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आ प्रतिमां विविध कविओ द्वारा रचेल सज्झायो तथा श्लोकोनो संग्रह करवामां आव्यो छे. अत्यारना समयमां जेम नोंधपोथी - डायरी व मां उपयोगी स्तोत्र - स्वतनादिनो संग्रह थाय छे, तेवो ज आ संग्रह पाटणनगरमां स्थित गणि धनवर्धनजीए पोतानी माटे करेलो छे तेवुं प्रतिनी प्रान्ते लखेल पुष्पिकाथी जणाय छे.
प्रतिमां कुल १६ कृतिओ छे. तेमां बीजी कृति श्रीसमयसुंदरजी विरचित क्षमानी सज्झायमां अक्षरो पाणीने लीधे अत्यंत खराब थई गया होवाथी तेनुं संपादन करवुं कठिन हतुं. माटे ते कृति अहीं प्रकाशित नथी करी. ते सिवायनी १५ कृतिओमां १२ सज्झायो तथा ३ श्लोको छे. तेमांखिमा पंचावन्नी श्रीलब्धिविजयजी - विरचित छे.
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
विविधकवि - विरचित - सज्झाय - श्लोकादि संग्रह
सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय
९.
१०.
नारीस्वरूपप्ररूपण - स्वाध्याय पंडित मेरु विजयना शिष्य मुनि ऋद्धिविजयजी द्वारा विरचित छे.
श्रीबलभद्रऋषि - सज्झायना कर्ता श्रावक कवि सालिग छे. संसारस्वरूप सज्झाय मुनि श्रीपद्मकुमारे रचेली छे. हितशिक्षा बोल सज्झाय श्रीहंस साधुए रचेली छे.
समता - सज्झाय पंडित कमलविजयना शिष्य मुनि हेमविजयजी द्वारा विरचित छे.
जीभ - सज्झायना कर्ता मुनि लावण्यसमय छे.
निह्नवविचार सज्झायमा कर्तानो कोई निर्देश नथी. केवळ सुकवि एवो निर्देश कर्यो छे.
३ - मित्र - उपनय सज्झायना कर्ता वडतपगच्छमंडन आ. देवसुंदरसूरिना शिष्य आ. विजयसुंदरसूरिना शिष्य पंडित भानुमेरुना शिष्य वाचक नयसुंदर छे. श्रीदशार्णभद्रराजर्षि श्लोक
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११.
१२.
१३.
१४.
१५.
श्रीशान्तिनाथ श्लोक,
शंखेश्वरपार्श्वनाथ श्लोक,
श्रीवीशस्थानकनाम - स्वाध्याय तथा
श्रावकना पांत्रीस गुणनी सज्झाय-एम पांचे कृतिना कर्ता पंडित श्रीकनकविजयजीना शिष्य श्रीगुणविजयजी छे. 'श्लोक' एटले 'सलोको'.
श्री सिद्धस्वरूप स्वाध्यायना कर्ता, सज्झायनी अंतिम कडीमां निर्दिष्ट सकल योगीसरो शब्दथी, श्रीसकलचंद्रजी उपाध्याय जणाय छे.
अनुसंधान - २४
आ प्रति मारा पू. गुरुभगवंतना संग्रहमांथी प्राप्त थई छे. प्रतिमां लेखन संवत् नो निर्देश नथी कर्यो, परंतु लखावट जोतां प्रायः १८ सैकामां लखाई होय तेवुं जणाय छे अक्षरो सुंदर छे, तेम ज लखाण स्वच्छ अने शुद्ध छे.
विशेषता
श्रीशान्तिनाथ भगवानना श्लोकमां रतनपुर, सलखणपुर (सलक्षणपुर) तथा दहीओद्र ( दधिपद्र) नगरनो निर्देश छे.
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथना श्लोकमां सरस्वती देवीनी स्तवना करतां कविए देवीने त्रिपुरा, तोतला, बाली, काली, महाकाली, कालाग्नि, हरसिद्धि, अंबा, सिद्धि, बुद्धि कही छे अने देवीना स्थान सोपारापाटण तथा अज्झारी गाम कह्यां छे.
( १ ) श्रीलब्धिविजयकवि- -कृत खिमा पंचावन्नी
(राग - धन्यांसी - मिश्र सींधुओ)
श्रीगुरुचरणे नमी करि करि खमयानुं खेडुं रे । तिम खमया खडगइ करी हणजे अरियण पेडुं रे ॥१॥ उपशमरसवसि मन करूं उपशमथी सुख होवइ रे । उपशमरसि मन धोतीउं जोगीसर नित धोवइ रे || २ ||
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उपशमथी अरिहंतनी पदवी होइ खिणमांहि रे ।
मुगतितणां सुख ते लहइ जे उपशम अवगाहि रे || ३ || उप० ॥ खिमावंत जिणवर कह्या त्रीजा अंग मि जलपइ रे । उपशमसार संयम कहिउं श्रीपजूसण कलपइ रे ||४|| उप० ॥
कोधतणइ परवश थया बंधी कोडि कुकरमो रे । नरगि गया बहु जीवडा ए जिन आगम मरमो रे ||५|| उप० ॥
कुंण खमयाथी उद्धर्या कुंण क्रोधइं भव भमिआ रे । हुं बलिहारी तेहनी जीणइ आतम दमिआ रे ||६|| उप० ||
भरतराय अन्यायथी बाहुबलि बलवंत रे ।
मुंठि उपाडी मारवा क्रोध धरी निय चिंत (चित्त) इ रे ||७|| उप० ॥
एहवइ उपशम आवीओ संयम ल्यइ सवि मुंकी रे ।
भरत दीउं कांइ नवि लीइ नर कोन गिलइ थुंकी रे ॥८॥ उप० ॥
क्रोध थकी परदल हण्यं दुरगतिनां दल मेल्यां रे । पंच महाव्रत मूलथी नियम नथी अवहेल्यां रे || ९ || उप० ॥
है है संयम मुझ गयुं उपशम आव्यो अनंतो रे । प्रसन्नचंद्र रिषिराजीओ केवललह्युं झलकंतो रे ||१०|| उप० ॥ अन्न संपूरण पातरामाहिं चिहुं मुनि थुंक्युं रे । कूरगडू उपशम थकी जांणइ मुझ घृत मुंक्युं रे || ११ || उप० ॥
कूरगड्डू केवल लह्युं अनुक्रम च्यार सुसाधो रे । केवल लही मुगति गया उपशमथी निरबाधो रे || १२ || उप० ॥ एक नारी नित प्रति हणइ तिम षट नर अतिक्रोधइ रे । नरगतणां दल मेलियां जष्य तणइ अनुरोधइ रे || १३|| उप० ॥
छट्ठ छट्टि छम्मास जां खमयाथी मन रंग्यो रे । अरजुणमाली मुनि वडो मुगतिवधूई आलिंग्यो रे ॥१४॥ उप० ॥
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अनुसंधान-२४ एकई ऊणा पंचसइ खमयाथी खंदग सीसो रे । पालक पीलतां थया अंतगडा विण रीसो रे ॥१५॥ उप० ॥ अगनिकुमार क्रोधइ थया खंधगसूरि सुजाणो रे । दंडग देश प्रजालिओ दूरि थयु निरवाणो रे ॥१६॥ उप० ॥ अच्चंकारी नारीइ प्रिउस्युं प्रेम विगाड्यो रे । क्रोधतणइ परवसि थइ आतम दुखमाहिं पाड्यो रे ॥१७॥ उप० ॥ पंच वार पंचक लघु क्रोधई नाविक नंदइ रे ।
छट्ठि सवि मुनि खामणां देता सुख आनंदइ रे ॥१८॥ उप० ॥ वभासनई सागरतणो क्रोधइ सीस प्रजाल्यु(ल्यो) रे । खमयाथी सुरवर थयो द्वेषथी मन वाल्यो रे ॥१९॥ उप० ॥ पगतलि आवी देडकी आलोओ का सीसई रे । थविरई थंभि आफली मरण लाउं अतिरीसइ रे ॥२०॥ उप० ॥ भव त्रीजइं विषधर थयुं वीरइ दरिसण दीधुं रे । खमयाथी चंडकोसिइ वेगि सुरपद लीधुं रे ॥२१॥ उप० ॥ कुण अनारज बिहुं जणां-माहि कहो मुझ देवो रे । वढतो साध सुरइ काओ अनारज सयमेवो रे ॥२२॥ उप० ॥ खमावंत दमदंतनइ कौर[व] कर्यओ उपसरगो रे । कांईअ न चाल्युं अरियणइ मुनि करि खमयानुं खडगो रे ॥२३॥ उप०।। अमरभूति(मरुभूति) खमया थकी तित्थंकर पद साध्यु रे । कमठासुरनइं कोधथी दुरगतिनुं फल बांध्यु रे ॥२५॥ उप० ॥ शय्याचालक सवणडे क्रोधइ तरुङ नाम्युं रे ।। कांने खोला ठोकिया वीरइ ते फल पाम्युं रे ॥२६।। उप० ॥ पुनरपि खमयाथी सही वेयण अति अहियासी रे । अनुक्रमि केवल पामिउं करम गयां सवि नासी रे ॥२७।। उप० ॥
