको ॥१०५०॥ निन्तिणिआदि अपत्तो अपनो वए गए न णातवो। वायंतस्स तु एते चउगुरुया उहिसादिमु य ॥१॥ पत्नमवाएतम्सवि उदिसणादीसु चेव य पदेसु । चउगुरुया बोदव्वा अववाए कारणा सुद्धो ॥२॥ कालाविसजणादिसु मंडलिवसु. हाऽपमजणादिसु य। णिव्वीतियं अकरणे अक्खणिसेना अभत्तट्ठो। मू.२६॥३॥ कालाविसजणाती ण पडिकंतं तु जमिह कालम्स । निविहा य होति मंडली वसुहा भूमी मुणेतव्वा ॥४॥ भोयण सुत्ने अन्थे तिविहेसा मंडली मुणेयव्या। कालऽविसजण मंडलिभूमीअपमजणे विगती ॥५॥ सुत्ते वा अन्थे वा ण करि णिसेज्जं च अक्ख ण रएनि। चम्सहेणं वंदण उस्सगण कुव्वति चउन्थ ॥६॥ आगाढाणागाढम्मि सयभंगे य देसभंगे या जोगे छट्ठचउत्थं च उत्थमायंबिलं कमसो ॥मू०२७॥७॥ जोगो नु होति दुविहो आगाटो चेव तह अणागाढो। दुविहेऽवि होति भंगे सब्वे देसे य णातब्वो ॥८॥ सब्वम्भंगे छटुं होति च उत्थं नु देसें आगाढे । णागाढे तु चउत्थं स देसे य आयामं ॥९॥ कह भगो सन्नम्मी कह वा देसम्मि ? एव चोएति । भण्णनि फुडविगडाहि गाहाहिं इमं पवस्वामि ॥१०६०॥ विगति अणट्ठा भुंजति न कुणइ आयंबिल ण सदहति। एसो उ सबभगो देसे भंगो इमो होनि १०३० जीतकल्पभाय - मुनि दीपरनसागर Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ काउस्सग्गमकाउं मुंजइ भोत्तण वां.कुणति पच्छा । संदिसहत्ति व भणती एवं देसे भवे भंगो ॥२॥णाणायारो भणिओ अट्ठविहो एस तु समासेणं। अहणा अट्टविहो चिय आयारो दंसणे होति ॥३॥ णिस्संकित णिकेखित णिवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उपवूह थिरीकरणे बच्छतु पभावणे अट्ठ॥४॥दसणयारो अट्ठह एमेसो होइ तू समासेणं । एतेसि विवक्खो ऊ अइयारो होति सो य इमो ॥५॥ संसयकरणं संका कंखा अण्णोण्णदंसणग्गाहो। वितिगिच्छा अप्पणो उ सोग्गति होवा ण वावित्ति ॥ ६॥ अह्वा विदुगुंछा ऊ विउत्ति साहू हवंति णातवा । ते उ दुगूछति णिचं मंडलि मोए य जल्लादी ॥७॥णेगविहा इइडीओ पूयं परतित्थियाण दळूणं । सोतृणं वा जस्स उ मइमोहो होति मूदेसा ॥८॥ उबवूह होति दुविहा पसस्थ अपसत्थिया य णातव्वा । साहुणं तु पसत्था चरगादीणऽप्पसत्या तु ॥९॥ दसणणाणचरिते तवसंजमविणयवेयवश्चादी। अभुजयस्स उच्छाहवणं होति तु पसत्या ॥१०७०॥ अपसत्या उबव्हा अण्णाणे अविरतीय मिच्छते। चरगादी व९ते उववृहति दुविह एस गता ॥१॥थिरकरणावि य दुविहा पसत्य इयरा य होति णातका। साहूण पसत्था तू णाणादीएहिं सीयंति ॥२॥ बहुदोसे माणुस्से मा सीद थिरीकरेति एवं तु। एस पसत्या भणिया अपसत्येत्तो पवक्खामि ॥३॥ मिच्छादिट्ठीए तू चरगादी थिरिकरेंत अपसत्था। पासस्थादी अवा थिरीकरेन्तम्मि अपसत्था ॥४॥ वच्छल्डावि य दुविहा पसत्य इयरा य होति णातचा। आयरियादि पसत्था पासत्यादीण इयरा तु ॥५॥ आयरिय गिलाणे या पाहुणए असहुबाबुढादी। आहारोवहिमादीण समाहिकरणं पसत्थं तु॥६॥ पासत्योसण्णाणं कुसीलसंसत्तणीयवासीणं । अह य गिहत्यादीणं एमादी अप्पसत्था तु ॥७॥ दुविहा पहावणाविय पसत्थ इयरा य होति णायवा। तित्थगरादि पसत्था मिच्छत्तऽण्णाणे अपसत्या ॥८॥ तित्ययर पवयणे वा णाणादीणं च तिण्णिवी लोए। मम्गं णेधाणस्स उ पभावयंते पसत्थेसा ॥९॥ मिच्छत्तण्णाणादी पभावयतेस होति अपसत्था। एसो दंसणयारो पच्छित्तं तेसि वोच्छामि ॥१०८०॥ संकादिएम देसे खमणं मिच्छोववृहणादिसु य। पुरिमादी खमणतं भिक्खुप्पभितीण य चतुष्टं । मु०२८॥१॥ संकादी अट्ठपदा देसे सवे य होंति णायचा। संकादीण चउण्हं देसे खमणं तु णायचं ॥२॥ उवहादिचउण्हवि अपसत्थे देसि होयभत्तट्ठ। सबम्मि होनि मूलं एवं संकाइएमुंपि ॥३॥ एवं ता आहेणं अविसेसो होति एस पच्छित्ते। पुरिसविभागेणऽहुणा देसे सोही इमा होति ॥४॥ संकादी अट्ठसुवी देसे भिक्खुस्स होति पुरिमड्ढं । वसभे एक्कासणय आयाम होति उज्झाए॥५॥ आयरिय अभत्तहो एस विभागेण होइ सोही तु। अहुणा उववहादीणं अकरणे सोही इमा जयिणो॥६॥ एवं चिय पत्तेयं उवहादीण अकरणे जतीणं । आयामंतं णिवीतिआदि पासत्यसड्ढेसु ॥ मू०२९॥ ७॥ एवं चिय पुरिमइद अर्थतरूहिद्दपुरिसभेएण। पिह पिह जति ण करती उक्वूह पसत्यसाहूर्ण ॥८॥ एव थिरीकरणं तु वच्छत पभावणा पसत्थेसु। पवयणजइमादीर्ण अकरिते तत्यिमा सोही॥९॥ भिक्खुस्स तु पुरिमड्ढे वसभा भत्तेक होति सोहीतु। अभिसेगे आयामं आयरिए होयऽभनटुं॥१०९०॥ गाहापच्छदस्साऽणन्तरगाहाएं होति संबंधो। एयस्सऽवियन्तपए संबंधो नं चिर्म बोच्छ॥१॥ परिवारादिणिमित्तं ममतपरिपालणादि वच्छाहे। साहम्मिः | उनि संजमहेउं वा सवहिं सुद्धो ॥ ३०॥ २॥ पासत्थोसण्णार्ण कुसीलससत्तणीयवासीणं । जो कुणति ममत्तादी परिवारणिमित्तहेतु च ॥३॥ तस्स इमं पच्छित निधीयादी तु अंते आयाम। भिक्चूमादीयाणं चउण्ह वा होति जहकमसो ॥ ४॥ आदिग्गहणेणं पुण सड्ढा सण्णायगा व सेजतरा । दाहंताऽऽहारादी तेण ममत्तादि कुजा तु ॥५॥ अह पुण साहम्मिनी संजमहेउं च उजमिस्सति वा । कुलगणसंघगिलाणे तप्पिस्सति एवबुद्धी तु॥६॥ एव ममत्त करेंने परिवालण अहव तम्स वच्छाई । दढआलंवणचित्तो मुजमति सत्य साहू तु ॥७॥ एसो अट्ठवियप्पो अतियारो दंसणे समक्खातो। चारित्ते अतियारं इणमो उ समासतो वोच्छं॥८॥ एगिदियाण घट्टणमगादगाढपरितावणोडवणं। णिधीयं पुरिमड़दं आसणमायामगं कमसो ॥ मु०३१॥९॥एगिदिय पुढवादी जा पत्तेया वणस्सती होति। एतेसि पंचण्हवि पिह पिह संघट्टणे विगती ॥११००॥ परियावियऽणागाढे पुरिमइदं गाढ़े होति भत्तेक। उड़वणे आयाम एतो र्णताइणं वोच्छ ॥१॥ पुरिमादीखमणतं अणंतविगलिंदियाण पत्तेय पंचिदियम्मि एक्कासणादि कहलाणगमहेगं । मू०३२॥२॥ साहारणवणकाए बिय तिय च उरिदिए य विगलम्मि। एनेसि चउण्हंपी पिह पिह संघट्टणे पुरिमं ॥३॥ परिआवितऽणागाढे भनेक गाढ़े होनि आयाम । उहवणेऽभनटुं पंचिदिविसोहिमं बोच्छ ॥४॥ पंनियसंघट्टे एकासणयं तु होति णातवं । अणगाढे आयाम परिताविएं गाढे भनटुं ॥५॥ उहवणे कलाणं एग चिय होति नत्थ णायचं। पढमवए सोहेसा पमायसहियम्स णायचा ॥६॥ मोसादिमु मेहुणवजिएसु दशादिवत्थुभिण्णेसु। हीणे मझुकोसे आसणआयामखमणाई ।। मू:३३॥७॥ मोसाऽदत्तादाणं परिग्गहो चेव होति णातवा। एते मोसादिवया मेहुणवजा मुणेतवा ॥८॥ तत्थ मुसं वउभेदं दवे खेते य काल भावे य। तत्थ तिहा दवमुसं जहण्ण ममं तहुकोसं ॥९॥ एवं खेनमुसंपी कालमुसा नह य होति भावमुर्स। हीणं मजमुकोसं सभेदभिणं मुणे. तथं ॥ १११०॥ एवमदत्तपरिगह दवादी चउह होन्ति णायवा । हीणा मझुक्कोसा तिविहं पत्तेय पत्तेयं ॥१॥ मोसम्मि चउम्भेदे दवादी हीण मन्म उक्कोसे। दवादीणं कमसो इम १०३१ जीनकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नु सोहिं पक्क्खामि ॥२॥ दशमसे तु जइण्णे भनेक ममें होति आयामं । उक्कोसेसु चउत्थं एवं खेत्तादिएमुंपि ॥ ३॥ एवमदत्तपरिगह दवादीसुं तु एस चेच गमो। हीणे मज्झुकोसे आसणआयामखमणाई ॥४॥ एव मुसावायादिसु सोही मणिया समासतो एसा । एत्तो तु राइभत्ते सोहिं वोच्छं समासेणं ॥५॥ लेवाडयपरिवासे अभट्ठो मुकसण्णिहीए य। इतराय छट्ठभत्नं अट्ठमगं सेस णिसिभत्ते ।। मू०३४ ॥६॥ लेवाडय कंठोत्तं मुंठिबहेडादि अगयमादी वा। परिवासेन्ते एसि सोही साहुस्स भनढें ॥७॥ इतरा य गिलसण्णिहि गुलघत - नेडादिया मुणेनव्वा । परिवासंते तेसिं सोही छटुं तु साहुस्स ॥८॥णिसिभत्तसेस तिविहं दियहियं राइमुत्त पढम तु।राओगह दिवभुत्तं गह जणमुभययो रातो ॥९॥तिविहेवं णिसिमत्तं सोही एत्यं नु अट्टमं होति। तिविम्मिवि पत्तेयं एय समत्तं तु जिसिभत्तं ॥११२०॥ उद्देसियचरिमतिए कम्मे पासंडसघरमीसे य। बादरपाहुडियाए सपञ्चवायाहडे लोभे ॥३५ मू०॥१॥ अच्छउ ता गाइत्यो एतेसिं उम्गमादिअट्टण्हं । लक्खण आवत्ती दाणमेव वोच्छं सवित्थरतो ॥२॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाएं दोसा उ। दस एसणाएं दोसा संजोयणमादि पंचेच ॥३॥ सो उम्गमो चतुद्धा णामादी तत्थ दविमो होति। जोतिसतणोसहीणं मेहरिणकरेवमादीणं ॥४॥ अहवावि लड्डुगादी भावे तिविटुग्गमो मुणेतव्वो। दसण णाणचरिने चरितुग्गमेणऽत्य अहिगारो ॥५॥ किं कारणं चरित्ते अहिगारो एत्य होति मणितो तु?। चोदग ! सुण चारित्ते जे तु गुणा ते तु होति इमे ॥ ६॥ दसणणाणप्पभवं चरणं सुद्धे नु नम्मि नस्मुदी। चरणेण कम्मसुदी उम्गमसुद्धी चरणसुखी ॥७॥ पिंडोबहिसेजासू जेण असुद्धासु चरण णवि सुज्मे। पिंडोवहिसेनास सुद्धासु उ चरणसुद्धी उ॥८॥ तो चरणमुदिहेतुं पिंडस्स उ उगमेण अहिगारो। तस्स पुण उग्गमस्सा सोलस दारा इमे होन्ति ॥९॥ आहाकम्मुदसिय पूतीकम्मे य मीसजाये या ठवणा पाहुडियाए पायोयर कीत पामिधे ॥११३०॥ परियट्टिए अमिहडे उब्भिण्णे मालोहडे इय। अच्छेज अणिसट्टे अझोयरए य सोलसमे ॥१॥ एते सोलस दारा उदिट्टमियाणि विवरणं वोच्छं। एतेसि पढम आहा तम्स इम हानि णव दारा॥२॥आहाकम्मियणामा एगट्ठा कम्स वादि कि वादि। परपक्व यसपक्रख चउरोगहण य आणादा॥३॥ तत्थ इमे णामा खल आहाकम्मरसह सरीराणं उदयणवायर्ण तु जस्सट्ठा। मणमाहिता कुरति आहाकम्मं तय बन्ति ।माओरालग्गहणेणं तिरिक्खम-13 णयाऽहवा मुहमवत्रा। उद्दवणं उत्तासण अतिवातविवजिया पीला ॥६॥ कायवइमणा तिग्णि ऊ अहवा देहायुइंदियप्पाणा । सामित्तअवायाणे होड निवाओ ऊ करणम्मि ॥ ॥ हिययम्मि समाहेउ एगमणेगे व गाहगे जो नु। वहणं करेति दाता कायाण तमाहकम्मं तु ॥८॥ जस्सट्टा तं तु कतं तं जो भुंजनि सनं तु कायवहं । अणुमण्णइ आहेइ यस कम्मबन्ध नमायाए ॥५॥ अविय हु विवाहमों(झे) भणिनं मुंजतो आहकम्म तु। पसिदिलबन्धादीया पगडीओं करेति धणियादी ॥११४०॥ संजमठाणाणं कंडगाण लेस्साठितीविसेसाणं। भावं अहे करेती तम्हा तु भवे अहेकम्मं ॥१॥सं एगीभावम्मी जम उवरम एगीभाव उवरमणं । सम्म जमो वा संजम मणवहकायाण जमणं तु ॥२॥ चिट्ठा संजमो जहियं न होड हु संजमम्स ठाणं तु। न पुण चरित्नपजव होन्नि अणनेक्कठाणं तु ॥३॥ संजमठाणमसंखा उ कंडगं कंडगा असंखा उ। हवति उलेसाठाणं ने तु असंखेज जबमजनं ॥ ४॥ तनो परिहायता लेसाकंडा य संजमट्ठाणा। एरिसयाणमसंखा लोगा उ हवंति ठाणाणं ॥५॥ एसा संजमसेढी नत्य विमुद्रामु ठाणमादीसु। वतुकोसाऊमरठिनिजोगेसु होतृणं ॥६॥ नं मुंजम हेकम्म हेटिवेऽहिडवेनि अप्पाण। मुने उदियमहे तू करपकरचिणोवचिणमादी॥ ७॥ बंधति अहेभवाउं पकरेनि अहोमुहाई कम्माई । घणकरणं निशेण उ भावेण चयो उवचयो तु ॥८॥नेसि गुरुण उदएण अप्पयं दुग्गताएं पवडतं । ण चएति विहारेउ अहकम्म भण्णए तम्हा ॥९॥ अट्टाएं अणट्ठाए उकायपमहणं तु जो कुणनि । अणियाए य णियाए बेन्ति तु | दप्राऽऽयहम्मती ॥११५०॥ जाणतमजाणतो बहेति णिहिसिय ओहओ बावि। जाणगमजाणए या भणिता णिय अणिय होनेसा ॥१॥ व्यायहम्ममेय भावाया तिण्णि णाणमा. इंणि। परपाणपाडणरयो भावायं अप्पणो हणनि ॥२॥ णिच्छयणयम्स चरणाऽऽयविधाये णाणदसणवहावि । ववहारम्स उ चरण हयम्मि भयणा उ संसाणं ॥ ३॥ आयाहम्मग एयं एनो वोच्छामि अत्नकम्मं तु । जो परकम्मं अत्तीकरेति तं अत्तकम्मं तू ॥४॥ आहाकम्मपरिणयो फामुयमवि संकिलिट्टपरिणामो। आनियमाणो बज्मनि नं जाणम् अनकम्म तु ॥५॥ परकम्ममत्तकम्मीकरेतिनं जो उ गिहिउं भुंजे। चोएति परकिरिया कहष्णु अण्णस्य संकमति? ॥६॥ भण्णइ परम्पउनं जह चिसमइयं तु मारगं होनि। नह परकडेऽवि बंधो परिणामवसेण जीयम्स ॥ ७॥ वेती परकडभोयिण तो तुम्भवि एव होति बंधो उ। जह अण्णत्थ पउने कूडे जो पनि सो बसं ॥८॥ गुमराह जो पमनो जो य अदक्वा स बज्मए ति नहेब दक्खो य जो होति ॥९॥ इय जो यु अप्पमत्तो मणवायाकायजोगकरणेहिं। सोतु ण बज्मनि णियमा बजानि इयरी परकडेवि ॥११६०॥ काम सर्य न कुवति जाणतो पुण नहावि नम्गाही। वइदेति तप्पसगं अगिण्णमाणो उ (न वारेति ॥ १॥ नम्हा उ परकडम्मिवि अनीकरणं तु हायऽमुद्देहि । मणमादीहि कहं पुण अनिकर ? भण्णनि इमेहि ॥२॥ पडिसेवणपडिसुणणासंवासऽणुमोयणा चउण्हंपि। एएहिं पगारेहि अत्तिकरे तत्यिमे गाया ॥३॥ पडिसेवणाएं नेणा पडिमुणणाए य रायपुनातु। संवा (२५८) १०३२ जीतकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर 491 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Actor सम्मि य पहली अणुमोयण रायदुट्ठो उ ॥४॥ आहाकम्मियणामा एते चउरो समासतो भणिया। एगहिताणि अहुणा वोच्छामि समासतो चेव ॥५॥ एगट्ठ एगवंजण एगटुं णाणवं. जणं चेव। गाणट्ठएगवंजण णाणला गाणवंजणया ॥६॥ जह खीर खीर चिय एगट्ठ एगवंजणं दिहूँ। एगट्ट जाणवंजण दुद पयो वालु खीरं च ॥७॥णाणट्ठमेगवंजण गोमहिसजाइयाण खीरंति। णाणटुं गाणवंजण घडपडकडसगडरहमादी ॥८॥ एवमिहमाहकम्म आहाकम्मति पदमओ भंगो। आहअहेकम्मादी वितिओ सकिन्द इव भंगो ॥९॥ ततितो भंगो तू आतकम्ममहकम्म प(म)णगमादी य। आहाकम्म पडुचा णियमा सुण्णो चउत्थो उ॥११७०॥इंदत्थं जह सद्दा पुरंदरादी तु णातिवतंति। अहाहअत्तकम्मा तहा अहे णातिवत्तंति॥१॥ आहाकम्मेण अहे करेंति जं हणति पाणभूयाई। जंतं आतियमाणो परकम्मं अत्तणो कुणइ ॥२॥ एगट्टितदारमिणं अहुणा कस्स कडमाहकम्म भवे । भण्णति साह होनि ॥३॥ णाम ठवणा दविए खेत्ते काले य पवयणे लिंगे। दसण णाण चरिते अभिग्गहे भावणाहिंच॥४॥णामेणं साहम्मी जाव उ कालेण सह बो दक्षा । पवयण लिंगेणं वा साहम्मिय एल्थ चउभंगो॥५॥ पवयणमणुम्मुयंते दसणमादी उ भावणा जाव । सनत्य तु चउभंगा जोएयचा जहाकमसो॥६॥ एवं लिंगेणंपी तह दंस हि चउभंगा। भइएसु उवरिमेस हेद्विातपयं तु छडडेजा॥॥ एवं बदीए त सझेवि जहकमेण जोएजा। चउभंग जाव चरिमो अभिग्गहे भावणाहिं च॥८॥पत्तेयपद्ध णिण्हय उवासए केवली य आसज। खइयाइए य भावे पडुच भंगे तु जोएजा॥९॥ जत्थ तु ततिओ भंगो ण तत्थ कप्पति तु सेसए भयणा । तित्थगर(रि)णिण्हओवासगादि कप्पे ण सेसाणं ॥ ११८०॥ कस्सलि जहुदिहूँ एरिस साहम्मियाण णवि कप्पे। किंती? आहाकम्म असणाईयं इमं तं च ॥१॥ सालीमाई अगडे फले य मुंठी य साइमं होति। तस्स कड. णिट्ठियम्मि सुद्धासुद्धे य चनारि ॥२॥ कोहवराळगगामे वसही रमणिज भिक्ख सज्झाए। खेत्तपडिलेह संजय साचयपुच्छुज्जुए कहणा ॥३॥ जुज्जति गणस्स खेनं णवर गुरुणंति णस्थि पायोग। सालित्ति कए रुपण परिभायण णियगगेहेसु ॥ ४ ॥ वोलेंता ते व अण्णे जाव तु किमिय?ति कहिय सम्भावे। वज्जेन्ति एव णाए अहया अण्णं वयंती तु ॥५॥ एसडसणे कम्मं तू हवेज कह पाणगे हवेजाहि ?। तहविय साहु ण ठन्ती सावगपुच्छा दगं लोणं ॥ ६॥ अह ताव सावयो तू खणेज महुरोदगं तहिं अगई। अच्छति य दकिएणं जावाऽऽगय साहुणो तत्य ॥७॥ एत्यवि तहेव जाणण वजण तह चेव होति णातवा । एवं खाइम सातिम यच जहकमेणं तु ॥८॥ ककडिग अंबगा वा दाडिम दक्वा व बीयपूरा वा। एमाइ खाइमं तू साइम तह तिगदुआदीयं ॥९॥ किं आहायम्मंती ? एतं तं वणियं समासेणं । परपक्वसपक्खेती अहुणा दारं अणुप्पत्तं ॥११९० ॥ परपक्खो तु गिह त्यो समणा समणीय होइ तु सपक्खो । एल्थ कडनिट्टिएहिं चउभंगो होइ तं वोच्छ ॥१॥ तस्स कड तस्स निट्ठिय तस्स कडऽण्णस्स निट्ठियं चेव । अण्णकड तस्स निद्विय अण्णकडं निट्ठियऽण्णस्स ॥२॥ वावितळ्या मलिया कंडित इगदुउड निट्ठियं ण स तु। तिच्छड निट्ठिय होन्ती ते रद्धा दुगुणमहकम्म ॥३॥ कडनिट्ठियाण लक्खणमिणमो तु समासतो मुणेत। फासुकडं रखवा णिट्ठियमितरं कडं होति ॥४॥ समणटु बावियादी जा दुछडा एय होति तस्स कडं। तस्सट्ठ तिछडरद्धं णिहितमेसो पढमभंगो ॥५॥ समण? जाब दुछडा णवरि य तुरितिइ)यऽण्ण कार - णुप्पणं । तेसऽष्ट तिछडरदा वितिभंगो एस णातको ॥६॥ जा दुछडा अत्तट्ठा णवरिय साहू तु पाहुणा आया। तेसऽट्ट कया निछडा ततिभंगो एस णानधो ॥ ७॥ आयट्ठा जा दुछडा आयट्ठा चेव तिउडरदा या एस चउत्थो भंगो कतरे कप्पे ण कप्पइ वा ? ॥८॥ पढमततिए ण कप्पे बितियचउत्था उ दोण्णि वा कप्पे। एमेव पाणगेवी खानिम तह साइमे वेब ॥९॥साहुणिमित्ता रदं जायण फासुं कई तु ताव कडं। फासुकड णिट्टियं तू चाउलधुवणादि पाणम्मि ॥१२००॥ फलमादि छिण्णछोडिय फासुकडं णिहिनं मुणेतछ । एमेव साइमेवी अगमादी मुणेतया ॥ १॥ सत्रन्थ तु चतुभंगो जोएअश्वो जहकम होति। एत्यं तू परिहरणा विहि अविही सब बोदशा ॥२॥ छायपि विवजेंनी केयी फरहेनुगादिवुनम्स। न तु ण जुजति जम्हा कपि कप्पे विनियभंगे ॥३॥ परपचया छाया णवि सा रुक्खब्व बढिता कत्ता। णट्ठच्छाए य दुमे कप्पड़ एवं भणंतस्स ॥४॥ वदनि हायनि छाया नन्थिक पइयंपिव ण कप्पे। ण य आहाय मुविहिए णिवत्तयती रखी छाया ॥५॥ अघणघणवारिगगणे छाया गट्ठा दिया पुणो होनि । कप्पनि णिरायवे णाम आयवे तं विवजंतु ॥६॥ तम्हा ण एस दोसो तु संभवे कम्मलक्षणविहणो। तंपिय हु अतिपिणिवा बजेमाणा अदोसिडा ।। आ परपक्वसपक्खेती एमेयं वणियं समासेणं। चउरोनि दारमहुणा बोच्छामि समासनो चेव ॥८॥ चउरो अतिकमे बतिक्रमे य अतियार तह अणायारा । आहाकम्मे एते चउरोवि जहरूमं जोए ॥९॥ नम्स पुण संभवो ऊ आहाकम्मरस कह उ होजाहि ?। णिदरिसणं जह भरए सइदा दळूण मरुप्यं ॥ १२१०॥ महसड्ढादीएसु नेवि सदा ततो समुप्पण्णा। अम्हेऽविय साहूणं करेम भन्नं नु सविसेसं ॥१॥ सालीघयगुलगोरस नवेस वाडीफलेसु जाएमु । दाणा अभिगमसड्ढी आहाकम्मे निमंतणया ॥२॥ आमंतियपडिसुणणा सबासु सुभो अतिकमो होनि। पदभेयाइ बतिकमों गहिए होई अईयारो ॥३॥ मुहढे अणायारो १०३३ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरनसागर Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केयी गिलियम्मि बेन्ति अणयारं किं कारण? छूढेऽवी पुणरावत्ती कयाइ भवे ॥ ४ ॥ तो खेलमयम्मी णिम्गलइ ण एव पत्तोंऽणायारं गिलियम्मि अणायारो तस्स णियत्ती तओ णत्थि ॥ ५ ॥ सेसेहिं णियत्तेजा एग दुग तिगे व एत्थ दितो जह तिहि आगास ठितो पदेहिं विणियत्तिओ हत्थी ॥ ६ ॥ चउरो गहणे एवं अतिकमादी तु वष्णिया एते। आणादी चउरोऽविय दारं एतो पवक्खामि ॥ ७ ॥ आणं सवजिणाणं गेण्हंतो तं अतिकमति लुदो। आर्ण च अतिकम (कं) तो कस्साऽऽएसा कुणति सेसं? ॥ ८ ॥ एगेण कयमकजं करेति तप्पचया पुणो अण्णो। सायाबहुलपरंपर वोच्छेओ संजमतवाणं ॥ ९ ॥ जो जहवायं ण कुणति मिच्छादिट्ठी तओ हु को अण्णो ? वड्ढेति य मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो ॥ १२२० ॥ दुविहा चिराहणा खलु संजमतो चेत्र तह य आयाए। आहाकम्मग्गहणे तत्थ इमा संजमे होति ॥ १ ॥ बड्ढेति तप्पसंग गेही य परस्स अप्पणी चेव सजियंपि भिण्णदाढो ण मुयति गिद्धंधसो पच्छा ॥ २ ॥ खद्धे गिद्धे य रुया सुत्ते हाणी तिगिच्छणे काया। पडियरगाण य हाणी कुणति किलेसं च किस्संतो ॥ ३॥ पाएणऽपकिचेण य आहाकम्मं तु भारियं होति । एसा आतविराण तम्हा तू तं ण भोत्तनं ॥ ४ ॥ अम्भोजे गमणादी पुच्छा दच्व काल देस भावे य एव जयंते छलणा दिता तत्थिमे दोण्णि ॥ ५ ॥ जह वंतादि अभोजं जाव य चंदो य सूरउदयं च । उज्जाणा दोणि भवे सवित्थरं सब्ब बोद्धव्वं ॥ ६ ॥ जह ते दंसणकंखी अपूरितिच्छा विणासिया रण्णा दिट्ठेऽवितरे मुक्का एमेव इहं समोआरो ॥ ७॥ आहाकम्मं भुंजति ण पडिकमए य तस्स ठाणस्स एमेव अडति बोडो लुकणिलुको जह कवोडो ॥ ८॥ आहाकम्मदारं एवमिणं मे समासतो कहितं । आवत्ती दाणं वा विसोहिमेतेसिमं वोच्छं ॥ ९ ॥ आहाकम्मे चतुगुरु आवत्ती दाण होयऽभत्तङ्कं । उद्देसिपि दुविहं आहे व विभागओ चेव ॥ १२३० ॥ ओहे मासलहुँ तू आवत्ती दाण होति पुरिमइदं । होन्ति विभागुद्देसे मूलवत्युं इमे निष्णि ॥ १ ॥ उद्देस कडे कम्मे एकेक चउडिहो भवे भेदो। कह होति चउच्भेदो ? इमाहि गाहाहि बोच्छामि ॥ २ ॥ उद्देसियं समुद्देतियं च आदेसियं समाए । एमेव कडे चउरो कम्मम्मिवि होंति चत्तारि ॥ ३ ॥ जावंतिगमुद्देसो पासंडीणं भवे समुद्देसो समणाणं आएसो णिग्गंधाणं समाएसो ॥ ४ ॥ उद्देसियम्मि लहुओ पत्तेयं होति चतुसु ठाणेसु। एमेव कडे गुरुओ कम्मादिम लहूग तिसु गुरुगा ॥ ५ ॥ श्री (चउ) लहुमासा गुरुगा चउगुरुगा तिष्णि तू मुणेतवा तवकालेहिं विसिद्धा दाणं तु अतो पवक्खामि ॥ ६ ॥ लहुमासे पुरिम गुरुमासे होति एगभत्तं तु । चउलहुए आयामं चउगुरुए होय भन्त ॥ ७ ॥ पूतीकम्मं दुबिहं दबे भावे य होइ णायचं (भावि पुण दुविहं)। दवम्मि छगणधम्मी भावे दुविहं इमं होति ॥ ८ ॥ सुमं बाबादरं वा दुविहेयं होति ह्र मुणेतनं । वादर पुणरवि दुविहं उनगरणे भत्तपाणे य ॥ ९ ॥ इंधण गंधे धूमे सुहुमेयं एत्य णत्थि पूइत्तं । चुल्लुक्खलियादीणं उवगरणे पृतियं होति ॥ १२४० ॥ एवं मासलहुं तू आवत्ती दाण होति पुरिम डोए लोणे हिंगू संकामण भत्तपूतीयं ॥ १ ॥ एत्वं मासगुरुं तू आवत्ती दाणमेगभत्तं तु । उबगरण भत्तपाणे पूतिस्स उ लक्खणं वोच्छं ॥ २ ॥ सिज्झतस्वगारं सिद्धस्स करेति वाचि जं दवं तं उबगरणं भण्णति चुक्खलिदविडोयादी ॥ ३ ॥ संवट्टकया चुडी उक्खलि डोए तहेब दशी य। सो होति आकम्मी पूतीकम्मं इमं होति ॥ ४ ॥ संघियचिक्खणं सयचुलीखंडियाइसठवणं। एमेव उक्खलीयवि फड्डगमादी तु जं लोए ॥ ५ ॥ एवं सतडोतीए दशीए वावि संघ दारुणं । अग्गिलियं जदि लाए गंडफलं वावि एगतरं ॥ ६ ॥ उवगरणपूति भणितं एतो वोच्छामि भत्तपूतिं तु डाए लोणे हिंगू संकामण फोडणं धूमे ॥ ७॥ अन्तट्टिय आयाणे डागं लोणं व कम्म हिंगुं वा । तं भत्तपाणपूर्ति फोडणमण्णं व जं भइ ॥ ८ ॥ संकामे कम्मं तेणेव य भायणेण संकामे जं सु(द) तं पूर्ति अहवा रदं तहिं होजा ॥ ९॥ अंगारभूइ थाली वेसण हेद्वामुहीए जं धूमे संघटुकडे तम्मि उ जत्तट्ट करेन्ते पूतीयं ॥ १२५० ॥ मीसज्जायं तिविहं जावंतिगमीत वितिय पासंडे साहूमीसं ततियं पच्छित्तं तेसियोच्छामि ॥ १ ॥ पढमे चउलहुया तू चिंतिततिते चउगुरू मुणेतवा । तवकालेहिं विसिट्टा चउगुरुगा होन्ति णायवा ॥ २ ॥ चउलहुए आयामं चउगुरुए होति जं चउत्थं तु । मीसज्ञातं भणितं ठेवणाभतं अतो वोच्छं ॥ ३ ॥ ठेवणाभत्तं दुविहं इत्तरठवियं तव चिरतवियं इत्तरठविए पणगं चिरठविए होति मासलहुं ॥ ४ ॥ पणगे णिविगई तू लहुमासे दाण होति पुरिमइदं । इत्तर चिरतविए या समासतो लक्खणं वोच्छं ॥ ५ ॥ संघाडग हिंडते परिवाडिठिएस (तिसु) तु गेहेसु एक्को दोसुवयोग करेति भिक्खाऍ गेहेसु ॥ ६ ॥ बितिओ साणादीणं देयुवओगं प (घ) रे तहेकम्मि । तेण परेण चउत्थे उक्खित्ता इत्तरद्रुविया ॥ ७ ॥ चतुथघरा तु परेण चिरठविया जाव पुष्चकोडी उ एवं ठवियाऽभिहितं एत्तो बोच्छामि पाहुडियं ॥ ८ ॥ सा पाहुड़िया दुविहा सुमा तह बादरा योद्धा । ओसकण उसके एकेका सा भवे दुविहा ॥ ९ ॥ सुहुमाए लडपणगं आवत्ती दाण होति णिचिगतिं । चउगुरुग बायराए आवती दाणऽभनङ्कं ॥ १२६० ॥ एवं सुहुमा तु इमा जह काइ अगारि कन्तमाणी उ । भणिया तु चेडरूवेण देहि अम्मो ! महं भत्तं ॥ १ ॥ भणितोद्वितोत्ति होही जाया! कन्नामि ता इमं पेलें । जइ तं सुणेति साहू ण ग च्छए तत्थ आरंभो ॥ २ ॥ अस्सुट्टिया भणती तुज्झवि देमित्ति किति परिहरति । किह दाणि ण उडिस्से ? साहुपभावेण लब्भामो ॥ ३ ॥ एवं णाऊण ततो परिहरनी एस होनि ओसक्का । १०३४ जीतकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस्सकण कन्तंती भणिता चेडेण दे भत्तं ॥ ४ ॥ कन्तामि मणति पेलं तो ते दाहामि पुत्त ! मा रोव। सा य समत्ता पेलू देही एत्ताहे सो भणति ॥५॥ मा ताव शंख पुत्तय! परिवाडीए हेहिहा साहू एयट्टमुट्ठिता ते दाहं सोउं विषज्जेति ॥ ६ ॥ अंगुलिए चालेउं कड्डति कप्पट्टतो घरं जत्तो किन्ति ? कहिए ण वञ्चति पाहुडिया एअ सुहुमा उ ॥ ७॥ बायरपाडुडियाविय ओसक हिसकणे य दुविहा उ कप्पट्टगसंघाडय ओसरणेणं च णिद्देसो ॥ ८ ॥ जह पुत्तविवाहदिणो ओसरणातिच्छिए सुणिय सड्ढो। ओसके ओसरणं संखडिपाहेणदशट्टी ॥ ९ ॥ अप्पत्तम्मी ठवियं ओसरणे होहिइति उस्सके। संपागडमितरं वा करेति उज्जूमणुज्जू वा ॥ १२७० ॥ मंगलहेतुं पुण्णट्टया व ओसकें तं च उस्सके। किं कारणं? ति पुट्ठो सिट्टे ताहे विवजेन्ति ॥ १ ॥ पाहुडिभतं भुंजनि ण पडिकमए य तस्स ठाणस्स । एमेव अडति बोडो लुकणिलुको जह कवो (मे) डो ॥ २ ॥ पाहुडिया भणितेसा एत्तो पायोवगरण बोच्छामि। पादू पयासणम्मी अपगासपगासणं जं तु ॥ ३ ॥ पायोकरणं दुविहं पागडकरणं पगासकरणं च पागडि मासलहुं तू पगासकरणे उचतुलडुगा ॥ ४ ॥ लहुमासे पुरिमइदं चतुलहुए दाण होति आयाम पायोकरणं भणियं कीनकडमयो तु वोच्छामि ॥ ५ ॥ कीतकडंपिय दुविहं दद्दे भावे य दुविहमेकेके आयपरकीयमेवं पच्छित्तं तेसि वोच्छामि ॥ ६ ॥ दशायपरकीए दुविहेवि चाहू मुणेय । दाणं आयामं तू भावम्मि अतो परं वोच्छं ॥ ७ ॥ भावे तू आयकीयं चउलहुगा एत्थ वा मुणेयचा दाणं आयामं तू भावे परकीय वोच्छामि ॥ ८ ॥ मासलहुमिहावनी दाणं पुण एत्थ होति पुरिमइदं कीयकडेयं भणियं पामिचमतो उ वोच्छामि ॥ ९ ॥ पामिचंपिय दुविहं लोइय लोउत्तरं समासेणं। लोइऍ चतुलडुगा तू आवत्ती दाणमायामं ॥ १२८० ॥ लोउत्तरे मासलहं दाणं पुण एत्य होति पुरिमइढं। पामिचेयं भणियं परियट्टियमिणमो वोच्छामि ॥ १ ॥ परियट्टियंपि दुविहं लोइय लोउत्तरं समासेणं । लोइऍ चलगा तू आवती दाणमायामं ॥ २ ॥ लोउत्तरे मासलहुं आवत्ती दाण होति पुरिमदं । परियट्टिय भणिएयं अभिहडदारं अयो वोच्छं ॥ ३ ॥ तं होति दुहाऽभिहडं अतिष्णं चेव न अणाइणं । आण्ण गोणिसीहं होति णिसीहं च दुविहं तु ॥ ४ ॥ छष्णं णिसीह भण्णति पगडं पुण होति गोणिसीहंति एक्केक्कं परगामे सम्गामे चेव बोद्ध ॥ ५ ॥ सग्गामाहड दुविहं आइण्णं चैव होयणादृण्णं । अणइण्णे मासल दाणेत्यं होति पुरिमर्द्धं ॥ ६ ॥ परगामाइड दुविहं सदेस परदेसओ व णायचं। एक्केक्कं पुण दुविहं जलेण तह थलपणं च ॥ ७ ॥ सप्पचवाय णिष्पचवाय पुण होति दुविहमेक्केक्कं । संजमआयविराण सपञ्चवायम्मि जोएजा ॥ ८ ॥ परदेसआहडम्मी सपश्चवायम्मि होन्ति चउगुरुगा। णिप्पचबाएं लडुगा दाणं एतेसि वोच्छामि ॥ ९ ॥ चउगुरुगे अभत्तङ्कं दाणमिहं होति तू मुणेयां चउलहुए आयामं एमेव य होति सदेसे ॥ १२९० ॥ उम्भिण्ण होति तिविहं पिहितुम्भिणं कवाडउभिण्णं जनं पिहितुभिण्णं तं दुविहं फामुगमफासुं ॥ १ ॥ फासुगउगणेणं तू दहरएणं च एत्थ मासलहु । तहियं पवहणदोसा दाणं पुण एत्य पुरिमइदं ॥ २ ॥ अप्फासुपुढविमादी सचिणं तु जंभवे लितं । तहियं उभिड़ंत कायाण विराणा हणमो ॥ ३ ॥ सचित्तपुढविलित्तं लेलू सिलं वावि दाउमोलित्तं सचित्तपुढविलेवो चिरंपि उदगं अचिरलित्ते ॥ ४ ॥ चिरनिपुढविकायो तिम्मेतुं लिप्पमाणि आउवहो । जउमुद्दतावणम्मी तेऊ वाऊवि तत्येव ॥ ५ ॥ पणगनियाइ वणस्सति तसकुंयुपिपीलिएवमादीहिं एते ऊ लिप्यंते इमे तु दोसा तु उछिने ॥ ६ ॥ परम्स तं देनि सए व गेहे, ते व लोणं व घयं गुलं वा उग्घाडितं तं तु करेयऽवस्सं स विकयं तेण किणाति वऽणं ॥ ७ ॥ दाणकयविक्रयादी अहिगरणं होति अजयभावस्स । गिवति जे य तहियं जीवा मुइयंगमूसादी ॥ ८ ॥ जहेब कुंभादिसु पुशलिते, उम्भिजमाणम्मिवि कायघाओ। ओलिप्पमाणेवि तहेब घाओ, उम्भिण्णमेयं पिहिर्यपि वृतं ॥ ९ ॥ आ वनि दाणमेत्यं आहेणं चउलहू मुणेयचा दाणं आयामं तु विभागओ कायणिप्फण्णं ॥ १३०० ॥ एमेव कवाडम्मिवि कायवहो होइ ऊ मुणेयो। उप्पिहिय पिहिने सविसेसा जंन. माई ॥ १ ॥ घरकोइचारा आवतण पेढियाए हिट्टवरिं। जिन्ते ठिते य अन्तो डिंभादीपेलणे दोसा ॥ २ ॥ एत्यवि चउलहूगा तू आहेणं दाणमेत्यमायामं । होति विभागेणं पुण पुढवादीका यणिफणं ॥ ३ ॥ उच्भिण्णेयं भणियं अगुणा मालोहडं पवक्खामि तं तिविहं उड्ढमहे तिरियं मालोइडं चैव ॥ ४ ॥ उड्ढ दुभूमादीयं अह उट्टियकोट्टयाइयं होति । निरि अदमालगादी हत्थपसाराउ जं गिव्हे ॥ ५ ॥ सपि य नं दुविहं जण उक्कोसयं च बोद्धवं। अग्गपएहि जहणणं तश्विरीयंति उक्कोसं ॥ ६ ॥ मालोहड उकोसे आवती चउल मुणेतथा। दाणं आयामं तू जहणमालोहडमियाणि ॥ ७ ॥ एत्थ तु मासलहुत्तं आवत्ती दाण होति पुरिमढं । इय मालोइड भणितं अच्छे अट्टण वोच्छामि ॥ ८ ॥ निविहं पुण अच्छे भूय सामी य तेणए चेव । एक्केक्के चतुलहगा दाणं पुण एत्यमायामं ॥ ९ ॥ अणिसिपि य निविहं साहारण चोलए य जड़डे य। निविहेऽविय अणिसट्टे चउलहूगा दाणमायाम ॥ १३१० ॥ साहारणमणिसहं दाइयमादीण जं तु होजाहि खीरे आपण संखडि दिहंतो गोट्टिभत्तेणं ॥ १ ॥ सो चोलगोऽवि दुबिहो छिष्णमछिष्णं समासतो होनि। परिद्धिष्णं चिय दिजनि एसो छिण्णो मुणेतो ॥ २ ॥ अच्छिण्णपरीमाणो सोऽवि णिसट्टो तहेब अणिसट्ठी । णीसट्टो तेसिं चिय णेतृण समप्पितो जो तु ॥ ३ ॥ आणेनि मुत्तसेसं जं गहियं एय होति १०३५ जीतकल्पभाष्यं 1 मुनि दीपरत्नसागर 98464 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनिस । छिण्णम्मि चोलगम्मी कप्पति धेत्तुं णिसट्टे य ॥ ४ ॥ अणिसमगुण्णायं कप्पति घेत्तुं तहेब अहि। चोलग अणिसद्वेय जडणिस अतो वोच्छ्रं ॥ ५ ॥ रायकुलातो भत्तं णीयं जड्डस्सतं ण कप्पति तु । णवि पिंडमंतराय अदिष्णगहणादिदोसा य ॥ ६ ॥ जड्डो व पतोसगतो परिपाडे वसहिमादि भंजिजा। डॉबस्स संतिओवि हु अदिट्ठो कप्पती घेत्तुं ॥ ७ ॥ अणिसट्ट भणियमेयं एनो अज्झोयरं पवक्खामि। अहियं उदरं अज्झोयरो तु जं सगिहमेगम्मि ॥ ८ ॥ अहिगं तु तंदुलादी छुन्भति अज्झोयरो उसो तिविहो । जावतिय पासंडे साहू अज्झोयरे चैव ॥ ९ ॥ जावतियम्मि लहुतो आवत्ती दाणमेत्थ पुरिमड्ढं पासंडी साहूण य मासगुरू दाण भत्तेक्कं ॥ १३२० ।। एसो अज्झोयरयो सोलस वा उग्गमस्स दोसेते । व कोडीउ भवति किं भणियं होति कोडि?त्ति ॥ १ ॥ कोडिजंते जम्हा बहवो दोसा ऊ सहिय एत्थ कोडित्ति तेण भण्णति णव कोडीओ इमा ताओ ॥ २ ॥ हणण णावण अणुमोदणं च पयणं पयावणऽणुमाया। किणण किणावण अणुमोयणं च कोडीउ णव एया ॥ ३ ॥ णव चेवऽद्वारसगं सत्तावीसा तहेव चउपण्णा णउती दो चैव सया तु सत्तरा होन्ति • कोडी ॥ ४ ॥ ता चैव य णव कोडी रागदोसेहिं गुणिय अट्टरस। अण्णाणमिच्छअविरति तिहिं गुणिए सत्तवीसा तु ॥ ५ ॥ पुढवादी छ संजय छहिं गुणिया होति एस चतुपण्णा । ती मादीदसहि ऊ गुणिया णउती तु बोद्धवा ॥ ६ ॥ णउती तिहिं गुणिया तू दंसणणाणेहिं वह चरित्तेणं । सत दोनि होन्ति सयरा कोडीणं एस वित्थारो ॥ ७॥ संखेवेण दहा ऊ उग्गमकोडी विसोहिकोडी य । उग्गमकोडी छविह विसोहिकोडी अणेगविहा ॥ ८ ॥ हणणतियं पयणतियं उग्गमकोडी तु छविहा एसा अहवावि इमा छबिह उम्गमकोडी मुणेयवा ॥ ९ ॥ आहाकम्मुद्देसिय चरिमतियं पूर्ति मीसंजायं च । बादरपाहुडियाविय अज्झोयरए य चरिमदुगे । १३३० ॥ एसा विसोहिकोडी छन्हिया समासतोऽभिहिता । एतो छदा सुद्धं वोच्छामो आणुपुत्रीए ॥ १ ॥ उग्गमकोडी अवयव लेवालेवे य अकयकप्पे या कंजिय आयामे चातुलोयसंसदृपूती य ॥ २ ॥ सुक्केणवि जं छिकं असुइण तं धोत्रए जहा लोओ। इय मुक्केणवि छिकं धोवइ कम्मेण भाणं तु ॥ ३ ॥ लेवालेवेत्ति जं वृत्तं, जंपि दवमलेवडं । तंपि घेत्तुं ण कप्पेति, तक्कादी किमु लेवडं ? ॥ ४ ॥ कंजियमादीगहणं कम्हा तु कतं तु ? भण्णती सुणसु । साहुस्स उ आहेतुं जं कीरइ आहकम्मं तं ॥ ५ ॥ इय णाउमाह कोयी साहुणिमित्ता य ओयणो उ कतो ण उ कंजियमादीणि तो वज्जो ओयणो एगो ॥ ६ ॥ ण उ कंजियमा दीणि तो म्हणे कते तमेव तु । जदिवि ण दिट्ठा आहा ओदणमट्ठा तहवि वजे ॥ ७ ॥ सेसा विसोहिकोडी ठवितगमादी तु जइ वऽणाभोगा। गहिता हवेज छुद्धा अण्णम्मी भत्तपा ॥८ ॥ हेतु जहासत्तिं विगिंचित तमण्णपाणं (सं) तु। दवादिकमेणं तू इमेण वोच्छं समासेणं ॥ ९ ॥ दव्वे तं चिय दव्वं खेत्तपदेसेसु जेसु तं पडियं काले अकालहीणं जावऽण्णा भिक्ख णऽक्कमति ॥ १३४० ॥ भावे अरत्तदुट्ठो असढो जं पासती त छड्डे । अणलखियमीसदवे सङ्घविवेगोऽवयवे सुद्धो ॥ १ ॥ अह पुण ण संथरेजा ताहे परिठावणा तु तम्मत्तं । इत्थं चउभंगो तू सुक्खोउणिवाययो इणमो ॥ २॥ सुक्खे सुक्खं पडियं सुक्खे उलं तु उल्ले" सुक्खं तु उल्ले उई च तहा एस चउत्थो भवे भंगो ॥ ३ ॥ सुक्खे सुक्खं पडियं पढमगभेदो विगिचति सुहं तु बितियम्मि दवं छोढुं गालेति दवं करं दाउं ॥ ४ ॥ ततियम्मि करं छोढुं उलिंप ओदणादिजं तरति । चरिमे सङ्घविवेगो दुलभदवे यावि तम्मत्तं ॥ ५ ॥ एव विगिचिन्तऽसदो जेसु पदेसुं तु सुज्झए साहू मायावी णवि सुज्झे तम्हा असढेण होय ॥ ६ ॥ एवं गवेसणाए उग्गमदारं समासतो भणितं । उप्पायणमहुणा तू समासओऽहं पवक्खामि ॥ ७ ॥ सोलस उग्गमदोसे गिहिणो उ समुट्टिए वियाणाहि उप्पायणाएँ दोसे साहुतु समुट्ठिए जाण ॥ ८ ॥ णामं ठवणा दविए भावे उप्पायणा मुणेयवा दव सच्चित्तादिविहाणचित्ते दुपयादि तिविह इमा ॥ ९ ॥ आयामुयमादीहिं वालचियतुरंगवीयमादीसु । सुयआसदुमादीणं उप्पायणया तु सचित्ता ॥ १३५० ॥ कणगरययाइयाणं जहधातुविहिता तु अश्वित्ता। मीसा उ सभंडाणं दुपयातुष्पायणा दवे ॥ १ ॥ भावे पसत्थ इयरा कोहादुष्पायणा तु अपसत्था कोहादिजया धायादिणं च णाणादि तु पसत्था ॥ २ ॥ अपसत्थियभावप्पायणाएं एत्थं तु होति अहिगारो। सा सोलसहा तु इमा धायादीया मुणेयवा ॥ ३ ॥ घाती दूती निमित्ते आजीव वर्णीमए तिमिच्छा य कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एते ॥ ४ ॥ पुर्विपच्छासंधव विज्जा मंते य चुण्ण जोए य उप्पायणाएं दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥ ५ ॥ धारयति घीयए वा घयंति वा तमिति तेण धाती तु । जहविभवं आसि पुरा खीराई पंच धातीओ ॥ ६ ॥ खीरे यमजणे मंडणे य कीलावणंकघाती य धाइतं कुणमाणो एगयरं धातिपिंडो तु ॥ ७ ॥ तं दुविहं धातितं करणे कारावणे य बोदवं तं पुण दारममादी पहुच धानित्र कुजाहि ॥ ८ ॥ पंचविधातिपिंडे आवत्ती चउलहू मुणेयचा दाणं आयामं तू दूतीपिंडं अतो बोच्छं ॥ ९ ॥ सम्गाम परम्गामे दुबिहा दूती तु होति णायचा एकेकाविय दुविहा पागड छष्णा य णाया ॥ १३६० ॥ पागड णिस्संको चिय अप्पाहेन्तो व भणति इयरो वा सेजातरखंतिया तू धूया वा अण्णगामम्मि ॥ १ ॥ भिक्खादी वर्धतो अप्पाणि णेति खंतियाईणं सा ते अमुगं माया सो व पिया पागडं भणति ॥ २ ॥ छण्णा पुणाइ दुविहा दूती एत्थं तु होति णायचा । लोउत्तरे तत्थेगा वितिया पुण उभयपक्खेवि ॥ ३ ॥ लोउत्तर संघाडग संकेतो ताव छण्णवयणेहिं । कह पुण छष्णं ? सेज्जायरीय अप्पाहिओ गंतुं ॥ ४ ॥ संघाडयपचयद्वा बेती दूतित्ति अम्ह णवि कप्पे अधिकोतिया सुया ते जा वे इमं भणसु (२५९) १०३६ जीतकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीं ॥५॥ सावि य भणती होतू वारिजिहिती अयाणिया सा उ। लोउत्तरछण्णेसा उमयच्छणं अतो वोच्छं ॥६॥ जामाइतित्थजत्तागतस्स ओवादि पोकडेण कतं । सो आगतोत्ति धूया उभयच्छणं इमं भणति ॥ ७॥ एव भणेजहि खंती तं किर तह चेव चिंतियं जंतु। जह णवि संघाडो से अण्णो व वियाणती कोति ॥८॥ उभयच्छण्णा एसा सम्गामे अभि रग्गामे दुह दृती कह पुण करेजा ॥९॥ गामाण दोण्हवर सेजायरिधूय तत्थ परगामे। सामत्यं गामस्स य जह एवं हणिमा परगार्म ॥१३७०॥ संतोत नत्य पच्छा भिक्खायरियाए तो तु सेजतरी। अप्पाहेती खंतं मम धय भणेजस एवं॥२॥जह गामों पति एवं ॥१॥जह गामा पडिउकामो सा उभणेजासु मा कुण पमायं। तीय कहियं तु तस्सा तेणविक गामस्स तं कहियं ॥२॥ ते य ठिय एगपासे इतरे पडिता कर्त तहिं जुदं । सेजातरिपतिपुत्ता जामाता चेव बहिओ उ ॥३॥ बेति जणो केणेयं कहियोति तओ उति सेजयरी। जामातिपुत्तपतिमारएण खंतेण में सिडें ॥४॥ जम्हा एते दोसा दूतित्तं खूण कप्पती तम्हा। दृतीपिंटे चउलह आवत्ती दाणमायामं ॥५॥णियमा तिकालविसयम्मि णिमित्ले उबिहे भवे दोसा। सनंत बद्रमाणो आतभए तत्थिमे णातं ॥६॥ आकंपिया णिमित्तेण भोडणी केणतीत लिंगीण। भोडयचिरगयपच्छा केवतिकालेण एजाहि ॥७॥ का चिय एतित्ती इयरी पडिभणति पञ्चयो को उ?। तुह गुज्झदेसतिलओ सुविणाती पच्चए कहए ॥८॥ तीय कयं आउत्तं पेसविओ परिजणो य पच्चोणी। इतरोऽवि अविदिओ चिय पविसिस्सं भोइओ चिन्ते ॥९॥ घरवित्तं ता मित्तं दिवो उवणिग्गओ य परिवग्गो। कह तुम्भेणाय ती पेसविआ भोतिणीए उ॥१३८०॥ पुट्ठा य आदिअत्ते(विय ते)णं तीय य सिटुं सलाहमाणीए। समणे नीयभविस्सं जाणइ तिलओ य णे सिट्ठो॥१॥ कोवो वलवागम्भं च पुच्छितो पंचपुण्डमाहंसु । फालण दिट्ठो जदि णेव तो तुहं अवि तह कतेवं ॥२॥ तम्हा ण वागरेजा णिमिनपिंडेस वण्णिओ तु मए। तीतणिमित्ने चउलहु आवत्ती दाणमायाम ॥३॥ पडुपण्णऽणागए या चउगुरुगा दाण होयऽभत्तटुं। आजीवपिंडमेत्तो समासओऽहं पक्क्खामि ॥४॥ जाती कुल गण कम्मे सिप्पे आजीवणा उ पंचविहा । सूयाएं असूयाए व कहेड अप्पाणमेकेके ॥५॥ जाती० पंचविहा। एकेके चतुलहुगा आवत्ती दाणमायामं ॥ ६॥ जाती माहणमादी मातिसमुत्था व होति बोदवा। तहियं सूयाए त जाणावेमेहि अप्पाणं ॥७॥ होमाइवितहकहणे णज्जति जह सोत्तियस्स पुत्तोत्ति। वसितो वेस गुरुकुले आयरियगुणे व सुएति ॥८॥ सम्ममसम्मा किरिया अणेण ऊणाहिया व विवरीया। समिहामंताऽऽहुति ठाण जाय काले य घोसादी॥९॥ बेति फुडं चिय सुकयं असोहणं वावि ते कतमितंति । तहित भदगपंता दोसा इणमो भवंती तु ॥१३९०॥ भदो अम्ह सपक्खो एसत्ती भिक्स देजहेयस्स। पंतो ओभामेती मुहमंगलि कुणति भिक्खट्ठा ॥१॥ उम्गाईयं तु कुलं पितुवंसादिव नत्थवि तहेच । माउसरस्सतमादीण जम्पई मंडलपवेसं ॥२॥ देउलदरिसणभासाउवणयणे मण्डवा(ला)इ सूएति। जंतुप्पीलणमादि तु कर्म तुण्णादियं सिप्पं ॥३॥ अहवा जं सिक्विजइआयस्तिवदेसतो तयं सिप्पं । जं कीरती सयं तु तं कम्म तेसु सवेमु॥४॥ कत्तरिपयोयणट्ठा वत्थू बहुवित्थरेस तह चेच। कम्मेसु य सिप्पेसु य सम्ममसम्मेसु मतिअतरा ॥५॥ सम्वेस भदपंता णियमा दोसा हवंति विष्णेया। आजीवगपिडेसो एत्तो तु वणीमर्ग वोच्छं ॥६॥ किं भणियं वणीमेति भण्णति वणि जायणम्मि धातू तु । वणिमगपायप्पाणं वणिमोती भण्णए तम्हा ॥ ७॥ ते पंचहा वणीमग जायणवित्ती तु होन्ति बोदव्बा। समणा माहण किवणे अतिही साणा य पंचमया ॥८॥ समणे माहण किवणे अतिही साणे य जाण पंचसुवि। पत्नेयं चउलहुगा आवत्ती दाणमायाम ॥९॥ मयमादि वच्छगंपिव वणेति आहारमादिलोभेणं । अप्पाण समणमाहणकिमिणाऽतिहिसाणभत्तेसु ॥१४००॥ णिगंथसकतावसगेरुयआजीव पंचहा समणा। तेसि परिएसणाए लोभेण वणेइ को अप्पं ? ॥१॥ तच (वाणियादि वटुं भुंजते दातुपीतिअणुकूलं। साहु तुमे विप्प ! कयं दाउं जं देसि एनेसि ॥२॥ मुंजंनि चित्तक. म्मट्टियव्य कारुणिय दाणरुइणो वा। अवि कामगहभेसुवि णवि णासह किं पुण जतीसु? ॥३॥ मिच्छत्तथिरीकरणं उग्गमदोसा व ते पुण करेजा। चडुकारऽदिण्णदाणा पचस्थिग मा पुणो एंतु ॥४॥ एमेव माहणेसुवि दिज्जतं दिस्स बेति अणुकुलं । दोण्हं भणिय दाणं समणाणं माहणाणं च ॥५॥ लोगाणुग्गहकारिसु भूमीदेवेसु बहुफलं दाणं। अवि णाम भबंधुसु कि पुण उकम्मणिरएसु?॥६॥ किमणा उ कुट्टिकरपायअच्छिमादीसु जुगिया जे तु। दट्टण तेसि देन्तं तस्सऽणुकुलं इमं भणति ॥७॥ किमणेसु दुबलेसु य अबंधवायंकजुगियंगेसु । याहेजे लोए दाणपडायं हरति देन्तो ॥८॥ते चिय एत्यवि दोसा कोई पुण देति दाणमतिहीणं । तत्थवि अणुप्पयं तु दाणपनिस्सा इमं भणति ॥९॥ पाएण देनि लोगो उबगारी परिचिए व झुसिए वा। जो पुण अदाखिणं अतिहिं पृएति तं दाणं ॥१४१०॥ कोड पुण साणभत्तो भत्तं साणादियाण दिजंतं। तस्स य पियंति भासनि तुममेगो जाणसी दाउं॥१॥ अवि णाम होज सुलभो गोणादीर्ण तणादि आहारो। छिच्छिकारहयाणं ण य सुलभो होति सुणयाणं ॥२॥ केलासभवणा एने, आगया गुज्झगा महिं। चरनि जवरूवेण, पृयापूया हियाहिया ॥३॥ पूर्वति पूणिजा पूयाएं हियाय आगया इहई। लोगस्स हिता एते पूइय अहवा हिया होन्ति ॥४॥ अहवावि पूयपूया हिताहिता पूतिता हिता होन्ति । अपूनिता १०३७ जीतकल्पभाष्यं - . मुनि दीपरत्नसागर Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - य अहिता तम्हा खलु पूणिज्जेते ॥५॥ एमादी अणुकूले भणिते सञ्चेसि माहणाईणं । दाता चिंतेति ततो मज्झत्थो एस समणोत्ति ॥६॥ एतेण मज्झ भावो विद्धो लोए पणामहज म्मि । एकेके पुजुत्ता भगताइया दोसा ॥७॥ दाणं ण होति अफलं पत्तमपत्ते य सपिणउजंतं। इयवि भणिएऽवि दोसा पसंसिमो किं पुण अपत्ते?॥८॥ वणिमगपिंडो भणितो एत्तो वोच्छं तिगिच्छपिडं तु । सा दुविहा तु तिगिच्छा मुहुमा तह वायरा चेव ॥९॥ मुहुमाए मासलहुं आवत्ती दाण होति पुरिमड्ढं । पादरतेगिच्छाए चउलहुगा दाणमायाम ॥१४२०॥ भिक्खादिगतं संतं पुच्छति रोगी तु ओसह किंचि । भणई किमहं वेजो? पढमतिगिच्छा भवे एसा ॥१॥ वेजोत्ति पुच्छियको अस्थावत्तीइ सूतियं एयं । अबुहाण बोहणं वा अयाणमाणाण कतमेतं ॥२॥वेति व एरिस दुक्खं अमुएणं ओसहेण पउणं मे। सहसुप्पइयं च रुयं वारेमो अट्ठमादीहिं ॥३॥ एसा वितियतिगिच्छा दोऽवेयाओ तु सुहुमतेगिच्छं। बादरतेगिच्छं पुण सतमेव करेति वेज्जतं ॥४॥ संसोहण संसमणं णिदाणपरिवजणं च जं जत्य। आगंतुधातुखोमे व आमए कुणति किरियं तु ॥५॥ अस्संजयतेगिच्छे कीरते तह य सुहुमकरणम्मि। तहियं तु अणेगविहा दोसा इणमो पसजति ॥ ६॥ अस्संजमजोगाणं पसंजणं कायघाओं अयगोलो। दुबलबग्घाहरणं अच्चुदए गिण्हणुइडाहो ॥७॥ जम्हा एते दोसा तम्हा कायविया ण हु तिगिच्छा। भणितो तिगिच्छपिंडो एत्तो कोहादि वोच्छामि ॥८॥ कोहादीणं कमसो आहरणा होन्तिमे समासेणं । हत्यऽप्पं गिरिफुलिय रायगिह चेव चंपाय ॥९॥णगरम्मि हत्थकप्पे करडुगभत्ते उ खमओं दिढतो। कोसलदेसे गिरिफुल्लि गामे वणकोट्टकारम्मि ॥१४३०॥ साहूण समुलावे कोणु हु अजं पए तु साहूणं । आणेज इट्टगातो? खुइडाऽऽह तहिं अहं आणे॥१॥घतगुलसंजुत्ताविय जह आणिय इट्टगातु खुड्डेणं । सेडंगुलिमादीहिं णाएहिं एत्यऽभत्त९ ॥२॥रायगिहे धम्मरुयी आसाढभूती तु सुइडओ तस्स। रायणडगेहपविसण संभोइय मोदए लंभो ॥३॥ आयरिय उवज्झाए संघाडय अप्पयस्स अट्ठाए। मुजो भुजो पविसति काणकुणीखुज्जरूवेहिं ॥४॥ उवरितलत्यो य णडो पा. सति चिंतेति बुद्धिमं मुठ्ठा होज णडो सारिक्खो उवायओ एस घेत्तयो ॥५॥ चिंतिय उवायमेयं वाहरिया देमि मोदए बहवे । भणिओ य तओ एजम दिणे दिणे जाहें कर्जत ॥६॥ धूयदुर्ग संदिसती हासखेड्डंपरिहाससंफासे । एतेण समं कुबह जह भजति एस अचिरेणं ॥७॥ जदि णामं गिण्हेजा तो बेजह मुयसु एय पवर्ज । ताहि तहकय बुभितो डा रयहरणं लिंग मयत्ति ॥८॥ गरु सिट्ठ मोत्तमातो दिण्णा धूया य भणिय च। एमुत्तमपगतीओ जत्तेणं उपयरेजाह॥९॥रायगिहे य कयायी णिम्महिलं णाडगं जहा गच्टी। ताव विरहम्मि मत्ता उवरिगिहे दोवि पासुत्ता ॥१४४०॥ वाघाएण पविट्ठो विट्ठ विचेला विरागमावण्णो। आयरियगुरुसमीवं पट्टित दिट्ठो णडेणं च ॥१॥ इंगितणाए धूया खरंट पेसियय जीवणं देहि। देमित्ति रट्ठपालं णाडग णचीय कुसुमपुरे ॥२॥ कडगादिअत्यदाणं बहु पडितं तत्य(नच्च गम्मि णचंते। भरहोयवणादीया भरहिड्दी तत्थ य णिवद्धा ॥३॥इक्खागवंस भरहो आयंसघरे य केवलं लोओ। हत्ये गहिओ मा कुण किं भरहों णियत्तो ? पञ्चाह ॥४॥ण हुतंऽपऽक्खइ एवं वेलंबो होति जति णियत्तामि। पंच सता तेण समं पश्चइता गाडए डहणं ॥५॥ एमादि मायपिंडो ण कप्पती णवरि कारणे कप्पे। गेलण्णखमगपाहुणथेरादह्रव(दाण)मादीसु ॥६॥ मायापिंडो भणितो एनो योच्छामि लोहपिंड तु। सो कोहपि. डमादिसु सवत्थऽणुपाति अहव इमो ॥७॥लभंतंपि ण गिण्हति अण्णं अमुगंति अज घेच्छामि। भहरसंति व काउंगिण्हति खर्ट सिणिद्वादी॥८॥ तत्थ म्मि कोवि खमतो तु। गेहति अभिग्गहं तू सीहेसरमोदए घेच्छं ॥९॥ भिक्ख पविट्ठो य तयो पडिसेहे अण्ण लम्भमाणंपि। सीहेसरमलहतो संकिस्सति भावतो अह सो॥१४५०॥ सीहेसरगतचित्तो विसरिसचित्तो य धम्मलाभोति। ई सीहेसरए सूरथमिएवि हिंडइ तु॥१॥ सड्ढऽड्ढरत्तकेसरभायणभरणं च पुच्छ पुरिमढे। उवओग चन्दजोयण साहुनि विमिंचणे णाणं ॥२॥ कोहादीणं कमसो एमेते वणिया उ आहरणा। एतेसि चिय कमसो आवत्ती दाण वोच्छामि ॥३॥ कोहे माणे चतुलहु आवत्ती दाण होइ आयामं । मायाए मासगुरू आवत्ती दाण भत्तेकं ॥४॥ लोभे चउगुरुगा तू आवत्ती दाण होयऽभत्तटुं। संथुणण संथवो तू धुणणा बंदणगमेगटुं॥५॥ दुविहो य संथवो खलु संबंधी बयणसंथवो चेव। एकेको पुण दुविहो पुष्विं पच्छा य णायत्रो ॥६॥ संबंधे पुत्व दुविहो इत्थी पुरिसे य होति णायत्रो। एमेव य पच्छाची आवत्ती दाण वोच्छामि ॥७॥ इन्थीए चतुगुरुगा पुरिसेस चतुलह मुणेता। चउगुरुए तु चउत्थं चउलहुए दाणमायामं ॥८॥ वयणेवि पुत्र दुविहो इत्थी पुरिसे य होति णायचो। एमेव य पच्छाची आवत्नी दाण वोच्छामि ॥९॥ इन्थीए मासग आवनी दाण होति भत्तेकं । पुरिसे मासलहुं तु आवत्ती दाण पुरिमड्ढे ॥१४६०॥ संबंधे पुछसंथवो मायपियादी तु होति णायचो । सासुयससुरातीओ संबंधीसंथयो पच्छा ॥१॥ आयवयं च परवयं णाउं संबंधती तयणुरुवं । मम माता एरिसिया ससा व धूया व णत्तादी॥२॥ अद्वी दिट्टीपण्हय पुच्छा कहणं ममेरिसी जणणी। थणखेवो संबंधो विहवासुण्हाय दाण च ॥३॥ एमेव य पुरिसेसुवि पियभातादीहिं होति संबंधो। एमेव पच्छसंथव अद्धिति दिवादि पुच्छादी ॥४॥ पच्छासंथवदोसा सासुय बिहवादिधूयदाणं च। भजा मम एरिसिया सज्ज १०३८ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 घातो व भं(सं)गो वा ॥५॥ संबंधे संथवेसो एत्तो वोच्छामि संथवं वयणे। पुचिं पच्छा व तहा संथुणणं कुणति दाताए ॥६॥ गुणसंथवेण पुत्र संतासंतेण जो थुणेजाहि। दातारमदिSण्णम्मि सो वयणे संथवो पुत्रिं ॥ ७॥ सो एसो जस्स गुणा पयरंति अवारिया दसदिसासु । इहरा कहासु सुश्चति पञ्चक्खं अज दिहोत्ति ॥