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'कयपवयणपणामो वृच्छं पच्छित्तदाणसंखेवं जीयव्यवहारगयं जीवस्स विसोहणं परमं ॥ मूलं १ ॥ १ ॥ पवयण दुवालसंग सामाइयमाइ विं(सभाष्यं) श्रीजीतकल्पसूत्रम् - दुसारंतं । अव चडविहसंघो जत्थेव पट्टियं नाणं ॥२॥ अहवा पाय पसत्यं पहाण वयणं व पवयणं तेण अहव पवत्तयतीई नाणाई पवणं
ते ॥ ३ ॥ जीवाइपयत्था वा उवदंसिजति जत्य संपुण्णा सो उवएसो पचयण तम्मि करेत्ता णमोकारं ॥४॥ वोच्छं वक्खामित्ती पच्छित्तं दसह एय उवरिं तु । वण्णेहामि सवित्थर किं भणियं होति पच्छन्तं ? ॥ ५ ॥ पावं छिंदति जम्हा पायच्छित्तंति भण्णते तेणं पायेण वावि चित्तं सोहयई तेण पच्छितं ॥६॥ पणगादी आवत्ती णिडिगइअमादि एत्थ दाणं तु। संखेव समासोनि व ओहोति व होंति एगट्ठा ॥ ७ ॥ किं अत्थी अण्णेऽवी ववहारा जेण जीतग्रहणं तु? । भण्णति चउरत्थऽण्णे आगममादी इमे सुणसु ॥८॥ पंचविहो ववहारो दुग्गइभवमूरएहि पन्नत्तो । आगम सुय आणा धारणा य जीए य पंचमए ॥ ९ ॥ आगमओ बवहारो सुणह जहा धीरपुरिसपण्णत्तो। पञ्चक्खो य परोक्खो सोविह दुविहो मुणेयवो ॥ १० ॥ पञ्चक्रवोऽवि य दुविहो इंदियजो चेव नोयइंदियजो इंदियपञ्चक्खोऽवि य पंचसु विसएसु णायवो ॥ १ ॥ जीवो अक्खो तं पति जं वहइ तं तु होति पञ्चक्खं । परओ पुण अक्खस्सा व (चं) तं होइ पारोक्खं ॥ २ ॥ ' असु बावणे' उ धाऊ अक्खो जीवो उ भण्णए नियमा जं वावयए भावे णाणेणं तेण अक्खोत्ति ॥ ३ ॥ ' अस भोयणम्मि' अहवा सवदवाणि भोगमेतस्स । आगच्छंती जम्हा पालेड य तेण अक्खोत्ति ॥ ४ ॥ केसिंचि इंदियाई अक्खाई तदुवलद्धि पच्चक्खं तं तु ण जुज्जति जम्हा अम्गाहगमिदियं विसाए ॥ ५ ॥ रूवादीविसयाणं जीवो खलु इंदिएहि उबलभगो । जम्हा म (ग)तम्मि जीवे ण इंदिया उवलभे विसयं ॥ ६ ॥ तम्हा विसयाणं खलु अग्गाहगमिंदियं भवइ सिद्धं । जं इंदिएहि नज्जइ तं नाणं लिंगियं होइ ॥ ७ ॥ लिंग चिंध नि. मित्तं कारणमेगट्टियाइँ एयाई जाणाइ इंदिएहिं जीवो धूमेण अरिंग व ॥ ८ ॥ एवं खु इंदिएहिं जं नजर लिंगियं तयं नाणं तम्हा सिद्धं अक्खो न इंदिया पंच सोयाई ॥ ९ ॥ एत पगाभिहितं जह कण्डुइ इंदियाई पच्चक्खं अहुणा उ इंदिएहिं गातृणं ववहरे इणमो ॥२०॥ सोइंदिएण सोउं तस्स व अण्णस्स बावि पडिसेवं चक्खिदिएण दठ्ठे पडिसेविनंतमणयारं ॥ १ ॥ धूवादि गंधवासे मूर्तिगलियादियं व उद्यवियं कंदाइ व खज्जंतं गंधोवि रसोवि तत्येव ॥ २ ॥ फासेणऽम्भङ्गियमादि फासतो अप्पगासि णाऊणं इंदियपञ्चक्रखेणं इय णाऊणं ववहति ॥ ३ ॥ णोइंदियपचक्खो ववहारो सो समासतो तिविहो। ओहि मणपज्जवे या केवलणाणे य पञ्चक्खो ॥ ४ ॥ अच्छउ ता ववहारो ओहीमादीण लक्खणं तिष्हं । संखेवओ उ एयं अस्मुन्नत्थं इमं वोच्छं ॥ ५ ॥ तत्थोहिणाण पढमं सामित्ताकमविसुद्धिओ होइ तो तं वोच्छ बहुविहं केत्तिय भेया भवे तस्स ? ॥ ६ ॥ संखादीआओ खलु ओहीनाणस्स सङ्घपयडीओ। काई भवपचडया खओवसमिया य कायोऽवि ॥ ७ ॥ किह संखातीयाओ पगडी ओहिस्स ? भण्णए जम्हा अंगुलअसंखभागा आरम्भ पएसवढीए ॥ ८ ॥ उक्कोसेणमसंखा जा लोगा होंति खेत्तमाणेणं। काले वाऽऽवलियाए असंखभागाउ आरम्भ ॥ ९ ॥ समउत्तरखढीए उकोसेणं असंख जाव भवे। ओसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयपमाणा भवे पगडी ॥ ३० ॥ इय होंति असंखाओ ओहिष्णाणस्स सक्षपगडीओ। संखातीतग्गहणा न केवलं होंतिऽसंखेज्जा ॥ १ ॥ ता होंति अणंताओ पोग्गलकायत्थिकायमहिकिच्च । संखातीतंति ततोऽसंख अनंता य गहिया हु ॥ २ ॥ सो पुण ओही दुविहो भवपञ्चद्दयो खओवसमिओ य देवाण णारयाण य नियमा भवपच्चयो ओही ॥ ३ ॥ उप्पजमाणओ खलु भवपञ्चइओहि जत्तियो विसओ। स तं ओभासति ण उ वढी शेव हाणी उ ॥ ४ ॥ गुणपञ्चइयो ओही गन्भजमणुतिरिय संखमाऊणं । कम्माण वयोवसमे तयवरणिजाण उपजे ॥ ५ ॥ अवही मज्जायत्थो परिमितदक्षं तु जाणते जे (नू) णं मुत्तिमदवे विसयो ण खलु अरूवीस दवेसु ॥ ६ ॥ अचंतमणुवलदा ओहीणाणस्स हाँति पञ्चक्खा। ओहीणाणपरिणया दशा असमत्थपजाया ॥ ७ ॥ तं पुण ओहीणाणं समासतो छविहं इमं होइ अणुगामि अणणुगामी वढतय हीयमाणं च ॥ ८ ॥ पडिवाति अपडिवाती छविहमेवं तु होति विज्ञेयं अणुगामिओ उ दुविहो अंतगतो चैव मज्झगतो ॥ ९॥ अंतगतोऽवि य तिविहो पुरतो तह मग्गतो य पासगओ पुरतो पुण अंतगतं इमं तु वोच्छ्रं समासेणं ॥ ४० ॥ जह कोई तु मणुस्सो उक्कं वृडुलिं व दीव मणि वाऽऽदी। काउं पुरओ गच्छइ पलयंतो व जह पुरिसो ॥ १ ॥ भग्गत अंतगतो ऊ तह चैव य णवरि मग्गतो काउं। अणुकड्ढमाणु गच्छति अंतगतो मग्गतो एस ॥ २ ॥ पासगततगतो ऊ चुडुलादि तहेव जाव तु मणि तु परिकइढमाण गच्छति अंतगतं एतमिह भूणितं ॥ ३ ॥ जो से किं मज्झगतो ? जह पुरिसो (पुरिसो जो ) कोड चुडुलिमादीणि । १०१० जीतकल्पभाष्य * जासूत्र मूल पर्यंत भाष्य पहा है, मात्र मूलसूत्र ना
मुनि दीपरत्नसागर