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दृढप्रहारिं चिहुं जीवनो हत्या पातक कीधो रे ।
अति उपशम मनमां धरी सुगतिमाहिं जई सीधो रे ||२८|| उप० ॥
नाण उपजतो हारिओ एक पहरमां क्रोधइ रे ।
श्रीदमसार मुनीसरइ उपशम व्यसन विरोधइ रे ॥ २९ ॥ उप० ॥
ससरि सीस प्रजालीउं खमिडं गयसुकुमालइ रे ।
ततखिण केवल पामिउं करम कुकठ परजालइ रे ||३०|| उप० ॥
करड - कुरड मुनि तप तपइ रहीअ कुणालानइ खालि रे । कोधइ संयम हारिउं नींगमिओ भव आलि रे ||३१|| उप० ॥
नीलि वाधरि वीटिउं रिषिसर सोवनकारि रे ।
खमयाथी मेतारजइ शिवपद लह्यउं शमसारि रे ||३२|| उप० ॥
क्रोध थकी कूलवालूइ सुव्रत थूभ पडावी रे ।
गणिका रसरंग करी हुई तस दुरगति चावी रे ||३३|| उप० ॥
खंधक रिषिनी खालडी विण अपराध ऊतारी रे । खमयाथी सवि दुख सही पुहता मोख्य मझारी रे ||३४|| उप० ॥
नवदीक्षित शिर ऊपरिं सूरिं कीध प्रहारो रे ।
खमयाथी केवल लह्यउं धिन धिन ए अणगारो रे || ३५ ॥ उप० ॥
संब- प्रद्युन्न संतापिओ क्रोधइं तप तन टाली रे ।
द्वीपायन रिषि द्वारिका मूल थकी परजाली रे ||३६|| उप० ॥ चंद्रावतंसक उपशमि रहिओ काउसग ध्यानिं रे ।
दासी दीपक सींचतां पोहतो अमर विमानि रे ||३७|| उप० ॥
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दुष्कर दुष्कर गुरु काउं निसुणी एक मुनी कोप्यो रे । थूलभद्रस्युं मच्छर धरी पूरव तप जप लोप्यो रे ||३८|| उप० ॥
चंदनबाला मृगावती माहोमाहिं खमावी रे ।
उपशमथी केवल लह्यउं कडूआ कोध समावी रे ||३९|| उप० ||
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क्रोधइ निरबल बलदीओ धरती ठेले दार्यो रे ।
ते बंभण सवि बंभणे जाति थकी निरधार्यो रे ॥४०॥ उप० ॥ सूरि सुहस्तिक वयणथी प्रेतवनिं जई रहिओ रे
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त्रिण्य पहर सीयालणी कर्यओ ते उपसरग सहिओ रे ॥ ४१ ॥ उप० ॥
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ते अवंतीसुकुमालनइ खमयाथी शुभध्यानइ रे । ततखिणमाहिं ऊपनो नलिनीगुलमविमानि रे ॥४१ (४२) उप० ॥ क्रोधई कडूडं तुंबडूं दीधुं रोहिणि नारि रे ।
अनंत संसार उपारज्यु मुनि गयु मुगति मझारि रे || ४२ (४३) | | उप० ॥
तिम नागश्रीइं क्रोधथी कीधलो संसार अणंतो रे । पोहतो पंचम अनुत्तरि धर्मरुचि तेह मा (म) हंतो रे || ४३ (४४) | | उप० ।।
झांझरीआ रिषिरायनइ रायई उपसरग कीधो रे ।
अंतगडो केवल लही झांझरिओ रिषि सीधो रे ||४४ (४५) ॥ उप० ॥
देह चिलातीपुत्रनो फाल्यओ वज्र घीमेलिं रे ।
अष्टम सरगि सुर थयु उपशमरसतणी रेलिं रे ||४५(४६) ||उप०॥
भगतो श्रीमहावीरनो सर्वानुभूति निरीहो रे ।
उपसर्ग सही उपशम थकी सहसारई सुर सीहो रे ||४६ (४७) | | उप० ।।
अच्युत सुर थयु उपशमि श्रीसुनख्यत्र अणगारो रे ।
वीर कुशिष्यइ ते दह्यओ न चढ्यओ क्रोध लगारो रे || ४७ (४८) | | उप० ।।
गोसालो कृत क्रोधथी भमस्यइ काल अनंतो रे ।
मुंकी लेश्या तेजनी करवा जिनजीनो अंतो रे ||४५ (४९) || उप० ।
इंद्रइ जेह प्रसंसिओ अमरे बेहु परि परिख्यओ रे । विविध वेयण वयणे करी कहीइ क्रोधइ न निरख्यओ रे ।। ४९ (५०) उप०।
ख्यमावंत सिरसेहरो राजा श्रीहरिचंदो रे ।
अवर न एहवो निरखीओ साहस दिवस दिणंदो रे || ५० (५१) ।।उप० ।
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इंम अनेक खमया थकी सुखीआ नर नरलोइं रे । हूआ होस्यइ ते घणा आतम कां नवि जोइ रे ? ॥ जीवडा कां नवि जोइ रे || ५१ (५२) |उप० ॥
सरप सिंह कोधई होइ क्रोधई नरगइ जईइ रे । जनम जनमनी प्रीतडी कोध थकी सवि खही रे || ५२ (५३) ॥उप० ॥
कोधई तप जप कीधलो ते लेखि नवि आवइ रे ।
आप तपइ पर तापवइ क्रोधइं कुंण सुख पावइ रे || ५३ (५४) उप० ॥
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घणा एह
उपदेसो रे ।
इम कहि वीर जिणेसो रे || ५४ (५५) || उप०॥
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क्रोध जीव
एह ख्यमा पंचावन्नी सुणयो भणयो भावइ रे ।
लबधि विजय कवियण कहि खमतां सवि सुख होवइ रे ॥५५ (५६) |उप० ।
॥ इति खिमा पंचावन्नी ||
(२) मुनिऋद्धिविजयविरचित-नारीस्वरूप- प्ररूपणस्वाध्याय ॥ (राग - मारुणी)
मनि आणी जिनवाणी प्राणी जाणीइ रे, ए संसार असार । दुखनी खांणी एह वखाणी कामिनी रे, म करिसि संग लगार || भोला भूलि मां रे ॥१॥ भमुह भमाडर आंखि देखाडइ प्रीतडी रे, हसी हसी बोलि बोल । मुंहडि डि हईडि कूडी जीवडा रे विषवेलिनइ तोल ||२|| भो० ॥ आंसू पाडइ दुख देखाड आपणउं रे, सांभलि साहस धीर । आणइ ज मारइ नही अमराइ तु विना रे, अवर हईआनुं हीर || ३ |भो० || लज्जा धरसी आगलि फिरसी कामिनी रे, करती नयनविलास । मोहपासमां पड्यानड्या जे बापडा रे, नर नारीना दास ॥४॥ भो० ॥
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अनुसंधान - २४
नयने मुंकइ पणि नवि सूकइ कामिनी रे, पणछ विना ते बाण । नामि अबला पणि सबला तई सांकल्या रे, एणीइं राणोराणि ॥५॥ भो० ॥ आलस अंगिं अनि उत्संगि अंगना रे, किहां तेहनइं जिननाम | आ (अं? )गि खोडा अनि वलि बेडी पग पडी रे, ते पामि किम गाम |६| भो० ॥ नारि निहाली तुझनइ बाली मुंकस्यड़ रे, परतखि अगनिनी झाल । तृपति न पामइ आप दांमइ भामिनी रे, परिणामइ विकराल ||७|| भो० ||
निरखी रूपवतीनइ परतखि पांतर्यो रे, तई न कर्यो सुविचार | रुधिर मांस अंतर मल मूंतर स्युं भरी रे, नारी नरगनुं बार ||८|| भो० || कांने करी नइ केसरि आणइ आंगणइ रे, उपन्नि निज काज । धबकइ धूजइ आई रे झूझइ कूतरा रे, हुं बिहुं अबला आज || ९ || भो० ॥ प्रेमतणउं जे भाजन साजन तेहनइ रे, अणपहुचतइ आस । मुंकइ हाकी अनि वली वांकी बोलती रे, जा रे जा तुं दास ||१०|| भो०||
राय प्रदेशी सूरिकंताइ हण्यो रे, जे जीवन आधार ।
पगस्यउं सायर रयणायर जे ऊतरि रे, पणि एह न पामइ पार || ११ | भो० || जोज्यो निज अंगज हणवानइ कर्यो रे, चुलणीइ बहु मर्म राती माती वनिता ते न विचितवइ रे, करतां काई कुकर्म ॥ १२ ॥ भो० ॥ इंद चंद असुरिंद अनि नागिंदनइ रे, वाह्या वली बलवंत । त्यजिनइ प्राणी एहवी जाणी कामिनी रे, गुण लीजइ गुणवंत || १३ | भो० ॥ माया करस्यइ नारी हरस्यइ भोलवी रे, शील रयण जे सार । एह संघातइ म करिसि वातइ पणि घणउं रे, जिम पामइ जयकार | १४|भो० ||