८॥ गुणसंथवेस पच्छा संतासंतेण जो थुणे जाहि । दातारं दिण्णम्मी सो पच्छासंथवो वयणे ॥९॥ विमलीकय णे चक्टुं जहत्थतो वियरिया गुणा तुझं । आसि पुराणे संका इदाणि णीसंकियं जायं ॥१४७० ॥ तत्ववि M भद्दगपंता दोसा तह चेव होति णायवा । भणिएस संथवो तू विजामते अतो वोच्छं॥१॥ विजामंते चतुलहु आवत्ती दाण होति आयाम। विजामंतविसेसं उलिंगेऽहं समासेणं ॥२॥ विजामंतविसेसो विजित्थी पुरिसों होति मंतो तु। अहव ससाहण विजा मंतो पुण पढियसिद्धो तु ॥३॥ विजाए उणिदरिसणं जह कोई भिच्छुवासयो पन्तो। साहूण पिंडियाणं अह उडावो इमो तत्थ ॥४॥ इय पंतभिच्छवासो साहूण ण देति तत्थ भणएको । जइ इच्छह विजाए घयगुलवत्थाणि दावेमि ॥५॥ पेच्छामोत्तिय भणिए गंतुं विज्ञाभिमंतिओ वेति । किमरता पतगुलपत्याणादण्ण साहरण ॥ ६॥ अण्णाहय सा भाणओ किहत दिषणात भत्तपाणादा?ाता बात तगा रुट्ठा कण हित कण महा मि? ॥७॥ पडिविज थंभ. णादी सो वा अण्णो व से करेजाहि । पावाजीवी मायी कम्मणकारी य गहणादी ॥८॥ मंतम्मि उदाहरणं पाडलिपुत्ते मुरुंडराइस्स। उप्पण्ण सीसवेदण पालित्तयकहण ओमजे ॥९॥ जह जह पदेसिणिं जाणुयम्मि पालित्तयो भमाडेत्ति। तह तह सीसे वियणा पणस्सति मुरुंडरायस्स ॥१४८०॥ मंतेणं अभिमंतिय तह चेव दवाव दिज कोई तु । तत्थवि तेच्चिय दोसा पडिमंतादी इमे होन्ति ॥१॥ पडिमंतथंभणादी सो वा अण्णो व से करेजाहि। पाबाजीवी मायी कम्मणकारी य गहणादी ॥२॥ विजामंताभिहिया अहुणा वोच्छामि चुण्णजोगादी। वसिकरणादी चुण्णा अन्तद्धार्णजणादीया ॥३॥ चुण्णे जोगे चउलहु आवत्ती दाणमेस्थ आयाम। णिदरिसणं दुण्डंपी उल्लिङ्गेऽहं समासेणं ॥४॥ दिटुंतो चुण्णजोगे जह कुसुमपुरम्मि केति आयरिया। जंघाचलपरिहीणा ओमे सीसस्स तु रहम्मि ॥५॥ कहयंति चुण्णजोगा अंतद्धाणादि तत्थ दो सुड्डा। पच्छण्णठिय णिसामे अवधारे अंजणं एकं ॥६॥ वीसजियावि साहू गुरुहिं देसंत खुड्डग णियत्ता। आयरिएहि य भणिता दुठ्ठ कयं जं णियत्ता भे॥७॥ भिक्खे परिहायंते थेराणं ओमें वेसि ताणं। किं ओम गुरूणं तू कुवामो? खुड्ड सामत्थे ॥८॥ कुणिमो अंतदाणं दवे मेलेतु अञ्जियंजणया । सह भोज चंदगुत्ते ओमोदरियाएं दोब्चलु ॥९॥ चाणकपुच्छ इट्टालचुण्ण दारपिहणं तु धूमो य । दट्टुं कुच्छ पसंसा थेरसमीवे उवालंभो ॥१४९० ॥ एवं वसिकरणादिसु चुण्णेसु वसीकरेनु जो तु परं । उप्पाएती पिंडं सो होती चुण्णपिण्डो तु॥१॥ जे विजमन्तदोसा ते चियवसिकरणमादिचुण्णेहिं । एगमणे - गपयोसं कुजा पत्थारयो वापि ॥२॥ मणिएस चुण्णपिण्डो अहुणा वुच्छामि जोगपिंडं तु। तहियं जोग अणेगा इणमो तु संपवक्खामि ॥३॥ सूभगदोभग्गकरा जोगा आहारिमा यस इयरे या आघसधूववासो पायपलेवायिणो इतरे ॥४॥ तत्थाहरणं इणमो अणहारिमपादलेवजोगम्मि। आभीरगविसयम्मी जह कत सुण ताबसेहिं तु ॥५॥णदिकण्हवेण्णदीवे पंप सया तावसाण णिवसंति । पञ्चदिवसेसे कुलबइ पालेवे लिंप पाए तु॥६॥ पाउगदुरुढ सलिलुप्परेण उत्तरिउ एति णगरंति। आउट्ट लोग पूया पञ्चक्खा तेते देवत्ति ॥ ७॥ जण सावगाण खिसण तहियं तू वइरसामिमाउलया। आयरियअजसमिता तेसिं च णिवेदियं तेहिं ॥८॥ तेहि भणिया य वच्चह ते मातिहाणि पायलेवेणं । णतिमुत्तरंति सगिहे णेउसिणोएण धोबह णं ॥९॥ तेहि य सगिह णेउं पाय बला धोयऽणिच्छमाणाणं । किं जाणति लोगोती दिण्णं विणएण बहुफलयं? ॥१५००॥ पडिलाभिय वचंता णिबुड्ड णदिकूल मिलिय समिया य। विम्हिय पंच सता ताबसाण पत्रज साहा य ॥१॥ एमादीजोगेहि आउद्दावेत्तु एसती पिंडं। सो णवि कप्पे एत्तो वोच्छामी मूलकम्मं तु ॥२॥ दुविहं तु मूलकम्मं गम्भादाणे तहेव परिसाडे। दुविहेवि मूलकम्मे पच्छित्तं होति मूलं तु ॥ ३॥ आदाणं अहिगरणं पडिबंधो छोभगादिदोसा य। पाणवह साडणम्मि छोभग पडिणीय उड्डाहो ॥ ४॥ इय मूलकम्मेणं पिंडो उप्पादिओ ण कप्पनि तु। उप्पातणेस भणिया गवसणा चेव य समना ॥५॥ एवं तु गविट्ठस्सा उग्गमउप्पायणाविसुदस्स। गहणविसोहिबिसुद्धस्स होलि गहणं तु पिंडस्स ॥६॥ उग्गमदोस गिहीतो उप्पायण होइ समणउत्थाणा । गहणेसणाए दोसे आयपरसमुट्टिए बोच्छ ॥ ७॥ दोण्णिवि समणसमुत्था संकित तह भावतोऽपरिणयं च । सेसा अट्टवि णियमा गिहिणो तु समुहिए जाण ॥ ८॥ सा गहणेसण चतुहा णामं ठवणा य दृष्वि भावे या दवे वाणरजुहं सर्व वत्तव वित्थरया ॥९॥ दवम्मि एस भणिता भावे गहणेसणं तु बोच्छामि। दसहि पदेहिं सुदं संकितमादी इमेहि ॥१५१०॥ संकिन मक्खिन णिक्खित्त पिहित साहरण दायगुम्मीसे। अपरिणय लित्त छड्डिय एसणादोसा दस हवंति ॥१॥ संकाए चउभंगा पढमो गणे य भोयणे चेव। बितिओ गहण ण भोयण तनिओ पुण संकितो भोगे॥२॥णीसंकिओ तु चरिमे किह पुण संका हवेज ? जह कोई। भिक्ख पविट्ठो लडम्मि हिरिमं भिक्खं विगिंचेति ॥३॥ किण्णु हु? खद्दा भिक्खा लदा ण य तरनि पुच्छिउं तहिय। हिरिमं इति संकाए भुजति इह संकितो चेव ॥४॥ बीएण गहिय संकिय विगडन्तऽने य णवरि संघाडे। १०३९ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पगयं पहेणगं वा सोउं हिस्संकिओ मुंजे ॥५॥णीसंकगाहि तइओ विगडेन्तों णिसम्ममण्णसंघाडं । संका पुणाइ जारिस लद्धमए अमुगगेहम्मि ॥६॥ महती भिक्खा तारिस एते. हिवि लड किण्ण होजाहि ?। णीसंकिल काऊणं भुंजति तं संकिओ चेव ॥ ७॥ पढमो दोसुवि लम्गो बितिओ पुण गहणे भोयणे तइतो। जं संकितमावण्णो पणुवीसा चरिमए सुद्धो ॥८॥छउमत्यो सुतणाणी गवेसती उजुयं पयत्तेणं। आवण्णो पणुवीसं सुतणाणपमाणतो सुद्धो॥९॥ साहू सुतोवयुत्तो सुतणाणी जइबि गिण्हइ असुद्धं । तं केवलीवि मुंजति अपमाण सुयं भवे इहरा ॥ १५२०॥ सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो ततो य मोक्खस्स । मोक्खाभावाओ चिय पयत्तदिक्खा णिरत्था य॥१॥ सोलस उम्गमदोसा णव एसणदोस संकमेतूण। पणवीसेए दोसा संकियमासंकिओवोच्छ ॥२॥ जइसका दोसकरी एवं सुद्धपि होति तु असुद्ध। णीसंकमेसियंति व अणेसणिजपि णिहोसं ॥३॥ भण्णति संकियभावो अविसुद्धो अपडितेकतरपक्खे। एसिपि कुणयऽणेसिं अणेसिमेसिं विसुद्धोतु ॥४॥ णिस्संक काउ तम्हा भोत्तई संकियं भणितमेयं । मक्खितमिदाणि वोच्छं मक्खित जं होति संसत्तं ॥५॥ दुविहं चमक्खितं खलु सञ्चित्तं चेव होइ अचित्तं । सचित्तं तत्थ तिहा पुढवी आऊ य वणकाए ॥६॥ पुढवीससरक्खेणं हत्थे मत्ते व मुक्खें पणगं तु। आवत्ती दाणं पुण णिवितियं होति दातत्वं ॥ ७॥ कद्दममक्खियमीसे लहुगो णिम्मीसे होन्ति लहुगा तु। लहुमासे पुरिमड्ढे चतुलहुए होति आयामं ॥ ८॥ ससणिदुदउड़े या पुरपच्छा(पुर पच्छा अणु)कम्म मक्खियं चतुहा । उक्कुट्ठपिटकुक्कुसमक्खितमेवादि वणकाये ॥९॥ ससणिवहस्थमते पणगं आवत्ति दाण णिश्विगई। उदउल्ले मासलहुं आवत्ती दाण पुरिमड्ढे ॥१५३०॥ पुरकम्मपच्छकम्मे आवत्ती चतुलह मुणेतचा। दाणं आयामं तू वणकाय अतो तु वोच्छामि ॥१॥ उकट्टपिट्ठमक्खिय परित्तहत्थे य मत्त सचित्ते। मासलहू आवत्ती दाणं पुण होति पुरिमड्ढे ॥२॥ एते चेव उ मक्खिएं हत्थे मत्ते य होन्तऽणन्तेस । आवत्ती मालगुरुं दाणं पुण होति भत्तेकं ॥३॥ छिदंतीए साग छंदतीए व जं रसोलित्तं। उकट्ठमक्खितेतं परित्तऽणतेण वा होजा.॥४॥ सेसेहि तु काएहिं नीहिवि नेऊसमीरणतसेहि। सञ्चित्तमीसएण व मक्खित ण चिंतिजए किंचि ॥५॥ सन्दित्तमक्खियम्मि उ हत्थे मत्ते य होति चाउभंगो। पढमम्मि दोवि मक्खिय हत्थो चितिम्मि णवि मत्नो ॥६॥ ततिए मत्तो मक्खितों णवि हत्यो चरिमए ण एकोदि। आदितिए पडिसेहो चरिमो भंगो अणुण्णातो ॥ ७॥ अचित्तमक्खित दहा गरहितदवेण वावि इतरेणं । गरहित होति दुहा तू लोगे तह उभययो वावि ॥८॥ मंसवससोणियाऽऽसवलसुणादी गरहिएस लोगम्मि । मुत्तपुरीसादीहिंगरहियमेयं भवे उभए ॥९॥ दुविहे तु गर17-Iहिए त आवनी चउलह मणेना। दार्ण आयामं तु अगरहितेत्तो पवक्खामि ॥१५४०॥ अगरहिय करकुसणं गोरसपततेतमादीहिंजत। संसत्तमसंसत्तं दविहंपिय होति णाय IN ॥१॥ अशिलमक्खियम्मी चउसुवि भंगेसु होति भयणा तु। अगरहिएण तु गहणं पडिसेहो गरहिए होति ॥२॥ संसजिमेहिं वजं अगरहिएहिपि गोरसदवेहिं । मधुपततोगलेहि य मा मच्छिपिवीलियाघाओ॥३॥ गोरससंसते या घनतेडगुलादिकीडिसंसत्ते। चतुलहुगा आवत्ती दाणं पुण होनि आयामं ॥ ४॥ लोइयगरहितमज्जामंसवसादीहिं मक्खियं जं तु। नवरं पराण भाविअ देसि व पडच गहणं तु ॥५॥ दोहिपि गरहिएहिं मुनुचाराई होइ अग्गण। मक्खित भणितं एयं एत्तो वोच्छामि णिक्खितं ॥६॥णिक्खिनं ठवियन्ति य एगई ठाणमगणा एत्थे। तं निविह होति ठाणं सचित्तं मीस अचित्तं ॥ ७॥ एत्थं चतूभंग भवे सचित्तादी अणेगह इमो तु। सचिनं सचिले सचित्त मीसे वऽचिने वा ॥८॥मीसं वा ससचिने मीसं मीसे व होति णिक्खिते। चित्तेणं मीसेण य एवेको होति चउभंगो॥९॥ अहुणा चित्ताचिने चित्तं चित्तम्मि होति णिस्खेवो। चित्त वा अचितं अचित्त चित्तोभयमचिने ॥१५५०॥ अहणा मीसं मीसे मीसमचित्ते अचित्त मीसम्मि। अचित्तं अचिने ततिएसो होति चतुभंगो॥१॥ चतुभंगेसतेसुं संजोगाऽणेगहा मुणेयवा। पुढादिएसु छस्मुवि काएसु सठाण परठाणे ॥२॥ सचित्तपुढविकाए सचित्तो चेव पुढवि णिक्खित्तो। सचित्ते अचित्तो अचिन्ने बाबि सचित्तो ॥३॥ अथित्ते अभित्तो सट्टाणे एस होति चउभंगो। परठाणे. पंचपुणे आऊमादीसिमे होन्ति ॥४॥ सचित्तपुढविकाओ सचित्ताउम्मि होति णिक्वित्तो। सचिनो अचिने अश्चित्तो चेव सचिने ॥५॥ अचिनो अचिने एवं सेसेसु तेउमादीसं । संजोगा तथा पंचसु परठाणे चउभंगो ॥ ६॥ एमेव आउतेउवाउवणस्सतितसाण चतुभंगा। एकेके विष्णेया उच्चतुभंगाण संजोगा ॥७॥ चिने सच्चिनेणं ते उत्नीस हवंति संजोगा। अच्चित्तमीसएणवि एवतिया चेव संजोगा ॥८॥ मीसे अञ्चित्तेणवि एवतिय रिचय हवंति संजोगा। तिण्णिवि छत्नीसा तू मिलिया अट्टनरसयं तु ॥९॥ अहवण सचिनमीसा य एगयो एगयो य अभिचत्तो। एत्थं चतुभंगो तू तत्थाऽऽदितिए कहा णस्थि ।। १५६० ॥ जं पुण अचित्तदनं णिक्खिप्पनि चेयणेसु कायेसु । तहिं मग्गणा तु इणमो अणंतर परंपरा होति ॥१॥ चित्तपढविड अणतर आगाहिमगाइहाति णिक्खित्ताहाता परपर पुण पिहुडगय जतु पुढावठिय॥शा उदगमणतर णवर्णीयमादि पारंप य दुयगा इमे सत्त ॥३॥ विज्शायमुम्मुरिंगालमेव अप्पत्तपत्तसमजाले । बोलीणे सत्त दुगा एते तु अणंतर परे य॥४॥ विज्झाउत्ति ण दीसति अग्गी दीसनि य इंधणे छूढे । छारुम्मीसा पिंगल अगणिकणा मुम्मरो होति ॥५।। णिज्जाला हिलिहिलिया इंगाला ते भवे मुणेतबा। होति चउत्थो भंगो ने जालाऽपत्तपिटुडं नु ॥६॥ पंचम पना पिहुई छटुम्मि य होति (२६०) | १०४०जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर a Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्णसमजाला। सत्तमए समतीया अणंतरा होति सत्तमुवी ॥ ७ ॥ पारंपर पिडुडादिसु अगणीघट्टादि तत्थ दोसा तु । भयणा तु जंतचुलिमु इणमो तु तहिं मुणेयो ॥ ८ ॥ पासोलित कडा परिसाडी णत्थि तंपिय विसालं । सोवि य अचिरच्छूढो उच्छुरसो गाइउसिणो य ॥ ९ ॥ गहणमघट्टिय कण्णे घट्टित छारादिपडण अग्गिवहो। उसिणोदगस्स गुलरसपरिणामिय गहणऽणचुसिणा ।। १५७० ।। दुविह विराहण उसिणे उड्डण हाणी य भागभेदो य। अम्बुसिणातों ण घेप्पति जंतोलित्तेस जयणा तु ॥ १ ॥ वाउक्खित्तानंतर पप्पडगादी तु होति णाया। वत्थिदतिपूरिओवरिपतिट्टिय परंपरं होति ॥ २ ॥ हरियादि अनंतर पूरियाइ पारंपरे पिहुडमादी । गोणादिपिड पूवादणंतरे भरगकुतिगितरं ॥ ३ ॥ स ण कप्पएयं णिक्खित समासतो समक्खानं पुढवादीणं एत्तो आवत्ती दाण वोच्छामि ॥ ४ ॥ पुढवादी जाव तसे अणंतवणकाय मोत्तु णिक्खिते । संति अणंतर लहूगा परंपर होति मासलहुं ॥ ५ ॥ चतुलहुए आयामं मासलहू दाण होति पुरिमड्ढे । एवं सच्चित्तम्मी भणियं मीसे अतो वोच्छं ॥ ६ ॥ एतेसु चैव पुढवादिएस मीसे अणंतरे लहुओ। होति परंपर पणगं दाणं एतो तु वोच्छामि ॥ ७ ॥ लहुमा पुरिमड्ढे पणगे पुण दाण होति णिब्गितिं । वणकायमणंतेमु आवत्ती दाण वोच्छामि ॥ ८ ॥ वणकायअणतेसु णिक्खित्त अणंतरे तु चतुगुरुगा। होति परंपरि गुरुओ दाणं तु अतो तु वोच्छामि ॥ ९ ॥ चतुगुरुए तु चउत्थं गुरुमासे दाणमेगभत्तं तु । आवत्ती दाणंपिय पिहियम्मि अतो उ वोच्छामि ॥। १५८० ॥ पिहियाणंताणंतरपरंपरे चैव होति गुरुपणगं। लहूपणगं तु परित्ते दोसुवि दाणं तु णिश्विगती ॥ १ ॥ आवती दाणं वा पुढवादीणिक्खिवंत भणियं तु । एतो समासयो चिय पिहितद्दारं पवक्खामि ॥ २ ॥ सचित्तादिसु अथिनपिहिय चतुभंग नह य संजोगा। जह भणिया णिक्खित्ते तह चैव य होन्ति पिहितेवि ॥ ३ ॥ सश्चित्त मीस एको एक तोऽचित्त एत्य चउभंगा। आदिदुवै पडिसेहो ततिए भंगम्मि मग्गणया ॥ ४ ॥ अच्चित्त सचिनेणं अतिरं सतिरं च जं भवे पिहितं । पुढवादिएसु छस्मुवि लोट्टादी अतिर पुढबीए ॥ ५ ॥ पच्छियपिहुडादि तिरं ओगाहिमगादिऽणतरं होति । वद्धणियादि परंपर अगणिकाए इमं होति ॥ ६ ॥ अतिरं अंगाराई तहियं पुण संतरो सरावादी तत्येव अतिर वायू परंपरो वत्थिणा पिहिते ॥ ७ ॥ अइरं फलादिपिहियं वणम्मि इतरं तु पच्छिपिडादी। कच्छव (त्थइ) संचारादी अतिरतिरं पच्छियादीहिं ॥ ८ ॥ तइए भंगे मग्गण भणिएस चउत्यभंगभयणा तु । अश्चित्त अचित्तेणं पिहिए का भयण ? सुणसु इमा ॥ ९ ॥ चतुभंगो पहिएणं गुरु गुरुएण गुरुअ लहुएणं । लहुयं गुरुएण तहा लहुएण चरिम तहिं गज्झो ॥ १५९० ॥ पुढवादीणं कमसो आवत्ती दाण जइ तु णिक्खिते। आयबिराहण गुरुयतिका वरं तु चउगुरुया ॥ १ ॥ एत्य उ दाण चतुत्यं एतो वोच्छामि साहरणदारं । साहरणं उकिरणं विरेयणं चेव एगहं ॥ २ ॥ मत्तेण जेण दाहिति तत्थ अवेजं तु होज्ज जं दश । तं साहरितुं अण्णाहिं मत्तेणं देइ साहरणा ॥ ३ ॥ सा पुण उसु जातवा सचित मीसा तहेव अचित्ता । एत्यवि जह णिक्खिते भंगा संजोग नह चेव ॥ ४ ॥ सबित्तमीस आदिए सु गन्धि मग्गण विवेगो । ततियम्मि मग्गणा तू उस भोमादीस साहरणे ॥ ५ ॥ चरिमे भंगे भयणा जं दुहमश्चित्त का तहिं भयणा ? भष्णइ सुणसू तहियं चउभंगो होति इणमो तु ॥ ३ ॥ सुके सुकं पढमं सुके उतं तु बितियओ भंगो। उाडे सुकं तइओ उले उलं चउत्थो तु ॥ ७ ॥ एकेके चउभंगो सुक्कादीएस चउसु भंगेसु। थोवे थोवं थोवे बहुयं बहु थोव बहु बहुगं ॥ ८ ॥ जन्थ तुथोवे थोवं सुक्खे उचभति तं गज्नं । जति तं तु समुक्खित्तुं थोवाहारं दलइ मत्तं (अनं) ॥ ९ ॥ सेसेस तीसुंपी दाता भंगेसु होति णातशो थोव बहुं बहुग थोवो बहु बहु वेव इणमो तु । १६०० ।। उक्वेवे णिक्खेवे महाउभाणम्मि लुद वह डाहो। छक्कायवहो य तहा अचियत्तं वेव वोच्छेदो ॥ १ ॥ थोवे योवं छूढं सुक्खे उलं तु उसे सुक्खं तु । बहु तु अणाहणं कडदोसो सोति कातूणं ॥ २ ॥ साहरणेयं भणियं आवत्ती दाण जह तु णिक्खिते। दायगदारं अहुणा समासओऽहं पवक्खामि ॥ ३ ॥ बाले बुढे मत्ते उम्मते वेविए य जरिए य। अंधेाइए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥ ४ ॥ नृत्यंदुणियलबदे विवजिए चैव हत्यपाएहि तेरासि गुडिणी बालवच्छ भुजंति घुमती ॥ ५ ॥ भजेन्ती य दलेन्ती कंडेन्सी चैव तह य पीसेन्ती । पिर्जती संवंती कत्तंती पमद्दमाणी य ॥ ६ ॥ उक्कायवग्गहत्या समणट्ठा णिक्खिवित्तु ते चैव ते चेवोगान्ती सघताऽऽरभंती य ॥ ७ ॥ संसनेण तु दद्वेण लिनहत्था य लित्तमत्ता य । ओयत्तेन्नी साहारणं च देन्ती य चोरिययं ॥ ८ ॥ पाहुडियं च ठवेन्ती सपचवाया परं च उदिस्स। आभोग अणाभोगेण दलती वज्ञणिजा उ ॥ ९ ॥ एनेसि दायगाणं गहण केसिंचि होति भइयई। केसिंची अग्गहणं तप्पडिवक्खे भवे गहणं ॥ १६१० ॥ एते दायगदोसा एतेहिं दिजमाण गत्रि कप्पे जे तु अकारणे गेहे पच्छिल नेसि वोच्छामि ॥ १ ॥ बाले वुड्ढे मत्ते उम्मते वेषिए य जरिए य एतेसिं मास आवत्ती दाण पुरिमइदं ॥ २ ॥ अंधेपगलियादी जाव तु दारं तु बालवच्छन्ति। पत्तेयं चतुगुरुगा दाणं पुण होयऽभत्तट्टं ॥ ३ ॥ भुजण घुसुलेन्तीए आवत्ती चतुलहू मुणेयशा दाणं आयामंती भन्नणमादी अतो वोच्छं ॥ ४ ॥ भञ्जन्ती य दलेती जाव तु छकायत्रग्गइत्यन्ति । समणट्टा ते चैव तु णिक्खिव ओगाह घट्टन्ती ॥५॥ एत्थ तु विसरिसदाणं पच्छित्तं होति कार्याणिप्फण्णं सेसेस दारेसुं चतुदुगा दाणमायामं ॥ ६ ॥ एते दायग भणिता एनो उम्मीसयं पवकरवा१०४१ जीतकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर PREHRANS Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मि। तं तिह सचित्त मीसग अच्चित्तेणं च उम्मीसं ॥ ७॥ जह चेव य संजोगो कायाणं हेडओ तु साहरणे। तह चेव य उम्मीसे होति विभागो णिरवसेसो ॥ ८॥ चोएति को विसेसो 12 साहरणुम्मीसयाण दोहंपि?। भण्णति साहरणं तू भिक्खट्ठा मत्तयं रेये ॥९॥ उम्मीसं पुण दायश्वयं च दोवंत मीसितुं देजा। बीयहरियाइएहिं जह ओदणकुसुणमादीणं ॥१६२०॥ तंपिय मुक्खे सुक्खं भंगा चत्तारि जह तु साहरणे। अप्पबहुएवि चउरो तहेव चाइण्णऽणाइण्णं ॥२॥ उम्मीस भणियमेयं एत्तो वोच्छामि परिणयं दुविहं । दवे भावे यतहा दवे पुढवादि छक्कं तु ॥२॥ जीवत्तम्मि अविगते अपरिणयं परिणयं गते जीवे । दि₹तो दुदही इय अपरिणयं परिणयं चेव ॥३॥ दब्बे अपरिणयम्मी पच्छित होति कायणिप्फण्णं । भावे अपरिणतं पुण एत्तो वोच्छं समासेणं ॥४॥सज्झिल्गादिणं तू अहवा अण्णेहि होति सामण्णं । तत्येगस्स परिणतो भावो देमित्ति साहुस्स ॥५॥ सेसाण णवि परिणयो अपरिणयं भावतो भवे एयं । अह्वावि दाणमणं अपरिणयं भावतो होति॥६॥ संघाडग हिंडतो एगस्स मणम्मि परिणयं एसी। बितिए ण तु परिणमती तंपि अघेत्तव मा कलहो॥७॥ पढ़मिल्लग भावम्मी अप्परिणयगेव्हणे तु लहुमासो। तस्सावत्ती भवति दाणं पुण होति पुरिमड्ढे ॥८॥ भणित अपरिणयमेयं एत्तो वोच्छामि लित्तदारं तु।लित्तम्मि जत्थ लेवो लम्भ(ग)ति, कसणादिदवस ॥९॥ तं खलु ण गेण्डिया मा तहियं होज पच्छकम्मं तु । तम्हा उ अलेवकडं णिप्फावादी गहेतब्वं ॥१६३०॥ इति उदिते चोएई जदि पच्छाकम्मदोस एवं त। तो णवि भोत्ता चिय जावजीवाएं भणति गुरू ॥१॥ को कालाणं नेच्छति आवस्सगजोग जदि ण हायति । तो अच्छतुमा मुंजतु अह ण तरे तत्य भंगहा ॥२॥ संसट्ठहत्यमत्ते सव्य - 5 म्मी सावसेस भंगऽटा। गहणं तु सावसेसे संसयभंगेसु भयणा यु॥३॥ संसत्तहत्थमत्ते लित्तेलहुगा तु दाणमायाम। अवसेस लित्त गुरुगो दाणं पुण होति पुरिमड्ढे ॥४॥लित्तंति गत एवं एनो वोच्छामि छड्डियं अहुणा। तंपि तिह छड्डियं तू सचित्त मीसं च अश्चित्तं ॥५॥ छड्डिएँ चउलहुगा तू आवत्ती दाण होति आयामं । अहव सचित्तादीणं आवत्ती कायणि. एफणं ॥६॥ सचित्तमीसए या चउभंगो छड्डणम्मि इत्थ भवे। चउभंगे पडिसेहो गहणे आणादिणो दोसा ॥७॥ उसिणस्स छड्डणे देन्तओ व डझेज कायडाहो वा। सीयपडणम्मि काया पडिए महुबिंदुआहरणं ॥८॥छड्डिय भणियं एयं गहणेसण एस परिसमत्ता तु । गहितस्स अतो विहिणा घासेसण पत्तमहुणा उ॥९॥ सा चतुहा णामादी सर्व वण्णेत्तु एत्थ दारम्मि। एनस्सेवोवणयं वोच्छामि इमं समासेणं ॥१६४०॥ मच्छस्थाणी साहू मंसत्याणी य भत्तपाणं तु।रागादीण समुदयो मच्छयथाणी मुणेतयो॥१॥ जहण छलिओ तु मच्छो उवायगहणेण एव साहवि। अप्पाणमप्पणचिय अणुसास मुंजमाणो उ ॥२॥ बायालीसेसणसंकडाम्म गेण्हता जीव! ण सि छलितो। एण्हि जह ण छलिजसि भजंतोरा ॥३॥घासेसणात भावे होति पसत्था य अप्पसत्था य। अपसत्था पंचविहा तविवरीता पसस्था तु॥४॥ संजोइय अइबयं संगाल सधुमयं अणट्ठाए। पंचविह अप्पर रीता पसत्था तु ॥५॥ संजोयणेत्थ दुविहा दवे भावे य दवि बहिअंतो। भिक्खं चिय हिंडतो संजोए वाहिरेसा तु॥६॥ खीरदहिकट्टरादिण लंभे गुडसालिकूरघतमादी। जातिना संजोए हिर्जुनंतो अतो वोच्छं ॥७॥ अंतो तिह पादम्मी लंबण वयणे य होइ बोद्धछ । जं जं रसोवकारिं संजोययए तु तं पाए ॥८॥ वालुंकवडगवाइंगणादि संजोएं लंबणेण समं। वयणम्मि छोटु लंबण तो सालणगं भे पच्छा ॥९॥ दवम्मि एस संजोयणा तु संजोएँ जं तु दवाई। रसहेउ तेहिं पुण संजोयण होति भावम्मि ॥१६५०॥ संजोएन्तो दवे रागहो सेहि अप्पगं जोए। रागदोसणिमित्तं संजोययए तु तो कम्मं ॥१॥ कम्मेहिंतो य भवं संजोययए भवातु दुक्रवेणं। संजोययए अप्पं एसा संजोयणा भावे ॥२॥ रसहेउ पडिकट्ठो संजोयो कप्पए गिलाणट्टा । जस्स व अभत्तछंदो महोइओं अभावितो जो य ॥३॥ अह्मण जाई दवे पत्ते य घयादिगावि मेलति । सत्तुगमादीहि समं मा होतु विगिचणीयंति ॥ ४॥ अंतोन बहि चउगुरुगा वितियाएसेण बाहि चउलहुगा। चउगुरुोऽभत्तटुं चउलहुगे होति आयामं ॥५॥ संजोयण भणिएसा अहुण पमाणं भणामि आहारे। जावतियं भोत्तवं साहहिं जाचगट्ठाए॥६॥ बत्तीस किर कवला आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला ॥ ७॥ चउवीस पंडगस्सा ते ण गहित जेण पुरिसइत्थीणं । पञ्चजण पंडस्स उ तम्हा ते णो गहित एवं ॥८॥ एत्तो किणाविहीणं अई अददगं च आहारं । साहुस्स बेन्ति धीरा जायामायं च ओम च ॥९॥ पकाम पणिकामं च जो पणियं भत्तपा. णमाहारे। अतिचहुयं अतिबहसो पमाणदोसो मुणेयत्वो ॥१६६०॥ बत्तीसाउ परेणं पकाम णिचं तमेव तु णिकामं । जं पुण गलंतणेहं पणीतमिति तं बुहा वेंति ॥१॥ अतिबद्यं अतिबहुसो अतिप्पमाणेण भोयणं भुत्तं। हादेज व वामेज व मारेज व तं अजीरंतं ॥२॥ णियगाहारादीयं अइबहुयं अइबहुसो तिपिण वारा उ। तिण्ह परेण तु जं तु तं चेव अतिप्पमाणं तु॥३॥ अह्वा अतिप्पमाणो आतुरभूतो तु भुंजए जं तु । तं होति अतिपमाणं हादणदोसा उ पुवुत्ता ॥४॥ जम्हा एते दोसा अतिरिने तेण होति चतुलहुगा । आवत्नी दाणं पुण आया होति णायच्वं ॥५॥ दोसो अतिप्पमाणे तम्हा भोत्तव होति केरिसयं । भण्णति सुणसू जारिस भोत्तवं होति साहूहिं ॥६॥ हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे णरा। ण 51 १०४२ जीन कल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते विजा चिगिच्छंति, अप्पाणं ते चिगिच्छगा ॥ ७॥ हितमहितं होति दुहा इह परलोगे व होति चउभंगो। इहलोग हितं ण परे किंचि परे णेय इहलोए ॥८॥ किंचि हितमुभयलो-51 18 एणोभयलोए चतुत्थओ भंगो। पदमगभंगो तहियं जे दशा होन्ति अविरुद्धा॥९॥जह खीरदहिगुलादी अणेसणिजा व रत्तदुद्वे वा । भुंजते होति हियं इहई ण पुणाई परलोए १६७०॥ अमणुण्णेसणसुदं परलोगहितं ण होति इहलोगे। पत्थं एसणसुद्धं उभयहियं होति णातच ॥१॥ अहितोभयलोगम्मी अपत्यदवं अणेसणिजं च। अहवावि रत्तदुह्रो भुंजति एनो मियं वोच्छं ॥२॥ अद्धमसणस्स सबंजणस्स कुजा दवस्स दो भाए। वायुपवियारणट्ठा छब्भागं ऊणगं कुजा ॥३॥ सीयो उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणेयञ्चो। एएमुं तीमुंपी आहारे होतिमा मत्ता ॥