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कातुं सिरम्मि गच्छति मज्झगतो एस ओही उ ॥ ४ ॥ मज्झगतऽंतगयस्स य ओहिण्णाणस्स को पइविसेसो ? पुरतो अंतगएणं जोयण संखेजऽसंखा वा ॥ ५ ॥ पुरतो जाणति पासति एस विसेसो उ मज्झअंतगओ। एवं तु मग्गतोही पासगतो चेव बोद्धशे ॥ ६ ॥ अणुगामिओ उ ओही एमेसो वण्णितो समासेणं । एत्तो उ अणणुगामी ओहिण्णाणं इमाऽऽहंसु ॥ ७ ॥ जह णाम कोइ पुरिसो एग महं अगणिठाण काउं जे तस्सेव व पेरंते परिघोलण हिंडमाणो तु ॥८॥ तं चैव अगणिठाणं तत्व गतो पासती ण अण्णत्थ एवं जत्युप्पजइ तत्य ठितो जाण पासइवि ॥ ९ ॥ णवि जाणइ अण्णत्या संखमसंखे उ जोयणे जो उ। ओही तु अणणुगामी समासतो एसमक्खातो ॥ ५० ॥ अज्झवसाणेहिं पसत्थाएहिं सुवद्धमाणचा रित्ते । उवरुवरिं सुज्झते समंततो वड्ढए ओही ॥ १ ॥ तत्व जहण्णादी तू जाव उ उक्कोस ओहिणाणं तु । वढते परिणामे गाहाहिं इमं तु वोच्छामि ॥ २ ॥ जाबतिया तिसमयाहारगस्त सुहुमस्स पणगजीवस्स ओगाहणा जहण्णा ओहीखेत्तं जहणं तु ॥ ३ ॥ सङ्घबहुअगणिजीवा निरंतरं जत्तियं भरेजंसु । खेत्तं सवदिसागं परमोही खेत्त विदिट्ठो ॥ ४ ॥ अंगुल - मावलियाणं भागमसंखेज दोस्रु संखेजा। अंगुलमाबलियतो आवलिया अंगुलपुहतं ॥ ५ ॥ इत्यम्मि मुद्दतो दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धवो जोयण दिवसपुडुतं पक्खतो पण्णवीसाए ॥ ६ ॥ भरहम्मि अदमासो जंबुद्दीवे य साहिओ मासो। वासं तु मणुयलोए बासपुहुत्तं च रूपगम्मि ॥ ७ ॥ संखेजम्मि उ काले दीवसमुद्दा उ होंति संखेजा। कालम्मि असंखेजे दीवसमुदावि भइया ॥ ८ ॥ काले चउण्ड वुड्ढी कालो भइयों खेत्तवुइटीए । वुड्ढीऍ दशपजब भजितश खेत्तकाला उ ॥ ९ ॥ सुडुमो य होति कालो तत्तो मुहमयस्यं हवति खेत्तं । अंगुलीमेने ओसप्पिणीओ असंखेजा ॥ ६० ॥ तिसमयहारादीणं गाहाणऽट्टण्ट वा सरूवं तु । वित्यरयो वण्णेज्जा जह हेट्ठाऽऽवस्सए भणियं ॥ १ ॥ एवं तु वइढमाणो ओही उ समासओ समक्खाओ। एत परिहार्यतं ओहीणाणं इमं होति ॥ २ ॥ अज्झवसाठाणेहिं अप्पसत्येहिं वट्टमाण चारिते। संकिस्समाण चित्ते समंततो हायते ओही ॥३॥ पडिवयमाणो ओही अंगुलभागं तु संखसंखं वा। अंगुलमेव पुडुत्तं हृत्य धणू जोअणे तह य ॥ ४ ॥ जोअणसयं सहस्सं संखमसंखा व जाब लोगं तु (तं)। पासित्ताण पडेज्जा ओहीणाणेद पडिवाती ॥ ५ ॥ से कि अप्पडिवाति ओहिणाणं तु ? जो अलोगस्स आगासपएसं तू एगमवी पासती जाव ॥ ६ ॥ अस्संखेजायऽलोए पमाणमेत्ताइँ लोगखंडाई। जाणइ पासति य तहा खेत्तोही एसमक्खातो ॥ ७ ॥ एसो अप्पडिवादी ओही तु समासओ समक्खातो। सयंऽपेतं चउहा दयादि समासतो वोच्छं ॥ ८ ॥ रूवी दधे विसतो दडोही खेत्तत्तो इमाऽऽहंसु । अंगुलअसंभागं उक्कोसेणं इमं वोच्छं ॥ ९ ॥ असंखेज्जाइँ अलोगे पमाणमेत्ताइँ लोगखंडाई जाणइ पासति य तहा खेत्तोही एसमक्खातो ॥ ७० ॥ कालतो ओहिण्णाणी असंखभागं तु आव लीए । सवजहणणं जाणति पासति या सो उ नियमेणं ॥ १ ॥ उस्सप्पिणिओसप्पिणिकालमतीतं अणागतं चेत्र । उक्कोसेण विजाणति पासह या एस कालोही ॥ २ ॥ भावतो ओहि णाणी अनंत भावे अनंतभागं च । जाणति पासति य तहा भावोही एसमखातो ॥ ३ ॥ ओही भवपच्चतियो वयोवसमियो य वण्णिओ दुविहो। तस्स उ बहू विगप्पा दधे खेत्ते य कालादी ॥ ४ ॥ तं मणपज्जवणाणं दुविहं तु समासतो समक्खातं उज्जुमती विम (उ)लमती दशादि चउविहेकैकं ॥ ५ ॥ दवाओं उज्जुमती तू अणतपएसे अनंतखंधा ऊ जाणइ पासति ते चिय वितिमिरमुद्धे तु विउलमती ॥ ६ ॥ खेत्ततों उज्जुमती तुहेलोगे जाव रयणपुढवीए। जाणइ पासति उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डपयरे तु ॥ ७ ॥ एते चिय अन्महिते विउलतराए उ मुणइ पासति । सुद्ध वितिमिरतराए विउलमती उज्जुमतिणो उ ॥ ८ ॥ उज्जुमती उड्ढे ऊ जोतिसियाणं तु जाव सबुवरिं जाणइ पासइ ते च्चिय वितिमिरसुद्धे तु विउलमती ॥ ९ ॥ तिरितं उज्जुमती तु उदहिदुए तह य दीव अदहिए। पंचिंदियजीवाणं सण्णीपजत्तयाणं तु ॥ ८० ॥ भावे मणोगहगए सवे जाणइ मणिनमाणे तु । ते चैव य विमलयरे नितिमिरसुद्धे तु विलमती ॥ १ ॥ णवर विसेसो तु इमो अड्ढाइयअंगुलेहिं खेत्तं तु । तिरिउड्ढमहे अहितं वितिमिरसुद्धे तु विउलमती ॥ २ ॥ कालतों उज्जुमती तू जहण उकोसएवि पलियस भागमसंखेज्जइमं अतीत एस्से व कालदुए ॥ ३ ॥ जाणइ पासइ ते तू मणिजमाणे उ सणिजीवाणं ते चैव य विउलमती वितिमिरसुद्धे तु जाणइ उ ॥ ४ ॥ भावतों उज्जुमती ऊ अनंतभावे उ मुणति पासति य सवेसिं भावाणं ते णवरमणंतभागे उ ॥ ५ ॥ ते सधे विउलमती विसुद्धतर वितिमिरे तु भावतया । जाणति पासति य तहा मणपज्जवणाण चभेयं ॥ ६ ॥ तं मणपजवणाणं जेण विजानाति सष्णिजीवाणं ददतुं मणिजमाणे मणदशे माणसं भावं ॥ ७॥ जाणति पिहुजणोऽवि हु फुडमागारेहिं माणसं भावं । एसुवमा तस्स भवे मणदपगासिए अत्थे ॥ ८ ॥ मणपजवणाणं पुण जणमणपरिचिंतितत्यपागडणं माणुसखेत्तणिबद्धं गुणपञ्चतितं चरितवतो ॥ ९ ॥ उज्जुमती विउलमती जे वहंती सुतंगवी धीरा। मणपजवणाणत्थे जाणसु ववहारसोहिकरे ॥ ९० ॥ पंकसलिले पसाओ जह होति कमेण तह इमो जीवो। आवरणे झिजते विसुज्झती केवलं जाव ॥ १ ॥ केवल संभिण्णं तू लोगमलोगं तु पासती नियमा । तं णत्थि जंण पासति भूतं भयं भविस्सं च ॥ २ ॥ सवेहि जियपदेसेहिं, जुगवं जाणति पासई दंसणेण य णाणेणं, पईवो अम्भमस्स वा ॥ ३॥ अंबरे व कतो संतो, १०११ जीतकल्पभायं
मुनि दीपरत्नसागर
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