भाई निरखो सुरपति सरिखो राखीओ रे, छांनोमींनी रूप । सुख ना हुंसी तुम्हनइ मुंसी मुंकस्यइ रे, एह मनोभव भूप || १५ | भो० ॥
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थूलभद्रनइ जंबूनइ पगि लागीइ रे, धन्य धनो अणगार । बालपणि पणि जागी वयरागी थया रे, ते मुनि वयरकुमार ||१६||भो०॥ नर नई नारी हृदय विचारी चेतीइ रे, छांडी विषयविकार । मेरुविजय बुध सीस पर्यपइ पामीइ रे, शीलि शिव निरधार ॥
ऋद्धिविजय जयकार ॥१७॥ भो०॥
॥ इति नारीस्वरूप-प्ररूपण-स्वाध्यायः ॥
★★★
(३) सालिग-विरचित-श्रीबलभद्रऋषि-सज्झाय द्वारिका बलती नीकल्या बि बंधव एक ठाय । तृषा उपन्त्री कृष्णनई बलभद्र पाणी पाय ॥१|| तव बलभद्र लाव्यो नीर तुंतो सूतो साहस धीर । पोढ्यो छइ वडतणी छाया कमलाणी कोमल काया ॥२॥ आहेडी जराकुमार खेलि पारधि वनह मझारि । कृष्ण पाए पदम जव दीठउं जाणिउं ए सावज बिठउं ॥३॥ लेई धणुहडी कीधउं प्राण ताकी नइ मेहलिउं बाण । डावि पाइं परम ज लागओ करली नइ कान्हड जाग्यओ ||४|| जोइ जरा रे कुमर तिहां जाइ सारंग ऊठ्यो विललाई । देखी बंधव दुःख अपार कही धिग धिग जराकुमार ॥५॥ मई पापीई बंधव हणीओ तव माहवइ एणि परि भणीओ । हवइ जा तुं वार म लावइ बलभद्र जिहां लगि नावइ ॥६॥ माहरु कटक देजे नींसाणी इंम कहिजे युधिष्ठिर वाणी । वल्यो जराकुमर ततकाल कृष्णनइ तव पहुचु काल ||७||
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अनुसंधान-२४ बलभद्र जल लेई आवीओ बंधव सूतो देखि । किम ऊठाडउं नींद भरि इंम चितवइ विशेष ॥८॥ मोरो बंधवह जीअ न जागइ बोलावइ मधुरि सादई । नवि बोलइ सारंगपाणी वात ए हईडइ न समाणी ॥९॥ तव मुख ऊघाडी जोइ साद करीनई सरलइ रोइ । रीसाव्यो किंणि गुणि भाई बांधव बांधव विललाई ॥१०॥ पगि लाग्यो दीठो घाय केणि सूर हण्यओ वनमाहिं । बांहि धरी तव बिठो कीधु उपाडी खांधि लीधु ॥११॥ लेई चाल्यो वनह मझारि मुझ सालइ दुःख अपार । हुं वेगि नीर न लाव्यो तेणि तुं खरु रीसाव्यो ॥१२॥ हवि बोलि मया करि मोरी किहां चाकरी चूकुं तोरी । इंम मोहनी नइ वशि चडीओ इमास(?)इंणी परि नडीओ ।।१३।। देवता उपाय करावई शिला उपरि कमलिणी वावइ । पाथरि केम ऊगइ सार पोइणि तुं खरु गमार ॥१४॥ जो मूओ बोलस्यइ भाई तो कमलिणि ऊगस्यइ लाई । चाल्यो सुणी बलभद्र वाणी तिहां वेलू पीलइ घाणी ॥१५॥ तुं तो मूरख जोइ विमासी वेलू ए किम पीलासी । सुणि मूउं मडउं जो जीवइ तो तेल बलइ इंणि दीवइ ।।१५।। समझाव्यो तडकी बोलइ बलभद्र पड्यो डमडोलइ । जव विणसण लागी काया तव छोडी बलभद्र माया ॥१६।। मनि जाणी सोइ विचार तिहां कीधुं तेह प्रकार । जूओ कर्म तणी गति जाणी नवि छूटो सारंगपाणी ॥१८॥ बलभद्र चालिओ तिणइ ठाहि वयराग धरी मनमाहि । जइ वंदइ नेमिकुमार तिहां लीधु संयमभार ॥१९॥
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आखडी अ करी अति भारी मुझ रूप ज निरखइ नारी । नहीं जाउं नगर मझारि भिख्या लि वनह मझारि ॥२०॥ रथकार रंगि विहरावइ मृगलो तिहां भावना भावइ । धन धन एहज अवतार जिणइ करी लहीइ भवपार ॥२१॥ भावना भावइ हरिणलो नयणे नीर झरंत । मुनि विहरावत करि करी जो हुं माणस हुंत ॥२२।। जीवदयानउं यतन करंत मिलतो साधुस्यउं विचरंत । विहरावत पात्र विचारी इंम चितवइ चित्त मझारि ॥२३॥ तव वाय वायु असराल अध कापि पडी अतिडाल । त्रिण्यइ तणो तिहां पहुतो काल बलभद्र हरिण रथकार ॥२४॥ पहुता पाचमइ सुरलोकि विलसइ तिहां सुक्ख अशोक । बलभद्र दया प्रतिपाली मद मच्छर माया टाली ॥२५॥ सूतारनी भिक्षा निरखी विहरावइ पात्र ज परखी । तिणि योगि बिहु मनरंगि अवतरीआ पांचमइ सरगि ॥२६।। तिहां धर्म तणी वात चालइ समकित सूधउं प्रतिपालइ । समकित विण का जन सीझइ सालिग भणि सूधउं कीजइ ॥२७॥
॥ इति बलभद्रर्षि-सज्झाय ॥
(४) श्रीपद्मकुमारमुनि-कृत - संसारस्वरूप-सज्झाय सुणि सुणि जीवडा कहिउं. रे करीजीइ एकज जिनधर्म हईडइ धरीजीइ ।
बेटक
हईडइ धरीजइ एक जैनधर्म अवर सहू अथिर अछइ तुं चेति चेति(त)न चतुर प्राणी करिसि पछतावो पछइ ।।
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अनुसंधान-२४ घण मोह माया लोभ वाह्यो फरह हा हू तु भमइ दोहिलो लाधो मानुषो भव कांई आलि नींगमइ ॥१॥
म करिसि जीवडा माहीं माहरूं जो न विमासी नथी कांइ ताहरु ।
त्रूटक ताहरु कांइ नथी रे प्राणी छंडि ममता अति घणी
खिण एक पूंठि आथि केरो थाइस्यइ कच(व?) को धणी ॥ दिन राति रलतो रहिन तूं ही काज न करइ आपणो एक पुण्य पोषइ कहिन किम तूं अंत पामसि भवतणो ॥२॥
आप सवारथ मलीउं छइ सहू तूं कुण कारणि पाप करि बहू ? ॥
त्रूटक बहु पाप करतु संक नाणइ हईइ न जाणइ आंपणउं
कारिमउं सगपण नेह विण जिम छार ऊपरि लीपणउं ।। मन पवननी परि फरि दह दिसि किमइ राख्यउं नवि रहइ एक चित्त अरिहंत ध्यान धरि जिम सास्वतां सुख तुं लहइ ॥३॥
सीख असीपरि दीजइ छइ घणी पालिन आणा सूधी जिनतणी ॥
Jटक जिनतणी आणा पालि सूधी करिन सेवा खरी
अरिहंत भाख्यो धर्म आदरि अंगि आलस परिहरी ।। मन शुद्धि समकित शील दृढ धरि सीख असी परि दीजीइ इम भणि पदमकुमार मुनिवर भवतणां फल लीजीइ ॥४॥
॥ इति सज्झाय ॥
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(५) हंससाधु-विरचित - हितशिक्षा-बोल सज्झाय सुणि जीव पहिलङ उपशम आणि, मन-शुद्धि सांभलि गुरुवाणि । गुरु विण जीव रलंतु जोइ, गुरु विण धर्म न बूझइ कोइ ॥१॥ लाज आणे हइडइ नरनारि, लाज वडी भणीइ संसारि । लाज ज राखइ रूडी माम, नीलज विणसाडइ सवि काम ॥२॥ जे मूरखनी लज्जा गई, बि भव विणठा तेहना सही । लाज रहित नर हुइ कठोर, जांणो माणसरूपि ढोर ॥३॥ लाजई आवइ विनय विचार, लाजवंत लहि मुहत अपार । लाजइं पुण्य कराइ बहू, लाज लोपी तिणइ लोपिउं सहू ॥४॥ कलियुगमां पाखंडी घणा, तिहां मन रीझइ मूरखतणां । पाखंडीनइ आदर होइ, साचइ लोक न राचइ कोइ ॥५॥ जिम पारो पारामां भलइ, तिम डंभक डंभकनइ मिलइ । संत साधुनी निंदा करइ, पापी पापि पिंड ज भरइ ॥६॥ आप वखांणी भामइ पडइ, पच्छइ जाणे यम-करि चडइ । एह वात कहीइ स्युं घणी, परि नवि देखुं पुण्य ज तणी ॥७॥ खुंट खरडनो व्याप्यो व्याप, कोइ न बीहइ करतु पाप । सूधो धरम न दीसइ रती, थोडा थया कलिकालिं यती ॥८॥ माहरां ताहरां करि अपार, श्रावक चूका धरम विचार । पंपल पुहवि थयुं जे जिसिउं, बोल्यउं कोइ न पालि तिसिउं ॥९॥ खिमारहित क्रोधइ धडहडइ, राग द्वेष वाहिओ रडवडइ । वसमसि नवि कीजइ कहि तणी, वात संभारु पाछि घणी ॥१०॥ जूठउं जीव तुं किम्ह इम भाषि, धरम ज कीजइ आतम साखि । लज्जा दया खिमा मनि धरो, निरगुणनी संगति परिहरो ॥११॥