४॥ एगो दवस्स भागो अवट्टितो भोयणस्स दो भागा। वइति व हायति व दो दो भागा तु एकेके ॥५॥ एत्थ तु ततियचतुत्था दोण्णिवि अणवहिता भवे भागा। पंचम छट्ठो पढमो वितिओ य अवहिता भागा ॥६॥ एयं तु मियं भणियं एत्तोची हीणगं भवे अप्पं । एय पमाणाऽभिहितं संगालादी अतो वोच्छं ॥ ७॥ संगाले चउगुरुगा आवत्ती दाण होयऽभत्त१। चउलहुगा तु सधूमे आवत्ती दाणमायामं ॥८॥ णिकारण भुंजन्ते एत्थवि लहुगा तु दाणमायाम। वितियादेसे बहुओ आवत्ती दाण पुरिमड्ढे ॥९॥णवि भुंजइ कारणतो एथवि लहुगा उ दाणमायाम। सेंगालादिण कमसो सरूवमिणमो पवक्खामि ॥१६८०॥जह इंगाला जलिया डहति जं तत्थ इंधणं पडियं । इह चिय रागि. गाला डहंति चरणिधणं णियमा ॥१॥ रागेण सइंगालं जं आहारेइ मुच्छिओ साहू। सुदढ़ सुसंभित णिद्धं सुपक्क मुरसं अहो मुरहिं ॥२॥रागग्गीपजलिओ भुंजंतो फासुर्यपि आहार। णिहइिंढगालणिभं करेति चरणिधर्ण खिप्पं ॥३॥ भणितं संगालेयं अहुणा बोच्छं सधूमग पगते। केवलवियणंते तु धूमायंतं तहा छगणं ॥४॥ जह वापि चित्तकम्मं धूमेणोरत्तयं ण सोभइ उ। तह धूमदोसर चरणपि ण सोभए मइलं ॥५॥ दोसेण सधूमं तु जं आहारेति साहु णिदंतो। विरसमलोणं कुहित रोरा भोक्ख(भक्ख)ति णणु एवं ॥६॥ दोसम्गीविज लंतो अप्पत्नियधूमधूमियं चरण । अंगारमेत्तसरिसं जा ण भवति णिड्डहति ताव ॥७॥ रागेण सईगालं दोसेण सधूमर्ग मुणेया। रागहोससहगतं तम्हा तुण होति भोत्ता ॥८॥ आहारंति तवस्सी विगतिंगालं च विगयधूम चा माणऽजायणणिमित्तं एसुवएसो पबयणस्स ॥९॥ भणितं सधूममेयं एत्तो वोच्छामि कारणहारं । तं पुण पडिकमंतो चरिमुस्सग्गे विचिन्तेति ॥१६९०॥ भोत्ता कारणम्मी कि अस्थि अहव नस्थि जइ अत्थी। तो मुंजेजा साहू के पुण ते कारणा ? सुणसु ॥१॥ छहिं कारणेहि साह आहारंतो उ आयरति धम्म। छहिं चेष कारणेहि णिहंतो उ आयरति ॥२॥ वेयण वेयावचे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥३॥ णस्थि छहाएं सरिसिया वियणा भुंजेज तप्पसमणहूँ। छादो वेयावर्य ण तरति कार्ड अयो भुजे॥४॥इरियं च ण सोहेती सुहितो भमलीय पेच्छ अन्धार। थामो वा परिहायड पेहादी संजम ण तरे ॥५॥ आयुसरीरप्पाणादि छविहे पाण ण तरती मोतुं । तदारण? तेणं भुजेजा पाणवत्तीयं ॥६॥ धम्मज्माणं ण तरति चिन्तेउं पुत्ररत्तकालम्मि। अहवाबी पंचविहं ण तरति सज्झाय कार्ड जे ॥७॥ एतेहिं कारणेहिं छहिं आहारेति संजतो णियमा । छहि चेच कारणेहि णाहारती इमेहिं तु॥८॥ आतंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीए । पाणिदया तवहेऊ सरीरवोच्डेयणट्ठाए ॥९॥ आयंका जरमादी तम्मुप्पण्णे ण भुजें भणितं च । सहसुप्पइया वाही वारेजा अट्ठमादीहिं ॥१७००॥ रायासण्णायादी उवसग्गो तम्मिवी ण भुजेजा । सहणट्ठा तु तितिक्खा पाहिजंते तु विसएहिं ॥१॥ भणितं च जिणिंदेहिं अवि आहारं जती हु वोच्छिदे। लोगेऽवि भणिय विसया विणिवत्तंते अणाहारे ॥२॥ तो बंभरक्खणडा णवि भुजेजाहि एवमाहार।। पाणदय वास महिया पाउसकाले व णवि मुंजे ॥३॥ तवहेतु चउत्थादी जाव तु छम्मासिओ तवो होति। छटुं णिच्छिण्णभरो छइडेतुमणो सरीरंतु॥४॥ असमस्यों संजमस्स उ | कतकिचोवक्खरं व तो देह । छड्डेमित्ति न भुंजइ सबह वोच्छेय आहारं ॥५॥ सोलस उम्गमदोसा सोलस उष्पादणाएँ दोसा तु । दस एसणाएं दोसा संजोयणमादि पंचेच ॥६॥ सीयालीसं एते सोपी पिडिता भवे दोसा। जेहिं अविसुद्ध पिंडे चरणुवघातो जतीण भवे ॥७॥ एतदोसविमुको भणिताऽऽहारो जिणेहिं साहूर्ण। धम्मावस्सगजोगा जेण ण हायंतित कुजा ॥८॥ उम्गममादीणं तू कारणपजन्तपत्थडो एस। लक्षण आवत्ती दाणमेव कमसो समक्खायं ॥९॥ अहुणा गाहाणं तू वोच्छामी अक्खरत्यमिणमो तू। उस कम्म मोत्तुं चरमतियं होति सेस तु ॥१७१०॥ पासंडाणं पढमं वितियं समणाण ततिय साधूर्ण । चरिमतिर्य एवं तृ कम्मंती आहकम्मं तु ॥१॥ पासंडमीसजाए साहूमीसे य सघरमीसे य। बायरपाहुडिया तू विवाहउस्सकओसका ॥२॥ आहड सपचवायं विराहणा जत्थ होति आयाए। लोभेण जो उ एसति सो होती लोभपिंडो तु ॥३॥ ससुचि एतेसु उदेसिगमादिलो-2 भपजते। पत्तेयं पत्तेयं सोही एत्थं तु भत्त? ॥४॥ अतिरं अणंतणिक्खित्तपिहियसाहरियमीसियादीमुं । संजोग सइंगाले दुविह णिमित्ते य खमणं तु ॥ मू०३६॥५॥ अतिर णिरंतर भण्णति अणंतकायो तु होति वणकायो। पूचलिमादी किंची णिक्खित्ते होति एत्थं तु॥६॥ पिहितं अणंतकाए साहरियमणंतमीसिर्य बावि। आदिग्गहणेणं पुण अपरिणएऽणतका१०४३ जीतकल्पभाय - मुनि दीपरनसागर Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *P4RAKAR एवि ॥ ७॥ संजोए रसहेउ संगालं रागसहित णेयर्छ। पडुपण्णणागतं वा दुविह णिमित्तेय णातचं ॥८॥ सचजहुद्दिद्वेसुं दुविहणिमित्तादिपजयंतेसु। पत्तेयं पत्तेयं सोही एत्थं तु भत्तई 3॥९॥ कम्मुद्देसियमीसे घायादिपगासणादिएसुंपि। पुरपच्छकम्मकुच्छियसंसत्तालित्तकरमत्ते॥ मू०३७॥१७२०॥ जावंति कम्म पढमे जावंतियमीसजायमादिले। पंचविह धाति पिंडो खीरादी अंकपजन्ते ॥१॥ आदिग्भहणेणं पुण दूतीपिंडे णिमित्ततीए या आजीववणिमपिंडो बादरवेगिच्छणाहिं च ॥२॥ कोहे माणे य तहा संबंधी वयणसंथवे थीसु। विजा मंते चुण्णे जोगे एमेत आदिपदा ॥३॥ पादोकरणपगासे दवे कीए य आयपरकीए । भावे तु आयकीते लोइयपामिचिएसुं च ॥४॥ लोइयपरियट्टेऽवी परगामे आहडम्मिणिरवाते। पिहिउम्भिण्णसचिने तह य कवाडे यणायचे ॥ ५॥ मालोहडमुक्कोसे अच्छेने तह य होति अणिसढे । एमेते तु पगासणमादिपदा होति णायवा ॥६॥पुरकम्मपच्छकम्मे कुन्छियदवेण मक्खियं जं तु । संसत्तचलिते हत्थे मत्ते व णातच ॥७॥ एतेसु जहुदिट्टो कम्मादिसु लित्तपञ्जवसिएसु। पत्तेयं पत्तेयं सोही एत्यं तु आयाम ॥८॥ अतिरं परित्तणिक्खित्तपिहियसाहरियमीसियादीसु । अइमाणधूमकारणविवजए विहियमायामं ॥मू०३८॥९॥ अतिर णिरंतर भणितं परित्तकाए उ होति णिक्खितं । परितेण य जं निहितं साहरियं वा परित्तेणं ॥१७३० ॥ मीस परिनेणं चिय आदिग्गहणा परित्तलितेऽवि । परितेसु छड्डियम्मिवि आदिग्महणा तु एमेते॥१॥ अइमाण सधूमे या आहारे कारणे विवच्चासा। कारण - विवजओ तू केरिसओ होतिमं बोच्छं ॥२॥ आहारेति अकज्जे ण समुहिसें एव कारणे जो तु। एस विवजो मणितो सबत्यवि सोहि आयाम॥३॥अझोयरकडपूतियमायाऽणते परंपरगए य । मीसाणताणतरगतादिए गमासणगं ।। मू०३९॥४॥पासंडऽज्झोयरओ साहूअज्झोयरो यणायबो। होति कडो चउहा तू जावंतियमादि विनेया॥५॥ आहारे पूतियम्मी मायापिंडे य होति णायवे । सञ्चित्तऽणतकाए परंपरे जंतु णिक्खित्ते ॥६॥ मीसाणतअणंतरणिक्खित्ते चेष होति णायथे। आदिग्गहणे पिहिते साहरिए मीसए चेव ॥ ७॥ गहिताणतपरंपरमीसऽतिरं पिहियमादि बोदछ । एवं जहुद्दिद्वेस सबस्थबि सोहि भत्तेकं॥८॥ओहविभागहेसोचकरणपुतीअठवियपागडिए। लोउत्तरपरियट्टियऽपमिच्चपरभावकीए य ॥ ४०॥९॥ ओहुद्देसविभागे उद्देस चउबिहे तु णातचे। उवगरणपूत्तिए या चिरठविए पागडे चेव ॥१७४०॥ लोउत्तरपामिचे परिवट्टिय उत्तरे य णायचे। परभावकीयमंखादिएम ससु उहिहो ॥१॥ पत्तेयं पत्तेयं सोही एत्यं तु होति पुरिमड्ढं । सग्गामाहडमादी पत्तेएवं पवक्खामि ॥२॥ सम्गामाइड दद्दर जहण्णमालोहडोतरे पढमे । सुहुमतिगिच्छा संथवनिगमक्खियदायगोवहए।मू०४१॥३॥ सम्मामाहडदहर उभिषणे अहव गट्ठि(गंठि)सहिए तु । मालोहडे जहण्णे उयरो अज्झोयरो होति ॥४॥ पढमो जावंतझोयरो तु एसो य हो मुतवो। मुहुमतिगिच्छासंथववयणे तू होति णायत्रो ॥५॥ कदममक्खिय पुढवीआऊउदउछुमक्खिए जंतु। वणकायपरित्तेणं उकुढे मक्खियतिगेणं ॥६॥ दायगउवय एनो दायम वालादियऽप्पभू जे य। एतेसेत्यऽहिगारो ते य इमे होंति बालादी ॥७॥ बाले बुड्ढे मत्ते उम्मने वेविए य जरिए य। एते देति तु जंतू तं होती दायगोवहयं ॥८॥ एतेमु जहुहिडे. साऽऽहडमादीस जरिययन्तेसु । पत्तेयं पत्तेयं सोही एत्थं तु पुरिमड्ढं ॥९॥ पत्तेयपरंपरठवियपिहियमीसे अणंतरादीसु। पुरिमइढ संकाए जं संकइ तं समावजे ॥ मू०४२॥१७५०॥ वणकायपरिनेणं सचित्तपरंपरं तु णिक्खित्ते। तेणेव य पिहियं तू परंपरं होति विष्णेयं ॥ १॥ एमेव य साहरिए सञ्चित्तपरंपरे परित्तम्मि। मीसपरितअणंतरणिक्खित्ते होनि णायकं ॥२॥ आदिमाहणेणं तु पिहिए उ अर्णतरे तु मीसम्मि। एमेव य साहरणे मीसेसु अणंतरे होति ॥३॥ सच्चेसु जहुरिद्वेसु सोहि पुरिमड्ढमेत्थ पत्तेयं । संकाए जं संकति नस्सेव य होनि पग्छिन ॥४॥ इत्तरठविए सुहुमे ससिणिद्धसरक्खमक्खिए चेव । मीसपरंपरठवियादिएसु बितिएसु वाऽविगती ॥ मू०४३ ॥ ५॥ इत्तरठवणाभने पाहुडिया सुहुम नह य ससिणिदे । आयूमक्खियमेयं ससरक्वं पुढविए होति ॥ ६॥ पुढवीगाउकाएतेऊवाऊपरित्तवणकाए । बेइंदियतेइंदियचउरोपंचिदिएसुं च ॥७॥ एतेसं पटवादिस मीसे उ परंपरे उ णिक्खिने। पनेयं पत्तेयं लहपणगं दाण णिविगती ॥८॥ वणकायऽणतमीसे णिक्खिते परंपरं तु सोहीमा। गुरुपणगं आवत्ती दाणं पुण होति णिविगति ॥९॥ विनियाणताणतरणिविखने गम्गपणग आवत्ती। दाणं णिविगती ऊ परंपरे होति एमेव ॥१७६०॥ वितियपरित्ताणंतरणिक्खित्ते लहुगपणगमावत्ती। दाणं णिविगयं तू परंपरे होनि एमेव ॥१॥ सहसाऽणाभोगेण व जेसु | पडिकमणमाहियं तेस। आभोगओऽवि बहुसो अतिप्पमाणे व णिधिगती ॥म०४४॥२॥ सहसा अणभोगात पुयुत्ता जेसु जेसु ठाणेसु। सबेसुवि तेमु भवे पा ॥३॥ तेसुत्ति कारणेसुं आभोगे इत्थ जाणमाणो उ। बहुसो होति पुणो पुणों अतिप्पमाणेऽवि एमेव ॥ ४॥ सवत्थ तु णिधिगई सोही आभोगतो मुणेतबा । बहुसोऽवि सोहि एसा अतिप्पमाणेऽवि णातबा ॥५॥धावणडेवणसंघरिसगमणकिड्डाकुहावणादीसु। उकुहिगीतछेलियजीवरुयादीसु य चउत्थं ॥ मू०४५॥६॥ धावण गतिमतिरिना चाडिनि व डेवणं तु उड्डवर्ण । संघरिसो जमलिओ तू को सिग्धगतित्ति बञ्चति तु॥७॥ किड्डा होयऽहावयचउरंगाजूयमादि णायचा। बट्टादि इंदजाल खेड्डा उ कुहावणा एसा ॥८॥ आदिग्गहणेणं न समासओ पहेलिया कहेडादी। उकट्ठी पुकारो गीतं पुण होइ कंठं तु ॥९॥ छेलिय सेण्टा भण्णति संगारो कीरती तु सा सण्णा । जीवरुअ मयूरादी कोइलमादावणानब्वं ॥१७७०॥ (२६१) १०४४ जीतकल्पभाध्यं - मुनि दीपरत्नसागर । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धावणमादिपदेसुं सब्वेसु अहकमेण विण्णेयं । पत्तेयं पत्तेयं सोही साहुस्सऽभत्तट्ठ ॥१॥ तिविहोवहिणो विचुतविस्सरितापेहिताणिवेदणए। णिश्चितियं पुरिमेकासणाइ सव्वम्मि चायामं ॥मू०४६॥२॥तिविहो तु होति उवही जहण्णओ मज्झिमो य उक्कोसो। चतुविह छविह चतुभेदयो य कमसो मुणेयवो ॥३॥ मुहपोति पायकेसरि पत्तट्ठवणं तु गोच्छओ चेव। एसो जहण्णओ तू मज्झिमगमतो पवक्खामि ॥४॥ पडलय स्यतरणं वा पत्ताबंधो य चोलपट्टो या मत्तय स्यहरणं वा मज्झिमओ एस णातधो ॥५॥ पच्छादतिग पडिग्गह एसो उकोसओ चउब्भेओ। ओहोवही उ एसो तिविहो तु समासतो होति ॥६॥ ओवग्गहिओ तिविहो जहण्ण मझो तहेव उक्कोसो। सो वण्णेयव्वो जह भणिओ कप्पअज्झयणे ॥७॥ विद्युत पडियं भण्णति पुणरवि लदे जहण्णमादीसु । सोही पमायमला णिव्वियमादी य इणमो उ॥८॥ णिविगति जहण्णम्मि मज्झिमए सोहि होति पुरिमड्ढं । एकासणमुकोसे सबम्मि य होति आयाम ॥९॥ तिविहोवहि विस्सरिए णवि पडिलेहेइ तत्य सोहि इमा। णिवितितं पुरिमेकासणं तु सबम्मि चाऽऽयामं ॥१७८०॥ विविहोवाह विस्सरिए आयरियादीण जो तु ण णिवेदे । सोही णिब्बितियादी आयामंता मुणेयब्वा ॥१॥ हारियधोतुम्गमियाणिवेदणादिण्णभोगदाणेसु । आसणमायामचतुत्थयाई सव्वम्मि छटुं तु ॥ मू०४७॥२॥ हारेइ जहण्णोवहि सोही इक्कासणं तु दातव्वं । मज्झिमए आयामं उक्कोसे होयऽभत्त? ॥३॥ सव्वोवहि हारेती सोही छटुं तु होति णायव्वं । एत्तो धोए वोच्छं सोही उ जहण्णमादीणं ॥४॥ धोएं जहण्णेकासण मज्झिमए सोहि होति आयाम। उक्कोसेऽभत्तट्ट घोए सबम्मि छटुं तु ॥५॥ तिविहोवहिमुग्गमितुं आयरियाणं तु जो ण णिब्वेदे। आसणमायामचतुत्थयाई सबम्मि उद्वं तु ॥६॥ उवही जहण्णमादी गुरुहिं अविदिण्ण जो तु परिभुजे। सोहिकासणमादी छटुंता होति सबम्मि ॥७॥ अणणुण्णाय गुरूहि उवहि जहण्णादि देति अण्णस्स। साहिकासणमादी छटुंता होति जीएणं ॥८॥ मुहर्णतय रयहरणे फिडिए णिविगतियं चउत्थं तु। नासिय हारविए वा जीएण चउत्थछट्ठाई । मू०४८॥९॥ मुहर्णत फिडिय उम्गह सोही णिविगतियं तु दायत्वं । रयहरणे तु चउत्थं फिडिए सोहेस लद्धम्मि ॥१७९०॥ मुहर्णत पमादेणं हारविए णासिए व भत्तहुँ । रयहरणे छटुं तू सोहेस पमादिणो जीए ॥१॥ का. लऽदाणादीए णिब्धिगती खमणमेव परिभोगे। अविहिबिगिचणियाए भत्तादीणं तु पुरिमड्ढं । मू०४९॥२॥ विकहादिपमाएणं कालादीयं करेन्ते भत्तादी। सोही णिविगती तू परिभोगे होयऽभत्तहूँ ॥३॥ एवऽद्धाणातीए अप्परिभोगेवि सोहि णिव्विगतिं। परिभोगेऽभत्तट्ठो अविहीय विगिंचणे पुरिमं ॥४॥ पाणस्सासंवरणे भूमितिगाहणे य णिविगती। सब्नस्सासंवरणे अगणभंगे य पुरिमड्ढं ।मू०५०॥५॥ पाणस्सासंवरणे सोही साहुस्स होति णिविगति। भूमीतिगं इमं तू वोच्छामि समासतो इणमो॥६॥ उच्चारभूमि पढमा बितिया पुण होति पासवणभुमी । तइया उ कालभूमी सोहेत्थ अपेहणेऽविगती ॥७॥ असणादी चतुभेदो सबोऽवि य एत्थ होति आहारो। तस्स असंवरणम्मी सोही साहुस्स पुरिमड्ढे ॥८॥ अहब णमुकारादी पञ्चक्खाणं ण गेण्हए सबं । गहितं वा जो भंजति सोही सवत्थ पुरिमड्ढे ॥९॥ एवं चिय सामण्णं तवपडिमाऽभिग्गहादियाणंपि। णिवितियादी पक्खियपुरिसादिविभागतो णेयं ।। मू०५१॥१८००॥ एयं चिय पुरिमड्ढं सामण्णविसेसियं मुणेयव्वं । तवपडिमअभिग्गहें या अगहणभंगे इमं वोच्छं ॥१॥ तवो बारसहा होति, पडिमा तू एगरातिया। दवाती तु अभिग्गह, अगहणभंगे तु पुरिमड्ढं ॥२॥ गाहापच्छद्धस्स तु इमा विभासा तु होति णातबा । खुड्डादी पंचण्हवि णिविगती अन्तऽभत्तट्ठो॥३॥ चाउम्मासिय खुड्डगभिक्खू थेरो उबज्झ आयरिए। पुरिमड्ढ़ एगभत्तं आयाम चउत्थ छटुंता॥४॥ पतिदिण पञ्चक्खाणं जहसत्ति अगेण्हणे तुमम्भहियं । खुइडादी पंचण्हवि एक्कासणमट्ठमं अंतो ॥ ५॥ फिडिए सतमस्सारिय भंगे वेगादि बंदणादीसु। णिविगतिय पुरिमेगासणादि सवेसु चायामं ॥ मू०५२॥६॥ फिडितुस्सग्गे एके पमाइणो सोहि होति णिविगति। दोहिं परि. मड्ढ भवे तिहिं फिडिए सोहि भत्तेकं ॥ ७॥ सो काउस्सग्गे फिडिए जुयओ पडिकमे जो तु। सोही पच्छाऽऽयाम उस्सारते इमं बोच्छं॥८॥ सतमुस्सारे एकं काउस्सम्गंति एन्थ णिविगति। दोसु तु पुरिमइढ भवे एकासणयं भवे तीहि ॥९॥ सवे सतमुस्सारे आयंबिल एस्थ होति सोही तु । भग्गेऽवि य एस चिय सोही तह बंदणमदेन्ति ॥ १८१०॥ अकएसु तु पुरिमाऽऽसणमायाम सबसो चउत्थं तु । पुषमपेहितथंडिल णिसिवोसिरणे दियासुवणे ॥मू०५३॥१॥ण करेंतस्सुस्सग्गं सोही एत्थं तु होइ पुरिमड्ढे । दोहि य एकासणयं निहि अकरणे सोहि आयामं ॥२॥ सर्व चिय आवसयं अकरेंते सोहि होयऽभत्तट्ठो। काउस्सग्गे तह वंदणस्स सोही तहाऽकरणे ॥३॥ गाहापच्छदेण तु पुवं तु अपेहिए उथंडिडे। णिसिबोसिरणे सोही साहस्स भवे अभन₹ ॥४॥ दियसुवणे णिकारणे सोही साहुस्स होयऽभत्तहूँ। कोहं परिवसमाणे ककोलादीमतो योच्छं ॥५॥ कोहे बहदेवसिए आसव ककोलगादिएसुं च। लसुणादी पुरिमइदं तण्णादीबंधमुयणे य ।। मू०५४॥६॥ पक्खियमतिकामन्तो बहुदेवसिओत्ति एस कोहो तु। अहवा बहुदेवसिए चाउम्मासादिरिने नु॥७॥ एयं बहुदेवसियं एत्य उ सोही तु होइ भत्तहूँ। आसवों वियर्ड भण्णति तमाइयंते अभत्तटुं ॥८॥ ककोलय सेवते सोही साहुस्स होयऽभत्तहूँ। पूईफलजाईफरलवंगतंबोलमादिसु य ॥९॥आ१०४५ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरनसागर Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | दिग्गहणेणेत्तो पत्तेयं एत्थ सोहऽभत्तटुं। लसुणादिन्ते(चित्ते)पुरिमं आदिग्गहणा पलंडुम्मि ॥१८२०॥ तण्णगवंधणमुयणा सोही एत्थं तु होति पुरिमड्ढं । आदिग्गहणेणं पुण हंसमयरादिएसंपि॥१॥ अझसिरतणेसु निविगतियं तु सेसपणएसु पुरिमड्ढं। अप्पडिलेहियपणए एगासण तसवहे जं च।मु०५५॥२॥ अज्झुसिरे तु कुसादी परिभोगा कारणे तु णिवि. गतिं । सेसपणगं तु पंचह सपंचभेयं पुणेकेकं ॥३॥ पोत्थय तणपणगं वा दूसे पणगं च दुष्पडिल्लेहे। अप्पडिलेहियदूसे पंचमयं चम्मपणगं च ॥४॥ गंडी कच्छवि मुट्ठी लिवाडि संपुड: यपोथए चेव। साली वीही कोदव रालग रणे तणाईच॥५॥अप्पडिलेहियदसे तली उबहाणएयणायब्वे । गंडवहाणाऽऽलिंगिणि मसूरए चेव पोत्तमए ॥६॥ पल्हवि कोयवि पावार णवयए तह य दाढियाली या दुप्पडिलेहियदूसे एवं वितियं भवे पणर्ग ॥७॥ गो महिसं अया एलग मिगचम्मं पंचमं मुगेयव्वं । अहवावि चम्मपणगं एवं वितियं तु विष्णेयं ॥८॥ तलिगा खल्डग वज्झे कोसग कत्ती य पंचमं पणगं। एते पंच उ पणगा सयं च भेया समक्खाता ॥९॥ठवणमणापुच्छाए णिव्विसणे विरियगृहणाए या जीएणेकासणयं सेसगमायासु खवणं तु ॥मू०५६॥१८३०॥ ठवणकुल दाणसड्ढादियाइ ताई तुगुरुमणापुच्छा। पविसइ णिव्विसणा तू पडिगाहे जंतु भत्तादी ॥१॥ विरियं सामत्थं वा परक्कमो चेव होन्ति एगट्ठा। गृहण गोवण नूमण पलियंचणमेव एय? ॥२॥ एरिसमायासहिए जीएणं देज एगमत्तं तु।सुयववहारे अण्णह सेसं मायं अयो वोच्छं ॥३॥ भहगंभहगं भोच्चा, विवण्णं विरसमाहरे। आयरियाण सगासे, जसोत्थी एव चिंतए॥४॥ लूहवित्ती महाभागो, एस साहू जितिंदिओ। रसचागं करेइत्ती, अंततेहिं लाढए ॥५॥ दप्पेणं पंचिंदियवोरमणे संकिलिङ्ककम्मे य। दीहवाणासेविय गिलाणकप्पावसाणेसु।मू०५७॥६॥ दुप्पो वग्गणधावणडेवणमादीतु होति णायबो। पंचिंदियवोरमणं उद्दवण विराहणेगहूँ॥७॥ कम्मं तु संकिलिटुं करकम्म कुणति अंगदाणे उ। दीहेणऽहाणेणं कम्म पलंबादि बहु सेवे॥८॥ गेलण्णम्मि तु दीहे आहाकम्मादि सण्णिहीमादी। बहुअतियारणिसेवी सोही एत्वं तु अवसाणे ॥९॥एयम्मि जहुद्दिद्वे वोरमणादी गिलाणपजते। पत्तेयं पत्तेयं सोही तू पंचकल्लाणं ॥१८४०॥ सब्बोवहिकप्पम्मि य पुरिमत्तापेहणे य चरिमाए। चाउम्मासे बरिसे य सोहणं पंचकलाणं ॥मू०५८॥श पाउ. सकाले सबोवहिम्मि जयणाविऽकप्पिए सोही। पुरिमत्ताएँ पमाया चरिमाएँ अपेहिते चेव ॥२॥ उवही धोयवसाणे पुरिमत्तारोहणाएँ चरिमाए।पत्तेयं पत्तेयं सोहेत्वं पंचकल्डाणं ॥३॥ चाउम्मासिय वरिसे णिरतियारे यऽबस्स दायवं। आलोइयम्मि सोही णियमेणं पंचकल्लाणं ॥४॥ किं कारणमिह सोही णिरतियारेऽवि दिज्जए एवं ?। चोयग! सुहुमऽतियारे कएऽवि णवि जाणति कयाति ॥५॥ अहव ण संभरती तू जह पायोसीय अड्ढरत्तीए। वेरत्तिय पाभाइय अग्गहणा काल अतियार ॥ ६॥सुत्तत्थपोरिसीअकरणम्मि दुप्पेहदुप्पमज्जासु। एतेण कारणेणं सोही तू पंचकल्लाणं ॥७॥ छेदादिमसहहयो मिउणो परियायगवियस्सविय। छेदातीए वि तवो जीएण गणाहिवइणो य ।।मू०५९॥ ८॥ विपुलं तवमकरतो किह सुज्झति छेदमूलमत्तेणं ?। गुरुआणामेत्तेणं असदहते तवो देयो॥९॥ मतुओबि छेद मूले व दिजमाणम्मि होतिपरितुहो। इहरावि वंदणिजो तिक्सुत्तो तस्स देह तवं ॥१८५०॥ दुविहो य गविओ खलु चिरपरियाओ तहेव तववलिओ। छेदम्मि दिजमाणे परियादी गविओ होति ॥१॥ केत्तियमेत्तं छिंदिह ? तहविय हं तुम्भ होमि राइणिओ। एसो उ गशिओ खलु चिर. परियादी मुणेयत्रो ॥२॥ तवबलिओ देह तवं अहं समत्थोत्ति गविओ होति। तम्हा तहोसहरं विवरीयं तेसि दातव्वं ॥३॥ गणअहिवति आयरियो तस्सवि छेदादि होति पत्तस्स। अप्परिणयसेहादिसु मा होना हीलणिजोत्ति ॥४॥ घीवलसंघयणं वा णातुं कालं च तिविह गिम्हादी। तम्हा तदोसहरं तवारिहं दिजए तस्स॥५॥ जं जंण भणियमिहति तस्सावत्तीय दाणसंखेवं । भिण्णादिया य वोच्छं छम्मासन्ता य जीएणं ॥मू०६०॥६॥ जं जंति होति विच्छा णवि भणियमिहंति जीतववहारे। पच्छित्तविसोही तू तस्सावत्ती पणगमादी ॥७॥ दार्ण णिव्वितिगादी मेय विसेसेणमेत्य भणिहामि । संखेवो तु समासो किह णवि जीएण भणितमिहं? ॥८॥कम्ही वा भणियंती गुरुराह णिसीहकप्पववहारे। सुत्तत्ययो य भणियं आणादि सवित्थरेणं तु ॥९॥ पगणादीछम्मासावसाणआवत्तिविरयणाओ य। णेगविहा भणिताओ णिसिहादिसु वित्थरेणं तु ॥१८६०॥ इह पुण जीएणं तू णिकण्णावनिदा सखे । भिण्णादी छम्मासा णेदाणजिएणिमं वोच्छं ॥१॥ भिण्णो अविसिट्ठो चिय मासो चउरो य उच लहुगुरुगा। णिधितियादी अट्ठमभत्तन्ता दाणमेतेसि ॥ म०६१॥२॥ पणुवीस दिणा भिण्णो अविसिट्ठो एस गुरु लहू वावि। अविसेसिओऽविसिट्ठो एसो तू होति णायचो ॥३॥ मासो लहुओ गुरुओ चतुरो मासा य होन्ति लहुगुरुया। छम्मास्सा लहुगुरुगा | दाणं एतेसि वोच्छामि ॥४॥ पणगं दस पण्णरस वीसा पणुवीस जाव णिविगती। लहुमासे पुरिमइदं गुरुमासे दाण भत्तिकं ॥५॥ चउलहुए आयाम चउगुरुए होनि दाणऽभन्नहूँ। छलहुए छटुं तू छग्गुरुए दाणमट्ठमयं ॥६॥ णिविगतीमादीयं अट्ठमभत्तन्तमेय दाणंति। भिण्णादीणं कमसो छम्मासंतावसाणाणं ॥ ७॥ इय सब्वावत्तीओ नवसो गाउं अहकम समए। जीएण दिज णिवीतिगाति दाणं जहाभिहितं ॥ मू०६२॥८॥ इय एतेण कमेण एवपगारेण अहब इतिसद्दो। सव्वाऽऽवत्ती पणगादिया तु छम्मासपजन्ता ॥९॥ णिव्यीइगमाईओ 15 १०४६ जीतकम्पभायं - मुनि दीपरत्नसागर Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमपजतो होइ सव्वतयो। जीएण दिज दाणं णिव्वीतिगमादिगं कमसो ॥१८७०॥ जहभिहितं जह भणियं तह तह देजाहिऽभिहितमयति । सामण्णेणं एवं समासतो होति णानव्यं ॥१॥ एवं पुण सव्वं चिय पार्य सामग्णयो विणिदिहूँ। दाणं विभागतो पुण दव्वादिविसे सियं जाण ॥ मू०६३॥२॥ एयंति जहुदिट्ठ पुणसदो विसेसणे तु णातयो। सव्वं पायच्छित्तं दाणं पाएण बाहुला ॥३॥ सामणं अविसेसित णिदिव विसेसित चिणिहिट्ठ । दाणं णिधितिगादी विभागतो देज वित्थरतो॥४॥ दव्वादीया पडिसेवणा तु लतिया तु आदिसदेण। होति विसेसेणाऽवेक्खितॄण दिजाहि ऊर्णपि ॥५॥ अहवावि समतिरित्तं दाणं णाऊण देज जीएणं । अहवावि तत्तियं चिय दिजाहि सुयोवदेसेणं ॥६॥ दव्यं खेनं कालं भावं पुरिस पडिसेवणाओ य। णातुमितं चिय दिजा तम्मत्तं हीणमहितं वा ।मू०६४॥७॥आहारादी दव्वं खितं लुक्खादि काल गिम्हादी। हिट्ठादी भावं तू पुरिस गीयादि जाणित्ता॥८॥ आउहिगमादीया पडिसेवण होति तू मुणेतब्बा। णाऊण जाणितूर्ण इति(द) मित्ति जए त(यं तु) जीएणं ॥९॥ देजाही तम्मत्त हीणं अहितं पणातु दवाती। हीणे दवादीए हीणं देजा. हिए अहियं ॥१८८०॥ एसोतु अक्खरत्यो दब्बादीणं तु वनितो कमसो । पुणरवि दब्बादीणं विभागतो सूरिमाइंसु ॥१॥ आहारादी दच्वं बलियं सुलभं च णाउमहियंपि। देजाहि दुबलं दालभं च णाऊण हीणंपि ॥ मू०६५॥२॥ आहारों जेसिमादी दब्वाणं ताई होंति दव्वाई। आहारादीयाई बलियाई जम्मि देसम्मि ॥३॥ जह अणुवदेस सालीकूरों सभावेण होति बलिओ तु । सुलभो य सो तु णिचं सेसा बटुंति एमेव ॥४॥ एवं णाऊण तहिं जं भणितं दाण जीतववहारे। तं देज समन्भहियं जहिपुण चणवालकलमादी॥५॥ कंजि-15 | यरुक्साहारो दुव्बल दुलभो य एवणाऊण। देजा सेऽत्यं हीणं जीतनवहारभणियाउ॥६॥ लुक्खं सीतल साहारणं च खेत्तमहितंपि सीयम्मि लुक्सम्मि य हीणयरं एवं कालेवि तिविहम्मि ॥ मू०६६॥७॥ठक्वं तु हरहितं जं खेत्तं वायपित्तलं वाचि । सीर्य बलियं भण्णति अहवा अणुवं भवे सीतं ॥८॥ साहारणं समं तू ज णवि णिद्धं ण चेव लुक्खंपि। एवं तिविहं खेतं दाणं एतेसि वोच्छामि ॥९॥श्य एव जीतदाणं णिदे खित्तेऽहियपि देजाहि । साहारणे तम्मत्तं लक्खे खेते तु हीणयरं ॥१८९०॥ यस्ताही निह खेतं एवेयं वणितं 2 समासेणं। अहुणा तु तिविह कालं गिम्हादि समासतो वोच्छं ॥१॥ गिम्हसिसिरवासासू देजऽटुमदसमबारसंताई। णातुं विहिणा णवविहसुतववहारोवदेसेणं । मू०६७॥२॥ गिम्हामु चतुर्थ देला, उर्दु च हिमागमे। वासासु अट्ठमं दिजा, तवो एस जहण्णओ ॥३॥ गिम्हासु छटुं देज्जा, अनुमं च हिमागमे। वासासु दसमं देजा, एस मज्झिमओ तवो ॥४॥ गिम्हासु अट्ठमं देजा, दसमं च हिमागमे । वासासु दुवालसम, एस उक्कोसतो तवो ॥५॥ जहसंखेणं एसो गिम्हादितयो समासतो होति । एवं पुण कह दिज्जा ? णवविहसुत्तोवएसेणं ॥६॥ सुतववहारेणऽहवा णवभेदवियप्प सुहुम जाणित्ता। देजाहि तिविहकाले ववहारो सो इमो णवहा ॥७॥ अहलहुसग लहुसयरो लहुसोत्ती होति लहुसपक्सम्मि। अहलहुओ लहुयतरो लहुओत्ती लहुयपक्वम्मि ॥८॥ गुरुयो गुरुयतराओ अहगुरुओ एस होति गुरुपक्से। णवविहववहारेसो आवत्ती तेसिं बोच्छामि ॥९॥ पण दस पण्णरसं वा तिविहेसो होलि लहुसपक्सम्मि। बीसा य पण्णवीसा तीसाविय लहुगपक्खम्मि ॥१९००॥ गुरुमासो चतुमासो छम्मासा चेव होति गुरुपक्खे। णवविह आवत्तेसा णवविहदाणं अतो वोच्छं॥१॥ णिविगति रेमहर्ट एक्कासणयं च लहसपक्वम्मि। आयंबिलऽभत्तई छटुं वा होति लपक्खे ॥२॥ अट्ठम दसम दुवालस गुरुपक्से एय होति दाणं तु । आवत्ती तवो एसो समासतो णव मक्खातो॥३॥ णवविहववहारेसो लहुसादि समासतो समस्खातो। पुणरवि ओहेण विभागयो य गुरुमादि बोच्छामि ॥४॥ गुरुओ गुरुगतरातो अहागुरूयो व होनि वबहारो। लहुओ लहुततरातो अहालहू चेव ववहारो॥५॥ लहुसो लहुसतराओ अहालहूसो य होति ववहारो। एएसिं पच्छित्तं वोच्छामि अहाणुपुत्रीए ॥६॥ गुरुओ य होति मासो गुरुयतराओ य होति चतुमासो। अहगुरुओ छम्मासो गुरुपक्खे एस पडिवत्ती ॥७॥ तीसा य पण्णवीसा वीसाविय होति लहुयपक्सम्मि। पण्णरस दस य पंच य लहुसगपक्खम्मि पडिवत्ती॥८॥ गुरुयं च अट्ठमं खलु गुरुयतरायं च होति दसमं तु । अहगुरुयं वारसमं गुरुपक्खे एस पडिवत्ती॥९॥ छ8 च चउत्थं वा आयंबिल एगठाण पुरिमड्ढं। णिवितियं दायचं अहलहुसे अहव सुद्धो वा ॥१९१०॥ ववहारो आरोवण सोही पच्छित्तमेयमेगहुँ । थोवो तु अहालहुसो पट्ठवणा होति दाणं तु॥१॥ ओहेण एस भणिओ एत्तो वोच्छं पुणो विभागेणं। तिग णव सत्तावीसग एकासीती य भेदेणं ॥२॥ गुरुपक्खो लहुपक्खो लहुसगपक्खो य तिविह एस भवे। एकेको पुणो तिविहो उक्कोसादी इमं वोच्छं ॥३॥ गुरुपक्खे उकोसा मज्न ज. हण्णो य एव लहुएऽवि। एमेव लहुसएऽवी उकोसो मज्झिम जहण्णो ॥४॥ गुरुपक्खे छम्मासो पणमासो चेव होति उक्कोसा। मज्झिम तू तेमासो दुमास गुरुमासिय जहण्णो ॥५॥ लहुमास भिण्णमासो वीसाविय तिविहमेय लहुपक्से। पण्णरस दसग पंचग लहुसुकोसादि तिविहेसो ॥६॥ आवत्तितवो एसो णवभेदो बष्णितो समासेणं । अहुणा उ सत्तवीसो दाणतवो तस्सिमो होति ॥७॥ गुरु लहु लहुसगपक्खे एकेको णवविहो मुणेतयो। उकोमुक्कोसो या उक्कोसगमज्झिममहण्णो ॥८॥ मज्झिमउक्कोसो या मज्झिममझो तहा जहण्णो १०४० जीतकल्पभायं मुनि दीपरनसागर Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य। होति जहण्णुकोसो जहण्णमझो दुह जहण्णो ॥९॥ गुरुपक्खो उक्कोसय उक्कोसगमज्झिमो जहण्णो य। मज्झिमउकोसो तू मज्झिममझो जहण्णो य ॥ १९२० ॥ होति जह- 11 पणुकोसो जहण्णमझो जहण्णगजहण्णो । णवविह्ववहारेसो लहुपक्से होति णातब्बो ॥१॥ उक्कोसुक्कोसो तू उक्कोसगमज्झिमो जहष्णो य। मज्झिमउक्कोसो तू मज्झिममझो जहण्णो य ॥२॥ होति जपणुक्कोसो जहण्णमज्झो जहण्णगजनो। णवविहववहारेसो लहुसगपक्खे मुणेतवो ॥३॥ बारसमदसमअट्ठमछप्पणमासेसु तिविह दाणेदं । चउतेमासे दसमऽहछट्ठ उक्कोसगाति तिहा॥४॥ एमेवुकोसादी दुमासगुरुमासिए तिहा दाणं। अट्ठमछट्ठचउत्यं णवविहमेयं तु गुरुपक्खो ॥५॥ दसमंअट्ठमछटुं लहुमासुक्कोसगादि तिह दाणं। अट्ठमछट्टचउत्थं उक्कोसादे य तिह भिण्णे ॥६॥ छट्टचउत्थाऽऽयामं उक्कोसादे य दाण वीसाए। लहुपक्खम्मी णवगो बीओ एसो मुणेयवो॥७॥ अट्ठमछट्टचउत्थं एवुक्कोसादिदाण पण्णरसे । छट्ठचउत्थाऽऽयाम दससू तिविहे तु दाण भवे ॥८॥ खमणाऽयामेक्कासण तिविहोक्कोसादि दाण पणगेयं। लहुसेस ततियणवगो सत्तावीसेस वासासु ॥९॥ सिसिरे दसमादी पुण चारणभेदेण सत्तवीसे य। ठायंती पुरिमड्ढम्मि अड्ढोकंती य तह चेव ॥१९३०॥ अट्ठममादी गिम्हे चारणभेदेण सत्तवीसेण । तह चेवऽड्ढोकंती ठायति णिवीतिए णवरि ॥१॥ अहणा उ चारणा तु उक्कोसुक्कोसगादि गुरुगादी । बासासू सिसिरे या गिम्हे य समासतो वोच्छं॥२॥ अहगुरुए वासासू उक्कोसुक्कोसए य बारसमं । उक्कोसमझ दसम उको. सजहण्णमट्ठमगं ॥३॥ अहगुरुए सिसिरेसुं उकोसुक्कोसए य दसमं तु । उक्कोसमज्झिमऽहम उक्कोसजहण्णए छटुं ॥४॥ अहगुरुए गिम्हासुं उक्कोसुक्कोसमट्ठमं दिज्जा। उक्को. समझ छ8 उक्कोसजहण्णएँ चउत्थं ॥५॥ गुरुयतरा वासासु मज्झिमउक्कोसए य दसमं तु । मज्झिममझे अट्टम मज्मजहण्णेण छटुं तु ॥६॥ गुरुततरा सिसिरेसुं मजिसमउ. कोसमट्ठमं देजा।मज्झिममझे छटुंमज्झजहणे चउत्थं तु॥७॥ गुरुततरा गिम्हेसुमझिमउक्कोसे देज छटुंतु।मज्झिममा चउत्थं ममजहण्णेण छर्दुतु (आयाम)॥८॥गुरुए वास जहण्णे उक्कोसे अट्ठमं तु देजाहि । छटुं जहण्णमझे होइ चउत्यं दुहजहण्णे ॥९॥ गुरु सिसिरेऽत्थ जहण्णे उक्कोर्स देज छट्ठभत्तं तु। जहणयमजिझ चउत्थं दुहयों जहण्णेण आयाम ॥१९४०॥ गुरुए गिम्ह जहष्णे उक्कोसा देज तू चउत्थं तु । जहणयमझाऽऽयामं एकासणयं दुहजहण्णे ॥१॥ लहुए वासारते उक्कोसुक्कोसगम्मि दसमं तु । उक्कोसमझिमऽहम उक्कोसजहण्णए छ? ॥२॥ लहुए उकोसुक्कोसतम्मि सिसिरम्मि अट्ठमं दिजा। उक्कोसमझ छ8 उकोसजहण्णएं चउत्थं ॥३॥ लहुपक्खे उक्कोसे गिम्हम्मी देज छट्ठभत्तं तु । मजिनमग तु चउत्थं उक्कोसजष्णमायामं ॥४॥ लहुयतरे वासासु मज्झिमउक्कोसमट्ठमं दिज्जा । मज्झिममझे छठें मज्झजहण्णेणऽभत्तटुं ॥५॥ लहुयतरा सिसिरेसुं मजिसमउकोस देज छटुं तु। मज्झिममज्झ चउत्थं मझजणेणमायामं ॥६॥ लहुयतरा गिम्हेसु मज्झिमउकोस देजऽभत्तटुं। मज्झिममझायाम मज्झजणेण भत्तेकं ॥७॥ अहलहुया वासासुं जहण्णउक्कोस छट्ट देजाहि। मज्झिमगम्मि चउत्थं जहण्णगजहण्णमायामं ॥८॥ अहलहुयग सिसि अहलहयग सिसिरसु जहण्णउक्कोस देनऽभत्तटुं। मज्झिमगे आयाम जहष्णगजहण्ण भत्तेक्का ॥९॥ अहलहुगे गिम्हासु जहण्णगुक्कोस देज आयामं। एक्कासणर्ग मज्झे पुरिमड्ढं दुहजहण्णम्मि ॥१९५०॥ लहुसग वासासुक्कोसगम्मि उक्कोसमट्ठमं देजा। उक्कोसमझ छर्ल्ड उक्कोसजहण्णएं चउत्थं ॥१॥ लहुसग सिसिरासुक्कोसगं तु उक्कोस छ? देजाहि । मज्झिमगं तु चउत्थं उक्कोसजहण्णमायाम॥२॥ लहुसग गिम्हामुक्कोसगम्मि उक्कोस देजडभन्नहूँ। मज्झिमगं आयामं उक्कोसजहण्ण भत्तेक्कं ॥३॥ लहुसतरा वासासु मझुक्कोसेण छट्ठभत्तं तु। मज्झिममा चउत्थं मझजहण्णेण आयाम ॥४॥ लहुसतरा सिसिरासु मक्कोसेण देज भत्तटुं। मज्झिममझायाम मझजहण्णेण भत्तेकं ॥५॥ लहुसतरा गिम्हेसुं मझुक्कोसेण देज आयाम। मज्झिममझक्कासण मज्झजहण्णेण पुरिमइद ॥६॥ अलहुसय वासासु जहण्णमुक्कोस देजऽभत्तटुं । मज्झिमगं आयामं भत्तेककं दुहजहण्णेणं ॥७॥ अहलहुसग सिसिरासुं जहण्णमुक्कोस दिन आयामं । जहणगमज्झेक्कासण जहणजहण्णण पुरिमइदं ॥ ८॥ अहलहुसग गिम्हामुं जहण्णमुक्कोस देज भत्तेक्कं । मज्झिमगं पुरिमड्ढं दुहयों जहाणेण णिविगति ॥९॥ एतेहिं ठाणेहि (एया) आवत्तिओ सदा णियमा। वोढवा समाओ असहस्सेक्केककहासणया ॥ १९६० ॥ जाव ठियं एकेक्कं तंपिय हाविज असहुणो ताहे । दाउं सहाणेवं परठाणं देज एमेव ॥१॥ एवं ठाणे ठाणे हेद्वाहुनो कमेण हासेत्ता। णेत जाव ठितं णियमा णिशीयियं एकं ॥२॥णवविहववहारेसो आवत्तीदाणसहितकालजुतो। बुद्धीओ विष्णेओ विभागतो एसमक्खातो॥३॥ अहव तिमो लहुसादी तिविहादि समास वित्थरे वोच्छं। हीणो मझुकोसो तिबिहेसो होति णायव्वो॥४॥ लहुसगपक्खे पणगं दस पण्णर तिविह एय णातव्वं । वीसा य भिण्णमासो लहुमासो तिविह लहुपक्खे ॥५॥ गुरुमासो चउमासो छम्मासो चेव एस गुरुपक्खे । णवविहआवत्तेसा दाणं णवहा तिमं बोच्छं ॥६॥ णिविगतिय पुरिमड्ढे एक्कासण लहुसए य दाणंति। आयाम चउत्थं वा छट्टु तू लहुगपक्सम्मि ॥७॥ अट्ठम दसम दुवालस गुरुपक्खे एय होति दाणं तु। णवविहदाणं एसो अहवाऽऽवत्ती इमा णवहा ॥८॥ पण दस पण्णरसं वा लहुगुरुगा लहुसए तु पक्खम्मि । वीसा य भिण्णमासो लहु गुरु लहुओ य मासेक्को ॥९॥ गुरुमासो दुणि मासा लहुगुरुगा तिग चउक्क लहुगुरुगा। पंचग छम्मासा या लह-(२६२) २०४८ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुगा एस णवहा तु॥१९७० ॥ आवत्तितवो एसो णवभेदो वणितो समासेणं। अहुणा तु सत्तवीसो दाणतवो तस्सिमो होति ॥१॥ लहुसग लहु गुरुपक्खो एक्केक्को णवविहो मुणेतब्बो। दुहयो जहणो जहणगमझो य जहण्णगुक्कोसो ॥२॥ मज्झिमजहण्णगं तू मज्झिममझ तु मज्झिमुक्कोलं, रक्कोसगे जहणं उक्कोसगमज्म उक्कोसं ॥३॥ लहुसगपक्खे वेयं णवभेद समासतो समक्लायं । लहुपक्खेऽवि णवविहं गुरुपकले वा मुणेयर्थ ॥४॥ वासासु अहालहुसो दुहयो जहणेण देज भत्तेक्कं । जहणगमझायाम जहपणगुक्कोसएँ चउत्यं ॥५॥ नुसतरमज्झिमजहण्णयम्मि वासासु देज आयाम। मज्झिममझे चउत्थं मज्झिमउक्कोसए छटुं ॥६॥ लहुसगउक्कोसजहण्णगम्मि वासामु देजाभत्तटुं। उक्कोसमझ छटुं उक्कोमुक्कोसमट्ठमगं ॥७॥ अहलहुए वासामुं जहणजहण्णे तु देज आयाम। जहणगमज्झ चउत्थं जहणउक्कोसए छटुं ॥८॥ लहुयतरा वासासु मज्झजहण्णम्मि हवयभत्त₹ । मज्झिममझे छट्टु मज्झिमुक्कोसमट्ठमर्ग ॥९॥ लहुए वासासुक्कोसगम्मि जहणे तु देज छटुं तु । उक्कोसमज्झमट्ठम उक्कोसुक्कोसए दसमं ॥१९८०॥ गुरुपाखें जहण्णम्मि जहण्ण होती चउत्थमत्तं तु। हीणगमझे छटुं जहण्णउक्कोसमट्टमगं ॥१॥ गुरुजतरा वासासु मज्झजहण्णेण देज छटुं तु। मज्झिमममं अट्ठम मज्झिमउक्कोसए दसमं॥२॥ अहगुरुए वासासुं उक्कोसजहण्णमट्ठमं देजा। उक्कोसमझ दसमं उक्कोसुक्कोस बारसमं ॥३॥अहलहुसग सिसिरेसु जहणजहण्णेण होति पुरिमइढं। हीणगमोक्कासण जहण्णउक्कोस आयामं ॥४॥ लहुसतरा सिसिरेसु मज्झजहण्णेण भत्तमेक्कं तू। मज्झिममझायाम मज्झिमउक्कोसएँ चउत्थं ॥५॥ लहसग सिसि. रुक्कोसे जहण्ण एवं तु देज आयाम । मज्झिमगं तु चउत्थं उक्कोसुक्कोस छटुं तु ॥ ६॥ अहलहुयग सिसिरेसुं दुहाजहण्णेण देज भत्तेक्कं । जहणगमज्मायामं जहण्णमुक्कोसएँ चउत्थं ॥ ७॥ लहुसतरा सिसिरेर्मु मज्झजहण्णेण देज आयामं । मज्झिममज्झ चउत्थं मज्झिमउक्कोसए छटुं॥८॥लहुए सिसिरुक्कोसे होति जहष्णं चतुत्थभत्तं तु। उक्कोसमझ छट्टै उक्कोमुक्कोसमट्ठमगं ॥९॥ गुरुए सिसिर जहण्णे जहण्णएणं तु देज आयामं। जहणगमज्झ चउत्थं जहण्णउक्कोसए छटुं ॥१९९०॥ गुरुयतरा सिसिरेसुं मज्झजहण्णेण देज ऽभत्तहूँ। मज्झिममज्झे छ8 मज्झिमउक्कोसमट्ठमगं ॥१॥ अहगुरुए सिसिरेसुं उक्कोसजहण्णएण छटुं तु। उक्कोसमज्झिमऽहम उक्कोसुक्कोसए दसमं ॥२॥अहलहुसग गिम्हासुं जहणजहण्णेण होति णिविगति। हीणगमज्झे पुरिमं जहण्णउक्कोस भत्तेक्कं ॥३॥ लहुसतरा गिम्हेसु मज्झजहण्णेण होति पुरिमड्ढं। म मायामं ॥४॥ लहुसग गिम्हुक्कोसे जहण्णगे होति भत्तमेक्कं तु। उक्कोसमझ आयंबिलं तु उक्कोसएं चउत्थं ॥५॥ अहलहुयग गिम्हेसुं पुरिमड्ढे होति दुहजहण्णेणं । मज्झजह. गणेक्कासण जहण्णउक्क्कोसमायामं ॥६॥ लहुयतरा गिम्हेसु मज्झजहण्णेण भत्तमेक्कं तु। मज्झिममज्झाऽऽयाम मज्झिमउकोसएं चउत्थं ॥ ॥ लहुयग गिम्हुक्कोसे जहण्णएणं तु होति आयाम । मज्झिमगं तु चउत्थं उक्कोसुक्कोसए छ8 ॥८॥ गुरुए गिम्ह जहण्णे जहण्णय होति भत्तमेकं तु। हीणगमज्झाऽऽयामं जहण्णउकोसएँ चउत्थं ॥९॥ गुरुअतरा गिम्हासु मज्झजहण्णेण होति आयामं । मज्झिममा चउत्थं मज्झिमउक्कोसए छटुं॥२०००॥ अहगुरुए गिम्हासुं उक्कोसजहण्णए चउत्थं तु। उक्कोसमा छटुं उक्कोसुक्को. समट्टमर्ग ॥१॥णवविह क्वहारेसो आवत्तीदाणसहियकालजुओ। बुद्धीए विण्णेयो विभागतो एसमक्खातो ॥२॥ हद्दगिलाणाभावम्मि देज हदुस्स ण तु गिलाणस्स। जावतियं वा विसहति तं देज सहेज वा कालं ॥ मू०६८॥३॥ भावं पडुच्च अहियं देजाही हट्टबलियणिरुयस्स । गिलाणस्स तु उणतरं ण व देज सहेज वा कालं ॥ ४॥ असुभो सुभो व भावो लेस्साभेदेण होति णायो। तियो तिनतरो वा तिवतमो एव मंदोवि ॥५॥ पणएऽवि सेवियम्मी चरिमं भावाउ केइ पावंति। चरिमाओ वा पणगं एवमिणं भावणिफण्णं ॥६॥ पुरिस पडुब अहियं ऊणं वा दिज अहव तम्मत्तं । ते पुण पुरिसादीया इमे समासेण णायचा ॥७॥ पुरिसा गीतागीता सहासहा तह सदासढा केई । परिणामाऽपरिणामा अतिपरिणामा अ बत्थूणं ॥मू०६९॥८॥ केयी पुरिसा गीता केई अगीयत्य होंति णातवा। घितिसंघयणादीहिं केइ सहा केइ तू असहा ॥९॥ मायावी होन्ति सदा असदा पुण उजुपण्ण तथा। परिणामादी इणमो समासतोऽहं पवनवामि ॥२०१०॥ परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य वत्यु चरिमदुए। अंबादी दिटुंता होति विभागो इमो तेसि ॥१॥ जो दवखेत्तकयकालभावयो जं जहा जिणक्खायं । तं तह सहहमाणं जाणसु परिणामगं साहुं ॥२॥ जाणति दश जहट्ठिय सचित्ताचित्तमीसयं चेव। कप्पाकप्पं च तहा जोगं वा जस्स ज होति ॥३॥ खेने जंकायचं अद्धाणे जयण एव सदहति । काले सुभिक्खदुभिक्खमादिसू जो जहा कप्पो ॥४॥ भावे हट्ठगिलाणं आगाढे जं जहा व काययं । तं सदहति करेति य एसो परिणामओ साहू ॥५॥ जो दवखेत्तकयकालभावयो जं जहा जिणकखायं। तं तह असहहतं अप्परिणामं वियाणाहि ॥६॥ जो दवखेत्तकयकालभाक्यो जं जहा जिणकखायं। तल्लेसुस्मुत्तमती अतिपरिणामं वियाणाहि ॥७॥ परिणमति जहत्येणं मती तु परिणामगस्स कजेसु। वितिए ण तु परिणमती अहितमती परिणमे नतिए ॥८॥ दोसु तु परिणमति १०४९ जीनकल्पभायं - मुनि दीपरत्नसागर Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 मती उस्सग्गऽववाययो तु पढमस्स। वितियस्स तु उस्सग्गे अतिअववाए तु ततियस्स ॥९॥ अंबादीदिटुंतेहिं परिकखा तेसिं होति कायना। जह कोयि गुरूहि तू भणितो अंबाणि आणेहि ॥२०२०॥ परिणामगोऽत्य भणती किं सचित्तेऽचिते व आणेमि?। भावतो केवइए वा ? किं टाले भिषणऽभिपणे वा? ॥१॥ बेति गुरूलद्ध चिय पुणो व वोच्छिम् अहव बीमंसा । भणिओऽसित्ती एवं अप्परिणामो इमं बेति ॥२॥ किं ते पित्तपलायो ? मा बितियं एरिसाई जंपाहि। मा णं परोवि सोच्छिति अहंपिणेच्छामि एयस्स ॥३॥ अतिपरिणामो भणति कालो सि अतिच्छए अहो ताव। किं एञ्चिरस्स वुत्तं? इच्छऽम्हवि ण तरिमो भणितुं ॥४॥ घेत्तूण भारमागतो भणती अण्णेवि किं नु आणेमि?। तो दोऽवि गुरू भणती उवालभन्तो इमं तहितं ॥५॥णाभिष्पायं गिण्हसि असमत्ते चेव भाससी वयणे। सुक्कंबिललोणकए तिण्णि अहवावि दोच्चंगे॥६॥ एमेव य रुखेवी भंजितु आणेह घेति अपरिणतो। णिप्फावादी रुक्खे भणामि ण दुमे अहं हरिए॥७॥ एमेव य बीयाई आणेती आणिए गुरू भणती। अंबिलि विदत्याणि व भणामि णवि रोहणसमत्थे ॥८॥ तह घितिसंघयणोभयसंपण्णा तदुभएण हीणा उ । आयपरोभयणोभयतरगा तह अण्णयरगा य ॥मू०७०॥९॥ धितिदुबल देहबली घितिबलिओ देहदुबलो कोई। कोयी दोहिवि बलिओ दोहिंपी दुब्बलो कोइ ॥२०३०॥ दोहिवि पलिए सा घितिहीणे जत्थ चिट्ठति धिती से। आसज व देहबलं देजा लहुयं उभयहीणे ॥१॥ अहवा पंचविकप्पा आयतरादी इमे उ णायचा। पढमो आयतरोतु णो परयो परतरे बितिओ ॥२॥ उभयतरो तू ततिओ णोभयह चउत्थओ उ णायव्वो। अण्णयरो परयो तू पंचमओ होइ णातको ॥३॥ आयतरपरतराणं कोणु विसेसो?ति एत्य चोदेति । आततरा चउथादी जं दिज्जति तं तु णित्थरति ॥ ४॥ यावच्चकरो तू गच्छस्स उवग्गहम्मि वट्टति तु। एसो तु होति परतर चतुभंगो एव णायो॥५॥ वेयावच्चतराणं एक्कं सक्केति दोण णित्थरति। पंचमगो तू पुरिसो अण्णतरो एस णातको॥६॥ कप्पट्टियादयोऽविय चतुरो जे सेतरा समक्खाता। सावेकखेतरभेयादयो य जे ताण पुरिसाण ॥ मू०७१॥७॥ कप्पट्टिता परिणता कडजोगी चेव होन्ति तरमाणा । पडिवखेणवि चतुरो अकप्पठियमादि णातवा ॥८॥ पतिट्ठा ठवणा ठवणी, अवत्था संठिती ठिती। अवस्थाणं अवस्था या, एगट्ठा चिट्ठणातिय ॥९॥ सामायिए य छेदे णिविसमाणे तहेव णिविटे। जिणकप्पे थेरेसु य छविह कप्पठिती होति ॥२०४०॥ सा पुण टिति मजाया णासो कप्पो य होति कतिहा उ?। भण्णति सो दसभेदो इणमो वोच्छं समासेणं ॥१॥ आचेलकुदसियसेजायररायपिंडकितिकम्मे । वतजेट्ठपडिक्कमणे मासं पजोसवणकप्पे ॥२॥ कतिहि ठिता अठिता वा सामायिककप्पसंठिता णियमा ?। कतिठाणपतिट्ठो वा छेदोवट्ठाणकप्पो उ? ॥३॥ चतुहिं ठिया छहिं अठिया सामातियसंजया मुणेयवा । दससुवि णियमा तु ठिता छेयोवट्ठा मुणेतवा ॥४॥ सेजातरपिंडे या कितिकम्मे चेव चाउजामे य। पुरिसजेट्टे यतहा चत्तारि अवट्ठिया कप्पा ॥५॥ आचेलकुदसिय रा मासं पजोसवणाकप्पे ताणवट्टितो कप्पो ॥६॥ दसठाणठितो कप्पो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। आचेलकादीसुं तेसिं तु परूवणा इणमो॥७॥ दुविहा होंति अचेला संताचेला असंतचेला य। तित्थगरऽसंतचेला संताचेला भवे सेसा ॥८॥ संतेहिवि चेलेहिं किह पण समणा अचेलया होन्ति?। भण्णति सुणस चोदग ! जह संतेहिं अचेला उ॥९॥ सीसावेढियपोति णतिसंतरणम्मि णग्गय बेन्ति । जुण्णेहिं णग्गिय म्हि तुर सालिय ! देहि मे पोत्ती ॥२०५०॥ जुण्णेहिं खंडिएहि य असवतणुपाउएहि ण य णिचं । संतेहिवि णिग्गंधा अचेलगा होनि चेलेहिं ॥१॥ एवं दुग्गय पहिया वाचेलया होति ते भवे बुद्धी। ते खलु असंतताए धरति ण तु धम्मसद्धाए ॥२॥ सति लाभाम्मि साहू गेण्हन्तऽमहबणाई ताई तु। ताणिवि खडियमादी धरेन्ति तह धम्मबुदीए ॥३॥ आचेलुक्को धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमगाण जिणाणं होति सचेलो अचेलो वा ॥४॥ पडिमाए पाउया वा णातिकमंते तु मज्झिमा समणा। पुरिमचरिमाण अमहदणा तु भिण्णाणिमे मोत्तुं ॥५॥ णिरुवयलिंगभेदो णिक्कारणयो ण कप्पये कातुं। किं पुण तं णिस्वयं? भण्णति अहजायलिंग तु॥६॥ जम्मं दुविहं होती मातृकुच्छिम्मि पढम जं जम्म। भवसंसारचउक्के णिफिडिए बितिय पक्वज ॥ ७॥ तस्स इमे भेदा खलु खंघद्वारे य समण पाउरणे। गलक(गेकल)दंसे पट्टे लिंगदुवे या इमा भयणा ॥८॥णिक्कारणओ लहुओ तिसु चतुगुरुगा य होति बोदया। गिहिलिंग अण्णलिंगे दोसुचि मूलं तु बोध ॥९॥ कुधिज कारणे पुण भेदं लिंगस्सिमेहि कजेहिं । गेलण्णरोगलोएसरीरवेयावडियमादी ।।२०६०॥ आसज खेतकप्पं वासाठाई अभाविए असहू। काले अद्धाणम्मि य सागरि नेणे य पंगुरणं ॥१॥ असिवे. ओमोयरिए रायबुट्टे पवायिदुठे वा। आगाडे अण्णलिंग कालक्खेवो व गमणं वा ॥२॥ संघस्सोहविभागे समणा समणी य कुलगणस्सेव । कडमिह ठिए ण कप्पति अद्वियकप्पे जमुहिस्स ॥३॥ आयरिए अभिसेगे भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा उ। तिक्खुत्तऽडविपवेसे तियपरियट्टे तओ गहणे ॥४॥ तित्थंगरपडिक्कुट्टो आणा अण्णाय उम्गमों ण मुझे। अविमुत्ति अलाघवया दालभसेजा ठितुच्छेदो ॥५॥ पुरपच्छिमबजेहिं अवि कम जिणवरेहिं लेसेणं । भुत्तं विदेहगेहि य ण य सागरियस्स पिंडो तु॥६॥ दुविहे गेलण्णम्मी णिमं. १०५० जीतकम्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तणा दवाखभे असिवे। ओमोयरिय पयोसे भए पगहणं अणुण्णातं ॥७॥ तिक्सुत्तो सक्खेत्ते चउदिसि मग्गिऊण कडजोगी। दवस्स य दालभया सागारियसेवणा दवे ॥८॥ केरिसयो तू राया ? भेया पिंडस्स के व? सिं दोसा । फेरिसयम्मि व कजे कप्पति १ काए व जयणाए? ॥९॥ मुदिए मुखऽभिसित्ते मुदिओ जो होति जोणिसुद्धो तु। अभिसित्तोप परेहिं सयं व भरहो जहा राया ॥२०७०॥ पढमगभंगे बजो होतुवमा वावि जे भणिय दोसा। सेसेसु होयऽपिंटो जहिं दोसा तं विवजेजा ॥१॥ असणादीया चउरो वत्ये पादे य कंबले चेव। पाउंछणए य तहा अट्ठविहो रायपिंडो तु ॥२॥ अट्ठविह रायपिंड अण्णयरायं तु जो पडिग्गाहे। सो आणा अणवत्थं मिच्छत्त विराहणं पावे ॥३॥ दोसा इमे ईसरतलवरमाईबिएहिं सत्यवाहेहिं। णिन्तेहिं अइन्तेहि य वाघातो होति साहुस्स ॥४॥ ईसर भोइयमादी तलवरपट्टेण तलवरो होति। वेद्गुणपट्टो सेट्ठी पचंतणिवो उ माडंबी ॥५॥ जा णिन्तऽइन्त ता अच्छतो तु सुत्तादिभिक्खपरिहाणी। इरिया अमंगलंतिय पाडा(हा)हणणा इहरहा तु ॥६॥लोमे एसणघातो संका तेणे णपुंस इत्थी य। इच्छतमणिच्छते चातुम्मासा भये गुरुगा |आ अण्णत्थ एरिसं दुल्लभंति गेण्हेजऽणेसणिजंपि। अण्णेणवि अवहरिए संकिजति एस तेणोत्ति ॥८॥ संका चारियचोरे मूलं णिस्संकिए य अणवट्ठो। परदारि अहिमरे वा णवमं णीसंकिते दसमं ॥९॥ अलभंता य वियार इस्थिणपुंसा बलावि गिण्हेजा। आयरिय कुलगणे वा संघे वा कुज पत्यारं ॥२०८०॥ अण्णेचि अस्थि दोसा गोम्मियआइण्णरयणमादी या तण्णीसाए पवि. से तिरिक्खमणुया भवे दुट्ठा ॥१॥ गोम्मियगहणा हणणा रण्णो य णिवेइयम्मिजं पाये। आदिण्णरतणमादी सत गेण्हेयरो व तणीसा ॥२॥चारियचोराभिमरा कामी व विसंति तत्थ तण्णीसा । वारणतरच्छवग्घा मेच्छा य णराव घाएजा ॥३॥ दुविहे गेलण्णम्मी णिमंतणा दबदुलझे असिवे । ओमोयरिय पदोसे भए व गहणं अणुण्णायं ॥४॥ तिक्सुत्तो सक्खेत्ते चउदिसि मम्गितृण कडजोगी। दबस्स य दुभता जतणाए कप्पती ताहे ॥५॥ कितिकम्मंपिय दुविध अभुट्ठाणं तहेव वंदणयं । समणेहि य समणीहि य जहारिहं होति कायवं ॥६॥ सवाहिं संजईहि कितिकम्मं संजताण कातत्रं । पुरिसुत्तरिओ धम्मो सबजिणाणंपि तित्यम्मि ॥७॥ तुच्छत्तणेण गवो जायइ ण य संकते परिभवेणं । अण्णोऽपि होज दोसो थियासु माहुजहजासु ॥ ८॥ अविय हु पुरिसपणीतो धम्मो पुरिसो य रक्खितुं सत्तो। लोगविरुद्धं चेयं तम्हा समणाण कातवं ॥९॥ पंचजामो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं चातुजायो भवे धम्मो॥२०९०॥ पुरिमाण दुनिसोझो चरिमाणं दुरणुपालयो कप्पो। मज्झिमयाण जिणाणं सुविसोझो सुरणुपालो य॥१॥ जड्डत्तणेण हंदी आइक्खविभागउवणया दुक्खं । सुहसम्मु(सुदुसंसु)यदंताण य तितिक्ख अणुसासणा दुक्खं ॥२॥ मिच्छत्तगोबियाणं दुश्वियड्ढमतीण ठाणसीलाणं । आइक्खितु अइदुक्खं उवणेउं वापि दुक्खं तु ॥३॥ दुक्खेहि मच्छियाण तणुधितिअवलत्तयो य दुतितिक्खं । एमेव दुरणुसासं माणुक्कडयाय परिमाणं ॥४॥ एते चेव य ठाणा सपण्णउजुत्तणेण मज्झाणं । सुहृदुहउभयचलाण य विमिस्सभावा भवे मुहुमा ॥५॥ पुवतरं सामइयं जस्स कयं जो वतेसुबह(वाठ)वितो। एस कितिकम्मजेडोण जातिसुययो दुपक्सेऽचि॥६॥ सा जेसि तुवटुवणा जेहि य ठाणेहिं पुरिमचरिमाणं । पंचायामे धम्मे आएसतिगं चिमं सुणसु ॥७॥ दस चेव छच चतुरो एते खलु तिणि होन्ति आदेसा। कतरे हवन्ति दस तू? भण्णति मुणसू इमे ते तू ॥८॥ ततो पारंचिया वृत्ता, अणवठ्ठप्पा य तिण्णि तु। दसणम्मि य वन्तम्मि, चरित्तम्मि य केवले ॥९॥ अदुवा चियत्तकिच्चे, जीवकायं समारभे। सेहे य दसमे बुत्ते, जस्सोबट्टावणा भवे ॥२१०० ॥ एते दस तू वृत्ता अण्णादेसेण होति छत्तु इमे । तिण्णिति पारंचेकं अणवट्टप्पावि तिण्णेकं ॥१॥ दंसणवन्ते तइए चरित्तवंते भवे चउत्थे तु । पंचम चियत्तकिच्चो छट्ठो सो होउवटुप्पो ॥२॥ एसो वितियाएसो ततियाएसो इमो मुणेयचो। चत्तारि व उवठप्पा कयरे तु? इमे मुणेतना ॥ ३॥ पारंची अणुबट्ठा दंसणचरणेसु ते पहिट्ठा तु। दसणचरित्तवंता तो दोण्णेते भवन्ती तु ॥४॥ चियत्तकियो सेहो य चत्तारेते हवंतुवटुप्पा। एते तिण्णादेसा उवठवणाए मुणेतवा ॥५॥ केवलगहणं कसिर्ण जति वमती दंसणं चरितं वा। तो तस्स उबट्ठवणा देसे वंतम्मि भयणा तु ॥६॥ एमेव य किंचि पदं सुयं च असुयं च अप्पदोसेणं। अविकोविए कहेन्तो चोइय आटह सुदो तु ॥७॥ सो पुण दंसणवंतो अणभो. गेण तु अहव आभोगा। अणभोगेणं तहियं कोयी सड्ढो तु संवेगा ॥८॥ दठूण णिण्हगे तू एते साहू जहुत्तकारित्ति। णिक्खंतो अणभोगा विट्ठी अण्णेहिं साहहिं ॥९॥ भणिओ य णिण्हगाणं कीस सगासे तुम सि णिक्खंतो? तो बेति ण याणामि एयविसेसं अहं भंते! ॥२११०॥ एवमणाभोगेणं मिच्छत्तगतो पुणोवि सम्मत्तं । जो पडिवण्णो सो तू आलोतियणिन्दितो सुद्धो॥१॥ सो चेव य परियायो णस्थि उवट्ठावणा पुणो तस्स । त चिय पच्छित्तं से जं चिय सम्मं तु पडिबजे ॥२॥जो पुण जाणतो चिय गतो तु होजाहि णिण्हएमुंत। पुणरागतो य सम्म तस्स उबट्ठापणा भणिया ॥३॥ छहं जीवनिकायाणं, अणप्पज्झो तु विराहओ। आलोतियपडिकतो, सुद्धो हपति संजतो ॥४॥ छहं जीवणिकायाणं, अप्पज्झो तू विराधयो । आलोतियपडिकतो, मूलच्छेनं तु कारए ॥५॥ खित्तादिजणप्पज्झो अणभोगेण व जो गतो मिच्छ। सो तु अपायच्छित्तोऽविराहती तस्स दिन्तो तु ॥६॥ जं जो तु १०५१ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर ba Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | समावण्णो जं पायोग व जस्स वत्युस्स। तं तस्स तु दायावं असरिसदाणा इमं होति ॥७॥ अप्पच्छित्ते य पच्छित्तं, पच्छिते अतिमत्तया। धम्मस्सासायणा तिवा, मग्गस्स य विराह. Tणा ॥८॥ उस्सुत्तं ववहरतो, कम्मं बंधति चिकणं । संसारं च पवढेति, मोहणिजं व कुवती॥९॥ उम्मग्गदेसए मग्गदूसए मम्गविप्पडीवाए। परं मोहेण रंजेन्तो, महामोहं पकुवती 41॥२१२०॥ एवं तु उवट्ठवितो जो पढ़मयरं तु अहव सामतिए। ठवितो सो जेट्टयरो कप्पपकप्पट्ठिताणं च ॥१॥ सपडिकमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिम गाण जिणाणं कारणजाए पडिकमणं ॥२॥ गमणागमणविहारे सायं पादो य पुरिमचरिमाणं। णियमेण पडिकमणं अतियारो होउ वा मा वा ॥३॥ अतियारस्स तु असती णणु होति णिरत्ययं पडिक्कमणं । भण्णति एवं चोदग! तत्थ इमं होति णातं तु॥४॥जह कोयि डंडिओ तू रसायणं कारवेति पुत्तस्स । तत्थेगो तेगिच्छी घेती मझं तु एरिसयं ॥५॥ जति दोसे होअगतो अह दोसो णस्थि तो गयो होति। बितियस्स हरति दोसं ण गुर्ण दोसं व तदभावा ॥६॥ दोसं हंतृण गुणे करेति गुणमेव दोसरहिएत्ति। तइयसमाहिकरस्स तु रसायणं इंडिय. सुयस्स ॥ ७॥ इय सइ दोसं छिंदति असती दोसम्मि णिज्जरं कुणति। कुसलतिगिच्छरसायण उवणीयमिणं पडिक्कमणं ॥८॥ जिणथेरअहालंदे परिहारिंग अज्ज मासकप्पो तु। खेत्ते कालमुवस्सयपिंडग्गहणे य णाणत्तं ॥९॥ एतेसिं पंचण्हवि अण्णोण्णस्सा चतुप्पएहिं तु । खेत्तादीहि विसेसो जह तह योच्छं समासेण ॥२१३०॥ णस्थि तु खेत्तं जिणकप्पियाण उडुब मासकालो तु। वासासुं चउमासा वसही अममत्तपरिकम्मा॥१॥ पिंडो तु अलेवकडो गहणं तू एसणादुचरिमाहिं । तत्थवि कातुमभिग्गह पंचण्हं अण्णयरियाए ॥२॥ राण अस्थि खेनं तु उम्गहो जाण जोयण सकोस । णगरे पुण वसहीए कालो उउबढ़े मासो तु ॥३॥ उम्सग्गेण य भणितो अववाएणं तु होज अहिओऽवि । एमेव य वासासऽवि चत. मासो होज अहिओ वा ॥४॥ अममत्तअपरिकम्मो उवस्सओ एत्य भंगया चतुरो। उस्सग्गेणं पढमो तिणि तु अववायओ भंगा ॥५॥ भत्तं लेवकडं वा अलेवकड वावि ते तु गेण्हंति। सत्तहिवि एसणाहिं सावेक्खो गच्छवासोत्ति ॥६॥ अहलंदियाण गच्छे अप्पडिबदाण जह जिणाणं तु। णवरं काले विसेसो उदुमासो पणग चतुमासो ॥७॥ गच्छे पडिबहाणं अह. लंदीणं तु अह पुण विसेसो। जो तेसि उपगहो खलु सो साऽऽयरियाण आहवति ॥ ८॥ एगवसहीएँ पणगं छवीहीओ य गाम कुवंति। दिवसे दिवसे अण्णं अडंति बीहिं तु णियमेणं द्वीणं जहेब जिणकप्पियाण णवरं तु। आयंबिल तु भत्तं बोदवा थेरकप्पो तु॥२१४०॥अजाण परिग्गहियाण उम्गहो जो तु सोह आयरिए। कालतों दो दो मासा | उदुबद्धे तासि कप्पो तु ॥१॥ सेसं जह थेराणं पिंडो य उवस्सयो य तह तासि । सो सवोऽविय दुविहो जिणकप्पो थेरकप्पो य ॥२॥जिणकप्पियऽहालंदीपरिहारविमुखियाण जिणकप्पो। थेराणं अजियाण य बोद्धवो थेरकप्पो तु ॥३॥ दुविहो उमासकप्पो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो य। णिरणुग्गहो जिणाणं थेराण अणुम्गहपवत्तो॥४॥ उदुवासकालऽतीए जिणकप्पीणं तु गुरुग गुरुगा य। होति दिणम्मि दिणम्मी थेराणं ते चिय लहू उ॥५॥ तीसं पदाऽवराहे पुट्ठो अणुवासिये अणुवसंतो। जे तत्थ पदे दोसा ते तत्थ ततो समावण्णो ॥६॥ पण्णरसुग्गमदोसा दस एसणदोस एय पणुचीसं। संजोयणाइ पंच य एते तीसं तु अवराहा ॥ ७॥ एतेहिं दोसेहिं संपत्तीएवि लगती णियमा। दिवसे दिवसे सो ऊ कालातीते वसंतो तु॥८॥ वासावासपमाणं आयार उदुप्पमाणियं कप्पं । एयं अणुम्मुयंतो जाणसु अणुवासकप्पो तु॥९॥ आयारपकप्पम्मी जह भणितं तीय संवसंतोऽवि। होति अणुवासकप्पो तह संवसमाण दोसो तु॥२१५०॥ दुविहे विहारकाले वासाचासे तहेव उदुबद्धे । मासातीतेऽणुवही वासाईते भवे उवहीं ॥१॥ उउबद्धिएमु अट्ठसु तीतेसुं वास तत्थ णवि कप्पे। घेतूणं उवहिं खलु वासासु नु तीत कप्पति तु ॥२॥ वासउदुअहालंदे इत्तरिसाहारणोग्गहपुहुत्ते। संकमणट्ठा दवे गच्छे पुष्फावकिण्णो तु ॥३॥ वासासु चउम्मासो उउबद्धे मासों लंद पंच दिणा। A इत्तरिओ रुक्खमूले वीसमणट्टा ठियाणं तु ॥४॥ साहारणा उ एते समगठियाणं बहूण गच्छाणं । एकेण परिग्गहिता सके वोहत्ति(न्ति)या होन्ति ॥५॥ संकमणण्णोण्णस्स उ संगासे जति उ ने अहीयंते। सुत्तत्थतदुभयाई सो अहवावि पडिपुच्छे ॥ ६॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए व तं तु गिण्हेजा। मंडलियमहिजते सश्चित्तादी तु जो लाभो ॥ ७॥ सोनु परं. परएणं संकमती ताव जाव सट्ठाणं । जहियं पुण आवलिया ताहियं पुण ठाति अंतम्मि ॥८॥ ते पुण जहा तु एक्कायें वसहीए अहव पुप्फकिण्णा तु। अहवावि तु संकमणे दवस्सिणमो विही अण्णो ॥९॥ मुत्तत्थतदुभयविसारयाण थोवे असंभतीभेदे। संकमणट्ठा दो जोगे कप्पे य आवलिया ॥२१६०॥ पुट्ठिताण खेते जति आगच्छेज अण्ण आयरिओ। बहुसुय बहुआगमिओ तस्स सगासम्मि जति खेत्ती ॥१॥ किंचि अहिजेजाही थोवं खेत्तं च तं जड हवेजा। ताहे असंथरंता दोण्णिवि साहू विव(स)जेन्ति ॥२॥ अण्णोण्णस्स सगासे नेसिपि य तत्यऽहिजमाणाणं। आभवणा तह चेव य जह भणियमणंतरे सुने॥३॥ एवं णिवाघाए मास चतुम्मासिओ तु थेराणं । कप्पो कारणयो पुण अणुवासो कारणं जाव ॥४॥ एसो तु मासकप्पो थेरकप्पो य वण्णिओघेणं। अहुणा ठियमठियं तु थेराणं इणम वोच्छामि ॥५॥ सो थेरकप्पों दुविहो अद्वितकप्पो य होति ठितकप्पो। एमेव जिणाणपी ठितमठितो होति | कप्पो तु ॥६॥ पजोसवणाकप्पो होति ठितो अट्टिओ य थेराणं। एमेव जिणाणंपी दुह ठियमठिओ य णातयो॥७॥ चातुम्मासुकोसो सत्तरि राइंदिया जहष्णेणं । ठितमट्ठिय (२६३) १०५२ जीतकल्पभाध्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगतरे कारणवचासितऽण्णयरे ॥ ८ ॥ थेराण सत्तरी खलु वासासु ठितो उ दुण्णि मासो तु । बच्चासिओ तु कजे जिणाण नियम चतुरो वा ॥ ९ ॥ दोसासति मज्झिमया अच्छंती जाव पुलकोडी तु विहति य वासासुवि अकदमे पाणरहिए उ ॥ २१७० ॥ भिण्णंपि वासकप्पं करेंति तणुयंपि कारणं पप्प। जिणकप्पियाचि एवं एमेव महाविदेहेवि ॥ १ ॥ एवं ठियम्मि मेरं अडियकप्पे व जो पमाएति। सो वट्टति पासत्थे ठाणम्मि तगम्मि वजेजा ॥ २॥ पासत्यसंकिलि ठाणं जिणवृत्त धेरेहि य। तारिसं तु गवेसंतो, सो बिहारे ण सुज्झति ॥ ३ ॥ पासस्थ० विवतो, सो विहारे तु सुज्झति ॥ ४ ॥ जो कप्पठितीमेयं सद्दहमाणो करेति सद्वाणे। सो तारिसं तु गवेसेज्जतु गुणाणं अपरिहाणी ॥ ५ ॥ ठितमठियम्मी दसविहं ठवणाकप्पे य दुविमण्णयरे। उत्तरगुणकल्पम्मि य जो सरिकप्पो स संभोगी ॥ ६ ॥ ठवणाकप्पो दुविहो अकप्पठवणा य सेहठवणा य पढमो अकप्पिएर्ण आहारादीणि (ण) गिव्हावे ||७|| अट्ठारसेव पुरिसे बीस इत्थीण दस णपुंसे य दिक्खेति जो ण एवे सेहवणाए सो कप्पो ॥ ८ ॥ आहारउवहिसेला उग्गमउप्पायनेसणासुद्धं जो परिगिन्हति निययं उत्तरगुणकप्पिओ स खलु ॥ ९ ॥ सरिकप्पे सरिछंदे तुलचरिते विसिद्धतरए वा साहूहिं संघवं कुज्जा णाणीहिं चरित्तगुतेहिं ॥ २१८० ॥ सरिकप्पे० । आज भत्तपाणं सएण लाभेण वा तुस्से ॥ १ ॥ इय सामा इयछेदे जिथेराणं ठिती समक्खाता। एतो णिविसमाणे णिविद्वे यावि वोच्छामि ॥ २ ॥ परिहारकप्पं वोच्छामि परिहरितयं जहा विदू। आदी मज्झवसाणे य, आणुपुत्रिं जहकर्म ॥ ३ ॥ भरहेरवयवासेसु, जदा तित्थंगरा भवे। पुरिमा पच्छिमा चेव, परिहारी तेसु होन्ति तु ॥४॥ मज्झिमाण ण संती तु, तित्थेसुं परिहारिया ण यावि य विदेहेसु विनंती परिहारिया ॥ ५ ॥ केवतियकालसंजोगो, गच्छो तू अणुसज्जती तित्थंकरेषु पुरिमेसु तहा पच्छिमएस य ॥ ६ ॥ पुत्रसयसहस्सातिं, पुरिमस्सऽणुसज्जती जम्हा ण पडिवजंति, दोन्ह गच्छा परेण तु ॥ ७ ॥ देणपुषकोडीओ, दो सा दोन्हं भवति तु । दो सा एगूणतीसा तु, तेण ऊणा ततो भवे ॥ ८ ॥ वीसग्गसो य वासाई, चरिमस्सऽणुसजए। जाव देसूणगा दोण्णि, सया वासाण होति तु ॥ ९ ॥ पवजा अद्ववासस्स उवडा णवमम्मि उ एगूणवीसपरियाए दिट्टिवाओ य तस्स तु ॥ २१९०॥ उद्दिस्सति वरिसेण य, तस्स य सो तु समप्पती। णव वीसा य मेलीणा, ऊणतीसा भवति तु ॥ १ ॥ इति एगूणतीसाए, सयमूणं तु पच्छिमे। एसो दोसु तु एतेण, ऊणाई दो सयाणि उ ॥ २ ॥ पालतित्ता सयं ऊणं ठायं तेते तु पच्छिमे । काले देसेन्ति अ सिं इति ऊणा उ बे सता ॥ ३ ॥ पडिवजति जिणिदस्स, पायमूलम्मि जे बिऊ ठावयंति उ ते अण्णे, नो तु ठावितठावगा ॥ ४ ॥ सङ्के चरितमंता य, दंसणे परिणिद्विया। णवपुवी जणे, उकोस दस पुलिया ॥ ५॥ पंचविहे ववहारे, कप्पे ते दुविहम्मि य दसविहे य पच्छिते, सवे ते परिणिद्विता ॥ ६॥ अत्तणो आउ सेसं, जाणित्ता ते महामुनी परकमं बलं विरियं, पञ्चवाए तब य ॥७॥ जति जीतपचवाया ण होंति तेसिं तु अण्णतरा तो तं पडिवजंती, वाघाएणं तु ते णवी ॥ ८॥ आपुच्छिऊण अरिहंते, मग्गं देसिंति ते इमं । पमाणाणि य सव्वाणि, म ( उ ) हे य बहुविहे ॥ ९ ॥ उवहीगमणप्पमाणाणि पुरिसाणं च जाणिउं। दव्यं खेतं च कालं च भावं अण्णे य पज्जवे ॥ २२००॥ संसट्टमाइयाणं, सत्तण्हं एसणाण तु। आदिलाहिं दोहिं तु अग्गहो गह पंचहिं ॥ १ ॥ तत्थवि अण्णयरीए एगीए अभिग्गहं तु कातूणं । उवहिणो अग्गहो दोसुं इयरो एगतरीय तु ॥ २ ॥ अइरुग्गयम्मि सूरम्मि, कप्पं देसेन्ति ते इमं । आलोइयपडिकंती, ठापयंति तयो गणे ॥ ३ ॥ सत्तावीसं जहणणेणं, उक्कोसेणं सहस्ससो णिग्गंथसूरा भगवंतो, सव्वम्मेण वियाहिया ॥ ४॥ सयग्गसो य उकोसा, जहणेण ततो गणा गणो य णवगो वृत्तो. एमेया पडिवत्तिओ ॥ ५ ॥ एगं कप्पट्टियं कुजा, चत्तारि पारिहारिया अणुपारिहारिया चैव चतुरो एतेसि ठावाए ॥ ६ ॥ ण तेसिं जायते विग्धं, जा मासा दस अट्ठ य ण वेयणा ण वाऽऽयंको ण वायणे उवहवा ॥ ७ ॥ अट्ठारससु पुण्णेसुं, होजा एते उबदबा ऊणिए ऊणिए यावि, गणे मेरा इमा भवे ॥ ८ ॥ जत्तिएण गणो ऊणो, तत्तिए तत्थ पक्खिये। एवं दुबे अणेगा वा, एस कप्पे तु ऊणिए ॥ ९ ॥ एते अणूणिए कप्पे, उवसंपजति जो तहिं एगे दुबे अणेगे वा, तेसिं कप्पो इमो भवे ॥ २२१० ।। अच्छंति ता उदि क्खता, जाव पुण्णा तु ते णव पच्छा पडिवजंति, जं कप्पं तेसि अंतिए ॥ १ ॥ पमाण कप्पट्ठितो तत्थ ववहारं वबहरित्तए । अणुपरिहारियाणंपि, पमाणं होति सेव तु ॥ २ ॥ आलोयण कप्पलिए पच्चक्खाणं तहेब बंदणयं तं च वहते ते तू उज्जाणी एवमण्णंति ॥ ३ ॥ अणुपरिहारी गोवालगत गावीण णिश्वमुजुता । परिहारियाण मग्गतो हिंडती णिचमुजुत्ता ॥ ४ ॥ पडिपुच्छं वायणं चेव, मोत्तृणं णत्थि संकहा। आलावो अत्तणिद्देसो, परिहारियस्स कारणे ॥५ ॥ परिहारियाण उ तवो वासासुकोस मज्झिम जहणो बारसमदसम अद्रुम दसमऽद्रुमछ सिसिरेसु ॥ ६ ॥ अट्टमद्वचउत्थं गिम्हे उक्कोसमज्झिमजहण्णो । आयंबिलपारणगं अभिगहिता एसणाए तु ॥ ७॥ अणुपरिहारीया पुण णिचं पारिंति ते उ आयामे कप्पट्ठिएऽवि ते थिय आणिति अभिग्गहीताहिं ॥ ८ ॥ परिहारिय पत्तेयं अणुपरिहारीण तह य कप्पठिए। पंचण्हवि तेसिं तू संभोगेको मुणेतो ॥ ९ ॥ परिहारिए बूढेसऽणुपरिहारी ततो वहंती तु। कप्पट्ठियो य पच्छा वहती बूढेसु तेसुं तु ।। २२२० ॥ परिहारियावि छम्मास अणुपरिहारियावि छम्मासे। कप्पट्ठितोऽवि छम्मास एते अट्ठारस तु मासा ॥ १ ॥ अणुप१०५३ जीतकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर 1 - Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिहारिया चेव, जे य ते परिहारिया । अण्णमण्णेसु ठाणेसु, अविरुदा भवंति ते ॥२॥ गतेहिं छहिं मासेहिं, णिविट्ठा उ भवंति ते। अणुपरिहारिया पच्छा, परिहारं परिहरति तु ॥३॥ गएहिं छहिं मासेहिं, णिविद्वा उ भवंति ते। वहती कप्पट्टितो पच्छा, परिहारं अहाविहिं॥४॥ एतेसिं जे यहन्ती णिविसमाणा वंति ते णियमा। जेहिं बूढं पुण तेसिं हवंति णिविट्टकाईया ॥५॥ अट्ठारसहिं मासेहि, कप्पो होति समाणितो। मूलट्ठवणा एसा, समासेण वियाहिता ॥६॥ एवं समाणिए कप्पे, जे व सि जिणकप्पिया। तमेव कप्पं ऊपणावि, पालए जावजीवियं ॥ ७॥ अद्वारसहिं पण्णेहिं. मासेहि थेरकप्पिया। पण गच्छंणियच्छंति, एसा तेसिं जहाविही॥८॥ ततियचउत्था कप्पा समोअरते त बितियकप्पम्मि। पंचमछठि. तीमु हेट्टिाडाणं समोयारो॥९॥ सामाछेदोणिविसणिचिट्ठ एते जिणधेरे ओयरंति ॥ अहुणा जिणकप्पठिती सा पुर्व मासकप्पसुत्तम्मि। भणिया सव इहं णवरमसुण्णत्व भणति इम ॥२२३०॥ गच्छम्मि य णिम्माया धीरा जाहे य मुणितपरमत्था । अग्गह अभिग्गहे या उति जिणकप्पिगविहारं ॥१॥णवपुग्छि जहण्णेणं उक्कोसेणं तु दस असंपुण्णा। चोहसपुवी तित्थं नेण नु जिणकप्प ण पवजे॥२॥वइरोसभसंघयणा मुत्तस्सऽत्यो तु होति परमत्यो । संसारसंभ(सभा)वो चा णातो तो मुणियपरमत्यो ॥३॥ अग्गहो ततियातीया पडिमाहिं गहण भत्तपाणस्स। दोहिंतु उवरिमाहिं गेण्हंती बत्थपायाई॥४॥ दो अभिग्गहा पुण रतणावलिमाइगाइ बोद्धया। एतेसु विदितभावो उवेति जिणकप्पियविहारं ॥५॥ दुविहा अतिसेसाविय तेसिं इमे वणिया समासेणं । बाहिर अभितरगा तेसि विसेसं पवक्खामि ॥ ६॥ बाहिरओं सरीरस्सा अतिसेसो तेसिमो तु बोदशो। अच्छिद्दपाणिपाया वइरोसभसंघतण धीरा ॥७॥ वग्गुलिपक्खसरिसयं पाणितलं तेसि धीरपुरिसाणं । होति खतोवसमेणं लदी तेसि इमाऽऽहंसु ॥८॥माएज घडसहस्सं धारेज वसो तु सागरा सके। जो एरिस लदीए सो पाणिपडिग्गही होति ॥९॥ अम्भितर अतिसेसो इमो उ तेसि समासयो भणितो। उदहीविव अक्खोभा सूरोइव तेयसा जुत्ता ॥२२४०॥ अशावण्णसरीरा वेगंधो ण होति से सरीरस्स । खणमविण कुच्छ तेसि परिकम्मं णविय कुईति ॥१॥ पाणिपडिग्गहिया तू एरिसया णियमसो मुणेतवा। अतिसेसे वोच्छामि अण्णेवि विसेसतो तेसिं ॥२॥ दुविहो तेसऽतिसेसो गाणातिसयो तहेव सारीरो। णाणादिसयो ओही मणपजव तदुभयं चेव ॥३॥ अहवाऽऽभिणिवोहीयं सुतणाणं चेव णाणअतिसेसा । तिवली अभिण्णवच्चो एसो सारीरअतिसेसो ॥४॥रतहरणं मुहपोती जहण्णमुवगरण पाणिपत्तस्स । उक्कोसं कप्पतियं सोविय एस पंचविहो ॥५॥ पडिगहधारि जहण्णो णवहा उक्कोस बारसविकप्पो । तेसिं एयाणि चिय अतिरेगे पायणिजोगो ॥६॥ रूढणह णयणमुंडो दुविहो उवही जहष्णओ तेसिं। एसो लिंगो तेसि णिवाघाएण णेतबो॥७॥ रतहरणं मुहपोत्ती संखेवेणं तु दुविह उवही तु। बाघात विगतलिंगे अ. रिसासु व होति कडिपट्टो ॥८॥ सत्त य पडिग्गहम्मी रतहरणं चेव होति मुहपोती। एसो तु णवविकप्पो उवही पत्तेयबुद्धाणं ॥९॥ एगो नित्थयराणं णिक्खममाणाण होति उवही तु। तेण पर णिरुवही तु जावजीवाए तित्थगरा ॥२२५० ॥ एसा जिणकप्पठिती ठाणासुण्णत्थया समक्खाता। वित्थरयो पुण या जह भणितं मासयप्पम्मि ॥१॥ अहणा थेरचिती न साविय भणिता तु पुषमेवं तु। दारमसुण्णथमियं णवरं संखेवतो वोच्छं ॥२॥ संजमकरणुजोया णि फायग णाणदंसणचरिते । दीहो य वुड्ढवासो वसही दोसेहि य विमुका ॥३॥ दीहोनि(वि) वुड्ढ़वासो थेरा ण तरंति जाहे कातुं जे। अभुजयमरणं वा अहबा अब्भुजयविहारं ॥४॥ दीहं च आउग(जइ)तू, बुड्ढावासं नयो बसे। उम्गमादीहि दोसेहि, विप्पमुक्काए वसहीए ॥५॥ मोनुं जिणकप्पठिति जा मेरा एस वण्णिता हेट्ठा। एसा तु दुपदजुत्ता होति ठिती थेरकप्पम्मि ॥६॥ दुपदंती उस्सग्गो अववाओ चेव होंति दोण्णेते। एतेहिं होति जुत्तो णियमा खलु थेस्कप्पो नु ॥ ७॥ पलंबाओ जाव ठिती उस्सम्मऽववाइयं करेमाणो । अववाए उस्सगं आसायण दीहसंसारो॥८॥ अह-उस्सग्गे अववार्य आयरमाणो विराहओ होति। अववाए पुण पने उस्सम्मणिसेवओ भइओ ॥९॥ कह होती भतियो? संघयणधितिजुतो समग्गोतु। एरिसतो अववाए उस्सग्गणिसेवओ सुदो ॥२२६०॥ इयरो उ विराहेई असम चितिसंवतरित एगनरेण व सोहीणो॥२॥ इति सामाग्यमादी छविह कप्पद्रिती समक्खाया। विरियं दारं अहणा णमो वोउं समासेणं ॥२॥ परिणत गीतत्था न विपक्खभूया अपरिणया होनि। कडजोगी कयजोगी चतुत्थमादीहिं णायवा ॥३॥ अकडजोग्गा जोगाविय चतुत्यादीहिं होन्ति णायवा। वितिसंघयणादीहिं नरमाणा होति णायत्रा ॥४॥ चिनिसंघयणेणं न एगयरजुया उ होनि अतरा उ। अहवा दोहिवि जुना अतरगपुरिसा मुणेयवा ॥५॥ जो जह सनो बहुतरगुणोत्र तस्साहियंपि देजाहि। हीणतरे हीणयरं झोसेज व सबहीणस्स ॥ ७२॥६॥ कप्पट्ठियमातीणं पुरिसाणं जाव उभयहा अनरो । जो जह सनो उ भवे तस्स तहा होति दायश्वं ॥७॥ बहुतरगुणसमगो न धिनिसंघतणादि जो तु संपण्णो। परिणय कडजोगी वा अहवाविहवेज उभयतरो ॥८॥ एयगुणसमग्गम्स तु जीयमया अहियपि देजाहि। हीणस्स तु हीणतरं मुंचेज व सबहीणम्स ॥५॥ एत्थ पुण बहुतरा भिक्सुणोत्ति अकयकरणाणभिगया या जंतेण जीतमट्ठमभत्तंतमविगतिमादीयं । मू०७३ ॥२२७०॥ एत्थं इयम्मि जीए बहुतश्या भिक्सुणो भवंती तु । अक१०५४ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करणा उ जे तू अणभिगया चेव णायवा ॥ १ ॥ चस्सद्देण थिराधिर गहिया तू एत्य तू समासेणं जंतयविहीकमेणं जीयाभिमएण देजाहि ॥ २ ॥ कतकरण अकयकरणा कयकरणा गच्छवासि इयरे य। अकयकरणा तु णियमा णायवा गच्छवासी तु ॥ ३ ॥ ते अभिगत अणभिगता अणभिगता थिरथिरा व होजाहि कतअभिगत जं सेवे अणभिगते अस्थिरे इच्छा ॥ ४ ॥ अहवा णिरवेक्खियरा दुबिहा पुरिसा समासतो होंति । णिरवेक्खो जिणमादी ते णियमा होंति कतकरणा ॥ ५ ॥ सावेक्खा होंति तिहा आयरिय उवज्झ भिक्खुणो चेव । कतकरणमकतकरणा आयरिया चेवुज्झाया ॥ ६ ॥ भिक्खु गीयाऽगीया गीयत्थ थिराऽथिरा य बोदशा कतकरण अकतकरणा एकेका होन्ति ते दुविहा ॥ ७ ॥ अग्गीयावि थिराऽथिर कयाsकया चेव हाँति एकेका कतकरण अकतकरणा केरिसया होंति ? सुणसु इमे ॥ ८॥ छट्टमाइएहिं कतकरणा ते तु उभयपरियाए। अभिगत कतकरणत्तं जं जोगतवारिहा केवी ॥ ९ ॥ णिरवेक्खा एगविहा सावेक्खाणं तु किं णिमित्तेनं तित्रिहो भेदो तु कतो आयरियादी ? इमं सुणसु ॥ २२८० ॥ भण्णइ जुवरायादी वत्युविसेसेण दंडो जह लोए। तह वत्युविसेसेणं आयरियादीण आरुवणा ॥ १ ॥ आयरियउवज्झाया दोण्णिवि नियमेण होंति गीयत्था। गीयत्थमगीयत्था भिक्खू पुण होंति णातथा ॥ २ ॥ कारणमकारणं वा जयणाऽजयणा व णत्थऽगीयत्थे । एतेण कारणेणं आयरियादी निविह भेदो ॥ ३ ॥ कजाकज्ज जयाजय अविजाणतोऽगीयो य जं सेवे। सो होति तस्स दप्पो गीते दप्पाजते दोसा ॥ ४ ॥ अ - बिसिट्टा आवती चरिमं सव्वेसि तेण सावेक्वे चरिमं चिय कयकरणे आयरिए अकऍ अणवट्टो ॥ ५ ॥ कतकरणउवज्झाए अणवडो होति मूलमकयम्मि भिक्खु गीयथिरम्मी कतकरणे मूलमेव भवे ॥ ६ ॥ अकयथिरम्मी छेदो अस्थिरकयकरणे होति सो चेव । अस्थिरकते उ छम्गुरु अगीतथिरकरणे ते चेव ||७|| अम्गीतअथिरे अकते छड़हुगा होति तू मुणेतव्वा । अग्गीय अथिरकयकरण च्छल चउगुरू अकते ॥ ८ ॥ एसादेसो एको अयमण्णो वितियओ तु आदेसो चरिमं चिय आवण्णे कतकरणगुरुम्मि अणवट्टो ॥ ९ ॥ अकतकरणम्मि मूलं मूलमुवज्झाएँ होति कतकरणे अकतकरणम्मि छेदो इय णेयं अइदुकंतीए ॥ २२९० ॥ एमेव य अणवद्धं आवण्णे होति दोण्णि आदेसा। णिरवेक्खो ण भणिएत्थ जं दोण्णि ण होंति तस्सेते ॥ १ ॥ अहुणा मूलावण्णो सब्बे मूलं तु होति णिरवेक्खे। मूलं चेव गुरुस्सवि कतकरणे अकते छेदो तु ॥ २ ॥ कतकरणउवज्झाए छेदे अकतम्मि होन्ति छग्गुरुगा। इय अड्ढो कंती यं अयमण्णा आएसो ॥ ३ ॥ सावे+खोत्ति व काउं गुरुस्स कडजोगिणो भये छेदो। अकतकरणम्मि छग्गुरु कतकरण उवज्झे उग्गुरुगा ॥ ४ ॥ अकते छउडुगा तू इय अड्ढो कंतीए तु णातच्छं । अहुणा छग्गुरुगे तू आढत्तं ठाइ गुरुभिण्णे ॥ ५ ॥ छलहुयाढत्तम्मी ठायति लहुए तु भिण्णमासम्मि। चतुगुरुआढत्तम्मी अन्नम्मी ठाइ गुरुवीसे ॥ ६ ॥ चतुलहुए बीसाए गुरुमासे ठाति पण्णरसहिं तू । लहुए लहुपण्णरसे गुरुभिण्णे ठाति गुरुदसहिं ॥ ७॥ लहुभिण्णे दसलहुए गुरुबीसा अंते ठाति गुरुपणए। लहुवीसा आढत्तं अंतम्मी ठाति लहुपणए ॥ ८ ॥ पण्णरसहिं गुरुएहिं अंतम्मी अट्टमम्मि ठायति तु पण्णरसहिं लहुएहिं अंतम्मी ठाति छुट्टम्मि ॥ ९ ॥ दसगुरुए आढत्तं अंतम्मी ठायती चतुत्थम्मि दसलहुए आदत्तं ठायति तू अंते आयामे ॥ २३०० ॥ गुरुपणए आढत्तं एकासणयम्मि अंते ठायइ तू लहूपणए आढत्तं अंतम्मी ठाति पुरिमड्ढे ॥ १ ॥ अट्टमभत्ताऽऽदत्तं अंतम्मी ठायई अ णिव्विगती । जतविहीपत्थारो समासतो एसमक्खातो ॥ २ ॥ एवं तु अजयणाए साविक्खाणं तु होति पच्छित्तं । अह गीयत्यो सेवे कारण जतणाएँ तो सुद्धो ॥ ३ ॥ एयं तु कारणम्मी जनणासेविस्स वणिय दाणं । अहह्वावि इमं अण्णं आयरियादी जहाकमसो ॥ ४ ॥ आयरियउवज्झाए कतकरणे अकतकरण दुविहा तु । भिक्खुम्मि अभिगते या अणभिगते चैव दुविहो तु ॥५॥ अभिगत अकते या अणभिगते थिर तहेब अथिरे य। थिरे कतकरणे अकते अथिरे कतकरणमकए य ॥ ६ ॥ एते सव्वेऽवेगं आवत्ती पंचराइगाऽऽवण्णा । तं पणगं अविसिद्धं चउत्थमादीहिं विष्णेयं ॥ ७॥ आतरिए कतकरणे तं चिय पणगं तु होति दातां। अकतकरणे चउत्थं कयकरणे उवज्झे तं चैव ॥ ८ ॥ अकयम्मी आयामं भिक्खुम्मी अभिगतम्मि कतकरणे आयामं दायां अकयकरणे उ भत्ते ॥ ९ ॥ भिक्खुम्मी अणभिगते थिरकयकरणे य एगभत्तं तु । अकयम्मी पुरिम अणभिगए अस्थिरे कतम्मि ॥ २३१० ॥ पुरिमढो चिय णियमा अत्थिरजकयम्मि होति णिविगति अहवाऽणभिगय अथिरे इच्छाए तं च अण्णं वा ॥ १ ॥ एमेव य दसरायं सवे आवण्णमेगमावत्ति । कतकरणे आयरिए दसरायं चैव दायकं ॥२॥ अकयकरणम्मि पणगं कतकरणे पणगमेवुवज्झाए। अकतकरणे चउत्थं एवं तू अङ्गदुकंतीए ॥ ३ ॥ ता णेयष्ठ कमेणं जाव उ अंतम्मि होति पुरिमइदं । इय पण्णरसारदं ठायइ एकासणगमंते ॥ ४ ॥ वीसारखं ठायति आयामे भिण्णमासभत्तट्टे मासारदं पणगे दुमास दसराएं ठाय तु ॥ ५ ॥ नेमासे पण्णरसे चतुमासे ठाति बीसरातम्मि पणमासे पणी से छम्मा मासिए ठाति ॥ ६ ॥ छेदो दोमासीए मूले तेमासियम्मि ठायति तु । अणवद्वे चतुमासे पारंचिइए तु पणमासे ॥ ७ ॥ एए भणिता लहुगा सबैऽवि तवारिहा समासेणं । एमेव य गुरुगावी यवा अदुकंतीए ॥ ८ ॥ एमेव य मीसा वा अइदुकंतीऍ होन्ति तथा एमेव पंचपंचहिं मासादी सातिरेगादी ॥ ९ ॥ जा उम्मासा णेया तत्थवि उग्धाय तह १०५५ जीतकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर 1 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुग्धाया। मीसाविअ णेतवा अड्ढोकंतीएं सर्व्वत्य ॥ २३२०|| अहवा वा णिष्ठिगती पुरिमेकासण तहेव आयामं तत्तो चउत्थ पणगं दस पण्णर वीस पणुवीसा ॥ १ ॥ मासो लहु गुरु चतु उच्च लहू गुरू च्छेद मूल अणवडो पारंचिए य तत्तो पणयादीहासण तहेब ॥ २ ॥ लहू गुरुग मीसगाविय तहेव एत्यंपि होन्ति णायथा एवं एवं दाणं बुद्धीए होति विष्णेयं ॥ ३ ॥ एमेव य समणीणं णवरं दुगवज्जितं तु कातथं। अणवडो पारंची एयदुर्ग णत्थि समणीणं ॥ ४ ॥ अहवा पुरिसा दुविहा समासतो होन्तिमे उ णातव्या एगविहारी य रहा गणबद्धविहारिणो चैव ॥ ५ ॥ गच्छा हि णिग्गया जे पडिमापडिवण्णया य जिणकप्पी जे याबि सयंबुद्धा इत एगविहारिणो तिविहा ॥ ६ ॥ ते णिचमप्पमत्ता जति आवजे कहंचि कम्मुदया। तक्खणमेव तु तं पट्टवेति नियमायसक्खी वा ॥ ७ ॥ संघयणधितिसमग्गा सत्ताहिट्टियमहन्तजोगधरा। सुबहुपि हु आवण्णा वहन्ति णिरणुग्गहं सव्वं ॥ ८॥ आलोयणोवयुक्ता ते तू आलोयणाएं सुज्झति । तेसिं जाव तु मूलं करेन्ति सतमेव सुज्झति ॥ ९ ॥ अणिगृहियबलविरिया जहवादीकारया य ते धीरा उत्तमसदसमण्णागया य सुज्झति ते णियमा ॥ २३३० ॥ गणपडिवदा दुविहा जिणपडिरूवी य होति थेरा य जिणपडिरूबी दुविहा विसुद्धपरिहारऽहालंदी ॥ १ ॥ ते णिचमप्पमत्ता जति आवजे कहंचि कम्मुदया। तक्खणमेव हु तं पट्ट वेन्ति कप्पट्ठियसगासे ॥ २ ॥ संघयणधितिसमम्मा सत्ताहिद्वियमहंतजोगधरा सुबहंपि हु आवण्णा वहंति णिरणुग्गहं धीरा ॥ ३ ॥ अट्ठविहा पट्टवणा तेसिं आलोयणाति मूलंता । तं पट्टत धीरा सुज्झति विमुज्झचारिता ॥ ४ ॥ थेरावि विमुद्धतरा तेसुवि जति कोइ किंचि आवजे। तक्खणमेव तु तं पट्टवेंति णियमा गुरुसगासे ॥ ५ ॥ एत्थ य पट्टवणं पति आयरिओ विहिमिणं अजाणतो लछेइ य अप्पाणं तंपिय सीसं ण सोहेति ॥ ६ ॥ पुरिसेत्ति गतं दारं इमं तु पडिसेवणं पवक्खामि सा पुण चतुहा सेवण आउट्टियमादिमाहंसु ॥ ७॥ आउट्टियाय दप्पप्पमायकप्पेहि वा णिसेविज्जा दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ पुरिसो ॥ मू० ७४ ॥ ८ ॥ आउट्टिया उवेचा दप्पो पुण होति वग्गणादीओ। कंदप्पादि पमाओ अहव कसायादिओ ओ ॥ ९ ॥ कसाय चिकहा वियडे इंदिय जिद्द प्पमाय पंचविहो । एस पमायो भणितो कप्पं तु इमं पवक्खामि ॥ २३४०॥ गीयत्थो कडजोगी उवउत्तो जयणजुत्ती सेवेजा। गाहापच्छद्धस्स तु इणमो उ समासतो वोच्छ्रं ॥ १ ॥ दव्वं आहारादी खेत्तं अदाणमादि गातव्वं कालो ओमादीओ हडगिलाणादि भावो तु ॥ २ ॥ जं जीयदाणमुत्तं एवं पातं पमायसहि यस्स । एतो जिय ठाणंतरमेगं वड्ढेज दप्पवयो ॥ मू० ७५ ॥ ३ ॥ जं जीतदाण भणियं णिब्बीतियमादि अट्टमं अंते । ततियपडिसेवणाए पमायसहियस्स एयं तु ॥ ४ ॥ दप्पपडिसेवणाए पुरिमड्ढादी तु होति दायव्वं अंते दसमं दिजा आउट्टीए उ वोच्छामि ॥ ५ ॥ आउट्टियाए ठाणंतरं व सट्टाणमेव वा दिजा। कप्पेण पडिकमणं तदुभयमहवा विणिदिहं ॥ मू० ७६ ॥ ६ ॥ आउट्टियावराहे एकासणमादि अंते बारसमं पाणतिपायवराहे सद्वाणं होति मूलं तु ॥ ७ ॥ कप्पेण उ सेवाए तह सुद्धो अहव मिच्छकारं तु अहवा तदुभयमुत्तं आलोयपडिक माहिति ॥ ८ ॥ आलोयणकालम्मिवि संकेसविसोहि भावतो गातुं हीणं वा अहियं वा तम्मत्तं वावि देजाहि ॥ मू० ७७ ॥ ९ ॥ आलोयणकालम्मिय गृहति अहवा विकुञ्चती किञ्चि। सो संकिलिदुचित्तो तस्सऽहितं दिज्ज ऊणं वा ॥ २३५०॥ जो पुण आलोएन्तो काले संवेगमुबगतो जो उ। निंदणगरहादीहिं विसुदचितो तु तस्सऽप्पं ॥ १ ॥ जो पुण आलो एन्तो गवि गूहति णवि य दिए जो तु। सो मज्झिमपरिणामो तस्स उ देजाहि तम्मत्तं ॥२॥ इति दशादिबहुगुणे गुरुसेवाए य बहुतरं देजा। हीणतरे हीणतरे हीणतरं जाव झोसोति ॥ मूत्र ७८ ॥ ३ ॥ इति एस दश खेत्ते काले भावेसु बहुगुणेस् तु गुरुसेवा तु पहाणा एतेसु बहुतरं दिजा ॥ ४ ॥ हीणतरे हीणतरंति देज दष्वादिमादिहीणेहिं । तह तह हीणं देजा झोसेज व सहीणस्स ॥ ५ ॥ झोसिजति सुबहुपि हु जीएणऽण्णं तवारिहं बयो। वेयावचकरस्स य दिजति सानुग्गहतरं वा ॥ मू०७९ ॥ ६ ॥ झोसण खवणा मंचण एगट्ठा तं तु मुच्चए कम्स ? अणवथं तु बहते जह पट्टविए उ उम्मासे ॥ ७ ॥ पंचदिणेहि गएहिं पुणरवि जइ सो उ अण्णमावजे तो से तं तहिं छुम्मति एवं झवणा तु तस्स भवे ॥ ८ ॥ वेयावच करेंतो जति आवजति तु किंचि अण्णतरं तावतितं से दिज्जति जं णित्थरती तु सो बोढुं ॥ ९ ॥ कालं ठावितु दिक्खे णित्थिण्णे तं तु काहिती सो तु एय नवारिह भणितं अरुणा छेदारिहं वोच्छ्रं ॥ २३६० ॥ नवगडिओ तबस्स य असमत्थो तवमसहन्तो य तवसा त जो ण दम्मति अतिपरिणामप्पसंगी य ॥ मृ० ८० ॥ १ ॥ सुबहुतरगुण भंसी छेदावत्तिसु पसज्जमाणो य। पासत्थादी जोऽविय जतीण पडितपिओ बहुसो ॥ मू० ८१ ॥ २ ॥ उक्कोसं तवभूमी समतीओ सावसेसचरणो य छेदं पणगादीतं पावनि जा धरति परियाओ ॥ मू० ८२ ॥ ३ ॥ नवबलिओ देह तवं अहं समत्थोत्ति गडिओ एस तबअसमत्य गिलाणो बालादी अहव असमत्यो ॥ ४ ॥ जो उ ण सद्दति तवं अहवावी जो नवेण णवि दम्मे। अतिपरिणामो जो तू पुणो पुणो सेवति पसंगी॥ ५ ॥ उत्तरगुण बहुगा तू पिंडविसोहादिगा उ णेगविहा। भंसेति विणासेती पुणो पुणो जो तु ताई तु ॥ ६ ॥ छेदावतीओ वा पकरेति पसज्जनी य जो तेसुं । अणापासत्यादी आदींसहेणिमाहंसु ॥ ७ ॥ पासत्थोसण्णो वा कुसील संसत्त अहव णीओ वा वेयावश्चकराइण जतीण पडितप्पिओ बहुसो ॥ ८ ॥ उक्कोसा तवभूमी आदिजिणिदस्स होति वरिसं तु । मज्झिमगाण जिणाणं अट्ठ उ मासा भवे भूमी ॥ ९ ॥ चरिमस्स जिनिंदस्सा उक्कोसा भूमि होति छम्मासा। एयं तू उक्कोसं समतीओ चरणसेसो य ॥२३७० ॥ (२६४) १०५६ जीतकल्पभाप्यं मूनि दीपरत्नसागर Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एव जहुट्ठिाणं तवगवियमादियाण सवेसि । छेदं पणगादीयं देजा जा धरति परियाओ॥१॥ आउट्टियाय पंचिंदियघाते मेहुणे य दप्पेणं । सेसेसुक्कोसाभिक्खसेवणादीसु तीसुपि ॥ मू०८३॥२॥ आउट्टि उवेचा तू पंचिदिवहेति मिहुण दप्पेणं । सेस वय मुसाऽदिनं परिग्गहो चेव णादवो ॥३॥ एतेसुकोसाणिं पडिसेवाऽभिक्खणं तु मिच्छा तु । एतेसिं सवेसिं मूलं तू होति दातवं ॥४॥ तवगवियादिएसु य मुलुत्तरदोसवतियरगएसुं। दसणचरित्तवन्ते चियत्तकिच्चे य सेहे य ।। मू०८४॥५॥ तबगचियमादीया जावऽइपरिणाम अतिपसंगित्ति। एन जहुहिट्ठाणं मूलं तू होति णातयं ॥ ६॥ मूलगुण उत्तरगुणे बहुविह बहुसो य दूस भजति वा। वतिकरमेयं होती एरिसजुत्तस्स मूलं तु ॥ ७॥ णिच्छयनयस्स चरणायविघाये णाणहै दंसणवहोवि । बबहारस्स तु चरणे हयम्मि भयणा तु सेसाणं ॥८॥ चत्तं जेण दरिसणं चारित्तं वावि सो तु णातवो। चत्तक्किच्चो वेसो चियत्तकिचो मुणेतचो॥९॥ अहवा- संजम सकलं किचं जेणं चत्तं स चत्तकिच्चो तु। सेहो अणुवट्ठविओ मुलं एतेसिं सवेसि ॥२३८०॥ अञ्चंतोसण्णेसु य परलिंगदुवे य मूलकम्मे य। भिक्खुम्मि य विहिततवेऽणवट्ठपारंचियं पत्ते ॥मू० ८५॥१॥ ओसण्णे पवाविय संविग्गेहिं व जप्पभितिं तु। ओसण्णयाएं विहरिओ सो भणितऽच्चंतयोसण्णो ॥२॥ गिहिलिंग अण्णउत्थिय परलिंगदुवे कुणति दप्पेणं । गम्भादाणे साडण | दुविहमिहं मूलकम्मं तु॥३॥ भिक्खणसीला भिक्खू विहिततवं उवणयं तु णातच । तवअणवढे उवणय पारंचितवं च णात ॥४॥ अतियारसेवणाए पत्ते एयं तु होति दुविहं च (ह तब)। एतेसि सवेसिं दातवं होति मूलं तु ॥५॥ छेदेणापरियाएऽणवट्ठपारंचियावसाणे य । मूलं मूलावत्तिमु बहुसो य पसजणे भणियं ॥ मू०८६॥ ६॥ छिजते परियाए जस्स तु छिण्णो हु णिरवसेसो तु। तवअणवढे बूढे पारंचितवावसाणेसु ॥७॥ मूलावत्तिमु एमुं पुणो पुणो सजए तु जो सगणे(मणो)। सवेमुवि एतेसुमूलं तू होति दातवं ॥८॥ अणवटुप्पो दुविहो आसायण तह य होति पडिसेवी। आसायणअणवढं समासयोऽहं इमं वोच्छं॥९॥ तित्थकर संघ सुयं आयरियं गणहरं महिड्ढीयं। एते आसाएन्ते पच्छिते मग्गणा इणमो॥२३९०॥ पढम विति देस सब्वे णवमं सेसेसु चउगुरू देसे। पडिसेवणअणव? अहुणा उ इमं पवक्खामि ॥१॥ उकोसं बहुसो वा पउद्दचित्तो तु तेणियं कुणति । पहरति जो य सपक्खे णिवे. क्खो घोरपरिणामो ॥ मू०८७॥२॥ उक्कोसं तु विसिट्ठ पुणो पुणो एय होति बहुगं तु। कोहादी व अतीव तु पउट्टचित्तो मुणेतव्वो ॥३॥ पडिसेवणअणवट्ठो होती तिविहो इमो समासेणं। साहम्मियऽण्णधम्मियतेण्णे तह हत्यताले य॥४॥ साहम्मितेण्ण दुविहं सञ्चित्तं तह य होति अञ्चित्तं। अचित्तोवहि भत्ते सचित्त सेहावहारो तु॥५॥ साहम्मिउवहिहरणं वावारण झावणा य पत्थवणा। तं पुण सेहमसेहो हरेज अहिट्ट दिटुं वा ॥ ६॥ सेहोत्ति अगीयत्यो जो वा गीतो अणिड्ढिसंपण्णो। उवही पुण वत्यादी अपरिग्गह पत्थरो तिविहो ॥७॥ अपरिग्गहितो तहियं साहम्मी मोनु पवसितो जस्स । ओहरमाणे सोही होति इमो खेत्तणिफण्णो ॥८॥ अण्णोवस्सयवाहिं णिवेस वाडे य गाममुजाणे । सीमाए जा णेयं सवत्थवि अन्नों बहिया वा ॥९॥ एतेसुं तेण्णते मासलहुं आइ काउ जा छेदो। अड्ढोकती णेयं अहिडेसा भवे सोही ॥२४००॥ मासगुरुगादि दिट्टे मूलं सेहस्स एयणिट्ठाई। अभिसेयाऽऽयरियाणं एकेक ठाणगं वड्ढे ॥१॥ एवं तुवस्सयाओ साहम्मीणुवाहिमवहरंतम्स। वावारिए इदाणि वोच्छ सयमेव गेहन्ते ॥२॥ वावारिया गुरूहि वचह आणह तिविहमुहिति। तं लई तत्तो चिय तुझं मो य अत्तट्ठी॥३॥ लहओ अत्तटुंते जति पण आणेत्तु गुरुण न णिवेदे। तो होती चतुलहुगा अणवटुप्पो व आदेसा ॥४॥ वावारियतेण्णेयं अण्णो पुण सावए णिमन्तेन्ते। पडिसिद्धाऽऽयरियेणं दठूर्ण तत्थ गंतूणं ॥५॥ बेती झामिय उवही अयं च गुरूहि पेसिओ देह। तो दिण्णो तेहुवही किह पुण सड्ढेहिं सो जातो ? ॥६॥सो तं घेत्तृण गतो णवरं ते आगता गुरुसगासं। पुच्छंति य ते सड्ढा उवहि पहुत्तो व ण पहुत्तो? ॥७॥ केवइयं वा दइदं तो विन्ति ण डझए हु उबहित्ति। केण व णीनो उवही? इति सोचा पत्तिमप्पत्ति ॥८॥ लहुगा अणुग्गहम्मी गुरुगा अप्पत्तिए मुणेयव्वा । मूलं च तेणसहे वोच्छेय पसजणा सेसे ॥९॥ एवं ताऽडझते अह सचं शामितो भवे उवहीं। पेसविओ य गुरुहिं लदे तहिं अंतरा जो तु॥२४१०॥ लट्टे अत्तट्टेती चतुलहुगा अह गुरुण ण णिविदे। तो चतुगुरुगा तहियं अणवट्टप्पो व आदेसा ॥१॥ एवं झामणहेतुं अबहारो अह इयाणि पत्यदिए । आयरियादिण केणति आयरियाणं तु अण्णेसिं ॥२॥ उक्कोसो सणिजोगो पडिग्गहो अन्तरा तहिं लदो। अत्तटुंते लहुगा गुरुगाऽदनेऽणवट्ठो वा ॥३॥ एवं ता उबहिम्मी अहुणा भत्तम्मि तेण्ण वोच्छामि। जति पविसेऽसंदिट्ठो ठवणकुले तो भवे लहुगा ॥४॥ अज्ज अहं संदिट्टो पुट्टोऽपुट्ठो व साहए एवं। पाहुणगिलाणगट्ठा नं च पलोदृति नो बिनियं ॥५॥ मायाणिप्फण्णं तू एव भणंतस्स होति मासगुरू । अहवा आगंतुणं णालोए तहवि मासगुरूं ॥६॥ कह पुण हवेज णार्य साहूहिं तह य तेहिं सड्ढेहिं । जह खलु पविट्टो अण्णो ठवणकुलाई असंदिट्ठो? ॥७॥ गुरुसंघाडम्मि गए भणति गुरुजोग्ग णीयमेताहे। णत्थि तऽणुग्गहम्मी लहुगा अप्पत्तिए गुरुगा ॥८॥ बोच्छेद गुरुगिलाणे गुरुगा लहुगा य खमगपाहणए। गुरुगा य बालवुड्ढे सेहे य महोदरे लहुगो॥९॥ भत्तम्मि भणियमेतं तेण्णं भणियं च मेयमचित्ते । अहणा सश्चित्तम्मी सेहे सेहीय वोच्छामि ॥२४२०॥ तं पण णिजतो वा अभिहारेन्तो १०५७ जीतकल्पभाय - मुनि दीपरत्नसागर Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व आसियाडेजा। भिक्खादिपविढे वा गाम बहि ठवेत्तु णिजंतो॥१॥ तं पुण सण्णादिगतो अद्धाणीओ व कोति पासेजा। बंदिय पुट्ठो कोती भणे अहं पल्वतिउकामो ॥२॥ ससहातो असहातो?त्ति पच्छितो भणति ताहे ससहायो। सो कत्थ ? मज्झ कजे छाय पिवासस्स वा अडति ॥३॥ तो वेति अण्णपाणं इम मुंजऽणुकंप दाए सुद्धोतु।धम्मं च पुट्टपुट्टो कहेति मुद्धो असढभावो॥४॥ सढयाए पुण दोसो भत्तं देतस्स अहब कहयंते । आसीआवणहेतुं सोहि इमेहिंतु ठाणेहिं ॥५॥ भत्ते पण्णवण णिगृहणा य चावार जंपणा चेव । पत्थवण सयंहरणे सेहे अश्वत्त वत्ते य ॥६॥ गुरुओ चतुलहु चतुगुरु छलहु छग्गुरुना छेदमबत्ते। वत्ते मिक्सुणों मूलं दुगं तु अभिसेग आयरिए ॥७॥ एवं ता जो णिजति अहिहारेन्तो पुणोवि जो जाति। सोऽविय तहेव पट्टो भणाइ बचामऽमुगमलं ॥८॥ तह चेव भत्तपाणं पण्णवणा चेव होति एत्थंपि। सेसा णिगृहणाती सोवि पया ण संति इहं ॥९॥ एमेव य इत्थीए णिजंतऽभिधारयति एमेव । वत्तवत्ताएं गमो दोसो य इमे हरंतस्स ॥२४३०॥ आणा यऽर्णतसंसारियत्त बोहीयदुल्लमत्तं च । साहम्मियतेण्णम्मी पमत्तछलणाऽहिकरणं च ॥१॥ वि. तियपयं वोच्छेदे परगए कालियाणुओगे या एतेहिं कारणेहिं कप्पति सेहावहारो तु ॥२॥ एवं तु सो अवहितो जाहे जातो सयं तु पावयणी। कारणजाए य जया होजाही अवहितो तेण ॥ ३॥ सो त चिय धरति गणं कालगते गुरुम्मितं विहारेन्ते। जावेको णिप्फण्णा ताहस अप्पणो इच्छा॥४॥ अहहरिए णिकारणे ताह पुरिमाण चंच। जयमरणं पडिवण्णो गरुविहार वा ॥५॥ अण्णम्मि अबिज्जते आयरियपदारुहतमंद गण । धारति जाव अण्णो णिम्माता ताम्म गच्छाम्म ॥६ मक्खानं। आभवर्ण दोसा या परधम्मियतेपणे वोच्छामि ॥७॥ परधम्मियाबि दुबिहा लिंगपविट्ठा तहा गिहत्या य। तेसिं तिविहं तेण्णं आहारे उवहि सचित्ते ॥८॥ भिक्खुमादीसंखडितं लिंग काउ भंजए लुद्धो। आभोगम्मि उ लहुगा गुरुगा उदसणे हॉति ॥९॥ करणिमित्तं चेव उ अजियंता एतें एत्थ पवइया। अविदिण्णदाणमा खलु पक्यणहीला दुरप्पत्ति ॥२४४०॥ गिबासेवि बरागा धुर्व खु एते अदिट्ठकल्लाणा। गलओ णवर ण बलिओ एतेसिं सत्युणा चेव ॥१॥ एवं ता आहारे उवहीतेष्णं पुणो इहं होजा। जह कोदि भिच्छुगादी उबम्सए मोन उवगरणं ॥२॥ भिक्खादिगतो तं तू जति गिण्हति चतुलहू भवे तस्य । गिहण कड्ढण ववहार पच्छकड तह य णिधिसए ॥३॥ गिण्हणे गुरुगा छम्मास कढण छेदो होनि ववहारे। पच्छाकडम्मि मूलं णिविसयोदावणे चरिमं ॥४॥ जम्हा एते दोसा तम्हा अविदिण्णगं ण घेत्तवं। उवहीतेषणं एवं एत्तो वोच्छामि सचिसे ॥५॥ खुड्डं च खुड्डियंत वा नेणेनि अवन पुच्छितुं गुरुगा। वत्तम्मि णस्थि पुच्छा खेत्तं थामं च णातूर्ण ॥ ६॥ लिंगपविट्ठाणेवं एमेव विहा अदिण्ण गिहियाणं। गहणादीया दोसा सविसेसतरा भवे तेसु॥७॥ आहार पिट्टादी विरद्धियं ददलु खुड्डिया गेण्हे। गेण्हती दिहाविय ता कुसलपरंपरा छुमणा ॥८॥ तहियं हॉति चतुलहू अणवट्टप्पो व होति आदेसा। एमेव य उबहिम्मिवि सुतट्ठी वन्धमादीया ॥५॥णीएहिं तु अविदिणं अप्पत्तवयं पुमं ण दिक्खेन्ति । अपरिग्गहम(सु)वत्तो कम्पति तु जढो सदोसेहिं ॥२४५०॥ अपरिग्गह णारी पुण ण भवति तो सा ण कप्पति अदिषणा । सावि यह काइ कप्पइ जह पउमा खुड्डमाया वा ॥१॥ बितियपदंऽपाऽऽहारे अदाणोमाइएसु कजेसु । उवहीविवित्तमादिसु आगाढे गहणमविदिण्णे ॥२॥ सथलीसु ताव पुत्र बला व गेहति नत्थ अदलेन्ते। बलवयदुढेसुं पुण छपणंपी ताहें गिण्हति ॥३॥ ताहे परलिंगीणवि जाति य पुर्व अदतें उपणम्मि। गारथीसुवि एवं आगाढे होति गहणं तु ॥४॥ आहारे उबहिम्मि य वितियपदे गहणमेतमक्खायं। एत्तो सचित्तगहणं वोच्छामि अदिण्ण वितियपए ॥५॥णाऊण य चोच्छेयं पुब्बगए कालिआणुओगे य। उवयुजिऊण पुर्व होहिति जगप्पहाणनि ॥६॥ताहे खुड्डग खुड्डी हरेज गिहिअण्णतिस्थियाणं वा। साहम्मिअण्णधम्मिय एवं तेषणं समक्खातं ॥७॥ गाहापुबद्धस्स तु इति एसा अभिहिवा इहं तेण्णा। अहुणा पच्छदस्सनु गाहासुतं इमाऽऽहंसु ॥८॥ अह एत्तो वोच्छामो हत्यायालं जहकमेणं तु। किं पुण हत्यायालं? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥९॥ हत्या ताले (हत्था)लंबे अस्थायाणे य होति बोदवे। एतेसिं णाणतं वोच्छामि जहाणुपुवीए ॥२४६०॥ हत्येणं जं तालण हत्यायालं तगं मुणेत । तहियं हवति अ दण्डो लोइय लोउत्तरो इणमो ॥१॥ उग्गिाणम्मि य गुरुओ डंडो पडियम्मि होति भतणा तू। एवं सु लोइयाणं लोउत्तरियं अतो वोच्छं ॥२॥ हत्येण व पाएण व अणवटुप्पो तु होति उम्गिण्णे। पडियम्मि होनि भयणा उडवणे होति पारंची ॥३॥ वितियपय खुद्दड विणयं गाहेन्ते अहव बोहिगादीसु। सावयभयेव घा(चोर देजाही हत्यतालं तु॥४॥ विणयग्गाहण खुइड क सावेक्खो हत्थतालं दलाइ मम्माणि रक्खंतो ॥५॥ परपरियावणकरणं चोदेइ असायबंधहे उत्ति। तं कह तस्साणुण्णा तुम्भेहिं कया ? इमं मुणसु ॥६॥ कामं परपरितावो असातहेतू जिणेहिं पण्णत्तो। आयपरहियकरोतू इच्छिजइ दुस्सि(दोस)ले स खलु ॥७॥ सिप्पं उणियट्ठा वाघाते सहति लोइया गुरुणो। ते इहलोगफलाणं महुरविवागेस उवमा तु ॥८॥ अहवावि रोगितस्सा ओसह चाहि दिजए पुर्व। पच्छा ताडेतुंपी देहहितद्वाएं दिजति से ॥९॥ इय भवरोगत्तस्सवि अणुकूलेणं तु सारणा पुर्ण । पच्छा पडिकूलेणवि परलोयहियट्ट कायदा १०५८ जीनकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 - - ॥२४७० ॥ इहपरलोगे य फलं विणीतविणयो अणुत्तरं लभति। संविम्गाइगुणेहिं इमेहिं जुत्तो महाभागी ॥१॥ संविग्गो मद्दविओ अमुदी अणुयत्तओ विसेसण्णू । उजुत्तमपरितंतो इच्छियमत्थं लभइ साहू ॥२॥ बोहिमयसावयादिसु गणस्स गणिणो व अच्चए पत्ते। इच्छंति हत्थयालं कालाइधरं व सज वा ॥ ३॥ एरिसए आगाढे बोहियमादीसु जीयसंदेहे । जं जस्स तु सामत्थं सो तु ण हावेति एत्थं तु ॥४॥ कुणमाणोवि हु कडणं कयकरणो णेच दोसमन्भेति। अप्पेण बहुं इच्छति विसुद्धमालंबणो समणो ॥५॥ आयरियस्स विणासे गच्छे अबावि कुल गणे संघे । पंचिंदियवोरमणंपि कातुं णित्धारण कुजा ॥६॥ एवं तु करेन्तेणं अयोच्छित्ती कया उ तित्यम्मि । जतिवि सरीरावायो तहविय आराहओ सो उ॥७॥ जो पुण सइ सामत्थे विजातिसती व अहव सारीर। एरिसए आगाढं हावेन्तों विराहयो भणितो ॥८॥ एवं हत्थायालं हत्थालंबं इमं मुणेतवं। दुक्खेणऽभिदुयाणं जं सत्ताणं परित्ताणं ॥९॥ असिव पुरावरोह एमादीवइससेसु अभिभूता। संजायपचया खलु अण्णेसु य एवमादीम् ॥२४८०॥ मरणभएणऽभिभूए ते णातुं तेहिं वावि भणिया तु। पडिम काउं मजो चिट्ठ(चिध)ति मते परिजवेन्ता ॥१॥ एतहत्थालंब हत्थायाणं अयो परंवोच्छ। जो अत्थं उप्पाए णिमित्तमादीहिमंणातं॥२॥ उज्जेणी उस्स(ओस)पणं दो बणिया पुच्छिऊण आयरि। ववहार ववहरती तं ताहे तेसि सो साहे ॥३॥ तस्स य भगिणीपुत्तो भोगहिलासी तु मुंचए लिंग। तो अणुकंपा भणती किं काहिसि तं विणऽत्थेणं? ॥४॥ तो वच ते वणीए भणाहि अत्थं पयच्छहा मज्झं। तेणाऽऽगंतुं भणितो तो तेसिं बेति अह इको ॥५॥ कत्तो अत्यो अम्हं ? किं सउणी रूवए इहं हगती। बीओ चंगेरि भरेनु णिग्गतो णतुलयाणं तु॥६॥ गिण्हसु जावइएहिं कजन्ति गहित तेण जायऽहो। बितियम्मि हायणम्मी किं गिण्हामो?त्ति ते बेन्ति ॥७॥ मणितो सउणिहयन्तो तण कट्वस्थ रूत कप्पासे। णेहगलधण्णमादी अंतो णगरस्स ठावेहि ॥८॥ बितिओ य तहि भणिओ सबादाणेण गिण्ह तणकट्ठ। णगरबहिट्ठा ठावय गहिए णवारं च वासासं ॥९॥छडएस गेहेसं पलिते दडढं ततो उ तणकट्ठाणं पुंजो अइव महग्यो तु सो जातो॥२४९०॥ दड्ढमियरस्स सव्वं ताहे सो गंतु भणति आयरियं । उच्छाइओ अहो हैं किह व ण णातं समं तुम्भे ?॥१॥ किं सउणिया णिमित्तं हयंति अम्हं?ति भणति मित्ती। होति कयाइ तहऽण्णह रुटुंणातुं तयो खामे ||२|| एमादिणिमित्तेहिं उप्पाएन्तम्मि अत्थयाण भवे। सो एरिसयो पुरिसो अब्भुढेजा जइ कयाइ॥३॥ तस्स तु ण उवट्टवणा तम्मिक्खेत्तम्मि जाव संचिक्खे। एस चिय अणवट्ठो जमणुवठवणा तहिं खेत्ते ॥४॥णेतूण अण्णखेत्तं तस्स उबट्ठावणा तु कायवा। तहि गोवट्ठा खेते किं कारण ? भण्णती सुणसु ॥५॥ पुवम्भासा मेसेज किंचि गोरव सिणेह भययो वा । ण सहति परिस्सहंपिय णाणे कंडं व कच्छल्लो ॥६॥ तेण तु तहितं थाणे ण हु देन्ती तस्स भावलिंग तु । या देजा व कारणम्मी असिवोमादीसु तप्पिहिति ॥ ७॥ण य मुचति असहातो तहितं पुट्ठो तु भणति वीसरियं । अहवावि उत्तिमद्वे देजाही लिंग तस्थेव ॥८॥ एवं ता ओसणे गिहत्य पुण दवभावलिंगाई । दोण्णिवि णवि दिजंती दिजेज व उत्तिमट्टम्मि ॥९॥ एवं अत्यायाणे जे पुण सेसा हवंति अणवट्ठा। साहम्मिअण्णधम्मियतेणादी ते उभयणिज्जा ॥२५०० ॥ का पुण भयणा एत्यं? आहारे उवहितेण अञ्चित्ते। लहुगो लहुगा गुरुगा अणबटुप्पो व आदेसा ॥१॥ कह पुण आएसेणं अणबट्ठो होइमं णिसामेह । अणुवरमंतो कीरति अहवा उस्सपणदोसो तु ॥२॥ अहवा भिक्खू पावति एतेसु पदेसु तिविह पच्छित्तं। णवमं पुण बोद्धव्वं अभिसेगे सूरिणो दसमं ॥३॥ तुडम्मिवि अवराहे तुल्लमतुलुं च दिजए दोण्हं। पारंचिएवि णवमं अभिसेगे गुरुस्स पारंची ॥४॥ अहवा अभिक्खसेवी अणुवरम पावती गणी णवमं। पार्वति मुलमेव तु अभिक्खपडिसेविणो सेसा ॥