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________________ 56 अनुसंधान-२४ साव सुलक्षण बहु गुणवंती घणउं कस्युं हवि कहीइ । जीव भणि जिनमारगि लागो तुं सुक्खई निरवहीइ ॥७॥ जीव सीखामणि जीहा जागी जिनगुण गावा लागी । कहि लावण्यसमय वयरागी पाप भ्रांति हवइ भागी ॥८॥ ॥ इति जीभ-सज्झाय ॥ ★★★ (८) निह्नवविचार-सज्झाय वीर जिणेसर थया केवली तेथी वरस चउदमइ(१४) वली । जमालि पहिलो निह्नव थयु कडमाण कड ऊथापयु ॥१॥ सोलस(१६)वरसे बीजो जोइ तिष्यगुपत नामि ते होइ । छेहलो जीवप्रदेशइं जीव ए कीधी थापना सदीव ॥२॥ वीर वरततां थया ए बे वि मुगति गया पछी कहिस्यउं हेव । बारमि(१२) वरसिं पामी मुगति गौतम गणधरनी ए युगति ॥३॥ वीसे(२०) वरसे सोहम सामि वीर पछी जाइ शिवठामि । तेह तणा चाल्या मुनि-पाट जिणइ देखाडी साची वाट ॥४॥ चउसठि(६४) वरसे जंबू सिद्ध बालपणा लगइ शील प्रसिद्ध । अठाणउं (९८) वरसे वीरथी शय्यंभव थयु धर्म सारथी ॥५॥ प्रतिबुद्धो जिन-प्रतिमा देखि शासन दीठउं सर्व विशेष । मनक सीसनइ काजि करिडं श्रीदशवकालिक उद्धरिउं ॥६॥ वीर थकी एकसो-सत्तर (१७०) भद्रबाहु गुरु गणि अवतरि । उवसग्गहरं तवन करेवि मारि निवारी छइ तिणि खेवि ॥७॥ दस निर्युगति नवी तिणि करी सूत्र अरथ युगति सांभरी । बिसइ-चउद(२१४) वरसे वली जोइ त्रिजो निह्नव जगमाहिं होइ ||८|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229484
Book TitleVividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyankirtivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size557 KB
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