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अनुसंधान - २४
पुहवि कीजइ पर उपगार, साधुहंस कहइ तरीइ संसार । एह वयण मनमां आणस्यइ, ते सास्वतां सुख पामस्य ||१२||
।। इति हितशिक्षाबोल - सज्झाय ॥
( ६ ) हेमविजय विरचित
समता-सज्झाय
सहि गुरुचरण नमी करीजी समरी सरसति माय । समतारस - सर हंसलाजी बंदी तिम ऋषिराय ॥१॥ सोभागी करी समता स्युं रंग । जो तुझनइ कीधओ रुचइजी मुगतिवधूनओ संग ॥२॥ सोभागी० ॥ परिहरि निंदा पारकीजी म करिसि निज गुण ख्याति । इणि परि गिरुयडि पामीइजी एहवी वात विख्यात ||३|| सो०॥
निज गुण निज मुख जे लवइ जी निभ परनिंदा ढाल । तस तप जप संयम मुधाजी बोलि उपदेशमाल ||४|| सो० | नवि लीजइ अछता छताजी पर अवगुण लव लेस ।
तां जस नवि पामीइजी तेहस्युं वयर निवेस ||५|| सो० ॥ मासखमणनइ पारणिजी एक सीथ लइ आहार । करतो निंदा नवि त्यजिजी तस दुरगति निरधार ||६|| सो०॥ जो दीठा जो सांभल्याजी त्यजि पर अवगुण जाण । पर अवगुण लेतां हुइजी निज गुण केरी हाणि ॥७॥ सो० ॥ पुंठिमांस नवि खाईइजी ए दुरगतिनुं बार । दशवैकालिकमाहिं कहीजी शय्यंभव गणधार ॥८॥ सो० ॥
जो जस जोईइ निरमलोजी परिहरि निंदा ढाल । निंदकनइ सहुइ कहिजी ए चोथो चंडाल ||९|| सो०||
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माता बालक मलहरिजी लइ ठीकरस्यउं रे दूरि । निंदक निज मुखस्यउं लीइजी पर अवगुण मल पूर ॥१०॥ सो०॥ पर परिवाद करी करइजी जिम जिम वचन उचार । परनिंदक परभवि लहइजी तिम तिम कठिन विकार ॥११॥ सो०। जिणइ वचनई पर दूखीइजी जिणइ हुइ प्राणीघात । क्लेश पडइ निज आतभाजी त्यजि उत्तम ते वात ॥१२॥ सो०।। परनिंदा इंम परिहरीजी करि समता निस दीस । कमलविजय पंडिततणोजी हेमविजय कहि सीस ॥१३।। सो०॥
॥ इति समता-सज्झाय ॥
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(७) लावण्यसमय विरचित - जीभ-सज्झाय जीव भणइ सुणि जीभडली रे पापि पिंड भरावइ । आप सवारथि आधी आवइ अह्मचइ काजि न आवइ ॥१॥ बापडली जीभडली ढाल पडी छइ एहवि खारां खाटां खट रस सेवइ, अरिहंत नाम न लेवइ ॥२॥ आंचली ।। काया पुर पाटण हुं राजा तुं थापी पटराणी । हजी लगि गुरुवचन विहूणी इसी भगति नवि जाणी ॥३॥ नर बत्तीस रहइं रखवाला आगलि पोलि पगारा । तुहइ नीलजपणउं न छंडइ हीडइ छंदाचारा ॥४॥ ध्यान धरूं जब स्वामी तव सहियर बोलावइ । जपमाली कर थकी पड़ावइ मुझनइ मांड बोलावइ ॥५॥ तुं बंधावइ तुं छोडावइ तुं जामलि कुण आवइ । नारि भली जे प्रियस्युं भगती घरनो चाल चलावइ ।।६।।
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अनुसंधान-२४ साव सुलक्षण बहु गुणवंती घणउं कस्युं हवि कहीइ । जीव भणि जिनमारगि लागो तुं सुक्खई निरवहीइ ॥७॥ जीव सीखामणि जीहा जागी जिनगुण गावा लागी । कहि लावण्यसमय वयरागी पाप भ्रांति हवइ भागी ॥८॥
॥ इति जीभ-सज्झाय ॥
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(८) निह्नवविचार-सज्झाय वीर जिणेसर थया केवली तेथी वरस चउदमइ(१४) वली । जमालि पहिलो निह्नव थयु कडमाण कड ऊथापयु ॥१॥ सोलस(१६)वरसे बीजो जोइ तिष्यगुपत नामि ते होइ । छेहलो जीवप्रदेशइं जीव ए कीधी थापना सदीव ॥२॥ वीर वरततां थया ए बे वि मुगति गया पछी कहिस्यउं हेव । बारमि(१२) वरसिं पामी मुगति गौतम गणधरनी ए युगति ॥३॥ वीसे(२०) वरसे सोहम सामि वीर पछी जाइ शिवठामि । तेह तणा चाल्या मुनि-पाट जिणइ देखाडी साची वाट ॥४॥ चउसठि(६४) वरसे जंबू सिद्ध बालपणा लगइ शील प्रसिद्ध । अठाणउं (९८) वरसे वीरथी शय्यंभव थयु धर्म सारथी ॥५॥ प्रतिबुद्धो जिन-प्रतिमा देखि शासन दीठउं सर्व विशेष । मनक सीसनइ काजि करिडं श्रीदशवकालिक उद्धरिउं ॥६॥ वीर थकी एकसो-सत्तर (१७०) भद्रबाहु गुरु गणि अवतरि । उवसग्गहरं तवन करेवि मारि निवारी छइ तिणि खेवि ॥७॥ दस निर्युगति नवी तिणि करी सूत्र अरथ युगति सांभरी । बिसइ-चउद(२१४) वरसे वली जोइ त्रिजो निह्नव जगमाहिं होइ ||८||
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थाप्यो अवगत वाद विशेष आषाढाचारज सुर देखि । बिसइ-पनर वरसे(२१५) थूलभद्र शील प्रमाणि लहइ बहु भद्र ॥९॥ अरथ थकी पूरव जे च्यार गयां विछेद तेथी निरधार । वरस बिसइ-वीसे(२२०) अवधारि चोथा निह्नव थयु विचारि ॥१०॥ थाप्यो शून्यवाद तिणि जाणि समुच्छेदनुं सुणी वखाण । वरिस बिसई-अठावीस(२२८) थयां महावीरनई मुगतिं गया ॥११॥ पंचम निह्नव थयु इक समइ बि किरिया तेह न इम निगमइ । वीर थकी त्रिणसई-पांत्रीस (३३५) वरसि थयु कालिक सूरीस ॥१२॥ अविनयवंत सीस परिहरी ग्यओ ऊजेणीपुरि नीसरी । निगोदनो जेणइ काओ विचार हरि फेरव्यउं वसतिनुं बार ॥१३॥ वरस च्यारसइं-त्रिपन(४५३) माण बीजो कालिकसूरि सुजाण । बहिनि सरस्वति वाली जेणि गर्दभिल्ल उच्छेदिओ तेणि ॥१४॥ चिहुं सय सत्तरि(४७०) विक्रमराय थयु ऊजेणी नयरी ठाय । सिद्धसेन गुरि श्रावक कीध महाप्रभावकनो जस लीध ॥१५।। वरिस पांचसई चिउंआलीस(५४४) निहव छठो जाणि जगीस । जीव अजीव अनइ नोजीव राशि त्रिण्य तिणि कही सदीव ॥१६।। गुरि समझाव्यो पणि नवि वल्यओ आपमती अभिमानि बल्यो । वरस चउरासी नइ पांचसइ (५८४) वयरस्वामि सुरलोकिं वसइ ॥१७॥ वीर थकी वरसे पांचसई चउरासी अधिके (५८४)वली तिसई । निह्नव जाणि थयु सातमो गोष्ठामाहिल ते महातमो ॥१८॥ तेणि थाप्यो ए मत वली जीव कर्मयोगि जो (कर्म जोगो) जिम कांचली। अप्रमाण थाप्यां पचखाण जावजीवनउं लोपी ठाण ॥१९॥ वरिस छसई श्रीवीरजिनथकी नव अधिके (६०९) जाणो ए थकी । खमणा नामि दिगंबर थया सहसमल्ल पायक थापिया ॥२०॥
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अनुसंधान-२४
इम ए साते निह्नव लह्या देशविसंवादी जिन कह्या । सहसमल्लनइ को नहीं समो सर्वविसंवादी आठमो ॥२१॥ जाणी निह्नवतणो प्रकार पुण्यवंत कीजइ परिहार । जिनआणा सूधी अणुसरो सुकवि कहि शिववनिता वरो ॥२२॥
॥ इति निह्नवविचार-सज्झाय ॥
