Book Title: Yogavidya
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 8
________________ १३० समझना चाहिए। इसके विपरीत स्थूल दृष्टिवाले जिस प्रवृत्तिको श्राध्यात्मिक समझते हों, उसमें भी यदि योग का उक्त आत्मा न हो तो उसे व्यावहारिक योग ही कहना चाहिए । यही बात गीता के साम्यगर्भित कर्मयोग में की गई है । योग की दो धारायें व्यवहार में किसी भी वस्तु को परिपूर्ण स्वरूप में दो बातों की श्रावश्यकता होती है । जिनमें एक ज्ञान चितेरे को चित्र तैयार करने से पहले उसके स्वरूप का, साधनों के उपयोग का ज्ञान होता है, और फिर वह ज्ञान के अनुसार क्रिया भी करता है तभी वह चित्र तैयार कर पाता है । वैसे ही श्राध्यात्मिक क्षेत्र में भी मोक्ष के जिज्ञासु के लिए आत्माके बन्धमोक्ष, और बन्धमोक्ष के कारणों का तथा उनके परिहार- उपादान का ज्ञान होना जरूरी है । एवं ज्ञानानुसार प्रवृत्ति भी श्रावश्यक है । इसी से संक्षेप में यह कहा गया है कि 'ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्षः ।' योग क्रियामार्ग का नाम है। इस मार्ग में प्रवृत्त होने से पहले अधिकारी, आत्मा आदि आध्यात्मिक विषयों का आरंभिक ज्ञान शास्त्र से, सत्संग से, या स्वयं प्रतिभा द्वारा कर लेता है । यह तत्त्वविषयक प्राथमिक ज्ञान प्रवर्तक ज्ञान कहलाता है । प्रवर्तक ज्ञान प्राथमिक दशा का ज्ञान होने से सबको एकाकार और एकसा नहीं हो सकता। इसीसे योगमार्ग में तथा उसके परिणामस्वरूप मोक्षस्वरूप में तात्त्विक भिन्नता न होने पर भी योगमार्ग के प्रवर्तक प्राथमिक ज्ञान में कुछ भिन्नता अनिवार्य है । इस प्रवर्तक ज्ञान का मुख्य विषय श्रात्माका अस्तित्व है | Har Raaत्र अस्तित्व मानने वालोंमें भी मुख्य दो मत हैं- पहला एकात्मवादी और दूसरा नानात्मवादी । नानात्मवाद में भी आत्मा की व्यापकता, व्यापकता, परिणामिता, अरिणामिता माननेवाले अनेक पक्ष हैं। पर इन वादों को एक तरफ रख कर मुख्य जो आत्मा की एकता और अनेकताके दो वाद हैं उनके आधार पर योगमार्ग की दो धाराएँ हो गई हैं। अतएव योगविषयक साहित्य भी दो मार्गों में विभक्त हो जाता है। कुछ उपनिषदें, योगवासिष्ठ, हठयोगप्रदीपिका श्रादि ग्रन्थ एकात्मवाद को लक्ष्य में रख कर रचे तैयार करने के लिए पहले और दूसरी क्रिया है । उसके साधनों का और १ योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्तवा धनञ्जय ! सिद्ध्यसिद्धयाः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ अ० २ श्लोक ४८ । २ ब्रह्मविद्या, तुरिका, चूलिका, नादबिन्दु, ब्रह्म बिन्दु, अमृतबिन्दु, ध्यानबिन्दु, तेजोबिन्दु, शिखा, योगतत्व, इंस | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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