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सङ्घसंवरो णिज्जरा य अवसेस देसम्मि ॥ १ ॥ संवरविणिजराओ उभयमवी मोक्खकारणं होति मोक्खपहो हेतू कारणंति एते उ एगट्ठा ॥ २ ॥ एतेसिं दोन्हवि तू तवो पहो हेउ कारण होति । एतस्सवि पच्छित्तं पहाणमंगं मुणेतनं ॥ ३ ॥ जेण तवो बारसहा पच्छित्ते णिवतती तु दसभेदे। तेण पहाणं अंगं तवस्स तू होति पच्छित्तं ॥ ४ ॥ गाहापच्छदेणं तस्सवि जं भणिय जं च णाणस्स । र्णतरततिगाहाए सारे तू तं चिमं आह ॥५॥ सारो चरणं तस्सा निशणं चरणसाहणत्यं च पच्छित्तं तेण तयं मेयं मोक्खत्पिणाऽवस्सं ॥ मू० ३ ॥ ६ ॥ सामाइयमादीयं सुतणाणं बिंदुसारपज्जन्तं । तस्सवि सारो चरणं चरणस्सवि होति नेाणं ॥ ७ ॥ णेशणस्स अनंतर चरणं चरणा अनंतरं गाणं गाणविसुदीए पुण चारित्तविभुदया होति ॥ ८ ॥ चारितविसुद्धीए णेवाणफलं तु पावती अचिरा। सा पुण चरितसुद्धी पच्छित्ताहीण गाता ॥ ९ ॥ जन्हा एतेऽत्य गुणा पच्छिले वष्णिया तु सुत्तम्मि । तम्हा खलु गाय दसा मो क्खत्यिणा जहिमं ॥ ७२० ॥ तं दसविहमालोयणपडिकमणोमयविवेगबोसम्मा। तबच्छेदमूलअणवद्वया य पारंचियं चैव ॥ मृ० ४ ॥ १ ॥ आलोयन अरिहंती जा मजाज लोयणा गुरुसगासे।जं पाव विगडिएणं सुज्झति पच्छित्त पढमेयं ॥ २ ॥ मिच्छादुकडमेतेन चैव जं सुज्झती तु पावं तु । ण य विगडिजति गुरुवो परिक्रमणरिहं इवति एवं ॥ ३ ॥ जद्द तु अणाभोगेणं खेलादी णिसिरितं तु होजाहि हिंसाइए य दोसे न य आवण्यो तु किंचिदवि ॥ ४ ॥ जं पाव सेवितृणं गुरुबो विगडिजती उ सम्मं तु गुरुसंदि पडिकम तदुभयमेतं मुणेतां ॥ ५ ॥ जंकिंचि दक्ष गहितं अहिकं अप्पं व अहब ऊणं तु विहिणा तु विचिन्ते पच्छित विवेगअरिहेदं ॥ ६ ॥ जंकायचेमेसेज निरोहेनं तु सुज्झती पावं जह दुस्सिमिष्णादीयं पच्छिले वियोसग्गं ॥ ७॥ णिडीतियमादीओ उम्मासंतो उ जत्य दिजइ तु। एय तयारिह भणितं इदानि छेदारिहं बोच् ॥ ८ ॥ जेन पडिसेषिएवं सिाइ जस्स पुत्रपरियाओ । तसियमेतं छिज्जइ सेसगपरियायरक्खट्ठा ॥ ९ ॥ जम्मि पडिसेवियम्भी सहं छेतून पुत्रपरियायं । पुणरषि महायाई आरोविजंति मूलरिहे ॥ ७३० ॥ जम्मि पडिसेवियम्मी जणपट्टो कंचि काल कीर तु । मूलवाए पंचसु चिण्णतवो पच्छ होतॄणं ॥ १ ॥ तदोसोवस्यस्स उ महश्यारुवण कीरती तस्स अनबटुप्पो एसो एसो पारंचियं वोच्छं ॥ २ ॥ अंचु गतीपूजनयो पारंचह गच्छती तु पारं तु । तवमादीण कमसो सो लिंगादीहिं चतुधा तु ॥३॥ आलोयणमादीनं वसन्ह वा एस होति पिंडत्यो सहाणे सहाणे विभागतो इनमो वोच्छामि ॥४॥ करणिजा जे जोगा तेषयुक्तस्स णिरतियारस्स छउमत्यस्स विसोही जइयो आलोयणा अभिया॥ ०५ ॥ ५॥ के पुन करनिज्जा ? जे तित्यंकरगणहोवइद्वा उ सुतानुसारओ तू संजम दुक्खक्खया हेऊ ॥ ६ ॥ जेतिय जे गिरिट्ठा जुजि जोगे कातमादिजा तिष्णि । जं जीवे जुंजयती पेरमती वा ततो जोगा ॥ ७ ॥ संस्लेक्यो उ एते मुहपुत्तियमादि जाय उस्सग्गो दियरायो (इ)समायारी जा जहियं वृत्त सुत्तम्मि ॥ ८ ॥ ते तु जया उवउत्तो असक्त करे निरतियारो य तदजालोयणमेरोण चेव सुद्धी तु छद्मस्स ॥ ९ ॥ छउ कम्मं मग गाणावरणं च दसगावरणं । मोहणिय अंतरायं चउहिं होति जायहं ॥ ७४०॥ ते तु जया करणिजे उपयुक्तों करेति णिरतियारो य जणु तत्य का व सुदी १ का व असुदी १ चोएति ॥ १ ॥ गुरुराह तत्य चेट्ठा जा किरिया सुडुमे आसवेसुं वा। अब पमाया सुहुमा अतियार न जाणती छतुमो ॥ २ ॥ ते अइयारा सुदुमा आलोइयमेत्तया विसुज्झति । सा आलोयण चोयग करणिजा तीसु जोगेसु ॥ ३ ॥ को कारयो ? जती तू जइ साहु मयत्तियो विनिदियो। पंचम गाइ समता गाई छई इमं वोच्छं ॥ ४॥ आहाराईगहने तह बहियाणिग्गमेसु नेगेसु उच्चारविहारावणिचेइयजइवंदणादीसुं ॥ मू० ६ ॥ ५॥ आहारो जेसि आदी सो चउद्दा होइमो उ आहारो भसं पाणं लाइम सादिम होती चउत्यं तु ॥ ६ ॥ आदिग्गहणेणं पुण सेजासंचारंवत्थपायट्टा । पाउंछणअट्ठा वा ओहोष उम्गड्डा वा ॥ ७॥ अहब गिलाणस्सट्टा आयरिए बाल बुद्ध समाए था। दुम्बल सेहे व महोदरे व आदेसअट्टा वा ॥ ८ ॥ एतेसिं पाउ आहारो अहव होज सेज्जादी । ओसहमेसजाणि य एमादी होज अट्ठो उ ॥ ९ ॥ एतेसिं अट्ठाए गुरु पुच्छिता गुरूनगुनाओ। सुत्तानुसारओ तू उपयुक्त विद्वीय चेत्तृणं ॥ ७५०॥ आलोएती गुरुणी जं जह गहियं तु भत्तमादीयं । सुत्ताणुसारतो तू आलोयणमेत्तयो मुदो ॥ १ ॥ सीसाह जई एवं विहिगहनं होति एवऽसुद्धं तु। तो गहणमेव सवं आहारादीण मा कुणउ ॥ २ ॥ योग ! जदि एवं तु संजमजोगा उ होति संपुष्णा आहारमाइयाणं को नाम परिम्गई कुजा १ ॥ ३ ॥ अन्नं च इमो दोसो अग्गहणा पावती महंतो उ आयरियादी चत्ता जाणादीगं च वोच्छेदो ॥ ४ ॥ तम्हा अवस्सगग्रहणं आहारादीण होत विहिणा उ आहाराईगहने एगो पादो समतेसो ॥ ५ ॥ णिग्गम गुरुमुलाओ सेजाओ वा हवेज णिग्गमणं से य अगाणिग्गम कुलादिया इणमु षोच्छामि ॥ ६ ॥ कुलगणसंधे चेइय तहबविणासने दुविमेदे। एतेसि निवारणया गुरुमूल करेज निम्गमणं ॥ ७ ॥ संचारादीण अहवा अप्पिनणत्या उ पाडिहारीणं । निग्गमो गुरुमूलाओ वसहीओ वा करेजाहि ॥ ८ ॥ गाह्रापच्छदेणं जं मणितुकार अवचिसो तु। अवणी भूमी भण्णति तेण उ उच्चारभूमीउ ॥ ९ ॥ सज्झायविहारो तु अवणीसहिओ विहारभूमी उ। चेइयर्वदणहे गच्छे आसन्न दूरं वा ॥ ७६० ॥ आयरिया तु अपुषा अहवा साडू अतीव संधिम्या बंदणसंसयहेतुं गच्छे खासच दूरं वा ॥ १॥ आदीगहणेणं पुण सड्ढा सण्णाय अङ्गुव ओसण्णा। दंसणगाहण निक्खम्मणं च ओसण्णउच्छणा ॥२॥ एतेहिं व कजेहिं गुरुमूला णिग्गमो उ साहूणं । गाहा छद्ध समत्ता अरुणा पुण (२५६) १०२४ जीतकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर
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