(९) वाचक नयसुंदर विरचित-३-मित्र उपनय सज्झाय श्रीजिनशासन पामीइ, गुरुचरणे शिर नामीइ,
धामीइ सेना अंतरिपुतणी ए ॥१॥ सांभलयो सहू धामीइ, मुगतितणा जे कामीइ
खामीइ जीव सवे स्युं हित भणी ए ॥२॥
ढाल हित भणी कहुं सीख रसाली सांभलि रे तुं प्राणी । हियडा भितरि आणु अनुदिन श्रीजिनवरनी वाणी ॥३|| लाख चोरासी जीवा योनि माहिं भम्यो अनंतीवार । जिन दरिसण साचु पाम्या विण नवि छूटो संसार ॥४॥ एणि जगि सहूइ सवारथ मलीओ ताहरि कुंण हितकारी । श्रीजिनधर्म विना नही कोइ साचुं जोए विचारी ॥५॥ एणि अवसरि अधिकार अपूरव जीव जोए तुं जागी । जे दोहलि तुझ अरथि आवि तेहनो होजे रागी ॥६॥ जिम कोइक मही मंडल नयरि प्रजापाल भूपाल । तेह नइ सुबुद्ध नामि छइ महितो बहु बुद्धिवंत दयाल ॥७॥
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त्रिण मित्र तेणि महितइ कीधा नित्य मित्र ते पहिलो । पर्व मित्र ते बीजो बोल्यो जुहार मित्र ते छेहलो ॥८॥ नित्यमित्र स्युं नेह घणो अति खिण अलगो नवि मेहलइ । तेहनइ जे जोईइ ते आपि तेहनुं कथन न ठेलइ ||९|| लालइ पालइ अनि पखालि संसालि संभालि । संतोष पोषि सणगार दूख उपजतुं वारि ||१०|| पर्व मित्र साथि पण पूरो प्रेम हीयासुं आणि । तेहनि जे जोईइ ते आपि करी आपणो जांणि ॥ ११ ॥
जुहारमित्रसुं जुहार लगारेक मासे पाखे दाखि । त्रिणि मित्र साथि ते महितो प्रेम असी परि राखि ||१२||
ढाल तेहनि इणि परि चालतां मालतां मंदिर आप । एक दिन राय रीसावीओ प्रगटीउं तस ते पाप ॥१३॥
मरणांत कष्ट लही करी महिंति विमास्युं मन्त्रि | हवि जोउं युगतिं गेरख्यं (?) मित्र छई माहरि विनि ||१४||
अवसर आणि आपण सही अरथि आवि जेह । पारखि पुहुचि परगडो शुभमित्र कहीइ तेह ||१५|| मनस्युं विमासि एहवुं नित्य मित्र पूछिओ ताम । सुणि भाई तुझसुं मांहरि एक ऊपनुं छइ काम ॥१६॥ राजा घणउं रीसावीओ हवि मेहलसि नही आज । मन मांनसि तेम पीडसि लोपसि सघली लाज || १७||
तेह भणी नासी तिहां थिकु हुं आविओ तुझ पासि । मुझ राखि बंधव बुद्धि करी पणि बीजुं कांइ न विमासि ॥१८॥
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कष्ट मांहि पडियां छोडवि ओडवइ आणी आप | तेह मित्रसुं नेह संडीउ जिम छूटीइ सही पाप ॥१९॥ नित्य मित्र वलतुं बोलिओ खोलीओ मननो भाव । मई तुं तो रखाइ नही मम करसि एवडी राव ||२०||
व्यवहार एहनु आकरु कां करो करगर कोडि । नासतां इहां छूटिसि नहीं ए वात सघली छोडि ॥२१॥ मुझनिंतिं देणुं हतुं ते आपिउं अनिवारि ।
ताहरु करिडं तई पामीउं पण न थाइ मई सार ||२२|| हवि इहांथी जा परु मई छोडिओ तुझ नेह | महिंतु सदा जस पोखतु तिणि पणि दीधु छेह ||२३|| रायना जणना हाथमां आपवा लागो जाम | महिंतु विमासि मन्नसुं भलि नींबडिओ ए आम ||२४||
अनुसंधान - २४
उतावलो तिहां आवीओ पर्वमित्र पासि सोइ । ते वात सघली तिहां करी मनस्युं धरी दुख होइ ||२५||
रे दूख थकी अलगा करु बंधव हवि जस थाउ । राजा रीसाविओ पीडस्यइ वहिला ते बाहरिं धाउ ||२६||
मन राखवा महिता तणुं सो दीइ मुखि संतोस । पण कष्ट कारण आवीओ तेह नहीं ताहरु दोस ||२७||
रात दिवस रलतु घणुं ते आपतु अह्म सर्व । लेवाइ नहीं दुख ताहरु स्युं आपाइ तुं गर्व ||२८||
अर्जना कीधुं ताहरु धन भोगवुं अह्मे आज । पणि कष्ट ताहरु नवि टलि तुं मिलइ मनसु लाज ॥२९॥
एणी युगर्ति मुखि संतोषीओ मर्हिता प्रति तेणि ताम । महिंता तणुं पणि तेह थकी नवि सिद्धए को काम ||३०||
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दोइ मित्रनुं लही पारखं ते रहिओ मेहली आस । अतिशोकसागरमाहिं पडिओ मेहलतु मुखि नीसास ॥३१॥ जलहीन मच्छ जिम टलवलि मन नहीं ठाम लगार । इम आरति वेतां आवीओ तस पासि मित्र जुहार ||३२||
ढाल
महितानई मनि अतिदुख देखी बोल्यो मित्र जुहार । कां बांधव एवडो दुख वेओ कहु मुझनि अधिकार ||३३|| तुझे एवडुं पडीया दुखमाहिं पणि कां मुझ नवि संभार्यु । हुइ ते वात कहु मुझ आगलि कुंणइ दुख न वार्यु ||३४||
महिंतु तव बोलिओ गलगलतु स्युं कहुं तुझनि भाई । नित्यमित्रनड् पर्वमित्रनी मिं सवि जोई सगाई ||३५||
राजा घणडं रिसाव्या माटि लागी बीहक अपार । मित्र बिज पणि घणुं ज विनव्या नवि ठरिया लगार ||३६||
जन्म लगि जे मिं धन अरज्युं ते सवि एहनइ दीधुं । दोहली वेलाइ एक अह्मारुं एहथी काज न सीधुं ||३७||
तुझ नि मनशुद्धि नवि मलीओ ते बेहुं तु नेह अटकलीओ । राति दिवस घणुं झलफलीओ पणि तुझस्युं किंपि न मलीओ ||३८||
कर्यां अखत्र अनेक अजांणि दूहव्या जीव अनंत 1
कोडा कोडि गमे वली (अलीक?) भाख्यां नवि संतोष्या संत ||३९||
ओछां आप्यां अधिकां लीधां कीधा दगा अपार । गाम-सीम पाटि लेई चोल्या पापतणा नहीं पार ||४०||
राय तणा मान लही नइ पीड्या परि परि लोक । तोहि मनस्युं दया न ऊपनी जो तेणि पाडी पोक ॥४१॥
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अनुसंधान-२४ पल्लीपति थई साथ लूटाव्या ऊजाड्या पुर गाम । मारगई पंथी रांक भीषाव्या कीधां कोडि कुकाम ॥४२॥ पर प्रांणीनी पीड न जांणी दया लगार न आणी । जिम तिम पर धन कीधां हाणी लक्ष माल लीधा ताणी ॥४३॥ इम अन्याय करी परि परिना मि धन मेलिउं जेह । नित्य मित्र नइ पर्व मित्र नइ अरथि आपिउं तेह ॥४४॥ पणि प्रस्ताव पडि ए निसत नवि नीमड्या लगार । माहरु कपि एणि न जाणिउं कसी न कीधी सार ॥४५|| ताहरूं एक वार मि अलवि कांइ न कीधुं काज । तो तुझ आगलि स्युं दुख दाखं आवि मनस्युं काज ॥४६॥ जुहार मित्र वलतुं इम बोलि लाज न कीजि भाई । सावधान सही थाजे सुंदर जोजे माहरी सगाई ॥४७॥ प्रेम धरी ते साथि मत मलयो तेहD कहिउँ म करजे । लंपट जांणी तुं ओसरजे राजाथी मत डरजे ॥४८॥ ए राजानुं जिहां नवि चालि तिहां हुं तुझनि मेहलउं । आवि बिसि बंधव मुज खंधि ताहरी चिंता ठेलउं ॥४९॥ जो पणि माहरि खंध चढीनइ वलतुं जोईस साहमुं । तो राजा ततकाल धरी नइ फेरी मागसि नाणउं ॥५०॥ तेह भणी सावधान सही थाजे बांधव बहु स्युं कहीइ । संधि न रहि बिहु साथि मलतां दो मारगि किम जईइ ॥५१॥ महिंतो कहि एवडुं मत कहिसु तेह नि प्रेमि हुं द्राओ । तेहस्युं नेह हवि स्युं कीजइ भलिं मित्र तुं पाओ ॥५२॥ जे तुम्हे कहिस्यु ते परि करस्युं बलिहारी तुझ नामि । ए राजा पीडी जिहां न सकि मुझ मेहलो तेणि ठामि ॥५३॥
