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________________ गाणे सुत्तत्याणं असंथरासेपने सुबो॥४॥करने एसपदोसा इत्पीडोसा य जत्य खेत्तम्मि । तत्तो विनिक्समंतो जे सेवेऽसंथरे सुद्धो ॥५॥ महावि सर्व काहं कए विगिढेऽविलागतरजाती। अभिवायणा पश्यने विष्णुस्स विडवणा व॥६॥ इयिंग सोहहस्सं सुनिमित्त किरिया उरीयाए। लित्तादि बीय ताया अहवावि इमं तु तइयाए ॥७॥ अज्ञाणक. प्पडणेसी अणे पसिनारिकारणेहितासकियमाई गिर जयणाए पत्य सुखो तु आयाणे बलत्यो पमजमानेहि अण्णाहिं जाइ। पापि तस्स अड्डा ओसह किंची करेजाहि ॥९॥ पंचमिएँ काइमूमादिधमाणे उबारमे किंचि। विगादि मणबगुस्से महकाए लित्तवित्ताबी॥६१०॥ बाछो असिहमुंडो पित्यारिजों जह तु अजवारेहिं। कुलगणसंचे अमिचारुगादि राया कुना ॥१॥ वायरिब असहुजवरा बाले बुढे यजेच तु समाही। जाबितृण देन्ती पणगादीहिंतु जयणाए॥२॥णिपदिक्खियादि असहू बालो वइरोध दिक्खितो को। बुड्ढोषी कजम्मी जह दिक्खितो रक्सियजेहिं ॥३॥ उदयमिगचोरसाक्यमएस यमणि पाण रुक्खे वा । कतारे पलंगादी दशादी जावई चउहा ॥४॥ कोई तु वियरवसणी गोजमादी वावि होज मिक्खंतो। जयणाएँ वियङगहणं गाएजब गीतवसणी उ ॥५॥ एयअन्णयरागाढे सदसणे णाणचरण सालंयो। पडिसेविड कयादी होति पसत्यो पसत्येसु ॥६॥ एसा कप्पियसेवा पउवीसविहा समासतो कहिता। बहुणा उचारणा तू इनमो वोच्छ समासेणं ॥७॥ ठावेत्तु वप्पकप्पे हेवा वपस्स बस पवे ठाये। कप्पाहो बाउबीसाइ तेसिमह अट्ठारस पवा उ ॥८॥ पढमस्स य कजस्सा पढमेण पवेण सेवितं होजा। पढमे सके अम्मितरं तु पढम भये ठाणं ॥९॥ पढमस्स य कजस्सा परमेण पदेण सेवितं होगा। पढमे रुके अमितर तुइय जाब णिसिमत्तं ॥ ६२०॥ पढमस्स यकजस्सा परमेण पवेज सेवियं होजा। वितिए छके अस्मितरं तु पदम भवे ठाणं ॥१॥ पढमस्स यकजस्सा पढमेण पदेन सेवितं होजा। वितिए छके अम्मितरं तु इय जाय तसकार्य ॥२॥ पढमस्स यकजस्सा पदमेण पएल सेवियं होजा । तार छके अभितर तु पदम भये ठाणं ॥३॥ पदमस्सय कमस्सा पढमेण पदेण सेविय होजा। ततिए छके अभितरं तु इय जाव तु विभूसा ॥४॥ पढमममुचते वितियादीए तु जाप बसमं तु । पढमयकाईसु उ पुषो पुणो चारणिजाई ॥५॥ बप्पियसेवाए तू वप्पेण चारियाणि जगुरस। बस अट्ठारसगुणिता आसीयसतं तु माहाणं ॥६॥ एवं बीतिजस्तविकजस्सा गाह हाँति छका सबाजो गाहाको पत्तारि सता तु पत्तीसा ॥७॥पितियस्स यकजस्सा पढमेण पवेण सेवियं होजा। पढमे छके अम्मितरं तु पाम मवे ठाणे ॥८॥ एवं वितियस्साविकजस्सा एयष गाहाओ। वितिनगममिलावेर्ण समाजो माणियबाजो॥९॥ पढमं ठाणं दप्पो वप चिय तस्स वा भवे पटम। पढम छक्क वयाई पाणविवाजो तहिं पढौ ।। ६३०॥ एवं तु मुसाबायो अक्स मेहुण परिग्गहे चेव। पितिछके पुटवादी ततिछक्के होयऽकल्पावी॥१॥ एवं पपयम्मी बप्पेणं चारिया उ अगुस्स। एवमकप्पादीसुवि एक्केक्के होंतिमद्हरस ॥२॥ वितिय कर्ज कम्पो पढमपर्व तस्थ बसणणिमित्त। पढर्म छक्क क्याई तस्यवि पढमं तु पाणवहो ॥३॥ सण अणुम्मुयन्ते पुषकमेणं तु चारणीयाई । अट्ठारस ठाणाई एवं णाणादि एक्फेक्के ॥४॥पउविस अहारसगा एवं एते हवंति कप्पम्मि। दस हॉति अकप्पम्मी सबसमासेण मुण संखं ॥५॥ वप्पणासीयसतं गाहाणं कप्पे हॉति पत्तारि। पत्तीसायातेते छस्सय होती तु वारस य॥६॥ सोतृण तस्स पडिसेवणं तु आलोयणं कमविहिं नु । आगम पुरिसजायं परियाग बलंच खेतं च ॥७॥ अह सो गतो सदेस संतस्सालोइयायं सछ। आयरियाण काडेती परियाग बलं च खेत्तं च ॥८॥ सो ववहारविहिष्णू अणुस(म)जित्ता सुतोवदेसेणं । सीसस्स देह आणं तस्स इमं देह पच्छित्तं ॥९॥ पढमस्स य कजस्सा बसविहमालोयणं णिसामित्ता। णक्खते पीला मे सुक्के पणगं तवं कुणह॥६४०॥ पढमा सुक्के दसमं तवं कुणह॥१॥ पढम० सुकं पक्वं तर्व कुणह॥२॥ पढम० सुर्कवीसं तवं कुणह॥३॥ पढम० पणुषीसत कुणह सुकं ॥४॥ एवं ता उवधाए अणुपाए एत चेव गाहाओ। णवर तू अमिलावो किहे पणगावि वत्तमो ॥५॥० षउमासतवं कुणह सुक्के ॥६॥ पढम० चाउम्मासं कुणह किणे॥७॥ पदम छम्मासतर्व कुणह सुके ॥८॥ पढम छम्मासतवं कुणह किहे ॥९॥ छिंवंतु व तं माणं गच्छंतु व तस्स साहुणो मूलं। अबावारा गच्छे अम्बिविया पा परिबरंतु ॥६५०॥ पणगादि भाणछेदं साइमूल मवे पुणकरणं । पुषमवहाय सर्व पंचाऽऽभवणाउ उवरिं तु ॥१॥लिंगादी जो गच्छे जहण्ण उकोसओ व बोद्धयो। उकोस जहण्णो वा विहरउ सो अम्बिती. ओ उ॥२॥ वितियस्सय कजस्सा ताहिय पाउवीसगं वियाणित्ता। णवकारेणाउत्ता इवन्तु एवं मजासि ॥३॥ एवं गंतूण तहिं जहोवएसेण देहि पच्छित्तं। आणावएज्यहारो मणिए सो धीरपुरिसेहिं॥४॥ एसाऽऽणाववहारो जाहोवएस जहम भणितो। धारणक्वहारं पुण सुण वच्छ ! जहरूमं वोच्छ ॥५॥ उदारणा विहारण संघारण संपहारणा वा धारणक्यहारस्स उणामा एगद्विता एते ॥६॥ पावलेण उवेष व उदियपयधारणा उ उद्धारो। विविहेहि पगारेहिं पारेयऽवं विधारा तु॥७॥ सं एगीभावम्मी 'पी घरणे' ताणि एष भावेणं। पारेयऽस्वपयाणि तु सम्हा संघारणा होति ॥८॥जम्हा उ संपहारेउँ, ववहारं पजूंजती। तम्हा उ कारणे वेण, गावचा संपहारणा ॥९॥ धारणववहारेसो पउंजियचो तु केरिसे पुरिसे। | १०२२ जीतकरूपभाध्य - मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003938
Book TitleAagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages56
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jitkalpa
File Size40 MB
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