Book Title: Yogavidya
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 29
________________ E वैशेषिक, नैयायिक आदि की ईश्वर विषयक मान्यता का तथा साधारण लोगों की ईश्वर विषयक श्रद्धा का योगमार्ग में उपयोग करके ही पतञ्जलि चुप न रहे, पर उन्होंने वैदिकेतर दर्शनों के सिद्धान्त तथा प्रक्रिया जो योगमार्ग के लिये सर्वथा उपयोगी जान पड़ी उसका भी अपने योगशास्त्र में बड़ी उदारता से संग्रह किया । यद्यपि बौद्ध विद्वान् नागार्जुन के विज्ञानवाद तथा श्रात्मपरिणामित्ववाद को युक्तिहीन समझ कर या योगमार्ग में अनुपयोगी समझ कर उसका निरसन चौथे पादमें किया है, तथापि उन्होंने बुद्ध भगवान् के परमप्रिय चार आर्यसत्यों का हेय, हेयहेतु, हान और होनोपाय रूपसे स्वीकार नि.संकोच भाव से अपने योगशास्त्र में किया है । जैन दर्शन के साथ योगाशास्त्र का सादृश्य तो अन्य सब दर्शनों की अपेक्षा अधिक ही देखने में आता है । यह बात स्पष्ट होने पर भी बहुतों को विदित ही नहीं है, इसका सच यह है कि जैन दर्शन के खास अभ्यासी ऐसे बहुत कम हैं जो उदारता पूर्वक योगशास्त्र का अवलोकन करनेवाले हों, और योगशास्त्र के खास अभ्यासी भी ऐसे बहुत कम हैं जिन्होंने जैनदर्शन का बारीकी से ठीकठीक अवलोकन किया हो। इसलिये इस विषय का विशेष खुलासा करना यहाँ अप्रासङ्गिक न होगा । करती थी, और उसकी सेवा किया करती थी । किसी समय अचानक एक विद्याधर के मुख से ऐसा मुना कि अगर बैल रूप पुरुष को संजीवनी नामक जड़ी चराई जाय तो वह फिर असली रूप धारण कर सकता है । विद्याधर से यह भी सुना कि वह जड़ी अमुक वृक्ष के नीचे है, पर उस वृक्ष के नीचे अनेक प्रकार की बनस्पति होने के कारण वह स्त्री संजीवनी को पहचानने में असमर्थ थी। इससे उस दुःखित स्त्री ने अपने बैलरूपधारी पतिको सब बनस्पतियाँ चरा दों। जिनमें संजीवनी को भी वह बैल चर गया, और बैल रूप छोड़कर फिर मनुष्य बन गया । जैसे विशेष परीक्षा न होने के कारण उस स्त्री ने सत्र वनस्पतियों के साथ संजीवनी खिलाकर अपने पतिका और पली मनुष्यत्व को प्राप्त कराया, वैसे ही विशेष परीक्षाविकल प्रथमाधिकारी भी सब देवों की समभाव से उपासना करते करते योगमार्ग में विकास करके इष्ट लाभ कर सकता है । कृत्रिम बैल रूप छुड़ाया, १ देखो सू० १५, १८ । २ दुःख, समुदय, निरोध और मार्ग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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