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ए थानक जातां ए नृपना जण बहु देखा देसि । जो मुझथी पिण अलगा थास्यु तो सवि लूटी लेसि ॥५४॥ एक-मनो हुँ छउं तुह्म उपरि ए मांनजे साचलं । तेहस्युं नेहि हवि स्युं कीजइ काम न कीजइ काचउं ॥५५॥ महिंता मन निश्चल जाणी जुहार-मित्र प्रेम आणी । महिंतु खंधि-चढाव्यो जेणी मित्र एहवा करु प्राणी ॥५६|| जुहार-मित्रई जे आगन्या दीधी ते सवि महितइ कीधी । आतमराजतणी तेणि पदवी दिन थोडा माहे दीधी ॥५७|| ए राजा तु किाई न कीजइ दूर टल्या नृप फंद । सोक संताप निवृत्या साथिं पाम्या परमाणंद ॥५८।। दोहली वेलाई जे अरथिं आवि ते मित्रनी बलिहारी । एहवा स्युं मित्राई कीजि अविचल गुण संभारी ॥५९॥ जुहारमित्रनि कथनइ लागु तह ठेल्यां सवि कर्म । मुगति-पंथ निरभय थइ बिठो पाम्यो मुगति सुधर्म ॥६॥ हवि ए अंतरंग संभारी प्राणी प्रीछे वात । पहिलउं चउद राज ते चिहुं दिसि नगर वडुं विख्यात ॥६१॥ कर्मप्रकृति राजा तिहां मोटा जेहनी त्रिभुवनि आण । महिंतु ते आतमा कहीजइ जोई परखयो जाण ॥६२॥ ते आतमा महितानि मांनी तुं नित्यमित्र देह । खिण अलगु रही न सकि तेहथी तेहस्युं अतुल सनेह ॥६३|| पुत्र कलत्रादिक पणि बहु कहीइ मित्र ते पर्व । पाप करी अरजी जे लक्ष्मी तेहनि सुंपी सर्व ॥६४|| जुहारमित्र ते धर्म कहीजइ तेहस्युं जीव न राचि । सुखि न मिलइ कदाचित पणि न मिलइ मनस्युं साचि ॥६५॥
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इणी परि काल केतलि जातइ कर्म उदय तस आवि । अशुभ कर्म त्रुटति प्राणीनइ एहवुं मनस्युं भावि ॥ ६६ ॥ काया मिलाली पाली भली परिं संभाली । अवसर आणि अरथ न आवी प्रीति करी विसराली ॥६७॥ वेदनी कर्म उदय जो आवि तो राखी न सकि कोइ । तिम महाराय अनाथीनी परि होइ विमासी जोइ ॥६८॥
अनुसंधान - २४
ए कोई माहरि अर्थि न आव्यो तव ते धर्म संभारि । जुहार मित्र इणि अवसरि आवी सघली पीड निवारि ॥ ६९ ॥ साचो ए अधिकार सुणीनइ तव हीयासुं जागु । जुहार मित्रस्युं प्रेम धरी नि तेहने चरणे लागु ||७० || वडतपगछ मंडण विरागी श्रीदेवसुंदरसूरि । विजयसुंदरसूरि तास पटोधर वंदु आणंद पूरि ॥७१॥ सकल मनोरथ संघना पूरवि पंडितभानुमेर प्रधान । वडतपगछमंडणवइरागी हुया सुगुणनिधान ॥७२॥ |
तास सीस नयसुंदर वाचक सीख दीइ अति सारी । आपणा जीव प्रति हितकारी पाप संताप निवारी || ७३ ॥
ए आतम प्रतिबोध अनोपम जे भणसि नर नारी । सांभलसि वली तस सुखकारी ते सही तुच्छ संसारी ॥७४॥ ॥ इति ३ - मित्रोपनय - सज्झाय: ||श्रीः ||
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(१०) श्रीगुणविजय-विरचित॥ श्रीदशार्णभद्रराजर्षि-श्लोकः ॥
आदरि समरी आदिभवानी हुँ गाउं दसारणभद्र मानी । नगरि दसारणि वीर सिधाव्या वनपालकई जइ राय वधाव्या ॥१॥ लाख सोनईआ देइ वधाई वंदन केरी करइ सजाई । जिम कुंणि कहीइं वांद्या न वीर तिम हुं ज वांदुं साहसधीर ॥२॥ गज भद्रजाती सहस अढार चोवीस लाख तरल तुखार । एकवीस सहस सखर सुहाली वहिलि विशेषइ वली छत्रीआली ॥३॥ मुडद्ध महीपति सोल हजार ध्वज सोल सहस अतिहिं उदार । सहस सुखासण सबल वखाणउं पायक पोढा कोडि एकाणउं ॥४॥ पालखी पेखीजइ रंगरोल रथ राजवाहण नइ चकडोल । बंदी ते बोलइ बहु बिरुदाली वाजां ते वाजइ वीण रसाली ॥१(५)॥ सहज सुरंगी सातसई राणी रूपि हरावी रंभ इंद्राणी । चामर चिहुं पखि स्वेत पवित्र मस्तकि मेघाडंबर छत्र ॥४(६)। लोकना थोक थाइ हराण गाजइ ते गिरुआं गुहिर नीसाण । इंम आडंबर करीय अमंद पटहस्ति खंध बइठो नरिंद ।।६(७)।। मन माहि आव्यउं सबल गुमान महीयलि को नहीं मुज्झ समान । माहरी आगलि सहु तृण तोलइ इंम अभिमानि आकरूं बोलइ ॥७(८)॥ छाह्यो ते खेहई करी खरकिरण दोलति देखि अढारे वरण | महावीर वांदी बइठो नरेश मूरतिवंतो जाणे सुरेश ॥८(९)। तव इंद्रइ प्रजुज्यउं त्रीजउं ज्ञान एहनो गालउं हुं अभिमान । तेड्यो एरावणदेवप्रधान आदेश दीधो थइ सावधान १९(१०)।
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करु विकूर्वण वंदन काजि वांदस्यउं चउवीसमो जिनराज आदेश पाम्यइ आव्यो ज हरिस हाथी विकूर्व्या चउसठि सहस || १०(११) ॥ एकेका कुंजरनइ शिर सार पांचसई ऊपरि अधिकां ज बार । शिर दीठ दंतूसल आठ आठ ए सही साचो आगम पाठ || ११ (१२)।
अनुसंधान-२४
आठ आठ वावि दंत ज दीठ पेखीज विस्मय मनमां पईठ । वावि ज वावि आठ आठ कमल लाख लाख पांखडी तिहां विमल ॥१२(१३)।
लाख पांखडीई नाटक लाख देव देवीनी मधुरी ज भाष ॥ डोडो ज मध्यई एक प्रासाद अठ अग्रमहिषी इंद्र आह्लाद || १३ (१४) | जव प्रति कमलई बइठो ज आवइ जम्मक सम्मक नाटक थावइ । श्रीसीहलंछन सुरगिरिधीर इंद्रइ आवीनइ वांद्या ते वीर || १४ (१५) ॥ ऋद्धि तगादो देखी नवेरो मान गली गयो नृप केरो ।
हुं जो एहनइ पाय नवांडउं भल्लो पोतानो मान भवाडउं ॥ १५ (१६)॥
इंम विमासी महावीर पासइ संयम लीधउं राई उल्लासइ | इंद्र कहि मई हवि न चालइ तुं विण कुंण ए भार झालइ || १६(१७)||
महावीर पासिं चारित्र लीधरं माहंत तरं बोल्यउं तिम कीधउं । शक्ति घणी छइ मुझ नइ अनेरी करणी न थाइ पणि तुझ केरी || १७ (१८) । इंम प्रसंसी वांदी समहुतो आपणइ ठामइ इंद्र पहूतो ।
श्रीराजऋषिनो वाध्यो ज वान अनुक्रमइ पाम्या केवलज्ञान ॥ १८ (१९) || भविजन तारी भवदुख वारी मुगतिं पधार्या मुनि जयकारी । कहि गुणविजय कवि मन कोडि वली वली वांदुं हुं कर जोडी || १९ (२०)॥
शालिभद्र सम कुंण भोगतारी थूलभद्र सम कुंण ब्रह्मचारी | शांति जिणेसर सम कुंण दानी दशारणभद्र सम कुंण मानी ॥ २० (२१) ||
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ए श्रीदशा[र]णभद्र ऋषिराय - नामई आनंद थाय । इंद्र हराव्यो पाय नमाव्यो गजगति गामी केवलज्ञान-पामी ।
मुगतिं पधार्या मई मनि धार्या ॥२१(२२)।। ॥ इति दशार्णभद्रराजर्षि-श्लोकः ॥
(११) श्रीगुणविजय-विरचित
॥ श्रीशान्तिनाथ-श्लोकः ॥ पुर हत्थिणाउर कुरु देश माहि
इक्खागवंशी पुण्यप्रवाह । श्रीविश्वसेन कुल गौरकिरण
अचिरादेवी वरकूखि ज रयण ॥१॥ सोलमो तित्थंकर संतिनाथ
पांचमो चक्री शिवपुर साथ । मोहन मृगलंछन मनोहार
शिववधू कंठइ नवसर हार ॥२॥ लाख वरसनउं प्रभुतणउं आय