५॥ समक्खातो। गच्छे चेव वसंता णिजूहिजंति अवसेसा ॥ ६॥ अहवा-अभिसेओ सत्वेसु य बहुसो पारंचियावराहेसु। अणवटुप्पावत्तिसु पसज्जमाणो अणेगासु ॥ मू०८८॥७॥ अभिसेगो उज्झाओ पुणो पुणो होति बहुससदो ऊ। पारंचियावराहे आवजति सबसहो तु॥८॥ अणवटुप्पावत्ती उ सेबए णेगसोति बहुसो तु। णंतरगाधाए सो अणवठ्ठप्पोनि कीरड तु ॥९॥ जुत्तं तावऽणबट्टे दिजति अणवट्ठमेव अभिसेगे। पारंचियावराहे पत्ते किह पावती णवमं? ॥२५१०॥ भण्णति जह णवदसमे आवण्णस्सावि भिक्खुणो मूलं। दिजति नहा:भिसेगे परं पदं होति णवमं तु ॥१॥ कीरति अंणचट्टप्पो सो लिंगक्खेत्तकालयो तवओ। लिंगेण दध भावे भणियो पवावणाणरिहो ॥ मू०८९॥२॥ अप्पडिविरयोसण्णो ण भावलिंगारिहोऽणवटुप्पो। जो जेण जत्थ दूसति पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ॥मु०९०॥३॥ जत्तियमे ९१॥४॥ वासं बारस वासा पडिसेवी कारणे तु सोवि। थोवं थोवतरं वा बहेज मधेज वा सव्वं ।।मु०९२॥५॥ वंदतिणय वंदिजति परिहारतवंस णालवणादीणि सेसाणि ॥ मू०९३॥ ६॥ परपक्ख सपक्खे वाणवि विरयो तेणगादिदोसेहिं । अप्पडिविस्यो अहवा हत्थायालादिसु पएसु ॥७॥ ओसनमाइ या तु अणुवस्या दो सलिं. गसहिया ऊ। अणवटुप्पा ते ऊ कायका भावलिंगेणं ॥८॥ कालतों अणवट्ठप्पो अणउवस्यदोसों जत्तियं कालं। सो अणवट्ठो कीरती जत्तियमेत्तं तयं कालं ॥९॥ तवअणबडो दुविहो १०५९ जीतकल्पभाय - मुनि दीपरत्नसागर - Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसायणयाय होति पडिसेवी। एकेकोविय दुविहो जहष्णओचेच उक्कोसो॥२५२०॥ तवअणवट्ठाऽऽसायण जहण्ण छम्मास वरिसमुक्कोस । के पुण आसाएंती? जिणमादी जा महि । इडीयं ॥१॥ पडिसेवी अणवट्ठो जहण्ण परिसं तु बारसुक्कोसा। किं पुण पडिसेवति तू? तेण्णादीया पदा सव्वे ॥२॥ कारणमादिपदा तू उवरि वोच्छिम अहण परिहारं। वंदणमादी य पदा समासयो हं इमं वोच्छ॥३॥ परिहरणं परिहारो आलावणमादि दसहि तु पदेहिं । सेहादिएवि बंदति सो पुण णवि वंदणिजो तु ॥४॥ केरिसगुणसंजुत्नो अणवट्ठो कीरती? इमं सुणम्। संघतणविरियआगमसुत्तत्यधितीय उववेया ॥५॥ उवरिमतिगसंघयणो सवगुणो केवलं अजियणिदो। देजा से सवतवं अणवर्ल्ड वापि पारंची ॥६॥ णवदसपुत्रकतत्थो सड्ढो इव उग्गमधितिकयकरणो। परिणामसमग्गोत्ति य अणवटुप्पं सि दायत्रं ।। आ एवं तु गुणसमग्गो चरित्तसेटिं तु णट्ट भिषणं वा । पोराणियगुणसेदि हिरवयवं सो तु पूरेति ॥८॥ सो वंदति सेहादिवि पम्महिततवो जहा जिणो चेव। विहरति बारस बरिसे अणवटुप्पो गणे चेव ॥९॥ तस्स य परिहास्तवं पडिवजंतस्स कीरउस्सग्गो । संपाडठवणभीए आसस असमत्थकरणं च ॥२५३०॥ किं कारणमुस्सम्मो? भण्णति सेहाण जाणणट्ठाए। भयजणणट्ठाय तहा णिरुवसग्गट्ठया चेव ॥१॥ कप्पट्टितो अहं ते अणुपरिहारी य एस गीओ ते । पुवं कतपरिहारो तस्सऽसतिऽष्णोचि दढ़देहो ॥२॥एस तवं परिवजति ण कंचि आलवति मा णु आलवहा । अत्तचिन्तगस्सा बाघातो भे ण कायवो ॥३॥ ताहे य परिहरिजति ग रनि गच्छं । अपरिहरन्ताऽऽरोवण दसहि पएहिं इमेहिं तु ॥ ४॥ आलावण पडिपुच्छण परियठ्ठट्ठाण बंदणग मत्ते । लेहण संघाङग भत्तदाण संभुंजणे चेव ॥ ५॥ जा संघाडो ताव तुलहओ मासा तु होति गच्छस्स । लहगा य भत्तदाणे संभंजण होन्तऽणुग्धाता ॥ ६॥ संघाइओ तु जाव उगुरुओ मासा दसह तु पयाणं । भत्तस्स दाण संभुजणे य परिहारिए गुरुगा ॥ ७॥ कितिकम्मं च पडिच्छति परिषण पडिपुच्छ देति य गुरू से । सोऽविय गुरुमुवचिट्ठति उदन्तमवि पुच्छितो कहते ॥८॥ एवं तू ठवणाए ठवियाएं भयं तु कस्सतुववजे। किह नु मए एकणं णित्थरियत्तिओ कालो ॥९॥ नाहे आसासेती आयरिओ मा हु एव तंबीभे । अणुपरिहारी एस य अहवा कप्पहिती एसा ॥२५४० ॥ जंकिंचि पाडिपुच्छं तं सा मए समं करेजाहि। हिडिहिसी भिक्खपिय अपरिहारीण तव सदि ॥१॥ एव भाणातु सतो आसासति न च ताहे णिस्थरति। किह पुण होआसासा? भण णिसामेहि ॥२॥जह कोनि अगडपटिओ जति भण्णति एस हा! मतो वरतो। तो मुंचति अंगाई पच्छा मरती य सो ताहे ॥३॥ अह पुण भण्णति एवं मा बीहमु एस आणिया रजू । उनारिजसि एवं आसासो से हवति ताहे ॥४॥ एवं णदिवझते राया रुट्ठो व कासती होजा। सोवि जति विणट्ठोसिनि भण्णए तो चिराएजा ॥५॥ अह भण्णनि मा बीभे राया असमिक्खिए अकने वा । णवि किंचि करदनी मोइजेहिसि व आससति ॥ ६॥ एवासासो तस्सवि होती आसासियस्स संतस्स । इय परियण्णो सो ऊ वहह हु उग्गं तवोकम्मं ॥ ७॥ तो उम्गेण तवेणं सो जाहे खामदुमलसरीरो। ण तरेनुट्ठाणादी काउं ताहे इमं भणति ॥८॥ उडेज णिसीएजा भिक्खं हिंडिज भंडर्ग पहे। कुवितपितबंधयो विव तुसिणी संघाडी तो कारे ॥९॥ वितियपय अण्णगच्छा पेसेजा पंदणं अयाणतो। गेलण्णे उभयस्स व कुजा करणिज जयणाए ॥२५५० ॥ गच्छित्तया गुरुस्स उगुरुअणुपरिहारिए समति। अणुपरिहारी परिहारियस्स देन्तेस जयणा ॥२॥ सो वा करेज तेसि आगाढ परंपरेण एमेव। गुरुणो एगागिस्सव अण्णऽसतीए करेजाहि ॥२॥ ताहे णिस्थिण्णतयो कलादिकजेवतप्पितो जोन। उवठावण तस्स भवे केयी गिहिवेस कानूणं ॥ ३॥ गिहिवेसमकाऊणं उबट्ठवेन्ते उहाँति चउगुरुगा। आणादिणो य दोसा पावइ अहवा इमे दोसे ॥४॥ वरणेवत्थं एगे ण्हाणविचजमबरे जुबलमेन। परिसामझे धम्म मुणेज कहणा पुणो दिक्खा ॥५॥ किं तस्स तु गिहिवेसं ? कि वरणवत्थ ? किं व जुयलं तु?। किं वा परिसामझे धम्मो से कहिजए तस्स ? ॥६॥ ओभामिओ ण कुवति पुणोषि सो नारिस अतीयारं। होति भयं सेहाण य गिहिए धम्मया चेव ॥ ७॥ नित्थगर पवयण सुतं आयरियं गणहरं महिढीय(इढाई)। आसाएन्नो बहसो आभिणिवेसेण पारंची।मू०९४॥८॥ किह पुण आसाएनी? अवण्णवायाइ बयइ जंतेसि। केरिसओ तु अवण्णो ? भण्णइ इणमो णिसामेहि ॥९॥ पाहुडियं उबजीवनि जाणंनो कि व मुंजए भोग ?। अजुनं च इस्थिति(डित) अतिकक्सर देसिया चरिया ॥२५६०॥ अण्णं व एवमादी अवि पडिमावि तिलोगमहियाण। जति भणति कीस कीरति माडालं. कारमादीयं ॥१॥ जोवि पडिरूचविणयो तं सर्व अवितहं अकुछतो। बंदणथुइमादीयं नित्यगरासायणा एसा ॥२॥ अकोसनजणादिसु संघमहिक्खिवह संघपडिणीए। अण्णेवि अस्थि संघा सियालणंतिकटंकादी॥३॥ काया क्या य ते चिय ने चेव पमाय अप्पमाया य। मोक्वाहिगारियाणं जोतिसविजाहि किं व पुणो? ॥४॥ इढिरससानगम्या परोक्देसुजया जहा मंखा। अत्तट्टपोसणरया आयरिया जह दिया चेव ॥५॥ अभुजय विहार देसेन्ति परेसि सतमुदासीणा । उवजीवति य इइिंद णीसंगा मोनि य भणति ॥ ६॥ गणहर एवं महिदी महातवस्ती ववादिमादी वा। नित्थगरपदमसीसा आदिग्गहणेण गहिता वा ॥७॥ सा दुह देसे सजे देसम्मी एगदेसमादीया। जं वयनि सबदोसे सवेसि बाबि सक्वेसो ॥८॥ तित्थकर संघ वा देसेणं वावि अहब सवेणं। आसाएन्ते चरिमं सेसेसु चतुगुरू देसे ॥९॥ सवे वाऽऽसाएन्नो पावनि पारंचितं तु सो ठाणं। एत्थं पुण सचरित्ती देसे सो य (२६५) १०६ जीनकन्पभाष्य - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अचरित्ती ॥२५७०॥ नित्यगरपढमसीसं एकवी सादयंतो पारंची। अत्थस्सेव जिणिंदो पभवो सुत्तस्स सो जेणं ॥१॥ आसायणपारंची एमेसो वण्णितो समासेणं । पडिसेवणपारंची एत्तो वोच्छं समासेणं ॥२॥ जो व सलिंगे वुट्ठो कसायविसएहिं रायवहओ य। रायग्गमहिसिपडिसेवओ य बहुसो पगासो य॥मू० ९५॥३॥ पडिसेवणपारंची तिविहेसो वण्णिओ तु सुत्तम्मि । दुवादीहिं पदेहि समासओ हं पक्क्खामि ॥४॥ दुट्ठो य पमत्तो या अण्णोण्णासेवणापसत्तो उ। एतेसि विभागं तू वोच्छामि जहकमेणेव ॥५॥ दुविहो य होति दुट्टो कसायदुट्ठो य विसयदुट्ठो य। दुविहो कसायदुट्ठो सपक्खपरपक्वचतुभंगो ॥६॥ सासवणाले मुहणंतए य उलुगच्छि सिहरिणी चेव । एते सपक्खदुट्ठा एतेसि परुवणा इणमो ॥७॥ सासवणाले लटुं गुरु छंदिय खद्य सबितर कोहो । खामण अणुवसमन्ते गणिं ठवेत्तऽण्णहिं परिण्णा ॥८॥ पुच्छंतमणक्साए सोधपुण्णयों गंतु कत्थ से सरीरं?। गुरु पुचकहित दाइय पडियरणं दन्तभंजणया ॥९॥ मुहर्णतयमालोयण आणियमुक्कोस गहित गुरुणा य। कुविएण णिसी गंतुं गलए लहजो य पासुत्तो ॥२५८०॥ सम्मूदेणियरेणवि गलए लइओ उ तो मता दोऽवि। अण्णो पुण सिवंती अत्यमिए गुरूहि अह भणितो ॥१॥ अत्यमियम्मिवि सिबसि उलुगसरिच्छच्छि तो बदे रुसितो। तुह उक्खणामि अच्छी खामिजतोऽवि णवि पसिए ॥२॥ तो ठविय गणिं गच्छे भत्तपरिणं करेति अण्णगणे। जह पढमो णवरि इहं उलुअच्छीउत्ति ढोंकेति ॥३॥ अवरोवि सिहिरिणीए छंदिय सचाइयंतो उम्गिरणा । तत्येव तू परिण्णा ण गच्छती णवर अण्णस्थ ॥ ४॥ जम्हा एते दोसा तम्हा णवि गेण्हियचयं गुरुणा। एगस्सेव तु सचं अण्णायायारसीलस्स ॥५॥ गहणम्मि विही इणमो जति गहिया मत्तगा FI सोहिं । तेसि णिमंतेन्ताणं अलाहि पजन्तमो पंति ॥६॥ णिबन्धे थोक्यो सवेसिं गेहए ण एगस्साससिपिण गेण्डति बितियाएसेण गहियपि ॥ ७॥ गरुभत्तिमं जो य मणाण कूलो, सो गिण्हति णिस्समणिस्सयो वा। तस्सेव सो गेण्हति णेतरेसिं, अलग्भगाणम्मि व थोष थोचं ॥८॥ सति लाभम्मिए गेहति इतरेसिं जाणितृण णिबंध। मुंचति य साबसेसं | जाणति उवयारभणियं च ॥९॥ गुरुसंसठुवरियं वालादसतीए मण्डलिं जाति। जो अण्णायारमत्तग गिलाणभुत्तुचरिततेऽवि ॥ २५९० ।। सेसाणं संस? न छुम्भई मंडलीपडिग्गहए। पत्ते गहितं छुब्भइ उम्भासण लंभ मोतूर्ण ॥१॥ पाहुणगट्ठा व तयं घरेतु अवि वाइडं विगिचंति। णवि भुंजण विहि अविही गह इति गहणेण दोसेते ॥२॥ एते सपक्खदुट्ठा परपक्खें 2 उदायिमारगादीया। परपक्खसपक्खम्मि य पालकादी मुणेतवा ॥३॥ पालको तु पुरोहितों संदगपमुहाण जेण पंच सया। पुधि विराहियेणं जते पीलाविता जतिणो॥४॥मुणिसुब्बय तित्थम्मी वाएण परातिओ स पुष्विं तु । खंदगरण्णो ताहे पावो स पओसमावष्णो॥५॥ परपक्खो परपक्ले रायादी अभिमरा जहा केति। वहपरिणया व वगा भणिता चत्तारि बुद्वेते PA॥६॥ एतेसि चतुण्हंपी पच्छित्तमहाविहिं पवक्खामि । जे सासवणालादी लिंगविवेगो भवे तेसि ॥७॥ जोऽवि सपक्खो रायादियाण पहपरिणओ व बहगो वा। सो लिंगतों पारंची जोऽवि य परिवड्ढए तं तु ॥८॥सण्णी व असणी वा जो परपक्खे सपक्खें बुट्टो तु। तस्स णिसिद्धं लिंग अइसेसी वाबि से देजा ॥९॥ परपक्खो परपक्से रायमादीपबुट्ठों जोऽवि P भवे। तस्स सदेसे ण कप्पति कप्पड अण्णम्मि उपसंते ॥२६००॥ एसो कसायदुट्टो विसयपदुई इदाणि वोच्छामि। तस्सवि सएक्सपरपक्खओ य चतुभंगों तह चेच ॥१॥ संजति कप्पठि पढमो सेजातरि अण्णतिथिणी बीओ। परपक्खे संजतीए उभयपरो होति उ चतुत्यो॥२॥लिंगेण लिंगिणीए संपत्ति जति णिगच्छती पावो । णिरयाउगं णिबंधइ आसायण - ओ अबोही य ॥३॥ लिंगेण लिंगिणीए संपत्ति जो णिगच्छती पावो। सबजिणाणऽजातो संघो आसादितो तेणं ॥४॥ पावाणं पावयरो दठूण ण बद्दए हु(सु)साहूणं। जो जिणपुंगवमुई णमिऊण तमेव धरिसेति ॥५॥ संसारमणवयग जातिजरामरणवेयणापउरं। पावमलपडलछमा भमंति मुद्दाधरिसणेणं ॥ ६॥ एसो पदमगभंगो पारंचियमेत्य होति पच्छित । वितिय. गभंगम्मि तहा अणुवरयम्मी भवे चरिमं ॥ ७॥ जत्थुष्पजति दोसो कीरति पारंचिओ स तम्हा उ। सो पुण सेवि असेवी गीयमगीयो व एमेव ॥८॥ वसहि णिवेसण वाडग साही तह गाम देस रजू य। कुल गण संघे णिजूहणाएं पारंचिओ होति ॥९॥ उवसंतोऽवि समाणो वारिजति तेसु तेसु ठाणेसु । हंदि टु पुणोवि दोसं तवाणाऽऽसेवणा कुणति ॥२६१०॥ जेसु बिहरंति ताओ वारिजति णवर तेसु ठाणेसु। पढमगभंगे ताई सेसेसुवि ताई ठाणाई ॥१॥ इत्थं पुण अधिगारो पढमगभंगेण उभयदुद्रुण। उच्चारियसरिसाई सेसाई विकोवणट्ठाए॥२॥ इति एस अभिहिओ तू उभयपट्ठो य रायवहगो य। रायम्गमहिसिपडिसेवओ उ अहुणा इमो होति ॥३॥ रायस्स महादेवी अहवा जा जस्स होति इट्ठा तु । सा तस्स होति अग्गा अम्ग पहाणत्ति एगट्ठा ॥४॥ तं पडिसेवति जो तू पुणी पुणो होति बहुससहो उ। लोगपगासा अहवासा पावति चरिमठाणं तु॥५॥ चस्सहा अण्णाणांव जा इट्ठा साहुतार जुवरायादीआर्ण तेसिपि जहेव राइस्स ॥६॥ इयरमहिलामु चरिमं ण विजती कीस? एव चोएति। भण्णइ बहुआऽवाया इतरासुं अप्पणो वेव ॥७॥रायस्स अगमहिसीएँ अप्पणो कुल गणे वसंघे वा। पत्याराई दोसा पागतमहिलासु तस्सेव ॥८॥वतलोवों सरीरे वा दोसा णहु कुलगणादिपत्यारो। एतेण कारणेणं इतरासु ण होति चरिमपदं ॥९॥ बुढेसो पार्रची १०६१ जीतकल्पभाष्यं - Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भणितो अडुणा पमत्त वोच्छामि। सो कलुसविकहाविकडे इंदिय णिहा य पंचविहे ॥२६२०॥ कोहाति चउह कलुसा विकहा पुण इत्थिमादिया चउहा। पुश्वम्भासा वियडं इंदिय सो. यादिए पणगं ॥१॥ पोग्गल मोदग फरुसग दंते वडसालभंजणे चेव । थीणदीआहरणा बोच्छामि विभागमेतेसिं॥२॥ थीणद्धिमहादोसा अण्णोण्णासेवणापसत्तीय । चरिमट्ठाणाव. त्तिसु बहुसो य पसज्जए जो उ ॥ मू०९६॥३॥ जह उदअम्मि घए वा थीणम्मी णोवलब्भए किंचि । इदं चित्तं भण्णति तं थीणं तेण थीणद्धी ॥४॥ पिसितासि पुत्रमहियं विगिंचियं दिस्स तत्थ णिसि गंतुं । अण्णं हंतुं खायति उवस्सतं सेसयं णेति ॥५॥ मोदगभत्तमलढुं भंतु कवाडे घरस्स णिसि खाइ । भाणं च भरेतूणं आगओं आवासए वियडे ॥६॥ अवरोऽवि फरुसमुंडो मत्तियपिंडे व छिदिउं सीसे । एगन्ते पश्चिन्धति पासुत्ताणं वियडणा य॥७॥ अवरोवि धाडिओ मत्तहत्थिणा पुरकवाड भंतूणं । तस्सुक्खणित्तु दन्ते बसही बाहिं वियडणा तु॥८॥ उम्भामग वडसालेण घट्टिओ कोइ पुछ वणहत्थी। वडसालभंजणाऽऽणय उस्सग्गाऽऽलोयण पभाए ॥९॥ तस्सोदयकालम्मी हवती जं केसवस्स अवलं । णवि देति अणतिसेसी लिंग अवि केवली होज्जा ॥२६३०॥णातम्मि पण्णविज्जति मुय लिंग णत्थि तुज्झ चारितं । देसवय दंसणं वा गिण्हसु इच्छंते रमणिज्जं ॥१॥ अह णेच्छति तो संघो लिंग हरई ण हरति सि एगो। मा गच्छेज पदोसं छड्डेन्तऽसत्तीए पासुत्तं ॥२॥ णिहपमत्तो एसो पारंची लिंगतो समक्खातो। कुणमाण अण्णमण्णं पारंचीयं अतो वोच्छं॥३॥ करणं तु अण्णमण्णं समणाण ण कप्पती सुविहियाणं। किह करण अण्णमण्णं ? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥४॥ आसयपोसयसेवी केई पुरिसा दुबेदगा होन्ति । तेसिं लिंगविवेगो कानयो होति णियमेणं ॥५॥ चरिमं अंतं भण्णति तं पुण पारंचियंति णातनं । पारंचियावराहे पुणो पुणो सजए जो तु ॥६॥ थीणद्धिमादियाणं सोहि वोच्छं पुणोवि सक्वेसि । लिंगादीणं कमसो एत्थ इमा होति गाहाओ॥७॥ सो कीरति पारंची लिंगाओ खेत्त कालओ तवतो। संपागडपडिसेवी लिंगाओ थीणगिद्धी य॥ मू०९७॥८॥ वसहिणिवेसणवाडगसाहिणीओ य पुरदेसरजाओ। खेत्ताओ पारंची कुलगणसंघालयाओ वा ॥ मू०९८॥९॥ जत्थुप्पण्णो दोसो उपजिस्सति व जत्थ णाऊणं । तत्तो तत्तो कीरति खेत्ताओ खेत्तपारंची ॥ मू०९९॥ २६४०॥ जत्तियमेतं कालं तवसा पारंचियस्स उ स एव । कालो दुविगप्पस्सवि अणवटुप्पस्स जोऽभिहितो ॥मू०१००॥१॥ आसातण पडिसेवण दुह अणवट्ठम्मि जो भवे कालो। पारंचिएवि सो चेव होति उक्कोसग जहण्णो ॥२॥ पारंचिया उ एते तिणिवि सामण्णयो विणिहिट्ठा। एत्तो जो जारिसतो बिसेसमेतेसि बोच्छामि ॥३॥ दुढे य पमने या अण्णो - ण्णासेवणापसत्ते य। एतेसिं तिण्हंपी विसेसमेत्तो पवक्खामि ॥ ४ ॥ तहियं तु विसयदुट्ठो सपक्खपरपक्वतो व जो होजा। सो कीरति पारंची खेनेणं तू ण लिंगेणं ॥५॥ अणुवरमंतो र कीरति सेसो णियमेण लिंगपारंची। खेत्तेण य लिंगेण य पारंची अभिहिता एते॥६॥ किं एते चिय भेया पारंचीए उयाहु अण्णेऽवि?। भण्णनि नवपारंची अण्णोविहु केरिसो स खल? ॥ ७॥ इंदियपमायदोसा जो त् अवराहमुत्तमं पत्तो। सम्भावसमाउदो जइ य गुणा से इमे हॉति ॥८॥ वइरोसहसंघतणो धितीय जो पजकुड्डसामाणो । णवमम्स तनियवत्थु सुत्तउत्थेहिं च जोऽहीओ॥९॥ खुड्डगसीहतवादीहिं भावितो जो य इंदियकसाए। णिग्घेत्तूण समत्यो पवयणसारे अभिगतस्थो ॥२६५० ।। णिहितस्स असुभो निलतसमेनोवि जस्स - ण य भावो। णिजूहणाए अरिहो सेसे णिजूहणा णस्थि ॥१॥ एयगुणसंपउत्ता पावति पारंचियं तु सो ठाणं। एयगुणविप्पमुक्के तारिसयम्मी भये मूलं ॥२॥ पारंचियं तु पावति आसाएन्नो तहेव पडिसेवी। एकेको होति दुहा जहण्ण उकोसओ चेव ॥३॥ आसायणो जहण्णो छम्मामुक्कोस वारस तु मासा। वासं बारस वासा पडिसेवी कारणे भतिओ॥४॥ जति होजा आयरिओ तो गणणिक्खेवमित्तरं कातुं । गंतूर्ण अण्णगणं दधादि सुभे विगडणा तू ॥ ५॥ एगागी खेत्तबहिं कुणति तवं सुविपुलं महासत्तो । अवलोयणमायरिओ पतिदिणमेगो कुणति तस्स ।। मू०१०१॥६॥ ओलोयर्ण गवेसणमायरिओ कुणति णिच्चकालंपि। खेत्तबहिचिट्टियस्सा इमेण विहिणा पवक्खामि ॥७॥ उभयम्मि दातूण स पाडिपुच्छ, वो? सरीरस्स य वट्टमाणिं। आसासतित्ताण तवोकिलंतं, तमेव गच्छं पुणरेन्ति घेरा ॥८॥ असह सुत्तं दाउं दोवि अदाउं च गच्छति पदेवि । संघाडो से भत्तं पाणं वा णातिमम्गेणं ॥९॥ पारं. चियस्स तहियं ते वहमाणस्स होज गेलण्णं । ताहे से पडिकम्मं ताहे पयत्तेण काय ॥२६६०॥ आहरति भत्तपाणं उव्वत्तणमाइयंपि से कुणति। सतमेव गणाहिबई वेयावचं जहत्थामं ॥१॥ जो उ उवेहं कुजा आयरिओ केणती पमाएणं । आरोवण तस्स भवे गिलाणमुत्तम्मि जा भणिया॥२॥ अह पुण ण तरेज गुरू गंतुं गेलण्णमादिहिं तहियं । कालुण्हें दुबलो वा कुलादिकजेण वऽण्णेण ॥३॥ अभिसेयं तो पेसे अण्णं गीयं व जो तहिं जोग्गो। पुट्टो व अपुट्ठो वा सोवि यदीवेति तं कजं ॥४॥ सो य समत्यो होजा संपाडेतुमिहं तस्स कजस्स। खीरादिलद्धिजुत्तो विजादिगअतिसएहिं च ॥५॥ जाणता माहप्पं सतमेव गुरू वदति तं जोगं । अस्थि मम एत्थ विसतो अजाणए ते व सो पेति ॥ ६ ॥ अच्छउ महाणुभावो जहासुहं गुणसयागरो संघो। गुरुयपि इमं कजं में पाप भविस्सए लहुयं ॥७॥ अभिहाणहेतुकुसलो बहुसु अणिराइओ विदुसभासु। गंतुण रायभवणं भणाइमं रायदारि? ॥८॥पडिहाररूवी! १०६२ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण रायरूवी, तमिच्छर संजतरूवि दटुं। णिक्यतिताण स पत्थिवस्स, जहिं णिवो तत्थ तयं पवेसे // 9 // तं पूयतित्ताण सुहासणत्थं, पुच्छिसुराया गतकोउहल्लो। पण्हे उराले असुए कयाई. स यावि आइक्वति पत्यिवस्स // 2670 // जारिसया सक्कादीण आयरक्खा ण तारिसो एसो। तुह राय ! दारपालो तंपिय चकीण पडिरूवी // 1 // अट्ठारससीलसहस्सधारया बाहोन्ति साहुणो अयं / तं पति पडिरूवित्तं अतियारणिसेवणा पत्तो ॥२॥णिजूढो मि णरीसर ! खेत्तेवि जतीण अच्छितु ण लभे / अतियारस्स विसोहिं पकरेमि पमायमूलस्स // 3 // घम्मकहा आतुट्टण पुच्छणं दीवणा य कजस्स। किं पुण हवेज कजं? इमेहिं होजाहि एगतरं // 4 // वायपरायणकुविओ चेतियता संजतीगहणे। णिविसयादि चतुण्हवि कजाण हवेज एगतरं // 5 // संघो ण लभति कजं लद्धं कजं महाणुभावेणं / तुम्भंति विसजेमी सेविय संघोत्ति पृएति // 6 // भणति य राया संघं तुम्भं कर्ज करेमि अहमेयं / तुम्भेऽवि कुणह मनं एयस्सेयं विसजेह // 7 // अभत्थितो सयं वा रण्णा संघो विसजए तुट्ठो। आदीमाऽवसाणे सो यावि हवेज सोहीए॥८॥ देसं व देसदेसं सई व बहेज अहव मुञ्चेजा। छभागो से देसो दसभागो देसदेसो तु॥९॥ छम्मासवारवारसमासाणं वारसण्ह य समाणं / एके दो दा मासा चउवीसा होति उम्भागो // 2680 // अट्ठारस छत्तीसा दिवसा छत्तीस. मेव वरिसं च / बावत्तरिं च दिवसा दसभागेणं हवेजा वा // 1 // आसायणपारंची जहण्ण छम्मास मासों छम्भागो। छम्भागेण वरिसे दो मासा हुंति णातबा // 2 // पडिसेवणपारंची वरिसे दो मास होन्ति छब्भागे। वरिसाण वारसण्हं मासा चतुवीस छम्भागे // 3 // दसभागेणऽट्ठारस दिवसा छष्हं हवंति मासाणं / बरिसस्स तु वसभागे दिवसा छत्तीसई हाँति // 4 // वरिसाण बारसहं वरिसं बावत्तरि चव्होरत्ता / दसभागेण हवंति हु एसो खलु देसदेसो तु॥५॥ एवं तस्स तु संघो तुट्ठो देसं व देसदेसं वा। मुंचेज वहेज्जा वा अहवा सचं व प्रोसेजा // 6 // अहव अगीयणिमित्तं अप्परिणामे य तस्स ववहारं। णवविह पत्थारेत्ता गेष्हसु एवं लहुसभत्तं // 7 // हत्यं तु भमाडेतुं दरिसेतुं णवविहंपि ववहारं। ताहे भण्णति एवं सो गेण्हसु लहुसयं एयं // 8 // अणवट्ठप्पो तवसा तवपारंची य दोऽवि वोच्छिण्णा। चोहसपुषधरम्मी धरेंति सेसा तु जा तित्थं // मू०१०२॥९॥ पारंचिय अणवट्ठा तवसा आरेण भहबाहुओ। वोच्छिण्णा दो तेसि सेसा तु धरति जा तित्यं // 2690 // लिंगेण खेत्त काले घरेन्ति पारंचियाऽणवट्ठा जे। लिंगेणं अणुसजति दवे भावे य जा तित्यं // 1 // इति एस जीतकप्पो समासतो सुविहिताणुकंपाए। कहितो देयोऽयं पुण पत्तेसु परिच्छियगुणेसु // म०१०३॥२॥ इति एस अणंतरतो उहिट्ठो होति जीतकप्पो तु। जीतं आयरणिज कप्पो पुण छविहो इणमो॥३॥ आजीवियधरणाओ व अहब जीतं इमं मुणेया / जीतस्स तस्स कप्पो एत्यं जो जीतकप्पो सो॥४॥ सामत्ये वण्णणाए य, छेदणे करणे तहा। ओवम्मे आहिवासे य, कप्पसहो तु वण्णितो // 5 // छेदणे वनणे चेव, कप्पसहो इहं कतो। जीयस्स वण्णणा जीतकप्पो तह छेदणं चेव // 6 // एयस्स जीयकप्पस्स समासो इति इहं मुणेतहो। संखेवो य समासो ओहोत्ति व होन्ति एगट्ठा // 7 // सोभणविही तु जेसिं सोभणविहिता व सुविहिता ते तु / तेसिं अणुकंपाए कहितो देयो य पत्तेसु // 8 // सुत्तेणवि अत्येणवि जो पत्तो स खल जीयकप्पस्स। जोग्गो भणितो इयरो होति अजोगोत्ति णातबो॥९॥ पुणसहो तु विसेसणे किन्नु विसेसेति? तिन्तिणादीयं। एते तु बिसेसेती विवरीया होन्ति पत्ता तु॥२७००। संविग्गऽवजभीरू परिणामो जो य होति गीयत्यो। आयरियवष्णवादी संगहसीलो अपरितन्तो॥१॥ मेहावी य बहुसुतो गुरुअमुयी णिचमप्पमत्तो य। एमादिगुणसमग्गो जीतस्स स होति पत्तोत्ति ॥२॥जह तावछेजणिहसे अविकोवि सुवण्णयं मुणेतवं। तह अविकारी जो खलु आदी मज्झे य अवसाणे // 3 // एवं देजा सुपरिक्खियस्स णऽअस्स जीतववहार। अणरिह देन्ताऽऽरोवण आणादी जंच पाविहिती॥४॥ पंचमहायभेदो छक्कायवहो य तेणऽणुण्णाओ। सुहसीलणीयगाणं कहयति जो। ईतरहस्सं अप्पाहारं विणासेति // 6 // मरेज सह विजाए, काले णं आगए विदु। अपत्तं तु ण वाएजा, पत्तं च ण विमाणए // 7 // वितियपए वाएजा अदाणादीहि कारणजाए। बहुसो तप्पिस्सति वा वेयावच्चादिणा अम्हें // 8 // अप्पग्गंय महत्यो इति एसो वण्णिओ समासेणं / पंचमतो ववहारो नामेण जीयकप्पोति // 9 // कप्पववहाराणं उदहिसरिच्छाण तह णिसीहस्स ।सुतरतणविन्दुणवणीतभूतसारेस णातयो॥२७१०॥ कप्पादीए तिष्णिवि जो सुत्तत्येहिंणाहिती णितुणं / णिगदिस्सति सो एयं सीसपसीसाण ण हुअण्णो॥२७११॥ जीतकल्पच्छेदसूत्रसभाष्यं५,बीरविभोः२४६८ उपसिद्धादि शिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममन्दिरे शिलायामुत्कीर्ण शोधितं चाचार्यानन्दसागरेण मुनि दीपरनसागर 1063 जीतकल्पभाष्यं -