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( मध्व' ) दर्शन के समान द्वैतवाद अर्थात् अनेक चेनत माने गये हैं । योग शास्त्र चेतन को जैन दर्शन की तरह देह प्रमाण अर्थात् मध्यमपरिमाण वाला नहीं मानता, और मध्वसम्प्रदायकी तरह ऋणु प्रमाण भी नहीं मानता ४, किन्तु सख्यि, वैशेषिक, नैयायिक और शांकर वेदान्तकी तरह वह उसको व्यापक मानता है" ।
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इसी प्रकार वह चेतन को जैन दर्शनकी तरह परिणामी नित्य नहीं मानता, और न बौद्ध दर्शन की तरह 3कको क्षणिक- अनित्य ही मानता है, किन्तु सांख्य श्रादि उक्त शेष दर्शनों की तरह वह उसे कूटस्थ - नित्न मानता ११ है ।
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१ जीवेश्वरभिदा चैव जडेश्वरभिदा तथा । जीवमेदो मिथचैव जडजीवभिदा तथा ॥ मिथश्च जडभेदो यः प्रपञ्चो भेदपञ्चकः । सोऽयं सत्योऽप्यनादिश्च सादिश्चेन्नाशमाप्नुयात् ॥ सर्वदर्शन संग्रह पूर्णप्रज्ञ दर्शन ||
२ ' कृतार्थं प्रति नष्टमप्यनष्टं तदन्यसाधारणत्वात्' २ - २२ यो सू । ३ 'असंख्येयभागादिषु जीवानाम्' | १५ | 'प्रदेश संहार विसर्गाभ्यां प्रदीपवत्' १६ | तत्त्वार्थ सूत्र ० ५ ।
४ देखो 'उत्क्रान्तिगत्यागतीनाम् । ब्रह्मसूत्र २-३-१८ पूर्ण प्रज्ञ भाष्य । तथा मिलान करो अभ्यंकर शास्त्री कृत मराठी शांकरभाष्य अनुवाद भा० ४ पृ० १५३ टिप्पण ४६ ।
५ 'निष्क्रियस्य तदसम्भवात्' सां० सू० १ ४६ निष्क्रियस्य - विभोः पुरुषस्य गत्यसम्भवात् - भाष्य विज्ञानभिक्षु ।
६ 'विभवान्महानाकाशस्तथा चात्मा । ७-१-२२- वै द ।
७ देखो ब्र० सू २-३-२६ भाष्य |
८ इसलिये कि योगशास्त्र आत्मस्वरूप के विषय में सांख्य सिद्धान्तासारी है ।
E 'नित्यावस्थितान्यरूपाणि ३ । ' उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् । २६ । 'तद्भावाव्ययं नित्यम्' ३० - तत्त्वार्थ सूत्र श्र० ५ भाष्य सहित ।
१० देखो ई० कृ० कारिका ६३ सांख्यतत्त्व कौमुदी । देखो न्यायदर्शन ४-११० | देखो ब्रह्मसूत्र २-१-१४ । २-१-२७ | शांकरभाष्य सहित |
११ देखो योगसूत्र 'सदाज्ञाताश्चित्तद्वृत्तयस्तत्प्रभोः पुरुषस्य परिणामित्वात्' ४- १८ । 'चितेरप्रतिसंक्रमायास्तदाऽकारापत्तौ स्वबुद्धिसंवेदनम् ' ४, २२ । तथा
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