नाम जपंतां नवनिधि थाय । चा(च)रणिं पारेवो जेणि राख्यो
कुंण दयालू ए सम दाख्यो ॥३|| नगरि रतनपुरि जिन जयवंतो
सलखणपुरि प्रभु गुणवंतो । दहीओद्र नगरई देव दीपंतु
महिमाइ हरिहरब्रह्म जीवंतु |४|
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अनुसंधान-२४ गुणविजय साहिब गुणमणि दरीओ
केवलकमलानिर्मल वरीओ । पावन परिवारइ परवरीओ
पुण्य प्रसादि भवजल तरीओ ॥५॥ एहवो एक श्रीसांतिनाथ
अनाथनो नाथ मोक्षमार्गनो साथ । सोलमो तित्थंकर
पांचमो चक्रवर्ती । अम्हारि कुलगोत्रज्ञ
मानीइ पूजीइ अरचीइ ॥६॥ ॥ इति श्रीशान्तिनाथ-श्लोकः ॥
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(१२) श्रीगुणविजय-विरचित ॥ श्लोकबन्धेन श्रीशद्वेश्वरपार्श्वनाथ-स्तवनम् ॥ ब्रह्मानी धूआ देवी ब्रह्माणी करि गुणग्राम केवलनाणी । सुर नर किन्नर राय वखाणी अपछरा गाइ ऊलट आणी ॥१॥ रायहंस बिठी सुर ठकुराणी वाणी ते बोलइ अमीय समाणी । गाजइ ते गोरी गुणमणि खाणी जागती ज्योति जगमाहि जाणी ॥२॥ पुस्तक पातक-वल्ली-कृपाणी कमल कमंडलनी अहिनाणी । कच्छपी वीणा शोभित पाणी वेद पुराणिं प्रगट गवाणी ॥३|| कासमीर मंडलमा राजधानी धीरज ध्याइ धरी सावधानी । तूसइ ज तेहना दालिद्र कापइ अद्भुत वरु वाणी ज आपइ ॥४॥ जिहां दृष्टि पडी तिहां किणि सार केसर थाइ मणना हजार । विण दृष्टि हुइ कसुबमाल ए वात जाणइ बाल गोपाल ॥५॥
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एहज त्रिपुरा तोतला बाली एहज काजी(ली) ए महाकाली । एहज कालागिणि हरसिद्धि एहज अंबा ए सिद्धि बुद्धि ॥६॥ सोपारा-पाटण माहिं मंडाण अज्झारी गामि वली अहिगण । रंगि ज रही त्रिभुवन्नि व्यापी भगतनई भावि भल बुद्धि आपइ ॥७।। एहज माता धरीय उल्लास मुझ मुखकमलिं करु निवास । हुँ गाउं प्रेमिं पासकुमार श्रीआससेन कुलसिणगार ॥८॥ सघला ते मंडलमां सिरताज अधिकी ज गूजर खंडनी काज । तेह माहि वारु. वढीआर सोहइ मोहन मानवनां मन मोहइ ।।९।। नगर संखेसर निरमल नूर प्रगट्यउं ज पुहवि पुण्यि पडूर । जिनहर मंदिर अति सुविसाल बावन्न देहरी झाकझमाल ॥१०॥ पासजी बइठा संकट चूरइ प्रगटप्रभावि परता ज पूरइ । यादव दलनी जरा निवारी सबल समहुतु कीध मुरारी ॥११॥ नमि विनमीइं एहज आराध्यो साजण सेठ एथी ज वाध्यो । रवि शशि सोहम नई धरणिंद सेवइ विशेषई पासजिणिद ॥१२॥ को छत्रीआली चड्या चोसाल घम घम धमकइ घूघरमाल । जोतर्या धोरी तुरंगमताजी रेवत रविना जाइ ज लाजी ॥१३॥ को चडी आवइ जन चकडोल पालखी बइठा करइ कलोल । गजरथ घोडा फोज बनाई सार सुखासण सबल सजाई ॥१४॥ भेरी नफेरी नींसाण वाजइ नादि करी नइ अंबर गाजइ । वीणा तंबूरो ताल मृदंग गंधर्व गाइ हुइ उछरंग ॥१४॥ तंबू विराजइ तिहां पंच वरणी सहुइ प्रसंसइ ए भली करणी । थानक थानकना बहु संघ इंम आडंबरइ आवि उतंग ॥१५॥ वर्ण अढारइं लाभइ न पार सहु भरइ पूजी पुण्य भंडार । माणस हेजम कुंण करइ मान सहज सुरंगा द(दे) घण दान ॥१६॥
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के करइ जासक जम्मणवार अन्न अवारी मन्न उदार । जम्माडी आपइ तंबोल ताजा निति निति एहवा नवल दवाजा ||१७|| को झाझो आणी अगर उखेवइ को वली देहरुं ज भरइ मेवइ । को वानी वानीनां फल ढोइ पातग पोतानां पणि धोइ ॥ १८॥ लाखीणी पूजा कोइ करावइ फूलनो कोइ पगर भरावइ । चंपकलीनो हार पहिरावइ अंगद बांहि कोइ बनावइ ||१९||
अनुसंधान-२४
चंग चंदुओ कोइ चडावर कोइक बाजू-बंध घडावइ । हीरानइ चुंनीमाहिं जडावइ मस्तकि कोई मुगट सुहावइ ॥२०॥
केसर सूकडिना रंगरोल कपूरमाहिं छाकमछोल ।
दीप झलामलि जाणे दीवाली निसदिन मइ ते नयनि निहाली ||२१||
खेला ते खेलइ छयल छबीला फूटरा रूडा रूपरंगीला । पात्र प्रपंच निरूपम नाच राग आलापइ रंगि ज राचइ ||२२||
एक संघ आवइ एक सिधारइ पंन्यास वाचक सूरि पधारइ । तिल पडवानो नहीं पणि माग पासजी ऊपरि अति घण राग ॥ २३ ॥
सुंदरि सारइ सवि सिणगार कंठि ज ठवइ नवसर हार । वेणी ते सोहइ जिम शेषनाग देखी ते खोभइ जेह नीराग ॥२४॥
नाकइ ते लटकइ छइ नाकफूली मूल न थाइ अति बहुमूली । झब झब काने झबकइ झालि आवी नइ अडकइ गोरइ गालि ||१५||
राखडी राती लाल गुलाल अष्टमी समी सुंदर भाल । अलवि ते बहू आंखडी अंजइ वेधक रसियां मन रंजइ ||२६|| दाडिमकली दंतनो वृंद जीह ते जाणे अमीयनो कंद । अधर ज ओपइ विद्रुम रंग युव मधुकरनो जिहां किणि बंग ॥२७॥
पीन पयोधर कंचन कुंभ सदली ते साथलि कदली ज थंभ | कडि अति झींणी मुंठि ज माइ केसरी हार्यो वनमाहि जाइ ||२८||
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सखर सोनारिं घड्यो ज रूडो हाथइ ते दीपइ कनकनो चूडो । कंकण जमली सार कारेली बइसती वीटी पासइ ज बेली ॥२९॥ कटि कटिमेखल खल खल खलकइ चोखी ज चुंनी तेजई ते सकलइ । चरणे ते झांझर झमझमकार वींछीयडानो ठमठमकार ॥३०॥ पहिर्यउं ते नारी कुंजर चीर चोली चरणा जिहां मस्तूल हीर । घाटडी कोमल कलगयकेरी फूलनी हाथिं चंग चंगेरी ॥३१॥ पातली जाणे चंपक छोड चमकती चालइ मोडा ज मोड । सांमटी सरखी सहीयर टोली भाव भलेरो भांभर भोली ॥३२॥ केसर चंदन घन घसी घोली सुभर भरी ते कनक कचोली । पासजी पूजइ मनि धरी प्रेम द्रुपदी पूज्या जिनवर जेम ॥३३।। पास संखेसर परम दयाल वामा उअर सर राजमराल । राणी प्रभावतीनो भरतार गुणविजय गाइ गुण वारोवार ॥३४|| एवं ए श्रीसंखेसर पार्श्वनाथ अनाथनो नाथ मोक्षमार्गनो निर्भय साथ । अनि ए छंडी अवर देवनि आराधि ते लि (दिए?) वाओलि बाथ । एहवउं जाणी भव्य प्राणी भाव धरी भगवंतनई मनमाहिं धरीइ । सहजइ दुःखमा दुःख समुद्र तरीइ निश्चय केवल श्री वरीइ ॥३५॥ ॥ इति श्लोकबन्धेन श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ-स्तवनम् ॥ श्रीपत्तननगरे॥
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(१३) श्री गुणविजयविरचित ॥ श्रीवीशस्थानक-नाम-स्वाध्याय ॥
सुगुरु नमी सुररयण समान थानक वीस तणां अभिधान । पभणउं अति ऊलट मन धरि सुणयो भवियण भावि करी ॥१॥
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अनुसंधान-२४
