Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ June-2003 उपशमथी अरिहंतनी पदवी होइ खिणमांहि रे । मुगतितणां सुख ते लहइ जे उपशम अवगाहि रे || ३ || उप० ॥ खिमावंत जिणवर कह्या त्रीजा अंग मि जलपइ रे । उपशमसार संयम कहिउं श्रीपजूसण कलपइ रे ||४|| उप० ॥ कोधतणइ परवश थया बंधी कोडि कुकरमो रे । नरगि गया बहु जीवडा ए जिन आगम मरमो रे ||५|| उप० ॥ कुंण खमयाथी उद्धर्या कुंण क्रोधइं भव भमिआ रे । हुं बलिहारी तेहनी जीणइ आतम दमिआ रे ||६|| उप० || भरतराय अन्यायथी बाहुबलि बलवंत रे । मुंठि उपाडी मारवा क्रोध धरी निय चिंत (चित्त) इ रे ||७|| उप० ॥ एहवइ उपशम आवीओ संयम ल्यइ सवि मुंकी रे । भरत दीउं कांइ नवि लीइ नर कोन गिलइ थुंकी रे ॥८॥ उप० ॥ क्रोध थकी परदल हण्यं दुरगतिनां दल मेल्यां रे । पंच महाव्रत मूलथी नियम नथी अवहेल्यां रे || ९ || उप० ॥ है है संयम मुझ गयुं उपशम आव्यो अनंतो रे । प्रसन्नचंद्र रिषिराजीओ केवललह्युं झलकंतो रे ||१०|| उप० ॥ अन्न संपूरण पातरामाहिं चिहुं मुनि थुंक्युं रे । कूरगडू उपशम थकी जांणइ मुझ घृत मुंक्युं रे || ११ || उप० ॥ कूरगड्डू केवल लह्युं अनुक्रम च्यार सुसाधो रे । केवल लही मुगति गया उपशमथी निरबाधो रे || १२ || उप० ॥ एक नारी नित प्रति हणइ तिम षट नर अतिक्रोधइ रे । नरगतणां दल मेलियां जष्य तणइ अनुरोधइ रे || १३|| उप० ॥ छट्ठ छट्टि छम्मास जां खमयाथी मन रंग्यो रे । अरजुणमाली मुनि वडो मुगतिवधूई आलिंग्यो रे ॥१४॥ उप० ॥ 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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