Book Title: Yogavidya Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 4
________________ २३३ मुख्य उद्देश मोह ही माना गया है। रामायण, महाभारत आदि के मुख्य बड़े राज्य के स्वामी थे पर वह द्वारा मोद के अनुमान में ही वसिष्ठ से योग और मोक्ष की पात्रों की महिमा सिर्फ इसलिए नहीं कि वे एक इसलिए है कि अंत में वे संन्यास या तपस्या के लग जाते हैं । रामचन्द्रजी प्रथम ही अवस्था में शिक्षा पा लेते हैं । युधिष्ठिर भी युद्ध रस लेकर बाण - शय्यापर सोये हुए भीष्म पितामह से शान्ति का ही पाठ पढ़ते हैं। गीता तो रणांगण में भी मोद के एकतम साधन योग का ही उपदेश देती है । कालिदास जैसे शृंगारप्रिय कहलाने वाले कवि भी अपने मुख्य पात्रोंकी महत्ता मोक्ष की ओर झुकने में ही देखते हैं ४ | जैन श्रागम और बौद्ध पिटक तो निवृत्ति प्रधान होने से मुख्यतया न्यायदर्शन श्र० १ सू० १ प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजन दृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्क निर्णयवादजल्पवितण्डा हेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसम् ॥ सांख्यदर्शन श्र० १ Audit अथ त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्त पुरुषार्थः ॥ वेदान्तदर्शन ० ४ पा० ४ सू० २२ अनावृतिः शब्दादनावृत्तिः शब्दात् ॥ जैन दर्शन - तच्चार्थ श्र० १ सू० १ ―― सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः || १ याज्ञवल्क्यस्मृति श्र० ३ यतिधर्मनिरूपणम्; मनुस्मृति श्र० १२ श्लोक ८३ २ देखो योगवासिष्ठ | ३ देखो महाभारत - शान्तिपर्व । ४ कुमारसंभव -सर्ग ३ तथा ५ तपस्या वर्णनम् । शाकुन्तल नाटक श्रंक ४ कवोक्ति- भूत्वा चिराय चतुरन्तमही सपत्नी, दौष्यन्तिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य ! भर्त्रा तदर्पितकुटुम्बभरेण सार्धं, शान्ते करिष्यसि पदं पुनराश्रमेऽस्मिन् ॥ शैशवेऽभ्यस्त विद्यानाम् यौवने विषयैषिणाम् | वार्द्धके मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजाम् ॥ रघुवंश १.८ Jain Education International अथ स विषयव्यावृत्तात्मा यथाविधि सूनवे, नृपतिककुदं दत्त्वा यूने सितातपवारणम् मुनिवनतरुच्छायां देव्या तया सह शिश्रिये, गलितवयसामिवाकूणामिदं हि कुलव्रतम् || रघुवंश ३. ७० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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