पहिलि पदि जपीइ अरिहंत बीजि सिद्ध भजो भगवंत । त्रीजि नमो पवयण संधारि चोथि आयरियाणं सार ||२|| पंचम पदि थेराणं सुणो छठि उवझायाणं गणो । निपुण नमो लोए[साहूणं] सातमि जपो नमो नाणस आठमि ॥३॥ नमो दंसणस मुंमि धन्न दसमि नमो विनय संपन्न । इग्यारमइ नमो चारित्त बंभव्वय बारमि सुपत्त ॥४॥ किरियाणं तेरसमि जाणि नमो तवस्स चउदमि ठाणि । गणो नमो गोयम पनरमि नमो जिणाणं जपो सोलमि ||५|| गणि चारित्त नमो सतरमि नाणस्सय पद अट्ठारमि । नमो सुयस्स य ओगणीसमि तिम तित्थस्स नमो वीसमि ।।६।। एक(एम) वीसइ थांनकनां नाम जिनपद वशीकरण अभिराम । श्रीगुरु कनकविजयबुधसीस कहि गुणविजय जपो निसदिस ||७||
॥ वीस थानिक नाम सझाय ॥
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(१४) श्रीगुणविजयविरचित ॥ श्रावकना पांत्रीस गुणनी सज्झाय ॥
सरसति चरणि नमाडी सीस पभणउं श्रावक गुण पांत्रीस । 'न्याय सहित संपति घरि भरइ शिष्टाचार प्रशंसा करइ ॥१॥
सरिखि धरमि वसि वीवाह करि धरी निज मन उच्छाह । "पाप थकी बीहइ निज हदइ 'अयशवाद नवि कहिनो वदइ ॥२॥ 'जे जे जिणि जिणि देशि उदार करि सदा ते ते आचार । रूडा पडोसी नइ पासि 'भलि ठामि जस घरनो वास ॥३॥
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'सदाचार नरनो जस संग "मात-पिता पूजानो रंग । "त्यजइ उपद्रवनो जे ठाम न करि जननिंदित तिम काम ||४||
लाभ सरिस धननो व्यय करइ वेष१५ वित्त अणुसारि धरइ । १५मतिगुण आठ न मुंकइ कदा १६सूधो धरम सुणइ सर्वदा ॥५॥ १"अजरइ जस जिमवू नवि गमइ १८भोजन उचितसमय जे जिमइ । १९धरमादिक पुरुषारथ जेह अवसरि अवसरि सेवइ तेह ॥६॥ २°अतिथि साधु भिक्षाचर तणी युगति यथोचित मंडइ घणी । २ अभिनिवेश नवि मनमां धरइ २२पासउं जे गुण- आदरइ ॥७॥ २३ अनुचित ठामि २४अकालिं वली नवि विचरइ निज मननी रुलि । २५जाणि ठाम बलाबल तणउं २६गुणगिरुआनो भगतु घणउं ॥८॥ २ जे हुइ सदा पोषवा योग तेहना सवे पूरवइ भोग । २“दीरघ दृष्टि लहइ सुविसेस कीधुं नवि लोपइ लवलेस ॥९॥ ३"सदा लोकनइ वाहलो सही ३ लाज चित्तथी मूंकइ नही । ३२अविहड करुणा रस भुंगार ३२सोमसभाव करइ उपगार ॥१०॥ ३४अंतरंग छह रिपु परिहरइ ३५पांचइ इंद्रिय नियवसि करइ । श्रावकना ए गुण पांत्रीस हितकारणि बोल्या जगदीसि ॥११॥ श्रावकधर्म मुगतिनो पंथ इंम भासइ पूरव निग्रंथ । ज्ञातपुत्र सेवाथी लह्यो श्रीगौतमि गुणविवरो कह्यो ॥१२॥
॥ इति सझायः॥
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(१५) ॥ सिद्ध स्वरूप - स्वाध्यायः ॥
राग-धन्यासी
ऊठि घुटि घणउं चेतना नारि तुं
ज्ञान दीवो करी जो विचारी ।
एक अनुपम सरूप चिंति तुं सिद्धनुं
जु तुझ जीव छइ सुमति धारी ॥९॥ ऊ०॥ जो न जगदीसरो जो न परमेसरो
जो न अमरेसरो परमपुरुषो ।
अनुसंधान - २४
जो न रूपं धरइ कर्म कछु नवि करइ
कछु न मुखि उच्चरइ कुंण न सरिखो || २||ऊ० ॥ कुंण थकी नवि डरि कछु भी जो नवि चरि
पदकी नवि गिरइ गौ न चारइ । उदरि नवि अवतरि शस्त्र करि नवि धरइ
हृदय दुखि नवि झरइ नवि करावइ ||३||ऊ० ॥ रोस भी नवि करी प्यार भी नवि धरी
ध्यानथी भगतनां दुख हरावइ । त्रिजगमां नवि फिरइ नींदि तनु नवि भरि
नवि मरि सो किस्यई नो मरावइ ||४||ऊ०|| जोहि लोकालोक जेवडउं तनु विना
एक लोचन धरि एक जीवो । दुख हरि सिद्ध बुद्धो सदा शिवि वसई
सकल योगीसरो हृदय दीवो ||५|| ऊना ॥ इति सिद्धस्वरूप - स्वाध्यायः ॥
|| गणिधनवर्द्धनवाचनाय श्रीपत्तननगरे ॥
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कठिन तथा पारिभाषिक शब्दोना अर्थ
कृति १. खिमा पंचावन्नी
कडी शब्द अर्थ १ खेडु खेटक-शस्त्रविशेष(?)
पेडुं पेटक-सैन्य पर-दल
शत्रुसैन्य दुरगतिनां दल दुर्गति योग्य कर्म जष्य
जक्ष-यक्ष अंतगडा अंतकृत-संसारनो अंत करनार थविरई स्थविरे वढतो झघडतो तरुङ सीसुं अहियासी सहन करी कुकठ कुकाष्ठ खालि
खाल-खाई
फोकट-वृथा-अलीक वाधरि चामडानी रज्जु-पट्टो
स्तूप ठेले
खेंचे
खेडी रह्यो नलिनीगुलम- सौधर्म नामे प्रथम देवलोकनुं
विमानि एक विमान उपसरग उपसर्ग-उपद्रव फाल्यओ फाड्यो-करडी खाधो हईआर्नु राणोराणि मोटा राणाओ पांतों छांनोमींनी छानोमानो
आलि
* *
थूभ
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४६
हृदयन
२. नारी स्वरूप
प्ररूपण स्वाध्याय
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अनुसंधान-२४
लूंटी
मुंसी
मनोभव ३. श्रीबलभद्रऋषि- २
कमलाणी सज्झाय
आहेडी धणुहडी ।
करलीनइ ५,१० विललाई
विहरावत ४. संसारस्वरूप-सज्झाय २ आथि केरो
३ छार ५. हितशिक्षाबोलसज्झाय
६ डंभक
कामदेव करमाणी आखेट-शिकार धनुष्य चीस पाडीने कणस/विलाप करवो. वहोरावतो-भिक्षा आपतो अर्थनो-धननो
राख
s mr w
u
नीलज
निर्लज्ज दंभी(?) आखलो ऊंट/गर्दभ
खुंट
खरड सूधो
s
पंपल
६. समता सज्झाय
or w u
वसमसि सीथ पुंठि मांस
७. जीभ-सज्झाय
20
दाणो-सिक्थ पृष्ठमांस-पाछळथी निंदवू - वगोवद्रू पोळ प्रकारा-किल्लो यमल-जोड(तोले) महेतो-महामात्य
पोलि पगारा जामलि महितो संसालि
w ga
९.
३ मित्र-उपनय सज्झाय
गेरख्युं
ओडवइ करगर
विनंति, करगरवू
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२४
रलतु
दोहली
१०. श्रीदशार्णभद्रराजर्षि- ३
श्लोक
नींबडिओ ?
रळतो-कमातो आरति वेतो पीडातो अखत्र अखतरां-अक्षत्र भीषाव्यां डराव्या निसत निःसत्त्व नींमड्या नीवड्या-काम लाग्या द्राओ द्रवी गयो आगन्या आज्ञा
दुःखनी परखयो परखजो-परीक्षा करजो विसराली विनश्वर-भंगुर सखर उत्तम सुहाली सुंवाळी-सुकुमाल वहिलि वेलढुं-वहेल छत्रीआली छत्रवाळी मुडद्ध मुकुटबद्ध गुहिर गंभीर खेहई धूळथी प्रजुंज्यउं
प्रयोज्यु-उपयोग मूक्यो त्रीजुं ज्ञान अवधिज्ञान विकूर्वण विकुर्वणा करवी
वैक्रियलब्धिथी बनाववं जम्मक सम्मक जमक शमक
(चमक दमक) तगादो देखाडो-आडंबर नवेरो नवलो-नवो नवांडर्ड
नमाडु
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________________ 11. श्रीशान्तिनाथश्लोक 1 12. श्लोकबन्धेन 1 श्रीपार्श्वनाथस्तवनम् 4 13 अनुसंधान-२४ भमाडं-वधारूं ? चन्द्र दुहिता-दीकरी वरदान ? सूर्यना रथना अश्वो भवाडउं समहुतो गौरकिरण धूआ वरु चोसाल रेवत रविना हेजम जासक अवारी ढोइ सूकडि फूटरा कारेली मस्तूल बाओलि अजरइ 18 याचक रोकटोक विना धरे छे सुखड-चंदन फुटडा-रूपाळा 22 31 कोमळ-मसृण बावळे पाचन थया विना-जर्या विना 6 14. श्रावकना पांत्रीस गुणनी सज्झाय C/o. अतुल एच. कापडिया A-9, जागृति फ्लेट, पालडी, अमदावाद-३८०००७